رضوی

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म्यांमार में कुछ दिनों की शांति के बाद एक बार फिर से रोहिंग्या मुसलमानों के नरसंहार का सिलसिला शुरू हो गया है।

अलआलम टीवी चैनल की रिपोर्ट के अनुसार म्यांमार की सेना और चरमपंथी बौद्धों द्वार रोहिंग्या मुसलमानों का लगातार नरसंहार किया जा रहा है। शुक्रवार को एक बार फिर म्यांमार के कई क्षेत्रों में कट्टरपंथी बौद्ध इस देश की सेना के साथ मिलकर रोहिंग्या मुसलमानों पर हमला करते दिखाई दिए हैं।

राष्ट्र संघ की ताज़ा रिपोर्ट में भी यह बात सामने आई है कि बांग्लादेश की ओर पीड़ित रोहिंग्या मुसमलानों के पलायन का सिलसिला न केवल जारी है बल्कि इसमें वृद्धि हुई है। इस बीच बांग्लादेश के स्थानीय मानवाधिकार संगठनों ने सूचना दी है कि पीड़ित रोहिंग्या महिलाओं और बच्चों में विभिन्न तरह की बीमारियां फैल रही हैं।

 

 

न्यूज़ एजेंसी के मुताबिक बताया कि यह भोज "पडोसी के साथ प्रेम" शीर्षक के तहत आयोजित किया गया था, जिसमें लंदन पार्क के फिंसबरी मस्जिद पर हालिया घटना की निंदा की गई।

इसके अलावा इस सभा में ब्रिटिश समुदाय की मुस्लिम सेवाओं की सराहना की ग़ई।

यह सम्मेलन अन्य धर्मों के अनुयायियों के साथ दया और दोस्ती और अतिवादी समूहों से लड़ने और उनके लक्ष्यों को कार्यान्वित करने से रोकने के लिए आयोजन किया गया।

कुछ ही दिन पहले लंदन में इस्लामिक समूहों द्वारा एक शांतिपूर्ण मार्च आयोजित किया गया था जिसमें मुस्लिम और गैर-मुस्लिम ने आईएसआई के अपराधों की निंदा करते हुए कहा कि यह लोग़ धार्मिक शिक्षाओं से दुर हैं।

 

 

ने रायटर के मुताबिक बताया कि पिछले पांच हफ्तों में म्यांमार के सैनिकों ने पांच लाख से अधिक रोहंगिया मुस्लिम परीशान किया जिस की वजह से बांग्लादेश भाग गए हैं।

म्यांमार का यह दावा है कि मुस्लिम जातीय के साथ युद्ध आतंकवादियों की सफाई है।

बांग्लादेश और म्यांमार ने सोमवार को सहमति व्यक्त किया कि इस देश में मुसलमान जिनका नाम शरणार्थियों रूप में पंजीकृत है म्यांमार लौट आएंगे, लेकिन बांग्लादेश के शिविरों में रहने वाले को इस पर कोई भरोसा नहीं है।

रोहंग्या का अब्दुल्ला नामी शरण लेने वाला आदमी का कहना है कि "सब कुछ जलाया जा चुका है, यहां तक कि लोगों को भी जलाया ग़या है।कीसी के पस म्यांमार में रहने का कोई भी अधिकार नहीं है

रशीदा बेग़म जो सोमवार को बांग्लादेश आई हैं कहती हैं कि फौजी लोग घर आकर बचे लोगों को घर छोड़ने की चेतावनी दे रहे हैं। लोगों को घरों से बाहर निकाल कर घरों को जला दिया।

 

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली खामेनेई ने ईरान के सामने एक बड़े अंतर्राष्ट्रीय प्रचारिक मोर्चे की उपस्थिति और गतिविधियों का उल्लेख करते हुए कहा कि हज, दुनिया के लोगों के साथ संपर्क स्थापित करने का बेहतरीन प्रचारिक स्थान और सामने वाले पक्षों के प्रोपेगैंडों को विफल बनाने का बेहतरीन अवसर है।

