
رضوی
इस्लामी दुनिया की सांस्कृतिक राजधानी के रूप में "अम्मान" परिचय समारोह
समाचार एजेंसी ईना के हवाले से, 2017 में अरबी क्षेत्र इस्लामी संस्कृति की राजधानी के रूप में अम्मान का परिचय समारोह, बुधवार 17 मई को अब्दुल अजीज बिन उस्मान Tuwaijri, शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक इस्लामी संगठन ( ISESCO) के निदेशक की उपस्थिति में आयोजित किया जाएगा।
इस समारोह में जो कि अम्मान जॉर्डन की राजधानी में और शाह अब्दुल्ला द्वितीय, देश के राजा की देखरेख में आयोजित कियया जाऐगा, अम्मान के सिलसिले में दस्तावेजी फ़िल्में प्रसारित की जाएंगी।
Tuwaijri भी इस समारोह के उद्घाटन में भाषण करेंगे।
अम्मान ने अरबी देशों कके बीच इस्लामी दुनिया की सांस्कृतिक राजधानी के झंडे को कुवैत से हासिल कियया और पिछले सांस्कृतिक राजधानियों के सफल अनुभवों से इस कार्यक्रम के आयोजन में लाभ लेग।
वर्ष 2017 में सूडान का Sennar शहर भी, इस्लामी देशों की संस्कृति मंत्रियों के दसवें सम्मेलन की मेजबानी के अवसर पर अम्मान के साथ, अरबी देशों में इस्लामी दुनिया की सांस्कृतिक राजधानी के रूप में नामित किया गया था।
इसी तरह मशहद शहर, गैर अरब एशियाई देशों में इस्लामी दुनिया की सांस्कृतिक राजधानी और अफ्रीकी देशों के बीच युगांडा की राजधानी कंपाला भी इस्लामी दुनिया की सांस्कृतिक राजधानी है।
बाकू में ISESCO के 2010 सत्र के दौरान ISESCO द्वारा 2015 से 2025 तक इस्लामी दुनिया की सांस्कृतिक राजधानियों का चयन किया गया था।
इन शहरों में से प्रत्येक कोशिश करता है कि इन वर्षों में इस्लामी विरासत के पुनरुद्धार और विभिन्न कार्यक्रमों के आयोजन के साथ अपनी इस्लामी संस्कृति का परिचय कराऐ।
2025 तक इस्लामी संस्कृति की राजधानियों को देखने के लिए यहां क्लिक करें।
हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम का शुभ जन्म दिवस।
सदियों से मनुष्य उस दिन की प्रतीक्षा कर रहा है जिस दिन का उससे वाद किया गया है और उस सरकार की प्रतीक्षा में नज़रें बिछाए हुए है और एक एक पल गिन रहा है जो पूरी दुनिया में न्याय की स्थापना कर दे। इसी मध्य शिया मत पर आस्था रखने वाले पैग़म्बरे इस्लाम और उनके परिजनो के अनुयाई, अंतिम मोक्षदाता के रूप में हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम के जन्म दिन और उनके प्रकट होने पर विश्वास रखते हैं और उनका मानना है कि यह ईश्वर और बंदों के मध्य संपर्क का साधन है। लोगों का यह मानना है कि उनके दिल, प्रतीक्षा की प्यास बुझाने का प्रयास कर रहे हैं और पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों के अनुयायी, शाबान की 15 तारीख़ को या हर शुक्रवार को हज़रत महदी के प्रकट होने की प्रतीक्षा में नज़रे बिछाए रहते हैं ताकि उनसे अपनी आज्ञा पालन की प्रतिबद्धता दोहरा सकें और उनकी बैयत कर सकें।
वह पैग्मबरे इस्लाम के परिजन हैं, हज़रत आदम की भांति ईश्वर के ख़लीफ़ा और उतराधिकारी हैं। हज़रत नूह की भांति लोगों को मुक्ति की नौका तक पहुंचाएंगे, हज़रत मूसा की भांति, उनका जन्म भी गोपनीय था, हज़रत इब्राहीम की भांति उनके आने की शुभ सूचना दे दी गयी थी, इस्माईल की भांति, फ़रिश्ते उनकी सहायता को आते हैं, याक़ूब की भांति, प्रतीक्षा में हैं, यूसुफ़ की भांति, दुनिया के सबसे सुन्दर व्यक्ति हैं, हज़रत सुलमान की भांति उनका राज पूरी दुनिया पर होगा, हज़रत अय्यूब की भांति धैर्य के स्वामी हैं, हज़रत ईसा की भांति, पालने में बातें करते हैं, उनका नाम और उनका उपनाप पैग़म्बरे इस्लाम के नाम और उपनाम पर है, वह पैग़म्बरे इस्लाम से बोल चाल और व्यवहार में बहुत अधिक मिलते हैं, ईश्वर का अंतिम तर्क हैं, वह वही महदी हैं जिनके बारे में वादा किया गया है।
हज़रत इमाम महदी धरती पर ईश्वर के अंतिम ख़लीफ़ा और उतराधिकारी हैं। उनका जन्म 15 शाबान, जुमे के दिन, सुबह के समय, 255 या 256 हिजरी क़मरी में सामर्रा शहर में हुआ। जब उनका जन्म हुआ तो उस समय का शासक मोअतमिद अब्बासी था। उनका नाम मुहम्मद और उनकी उपाधि अबुल क़ासिम है। उनका जीवन तीन कालों में विभाजित है। पहला काल जन्म से 260 हिजरी क़मरी तक जिसमें उनके पिता हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम की शहादत हुई, दूसरा काल 260 से 329 हिजरी क़मरी तक है जिसमें वह दूसरों की नज़रों से ओझल रहे और केवल कुछ लोगों के माध्यम से ही जनता के संपर्क में थे, इस काल को ग़ैबते स़ुग़रा का नाम दिया गया, तीसरा काल वह पूरी तरह लोगों की नज़रों से ओझल हो गये जिसे ग़ैबते कुबरा का नाम दिया जाता है। यह काल 329 हिजरी क़मरी से आरंभ हुआ और अब तक तक जारी है और ईश्वर जबतक भलाई देखेगा तब तक इस काल को जारी रखेगा।
अहमद बिन इस्हाक़ क़ुम्मी का कहना है कि मैं इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के पास गया, मैं उनसे पूछना चाहता था कि आपका उतराधिकारी कौन है? मेरे सवाल पूछने से पहले ही इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने कहा कि हे अहमद, ईश्वर ने हज़रत आदम अलैहिस्सलाम के जन्म के समय से अब तक धरती को अपने तर्क और उतराधिकारी से ख़ाली नहीं रखा, यह क्रम प्रलय तक जारी रहेगा ताकि उसके माध्यम से धरतीवासियों की समस्याएं दूर रहें और वर्षा होती रहे और धरती अपनी विभूतियां निकालती रहें। मैंने उनसे पूछा कि हे पैग़म्बरे इस्लाम के सुपुत्र, आपके बाद इमाम और उतराधिकारी कौन हैं? तभी इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम अपनी जगह से उठ खड़े हुए और कमरे से बाहर निकल गये, उसके बाद उन्होंने एक सुन्दर से बच्चे को अपनी गोद में उठा लिया जिसकी उम्र तीन वर्ष से अधिक न थी, उस बच्चे का चेहरा चौदहवीं के चांद की भांति चमक रहा था, इमाम ने कहाः हे अहमद बिन इस्हाक़, यदि ईश्वर और ईश्वरीय तर्क के निकट तुम्हारा स्थान और प्रतिष्ठा न होती तो मैं कभी भी अपने पुत्र को तुम्हें न दिखाता। उसका नाम और उसकी उपाधि पैग़म्बरे इस्लाम के नाम और उपाधि पर है, जब धरती अन्याय और अत्याचार से भर चुकी होगी तब वह धरती को न्याय और इंसाफ़ से भर देगा।
पूरी दुनिया में न्याय की स्थापना और अत्याचार, अन्याय और भेदभाव को समाप्त करना, इमाम महदी अलैहिस्सलाम की सरकार के मुख्य लक्ष्यों में से है। इस महत्वपूर्ण उपलब्धि में जिसकी अधिकतर हदीसे सुन्नी मुसलमानों के हवाले से आईं हैं, स्पष्ट किया गया है, यहां तक कि इन रिवायतों में न्याय की स्थापना और उसके क्रियान्वयन तक एकेश्वरवादी का निमंत्रण देने के साथ अनेकेश्वरवाद और कुफ़्र से संघर्ष पर भी बल नहीं दिया गया है। हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के हवाले से आया है कि हज़रत महदी अलैहिस्सलाम के हवाले से ईश्वर धरती को हर प्रकार के अत्याचार से पाक कर देगा और फिर किसी की अत्याचार करने का साहस ही पैदा नहीं हो पाएगा।
