
رضوی
इमाम जवाद (अ) का संक्षिप्त जीवन परिचय
हज़रत इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम का जन्म 10 रजब सन 195 हिजरी को मदीना शहर में हुआ था। इल्म, शराफ़त, ख़िताबत तथा अन्य मानवीय गुणों के कारण उनका व्यक्तित्व अन्य लोगों से अलग था
हज़रत इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम का जन्म 10 रजब सन 195 हिजरी को मदीना शहर में हुआ था। इल्म, शराफ़त, ख़िताबत तथा अन्य मानवीय गुणों के कारण उनका व्यक्तित्व अन्य लोगों से अलग था।
ख़ुदाई दायित्व के उचित ढंग से निर्वाह के लिए पैग़म्बरे इस्लाम (स.ल.व.व.) के परिजनों में से प्रत्येक ने अपने काल में हर कार्य के लिए तार्किक और प्रशंसनीय नीति अपनाई थी ताकि ख़ुदाई मार्गदर्शन जैसे अपने दायित्व का निर्वाह उचित ढंग से किया जा सके।
इन महापुरूषों के जीवन में अल्लाह पर केन्द्रियता उनका मूल मंत्र रही। इस प्रकार इंसाफ़ को लागू करने, ख़ुदा के सिवा किसी अन्य की बंदगी से मनुष्यों को मुक्ति दिलाने और व्यक्तिगत एवं सामाजिक संबंधों में सुधार जैसे विषयों पर उनका विशेष ध्यान था।
यद्यपि यह महापुरूष बहुत छोटे और सीमित वक़्त में इमामत के कार्यकाल में सफ़ल रहे किंतु उनकी दृष्टि में इंसाफ़ को स्थापित करने, हक़ व अधिकारों को दिलवाने, अन्याय को समाप्त करने और ख़ुदा के धर्म को फैलाने जैसे कार्य के लिए सत्ता एक माध्यम है। क्योंकि यह महापुरूष अपनी करनी तथा कथनी में मानवता और नैतिक मूल्यों का उदाहरण थे अतः वे लोगों के दिलों पर राज किया करते थे। रजब जैसे बरकतों वाले महीने की दसवीं तारीख़, पैग़म्बरे इस्लाम (स) के अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम की एक कड़ी के शुभ जन्मदिवस से सुसज्जित है।
आज के दिन पैग़म्बरे इस्लाम (स) के ऐसे परिजन का जन्म दिवस है जो दान-दक्षिणा के कारण जवाद के उपनाम से जाने जाते थे। जवाद का अर्थ होता है अतिदानी। इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम का जन्म दस रजब सन १९५ हिजरी को मदीना में हुआ था। ज्ञान, शालीनता, ख़िताबत तथा अन्य मानवीय गुणों के कारण उनका व्यक्तित्व अन्य लोगों से भिन्न था। वे बचपन से ही ज्ञान, राज़ व नियाज़, शालीनता और अन्य विशेषताओं में अद्वितीय थे।
इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम के इमामत के काल में अब्बासी शासन के दो शासक गुज़रे मामून और मोतसिम। क्योंकि अब्बासी शासक, इस्लामी शिक्षाओं को लागू करने में गंभीर नहीं थे और वे केवल "ज़वाहिर" को ही देखते थे अंतः यह शासक, धर्म के नियमों में परिवर्तन करने और उस में नई बातें डालने के लिए प्रयत्नशील रहते थे। इस प्रकार के व्यवहार के मुक़ाबले में इमाम जवाद (अ) की प्रतिक्रियाओं और उनके विरोध के कारण व्यापक प्रतिक्रियाएं हुईं और यही विषय, अब्बासी शासन की ओर से इमाम और उनके अनुयाइयों को पीड़ित किये जाने का कारण बना।
पैग़म्बरे इस्लाम (स) के अन्य परिजनों की ही भांति इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम अब्बासी शासकों के अत्याचारों और जनता को धोखा देने वाली उनकी कार्यवाहियों के मुक़ाबले में शांत नहीं बैठते और बहुत सख़्त परिस्थितियों में भी जनता के समक्ष वास्तविकताओं को स्पष्ट किया करते थे। अत्याचार के मुक़ाबले में इमाम जवाद अलैहिस्सलाम की दृढ़ता और बहादुरी, साथ ही उनकी बेहतरीन ख़िताबत कुछ इस प्रकार थी जिस को सहन करने की शक्ति अब्बासी शासकों में नहीं थी। यही कारण है कि इन दुष्टों ने मात्र 25 वर्ष की आयु में इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम को शहीद करवा दिया। इमाम जवाद अलैहिस्सलाम के महत्वपूर्ण सांस्कृतिक प्रयासों के आयामों में से एक, पैग़म्बरे इस्लाम (स) और उनके परिजनों के उन विश्वसनीय कथनों को प्रस्तुत करना और उन गूढ़ धार्मिक विषयों को पेश करना था जिनपर उन लोगों ने विभिन्न आयाम से प्रकाश डाला था।