ईरान की हज संस्था के अधिकारियों और हज संस्था के प्रमुख ने मंगलवार को इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई से मुलाक़ात की। वरिष्ठ नेता ने इस अवसर पर अपने संबंधोन में ईरान के मुक़ाबले में विभिन्न प्रकार के प्रचारिक संसाधनों और उपकरणों से लैस एक बहुत ही ख़तरनाक और सक्रिय प्रचारिक मोर्चे की उपस्थिति का उल्लेख करते हुए कहा कि इस्लामी व्यवस्था इस मोर्चे के विरुद्ध प्रतिरोध और इसका तोड़ करने के लिए असंख्य क्षमताओं की मालिक है। 

उन्होंने कहा कि इस ख़तरनाक मोर्चे का मुक़ाबला करने का मार्ग लोगों को वास्तविकताओं से अवगत करना और सही व सक्रिय प्राचारिक शैली से लाभ उठाना और सामने वाले पक्ष पर सही ढंग से प्राचारिक वार करना है और हज इस कार्यवाही के लिए एक मुख्य और बुनियादी केन्द्र है।

आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने कहा कि हमारे लिए हाजियों की सुरक्षा, उनकी प्रतिष्ठा और उनका सम्मान सबसे अधिक महत्वपूर्ण था और इसी बात को लेकर सबसे अधिक चिंता थी। वरिष्ठ नेता ने कहा कि अधिकारियों की रिपोर्टों के अनुसार ईरानी हाजी अधिकतर अवसरों पर इस वर्ष अपनी प्रतिष्ठा और सम्मान की दृष्टि से राज़ी थे, यद्यपि कुछ अवसरों पर कुछ उल्लंघन भी हुए हैं जिनकी पैरवी की जानी चाहिए।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने हज के दौरान लोगों से ईरान के संपर्क की क्षमताओं और गतिविधियों को बंद या सीमित कर दिए जाने जैसे दुआए कुमैल और अनेकेश्वरवादियों से विरक्तता की कार्यवाही और इसी प्रकार प्राचारिक सेमीनारों और कांफ़्रेंसों को समाप्त या उन्हें सीमित कर देने पर आधारित कार्यवाही को इस्लामी गणतंत्र ईरान के विरुद्ध सऊदी सरकार का हथकंडा क़रार दिया।

वरिष्ठ नेता ने कहा कि आज इस्लामी जगत में बहुत अधिक विचारक और बुद्धिजीवी एेसे हैं जो इस्लामी गणतंत्र ईरान की ज़बान से सच्चाई सुनने को बेताब हैं, इस आधार पर साम्राज्यवाद का विरोध, पश्चिम की प्रवत्ति को उजागर करने, इस्लाम के दुश्मनों से विरिक्तता और दुआए कुमैल में वर्णित उच्च विषय वस्तु को गहरे साहित्य, ज़बान और बयान तथा मज़बूत तर्क के माध्यम से आधुनिक प्रचारिक उपकरणों और संसाधनों से दुनिया वालों तक पहुंचाने की आवश्यकता है।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने ईरान के विरुद्ध नकारात्मक प्रोपेगैंडों की यलग़ार के वातावरण में संबोधिकों के मन में शंकाओं को एक स्वभाविक बात बताया और कहा कि हज के दौरान सऊदी अधिकारियों ने बहुत निर्लज्जता का प्रदर्शन करते हुए टेलीवीजन पर आकर इस्लामी गणतंत्र ईरान के विरुद्ध बातें कीं, जिसके परिणाम में दुनिया के दूसरे देशों के आम नागरिकतं के मन में यह बातें शंकाएं पैदा करती हैं किन्तु लोगों से संपर्क बनाए रखकर इस प्रकार की शंकाओं को दूर कीजिए और सामने वाले पक्ष के घेरे को तोड़ दीजिए।

 

सोमवार, 02 अक्टूबर 2017 12:39

नौ मुहर्रम का विशेष कार्यक्रम।

यद्यपि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का अत्याचार विरोधी भव्य आंदोलन, दस मुहर्रम सन 61 हिजरी क़मरी में करबला के मैदान में अंजाम पाया किन्तु इस आंदोलन के कारण विभिन्न घटनाएं सामने आईं।