फ़्रांसीसी इतिहासकार गोस्टाव लोबोन का कहना है कि मानवता के सबसे बड़े सेवक वह लोग जिन्होंने मनुष्यों में आशा की किरणें जगा रखी हैं। हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम के प्रकट होने की प्रतीक्षा और आशा, भविष्य में मार्ग खोलने के अतिरिक्त ऊर्जावान और शक्ति प्रदान करने वाला है, लोगों को टिकाऊ शक्ति प्रदान कर सकता है, उनकी शक्ति व ऊर्जा को एकत्रित कर सकता है और एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी के हवाले कर सकता है, अत्याचार सहन करने तथा विनाश से रोक सकता है ताकि इमाम महदी के प्रकट होने का समय निकट आ जाए। महदी मौऊद, ईश्वरीय न्याय, सत्य की शक्ति और दया का प्रतीक है और जो लोग इस ईश्वरीय कृपा और दया की छत्रछाया में आने में सफल हो गये, वह ईश्वर के निकट अधिक कृपा के पात्र बनेंगे क्योंकि इमाम महदी से दिली लगाव, उन पर ध्यान और उनसे लगाव के कारण, मनुष्य की आत्मिक व अध्यात्मिक विकास और प्रगति होगी। इमाम महदी अलैहिस्लाम पर ईमान और आस्था, कभी भी दूसरों के सामने नतमस्तक होने नहीं देती और जो राष्ट्र पूरी शक्ति के साथ हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम पर आस्था रख लेगा वह कभी भी दुश्मन से भयभीत नहीं हो सकता।
हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम की सरकार की महत्वपूर्ण उपबल्धियों में सार्वजनिक कल्याण व सुख है। पूरे मानव इतिहास में इस सफलता को प्राप्त करने के लिए बहुत अधिक प्रयास किए गये और कभी कभी तो बहुत से अधिकारों का हनन तक किया गया किन्तु कभी भी वास्तविक सुख और शांति प्राप्त नहीं की जा सकी। सार्वजनिक कल्याण, मनुष्य के वैचारिक व आत्मिक विकास की भूमिका प्रशस्त करता है। पैग़म्बरे इस्लाम (स) इस बारे में कहते हैं कि जब मुसलमानों के बीच महदी अलैहिस्सलाम आंदोलन करेंगे, उनके काल में लोग विभिन्न प्रकार की विभूतियां प्राप्त करेंगे जो किसी भी काल में नहीं प्राप्त की थीं, आसमान उन पर अपनी वर्षा करेगा और ज़मीन अपनी विभूतियां उन पर ज़ाहिर करेगी।
आज विज्ञान और तकनीक बहुत ही तेज़ी से प्रगति कर रही है और मनुष्य हर दिन प्रगति और विकास के नये द्वार खोल रहा है। इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम का कहना है कि ईश्वरीय पैग़म्बरों ने वह समस्त चीज़ें जो मनुष्यों के सामने पेश की हैं, वह ज्ञान के 27 भागों में से केवल 2 भाग है और मनुष्य हज़रत आदम की सृष्टि से लेकर अब तक केवल ज्ञान के दो ही भागों से परिचित हो सकें हैं, जब हमारा क़ाएम उठ खड़ होगा तो उस समय लोगों पर ज्ञान के 25 भाग स्पष्ट होंगे। और वह उन्हें विस्तृत करेगा।
इस आधार दुनिया में ज्ञान व विज्ञान का विकास और उसे फैलाना, हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम की सरकार की उपलब्धियों में है। महत्वपूर्ण वैज्ञानिक प्रगतियां और इसी प्रकार बहुत से विकास कार्यक्रम, हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम के प्रकट होने के काल से व्यवहारिक होने लगेंगे और इसके मुक़ाबले में हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम के काल में विज्ञान का स्थान बहुत ही तुच्छ हो जाएगा। उस समय पुरी दुनिया में हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम की सरकार की स्थापना होगी और पूरी दुनिया में ईश्वरीय शिक्षा का राज होगा।
हज़रत अली इब्ने अबी तालिब अलैहिस्सलाम का कहना है कि जब इमाम महदी आंदोलन करेंगे तब दुश्मनी और द्वेष दिलों से साफ़ हो जाएंगे और वह एक पूरी शांति और चैन के साथ भरपूर मुहब्बत से एक दूसरे के साथ जीवन व्यतीत करेंगे। हज़रत इमाम महदी समस्त ईश्वरीय दूतों के भांती हैं जो आएंगे और ईश्वरीय समाज की स्थापना के मार्ग में अंतिम क़दम बढ़ाएंगे। वह ऐसा समाज होगा जिसमें ईश्वरीय बंदे सम्मानीय और दुश्वर के दुश्मन अपमानित होंगे, ऐसा समाज होगा जिसमें ईश्वरीय क़ानून चलेगा और इस प्रकार इमाम महदी अलैहिस्सलाम दुनिया के सामने प्रकट होकर अपनी उमंगों वाले समाज की स्थापना करेंगे। सूरए नूर की आयत संख्या 55 में ईश्वर कहता है कि अल्लाह ने तुम में से ईमान वालों और नेक काम करने वालों से वादा किया है कि उन्हें धरती में इस प्रकार अपना ख़लीफ़ा बनाएगा जिस प्रकार पहले वालों को बनाया है और उनके लिए उस धर्म को विजयी बनाएगा जिसे उनके लिए पसंदीदा बताया गया है और उनके भय को शांति से परिवर्तित कर देगा कि वह सब केवल मेरी उपासना करेंगे और किसी प्रकार का अनेकेश्वरवाद नहीं करेंगे और उसके बाद भी कोई काफ़िर हो जाए तो वास्तव में वही लोग बुरे व्यवहार वाले और अधर्मी हैं। पैग़म्बरे इस्लाम (स) का कहना है कि यदि दुनिया की आयु केवल एक ही दिन बाक़ी रहे तो ईश्वर उस दिन को इतना अधिक लंबा कर देगा ताकि मेरी जाति का कोई व्यक्ति जिसका नाम मेरे नाम पर है और जिसकी उपाधि मेरी उपाधि होगी, प्रकट होगा और दुनिया को न्याय से भर देगा जबकि दुनिया अत्याचार और अन्याय से भर चुकी होगी।
फ़ारसी सीखे 17वां पाठ
ईरान में हर साल अंतर्राष्ट्रीय फ़ज्र फ़िल्म मेला आयोजित होता है। यह फ़ेस्टिवल ईरानी वर्ष के ग्यारहवें महीने में बहन जो जनवरी-फ़रवरी में आता है, इस्लामी क्रान्ति की सफलता की वर्षगांठ के अवसर पर यह फ़िल्म फ़ेस्टिवल आयोजित होता है। इस फ़िल्म मेले में ईरानी एवं विदेशी फ़िल्म निर्माताओं और निर्देशकों की फ़िल्मों की ज़ोरदार टक्कर होती है तथा विजेता फ़िल्मों और निर्माताओं तथा निर्देशकों को विशेष पुरस्कार दिए जाते हैं। फ़िल्म से रूचि रखने वाले लोग बड़ी संख्या में इस फ़ेस्टिवल में भाग लेते हैं और विविधतापूर्ण फ़िल्मों का आनंद लेते हैं। लोग टिकट ख़रीदने के लिए लाइनों में खड़े दिखाई देते हैं। मोहम्मद को कुछ दिनों से फ़िल्म जगत में बड़ी गहमा-गहमी देखने में आ रही है अतः वो अपने मित्र रामीन से इस बारे में बात करता है। तो आइए पहले इस बातचीत के कुछ शब्दों और उनके अर्थ पर एक नज़र डालते हैं।{jcomments on}
इन दिनों این روزها
मैदान, स्क्वायर میدان
बहुत अधिक خيلي
भीड़ شلوغ
फ़ुटपाथ پیاده رو
तुम देख रहे हो। تو می بینی
कितनी भीड़?! چه قدر شلوغ !
