
رضوی
मुसलमानों के बीच एकता पैदा करने के लिए इस सुन्नी धर्मगुरु का एेतिहासिक क़दम, दुनिया हैरान
ईरान के उत्तरी ख़ुरासान के प्रसिद्ध सुन्नी धर्म गुरु मुल्ला अब्दुल्लाह अमानी ने इस्लामी जगत में एकता के विषय पर बल दिया है।
तस्नीम न्यूज़ एजेन्सी की रिपोर्ट के अनुसार ईरान का उत्तरी ख़ुरासान प्रांत सीमावर्ती प्रांतों में से एक है जहां विभिन्न जातियों और समुदाय के लोग रहते हैं। इस प्रांत में रहने वालों से कुछ का संबंध सुन्नी तुर्कमन से है। इन लोगों ने पूरी निष्ठा और सच्चाई के साथ इराक़ द्वारा ईरान पर थोपे गये युद्ध के दौरान देश का भरपूर साथ दिया और 30 शहीदों का बलिदान पेश किया।
इसी क्षेत्र के रहने वाले एक प्रसिद्ध धर्मगुरु का नाम हाजी अब्दुल्लाह अमानी है जिन्होंने वहां पर एक धार्मिक स्कूल खोला है और उसका नाम पैग़म्बरे इस्लाम की सुपुत्री हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के नाम पर रखा है। उन्होंने पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि उनकी यह कार्यवाही, मुसलमानों के बीच एकता पैदा करने का महत्वपूर्ण राज़ और केन्द्र है।
जब उनसे पूछा गया कि उन्होंने अपने धार्मिक केन्द्र या मदरसे का नाम पैग़म्बरे इस्लाम की सुपुत्री हज़रत फ़ातेमा ज़हरा के नाम पर क्यों रखा? तो उनका कहना था कि आशा कि सभी मुस्लिम महिलाओं को हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स) से जुड़ा रहना चाहिए और यदि वह उनसे जुड़ी रहती हैं कि ख़ुद ही वह पैग़म्बरे इस्लाम के आचरण और पवित्र क़ुरआन की शिक्षा पर अमल करने के रास्ते पर चल पड़ेंगी।
जब उनसे दाइश के बारे में पूछा था तो उन्होंने कहा कि दाइश एक नया और ताज़ा विषय है किन्तु यदि इस्लाम धर्म के उदय के समय यह पथभ्रष्टता पैदा हो जाती तो मुसलमानों के लिए बड़ी समस्याएं पैदा हो जातीं। दाइश, यहूदी और काफ़िरों के विचारों का परिणाम है। हमारी ज़िम्मेदारी है कि इन ख़राब माहौल में अल्लाह की किताब और उसके पैग़म्बर की शिक्षाओं पर अमल करते रहें ताकि इस प्रकार की चीज़ें मुसलमानों को नुक़सान न पहुंचा सके।
बैतुलमुक़द्दस पर ट्रम्प का फैसला, अतिग्रहण को क़ानूनी ठहराने का प्रयास है, ईरान
संयुक्त राष्ट्र संघ में इस्लामी गणतंत्र ईरान के स्थायी प्रतिनिधि कहा है कि फिलिस्तीन पर नाजायज़ क़ब्ज़ा , इलाक़े के सभी संकटों की जड़ है।
ग़ुलामअली खुशरो ने बल दिया है कि अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की ओर से बैतुल मुक़द्दस को ज़ायोनी शासन की राजधानी बताना वास्तव में ग़ैर क़ानूनी क़ब्ज़े को क़ानूनी बनाने का प्रयास है।
उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा में " संस्कृति व शांति " नामक एक सम्मेलन में ट्रम्प के हालिया की कड़े शब्दों में आलोचना की और उसे सभी अंतरराष्ट्रीय नियमों का खुला उल्लंघन बताया।
उन्होंने कहा कि बैतुल मुक़द्दस सहित फिलिस्तीनियों के निश्चित अधिकारों की अनदेखी की की किसी भी कोशिश से हालात और खराब होंगे और विश्व समुदाय अमरीका और ज़ायोनी शासन को इस ग़ैर ज़िम्मेदाराना और ग़ैर क़ानूनी फैसले के खतरनाक अंजाम का ज़िम्मेदार समझता है ।
