हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम रिज़्क, शिफ़ा और बारिश को केवल भौतिक कारणों का नतीजा नहीं समझते थे, बल्कि इसे सीधे ख़ुदा का काम मानते थे। क़ुरआन करीम भी इंसान के दिल में यही यक़ीन पक्का करना चाहता है कि असली कार्य करने वाला केवल ख़ुदा है, जबकि ज़ाहिरी कारण हमेशा कारगर नहीं करते। इसीलिए इंसान को चाहिए कि अपने दिल में ईमान को ख़ालिस और मज़बूत करे।
मरहूम अल्लामा मिस्बाह यज़्दी ने एक ख़िताब में रोज़ी, शिफ़ा और बारिश के असली कारणों और कारकों पर बात करते हुए फ़रमाया कि जिस दर्जे की तौहीद की मारिफ़त हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम रखते थे, वह आम इंसानों की सोच से बहुत ऊँची है।
उन्होंने आयत ए करीमा
"وَالَّذِی هُوَ یُطْعِمُنِی وَیَسْقِینِ»
(सूरह शुआरा, आयत 79) की तफ़सीर करते हुए कहा कि हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं,मेरा रब वह है जो मुझे खिलाता है, जो पानी मेरे होठों तक पहुँचाता है। वह यह नहीं कहते कि अल्लाह खाना पैदा करता है, बल्कि कहते हैं कि अल्लाह मुझे खुद खिलाता है।
इसी तरह जब वह बीमार होते हैं तो फ़रमाता हैं कि मेरा रब ही शिफ़ा देता है न कभी-कभार, बल्कि हर मर्तबा वही शिफ़ा देने वाला है।
यह वह ख़ास दरक (समझ) है जो हमारी आम सोच से मेल नहीं खाता, और अक्सर हम इन तसव्वुरात को केवल तआरुफ़ या निस्बत के तौर पर लेते हैं, जबकि हक़ीक़तन हम असबाब-ए-तबीई को असल समझते हैं।
अल्लामा मिस्बाह ने कहा कि जब बारिश होती है तो हम फ़ौरन साइंसी वजूहात गिनवाते हैं कि बुख़ारात (भाप) उठते हैं, बादल बनते हैं, ठंडक से पानी बनता है और फिर ज़मीन की कशिश से बारिश हो जाती है। लेकिन क़ुरआन चाहता है कि मुसलमान का यक़ीन हो कि बारिश अल्लाह ही नाज़िल करता है।
पुराने ज़माने के लोग और किसान इस हक़ीक़त को दिल से मानते थे। जब वह खेती करते थे तो उनका हक़ीक़ी इतमाद ख़ुदा पर होता था कि बारिश वही बरसाएगा।
टेक्नोलॉजी के ज़रिए बादलों को बारिश के क़ाबिल बनाने से हमेशा बारिश नहीं होती कभी बारिश आ जाए तो भी फ़सलें आफ़त का शिकार हो जाती हैं।बरसों से सूखे इलाक़े में अचानक बर्फ़बारी हो जाती है।
ऐसे वाक़ियात इंसान को यक़ीन दिलाते हैं कि असबाब के पीछे एक और निज़ाम भी कारफ़र्मा है जिसे हम नहीं जानते।
इसीलिए ज़रूरी है कि हम अपने दिल में इस ख़ालिस और साफ़ ईमान को दोबारा ज़िंदा करें।