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21 स्वर्ण पदक के साथ ईरान की राष्ट्रीय धावक टीम पश्चिम एशिया में चैंपियन
ईरान की राष्ट्रीय धावक टीम पश्चिम एशिया में चैंपियन
इस्लामी गणतंत्र ईरान की धावक टीम पश्चिम एशिया में होने वाले मुक़ाबले में चैंपियन हो गयी।
पश्चिम एशिया में दौड़ने का मुकाबला 29 मई से दो जून तक इराक़ के बसरा नगर में आयोजित हुआ।
इन मुक़ाबलों में इस्लामी गणतंत्र ईरान की धावक टीम 21 स्वर्ण पदक, 16 रजत पदक और 3 कांस्य पदक हासिल करके चैंपियन रही।
मेज़बान इराकी टीम भी ने इन मुकाबलों में 9 स्वर्ण पदक, 13 रजत पदक और 17 कांस्य पदकों के साथ दूसरा स्थान हासिल किया जबकि क़तर भी इन मुकाबलों में 6 स्वर्ण पदक, 2 रजत और 4 कांस्य पदकों के साथ तीसरे स्थान पर रहा।
ईरानी महिलाओं ने इन मुकाबलों में अच्छा प्रदर्शन किया इस प्रकार से कि उन्होंने जो 40 पदक हासिल किये जिसमें 17 स्वर्ण पदक, 12 रजत पदक और 2 कांस्य पदक थे और चार राष्ट्रीय रिकार्ड भी बदले।
मर्दों के मुकाबलों में भी ईरान की मिल्ली पुशान टीम ने चार स्वर्ण पदक, चार रजत पदक और 1 कांस्य पदक हासिल किया।
इस्लामी गणंत्र ईरान की धावक टीम के चालिस खिलाड़ी इन मुकाबलों में मौजूद थे।
अज़रबैजान को ईरान की नसीहत, इलाक़े में इस्राईल की मौजूदगी से फैलेगा फ़ित्ना
अज़रबैजान के राष्ट्रपति, इल्हाम अलीयोव ने एक बार फिर ईरान के कार्यवाहक राष्ट्रपति मोहम्मद मुखबिर के साथ एक फोन कॉल में ईरान के दिवंगत राष्ट्रपति सय्यद इब्राहीम रईसी की हेलीकॉप्टर दुर्घटना में मौत पर संवेदना व्यक्त की और ईरान की सरकार और लोगों के साथ एकजुटता व्यक्त की। इल्हाम ने डॉ रईसी की शहादत को एक बड़ी क्षति बताया, यह केवल ईरान नहीं बल्कि सभी क्षेत्रीय देशों के खास कर मुस्लिम राष्ट्रों का नुकसान है।
मोहम्मद मुखबिर ने इल्हाम का आभार जताते हुए कहा जैसा कि शहीद राष्ट्रपति डॉ. रईसी ने कहते थे कि, ईरान और अजरबैजान के लोगों का एक दूसरे के साथ धार्मिक, आपसी रिश्तेदारी और दिल का रिश्ता है, जो एक अटूट बंधन है। मैं कहना चाहूंगा कि इलाक़े में शांति और स्थायित्व स्थानीय देशों की कोशिशों से ही आएगा। अवैध राष्ट्र इस्राईल व्यवहारिक दृष्टि से नाटो का ही सदस्य है और ऐसे पराए देशों को अगर इलाक़े में पैर जमाने का मौक़ा मिल गया तो यह पूरा इलाक़ा अशांत हो जाएगा।
अमेरिका और चीन आमने सामने, ताइवान पर हमला हुआ तो सेना भेजेगा वाशिंगटन
चीन और ताइवान की तनातनी के बीच अमेरिका ने एक बार फिर चीन को उकसाने वाली हरकत करते हुए कहा है कि अगर चीन ने ताइवान के खिलाफ कोई मूर्खता की तो हम अमेरिकी सेना भेजने में संकोच नहीं करेंगे।