विशेष रूप से مخصوصا
निकट लगभग نزدیک
क़ुद्स सिनेमाघर سینما قدس
ठीक है। درست است
फ़ेस्टिवल, मेला جشنواره
अंतर्राष्ट्रीय بین المللی
फ़िल्म فیلم
फ़िल्म फ़ेस्टिवल جشنواره فیلم
उसका आयोजन होता है। آن برگزار می شود
हर वर्ष هر سال
बहमन بهمن
बहमन महीना بهمن ماه
वे देखते हैं। آنها می بینند
वे देखना चाहते हैं। آنها می خواهند ببینند
वे भाग लेते हैं। آنها شرکت می کنند
ईरानी ایرانی
विदेशी خارجی
बहुत अधिक بسیاری
हम जाएंगे या जाते हैं। ما می رویم
हम जा सकते हैं। ما می توانیم برویم
हम देख सकते हैं। ما می توانیم ببینیم
मैं नहीं जानता। نمی دانم
हम ख़रीदते हैं या ख़रीदेंगे। ما می خریم
भोर فجر
हम ख़रीद सकते हैं। ما می توانیم بخریم
मैं देखता हूं। من می بینم
मैं देखना पसंद करता हूं। من دوست دارم ببینم
पारिवारिक फ़िल्म فیلم خانوادگی
इतिहासिक تاریخی
मेरा मित्र دوستم
छात्र دانشجو
ड्रामा تئاتر
मैं फ़ोन करूंगा। من تلفن می کنم
वो लेता है या ले लेगा। او می گیرد
मैं चाहता हूं वो ले ले من می خواهم بگیرد
टिकट بلیط
अब आइए दोनों की बातचीत पर एक नज़र डालते हैं,
मोहम्मदः इन दिनों वली स्क्वायर पर बड़ी भीड़ है।
محمد - این روزها میدان ولی عصر خيلي شلوغ است .
रामीनः हां, फ़ुटपाथ को देखो कितनी भीड़ है?! विशेषकर सिनेमाघर के निकट।
رامین - آره . پیاده رو را می بینی چه قدر شلوغ است ! مخصوصا" نزدیک سینما .
मोहम्मदः सही बात है। क़ुद्स सिनेमाघर के निकट बहुत अधिक भीड़ है।
محمد - درست است . نزدیک سینما قدس خیلی شلوغ است .
रामीनः इन दिनों ईरान में फ़ज्र फ़िल्म फ़ेस्टिवल का आयोजन हो रहा है।
رامین - این روزها در ایران جشنواره فیلم فجر برگزار می شود .
मोहम्मदः फ़ज्र फ़िल्म फ़ेस्टिवल ?
محمد - جشنواره فیلم فجر ؟
रामीनः हां, यह अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म मेला है जो हर वर्ष बहमन महीने में आयोजित होता है।
رامین - بله . این جشنواره بین المللی است و هر سال در بهمن ماه برگزار می شود .
मोहम्मदः तो यह लोग फ़ेस्टिवल की फ़िल्मे देखना चाहते हैं ?
محمد - پس آنها می خواهند فیلمهای جشنواره را ببینند ؟
रामीनः हां, इस फ़ेस्टिवल में बहुत सी ईरानी और विदेशी फ़िल्में भाग लेती हैं।
رامین - بله . فیلمهای ایرانی و خارجی بسیاری در این جشنواره شرکت می کنند .
मोहम्मदः क्या हम भी सिनेमाघर जाकर फ़ेस्टिवल की एक फ़िल्म देख सकते हैं?
محمد - ما هم مي توانیم به سینما برویم و یک فیلم جشنواره را ببینیم ؟
रामीनः नहीं मालूम कि फ़िल्म का टिकट ख़रीद पाएंगे या नहीं क्योंकि इन दिनों सिनेमाघरों में बड़ी भीड़ है।
رامین - نمی دانم می توانیم بلیط بخریم یا نه . چون این روزها سینماها خیلی شلوغ است .
मोहम्मदः मैं कोई पारिवारिक या इतिहासिक फ़िल्म देखना पसंद करता हूं।
محمد - من دوست دارم یک فیلم خانوادگی و یا تاریخی ببینم .
रामीनः मेरा मित्र मजीद ड्रामे का छात्र है। मैं उसे फ़ोन करके कहूंगा कि हमारे लिए दो टिकट ख़रीद ले।
رامین - دوستم مجید دانشجوی تئاتر است . به او تلفن می کنم و از او می خواهم دو عدد بلیط برای ما بگیرد.
अब आइए इसी बातचीत को एक बार और पढ़ते हैं किंतु हिंदी अनुवाद के बग़ैर
محمد - این روزها میدان ولی عصر خيلي شلوغ است .
رامین - آره . پیاده رو را می بینی چه قدر شلوغ است ! مخصوصا" نزدیک سینما .
محمد - درست است . نزدیک سینما قدس خیلی شلوغ است .
رامین - این روزها در ایران جشنواره فیلم فجر برگزار می شود .
محمد - جشنواره فیلم فجر ؟
رامین - بله . این جشنواره بین المللی است و هر سال در بهمن ماه برگزار می شود .
محمد - پس آنها می خواهند فیلمهای جشنواره را ببینند ؟
رامین - بله . فیلمهای ایرانی و خارجی بسیاری در این جشنواره شرکت می کنند .
محمد - ما هم مي توانیم به سینما برویم و یک فیلم جشنواره را ببینیم ؟
رامین - نمی دانم می توانیم بلیط بخریم یا نه . چون این روزها سینماها خیلی شلوغ است .