हम आशूरा से जितना निकट हो रहे हैं, इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके साथियों के विरुद्ध यज़ीद इब्ने मुआविया की भ्रष्ट सरकार की अत्याचारी कार्यवाहियां बढ़ती जा रही हैं। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के आशूरा आंदोलन के अस्तित्व में आने में नवीं मुहर्रम की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। नवीं मुहर्रम को करबला की तपती हुई धरती पर कई महत्वपूर्ण घटनाएं घटीं जिनसे पहले तो यह सिद्ध हो गया कि उमर इब्ने साद के नेतृत्व में यज़ीदी सेना और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के साथियों के बीच युद्ध होना तय है और हर प्रकार के समझौते का मार्ग बंद हो गया। दूसरा यह कि दसवीं मुहर्रम या आशूरा के दिन युद्ध निश्चित होगा। हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम नवीं मुहर्रम के बारे में कहते हैं कि नवीं मुहर्रम का दिन वह दिन है जिस दिन इमाम हुसैन और उनके साथियों को कर्बला के मैदान में घेर लिया गया और उसके बाद यज़ीदी सेना उनके विरुद्ध एकट्ठा होना शुरु हो गयी। इब्ने ज़ियाद और उमर इब्ने साद अधिक सैनिकों के एकत्रित होने से प्रसन्न थे। उस दिन इमाम हुसैन और उनके साथियों को अक्षम समझ रहे थे और उन्हें विश्वास था कि अब उनके लिए कोई सहायता नहीं पहुंचेगी और इराक़ी भी उनका साथ नहीं देंगे।

हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने यद्यपि यज़ीद के हाथ में हाथ देने को अपमान समझा किन्तु वह युद्ध और रक्तपात नहीं चाहते थे। दूसरी ओर यज़ीदी सेना का सेनापति उमर इब्ने साद पूरी तरह इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की पैग़म्बरे इस्लाम से निकटता से अवगत था और वह चाहता था कि किसी प्रकार इमाम हुसैन को बैयत के लिए राज़ी कर ले। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने उमरे साद से अपनी मुलाक़ात में उसको इस काम के परिणाम से अवगत कराया था और उसको पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों से युद्ध करने और उनका ख़ून बहाने से मना किया है। उसको सरकार की ओर से रय सरकार की ज़िम्मेदारी देने का वादा किया गया था इसीलिए वह आग्रह कर रहा था कि इमाम हुसैन, यज़ीद की आज्ञापालन का वचन दे दें। इसी बीच यज़ीदी सेना का लालची, निर्दयी और सबसे नीच सेनापति शिम्र इब्ने ज़िल जौशन करबला पहुंच गया जिसके बाद झड़पें और रक्तपात निश्चित हो गया। वह अपने साथ चार हज़ार सैनिकों को करबला लाया था। कुछ सूत्रों ने इस असमान युद्ध में यज़ीदी सेना की संख्या लगभग बीस से तीस हज़ार बतायी थी। दूसरी ओर इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके साथियों पर सात मुहर्रम से ही पानी बंद कर दिया गया था, नवीं मुहर्रम को इमाम हुसैन और उनके साथी पूरी तरह परिवेष्टन में आ गये और उनको अब और अधिक सहायता पहुंचने की आशा नहीं थी।

करबला के मैदान में शिम्र इब्ने ज़िल जौशन अपने साथ सैनिकों के अलावा एक पत्र भी लाया था जो कूफ़े के गवर्नर की ओर से लिखा गया था। इस पत्र में उमर इब्ने साद को आदेश दिया गया था कि या इमाम हुसैन से बैयत लो या उनसे युद्ध करो। इसी प्रकार इब्ने ज़ियाद ने उमर इब्ने साद को धमकी दी थी कि यदि वह यह काम नहीं कर सकता तो सेना का नेतृत्व शिम्र के हवाले कर दे। यह बात स्पष्ट हो गयी थी कि यह पत्र शिम्र के प्रभाव को क्रियान्वित करने के लिए लिखा गया था। बहरहाल इब्ने साद रय की सरकार को हाथ से गंवाना नहीं चाहता था और उसने इमाम हुसैन और उनके साथियों पर हमले का फ़ैसला कर दिया।