ग़ुलामअली खुशरो ने कहा कि ट्रम्प के इस फैसले से पश्चिमी एशिया में शांति व स्थायित्व के बारे में अमरीका को दोग़लापन भी स्पष्ट हो गया और एक बार फिर यह भी साबित हो गया कि अमरीका ज़ायोनी शासन के समर्थन के लिए किस तरह से अंतरराष्ट्रीय नियमों और फिलिस्तीनियों के अधिकारों की अनदेखी करता है ।
याद रहे अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने बुधवार को क्षेत्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक विरोध के बावजूद एलान किया कि अमरीका बैतुल मुक़द्दस को इस्राईल की राजधानी के रूप में मान्यता देता है।
पूरी दुनिया में ट्रम्प के इस फैसला का विरोध हो रहा है। क़ुद्स का इस्राईल ने सन 1967 में अतिग्रहण किया था।
बैतुल मुक़द्दस फ़िलिस्तीनियों को वापस दिलाने के लिए मुसलमान एकजुट होंः आयतुल्लाह सीस्तानी
इराक़ में शिया मुसलमानों के वरिष्ठ धर्मगुरू ने कहा है कि इस्लामी समुदाय, बैतुल मुक़द्दस फ़िलिस्तीनियों को वापस दिलाने के लिए एकजुट हो जाए।
आयतुल्लाहिल उज़्मा सीस्तानी ने अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प की ओर से बैतुल मुक़द्दस को ज़ायोनी शासन की राजधानी के रूप में मान्यता दिए जाने के फ़ैसले की निंदा करते हुए गुरुवार को कहा कि अमरीकी राष्ट्रपति के इस क़दम ने दुनिया के दसियों करोड़ मुसलमानों और अरबों की भावनाओं को आहत किया है। उन्होंने कहा कि बैतुल मुक़द्दस के ख़िलाफ़ अमरीकी सरकार का फ़ैसला इस सच्चाई को बदल नहीं सकता कि यह पवित्र स्थल एक अतिग्रहित स्थान है और इसे इसके वास्तविक मालिकों यानी फ़िलिस्तीनियों को लौटाया जाना चाहिए।
इस बीच इराक़ी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अहमद महजूब ने भी एक बयान जारी करके कहा है कि गुरुवार को ट्रम्प के इस क़दम पर आपत्ति स्वरूप बग़दाद में अमरीका के राजदूत को विदेश मंत्रालय में तलब करके उन्हें इस बारे में इराक़ की आपत्ति से अवगत कराया गया। इराक़ के दो अन्य धर्मगुरुओं व राजनैतिक हस्तियों अम्मार हकीम और मुक़्तदा सद्र ने भी अमरीकी दूतावास को तेल अवीव से बैतुल मुक़द्दस स्थानांतरित करके ट्रम्प के फ़ैसले की निंदा की और कहा कि मुसलमानों और मुस्लिम देशों को फ़िलिस्तीन समस्या की ओर से ध्यान नहीं हटाना चाहिए। मुक़्तदा सद्र ने अपने बयान में कहा है कि अरब व इस्लामी देशों के शासक जान लें कि अगर उन्होंने बैतुल मुक़द्दस से हाथ उठा लिया तो आगे चल कर उन्हें पछताना पड़ेगा।
इस्राईल ने गज़्ज़ा पट्टी पर हमला किया, झड़पें भी हुईं, कई शहीद 300 घायल
ज़ायोनी शासन के युद्धक विमानों ने शुक्रवार की रात, उत्तरी ग़ज़्ज़ा पट्टी में स्थित " बैत हानून" पर बमबारी की ।
ग़ज़्ज़ा पट्टी पर होने वाले इस हमले में कई फिलिस्तीनी घायल हुए हैं।
इस्राईली सेना ने दावा किया है कि यह हमला, ग़ज़्ज़ा पट्टी से यहूदी बस्तियों पर कुछ राकेट फायर किये जाने के बाद किया गया है।