محمد - من دوست دارم یک فیلم خانوادگی و یا تاریخی ببینم .
رامین - دوستم مجید دانشجوی تئاتر است . به او تلفن می کنم و از او می خواهم دو عدد بلیط برای ما بگیرد .
रामीन और मोहम्मद ईरानी सिनेमा और ईरानी फ़िल्मों के बारे में बात करते हैं। मोहम्मद रामीन से कहता है कि उसे पारिवारिक विषयों की ईरानी फ़िल्में बहुत पसंद हैं। क्योंकि यह फ़िल्में लोगों के वास्तविक जीवन का दर्पण होती हैं। इतिहासिक विषयों पर बनी ईरानी फ़िल्में भी बहुत अच्छी होती हैं। इस प्रकार की फ़िल्में बनाने में ईरानियों के पास विशेष दक्षता है। ईरान का समृद्ध इतिहास ईरानी फ़िल्म निर्माताओं की सहायता करता है कि वो अपनी रूचि के विषय पर इतिहासिक फ़िल्में बनाएं। फ़ज्र फ़िल्म फ़ेस्टिवल ईरानी और विदेशी फ़िल्मों के प्रदर्शन को बहुत अच्छा मंच है जहां फ़िल्मों के बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा होती है। ईरानी फ़िल्म निर्माता फ़ज्र फ़िल्म फ़ेस्टिवल के अतिरिक्त दूसरे भी अनेक फ़िल्मी मेलों में भाग लेते हैं। फ़ेस्टिवल का उदघाटन तथा समापन समारोह भी बहुत आकर्षक होता है जबकि पुरस्कारों का वितरण भी बड़े रोचक ढंग से होता है।
आईये फ़ारसी सीखें-१६
ईरान में लकड़ी के हस्तकला उद्योगों में से एक क़लमकारी भी है जो बहुत ही सूक्ष्म कला है। आज की चर्चा में हम आपको क़लमकारी से परिचित कराएंगे। क़लमकारी में क़लमकार, अनेक प्रकार की लकड़ियों, हाथी के दांत, हड्डी और सीप को प्रयोग करता है। इन वस्तुओं को त्रिभुज से लेकर दसभुजाओं के आकार में काटा जाता है। इन्हें बहुत ही छोटे आकार में काटा जाता है और हर भुजा से कई भुजाएं निकलती हैं जो दो से पांच मिलीमीटर की होती हैं। इन टुकड़ों को एक दूसरे से मिलाकर चिपकाया जाता है जिससे बहुत ही सुंदर आकार अस्तित्व में आता है। क़लमकार कई भुजाओं वाले टुकड़ों को बड़ी दक्षता के साथ चिपकाता है और उन्हें सान देता है ताकि एक जैसे दिखाई दें। इस विषय पर मोहम्मद और सईद के बीच बातचीत से पूर्व इससे जुड़े कुछ महत्वपूर्ण शब्द पर ध्यान दीजिए। बीता हुआ
कल دیروز
बाज़ार की मस्जिद مسجد بازار
कला هنر
तक्षणकला کاری) (مُنبت مُنبت
लकड़ी पर चित्रकारी معرق
मैं परिचित हुआ من آشنا شدم
हस्तकला उद्योग صنایع دستی
लकड़ी का چوبی
वे हैं آنها هستند
बहुत بسیار
सूक्ष्म ظریف
सुंदर زیبا
ठीक है या सही है درست است
किन्तु ولی
अधिक सूक्ष्म ظریفتر
हमारे पास है ما داریم
नाम اسم
क़लमकारी या जड़ाउ का काम خاتم کاری
कलाकार هنرمند
ईरानी या ईरान का ایرانی
लकड़ी چوب
लकड़ियां چوبها
छोटा کوچک
कई कोणीय چند ضلعی
वह चिपकाता है او می چسباند
जैसे مثل
त्रिकोण مثلث
एक साथ मिला कर کنار هم
लगाए जाते हैं آنها قرار می گیرند
सब همه
सतह سطح
उसे छिपा देते हैं آنها می پوشانند
किन स्थानों पर چه جاهایی
उसे प्रयोग किया जाता है آن به کار می رود
छोटा बक्सा صندوقچه
क़लमदान قلمدان
दूसरी वस्तुएं چیزهایی دیگر
इमारत ساختمان
संसद مجلس
राष्ट्रीय ملی
ढका हुआ پوشیده از
वास्तव में واقعا
क्या ऐसा नहीं है این طور نیست؟
वह है او است
उसे होना चाहिए او باید باشد
इसके साथ ही या इसके अतिरिक्त ضمنا
हाल سالن
आधार بنا
दीवार دیوار
छत سقف
अन्य سایر
उपकरण, औज़ार, وسایل ، تجهیزات
सुंदर زیبا
मोहम्मद: कल बाज़ार की मस्जिद में तक्षणकला और लकड़ी पर चित्रकारीकी कला से परिचित हुए।
محمد: دیروز در مسجد بازار با هنرهای منبت و معرق آشنا شدم
सईद: तक्षणकला और लकड़ी पर चित्रकारी ईरान के हस्तकला उद्योग में हैं।
سعید: منبت و معرق از صنایع دستی چوبی ایران هستند
मोहम्मद: ये कलाएं बहुत की सूक्ष्मव सुंदर हैं।
محمد: آنها بسیار ظریف و زیبا هستند
सईद: ठीक है। किन्तु तक्षकणकला और लकड़ी पर चित्रकारी से भी अधिक सूक्ष्म कलाएं मौजूद हैं।
سعید: درست است. ولی از منبت و معرق ، هنر ظریفتری هم داریم
मोहम्मद: इस कला का क्या नाम है ? محمد: اسم این هنر چیست؟
सईद: क़लमकारी, इस कला में ईरानीकलाकार बहुत ही छोटी व कई कोणीय आकार में कटी हुयी लकड़ियों को एक साथ चिपकाते हैं।
سعید: هنر خاتم کاری. در این هنر، هنرمند ایرانی چوبهای بسیار کوچک و چند ضلعی را به هم می چسباند.
मोहम्मद: लकड़ी पर चित्रकारी कीभांति محمد: مثل معرق؟
सईद: नहीं। क़लमकारी में बहुत हीछोटे छोटे त्रिकोण एक के बाद एकइस प्रकार एक साथ चिपकाए जाते हैंकि पूरी सतह छित जाती है।
سعید: نه. در خاتم کاری، مثلثهای بسیار کوچک کنار هم قرار می گیرند و همه سطح کار رامی پوشانند
मोहम्मद: इस सूक्ष्म कला को कहांकहां प्रयोग किया जाता है?
محمد: این هنر ظریف در چه جاهایی به کار می رود؟
सईद : छोटे छोटे बक्सों, क़लमदानोंसहित दूसरी वस्तुओं पर। ईरान की राष्ट्रीय संसद की इमारत परक़लमकारी की गयी है।
سعید : در صندوقچه ها، قلمدانها و چیزهای دیگر. ساختمان مجلس ملی ایران پوشیده از خاتم کاری است
मोहम्मद: वास्तव में यह इमारत तो बहुत बड़ी होगी? क्यों ऐसा नहीं है?