इमाम तक़ी अल जवाद अलैहिस्सलाम एक ओर तो पैग़म्बरे इस्लाम (स) और उनके परिजनों के कथनों का वर्णन करते हुए समाज में धर्म की जीवनदाई संस्कृति और धार्मिक शिक्षाओं को प्रचलित कर रहे थे तो दूसरी ओर समय की आवश्यकता के अनुसार तथा जनता की बौद्धिक एवं सांस्कृतिक क्षमता के अनुरूप विभिन्न विषयों पर भाषण दिया करते थे। ख़ुदाई आदेशों को लागू करने के लिए इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम का एक उपाय या कार्य, पवित्र क़ुरआन और लोगों के बीच संपर्क स्थापित करना था।
उनका मानना था कि क़ुरआन की आयतों को समाज में प्रचलित किया जाए और मुसलमानों को अपनी कथनी-करनी और व्यवहार में पवित्र क़ुरआन और उसकी शिक्षाओं से लाभान्वित होना चाहिए। इमाम तक़ी अल जवाद अलैहिस्सलाम ख़ुदाई इच्छा की प्राप्ति को लोक-परलोक में कल्याण की चाबी मानते थे। वे पवित्र क़ुरआन की शिक्षाओं के आधार पर इस बात पर बल दिया करते थे कि अल्लाह की प्रसन्नता हर वस्तु से सर्वोपरि है। ख़ुदावंदे करीम सूरए तौबा की ७२ वीं आयत में अपनी इच्छा को मोमिनों के लिए हर चीज़, यहां तक स्वर्ग से भी बड़ा बताता है। इसी आधार पर इमाम तक़ी अलैहिस्सलाम लोगों से कहते थे कि वे केवल ख़ुदा की प्रसन्नता प्राप्त करने के बारे में सोच-विचार करें और इस संदर्भ में वे अपने मार्गदर्शन प्रस्तुत करते थे। अपने मूल्यवान कथन में एक स्थान पर इमाम तक़ी अल जवाद अलैहिस्सलाम कहते हैं: तीन चीज़े अल्लाह की प्रसन्नता का कारण बनती हैं। पहले, अल्लाह से अधिक से अधिक प्रायश्यित करना, दूसरे कृपालू होना और तीसरे अधिक दान देना। ख़ुदा की ओर से मनुष्य को प्रदान की गई नेअमतों में से एक नेअमत प्रायश्यित अर्थात अपने पापों के प्रति अल्लाह से क्षमा मांगना है।
प्रायश्चित, ख़ुदा के बंदों के लिए ख़ुदा की नेअमतों के द्वार में से एक है। ख़ुदा से पापों का प्रायश्चित करने से पिछले पाप मिट जाते हैं और इससे इंसान को इस बात का फिर से अवसर प्राप्त होता है कि वह विगत की क्षतिपूर्ति करते हुए उचित कार्य करे और अपनी आत्मा को पवित्र एवं कोमल बनाए। इसी तर्क के आधार पर मनुष्य को तौबा या प्रायश्चित करने में विलंब नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे पछतावा ही हाथ आता है।
इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम के अनुसार शराफ़त (शालीतना) उन अन्य उपायों में से है जिसके माध्यम से ख़ुदाई प्रसन्नता प्राप्त की जा सकती है। उसके पश्चात दूसरे और तीसरे भाग में मनुष्य को लोगों के साथ संपर्क के ढंग से परिचित कराते हैं। दूसरे शब्दों में अल्लाह को प्रसन्न करने का मार्ग अल्लाह के बंदों और उनकी सेवा से गुज़रता है। इस संपर्क को विनम्रता और दयालुता के साथ होना चाहिए।