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने एक बार फिर दोहराया है कि अगर चीन ने ताइवान पर हमला किया तो अमेरिका अपनी सेना भेज सकता है। उन्होंने टाइम मैगजीन को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि ताइवान पर चीनी आक्रमण की स्थिति में अमेरिकी सैन्य बल के इस्तेमाल से इनकार नहीं किया जा सकता है। बाइडन ने ही अपने कार्यकाल के शुरुआती दिनों में दो टूक कहा था कि अमेरिका ताइवान की रक्षा के लिए अमेरिकी सैनिकों को उतारने से पीछे नहीं हटेगा। इसे अमेरिका की विदेश नीति में बड़ा परिवर्तन बताया गया था।
अमेरिका ने स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में प्रदर्शन कर रहे छात्रों पर कसा शिकंजा, 13 गिरफ्तार
अमेरिकी यूनिवर्सिटीज़ में इस्राईल के विरुद्ध और फिलिस्तीन के समर्थन में शुरू हुए विरोध प्रदर्शन का सिलसिला तेज़ होता जा रहा है। इसी क्रम में अमेरिका के कैलिफोर्निया के स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय में फिलिस्तीन समर्थकों ने जमकर प्रदर्शन किया जिसे पुलिस ने बलपूर्वक कुचलते हुए 13 लोगों को गिरफ्तार किया है। इस दौरान कई लोग घायल भी हो गए।
स्टैनफोर्ड डेली अखबार के मुताबिक करीब 10 छात्र सुबह साढ़े 5 बजे विश्वविद्यालय के प्रशासनिक कार्यालय की बिल्डिंग में दाखिल हुए और करीब 50 छात्रों ने बिल्डिंग को चारों और से घेर लिया। इसके बाद सभी छात्र 'फिलिस्तीन को आजाद करो’ के नारे लगाने लगे।
‘छात्रों के एक समूह ने विश्वविद्यालय अध्यक्ष के कार्यालय को घेर लिया और छात्रों ने ग़ज़्ज़ा जनसंहार से जुड़ी कंपनियों को स्कूल से अलग करने सहित अन्य मांगें की।
अयोध्या से हारी भाजपा, तो समर्थकों ने बताया धोखेबाज़
भारत में आम चुनाव के बीच सबसे ज़्यादा चर्चा राम मंदिर और अयोध्या को लेकर थी लेकिन भाजपा को अयोध्या में ही शर्मनाक हार का मुंह देखना पड़ा जिसके बाद भाजपा समर्थकों की ओर से अयोध्या वासियों को ग़द्दार और धोकेबाज़ बताया जा रहा है वहीँ आम जन मानस का कहना है कि खुद राम जी ने भाजपा को धुत्कार दिया है।
अब मशहुर सीरियल रामायण में राम के भाई लक्ष्मण का किरदार निभाने वाले एक्टर ने अयोध्या वासियों पर ज़बानी हमला तेज़ करते हुए उन्हें ग़द्दार और धोकेबाज़ बताया है।
बता दें कि फैजाबाद संसदीय सीट पर समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार अवधेश प्रसाद ने अपने निकटतम बीजेपी प्रतिद्वंद्वी लल्लू सिंह को हराया है। रामायण के एक्टर सुनील ने अपनी इंस्टाग्राम स्टोरीज में बाहुबली फिल्म के मशहूर सीन की एक तस्वीर शेयर की है, जिसमें कटप्पा बाहुबली को मारते हुए दिख रहा है। बाहुबली पर बीजेपी लिखा हुआ है, जबकि कटप्पा पर अयोध्या लिखा हुआ है।
उन्होंने कहा कि यह वही अयोध्यावासी हैं जिन्होंने देवी सीता को नहीं बख्शा', इतिहास गवाह है कि अयोध्या के नागरिकों ने हमेशा अपने राजा के साथ विश्वासघात किया है उन्हें शर्म आनी चाहिए। अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण से स्थानीय स्तर पर भाजपा को चुनावी लाभ नहीं मिला क्योंकि पार्टी फैजाबाद निर्वाचन क्षेत्र हार गई जहां मंदिर का शहर है।
इस्राईल ने लेबनान पर प्रतिबंधित फॉस्फोरस बम बरसाए, 170 से अधिक नागरिक घायल
