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रहबरे इंक़ेलाब आयतुल्लाह ख़ामेनेई का 2025 का पैग़ामे हजः

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रहबरे इंक़ेलाब आयतुल्लाह ख़ामेनेई का 2025 का पैग़ामे हजः

बिस्मिल्लाह अर्रहमान अर्रहीम सारी तारीफ़ पूरी कायनात के पालनहार के लिए है और दुरूद व सलाम हो अल्लाह की बेहतरीन मख़लूक़ मोहम्मद मुस्तफ़ा, उनकी पाकीज़ा नस्ल और चुने हुए सहाबियों और उन पर जो भलाई में उनका पालन करते हैं, क़यामत के दिन तक।

हज मोमिनों की आरज़ू, मुश्ताक़ लोगों की ईद और सौभाग्यशालियों की आध्यात्मिक रोज़ी है और अगर उसके गहरे अर्थों वाले इशारों की मारेफ़त के साथ अंजाम पाए तो न सिर्फ़ इस्लामी जगत बल्कि पूरी इंसानियत की मुख्य पीड़ाओं का इलाज है।

हज का सफ़र, दूसरे सफ़र की तरह नहीं है जो व्यापार या पर्यटन या दूसरे लक्ष्यों के लिए अंजाम पाते हैं और कभी कभार उसमें कोई इबादत या भला काम भी अंजाम पाता है; हज का सफ़र आम ज़िंदगी से वांछित ज़िंदगी की ओर हिजरत है। वांछित ज़िंदगी, तौहीद पर आधारित ज़िंदगी है कि जिसमें सत्य के ध्रुव पर निरंतर तवाफ़, कठिन चोटियों के दरमियान हमेशा कोशिश, हमेशा कंकरी मारकर दुष्ट शैतान को भगाना, 'वुक़ूफ़' की हालत में अल्लाह की याद और उसकी प्रार्थना, ग़रीब और सफ़र में मजबूर हो जाने वाले राहगीर को खाना खिलाना, इंसानों के रंग, नस्ल, ज़बान और भौगोलिक स्थिति को एक नज़र से देखना, सभी हालत में सेवा के लिए तैयार रहना, अल्लाह की पनाह चाहना और सत्य की रक्षा का ध्वज उठाना ज़िंदगी के मुख्य और स्थायी तत्व हैं।

हज के संस्कारों में इस ज़िंदगी के प्रतीक के नमूने मौजूद हैं और वे हज करने वालों को उससे परिचित कराते और उसे अपनाने की दावत देते हैं। इस दावत पर ध्यान देना चाहिए। दिल, आँख और अंतरात्मा को खोलना चाहिए। इस सबक़ को सीखना चाहिए और इसे उपयोग करने के लिए कमर कस लेना चाहिए। हर शख़्स अपनी क्षमता भर इस रास्ते की ओर क़दम बढ़ाए और ओलमा, बुद्धिजीवियों और राजनैतिक पदों पर बैठे और उच्च सामाजिक स्थिति से संपन्न लोगों की, दूसरों से ज़्यादा इस दिशा में क़दम बढ़ाने की ज़िम्मेदारी है।

इस्लामी जगत को आज हमेशा से ज़्यादा इस पाठ पर अमल करने की ज़रूरत है। यह दूसरा हज है जो ग़ज़ा और वेस्ट एशिया के दर्दनाक वाक़यों के दौरान अंजाम पा रहा है। फ़िलिस्तीन पर क़ाबिज़ अपराधी ज़ायोनी गैंग ने नाक़ाबिले यक़ीन दरिंदगी, अभूतपूर्व निर्दयता और दुष्टता के साथ ग़ज़ा की त्रासदी को ऐसी स्थिति में पहुंचा दिया है कि जिस पर यक़ीन नहीं आता। इस वक़्त फ़िलिस्तीनी बच्चे बमों, गोलों और मीज़ाइलों के अलावा भूख और प्यास से मर रहे हैं। अपने अज़ीज़ों, जवानों और माँ बाप को खोने वाले दुखी घरानों की तादाद दिन ब दिन बढ़ती जा रही है। इस मानव त्रासदी को रोकने के लिए किसे डटना चाहिए?