निश्चित रूप से विनम्र व्यवहार विनम्रता का कारण बनता है जो मानव को घमण्ड से दूर रखता है। घमण्ड, दूसरों पर अत्याचार का कारण होता है। इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम अपने ख़ुत्बे के अन्तिम भाग में अल्लाह की प्रसन्नता प्राप्त करने के तीसरे कारण को दान-दक्षिणा के रूप में परिचित करवाते हैं। स्वयं वे इस मानवीय विशेषता के प्रतीक थे। इसी आधार पर उन्हें जवाद अर्थात अत्यधिक दानी के नाम से जाना जाता है। इमाम जवाद अलैहिस्सलाम लोगों को उस मार्ग का निमंत्रण देते थे जिसे उन्होंने स्वयं भी तय किया और उसके बहुत से प्रभावों को ख़ुदा की रहमत और कृपादृष्टि को आकृष्ट करने में अनुभव किया। दूसरों को सदक़ा या दान देने का उल्लेख पवित्र क़ुरआन में बहुत से स्थान पर नमाज़ के साथ किया गया है। इस प्रकार इमाम तक़ी अलैहिस्सलाम यह समझाना चाहते हैं कि ख़ुदा की इबादत के दो प्रमुख पंख हैं। इनमें से एक ख़ुदा के साथ सहीह एवं विनम्रतापूर्ण संबंध और दूसरा लोगों के साथ मधुर एवं विनम्रतापूर्ण व्यवहार है। यह कार्य दान से ही संभव होता है जिससे व्यक्ति अल्लाह की इच्छा प्राप्त कर सकता है।
मनुष्य अपनी संपत्ति में से जिस मात्रा में भी चाहे अल्लाह के मार्ग में वंचितों को दान कर सकता है। यहां पर यह बात उल्लेखनीय है कि दान-दक्षिणा में संतुलन होना चाहिए। ऐसा न हो कि यह मनुष्य के लिए निर्धन्ता का कारण बने। दान और परोपकार हर स्थिति में विशेषकर धन-दौलत का दान उन कार्यों में से एक है जो इंसान को ख़ुदा की प्रसन्नता की ओर बढ़ाता है। क्योंकि इंसान के पास जो कुछ है उसे वह अल्लाह के मार्ग में दान दे सकता है। इस प्रकार के लोग हर प्रकार के भौतिक लगाव को त्यागते हुए केवल अल्लाह की प्रशंसा की प्राप्ति चाहते हैं। इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम के एक कथन से इस लेख का अंत कर रहे हैं।
जैसा कि आप जानते हैं कि बहुत से लोग धन-दौलत, सत्ता, जातिवाद तथा इसी प्रकार की बातों को गर्व और महानता का कारण मानते हैं तथा जिन लोगों में यह चीज़ें नहीं पाई जातीं उन्हें वे तुच्छ समझते हैं किंतु इमाम तक़ी अल जवाद अलैहिस्सलाम सच्ची शालीनता का कारण उस ज्ञान को मानते हैं जो व्यक्ति के भीतर निखार का कारण बने। वे महानता को आध्यात्मिक विशेषताओं में से मानते हैं।
एक स्थान पर आप कहते हैं: वास्तविक सज्जन वह व्यक्ति है जो इल्म से आरास्तां (ज्ञान से सुसज्जित) हो और वास्तविक महानता उसी के लिए है जो ख़ुदाई भय और ख़ुदाई पहचान के मार्ग को अपनाए।
सऊदी अरब में प्रसिद्ध ईरानी आलेमदीन ग़ुलाम रज़ा क़ासिमीयान गिरफ़्तार
रमज़ान के पवित्र महीने में प्रसारित होने वाले कुरआनी कार्यक्रम "महफ़िल" के जज और प्रसिद्ध ईरानी आलिम-ए-दीन हुज्जतुल इस्लाम ग़ुलाम रज़ा क़ासेमीयान को सऊदी अरब में हज के अरकान की अदायगी के दौरान गिरफ़्तार कर लिया गया है।
रमज़ान के महीने में टीवी पर आने वाले मशहूर कुरआनी शो "महफ़िल" के जज और नामचीन ईरानी इस्लामी विद्वान हुज्जतुल इस्लाम ग़ुलाम रज़ा क़ासिमीयान को हज की अदायगी के समय सऊदी अरब में हिरासत में लिया गया है।
मिली जानकारी के अनुसार, उनकी गिरफ़्तारी की वजह सोशल मीडिया पर वायरल एक वीडियो क्लिप बताई जा रही है, जिसमें सऊदी अरब की स्थिति पर आलोचनात्मक टिप्पणी की गई थी।
यह वीडियो कथित तौर पर हुज्जतुल इस्लाम क़ासेमियान से ही जुड़ी हुई है, जिसकी वजह से सऊदी सुरक्षा अधिकारियों ने उन्हें गिरफ़्तार किया है।
फिलहाल हुज्जतुल इस्लाम क़ासिमीयान की वर्तमान स्थिति और उनकी हिरासत की जगह के बारे में कोई पक्की जानकारी नहीं मिल सकी है। ईरानी अधिकारियों और आम जनता के बीच इस गिरफ़्तारी को लेकर गहरी चिंता पाई जा रही है, और यह उम्मीद जताई जा रही है कि ईरान का विदेश मंत्रालय जल्द ही इस मुद्दे पर अपना आधिकारिक प्रतिक्रिया देगा।