ग़ज़्ज़ा में जनसंहार मचा रहा ज़ायोनी शासन जहाँ फिलिस्तीन में 37 हज़ार लॉगऑन का क़त्ले आम कर चुका है वहीँ लगातार सीरिया और लेबनान पर भी बर्बर हमले करते हुए सैंकडो लोगों की जान ले चुका है।
ज़ायोनी सेना ने एक बार फिर सभी मानवाधिकारों और अंतर्राष्ट्रीय क़ानूनों को रौंदते हुए लेबनान पर फॉस्फोरस बम बरसाए। एक वैश्विक मानवाधिकार समूह ने बुधवार को प्रकाशित एक रिपोर्ट में दावा किया कि इस्राईल ने दक्षिणी लेबनान में कम से कम पांच कस्बों व गांवों में आवासीय भवनों पर सफेद फॉस्फोरस बमों का इस्तेमाल किया है। इससे नागरिकों को काफी क्षति पहुंच रही है और यह अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन है। इससे पीड़ित 173 लोगों का इलाज किया गया है।
मानवाधिकार समर्थकों का कहना है कि आबादी वाले क्षेत्रों में विवादास्पद हथियार दागना अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत अपराध है। उधर, ज़ायोनी शासन ने सफेद फॉस्फोरस के इस्तेमाल की बात स्वीकारते हुए कहा है कि हम सिर्फ धुएं के परदे के रूप में इसका इस्तेमाल करते हैं नागरिकों को निशाना बनाने के लिए नहीं।
ग़ज़्ज़ा, ज़ायोनी सेना की स्कूल पर बमबारी, 38 से अधिक मासूम बच्चे शहीद
इस्राईल ने एक बार फिर बर्बरियत और हैवानियत की सभी हदें पार करते हुए ग़ज़्ज़ा में एक स्कूल पर बमबारी की जिसमे कम से कम 39 बच्चे मारे गए। अतिक्रमणकारी ज़ायोनी सेना ने इस बार मध्य ग़ज़्ज़ा पट्टी में नुसीरात शिविर में एक स्कूल को निशाना बनाया है। इस हवाई हमले में कम से कम 39 फिलिस्तीनी नागरिकों की मौत हुई है और दर्जनों लोग घायल बताए जा रहे हैं। 39 फिलिस्तीनी में से ज्यादातर बच्चे और महिलाएं हैं।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, ज़ायोनी सेना के लड़ाकू जेट ने कम से कम तीन कक्षाओं पर कई मिसाइलों से हमला किया। इस स्कूल में सैंकड़ों फिलिस्तीनी मौजूद थे। वहीं एपी की रिपोर्ट के अनुसार, ज़ायोनी सेना का कहना है कि उसने ग़ज़्ज़ा पट्टी में एक स्कूल के अंदर हमला किया जो हमास का परिसर था।
रूस की धमकी, यूरोप पर हमला करने के लिए दूसरे देशों को देंगे अत्याधुनिक हथियार
यूक्रेन रूस संकट के बीच रूस पर हमले के लिए यूक्रेन को आधुनिक हथियार देने के यूरोप और अमेरिका के फैसले पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए पुतिन ने चेतावनी दी है कि वह अन्य देशों को यूरोपीय देशों पर हमले के लिए लंबी दूरी तक मार करने वाली मिसाइलें दे सकते हैं।
रूस ने जर्मनी को साफ़ चेतवानी देते हुए कहा कि रूस में लक्ष्यों पर हमला करने के लिए यूक्रेन को जर्मनी अपने हथियारों की सप्लाई कर रहा है। रूस के मुताबिक हमले में जर्मनी के हथियारों का इस्तेमाल करना एक 'खतरनाक कदम' होगा। पुतिन ने चेतावनी दी कि रूस पश्चिमी लक्ष्यों पर हमला करने के लिए दूसरे देशों को लंबी दूरी के हथियार दे सकता है।