शिम्र ने नवीं मुहर्रम को एक अन्य षड्यंत्रकारी कार्यवाही की। उसने इमाम हुसैन की सेना के ध्वजवाहक हज़रत अब्बास इब्ने अली को इमाम हुसैन से अलग करने का प्रयास किया। हज़रत अब्बास, इमाम हुसैन की शक्ति, सेना के ध्वजवाहक और बच्चों व महिलाओं का सहारा थे, यदि हज़रत अब्बास इमाम हुसैन को छोड़कर चले जाते तो इमाम हुसैन की क्रांति को बहुत नुक़सान पहुंचता।

शिम्र ने अपने षड्यंत्र को व्यवहारिक बनाने के लिए हज़रत अब्बास और उनके तीन भाईयों को एक पत्र लिखा और कहा कि चूंकि आपकी मां का संबंध हमारे क़बीले से है, हम आपको शरण देते हैं, किन्तु जब शिम्र ने हज़रत अब्बास को पुकारा तो उन्होंने उसका जवाब तक नहीं दिया, यहां तक कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने स्वयं हज़रत अब्बास से शिम्र के पास जाने को कहा। जब हज़रत अब्बास और उनके भाईयों को यह पता चला कि शिम्र ने उनको संरक्षण देने की पेशकश की है तो वह बहुत नाराज़ हुए और उन्होंने क्रोध में कहा कि तुझ पर और तेरे संरक्षण पर ईश्वर की धिक्कार हो, हम संरक्षण में हों और पैग़म्बरे इस्लाम के नवासे को कोई संरक्षण न हो।  इस साहसिक व मुंहतोड़ जवाब ने शिम्र की योजनाओं पर पानी फेर दिया और उसे हज़रत अब्बास और इमाम हुसैन के बीच मतभेद पैदा करने से पूरी निराशा हो गयी। शिम्र को पता चल गया कि हज़रत अब्बास अपने भाई के प्रति सरापा निष्ठा हैं और दोनों भाईयों के बीच रिश्ता बहुत मज़बूत है।

शिम्र इब्ने ज़िल जौशन का षड्यंत्र विफल होने के बाद उमर इब्ने साद ने नवीं मुहर्रम की शाम अपने सैनिकों को युद्ध के लिए तैयार रहने का आदेश दे दिया। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को जब यह पता चला कि यज़ीदी सेना हमला करने ही वाली है तो उन्होंने हज़रत अब्बास को बुलाया और कहा कि जाओ उन लोगों से एक दिन की मोहलत ले लो ताकि हम अंतिम रात अपने ईश्वर के गुणगान और उसकी उपासना में बिताएं। ईश्वर जानता है कि मैं नमाज़ और पवित्र क़ुरआन की तिलावत को बहुत पसंद करता हूं। चूंकि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की इच्छा तर्कसंगत और मानवीय थी, इब्ने साद ने पहले तो इसका विरोध किया किन्तु उसकी सेना के कुछ कमान्डरों का कहना था कि युद्ध को सुबह तक के लिए टाल दे इसीलिए उसने इमाम हुसैन की यह बात मान ली। न मुहर्रम की रात इमाम हुसैन और उनके साथियों और परिजनों के तंबुओं से पवित्र क़ुरआन की तिलावत, ईश्वर के गुणगान की आवाज आ रही थी। रिवायत बयान करने वाला कहता है कि इमाम हुसैन और उनके साथियों और परिजनों पर मौत का ख़ौफ़ तनिक भी दिखाई नहीं दे रहा था, हर व्यक्ति, बच्चा और महिला अपने ईश्वर के गुणगान में लीन थी। इसी बीच इमाम हुसैन ने अपने साथियों को एकत्रित किया और कहा कि यह लोग मेरी जान के दुश्मन हैं, इन को तुम से कुछ लेना देना नहीं है,  रात के अंधरे का फ़ायदा उठाओ और निकल जाओ, यदि तुम दीपक की रोशनी से शरमा रहे हो तो मैं दीपक बुझा देता हूं, उसके बाद इमाम हुसैन ने तंबू का दीपक बुझा दिया। इमाम हुसैन के साथी अपनी जगह से हिले भी नहीं बल्कि उन्होंने एक आवाज़ में कहा कि हे पैग़म्बर के नाती यदि आपकी मुहब्बत में 70 बार मारे जाएं और ज़िंदा किए जाएं तब भी हम आपको अकेला नहीं छोड़ेंगे।

 