محمد: واقعا"؟ این ساختمان باید بزرگ باشد. این طور نیست؟
सईद: जी हां। इस इमारत के हाल की दीवारों के साथ ही, छत सहित अन्य सुंदर वस्तुओं पर क़लमकारीकी गयी है।
سعید: بله. ضمنا" در سالن این بنا، خاتم کاری دیوارها ، سقف و سایر وسایل زیبا است
मोहम्मद और सईद के बीच फ़ारसी में वार्तालाप को एक बार फिर।
محمد: دیروز در مسجد بازار با هنرهای منبت و معرق آشنا شدم .
سعید: منبت و معرق از صنایع دستی چوبی ایران هستند.
محمد: آنها بسیار ظریف و زیبا هستند سعید: درست است. ولی از منبت و معرق، هنر ظریفتری هم داریم محمد: اسم این هنر چیست؟
سعید: هنر خاتم کاری. در این هنر، هنرمند ایرانی چوبهای بسیار کوچک و چند ضلعی را به هم می چسباند محمد: مثل معرق؟ سعید: نه. در خاتم کاری، مثلثهای بسیار کوچک کنار هم قرار می گیرند و همه سطح کار را می پوشانند محمد: این هنر ظریف در چه جاهایی به کار می رود؟
سعید: در صندوقچه ها، قلمدانها و چیزهای دیگر. ساختمان مجلس ملی ایران پوشیده ازخاتم کاری است .
محمد: واقعا"؟ این ساختمان باید بزرگ باشد. این طور نیست؟
سعید: بله. ضمنا" در سالن این بنا، خاتم کاری دیوارها، سقف و سایر وسایل زیبا است.
क़लमकारी बहुत ही प्रशंसनीय कला है। इस सूक्ष्म कला का इतिहास ईरान में बहुत पुराना है। उदाहरण के लिए इस्फ़हान की अतीक़ जामा मस्जिद का मिंबर जिस पर क़लमकारी की गयी है, एक हज़ार से अधिक पुराना है। इस मस्जिद के मुख्य बरामदे की पूरी छत पर क़लमकारी की गयी जो कम से कम 600 वर्ष पुरानी है। क़लमकारी में अनेक प्रकार के रंगों का प्रयोग किया है। इसी प्रकार सीप हाथी दांत, हड्डी, धात के तारों की इस प्रकार प्रयोग किया गया है कि इस कला में चार चांद लग गया है। अच्छी क़लमकारी उसे कहा जाता है जिसमें छोटे आकार के चित्र चित्र हों और शीराज़, इस्फ़हान व तेहरान को इस कला का केन्द्र समझा जाता है।अलबत्ता तेहरान में अधिकांश क़लमकार शीराज़ और इस्फ़हान के हैं।
किसी बम को सभी बमों की मां कहना लज्जाजनक है, पोप फ़्रांसिस
पोप ने कहा है कि अमरीका के सबसे बड़े बम को “सभी बमों की मां” का नाम देना लज्जाजनक है।
दुनिया में कैथलिक ईसाइयों के धर्मगुरु पोप फ़्रांसिस ने उस बम को “सभी बमों की मां” कहना लज्जाजनक बताया जिसे अभी हाल में अमरीका ने पूर्वी अफ़ग़ानिस्तान के एक क्षेत्र में टेस्ट किया। इस बम को आधिकारिक रूप से जीबीयू-43/बी एमओएबी नाम दिया गया है।
संवाददाता के अनुसार, पोप फ़्रांसिस ने मई के चौथे हफ़्ते में अमरीकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रम्प के प्रस्तावित वेटिकन दौरे से पूर्व, शनिवार को बल दिया कि इस बम का नाम लज्जाजनक है क्योंकि “माँ ज़िन्दगी देती है जबकि बम ज़िन्दगी छीनता है।”
ग़ौरतलब है कि 13 अप्रैल को अमरीकी सेना ने पूर्वी अफ़ग़ानिस्तान के नंगरहार प्रांत के ‘आचीन’ शहर के उपनगरीय भाग में सबसे बड़े ग़ैर परमाणु बम का टेस्ट किया जिसमें 100 के क़रीब लोग मारे गए। मरने वालों में कथित रूप 94 मिलिटेंट्स थे।
इस बम के इस्तेमाल के कारण अफ़ग़ान जनता में भय फैल गया है।
इससे पहले भी पोप फ़्रांसिस ने अमरीकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रम्प की मैक्सिको की सीमा पर दीवार के निर्माण सहित, दुश्मनी भरी नीतियों की आलोचना करते हुए कहा था, “जो व्यक्ति पुल के बजाए दीवार की बात करे वह ईसाई नहीं है।”
पोप और मिस्र के वरिष्ठ मुफ़्ती की मुलाक़ात
कैथोलिक ईसाइयों के सबसे वरिष्ठ धर्मगुरू पोप ने मिस्र के प्रतिष्ठित अलअज़हर विश्व विद्यालय के कुलपति से मुलाक़ात की है।
मिस्र के अलअज़हर विश्व विद्यालय के कुलपति शैख़ अहमद अत्तैयब ने शनिवार को क़ाहेरा में आयोजित हुई अंतर्राष्ट्रीय शांति कान्फ़्रेंस में, जो पोप फ़्रांसिस की सम्मिलिति से आयोजित हुई, कान्फ़्रेंस में भाग लेने वालों से कहा कि सभी मिस्र और संसार में आतंकवाद की भेंट चढ़ने वालों की याद में एक मिनट का मौन धारण करें। उन्होंने अपने भाषण में कहा कि आतंकवाद के पैदा होने का मुख्य कारण, हथियारों का व्यापार और अत्याचारपूर्ण प्रस्ताव जारी होने के बाद हथियारों के संदिग्ध समझौते हैं।
इस कान्फ़्रेंस में अपने भाषण में कैथोलिक ईसाइयों के सबसे वरिष्ठ धर्मगुरू पोप फ़्रांसिस ने कहा कि रचनात्मक वार्ता और युवाओं को एक दूसरे के सम्मान का पाठ सिखाए बिना कभी भी शांति हासिल नहीं हो सकती। उन्होंने कहा कि मानवता का भविष्य, धर्मों और संस्कृतियों के बीच वार्ता पर आधारित है और शांति की प्राप्ति तथा मतभेदों को दूर करने के लिए धर्मों के बीच बातचीत बहुत ज़रूरी है। पोप अत्यंत कड़ी सुरक्षा व्यवस्था में मिस्र पहुंचे हैं क्योंकि तीन हफ़्ते पहले ही इस देश में कई चर्चों पर हमले हुए थे।
चुनाव में जनता की भरपूर उपस्थिति, शत्रु के लिए चिंता का विषयः वरिष्ठ नेता
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने कहा है कि विभिन्न क्षेत्रों, विशेषकर चुनाव में जनता की भरपूर उपस्थिति, शत्रु की नज़र में ईरानी राष्ट्र के वैभव का कारण बनेगी।
आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने रविवार को तेहरान में शिक्षकों से भेंट की। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने इस भेंट में चुनाव को अति महत्वपूर्ण विषय बताया। उन्होंने कहा कि इस्लामी लोकतांत्रिक व्यवस्था में चुनाव को विशेष महत्व प्राप्त है।
वरिष्ठ नेता ने कहा कि 19 मई 2017 को होने वाले राष्ट्रपति चुनावों में जनता की भरपूर उपस्थिति, ईरान के वैभव और गौरव का कारण बनेगी। उन्होंने कहा कि जनता की इस प्रकार की उपस्थिति के कारण शत्रु किसी भी स्थिति में ईरानी राष्ट्र पर अपनी इच्छा को थोप नहीं सकता।
