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हज़रत ज़ैनब सलामुल्ला अलैहा का शुभ जन्म दिवस

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हज़रत ज़ैनब ऐसी महान महिला का नाम है जिनका व्यक्तित्व उच्चतम नैतिक गुणों का संपूर्ण आदर्श है।

ऐसी महिला जिसने अपने विनर्म, दयालु व मेहरबान दिल के साथ बड़ी-बड़ी मुसीबतों को सहन किया।  हर प्रकार की परेशानियां सहन करने के बावजूद महान हस्ती की प्रतिबद्धता, सच्चाई की रक्षा के मार्ग में तनिक भी नहीं डगमगाई।

पांच जमादिल अव्वल सन छह हिजरी क़मरी को पवित्र नगर मदीना में पैग़म्बरे इस्लाम की नवासी हज़रत ज़ैनब का जन्म हुआ था।  आप हज़रत अली अलैहिस्सलाम और हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाह की सुपुत्री थीं।  उनका नाम पैग़म्बरे इस्लाम ने रखा था। पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने ईश्वरीय आदेश से इस नवजात शिशु का नाम ज़ैनब रखा था।  आपने सदैव इस बच्ची का सम्मान किये जाने की सिफारिश की।  यह नाम अपने माता-पिता के निकट उनके सम्मान को दर्शाता है।  हज़रत ज़ैनब के शुभ जन्मदिन पर आप सबकी सेवा में हार्दिक बधाई प्रस्तुत करते हैं।

हज़रत ज़ैनब का नाम रखे जाने के बारे में कहा जाता है कि जब आपका जन्म हुआ उस समय पैग़म्बरे इस्लाम (स) मदीने से बाहर यात्रा पर गये हुए थे। इसी कारण हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने उस बच्ची का नाम रखने में विलंब से काम लिया ताकि पैग़म्बरे इस्लाम मदीना वापस आ जायें। पैग़म्बरे इस्लाम के मदीना वापस आ जाने के बाद उन्होंने ईश्वरीय आदेश से उस नवजात शिशु का नाम ज़ैनब रखा।  जैनब का अर्थ होता है पिता के सम्मान का कारण।

हज़रत ज़ैनब एक एसे परिवार में पैदा हुई थीं जिसके त्याग का उल्लेख ईश्वर ने पवित्र क़ुरआन में किया है। महान ईश्वर ने क़ुरआने मजीद के सूरे इंसान की आठवीं और नवीं आयतों में उनके परिवार के त्याग की बात कही है। हज़रत ज़ैनब का परिवार वह परिवार था जिसने तीन दिनों तक लगातार अपने खाने को फक़ीर, अनाथ और बंदी को दे दिया।  उन्होंने स्वयं पानी पीकर इफ्तार किया।

हज़रत ज़ैनब की एक विशेषता उनका त्याग था।  एक दिन की बात है कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम एक ग़रीब व्यक्ति  को अपने घर ले आए।  जब वे घर पहुंचे तो  हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने हज़रत फातेमा से पूछा कि क्या घर में कुछ है जिससे मेहमान की आवभगत की जा सके? हज़रत फ़ातेमा ने उत्तर दिया कि ज़ैनब के हिस्से का थोड़ा सा खाना मौजूद है। जिस समय हज़रत अली अलैहिस्सलाम और हज़रत फ़ातेमा बात कर रहे थे उसी समय हज़रत ज़ैनब वहां पर पहुंचीं।  यह बात सुनकर उन्होंने अपने पिता से कहा कि मेरा खाना मेहमान को दे दीजिए।  विशेष बात यह है कि यह उस समय की बात है जब हज़रत ज़ैनब की आयु चार वर्ष से अधिक नहीं थी।  हज़रत ज़ैनब ने समस्त सदगुणों को अपनी माता हज़रत फातेमा और पिता हज़रत अली अलैहिस्सलाम से सीखा था।  वे इन महान हस्तियों की छत्रछया में पली-बढ़ीं थीं। हज़रत ज़ैनब एसे वातावरण में परवान चढ़ीं जो सद्गुणों का स्रोत व केन्द्र था।  वे पवित्रता में अपनी महान माता हज़रत फातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की भांति थीं जबकि बात करने व भाषण देने में वे अपने महान पिता हज़रत अली अलैहिस्सलाम के समान थीं। हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा ने सहनशीलता व विन्रमता अपने बड़े भाई इमाम हसन और बहादुरी वे धैर्य जैसी विशेषता को अपने दूसरे बड़े भाई इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम से सीखा था।

हज़रत ज़ैनब सद्गुणों की स्वामी एक महान महिला थीं।  वे मुसलमान एवं ग़ैर मुसलमान महिलाओं सबके लिए सर्वोत्तम आदर्श हैं।  हज़रत ज़ैनब ज्ञान में अपना उदाहरण स्वयं थीं। जब हज़रत अली अलैहिस्सलाम अपने शासनकाल में इराक़ के कूफ़ा नगर चले गये और वहीं पर रहने लगे।  एसे में ज्ञान हासिल करने की इच्छुक महिलाओं और लड़कियों ने हज़रत अली अलैहिस्सलाम के पास संदेश भेजा।  अपने संदेश में उन्होंने कहा कि हमने सुना है कि आप की बेटी हज़रत ज़ैनब, अपनी माता हज़रत फातेमा ज़हरा की ही भांति ज्ञान और सद्गुणों की स्वामी हैं। अगर आप अनुमति दें तो हम उनकी सेवा में उपस्थित होकर ज्ञान के इस स्रोत से लाभ उठायें। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने अनुमति दे दी ताकि उनकी बेटी कूफे की महिलाओं व लड़कियों के धार्मिक एवं ग़ैर धार्मिक प्रश्नों का उत्तर दें और उनकी समस्याओं का समाधान करें। हज़रत ज़ैनब ने कूफे की महिलाओं के लिए पवित्र कुरआन की व्याख्या के लिए कक्षा गठित की और उनके प्रश्नों का वे उत्तर दिया करती थीं।