 वास्तव में नवीं मुहर्रम को हज़रत अब्बास ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। यही कारण है कि नवी मुहर्रम के दिन विशेष रूप से हज़रत अब्बास और उनकी निष्ठा, साहस और प्रतिभा को याद किया जाता है। वह इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के रक्तरंजित आंदोलन के दौरान बल्कि बचपने से ही इमाम हुसैन से विशेष श्रद्धा रखते थे और उनका सम्मान करते थे। उन्होंने कभी भी इमाम हुसैन को भाई नहीं कहा बल्कि उनको सदा स्वामी कहते थे। उन्होंने अपने भाई इमाम हसन और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के साथ अपने पिता से ज्ञान प्राप्त किया।  हज़रत अली अलैहिस्सलाम इस बारे में कहते हैं कि मेरे बेटे अब्बास ने बचपन में मुझसे इस प्रकार ज्ञान प्राप्त किया जैसे कबूतर अपने बच्चों को दाना भराता है। इस आधार पर अब्बास इब्ने अली न केवल एक साहसी योद्धा बल्कि पवित्र और समस्त नैतिक गुणों से सुसज्जित एक धर्मगुरु थे। यही कारण है कि हज़रत इमाम हुसैन उनका विशेष सम्मान करते थे और उनको अमानतदार और अपने विश्वास का केन्द्र कहते थे, इमाम हुसैन ने हज़रत अब्बास को अपनी सेना का ध्वजवाहक बनाया था।

 

आशूर का दिन हज़रत अब्बास अलैहिस्सलाम के साहस, बलिदान और त्याग का दिन है। वह हर जगह मौजूद होते थे और तंबुओं की रक्षा करत थे। सैनिक एक एक करके शहीद होते रहे, हज़रत अब्बास को रणक्षेत्र में जाने की प्रतीक्षा थी। उनके तीनों भाई रणक्षेत्र में गये और वीरता के साथ युद्ध करते हुए शहीद हो गये। अब कोई भी नहीं बचा, तो इमाम हुसैन के पास सिर छुकाकर रणक्षेत्र में जाने की अनुमति लेने आए। इमाम हुसैन ने कहा कि अब्बास मैं तुम्हें रणक्षेत्र जाने की अनुमति नहीं दे सकता, तुम तो मेरी सेना के सेना पति हो, इस पर हज़रत अब्बास ने कहा कि स्वामी, अब वह सेना ही कहां जिसका मैं सेनापति था, सेना जहां गयी है मुझे भी वहां जाने की अनुमति दें, दोनों भाईयों में देर तक बातें होती रही, इसी बची तंबुओं से बच्चों की रोने और हाय प्यास हाय प्यास की आवाज़ें आने लगीं, इमाम हुसैन ने कहा कि अब्बास बच्चे तीन दिन के प्यासे हैं उनके लिए पानी का प्रबंध करो, हज़रत अब्बास तंबु से निकल कर फ़ुरात की ओर रवाना हो गये, यज़ीदी सेना ने फ़ुरात पर पैहरा लगा दिया, सैनिकों की संख्या बढ़ा दी, हज़रत अब्बास ने हमला किया और नहर पर क़ब्ज़ा कर लिया, छागल में पानी भरा और तंबू की ओर रवाना हुए इसी बीच बिखरी हुई सेना, सिमट गयी सबने एक साथ हमला कर दिया, दुश्मन के हमले में उनका एक हाथ कट गया, उन्होंने दूसरे हाथ में छागल ले ली, इसी बीच उनके दूसरे हाथ पर तीर लगा, उन्होंने सीने पर छगल दबा ली, इसी बीच एक तीर छागल पर आकर लगा, पूरा पानी बह गया, उन्होंने फिर से घोड़े को फ़ुरात की ओर मोड़ दिया, इसी बीच एक दुश्मन ने उनके सिर पर गदे से हमला किया, हज़रत अब्बास घोड़े से ज़मीन पर गिर पड़े, इमाम हुसैन को आवाज़ दी, स्वामी मेरा सलाम स्वीकार करें, इमाम हुसैन तेज़ी से हज़रत अब्बास के पास पहुंचे, कहा भय्या कोई वसीयत है, कहा, मैं अंतिम बार आपके दर्शन करना चाहता  हूं पर मेरी आंख में तीर लगा हुआ है, इमाम हुसैन ने तीर निकाला और ख़ून साफ़ किया। अब्बास ने कहा दूसरी वसीयत यह हैं कि मेरी लाश तंबू में न ले जाइयेगा। इमाम हुसैन हज़रत अब्बास के शव पर बैठकर मर्सिया पढ़ने लगे, भय्या तुम्हारे मरने से मेरी कमर टूट गयी, अब वह आखें सोएंगी जो जागती थीं और वह आंखें जाएंगी जो सोती थीं।