हिज़्बुल्लाह का ज़ायोनी सैन्य अड्डे पर ड्रोन हमला, 2 इस्राईली सैनिक हलाक
हिज़्बुल्लाह ने इस्राईल के खिलाफ अपने सैन्य अभियान को बढ़ाते हुए मक़बूज़ा फिलिस्तीन में ज़ायोनी सैन्य अड्डे पर विध्वंसक ड्रोन से हमले किये जिसमे कम से कम 2 ज़ायोनी सैनिकों के मारे जाने की खबर है।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, हार्फ़िश शहर पर आत्मघाती ड्रोन हमले के नतीजे में ज़ायोनी शासन के 2 सैनिक मारे गए और 20 अन्य घायल हो गए। ज़ायोनी मीडिया ने अस्पताल के सूत्रों का हवाला देते हुए बताया कि 20 घायलों में से पांच लोगों की स्थिति गंभीर है।
ज़ायोनी सूत्रों का कहना है कि घायलों को निकटतम चिकित्सा केंद्र तक पहुँचाने के लिए तीन हेलीकॉप्टरों को घटनास्थल पर भेजा गया है। खास बात यह है कि हिज़्बुल्लाह ने यह हमले करते हुए इस्राईल के सभी सुरक्षा उपायों को नकारा कर दिया। ज़ायोनी सेना का कहना है कि वह इस बात की जांच करेंगे कि इस हमले के समय खतरे के सायरन क्यों नहीं बजे।
इमाम ख़ुमैनी का व्यक्तित्व अत्यंत सुंदर एवं आकर्षक था
1970 के दशक में तेल के उत्पादन और उसके मूल्य में वृद्धि के साथ ही ईरान के अत्याचारी शासक मुहम्मद रज़ा पहलवी को अधिक शक्ति का आभास हुआ और उसने अपने विरोधियों के दमन और उन्हें यातनाए देने में वृद्धि कर दी। शाह की सरकार ने पागलपन की सीमा तक पश्चिम विशेष कर अमरीका से सैन्य शस्त्रों व उपकरणों तथा उपभोग की वस्तुओं की ख़रीदारी में वृद्धि की तथा इस्राईल के साथ खुल कर व्यापारिक एवं सैन्य संबंध स्थापित किए। मार्च 1975 के अंत में शाह ने दिखावे के रस्ताख़ीज़ नामक दल के गठन और एकदलीय व्यवस्था की स्थापाना के साथ ही तानाशाही को उसकी चरम सीमा पर पहुंचा दिया। उसने घोषणा की कि समस्त ईरानी जनता को इस दल का सदस्य बनना चाहिए और जो भी इसका विरोधी है वह ईरान से निकल जाए। इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह ने इसके तुरंत बाद एक फ़तवा जारी करके घोषणा की कि इस दल द्वारा इस्लाम तथा ईरान के मुस्लिम राष्ट्र के हितों के विरोध के कारण इसमें शामिल होना हराम और मुसलमानों के विरुद्ध अत्याचार की सहायता करने के समान है। इमाम ख़ुमैनी तथा कुछ अन्य धर्मगुरुओं के फ़तवे अत्यंत प्रभावी रहे और शाह की सरकार के व्यापक प्रचारों के बावजूद कुछ साल के बाद उसने रस्ताख़ीज़ दल की पराजय की घोषणा करते हुए उसे भंग कर दिया।
अक्तूबर वर्ष 1977 में शाह के एजेंटों के हाथों इराक़ में इमाम ख़ुमैनी के बड़े पुत्र आयतुल्लाह सैयद मुस्तफ़ा ख़ुमैनी की शहादत और इस उपलक्ष्य में ईरान में आयोजित होने वाली शोक सभाएं, ईरान के धार्मिक केंद्रों तथा जनता के पुनः उठ खड़े होने का आरंभ बिंदु थीं। उसी समय इमाम ख़ुमैनी ने इस घटना को ईश्वर की गुप्त कृपा बताया था। शाह की सरकार द्वारा इमाम ख़ुमैनी और धर्मगुरुओं के साथ शत्रुता के क्रम को आगे बढ़ाते हुए शाह के एक दरबारी लेखक ने इमाम के विरुद्ध एक अपमाजनक लेख लिख कर ईरानी जनता की भावनाओं को ठेस पहुंचाई। इस लेख के विरोध में जनता सड़कों पर निकल आई। आरंभ में पवित्र नगर क़ुम के कुछ धार्मिक छात्रों और क्रांतिकारियों ने 9 जनवरी वर्ष 1978 को सड़कों पर निकल कर प्रदर्शन किया जिसे पुलिस ने ख़ून में नहला दिया। किंतु धीरे धीरे अन्य नगरों के लोगों ने भी क़ुम की जनता की भांति प्रदर्शन आरंभ कर दिए और दमन एवं घुटन के वातावरण का कड़ा विरोध किया।