वरिष्ठ नेता ने कहा कि शत्रुओं की शत्रुता के मुक़ाबले में सबसे बड़ी बाधा, विभिन्न क्षेत्रों में जनता की भागीदारी है। आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने स्पष्ट किया कि चुनाव का महत्वपूर्ण विषय, मतदान केन्द्रों पर जनता की भरपूर उपस्थिति है। इससे यह पता चलता है कि ईरान की जनता इस्लाम और व्यवस्था की सुरक्षा के लिए सदैव तैयार है।
शिक्षक दिवस के अवसर पर वरिष्ठ नेता ने कहा कि देश का शिक्षा विभाग यदि सही योजनाओं के अनुसार आगे बढ़ता रहे तो ज्ञान एवं विज्ञान की दृष्टि से ईरान समृद्ध होगा।
भारत, इस्लाम विरोधी प्रचार पर मुसलमानों की घोर आपत्ति
भारत के सैकड़ों मुसलमानों ने राजधानी नई दिल्ली में शनिवार को कुछ मीडिया की ओर से इस्लामी विरोधी वस्तुओं के प्रसारण पर आपत्ति जताते हुए प्रदर्शन किए।
इर्ना की रिपोर्ट के अनुसार, प्रदर्शनकारियों ने एनडी टीवी चैनल और कुछ पार्टियों के विरुद्ध नारे लगाए और सरकार, सुरक्षा संस्थाओं और न्यायालय से इस प्रकार की मतभेद फैलाने वाली कार्यवाहियों से निपटने की मांग की।
प्रदर्शनकारियों ने घोषणा की है कि ज़ायोनी शासन और कुछ इस्लाम विरोधी शक्तियां, भारतीय जनता के बीच मतभेद को हवा देने और भारत के हिंदुओं और मुसलमानों को आपस में लड़ाने का प्रयास कर रही हैं।
ज्ञात रहे कि एनडी टीवी चैनल ने कुछ दिन पहले तीन तलाक़ के बारे में एक डाक्यूमेंट्री फ़िल्म प्रसारित करके मुसलमानों पर वासना का ग़ुलाम और महिलाओं के अधिकारों के हनन का आरोप लगाया था।
प्रदर्शनकारियों ने इसी प्रकार कहा कि एनडी टीवी और ज़ी न्यूज़ जैसे टीवी चैनल इस्राईल की वित्तीय सहायता से इस्लाम की छवि ख़राब करने का प्रयास कर रहे हैं।
ह्यूमन राइट्स वाॅच ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि वर्ष 2015 में नरेंद्र मोदी के सत्ता में पहुंचने के बाद से अब तक दसियों मुसलमान, हिंदु चरमपंथियों के हमले में मारे जा चुके हैं।
हज़रत अब्बास (अ) का शुभ जन्म दिवस।
पैग़म्बरे इस्लाम (स) की बेटी हज़रत फ़ातिमा ज़हरा की शहादत के बाद, हज़रत अली (अ) का विवाह फ़ातिमा किलाबिया यानी हज़रत उम्मुल बनीन से हुआ, जिसका अर्थ है बेटों की मां।
वे सद्गुणों वाली एक विशिष्ट महिला थीं, जो पैग़म्बरे इस्लाम (स) के परिजनों से प्रेम करती थीं और उनका विशेष सम्मान करती थीं। वे क़ुरान की सिफ़ारिश के मुताबिक़, पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों से प्रेम करती थीं। क़ुरान कहता है कि हे पैग़म्बर उन लोगों से कह दो कि मुझे तुम्हारे मार्गदर्शन के बदले में कुछ नहीं चाहिए, केवल यह कि तुम मेरे परिजनों से मोहब्बत करो। उन्होंने इमामे हसन, इमामे हुसैन, हज़रत ज़ैनब और उम्मे कुलसूम को उनके बचपने में मां का प्यार दिया और उनकी सेवा की। इसीलिए पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों में उनका एक विशेष स्थान रहा। हज़रत ज़ैनब हमेशा उनके घर उनसे मुलाक़ात के लिए जाती रहती थीं।
अब्बास इब्ने अली (अ) हज़रत उम्मुल बनीन की पहली संतान थे। उनका जन्म 4 शाबान 26 हिजरी को मदीने में हुआ। उनके जन्म से उनके पिता हज़रत अली (अ) बहुत ख़ुश हुए और उन्होंने उनका नाम अब्बास रखा। हज़रत अब्बास (अ) का पालन-पोषण हज़रत अली (अ) ने किया, जो ख़ुद एक पूर्ण इंसान और सद्गुणों का केन्द्र थे। इतिहास गवाह है कि हज़रत अली (अ) ने अपने बेटे अब्बास की परवरिश पर विशेष ध्यान दिया। हज़रत अब्बास भी अपने दूसरे भाई बहनों की भांति अपने पिता की ख़ास कृपा का पात्र थे। वे हज़रत अली (अ) के बुद्धिजीवी बेटों में से थे। उनकी प्रशंसा में कहा गया है कि हां, हज़रत अब्बास इब्ने अली (अ) ने ज्ञान को उसके स्रोत से प्राप्त किया है।
हज़रत अब्बास (अ) सुन्दर एवं आकर्षण व्यक्तित्व के मालिक थे, उनका सुन्दर चेहरा हर देखने वाले को आकर्षित करता था। वे हाशमी ख़ानदान में एक चांद की भांति चमकते थे। उनके पूर्वज अब्दे मनाफ़ को मक्के का चांद और पैग़म्बरे इस्लाम के पिता अब्दुल्लाह को हरम का चांद कहा जाता था। हज़रत अब्बास (अ) को हाशिम ख़ानदान का चांद कहा जाता था, जो उनके दिलकश चेहरे की सुन्दरता को ज़ाहिर करता है। इसी प्रकार वे शारीरिक रूप से बहुत शक्तिशाली थे और बचपन से ही अपने पिता की भांति बुद्धिमान और साहसी थे। उनके पिता ने उन्हें बचपन में ही तलवारबाज़ी, तीर अंदाज़ी और घुड़सवारी सिखा दी थी।
हज़रत अब्बास (अ) की वीरता और साहस देखकर लोगों को हज़रत अली की वीरता याद आ जाती थी। वे युवा अवस्था से ही अपने पिता हज़रत अली (अ) के साथ कठिन और भयानक अवसरों पर उपस्थित रहे और इस्लाम की रक्षा की। दुश्मनों के साथ युद्ध में आपकी बहादुरी देखने योग्य होती थी। इतिहास ने सिफ़्फ़ीन युद्ध में हज़रत अब्बास की वीरता के दृश्यों को दर्ज किया है। इतिहास के मुताबिक़, सिफ़्फ़ीन की लड़ाई में एक दिन हज़रत अली (अ) की सेना से एक युवा बाहर निकला, उसके चेहरे पर नक़ाब पड़ी हुई थी, चाल ढाल से वीरता, बहादुरी और हैबत झलक रही थी। शाम की फ़ौज से किसी ने इसके मुक़ाबले में आने का साहस नहीं किया। मुआविया ने अपनी फ़ौज के एक योद्धा अबू शक़ा से कहा कि इस जवान का मुक़ाबला करने के लिए मैदान में जाए। उसने कहा हे अमीर मेरी शान इससे कहीं अधिक है कि मैं उसका मुक़ाबला करूं, मेरे सात बेटे हैं, उनमें से किसी एक को भेज देता हूं ताकि उसे जाकर समाप्त कर दे। उसने अपने एक बेटे को भेजा, लेकिन एक ही झटके में उसका काम तमाम हो गया। उसके बाद उसने अपने दूसरे बेटे को भेजा, वह भी तुरंत अपने भाई के पास पहुंच गया। सातों भाई एक दूसरे का बदला लेने के लिए मैदान में उतरे, लेकिन सबके सब मारे गए। मौत के भय से दुश्मन के चेहरे पर हवाईयां उड़ रही थीं, जबकि हज़रत अली की सेना का यह जवान मैदान में पूरी शक्ति और वीरता के साथ डटा हुआ था और अपने मुक़ाबले के लिए दुश्मन को ललकार रहा था। उस समय अबू शक़ा ख़ुद मैदान में उतरा और कुछ देर ज़ोर आज़माने के बाद अपने बेटों की तरह मारा गया। यह देखकर सब हैरत में पड़ गए। दुश्मन की सेना का हर व्यक्ति जानना चाहता था कि यह जवान है कौन। हज़रत अली (अ) ने उस जवान को अपने पास बुलाया और उसके चेहरे से नक़ाब हटाया और उसके माथे को चूम लिया। सभी ने देखा कि यह जवान हज़रत अली (अ) का बेटा अब्बास है।
