Print this page

हदीसे रसूल (स.) और परवरिश

Rate this item
(4 votes)

हदीसे रसूल (स.) और परवरिश

परवरिश दो तरह की होती हैः

1- जिस्मानी परवरिश 2- रूहानी-ज़ेहनी परवरिश

जिस्मानी परवरिश में पालने-पोसने की बातें आती हैं।

रूहानी-ज़ेहनी परवरिश में अख़लाक़ और कैरेक्टर को अच्छे से अच्छा बनाने की बातें होती हैं।

इस लिए पैरेंट्स की बस यही एक ज़िम्मेदारी नहीं है कि वह अपने बच्चों के लिए सिर्फ़ अच्छा खाने, पीने, पहनने, रेहने और सोने की सहूलतों का इन्तेज़ाम कर दें बल्कि उन के लिए यह भी ज़रूरी है कि वह खुले दिल से और पूरे खुलूस के साथ बच्चों के दिलो-दिमाग़ में रूहानी और अख़लाक़ी वैल्यूज़ की जौत भी जगाते रहें।

समझदार पैरेंट्स अपने बच्चों पर पूरी संजीदगी से तवज्जोह देते हैं। वह अपने बच्चों के लिए रहने सहने की अच्छी सहूलतों के साथ-साथ उनके अच्छे कैरेक्टर, हुयूमन वैल्यूज़, अदब-आदाब और रूह की पाकीज़गी के ज़्यदा ख़्वाहिशमन्द होते हैं।

आईये देखें रसूले इस्लाम (स.) इस बारे में हज़रत अली (अ.) से क्या फ़रमाते हैं। "ऐ अली! ख़ुदा लानत करे उन माँ-बाप पर जो अपने बच्चे की ऐसी बुरी परवरिश करें कि जिस की वजह से आक करने की नौबत आ पहुँचे।"

रसूले ख़ुदा (स.) ने फ़रमाया हैः- "अपने बच्चों की अच्छी परवरिश करो क्यों कि तुम से उन के बारे में पूछा जाएगा।"

रसूले ख़ुदा (स.) दूसरी जगह इर्शाद फ़रमाते हैं, "बच्चो के साथ एक जैसा बर्ताव करो। बिल्कुल उसी तरह जैसे तुम चाहते हो कि तुम्हारी नेकी और मेहरबानी के मुक़ाबले में इन्साफ़ से काम लिया जाए।"

रसूले अकरम (स.) का इर्शाद है किः- "बच्चो के साथ बच्चा बन जाओ। बच्चों की परवरिश में सब्र से काम लो और सख़्ती न करो क्यों कि होशियार टीचर, सख़्त मिज़ाज टीचर से बेहतर होता है।"

रसूले ख़ुदा सल्लल लाहो अलैहि व आलेहि व सल्लम ने इर्शाद फ़रमायाः- "बच्चा सात साल तक बादशाह है यानी जो चाहे करे, कोई रोक-टोक नहीं। फिर सात साल तक ग़ुलाम है इस लिए कि अभी उसमें इतनी अक़्ल और समझ नहीं है कि वह अच्छाई या बुराई को समझ सके। इस लिए ना चाहते हुए भी सिर्फ़ बाप के दबाव से वह उसके बताए हुए काम करेगा। यह बिल्कुल उसी तरह है जैसे ग़ुलाम अपने आक़ा का हुक्म मानते हैं। फिर इसे बार सात साल यानी 14 से 21 साल तक वह वज़ीर है यानी उसमें अब ख़ुद अक़्ल आ गई है। और अब वह अपनी समझ का इस्तेमाल करते हुए अपने बाप का हाथ बटाकर ज़िन्दगी की मंज़िलों को तय करेगा। ये वही शान है जो एक बादशाह के वज़ीर की होती है।"

इसी तरह हज़रत अली अलैहिस्सलाम इर्शाद फ़रमाते हैः- "सात साल तक बच्चे को खेलने-कूदने देना चाहिए, फिर सात साल तक उसके अख़लाक़, किरदार और आदातों को सुधारना चाहिए, फिर सात साल तक उस से काम लेना चाहिए।"

Read 4279 times