आंदोलन दिन प्रतिदनि बढ़ता जा रहा था और शाह को विवश हो कर अपने प्रधानमंत्री को बदलना पड़ा। अगला प्रधानमंत्री जाफ़र शरीफ़ इमामी था जो राष्ट्रीय संधि की सरकार के नारे के साथ सत्ता में आया था। उसके शासन काल में राजधानी तेहरान के एक चौराहे पर लोगों का बड़ी निर्ममता से जनसंहार किया गया जिसके बाद तेहरान तथा ईरान के 11 अन्य बड़े नगरों में कर्फ़्यू लगा दिया गया। इमाम ख़ुमैनी ने, जो इराक़ से स्थिति पर गहरी दृष्टि रखे हुए थे, ईरानी जनता के नाम एक संदेश में हताहत होने वालों के परिजनों से सहृदयता जताते हुए आंदोलन के भविष्य को इस प्रकार चित्रित कियाः “शाह को जान लेना चाहिए कि ईरानी राष्ट्र को उसका मार्ग मिल गया है और वह जब तक अपराधियों को उनके सही ठिकाने तक नहीं पहुंचा देगा, चैन से नहीं बैठेगा। ईरानी राष्ट्र अपने व अपने पूर्वजों का प्रतिशोध इस क्रूर परिवार से अवश्य लेगा। ईश्वर की इच्छा से अब पूरे देश में तानाशाही व सरकार के विरुद्ध आवाज़ें उठ रही हैं और ये आवाज़ें अधिक तेज़ होती जाएंगी”। शाह की सरकार के विरुद्ध संघर्ष को आगे बढ़ाने में इमाम ख़ुमैनी की एक शैली जनता को अहिंसा, हड़ताल और व्यापक प्रदर्शन का निमंत्रण देने पर आधारित थी। इस प्रकार ईरान की जनता ने इमाम ख़ुमैनी के नेतृत्व में अत्याचारी तानाशाही शासन के विरुद्ध सार्वजनिक आंदोलन आरंभ किया।
इराक़ की बअसी सरकार के दबाव और विभिन्न प्रकार के प्रतिबंधों के चलते इमाम ख़ुमैनी अक्तूबर वर्ष 1978 में इराक़ से फ़्रान्स की ओर प्रस्थान कर गए और पेरिस के उपनगरीय क्षेत्र नोफ़ेल लोशातो में रहने लगे। फ़्रान्स के तत्कालीन राष्ट्रपति ने एक संदेश में इमाम ख़ुमैनी से कहा कि वे हर प्रकार की राजनैतिक गतिविधि से दूर रहें। उन्होंने इसके उत्तर में कड़ी प्रतिक्रिया जताते हुए कहा कि इस प्रकार का प्रतिबंध प्रजातंत्र के दावों से विरोधाभास रखता है और वे कभी भी अपनी गतिविधियों और लक्ष्यों की अनदेखी नहीं करेंगे। इमाम ख़ुमैनी चार महीनों तक नोफ़ेल लोशातो में रहे और इस अवधि में यह स्थान, विश्व के महत्वपूर्ण सामाचारिक केंद्र में परिवर्तित हो गया था। उन्होंने विभिन्न साक्षात्कारों और भेंटों में शाह की सरकार के अत्याचारों और ईरान में अमरीका के हस्तक्षेप से पर्दा उठाया तथा संसार के समक्ष अपने दृष्टिकोण रखे। इस प्रकार संसार के बहुत से लोग उनके आंदोलन के लक्ष्यों व विचारों से अवगत हुए। ईरान में भी मंत्रालयों, कार्यालयों यहां तक कि सैनिक केंद्रों में भी हड़तालें होने लगीं जिसके परिणाम