बैतुल मुक़द्दस को, इस्राईल की राजधानी के रूप में स्वीकार करने के अमरीकी राष्ट्रपति के ग़ैर क़ानूनी फैसले के बाद अवैध अधिकृत फिलिस्तीन में इस्राईली सैनिकों और फिलिस्तीनियों के बीच झड़पें आरंभ हो गयी हैं जिनमें चार फिलिस्तीनी शहीद और 300 से अधिक घायल हो चुके हैं।
शुक्रवार को फिलिस्तीन के विभिन्न इलाक़ों में हज़ारों फिलिस्तीनियों ने सड़कों पर निकल कर ट्रम्प के ग़ैर क़ानूनी फैसले का विरोध किया।
ईरान सहित विश्व के कई देशों में शुक्रवार को जुमा की नमाज़ के बाद व्यापक प्रदर्शन हुए जिनमें अमरीकी राष्ट्रपति के फैसले की आलोचना की गयी ।
ट्रैम्प के इस्लामोफैगस के उत्तर में टेक्सास के मुस्लिमों का शांति संदेश
अंतर्राष्ट्रीय कुरान समाचार ऐजेंसी समाचार साइट फॉक्स न्यूज के अनुसार,यह कार्यक्रम इस शनिवार (2 दिसंबर)को आयोजित और उसमें दो अमेरिकन मुस्लिम मैल्कम एक्स (मैल्कम एक्स), काला कार्यकर्ता मानव अधिकारों और अफ्रीकी अमेरिकियों के अधिकारों की रक्षा करने वाला और पेशेवर मुक्केबाज मोहम्मद अली कुली की स्मृति में सम्मानित किया गया।
टेक्सास के एक मुस्लिम धार्मिक नेता उमर सुलैमान ने कहाःट्रम्प इस्लाम विरोधी फिल्मों के प्रकाशन के साथ, अमेरिकी मुसलमानों को बेवकूफ़ बताना चाहते हैं, जबकि ऐसा समुदाय जो अमेरिकी मुस्लिमों की तरह अच्छा हो कम है।
डोनाल्ड ट्रम्प ने, बुधवार (29 नवंबर) को, ब्रिटेन में एक जातिवाद पार्टी के उपाध्यक्ष के वीडियो को पुनर्स्थापित किया।
मैल्कम एक्स (नेब्रास्का में 1 9 मई, 1 9 25 में जन्मे, 21 फरवरी, 1 9 65 को न्यूयॉर्क में निधन हो गया), उम्मते -इस्लाम ग्रुप में शामिल होने के बाद, खुद के लिऐ मैल्कम एक्स नाम को चुना, और हज यात्रा के दौरान, अल-हाज मालिक अल-शब्बाज़ इस्लामी नाम को चुना। वह नस्लीय भेदभाव के साथ मुक़ाबला तथा साहसिक और जीवन के लिए भारी संघर्ष के कारण प्रसिद्ध हैं।
मोहम्मद अली कुली (केंटकी में 17 जनवरी, 1 9 42 में जन्म हुआ - 3 जून, 2016 को लुइसविल, केंटकी, संयुक्त राज्य अमेरिका में मृति पागऐ) एक अमेरिकी हेवीवेट बॉक्सर थे, जिसे इस वजन में शीर्ष मुक्केबाजी बॉक्सर का नाम दिया गया था।उन्हें रिंग बॉक्सिंग के अंदर और बाहर एक नागरिक कार्यकर्ता और प्रेरणादायक, विवादास्पद और चुनौतीपूर्ण व्यक्ति के रूप में जाना जाता है।
अंतर्राष्ट्रीय कुरान समाचार ऐजेंसी समाचार साइट फॉक्स न्यूज के अनुसार,यह कार्यक्रम इस शनिवार (2 दिसंबर)को आयोजित और उसमें दो अमेरिकन मुस्लिम मैल्कम एक्स (मैल्कम एक्स), काला कार्यकर्ता मानव अधिकारों और अफ्रीकी अमेरिकियों के अधिकारों की रक्षा करने वाला और पेशेवर मुक्केबाज मोहम्मद अली कुली की स्मृति में सम्मानित किया गया।
टेक्सास के एक मुस्लिम धार्मिक नेता उमर सुलैमान ने कहाःट्रम्प इस्लाम विरोधी फिल्मों के प्रकाशन के साथ, अमेरिकी मुसलमानों को बेवकूफ़ बताना चाहते हैं, जबकि ऐसा समुदाय जो अमेरिकी मुस्लिमों की तरह अच्छा हो कम है।
डोनाल्ड ट्रम्प ने, बुधवार (29 नवंबर) को, ब्रिटेन में एक जातिवाद पार्टी के उपाध्यक्ष के वीडियो को पुनर्स्थापित किया।