रियाकार ताक़तों के मुक़ाबले में इमाम मोहम्मद तकी अ.स. का अज़ीम सबक़
इमाम मोहम्मद तकी अलैहिस्सलाम ने अपनी हर पहलू से की गई जद्दोजहद और जनता में जागरूकता पैदा करके, रियाकार ताक़तों के ख़िलाफ़ इस्लाम की तारीख़ में ऐसा सबक़ दर्ज किया जो हमेशा के लिए यादगार बन गया।
जिस तरह दूसरे इमामे मासूमीन अलैहिमुस्सलाम ने अपनी कोशिश, सब्र और इस्तेक़ामत (दृढ़ता) के ज़रिए इस्लामी इतिहास के सुनहरे पन्ने लिखे, उसी तरह इमाम जवाद अ.स.ने भी अब्बासी हुकूमत के असली चेहरे को बेनक़ाब करने में अहम भूमिका निभाई।
उस दौर में जब मुनाफिक़ और रियाकार हुक्मरान, दीनदारी का झूठा दावा करके अवाम को धोखा देना चाहते थे इमाम ने लोगों को होशियार रहने और उनके फ़रेब का मुकाबला करने की दावत दी।
इमाम जवाद (अ.स.) ने एक समझदार और दूरंदेश मुख़ालफ़त के ज़रिए, शिया तंजीमसाज़ी और इल्मी व सांस्कृतिक ज़रियों का भरपूर इस्तेमाल किया। उन्होंने सीधे किसी फौजी टकराव में शामिल हुए बिना, इमामत के रास्ते को महफूज़ रखा और उस वक़्त की हुकूमत की झूठी मशरूइयत (वैधता) को चुनौती दी।
उनका यह तरीका हर दौर के लिए एक टिकाऊ और आदर्श नमूना है, क्योंकि ताक़तवर हमेशा धर्म की हिमायत का झूठा चोला पहन कर सच्चाई को छिपाने की कोशिश करते हैं, और सिर्फ़ अवाम की जागरूकता और सूझबूझ ही उनके चेहरों से नक़ाब हटा सकती है।
इमाम जवाद अ.स. का यह महान सबक आज भी इस्लामी समाजों के लिए रहनुमा है, क्योंकि रियाकार और मुनाफिक़ ताक़तों का मुक़ाबला सिर्फ़ अवाम की जागरूकता और समझदारी के ज़रिए ही मुमकिन है।
स्रोत: किताब पयामे इमाम अमीरुल मोमिनीन (अ.स.), नहजुल बलाग़ा की एक ताज़ा और व्यापक व्याख्या।
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री की सुप्रीम लीडर से मुलाक़ात
हज़रत आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनेई ने सोमवार 26 मई 2025 की शाम पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ और उनके साथ आए प्रतिनिधिमंडल से मुलाक़ात में इस्लामी जगत में पाकिस्तान की विशेष स्थिति की तरफ़ इशारा करते हुए, ग़ज़्ज़ा में इज़रायली शासन के अपराधों को रुकवाने के लिए ईरान व पाकिस्तान की साझा व प्रभावी गतिविधियों की ज़रूरत पर ज़ोर दिया।
हज़रत आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनेई ने सोमवार 26 मई 2025 की शाम पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ और उनके साथ आए प्रतिनिधिमंडल से मुलाक़ात में इस्लामी जगत में पाकिस्तान की विशेष स्थिति की तरफ़ इशारा करते हुए, ग़ज़्ज़ा में इज़ारयली शासन के अपराधों को रुकवाने के लिए ईरान व पाकिस्तान की साझा व प्रभावी गतिविधियों की ज़रूरत पर ज़ोर दिया।
उन्होंने इस मुलाक़ात के आरंभ में पाकिस्तान और भारत के बीच युद्ध की समाप्ति पर ख़ुशी व्यक्त की और दोनों देशों के मतभेदों के समाधान की आशा व्यक्त की। उन्होंने पिछले वर्षों में फ़िलिस्तीन के मुद्दे पर पाकिस्तान के अच्छे और मज़बूत रुख़ की तरफ़ इशारा करते हुए कहा कि हाल के बरसों में इज़रायली शासन से संबंध बनाने के लिए इस्लामी देशों को हमेशा उकसाया जाता रहा है लेकिन पाकिस्तान कभी भी इन उकसावों में नहीं आया।
आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने आज की दुनिया में इस्लामी जगत की अधिक शक्ति और प्रभाव के लिए पाई जाने वाली बड़ी संभावनाओं की तरफ़ इशारा करते हुए कहा कि ऐसी स्थिति में जब युद्ध भड़काने वाले, विवाद और संघर्ष की बहुत चाहत रखते हैं, इस्लामी जगत की सुरक्षा को सिर्फ़ एक चीज़ सुनिश्चित कर सकती है और वह इस्लामी देशों की एकता और उनके आपसी संबंधों को मज़बूत बनाना है।
उन्होंने फ़िलिस्तीन के मुद्दे को इस्लामी जगत का सबसे बड़ा मसला बताते हुए ग़ज़्ज़ा की दर्दनाक स्थिति की तरफ़ इशारा किया और कहा कि ग़ज़्ज़ा की हालत इस स्थिति पर पहुंच चुकी है कि यूरोप और अमरीका में आम लोग सड़कों पर प्रदर्शन करके अपनी सरकारों का विरोध कर रहे हैं लेकिन अफ़सोस कि इन्हीं हालात में कुछ इस्लामी सरकारे इज़रायली शासन के साथ खड़ी हैं।
सुप्रीम लीडर ने ज़ोर देकर कहा कि इस्लामी गणराज्य ईरान और पाकिस्तान आपसी सहयोग से इस्लामी जगत में प्रभावी हो सकते हैं और फ़िलिस्तीन के मुद्दे को इस ग़लत रास्ते से बाहर निकाल सकते हैं। उन्होंने कहा कि हम इस्लामी जगत के भविष्य की तरफ़ से आशावान हैं और बहुत सी घटनाएं हमारे इस रुख़ की पुष्टि करती हैं।
आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने ईरान-पाकिस्तान संबंधों को हमेशा गर्मजोशी और भाईचारे से भरा बताया और थोपे गए 8 वर्षीय युद्ध के दौरान पाकिस्तान के सकारात्मक रुख़ को इस भाईचारे भरे संबंध की एक मिसाल के तौर पर पेश किया लेकिन साथ ही उन्होंने मौजूदा द्विपक्षीय सहयोग को अपेक्षित स्तर से कम बताते हुए कहा कि दोनों देश कई क्षेत्रों में एक-दूसरे की मदद कर सकते हैं और हमें उम्मीद है कि यह दौरा आर्थिक, राजनैतिक और सांस्कृतिक मैदानों समेत विभिन्न क्षेत्रों में संबंधों के व्यापक विस्तार में मदद करेगा।
उन्होंने इसी तरह ईसीओ संगठन के अधिक सक्रिय होने के लिए ईरान व पाकिस्तान के बीच सहयोग की ज़रूरत पर ज़ोर दिया।
इस मुलाक़ात में, जिसमें राष्ट्रपति पिज़िश्कियान भी मौजूद थे, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने सुप्रीम लीडर से मिलने पर बेहद ख़ुशी जताई और पाकिस्तान और भारत के बीच पैदा हुए तनाव को कम करने में इस्लामी गणराज्य ईरान की सकारात्मक भूमिका की सराहना की। उन्होंने हालिया टकराव के बारे में जानकारी देते हुए ग़ज़्ज़ा के मुद्दे पर चिंता जताई और कहा कि अफ़सोस है कि विश्व समुदाय ग़ज़्ज़ा में जारी त्रासदी को रुकवाने के लिए कोई प्रभावी कार्यवाही नहीं कर रहा है।
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने इसी तरह तेहरान में अपनी अच्छी और रचनात्मक वार्ताओं का ज़िक्र करते हुए आशा व्यक्त की, कि यह दौरा द्विपक्षीय संबंधों को पहले से ज़्यादा मज़बूत बनाने का मार्ग प्रशस्त करेगा।
ज़्यादातर लोग मौत से क्यों डरते हैं?
मौत का डर ज़्यादातर लोगों में दो बुनियादी कारणों से पैदा होता है: दुनिया और उसकी बाहरी चमक-दमक से गहरा लगाव और आख़िरत की ज़िंदगी और अल्लाह के इंसाफ़ के प्रति लापरवाही। जो लोग अपनी ज़िंदगी को सिर्फ़ इस दुनिया तक सीमित समझते हैं और आध्यात्मिक और नैतिक मूल्यों को नज़रअंदाज़ करते हैं, वे मौत से सबसे ज़्यादा डरते हैं।
कई लोगों के लिए मौत एक भयावह सच्चाई है, जिससे वे बचना चाहते हैं। इस डर की असली वजह दुनिया से गहरा लगाव और आख़िरत के प्रति लापरवाही है।
प्रश्न:
ज़्यादातर लोग मौत से क्यों डरते हैं और इसका ख़याल उन्हें क्यों डराता है?