 

 

ज़ायोनी शासन के अधिकारी पश्चिमी तट और बैतुल मुक़द्दस में नयी ज़ायोनी बस्तियों के निर्माण की योजना की समीक्षा कर रहे हैं।

फ़िलिस्तीनी इन्फ़ारमेशन सेन्टर की रिपोर्ट के अनुसार पश्चिमी तट और बैतुल मुक़द्दस में नई कालोनियों के निर्माण की योजना, पुष्टि के लिए इस्राईली प्रधानमंत्री बिनयामीन नितिनयाहू के पास भेज दी गयी है।

इस ज़ायोनी वेबसाइट ने बल दिया है कि इन योजनाओं में से एक अलख़लील शहर में तीस घरों पर आधारित एक बस्ती का निर्माण भी शामिल है।

ज़ायोनी शासन के गठबंधन मंत्रीमंडल के सभी सदस्य, पश्चिमी तट में नई कालोनियों के निर्माण की योजनाओं का समर्थन करते हैं। 

अमरीका में डोनल्ड ट्रम्प के सत्ता में पहुंचने से फ़िलिस्तीनी धरती पर ज़ायोनी कालोनियों के निर्माण की योजना को गति प्रदान करने में इस्राईल अधिक दुसाहसी हो गया है।

 

अहलेबैत (अ)न्यूज़ एजेंसी अबनाःप्राप्त जानकारी के अनुसार सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह ख़ामेनई ने कहा कि ट्रंप का भाषण बेवक़ूफ़ी , मायूसी और ग़ुस्से से भरा है। एवं ऐसे राष्ट्रपति के कारण अमेरिकन विद्वान भी शर्मिन्दा हैं। सुप्रीम लीडर राष्ट्रीय हितों की संरक्षक समिति के सदस्यों को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति का भाषण ग़ुस्से और हताशा से भरा एवं मूर्खतापूर्ण है। ईरान की तरक़्क़ी दुश्मनों से बर्दाश्त नहीं हो रही, एवं लेबनान, सीरिया, इराक़ को अपने अधिकार में लेने का उनका सपना टूट चुका है। वह हमारे ख़िलाफ़ कुछ कर नहीं सकते इसलिये अमर्यादित एवं गंदी भाषा का प्रयोग कर रहे हैं। ट्रंप को अपनी बयानबाज़ी एवं घटिया भाषा के लिए ईरानी राष्ट्र से माफ़ी माँगनी चाहिये।

 


हज के लिए मक्का पहुंच चुके हाजी बुधवार से हज के संस्कार शुरू कर रहे हैं। बुधवार को हाजियों की कुछ संख्या मक्के से अरफ़ात के मौदान की ओर जाएगी।

बीस लाख से अधिक हाजियों से पूरा मक्का शहर जगमगा रहा है और हर ओर लब्बैक अल्लाहुम्मा लब्बैक की आवाज़ गूंज रही है।

अरफ़ात से हाजी मुज़दलफ़ा और मशअर के लिए रवाना होंगे।

हाजियों की कुछ संख्या अरफ़ात के पहाड़ की ओर जाएगी जो मक्का से बारह किलोमीटर की दूरी पर है।

हाजी इन संस्कारों के बाद मेना जाएंगे और रमिए जमरात अर्थात शैतानों को कंकरियां मारने का संस्कार अदा करेंगे और क़ुरबानी करेंगे तथा सिर मुंडवाएंगे जिसके बाद मक्का वापस चले जाएंगे जहां तवाफ़ और सई करेंगे।

इस साल हाजियों की संख्या 26 लाख तक पहुंचने की आशा है।

 