स्वरूप शाह जनवरी वर्ष 1979 में ईरान से भाग गया। इसके 18 दिन बाद इमाम ख़ुमैनी वर्षों से देश से दूर रहने के बाद स्वदेश लौटे। उनके विवेकपूर्ण नेतृत्व की छाया में तथा ईरानी जनता के त्याग व बलिदान से 11 फ़रवरी वर्ष 1979 को ईरान से शाह के अत्याचारी शासन की समाप्ति हुई। अभी इस ऐतिहासिक परिवर्तन को दो महीने भी नहीं हुए थे कि ईरान की 98 प्रतिशत जनता ने एक जनमत संग्रह में इस्लामी गणतंत्र व्यवस्था के पक्ष में मत दिया।
इमाम ख़ुमैनी जनता की भूमिका पर अत्यधिक बल देते थे। उनके दृष्टिकोण में जिस प्रकार से धर्म, राजनीति से अलग नहीं है उसी प्रकार सरकार भी जनता से अलग नहीं है। वे इस संबंध में कहते हैः“ हमारी सरकार का स्वरूप इस्लामी गणतंत्र है। गणतंत्र का अर्थ यह है कि यह लोगों के बहुमत पर आधारित है और इस्लामी का अर्थ यह है कि यह इस्लाम के क़ानूनों के अनुसार है”। दूसरी ओर इमाम ख़ुमैनी राजनैतिक मामलों में जनता की भागीदारी को, चुनावों में भाग लेने से इतर समझते थे और इस बात को उन्होंने अनेक बार अपने भाषणों और वक्तव्यों में बयान भी किया था।
ईरान में इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद पश्चिमी साम्राज्यवादियों ने ईरान की इस्लामी गणतंत्र व्यवस्था को धराशाही करने का हर संभव प्रयास किया। वे जानते थे कि ईरान की इस्लामी क्रांति अन्य देशों में भी जनांदोलन आरंभ होने का कारण बन सकती है और राष्ट्रों को अत्याचारी शासकों के विरुद्ध उठ खड़े होने के लिए प्रेरित कर सकती है। ईरान की इस्लामी क्रांति से मुक़ाबले हेतु साम्राज्य की एक शैली यह थी कि इमाम ख़ुमैनी की हत्या के लिए देश के कुछ बिके हुए तत्वों को प्रयोग किया जाए क्योंकि वे जानते थे कि सरकार के नेतृत्व में उनकी भूमिका अद्वितीय है किंतु उनकी हत्या का षड्यंत्र विफल हो गया।
इस्लामी गणतंत्र व्यवस्था को उखाड़ फेंकने हेतु शत्रुओं की एक अन्य शैली, देश को भीतर से तोड़ना और उसका विभाजन करना था। शत्रुओं ने ईरान के विभिन्न क्षेत्रों में जातीय भावनाएं भड़का कर बड़ी समस्याएं उत्पन्न कीं किंतु इसका भी कोई परिणाम नहीं निकला और इस्लामी क्रांति के महान नेता की युक्तियों और जनता द्वारा उनके आज्ञापालन से ये समस्याएं भी समाप्त हो गईं। इमाम ख़ुमैनी एकता व एकजुटता के लिए सदैव जनता का आह्वान करते रहते थे और कहते थे कि धर्म और जाति को दृष्टिगत रखे बिना सभी को समान अधिकार मिलने चाहिए और हर ईरानी को पूरी स्वतंत्रता के साथ न्यायपूर्ण जीवन बिताने का अवसर दिया जाना चाहिए।