उत्तर:
मौत के डर के दो बुनियादी कारण हैं:
- दुनिया से गहरा प्यार और लगाव:
ज़्यादातर लोग अपनी ज़िंदगी को सिर्फ़ इस दुनिया तक सीमित समझते हैं और इससे गहरा रिश्ता बना लेते हैं। दुनिया की बाहरी सजावट, सुख-सुविधाएँ और चमक-दमक उनके दिलों को लुभाती हैं। समय के साथ-साथ उनका दुनिया से प्यार बढ़ता जाता है और वे अपनी सारी ऊर्जा उसे बेहतर बनाने में लगा देते हैं। स्वाभाविक रूप से, जब किसी व्यक्ति के लिए वर्षों की मेहनत से अर्जित की गई चीज़ों को छोड़ने का समय आता है, तो यह अलगाव बहुत कठिन लगता है, और यह भावना मृत्यु को उनके लिए एक भयावह अवधारणा बना देती है।
- आख़िरत और बुरे कर्मों की याद की उपेक्षा:
कुछ लोग तर्क और विवेक की आवाज़ को अनदेखा करके अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए हर वैध और अवैध तरीका अपनाते हैं, दूसरों पर अत्याचार करते हैं और क़यामत के दिन, क़यामत के दिन को भूल जाते हैं। ऐसे लोग मृत्यु के बारे में सोचते ही चिंतित और भयभीत हो जाते हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि उनके कर्मों का एक दिन हिसाब देना होगा।
इसी तरह, कुछ लोग धार्मिक वातावरण और धार्मिक लोगों से प्रभावित दिखते हैं, लेकिन जैसे ही वे किसी धार्मिक व्यक्ति में कोई गलती या चूक देखते हैं, वे धर्म, ईश्वर और क़यामत के दिन के प्रति संदिग्ध हो जाते हैं, जो अंततः उन्हें आध्यात्मिक शांति से वंचित करता है और उन्हें मृत्यु से डराता है।
ग़ज़्ज़ा युद्ध के कारण इस्राइली मानसिक समस्याओं का शिकार
इस्राइली शासन के मीडिया सूत्रों ने बताया है कि ग़ज़्ज़ा में युद्ध शुरू होने के बाद से अब तक पांच लाख से अधिक इस्राइली नागरिक मानसिक इलाज के लिए मनोचिकित्सकीय केंद्रों में जा चुके हैं।
इस्राइली शासन के मीडिया सूत्रों ने बताया है कि ग़ज़्ज़ा में युद्ध शुरू होने के बाद से अब तक पांच लाख से अधिक इस्राइली नागरिक मानसिक इलाज के लिए मनोचिकित्सकीय केंद्रों में जा चुके हैं।
क़ियाम पोस्ट न्यूज़ वेबसाइट के हवाले से रिपोर्ट दी है कि ग़ज़्ज़ा युद्ध शुरू हुए 600 दिन बीत चुके हैं और इस दौरान कब्ज़े वाले फ़लस्तीनी इलाक़ों में आधे मिलियन से अधिक लोगों को मानसिक बीमारियाँ हुई हैं, जिनकी इलाज के लिए उन्होंने साइकोलॉजिकल थैरेपी सेंटर्स का रुख किया है।
फ़िलस्तीनी शहाब न्यूज़ एजेंसी ने भी इब्रानी (यहूदी) भाषा के मीडिया के हवाले से बताया कि ग़ज़्ज़ा युद्ध की शुरुआत से अब तक 66,000 इस्राइली सैनिक और उनके परिवार के सदस्य मनोवैज्ञानिक इलाज प्राप्त कर चुके हैं।
क्या अक्ल के होते हुए भी दीन की आवश्यकता है?
मनुष्य की बुद्धि अकेले अच्छे-बुरे (ख़ैर व शर) के उदाहरणों को पहचानने में असमर्थ है और मानव जीवन के उद्देश्य को भी पूरी तरह समझने में सक्षम नहीं है। इसलिए मनुष्य को मार्गदर्शन के लिए दीन की आवश्यकता है। धर्म ऐसी बारीकियों और विवरणों को प्रदान करता है जिन्हें बुद्धि समझने में अक्षम है।
मानव बुद्धि अच्छे-बुरे की पहचान और जीवन के उद्देश्य के निर्धारण में विस्तृत विवरण देने में असमर्थ है, और इसीलिए मनुष्य धर्म के मार्गदर्शन का मोहताज है।
- क्या मानव बुद्धि अकेले ही अच्छे-बुरे, सही-गलत को पहचान सकती है?
2. क्या बुद्धि के होते हुए भी धर्म की आवश्यकता है?
इसका जवाब नहीं है। बुद्धि सामान्य अवधारणाओं (कुल्ली मफ़ाहीम) को समझने की क्षमता रखती है, लेकिन अधिकांश मौकों पर विभिन्न मामलों की बारीकियों और उदाहरणों को समझने में असमर्थ रहती है।
बुद्धि कुछ विषयों की अच्छाई-बुराई को सामान्य रूप से समझ सकती है, लेकिन उनके व्यावहारिक उदाहरणों (अमली मिसालों) को पहचानने में अक्सर विफल रहती है। जैसे बुद्धि न्याय (अद्ल) को अच्छा और अत्याचार (ज़ुल्म) को बुरा समझती है, लेकिन न्याय और अत्याचार के वास्तविक उदाहरण क्या हैं? यह बुद्धि की समझ से परे है, और इसके लिए धर्म से पूछना पड़ता है।
बुद्धि कैसे समझे कि एक पुरुष का एक से अधिक शादी करना अत्याचार है या नहीं?
बुद्धि कैसे तय करे कि सूद (ब्याज) लेना-देना न्याय है या अत्याचार?
इसी तरह, बुद्धि सच बोलने की अच्छाई और झूठ बोलने की बुराई को तो समझती है, लेकिन यह नहीं समझ पाती कि युद्ध में झूठ बोलना अच्छा है या बुरा?