मैल्कम एक्स (नेब्रास्का में 1 9 मई, 1 9 25 में जन्मे, 21 फरवरी, 1 9 65 को न्यूयॉर्क में निधन हो गया), उम्मते -इस्लाम ग्रुप में शामिल होने के बाद, खुद के लिऐ मैल्कम एक्स नाम को चुना, और हज यात्रा के दौरान, अल-हाज मालिक अल-शब्बाज़ इस्लामी नाम को चुना। वह नस्लीय भेदभाव के साथ मुक़ाबला तथा साहसिक और जीवन के लिए भारी संघर्ष के कारण प्रसिद्ध हैं।
मोहम्मद अली कुली (केंटकी में 17 जनवरी, 1 9 42 में जन्म हुआ - 3 जून, 2016 को लुइसविल, केंटकी, संयुक्त राज्य अमेरिका में मृति पागऐ) एक अमेरिकी हेवीवेट बॉक्सर थे, जिसे इस वजन में शीर्ष मुक्केबाजी बॉक्सर का नाम दिया गया था।उन्हें रिंग बॉक्सिंग के अंदर और बाहर एक नागरिक कार्यकर्ता और प्रेरणादायक, विवादास्पद और चुनौतीपूर्ण व्यक्ति के रूप में जाना जाता है।
इस्लामिक देशों के स्वास्थ्य मंत्री जेद्दाह में इकट्ठा हो रहे हैं
इंटरनेशनल कुरआन समाचार एजेंसी ने ईना के अनुसार बताया कि आईसीएओ की सहयोग और उपचार की वृद्धि, स्वस्थ जीवन शैली संक्रामक और गैर-संचारी रोगों की रोकथाम और आपात स्थितियों और प्राकृतिक आपदाओं में चिकित्सा शर्तों के लिए रणनीतियां बनाना जैसे मुद्दे पर इस बैठक में चर्चा की जाएग़ी।
इस बैठक, में मात एवं बाल की स्वास्थ्य और पोषण, दवाइयों, टीके और चिकित्सा प्रौद्योगिकी की खरीद में आत्मनिर्भरता जैसे मुद्दा की जांच की जाएगी।
इस बैठक में इसी तरह अध्ययन कमेटी की रिपोर्ट पर आर्थिक, सामाजिक और इस्लामिक देशों के शैक्षिक (अंकारा में स्थित) ओआइसी के सदस्य देशों में स्वास्थ्य पर भी चर्चा होगी।
इस्लामिक सलाहकार समूह के प्रमुख पोलियो उन्मूलन के जिम्मेदार भी हैं समूह ने भी गतिविधियों पर रिपोर्ट करेंगे, और ओआईसी-संबद्ध टीका उत्पादक समूह के प्रमुख इस क्षेत्र में टीके के उत्पादन और आत्मनिर्भरता पर रिपोर्ट करेंगे।
चाबहार बंदरगाह शांति व सुरक्षा में मज़बूती का कारण बनेगीः चीन
चीन ने ईरान के चाबहार बंदरगाह के पहले भाग के उद्घाटन का स्वागत किया है और उसे क्षेत्र में शांति व सुरक्षा में मज़बूती का कारण बताया है।
समाचार एजेन्सी मेहर की रिपोर्ट के अनुसार चीन की विदेशमंत्रालय की प्रवक्ता गेन्ग शोवांग ने बल देकर कहा कि बीजींग क्षेत्रीय देशों के मध्य मित्रतापूर्ण संबंधों में विस्तार और द्विपक्षीय रचनात्मक सहकारिता का स्वागत करता है।
साथ ही उन्होंने कहा कि ईरान के चाबहार बंदरगाह सहित क्षेत्रीय सहकारिता में वृद्धि क्षेत्र की शांति व सुरक्षा में वृद्धि का कारण बन सकती है।
चाबहार बंदरगाह के पहले भाग का उद्घाटन रविवार को राष्ट्रपति डाक्टर हसन रूहानी की उपस्थिति में हुआ। उस समय भारत, पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और कतर सहित विश्व के 17 देशों के अधिकारी मौजूद थे।
ज्ञात रहे कि स्ट्रैटेजिक महत्व और केन्द्रीय एशिया के देशों की मुक्त जेल क्षेत्रों तक निकट पहुंच के कारण चाबहार बंदरगाह काफी महत्वपूर्ण है।
शिया सुन्नी मिलकर करें दुशमनों का मुक़ाबला