किताबों में मिलता है कि जबतक वे अपने भाई को नहीं देख लेती थीं, आपको सुकून नहीं मिलता था।  वे अपने भाई इमाम हुसैन को बहुत चाहती थी।  हज़रत ज़ैनब का विवाह, अब्दुल्लाह बिन जाफ़र से हुआ था।  वे अरब जगत के जानेमाने इंसान थे।  विवाह के समय उन्होंने शर्त लगाई थी कि जब कभी भी मेरे भाई हुसैन को मेरी ज़रूरत होगी मैं उनकी सहायता के लिए जाऊंगी।  अब्दुल्लाह बिन जाफ़र ने उनकी यह शर्त मान ली थी। 

हज़रत ज़ैनब के बारे की एक विशेषता यह थी कि  विभिन्न अवसरों पर फैसला लेने और दृष्टिकोण अपनाने की उनमें अदभुत क्षमता पाई जाती थी। हज़रत ज़ैनब भलिभांति जानती थीं कि बात को कहां और किस स्थिति में कैसे कहा जाए। 

हज़रत ज़ैनब की एक अन्य विशेषता, बहादुरी थी। उन्होंने अदम्य साहस का परिचय देते हुए अत्याचारी शत्रुओं का मुकाबला किया। हज़रत ज़ैनब की उपाधि हाशिम परिवार की शेर दिल महिला थी। वे बहादुरों की भांति अत्याचारी शत्रुओं के समक्ष बात करतीं, उनकी भर्त्सना करतीं और वह किसी से भी नहीं डरती थीं।

हज़रत ज़ैनब ने कर्बला के महाबलिदान की अमर घटना को अपनी आंखों से देखा था। जब इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके 72 वफादार साथी शहीद हो गये तो सारी ज़िम्मेदारी हज़रत ज़ैनब के कांधों पर आ गयी। इतिहास में मिलता है कि आशूर की सुबह उनके दो बेटे औन और मुहम्मद उनके साथ थे। हज़रत ज़ैनब अपने दोनों बेटों के साथ हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की सेवा में पहुंचीं।  उन्होंने इमाम हुसैन से कहा हमारे पूर्वज हज़रत इब्राहीम ने इस्माईल के बजाये ईश्वर की ओर से भेजी गयी कुर्बानी स्वीकार कर ली थी। हे मेरे भाई आप भी मेरी ओर से आज यह कुर्बानी स्वीकार कर लीजिए।  उन्होंने कहा था कि अगर महिलाओं को जेहाद का आदेश होता तो मैं भी अपनी जान को आपपर क़ुर्बान करती हज़रत ज़ैनब ने इमाम से कहा था कि मैं यह चाहती हूं कि मेरे बेटे, मेरे भतीजों से पहले रणक्षेत्र में जाएं।  अनुमति मिलने के बाद हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा के दोनों बेटे रणक्षेत्र में यज़ीद की सेना से धर्मयुद्ध करते हुए शहीद हो गये।

हज़रत ज़ैनब (स) के भाषण लोगों के दिलों में उतर जाया करते थे। आपने अपने भाषणों से इमाम हुसैन के आंदोलन को सदा के लिए अमर बना दिया।  करबला में बंदी बनाये जाने के बाद जब हज़रत ज़ैनब (स) रसूले इस्लाम (स) के परिवार के दूसरे बंदियों के साथ यज़ीद के दरबार में लाई गईं तो आपने अपने ख़ुत्बों व भाषणों से सबको हैरान कर दिया था। आपने अपने ख़ुत्बे में कहा था कि हे यज़ीद! यदि आज तुमने हमें इस मोड़ पर ला खड़ा किया है और मुझे बंदी बनाया गया है लेकिन जान ले मेरी निगाह में तेरी ताक़त कुछ भी नहीं है।  अल्लाह की क़सम, अल्लाह के सिवा मैं किसी से नहीं डरती हूँ और उसके सिवा किसी और से शिकायत भी नहीं करूंगी। ऐ यज़ीद मक्कारी द्वारा तू हम लोगों से जितनी दुश्मनी सकता है कर ले।  हम जो पैग़म्बरे इस्लाम के परिजन हैं। उनसे दुश्मनी के लिए तू जितनी भी साज़िशें रच सकता है रच ले लेकिन खुदा की कसम तू हमारे नाम को लोगों के दिलों से नहीं मिटा सकता है। तू हमारी ज़िंदगी को ख़त्म नहीं कर सकता और न ही हमारे गौरव को मिटा सकता है।  इसी तरह हे यज़ीद तू अपने दामन पर लगे कलंक को कभी नहीं धो सकता।  हज़रत ज़ैनब के इस एतिहासिक भाषण को सुनकर यज़ीद बौखला उठा था। उनका भाषण सुनकर यज़ीद की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे?

ईरान में हज़रत ज़ैनब के शुभ जन्म दिवस को, "नर्स डे" के रूप में मनाया जाता है।  इसका मुख्य कारण है कि उन्होंने अपने काल के इमाम की सेवा की और इमाम की शहादत के बाद उनके परिजनों का पूरा ध्यान रखा।  नर्स का काम वास्तव में बहुत ज़िम्मेदारी का काम है जिसमें बहुत धैर्य की आवश्यकता होती है।  धैर्य के मामले में वे सबके लिए उदाहरण थीं। 

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