हज़रत अली फ़रमाते थे, बाप अपने बेटों को जो बेहतरीन मीरास देते थे, वह गुण और उत्कृष्टता है। अब्बास ने भी अपने पिता से ज्ञान की बड़ी पूंजी हासिल की और उम्र भर अपने भाई इमाम हुसैन की सेवा और मदद की। वे अपने बड़े भाईयों, इमाम हसन और इमाम हुसैन की उपस्थिति में उनकी बिना अमुमति के नहीं बैठते थे और अपनी 34 साल की उम्र में उन्हें पैग़म्बरे इस्लाम के बेटे या अपना स्वामी कहकर संबोधित करते रहे।
हज़रत अब्बास पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों से मोहब्बत करने वाली एक आदर्श हस्ती थे। वे अपने समय के इमामों का पूर्ण रूप से अनुसरण करते थे और उनके आज्ञाकारी थे, जबकि उनके दुश्मनों से दूरी बनाकर रखते थे। हज़रत अब्बास (अ) ने आख़िरी दम तक अपने इमाम का पूर्ण समर्थन किया और उनके दुश्मनों से डटकर मुक़ाबला किया। उन्होंने अपने पिता की शहादत के बाद, अपने भाईयों इमाम हसन और इमाम हुसैन की सहायता में अपनी पूरी शक्ति लगा दी। कभी भी उनसे आगे नहीं बढ़े और कभी भी उनकी किसी बात को नहीं टाला।
हज़रत अली (अ) के मुताबिक़, समस्त नैतिक सिद्धांतों का उद्देश्य बलिदान और दूसरों को स्वयं पर वरीयता देना है और यही सबसे बड़ी इबादत है। हज़रत अली (अ) हारिस हमदानी के नाम अपने एक पत्र में लिखते हैं, जान लो कि सबसे विशिष्ट मोमिन वह है जो अपनी और अपने परिवार की जान और माल को पेश करके दूसरे मोमिनों पर वरीयता प्राप्त करता है। धर्म की मार्ग में और मानवीय महत्वकंक्षाओं की प्राप्ति में हज़रत अब्बास (अ) की जान-निसारी और क़ुर्बानी को कर्बला में देखा जा सकता है। हज़रत अब्बास (अ) इमाम हुसैन की सेना के सेनापति थे। जब यज़ीद की फ़ौज ने इमाम हुसैन (अ) और उनके साथियों की घेराबंदी कर ली। सातवीं मोहर्रम को हज़रत अब्बास (अ) ने दुश्मन की घेराबंदी तोड़ दी। उसके तीन दिन बाद आशूर के दिन फिर से हज़रत अब्बास एक बार फिर दुश्मनों की घेराबंदी तोड़ते हुए और वीरता से लड़ता हुए फ़ुरात नदी के किनारे पहुंच गए, ताकि इमाम हुसैन (अ) के साथियों और उनके बच्चों के लिए पानी ला सकें। इस समय हज़रत अब्बास (अ) ने अत्यंत वीरता और महानता का परिचय दिया। इमाम हुसैन के साथियों के बच्चों और महिलाओं की प्यास के कारण, अत्यधिक भूख और प्यास के बावजूद फ़ुरात का ठंडा पानी नहीं पिया। बच्चों के लिए पानी लेकर जब वापस लौटे तो दुश्मन ने घात लगाकर हमला कर दिया और उनके हाथों को काट डाला और उन्हें शहीद कर दिया।
अब कर्बला कि वाक़ए को हुए लगभग 1400 वर्ष बीत रहे हैं, लेकिन इतिहास आज भी हज़रत अब्बास (अ) की बहादुरी और साहसपूर्ण कारनामों से जगमगा रहा है। शताब्दियां बीत जाने के बावजूद, आने वाली पीढ़ियां जो सत्य प्राप्त करना चाहती हैं, हज़रत अब्बास के बलिदान और साहस से प्रेरणा ले रही हैं। सलाम हो तुम पर अऐ अबुल फ़ज़्लिल अब्बास, सलाम हो तुम पर या इब्ने अली अबि तालिब (अ)।
इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम का जन्म दिवस।
शाबान की एक विशेषता यह भी है कि इसमें किये जाने वाले सदकर्मों का बदला बढ़ा दिया जाता है।
एक कथन के अनुसार शाबान में किये जाने वाले सदकर्मों का बदला 70 गुना तक हो जाता है।
इस महीने में इमाम ज़ैनुल आबेदीन अपने अनुयाइयों को एकत्रित करके कहा करते थे कि क्या तुमको पता है कि यह कौन सा महीना है? फिर वे स्वंय ही कहते थे कि यह शाबान का महीना है। यही वह महीना है जिसे पैग़म्बरे इस्लाम (स़) ने अपना महीना बताया है। वे कहते थे कि इस महीने का सम्मान करो और रोज़े रखो। इस महीने में अधिक से अधिक ईश्वर की निकटता प्राप्त करने के प्रयास करते रहो। इमाम ज़ैनुल आबेदीन कहते थे कि मेरे दादा इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा है कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) से प्रेम की ख़ातिर और ईश्वर की निकटता हासिल करने के लिए इस महीने में जितना भी संभव हो रोज़े रखो। वे कहते थे कि जो भी व्यक्ति इस महीने में रोज़ा रखेगा उसको ईश्वर, विशेष उपहार देगा और उसको स्वर्ग में भेजेगा।
आज शाबान की पांच तारीख़ है। आज ही के दिन इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के सुपुत्र, इमाम अली के पोते और शिया मुसलमानों के चौथे इमाम, इमाम ज़ैनुल आबेदीन का जन्म हुआ था। हालांकि इमाम ज़ैनुल आबेदीन या इमाम सज्जाद का नाम अली था किंतु अधिक उपासना और तपस्या के कारण उन्हें ज़ैनुल आबेदीन के नाम से ख्याति मिली जिसका अर्थ होता है उपासना की शोभा। कहते हैं कि जिस समय नमाज़ पढ़ने के लिए इमाम सज्जाद वुज़ू के लिए जाते थे तो उनके चेहरे का रंग पीला पड़ जाता था। जब उनसे इसका कारण पूछा गया तो उन्होंने कहा कि क्या तुमको नहीं पता है कि वुज़ू करके इन्सान किसकी सेवा में उपस्थित होने जाता है? उनके बारे में कहा जाता था कि जब वे ईश्वर की उपासना में लीन हो जाते थे तो उनका सारा ध्यान ईश्वर की ही ओर होता था।