तेहरान की केन्द्रीय नमाज़े जुमा के इमाम ने कहा कि इस्लामी जगत को चाहिए कि दुशमनों के मुक़ाबले में डट जाए।
तेहरान की केन्द्रीय नमाज़े जुमा के इमाम आयतुल्लाह मुहम्मद अली मुवह्हेदी किरमानी ने एकता सप्ताह के आगमन की बधाई देते हुए आशा जताई कि शीया और सुन्नी समुदाय आपसी एकता को मज़बूत करके इस्लामी जगत के संयुक्त दुशमनों का डटकर मुक़ाबला करेंगे।
शुक्रवार को हिजरी क़मरी कैलेंडर के रबीउल औवल महीने की 12 तारीख़ है, सुन्नी समुदाय का मत है कि पैग़म्बरे इस्लाम का जन्म इसी तारीख़ में हुआ था, शिया समुदाय का मानना है कि पैग़म्बरे इस्लाम का जन्म 17 रबीउल औवल को हुआ था। ईरान में इस्लामी क्रान्ति के संस्थापक इमाम ख़ुमैनी की पहल पर 12 रबीउल औवल से 17 रबीउल औवल तक शीया सुन्नी एकता सप्ताह मनाया जाता है।
आयतुल्लाह मुहम्मद अली मुवह्हेदी किरमानी ने नमाज़े जुमा के ख़ुतबों में कहा कि शिया और सुन्नी मुसलमानों को दुशमन के धोखे में नहीं आना चाहिए, यदि इस्लामी जगत एकजुट हो जाए तो शत्रु उसे कोई नुक़सान नहीं पहुंचा सकेगा।
तेहरान की केन्द्रीय नमाज़े जुमा के इस हफ़्ते के इमाम ने कहा कि पैग़म्बरे इस्लाम और उनके परिजन शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच एकता का ध्रुव साबित हो सकते हैं लेकिन कुछ मुस्लिम देशों की सरकारें दुशमन की चाल में आकर इस्लामी जगत को एकजुट होने से रोक रही हैं।
आयतुल्लाह मुहम्मद अली मुवह्हेदी किरमानी ने इलाक़े में दाइश के ख़ातमे को ईश्वरीय वचन पूरा होने का उदाहरण बताया और कहा कि क़ुरआन में ईश्वर ने वादा किया है कि असत्य मिट जाने वाला है और सत्य बाक़ी रहने वाला हे।
तेहरान की केन्द्रीय नमाज़े जुमा के इमाम आयतुल्लाह मुहम्मद अली मुवह्हेदी किरमानी ने कहा कि धार्मिक नेतृत्व, लेबनान के हिज़्बुल्लाह संगठन, इस्लामी बलों और ईरान की शक्ति अब अमरीका की समझ में आ जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि दुशमन की साज़िशों में नहीं फंसना चाहिए बल्कि उनका डटकर मुक़ाबला करने की ज़रूरत है।
इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम की शहादत
पूरे इस्लामी जगत विशेषकर शिया समुदाय के लिए सन 260 हिजरी क़मरी की 8 रबीउल अव्वल दुख का संदेश लेकर आई।
आज ही के दिन जब इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम की शहादत की ख़बर आम हुई तो सामर्रा के वे लोग भी इमाम असकरी के घर की ओर दौड़ पड़े जो लंबे समय से शासन के दमन के कारण अपनी आस्था को छिपाए हुए थे। इस दिन सामर्रा के लोग रोते-बिलखते, इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम के घर के बाहर एकत्रित हुए।
पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा (स) के पौत्र इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम ग्यारहवें इमाम थे। आपका जन्म सन 232 हिजरी कमरी को हुआ था। इमाम हसन असकरी के पिता, दसवें इमाम, इमाम हादी अलैहिस्सलाम थे। इमाम असकरी की माता का नाम "हुदैसा" था जो बहुत ही चरित्रवान और सुशील महिला थीं। आपको असकरी इसलिए कहा जाता है क्योंकि तत्तकालीन अब्बासी शासक ने हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम और उनके पिता हज़रत इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम को सामर्रा के असकरिया नामक एक सैन्य क्षेत्र में रहने पर मजबूर किया था ताकि उनपर नज़र रखी जा सके। इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम के उपनामों में नक़ी और ज़की है जबकि कुन्नियत अबू मुहम्मद है। जब आपकी आयु 22 वर्ष की थी तो आपके पिता इमाम अली नक़ी की शहादत हुई। इमाम हसन असकरी की इमामत का काल छह वर्ष था। आपकी आयु मात्र 28 वर्ष थी। शहादत के बाद इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम को उनके पिता इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम की क़ब्र के पास दफ़्न कर दिया गया।
महापुरूषों विशेषकर इमामों का जीवन लोगों के लिए आदर्श है। जो लोग उचित मार्गदर्शन और कल्याण की तलाश में रहते हैं उन्हें इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम का अनुसरण करना चाहिए। इमाम हसन असकरी, अपना अधिक समय ईश्वर की उपासना में बिताया करते थे। उनके बारे में कहा जाता है कि वे दिन में रोज़े रखते और रात में उपासना किया करते थे। वे अपने काल के सबसे बड़े उपासक थे। इमाम असकरी के साथ रहने वालों में से एक, "मुहम्मद शाकेरी" का कहना है कि मैंने कई बार देखा है कि इमाम पूरी-पूरी रात इबादत किया करते थे। वे कहते हैं कि रात में कभी-कभी मैं सो जाया करता था लेकिन जब भी सोकर उठता था तो देखता था कि वे इबादत में मशग़ूल हैं।
अपने पिता की शहादत के समय इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम 22 साल के थे। उनके कांधे पर उसी समय से इमामत अर्थात ईश्वरीय मार्गदर्शन का दायित्व आ गया था। आपकी इमामत का काल 6 वर्ष था। इमामत के छह वर्षीय काल में उनपर अब्बासी शासन की ओर से कड़ी नज़र रखी जाती थी। सरकारी जासूस उनकी हर गतिविधि पर नज़र रखते थे। एसे अंधकारमय काल में कि जब अज्ञानता से लोग जूझ रहे थे और भांति-भांति की कुरीतियां फैली हुई थीं, इमाम असकरी ने एकेश्वरवाद का पाठ सिखाते हुए लोगों को धर्म की वास्तविकता से अवगत करवाया। धर्म के मूल सिद्धांतों को लोगों तक पहुंचाने के लिए आपने अथक प्रयास किये। हज़रत इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम के जीवनकाल को मूलतः दो भागों में विभाजित किया जा सकता है। पहला भाग वह है जिसे उन्होंने पवित्र नगर मदीने में व्यतीत किया। दूसरा भाग वह है जिसे उन्होंने इमामत का ईश्वरीय दायित्व संभालने के बाद सामर्रा में व्यतीत किया।
विरोधियों ने भी इमाम असकरी अलैहिस्सलाम की मानवीय विशेषताओं की पुष्टि की है। इस बारे में इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई कहते हैं कि इमाम के ज़माने के शिया, इमाम के विरोधी, धर्म पर आस्था न रखने वाले तथा अन्य सभी लोग इमाम के ज्ञान, उनकी पवित्रता, उनकी वीरता और अन्य विशेषताओं को स्वीकार करते थे। कठिनाइयों और समस्याओं के मुक़ाबले में इमाम का धैर्य और उनका प्रतिरोध प्रशंसनीय था। जब वे दुश्मनों के हाथों ज़हर से शहीद किये गए तो उनकी आयु मात्र 28 साल थी। 28 वर्ष की आयु में इमाम हसन असकरी ने अपनी योग्यताओं से जो स्थान लोगों के बीच बनाया था उसके कारण इमामत के विरोधी भी आपके आचरण और ज्ञान की प्रशंसा करते थे।