इस बात में शक नहीं कि सबसे पहले यह इस्लामी हुकूमतों का फ़रीज़ा है और फिर क़ौमों का जो अपनी सरकारों से इस फ़रीज़े को अंजाम देने का मुतालेबा करें। मुसलमान सरकारें शायद मुख़्तलिफ़ मसलों में आपस में राजनैतिक मतभेद रखती हों लेकिन ये मतभेद ग़ज़ा के दर्दनाक मसले पर संयुक्त स्टैंड अपनाने और आज की दुनिया के सबसे मज़लूम इंसानों की रक्षा में सहयोग के सिलसिले में उनके आड़े न आएं। मुसलमान सरकारों को ज़ायोनी सरकार को मदद पहुंचाने वाले सारे रास्तों को बंद कर देना चाहिए और इस अपराधी को ग़ज़ा में उसकी निर्दयी करतूतों को जारी रखने से बाज़ रखना चाहिए। अमरीका, ज़ायोनी सरकार के अपराधों में निश्चित तौर पर भागीदार है, इस इलाक़े में और दूसरे इस्लामी क्षेत्रों में अमरीका के संपर्क में रहने वाले लोग, मज़लूम के सपोर्ट के सिलसिले में क़ुरआन मजीद की आवाज़ सुनें और अमरीका की साम्राज्यवादी सरकार को इस ज़ालेमाना व्यवहार को रोकने के लिए मजबूर करें। हज में बराअत का एलान, इस राह में एक क़दम है।

ग़ज़ा के अवाम के हैरतअंगेज़ प्रतिरोध ने फ़िलिस्तीन के मुद्दे को इस्लामी जगत और दुनिया के तमाम आज़ादी के समर्थक इंसानों के ध्यान का सबसे बड़ा केन्द्र बना दिया है। इस मौक़े से फ़ायदा उठाना चाहिए और इस मज़लूम क़ौम के सपोर्ट के लिए आगे आना चाहिए। फ़िलिस्तीन के मसले को भुला दिए जाने की साम्राज्यावादियों और ज़ायोनी सरकार के समर्थकों की कोशिशों के बावजूद इस सरकार के हुक्मरानों की दुष्ट प्रवृत्ति और उनकी मूर्खतापूर्ण नीति ने ऐसी स्थिति पैदा कर दी है कि आज फ़िलिस्तीन का नाम पहले से ज़्यादा उज्जवल है और ज़ायोनियों और उनके समर्थकों से नफ़रत, पहले से ज़्यादा है और यह इस्लामी जगत के लिए एक अहम मौक़ा है।

वक्ताओं और उच्च सामाजिक स्थिति के लोगों के लिए ज़रूरी है कि वे क़ौमों को जागरुक बनाएं, उन्हें संवेदनशील बनाएं और फ़िलिस्तीन से संबंधित मुतालबों को ज़्यादा से ज़्यादा फैलाएं। आप सौभाग्यशाली हाजी भी, हज के संस्कारों के दौरान दुआ और अल्लाह से मदद तलब करने के मौक़े को हाथ से जाने न दें और अल्लाह से ज़ालिम ज़ायोनियों और उनके समर्थकों पर विजय की दुआ कीजिए।

अल्लाह का दुरूद व सलाम हो पैग़म्बरे इस्लाम, उनकी पाकीज़ा नस्ल और सलाम व दुरूद हो ज़मीन पर अल्लाह की आख़िरी हुज्जत इमाम महदी पर अल्लाह उन्हें जल्द से जल्द ज़ाहिर करे।

सैयद अली ख़ामेनेई

3 ज़िलहिज्जा 1446 हिजरी क़मरी

30 मई 2025

 

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