एक और महत्वपूर्ण बात:हालांकि बुद्धि अल्लाह के अस्तित्व, क़यामत की आवश्यकता और नबूवत (पैग़म्बरी) के महत्व को सिद्ध कर सकती है, लेकिन उनकी विस्तृत जानकारी से पूरी तरह अनजान है।
चूंकि बुद्धि दुनियावी-आख़िरती, भौतिक-आध्यात्मिक, व्यक्तिगत-सामाजिक, मानसिक-शारीरिक लाभ-हानियों को पूरी और सटीक रूप से नहीं पहचान सकती, इसलिए वह कई मामलों की बारीकियों और उदाहरणों के बारे में चुप रहती है।
अगर धर्म हमें फ़िक्ही नैतिक और आस्था संबंधी नियम न सिखाता, तो हम कभी उनसे वाकिफ़ नहीं हो पाते ख़ासकर वे नियम जो आख़िरत से जुड़े हैं।
बुद्धि यह सिद्ध करती है कि ब्रह्मांड का एक रचयिता (ख़ालिक़) है जो ज्ञानी और तत्वदर्शी (अलीम व हकीम) है। इसलिए, यह ब्रह्मांड और उसका हिस्सा यानी मनुष्य, बिना उद्देश्य और बेमतलब पैदा नहीं किए गए हैं।
इस प्रकार, मनुष्य भी ब्रह्मांड की तरह एक उद्देश्य की ओर बढ़ रहा है, और उसकी एक अंतिम मंज़िल है। लेकिन बुद्धि यह नहीं जानती कि मनुष्य का वास्तविक उद्देश्य क्या है और वह किस दिशा में जा रहा है। इसलिए बुद्धि स्वीकार करती है कि उसे धर्म की आवश्यकता है ताकि उसे पता चले कि मनुष्य के जीवन का उद्देश्य क्या है और वह अंततः कहाँ पहुँचने वाला है।
इमाम जवाद (अ) जूदो सख़ा और इल्मो तक़वा का एक आदर्श उदाहरण थे
श्रीमति नज्जार ज़ादियान ने कहा: इमाम जवाद (अ) ने तीन अच्छे गुणों के माध्यम से प्रेम करते थे: समाज में न्याय, कठिनाईयो मे हमदिली, और पाक दिल तथा पाक तीनत होना।
मदरसा फ़ातेमा महल्लात में सांस्कृतिक मामलों की प्रमुख ने कहा: इमाम जवाद (अ) जूदो व सख़ा और इल्मो तक़वा का एक आदर्श उदाहरण थे, जो केवल 25 वर्ष की आयु में अब्बासी खलीफा के गुर्गो के हाथों शहीद हो गए थे। उन्हें शिया और सुन्नियों के बीच "बाब अल-मुराद" के खिताब से जाना जाता है। उन्होंने अपना धन्य जीवन इस्लाम के प्रचार और लोगों की सेवा के लिए समर्पित कर दिया।
उन्होंने कहा: इमाम जवाद (अ) का जन्म मदीना में रजब की 10 तारीख को वर्ष 195 हिजरी में हुआ था। कई वर्षों के इंतजार के बाद उनका जन्म, अहले बैत के शियो के दिलों में उम्मीद की किरण बन गया है।
श्रीमति नज्जार ज़ादियान ने कहा: आपके पिता, इमाम रज़ा (अ) ने इस बच्चे को अपने समय का "मूसा बिन इमरान" और "ईसा बिन मरयम" कहा और खुशखबरी दी कि अल्लाह ने उन्हें एक ऐसा बेटा दिया है जो समुद्र को चीर देगा, जो पाक और पाकीज़ा है।
उन्होंने आगे कहा: इमाम जवाद (अ) का अज़ीम इल्मी और रूहानी स्थिति स्थिति न केवल शियो ने बल्कि सुन्नी विद्वानों ने भी मान्यता दी थी। अपनी युवावस्था के बावजूद, उन्होंने इमामत के दौर में अहले-बैत (अ) के स्कूल की सुरक्षा और प्रचार में प्रमुख भूमिका निभाई।
मदरसा इल्मिया फ़ातेमा महल्लात के सांस्कृतिक मामलों की प्रमुख ने कहा कि मोअतसिम अब्बासी, जो इमाम जवाद (अ) के बढ़ते प्रभाव से भयभीत था, ने उन्हें बगदाद बुला लिया और अपनी निगरानी में रखा। अंत में, इसी अत्याचारी खलीफा ने साजिश और धोखे से इमाम (अ) को जहर देकर शहीद कर दिया।
उन्होंने कहा: इमाम जवाद (अ) के पवित्र शरीर को उनके परदादा हज़रत मूसा इब्न जाफ़र (अ) के बगल में काज़मैन में दफ़न किया गया था, और इन दो महान हस्तियों की चमकदार दरगाह हमेशा से अहले-बैत (अ) के प्रेमियों और प्रशंसकों के लिए ज़ियारतगाह रही है।