इमाम हसन असकरी का पूरा जीवन अब्बासी शाकसों के घुटन भरे राजनैतिक वातावरण में गुज़रा। आपने 28 वर्ष के अपने जीवनकाल में समाज पर एसी अमिट छाप छोड़ी जो आज भी मौजूद हैं। इतनी कम आयु में इमाम की शहादत यह दर्शाती है कि तत्कालीन अब्बासी शासक, इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम से कितना प्रभावित और चिंतित थे। इमाम पूरे साहस के साथ लोगों से कहा करते थे कि वे राजनैतिक मामलों में पूरी तरह से होशियार रहें। वे शासकों की अत्याचारपूर्ण नीतियों की आलोचना किया करते थे। यह कैसे संभव था कि जब समाज, अज्ञानता के अंधकार में पथभ्रष्टता के मार्ग पर चल निकले और वे उनके मार्गदर्शन के लिए कोई काम अंजाम न दें। इमाम असकरी अलैहिस्सलाम ने अपने दायित्व का निर्वाह पूरी ज़िम्मेदारी के साथ किया। अब्बासी शासक यह चाहते थे कि इमाम को नज़रबंद करके लोगों के साथ उनके सीधे संपर्क को समाप्त कर दिया जाए। इस प्रकार वे पैग़म्बरे इस्लाम (स) के परिजनों के प्रति अपनी शत्रुता का बदला लेते थे।
इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम के ऊपर तरह-तरह के प्रतिबंध थे। वे लोगों से सीधे तौर से मिल नहीं सकते थे। उनको एक स्थान पर नज़रबंद कर दिया गया था किंतु इसके बावजूद आपने लोगों तक ईश्वरीय संदेश पहुंचाया और उनको वास्तविकताओं से अवगत करवाया। एसे घुटन के वातावरण में इमाम ने न केवल यह कि लोगों तक अच्छाई के संदेश पहुंचाए बल्कि कुछ एसे लोगों का प्रशिक्षण भी किया जिन्होंने बाद में इस्लामी शिक्षाओं का प्रचार – प्रसार और लोगों की शंकाओं का निवारण किया। जिन शिष्यों का इमाम ने घुटन भरे काल में प्रशिक्षण किया उन्होंने बाद के काल में वास्तव में बहुत ही ज़िम्मेदारी से लोगों का मार्गदर्शन किया। इस्लामी जगत के एक जानेमाने विद्वान और धर्मगुरू शेख तूसी ने लिखा है कि इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम ने जिन शिष्यों का प्रशिक्षण किया उनकी संख्या 100 से भी अधिक हैं। उन्होंने उनमें से कुछ के नामों का उल्लेख इस प्रकार किया हैः अहमद अशअरी क़ुम्मी, उस्मान बिन सईद अमरी, अली बिन जाफ़र और मुहम्मद बिन हसन सफ्फार आदि।
बारह इमामों के बीच ग्यारहवें इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम का विशेष स्थान है। इसका मुख्य कारण यह था कि उनको 12वें इमाम के नज़रों से ओझल हो जाने वाले काल की भूमिका प्रशस्त करनी थी। अंधकारमय काल में जब तरह-तरह की बुराइयां और कुरीतियां आम थीं एसे में इमाम पूरी दृढ़ता के साथ लोगों के सामने वास्तविकताओं को रख रहे थे। उस काल मे शिया मुसलमानों विशेषकर उनके संभ्रांत लोगों पर बहुत अधिक दबाव था। एसे में इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम अपने मार्गदर्शनों से उन्हें दबावों से बचाने के प्रयास कर रहे थे। उनका प्रयास था कि उनके मानने वाले, राजनैतिक, सामाजिक और आर्थिक दबाव के बावजूद पूरी दृढ़ता के साथ अपने दायित्वों का निर्वाह कर सकें।
