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मुसलमान इमाम ए ज़माना अ.स.की क़द्र क्यों न कर सके?

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मुसलमान इमाम ए ज़माना अ.स.की क़द्र क्यों न कर सके?

अल्लामा मुहम्मद तक़ी मिस्बाह यज़्दी रह.का कहना है कि उम्मत ए मुस्लिमा की कोताही, बेवफ़ाई और नाक़द्री की वजह से हम इमाम ए ज़माना (अ.स.) की ज़ाहिरी मौजूदगी से महरूम हो गए। जैसा कि ख़्वाजा नसीरुद्दीन तूसी रह.ने फ़रमाया है, «وَ غَیبَتُهُ مِنّا» यानी उनकी ग़ैबत हमारी ही वजह से है।

मरहूम अल्लामा मुहम्मद तक़ी मिस्बाह यज़्दी (रह.) ने एक ख़िताब में इमाम ए ज़माना हज़रत वली-ए-अस्र (अ.ज.) की ग़ैबत के कारणों पर रौशनी डालते हुए कहा कि उम्मते इस्लामिया अपनी नाअहली और कमज़ोरियों के कारण इस अज़ीम नेमत से महरूम हो गई।

उन्होंने कहा कि मुसलमानों ने आइम्मा-ए-अहलेबैत (अ.स.) के साथ जो रवैया अपनाया, उसमें बेवफ़ाई, कम-हिम्मती और क़द्र न पहचानने जैसे तत्व शामिल थे और यही इस महरूमी का कारण बना। अल्लामा मिस्बाह यज़्दी (रह.) के मुताबिक, मुमकिन है कि हम ख़ुद भी किसी न किसी दर्जे में इन कोताहियों में शरीक हों, इसी वजह से हमें इमामे अस्र (अ.स.) की ज़ाहिरी मौजूदगी का शरफ़ हासिल नहीं है।

उन्होंने मरहूम ख़्वाजा नसीरुद्दीन तूसी (रह.) के कथन «وَ غَیبَتُهُ مِنّا» का हवाला देते हुए कहा कि इमाम (अ.स.) की ग़ैबत किसी बाहरी ज़ुल्म का नतीजा नहीं है बल्कि यह हमारी अपनी कमज़ोरियों और आमाल का अंजाम है। उम्मत ने आइम्मा (अ.स.) की क़द्र नहीं की उनकी नुसरत में साबित-क़दमी नहीं दिखाई, जिसके कारण वह इस सज़ा की मुस्तहक़ ठहरी कि इमाम (अ.स.) की सीधे मार्गदर्शन से महरूम हो जाए।

हालाँकि अल्लामा मिस्बाह यज़्दी (रह.) ने एक उम्मीद अफ़ज़ा पहलू की ओर भी इशारा किया और कहा कि आज भी ऐसे अफ़राद मौजूद हैं जो ख़ुलूस-ए-दिल के साथ इमामे ज़माना (अ.स.) की हुकूमत के मुंतज़िर हैं, जिनकी ज़िंदगी का कोई दिन और रात इमाम (अ.स.) की याद के बिना नहीं गुज़रता और जो अपनी पूरी ज़िंदगी को इसी इंतज़ार से जोड़े हुए हैं।

उन्होंने ज़ोर देते हुए कहा कि हक़ीक़ी इंतज़ार सिर्फ़ ज़बानी दावा नहीं है, बल्कि यह अमली वफ़ादारी, इस्लाह-ए-नफ़्स और दीनी ज़िम्मेदारियों की अदायगी का नाम है।

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