राष्ट्रपति रूहानी ने कहा है कि इस्लामी गणतंत्र व्यवस्था देश की स्वाधीनता की क़ीमत चुका रही है लेकिन दुश्मन की ओर से अलग थलग करने की कोशिश को कभी क़ुबूल नहीं करेगी।

राष्ट्रपति कार्यालय से जारी विज्ञप्ति के अनुसार, वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनई की ओर से डॉक्टर हसन रूहानी की राष्ट्रपति के रूप में गुरुवार की नियुक्ति के बाद, राष्ट्रपति रूहानी ने कहा कि दुश्मनों की वैश्विक व्यवस्था में सक्रिय रूप से भागीदारी से रोकने की इच्छा के सामने नहीं ईरान नहीं झुकेगा। उन्होंने इसी प्रकार कहा कि मानव अनुभव से प्राप्त उपलब्धियों व बदलाव से दूर रखने की दुश्मन की इच्छा को भी ईरान क़ुबूल नहीं करेगा।

ईरानी राष्ट्रपति ने इस बात का उल्लेख करते हुए कि परमाणु समझौता जेसीपीओए सार्थक सहयोग के लिए ईरान की सद्भावना को दर्शाता है और यह समझौता अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रभावी रहा है, कहा कि अब ईरान विगत की तुलना में अधिक आत्म विश्वास व राष्ट्र के समर्थन से संविधान के अनुसार दुनिया के साथ सार्थक व प्रभावी सहयोग करेगा।

उन्होंने इस बात की ओर इशारा करते हुए कि इस्लामी गणतंत्र व्यवस्था जनमत पर निर्भर व्यवस्था है, कहा कि जनता की भागीदारी इस्लामी गणतंत्र व्यवस्था को बंद गली में जाने से बचाती है।

ईरानी राष्ट्रपति ने बारहवीं सरकार के आर्थिक कार्यक्रम को व्यवस्था की मूल नीतियों व प्रतिरोधक अर्थव्यवस्था के अनुरूप बताया। उन्होंने कहा कि ईरान सरकार देश में आर्थिक क्रान्ति लाना चाहती है और आज की दुनिया में देश एक दूसरे से जुड़े व पड़ोस की हैसियत रखते हैं कि ऐसे हालात में दुनिया के साथ सार्थक सहयोग के बिना राष्ट्रीय विकास मुमकिन नहीं है।

ग़ौरतलब है कि गुरुवार की सुबह तेहरान में इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े में राष्ट्रपति की नियुक्ति का समारोह आयोजित हुआ जिसमें वरिष्ठ नेता ने जनादेश को लागू करते हुए डॉक्टर हसन रूहानी को राष्ट्रपति के लिए नियुक्त किया। (MAQ/N)

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने आज गुरूवार को डा. हसन रूहानी की देश के नए राष्ट्रपति के रूप में पुष्टि की।

गुरूवार 3 अगस्त को तेहरान में इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने हसन रूहानी को मिले मतों को लागू करते हुए हसन रूहानी के ईरान के राष्ट्रपति के रूप में पुष्टि की है।

आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने राष्ट्रपति चुनाव में डा. हसन रूहानी द्वारा भारी बहुमत से चनुाव जीतने को ईरान में लोकतंत्र की सुदृढ़ता बताते हुए प्रतिरोधक अर्थव्यवस्था कार्यक्रम को लागू करने पर बल दिया।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने राष्ट्रपति हसन रूहानी से कहा कि वे न्याय की स्थापित करने, वंचितों के समर्थन, और एकता तथा राष्ट्रीय सम्मान को सुदृढ करने के प्रयास करें।

इस्लामी गणतंत्र ईरान के संविधान 110 वें अनुच्छेद के अनुसार राष्ट्रपति पद का चुनाव जीतने के बाद राष्ट्रपति की नियुक्ति का अधिकार वरिष्ठ नेता का दायित्व है।  ईरान में राष्ट्रपति पद का काल 4 वर्ष का है

ज्ञात रहे कि डा. हसन रूहानी ने 19 मई 2017 के 12वें राष्ट्रपति चुनाव में बहुमत प्राप्त किया था।  इस प्रकार वे दूसरी बार ईरान के राष्ट्रपति पद पर आसीन हो रहे हैं।