
رضوی
इराक़ के विदेश मंत्री का ईरान दौरा
इराक़ के विदेश मंत्री फ़ुआद हुसैन ने ऐलान किया है कि वह अरब लीग के शिखर सम्मेलन के बाद ईरान की यात्रा करेंगे।
इराक़ के टीवी चैनल अलशार टीवी से बातचीत में फ़ुआद हुसैन ने बताया कि,मैं बग़दाद में होने वाले अरब लीग शिखर सम्मेलन के बाद तेहरान जाऊंगा और ईरानी अधिकारियों से मुलाक़ात व बातचीत करूंगा।
उन्होंने यह भी कहा कि ईरान और अमेरिका के बीच जारी बातचीत की जानकारी बग़दाद को पूरी तरह है अगर यह बातचीत नाकाम होती है, तो यह एक ख़तरनाक मामला होगा।
फ़ुआद हुसैन ने बताया कि अमेरिका लगातार इराक़ पर दबाव बना रहा है कि वह ईरान के साथ अपने व्यापारिक संबंध ख़ासकर तेल और गैस की खरीदारी को कम करे अमेरिका का कहना है कि यह तेहरान को आर्थिक मदद देने के बराबर है और इसे रोका जाना चाहिए।
ग़ौरतलब है कि अरब लीग का शिखर सम्मेलन अगले शनिवार को बग़दाद में आयोजित किया जाएगा।
आयतुल्लाह "शहीद सालिस (र)" की जीवनी
तेरहवीं शताब्दी हिजरी के प्रसिद्ध शिया विद्वान और न्यायविद, मुजाहिद और शहीद आयतुल्लाह मुहम्मद तकी बरग़ानी, मारूफ बे शहीद सालिस (र) का जन्म 1172 हिजरी में कज़्वीन (ईरान) के बरग़ान क्षेत्र में एक प्रसिद्ध धार्मिक और विद्वान परिवार में हुआ था। उनके पिता, मुल्ला मुहम्मद मलाइका (र) और दादा, मुल्ला मुहम्मद तकी तालेकानी (र), अपने समय के प्रसिद्ध धार्मिक विद्वान थे।
तेरहवीं शताब्दी हिजरी के प्रसिद्ध शिया विद्वान और न्यायविद, मुजाहिद और शहीद आयतुल्लाह मुहम्मद तकी बरग़ानी, मारूफ बे शहीद सालिस (र) का जन्म 1172 हिजरी में कज़्वीन (ईरान) के बरग़ान क्षेत्र में एक प्रसिद्ध धार्मिक और विद्वान परिवार में हुआ था। उनके पिता, मुल्ला मुहम्मद मलाइका (र) और दादा, मुल्ला मुहम्मद तकी तालेकानी (र), अपने समय के प्रसिद्ध धार्मिक विद्वान थे।
आयतुल्लाह मुहम्मद तकी बरग़ानी (र) ने अपनी प्राथमिक धार्मिक शिक्षा बरग़ान में अपने पिता से प्राप्त की, जिसके बाद उन्होंने कज़्विन के हौज़ा-ए-इल्मिया में प्रवेश लिया और आगे की उच्च धार्मिक शिक्षा के लिए वे हौज़ा-ए-इल्मिया क़ुम गए, जहाँ उन्होंने मिर्ज़ा क़ुमी (र) के पाठों में भाग लिया। क़ुम से, वे इस्फ़हान गए और वहाँ महान शिक्षकों से फ़लसफ़ा और कलाम का अध्ययन किया। इसके बाद वे इराक के कर्बला चले गए और वहां उन्होंने कुछ सालों तक साहिब रियाज आयतुल्लहिल उज़्मा सय्यद अली तबातबाई (र) की क्लास में हिस्सा लिया और ईरान लौट आए। ईरान लौटने पर वे तेहरान में बस गए। जहां वे शिक्षण, इमाम जमात और अन्य धार्मिक सेवाओं में व्यस्त हो गए। अपने उत्कृष्ट गुणों के कारण वे जल्द ही लोकप्रिय और प्रसिद्ध हो गए। कुछ समय तेहरान में रहने के बाद वे फिर से इराक के कर्बला चले गए। जहां वे फिर से अपने गुरु साहिब रियाज़ आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली तबातबाई (र) की क्लास में शामिल हो गए। कुछ दिनों बाद, शिक्षक के आदेश पर, उन्होंने कर्बला-ए-मोअल्ला में पढ़ाना शुरू कर दिया और एक मस्जिद बनाई जिसमें वे नमाज जमात के अलावा उपदेश और ख़ुत्बे भी देते थे। पहले, इस मस्जिद को बरगनी के नाम से जाना जाता था, लेकिन उनकी शहादत के बाद, इसे "मस्जिद ए शहीद सालिस" कहा जाने लगा। कर्बला-ए-मोअल्ला में साहिब रियाज़ आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली तबातबाई (र) और दूसरे बुज़ुर्गों ने उन्हें इज्तिहाद करने की इजाज़त दी। कुछ साल बाद वे ईरान लौट आए और क़ज़्विन में बस गए। अध्यापन, उपदेश और प्रचार के अलावा वे क़ज़्विन में दूसरी धार्मिक, वैज्ञानिक, शैक्षिक और कल्याणकारी सेवाओं में भी शामिल हो गए। उन्होंने क़ज़्विन सेमिनरी का भी नेतृत्व किया।