इमाम जवाद (अ) के दौर के दो बड़े संकट"
उस समय जब लोगों के अकीद़ो की जांच करने वाली तलवार सड़कों पर खून की प्यासी थी और गरीबी ने शिया मुसलमानों की जान और इमान को बहुत मुश्किल हालात में डाल दिया था, तब इमाम जवाद (अ) ने हिदायत का परचम संभाला। वे इस्लाम के सबसे अंधेरे दौर में, घायलों के दिलों के लिए मरहम और मुसीबतों में शियाो के लिए सहारा बने।
हौज़ा ए इल्मिया के वरिष्ठ शिक्षक हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन आबेदी ने अपनी एक बात में इमाम जवाद (अ) के समय की दो बड़ी समस्याओं की तरफ इशारा किया और कहा:
इमाम जवाद (अ) इस्लाम के इतिहास के सबसे कठिन दौरों में से एक में, जब अक़ीदो की कड़ी जांच-पड़ताल और भारी आर्थिक दबाव थे, शिया समुदाय की हिदायत और नेतृत्व की जिम्मेदारी संभाले हुए थे।
नवैं इमाम (अ) उस दौर में रहते थे जो साल 202 या 203 हिजरी से शुरू हुआ, यानी आठवें इमाम की शहादत के बाद, और साल 220 हिजरी तक चला; यह वह दौर था जिसे शायद शिया और पूरे इस्लामिक दुनिया के लिए सबसे कठिन समय माना जा सकता है।
पहली बात "मेहनत" की है, जिसका नाम आपने शायद सुना होगा
मेहनत का दक़ीक़ और सटीक मतलब था अक़ीदो की कड़ी जांच-पड़ताल या तफतीश की अदालत। यह उस दौर की खास बात थी। उस समय जब सड़क पर किसी से भी मिलते, उससे पूछा जाता: "क़ुरआन नया है या पुराना?" और इस प्रक्रिया को "मेहनत" कहा जाता था। जो कोई कहता कि क़ुरआन नया है, उसे मार दिया जाता था; उसकी पत्नी और बच्चे भी या तो मारे जाते या बंदी बना लिए जाते थे। इस दौर में हजारों मुसलमान तफ़तीश के नाम पर मारे गए।
दूसरी बड़ी समस्या थी शियो पर भारी आर्थिक और सामाजिक दबाव
इतनी ज्यादा थी कि नवें इमाम (अ) ने एक हदीस में कहा: "आज हमारे लिए सही नहीं कि हम शियो से ख़ुम्स या ज़कात की मांग करें," क्योंकि उस वक्त अब्बासी हुकूमत की वजह से शियो पर बहुत ज़्यादा कठिनाइयाँ थीं।
उस दौर में इतनी मुश्किलें थीं कि कभी-कभी सय्यद महिलाएं अपने पास नमाज़ के लिए चादर तक नहीं रखती थीं। वे अपनी चादरें एक-दूसरे के साथ बाँटती थीं; मतलब कि एक महिला नमाज़ पढ़ती, फिर चादर उतारकर दूसरी को देती ताकि वह भी नमाज़ पढ़ सके, और फिर वह चादर अगली महिला को दे दी जाती।
ऐसी कठिन परिस्थितियों में, नवें इमाम (अ) ने इस्लाम की दुनिया, खासकर शिया समुदाय की इमामत और नेतृत्व की जिम्मेदारी संभाली।
इमाम मुहम्मद तकी (अ) की शहादत के अवसर पर, काज़मैन को काले कपड़ो से ढक गया
इमाम मुहम्मद तकी अल-जवाद की शहादत के अवसर पर शोक मनाने वालों ने काज़मैन में एक जुलूस निकाला और तीर्थयात्रियों ने इमाम अल-जवाद, की दरगाह में शोक मनाया।
इमाम मुहम्मद तकी अल-जवाद (अ) की शहादत के अवसर पर, शोक संगठनों ने काज़मैन में एक जुलूस निकाला और तीर्थयात्रियों ने इमाम अल-जवाद (अ) की दरगाह पर शोक मनाया।
बगदाद में इमाम जवाद (अ) का हरम कल रात शोक मनाने वालों से भरा हुआ था और लोग हरम में प्रवेश कर रहे थे, इमाम जवाद (अ) की शहादत पर शोक व्यक्त कर रहे थे, तीर्थयात्री काले कपड़े पहने हुए थे और शोक सभा कर रहे थे। वह कल शाम से ही लगातार शोक में लगी हुई थी।
मातम मनाने वाले आगे बढ़ रहे थे, सिर झुका रहे थे और विलाप कर रहे थे और लब्बैक या जवाद अद्रकनी कह रहे थे, और हरम मुताहर की ओर सड़कें मातम करने वालों से भरी हुई थीं।