इमाम ज़ैनुल आबेदीन ने अपना जीवन इस्लाम के बहुत ही अंधकारमय काल में व्यतीत किया। यही वह काल था जिमसें इमाम हुसैन जैसे महान व्यक्ति को उनके परिजनों के साथ करबला में केवल इसलिए शहीद कर दिया गया क्योंकि वे समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर करके उसमें सुधार करना चाहते थे। यही वह दौर था जिसमें यज़ीद के सैनिकों ने पवित्र काबे पर (मिन्जनीक़) से पत्थर बरसाए थे। उस काल में सरकारी ख़ज़ाने का खुलकर दुरूपयोग किया जा रहा था। शासक, विलासितापूर्ण जीवन व्यतीत कर रहे थे। इस्लामी शिक्षाओं में फेरबदल किया जा रहा था। शासकों को खुश करने के लिए उसकी इच्छानुसार धर्म की व्याख्या की जाती थी। इमाम सज्जाद के काल में शासकों का पूरा प्रयास यह रहता था कि मुसलमानों को इस्लाम की वास्तविक शिक्षाओं से दूर रखा जाए और उनको उनके रीति-रिवाजों और परंपराओं में ही उल्झा दिया जाए। एसे अंधकारमय काल में इमाम ज़ैनुल आबेदीन, जहां एक ओर वास्तविक इस्लाम की रक्षा के लिए प्रयासरत थे वहीं पर मुसलमानों के कल्याण के लिए एक केन्द्र की स्थापना भी करना चाहते थे। उस काल की विषम परिस्थितियों में इमाम सज्जाद ने दुआओं और उपदेशों के माध्यम से समाज सुधार का काम शुरू किया।
उन्होंने दुआओं और उपदेशों के रूप में इस्लामी शिक्षाओं का प्रसार किया। हालांकि तत्कालीन शासकों का यह प्रयास रहता था कि लोगों को इमाम से दूर रखा जाए और वे उनकी गतिविधियों पर पूरी तरह से नज़र रखते थे इसके बावजूद इमाम सज्जाद अपने प्रयासों से पीछे नहीं हटे बल्कि अपने मिशन को उन्होंने जारी रखा। क्योंकि शासक उनके प्रति बहुत संवेदनशील रहते थे इसलिए इमाम ने उपदेशों के माध्यम से लोगों को सही बात बताने के प्रयास किये।
इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम, वंचितों की सहायता भी करते थे। वे रात के समय अपनी पीठ पर रोटियों की गठरी लादकर ग़रीबों को बांटने निकलते थे। वे यह काम बिना किसी को बताए ख़ामोशी से करते थे। जब इमाम सज्जाद वंचितों और ग़रीबों की सहातया करते थे तो उस समय वे अपने चेहरे को ढांप लिया करते थे ताकि सहायता लेने वाला उनको पहचानकर लज्जित न होने पाए। वे केवल रोटियां ही ग़रीबों को नहीं देते बल्कि उनकी आर्थिक सहायता भी किया करते थे। लोगों की सहायता वे इतनी ख़ामोशी से करते थे कि सहायता लेने वाले लोग उन्हें पहचान नहीं पाते थे। जब इमाम सज्जाद शहीद हो गए तो उसके बाद उन लोगों को पता चला कि लंबे समय से उनकी सहातया करने वाला अंजान इंसान और कोई नहीं इमाम ज़ैनुल आबेदीन थे। इस प्रकार से उन्होंने यह पाठ दिया कि मुसलमानों को अपने मुसलमान भाई का ध्यान रखना चाहिए और छिपकर उनकी सहायता करनी चाहिए।
इस्लाम सदैव से समाज में समानता का पक्षधर रहा है। इस्लाम की दृष्टि में किसी भी व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति पर धन-दौलत, जाति, मान-सम्मान, सामाजिक स्थिति, पद, रंगरूप, भाषा, विशेष भौगोलिक क्षेत्र या किसी अन्य कारण से वरीयता प्राप्त नहीं है। इस्लाम के अनुसार केवल वहीं व्यक्ति सम्मानीय है जिसके भीतर ईश्वरीय भय पाया जाता हो। पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने कई बार इस बात को लोगों तक पहुंचाया कि इस्लाम की दृष्टि में सम्मान का मानदंड ईश्वरीय भय के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। वे कहते थे कि मुसलमान, आपस में भाई हैं और उनमें सर्वश्रेष्ठ वह है जिसके भीतर अधिक ईश्वरीय भय पाया जाता है।
बड़े खेद के साथ कहना पड़ता है कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) के स्वर्गवास के पश्चात इस्लामी शिक्षाओं के प्रभाव को कम किया जाने लगा। उमवी शासकों के सत्तासीन होने के साथ ही इस बात के प्रयास किये जाने लगे कि वास्तविक इस्लाम को मिटाकर शासकों के दृष्टिगत इस्लाम को पेश किया जाए। उस काल में अरब मुसलमानों को प्रथम श्रेणी का और ग़ैर अरब मुसलमानों को दूसरी और तीसरी श्रेणी का मुसलमान बताया जाने लगा। अरब मुसलमानों को ग़ैर अरब मुसलमानों पर वरीयता दी जाने लगी। दास प्रथा, जो इस्लाम के उदय से पूर्व वाले काल में प्रचलित थी उसे पुनर्जीवित किया जाने लगा।
इमाम ज़ैनुल आबेदीन, समाज में पैग़म्बरे इस्लाम की शिक्षाओं को प्रचलित करना चाहते थे। यही कारण है कि जब तत्कालीन समाज में दास प्रथा को पुनः प्रचलित करने के प्रयास तेज़ हो गए तो इमाम सज्जाद ने दासों को ख़रीदकर ईश्वर के मार्ग में उन्हें आज़ाद करना शुरू किया। वे दासों के साथ उठते-बैठते और उनके साथ खाना खाते थे। इमाम सज्जाद दासों को अच्छे शब्दों से संबोधित करते थे। उनके इस व्यवहार से दास बहुत प्रभावित होते थे क्योंकि समाज में उन्हें बहुत ही गिरी नज़र से देखा जाता था। कोई उनसे सीधे मुंह बात करने को तैयार नहीं था। दासों को पशु समाज समझा जाता था और उनके साथ पशु जैसा ही व्यव्हार किया जाता था। दासों को जब इमाम सज्जाद से एसा व्यवहार देखने को मिला तो वे उनसे निकट होने लगे। इस प्रकार इमाम ज़ैनुलआबेदीन ने दासों को परोक्ष और अपरोक्ष रूप में इस्लामी शिक्षाओं से अवगत करवाया। यही कारण है कि आज़ाद होने के बाद भी वे लोग इमाम से आध्यात्मिक लगाव रखते थे। इस प्रकार से अपनी विनम्रता और दूरदर्शिता से इमाम ज़ेनुल आबेदीन ने अपने दौर के अंधकारमय और संवेदनशील काल में भी वास्तविक इस्लाम को लोगों तक पहुंचाने का प्रयास किया।