जब साम्राज्यवादियों को ईरानी जनता की एकजुटता और इमाम ख़ुमैनी के सशक्त नेतृत्व के मुक़ाबले में पराजय हो गई तो उन्होंने ईरान के विरुद्ध आर्थिक प्रतिबंधों और विषैले कुप्रचारों को भी पर्याप्त नहीं समझा और ईरान पर आठ वर्षीय युद्ध थोप दिया। ईरान की त्यागी जनता को, जो अभी अभी तानाशाही शासन के चंगुल से मुक्त हुई थी और इस्लाम की शरण में स्वतंत्रता का स्वाद चखना चाहती थी, एक असमान युद्ध का सामना करना पड़ा। सद्दाम द्वारा ईरान पर थोपे गए युद्ध ने, इमाम ख़ुमैनी के नेतृत्व के एक अन्य आयाम को प्रदर्शित किया और वे युद्ध के उतार-चढ़ाव से भरे काल से जनता को आगे बढ़ाने में सफल रहे। अमरीका, इस्राईल, फ़्रान्स और जर्मनी के अतिरिक्त तीस अन्य देशों ने इराक़ को शस्त्र, सैन्य उपकरण तथा सैनिक दिए जबकि ईरान पर प्रतिबंध लगे हुए थे और इस युद्ध के लिए वह बड़ी कठिनाई से सैन्य उपकरण उपलब्ध कर पाता था। इस बीच ईरानी योद्धाओं का मुख्य शस्त्र, साहस, ईमान और ईश्वर का भय था। अपने नेता के आदेश पर बड़ी संख्या में रणक्षेत्र का रुख़ करने वाले ईरानी योद्धाओं ने अपने देश व क्रांति की रक्षा में त्याग, बलिदान और साहस की अमर गाथा लिख दी।
इमाम ख़ुमैनी का व्यक्तित्व अत्यंत सुंदर एवं आकर्षक था। वे जीवन में अनुशासन और कार्यक्रम के अंतर्गत काम करने पर कटिबद्ध थे। वे अपने दिन और रात के समय में से एक निर्धारित समय उपासना, क़ुरआने मजीद की तिलावत और अध्ययन में बिताते थे। दिन में तीन चार बार पंद्रह पंद्रह मिनट टहलना और उसी दौरान धीमे स्वर में ईश्वर का गुणगान करना तथा चिंतन मनन करना भी उनके व्यक्तित्व का भाग था। यद्यपि उनकी आयु नब्बे वर्ष तक पहुंच रही थी किंतु वे संसार के सबसे अधिक काम करने वाले राजनेताओं में से एक समझे जाते थे। प्रतिदिन के अध्ययन के अतिरिक्त वे देश के रेडियो व टीवी के समाचार सुनने व देखने के अतिरिक्त कुछ विदेशी रेडियो सेवाओं के समाचारों व समीक्षाओं पर भी ध्यान देते थे ताकि क्रांति के शत्रुओं के प्रचारों से भली भांति अवगत रहें। प्रतिदिन की भेंटें और सरकारी अधिकारियों के साथ होने वाली बैठकें कभी इस बात का कारण नहीं बनती थीं कि आम लोगों के साथ इमाम ख़ुमैनी के संपर्क में कमी आ जाए। वे समाज के भविष्य के बारे में जो भी निर्णय लेते थे उसे अवश्य ही पहले जनता के समक्ष प्रस्तुत करते थे। उनके समक्ष बैठने वाले लोग बरबस ही उनके आध्यात्मिक तेज व आकर्षण से प्रभावित हो जाते थे और उनकी आंखों से आंसू बहने लगते थे। लोग हृदय की गहराइयों से अपने नारों में ईश्वर से प्रार्थना करते थे कि वह इमाम ख़ुमैनी को दीर्घायु प्रदान करे। कुल मिला कर यह कि इमाम ख़ुमैनी का संपूर्ण जीवन ईश्वर तथा लोगों की सेवा के लिए समर्पित था।
अंततः 3 जून वर्ष 1989 को उस हृदय ने धड़कना बंद कर दिया जिसने दसियों लाख हृदयों को ईश्वर व अध्यात्म के प्रकाश की ओर उन्मुख किया था। कई लम्बी शल्य चिकित्साओं के बाद इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह ने 87 वर्ष की आयु में इस संसार को विदा कहा। उन्होंने अपनी वसीयत के अंत में लिखा थाः“ मैं शांत हृदय, संतुष्ट मन, प्रसन्न आत्मा और ईश्वर की कृपा के प्रति आशावान अंतरात्मा के साथ भाइयों और बहनों की सेवा से विदा लेकर अपने अनंत ठिकाने की ओर प्रस्थान कर रहा हूं और मुझे आप लोगों की नेक दुआओं की बहुत आवश्यकता है”।