उस काल के एक वरिष्ठ शिया विद्धान "अली बिन हुसैन बिन बाबवैह क़ुम्मी" को पत्र लिखकर उनसे इस प्रकार कहा था कि तुम धैर्य से काम लो और इमाम के आने की प्रतीक्षा करो। वे कहते हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) फ़रमाते थे कि मेरे मानने वालों का सबसे अच्छा कर्म, इमाम के आने की प्रतीक्षा करना है। मेरे शिया दुख और दर्द में होंगे कि इस बीच मेरा बेटा जो बारहवां इमाम होगा, प्रकट होगा। वह धरती पर न्याय स्थापित करेगा ठीक उसी प्रकार जैसे वह अत्याचार से भर चुकी होगी। हे बाबवैह, तुम स्वंय धैर्य करो और मेरे मानने वालों को भी धैर्य करने की शिक्षा दो। अच्छा अंजाम ईश्वर से भय रखने वालों का होगा।
इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम की शहादत के दुखद अवसर पर पुनः हार्दिक संवेदना प्रकट करते हुए कार्यक्रम के अंत में उनके कुछ कथन पेश करते हैं। आप कहते हैं कि मैं तुमसे अनुरोध करता हूं कि तुम ईश्वर का भय रखो, धर्म का पालन करो, सच बोलो, लोगों की अमानतों को वापस करो, पड़ोसियों से अच्छा व्यवहार करो, लंबे सजदे करो और हमेशा प्रयासरत रहो। जो एसा करता है वह हमारा मानने वाला है। तुम हमारे लिए खुशी का कारण बनों दुख का नहीं। हमेशा ईश्वर को याद रखो। मौत को कभी न भूलो। पवित्र क़ुरआन पढ़ा करो और पैग़म्बरे इसलाम (स) पर दुरूद भेजो। मेरी इन बातों को याद रखो और उनपर अमल करो।
आईएस का अंत, अमरीका, ज़ायोनी और सऊदी साज़िशें नाकाम।
हुज्जतुल इस्लाम काज़िम सिद्दीक़ी ने जुमे की नमाज़ के विशेष भाषण में दाइश के अंत का उल्लेख करते हुए कहा कि अमरीका, ज़ायोनी शासन और सऊदी अरब दाइश के ज़रिए क्षेत्र में अराजकता, जंग, झड़प और अशांति फैलाना चाहते थे लेकिन उनकी साज़िशें नाकाम हो गयीं।
उन्होंने कहा कि मानव इतिहास में कोई ऐसा अपराध नहीं है जो दाइश ने न किया हो। उन्होंने कहा कि बेगुनाह लोगों का जनसंहार, उनकी गर्दने काटना, उन्हें आग में जलाना और मस्जिदों को ध्वस्त करना दाइश के अपराध का एक भाग है।
हुज्जतुल इस्लाम काज़िम सिद्दीक़ी ने दाइश पर जीत के तत्वों में वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई के मार्गदर्शन, आयतुल्लाह सीस्तानी के योगदान, आईआरजीसी की क़ुद्स ब्रिगेड के कमान्डर जनरल क़ासिम सुलैमानी की जंग के मैदान में युक्ति, इराक़ और सीरिया की सरकारों और इन दोनों देशों के स्वंय सेवी बल की ईश्वर पर आस्था और स्वंयसेवी बल की शहादत पाने की इच्छा, और इराक़ व सीरिया की सरकारों को ईरान की ओर से समर्थन को गिनवाया।
उन्होंने इस बात का उल्लेख करते हुए कि दुश्मन अभी भी ईरानोफ़ोबिया फैलाने की कोशिश में है, कहा कि दुश्मन ईरानोफ़ोबिया के ज़रिए इस्लामी गणतंत्र व्यवस्था को नुक़सान पहुंचाना चाहता है लेकिन इस्लामी गणतंत्र व्यवस्था दिन प्रतिदिन मज़बूत होती जा रही है।