उनके शिष्यों की एक लंबी सूची है। इनमें साहिब क़िसास उलमा, आयतुल्लाह मिर्ज़ा मुहम्मद तुनकाबोनी (र) और आयतुल्लाह सय्यद इब्राहिम मूसवी क़ज़्विनी (र) के नाम सबसे ऊपर हैं।
आयतुल्लाहिल उज्मा मुहम्मद तकी बरग़ानी (र) ने विभिन्न धार्मिक विषयों पर लिखा और संकलित किया। उनकी पुस्तकों की एक लंबी सूची है, जिनमें "अय्यून अल-उसुल", "मिनहाज उल-इज्तिहाद", "मलखुस अल-अकाइद" और "मजलिस अल-मुताकीन" प्रमुख हैं।
अपनी धार्मिक, शैक्षिक और कल्याण सेवाओं के बावजूद, आयतुल्लाह मुहम्मद तकी बरग़ानी (र) इस्लामी दुनिया, खासकर अपने देश की राजनीतिक समस्याओं से अनजान नहीं रहे। बल्कि, ईरान-रूस युद्ध के दौरान, उन्होंने आयतुल्लाह सय्यद मुहम्मद मुजाहिद (र) और अन्य विद्वानों के साथ भाग लिया और अपनी एक किताब में उन्होंने इस्लाम के विरोधी ताकतों की बुराई से सुरक्षा के लिए दुआ भी लिखी।
इसी तरह, उन्होंने विचलित संप्रदायों के सामने चुप रहना अपराध माना और बड़ी हिम्मत और साहस के साथ मुकाबला किया। उदाहरण के लिए, उन्होंने शेखिया और बबिया संप्रदायों का खुलकर विरोध किया।
शेखिया संप्रदाय के संस्थापक शेख अहमद अहसाई जब 1240 हिजरी में ईरान आए तो विभिन्न शहरों में उनका स्वागत किया गया। जब उन्होंने अपने भ्रामक विश्वासों और विचारों को व्यक्त किया तो कुछ विद्वानों के अनुरोध पर आयतुल्लाह मुहम्मद तकी बरग़ानी (र) ने शेख अहमद अहसाई को एक बहस के लिए आमंत्रित किया। जिसमें उन्होंने शेख अहमद अहसाई को काफिर घोषित कर दिया। जिसके बाद, आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद मुहम्मद महदी तबातबाई (र) (साहिब रियाज़ के बेटे), आयतुल्लाहिल उज्मा मुहम्मद जाफ़र उस्तराबादी (र), मुल्ला अका दरबंदी (र), आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद मुहम्मद हुसैन इस्फ़हानी (र), आतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद इब्राहिम मूसवी कज़विनी (र) और साहिब जवाहर आयतुल्लाह मुहम्मद हसन नजफ़ी (र) ने शेख अहमद अहसाई को काफ़िर घोषित करते हुए फ़तवा जारी किया।
आयतुल्लाहिल मुहम्मद तकी बरग़ानी (र) का फ़तवा बहुत तेज़ी से पूरे इस्लामी जगत में फैल गया। नतीजतन, लोगों ने शेख अहमद अहसाई और उनके समर्थकों से दूरी बना ली। शेख अहमद अहसाई को हज के बहाने ईरान से यात्रा करने के लिए मजबूर होना पड़ा और कुछ दिनों बाद उनका निधन हो गया। आयतुल्लाह मुहम्मद तकी बारग़ानी (र) ने शेख अहमद अहसाई के उत्तराधिकारी सैय्यद काज़िम रश्ती को काफ़िर घोषित कर दिया।
आयतुल्लाहिल उज़्मा मुहम्मद तकी बरग़ानी (र) ने बाबियों के जन्म का कड़ा विरोध किया और बाबियों की गुमराही और कुफ़्र के खिलाफ़ फ़तवा जारी किया। इससे बाबियों की नींव हिल गई।
आयतुल्लाहिल उज़्मा मुहम्मद तकी बरग़ानी (र) ने सूफ़ीवाद का भी कड़ा विरोध किया। जिसके कारण उन्हें ईरान से निर्वासित होना पड़ा।
गुमराह शेखियों और बाबियों ने भी उनका विरोध किया, लेकिन वे अपनी स्थिति पर अडिग रहे। आख़िरकार, 15 ज़िल-क़ादा 1263 हिजरी की सुबह, बाबिया संप्रदाय के कुछ आतंकवादियों ने क़ज़्विन में मस्जिद के मेहराब में उन पर हमला किया और वे शहीद हो गए और "शहीद थालिस" के नाम से मशहूर हुए।
हालाँकि शहीद काजी नूरुल्लाह शुस्त्री (र) की प्रसिद्धि "शहीद सालिस" की उपाधि से भी अधिक है, और कुछ लोग आयतुल्लाहिल उज़्मा मुहम्मद तकी बरग़ानी (र) को "शहीद राबेअ" भी कहते हैं। लेकिन सालिस या राबेअ होना महत्वपूर्ण नहीं है। बल्कि, यह जानना महत्वपूर्ण है कि काजी सय्यद नूरुल्लाह शुस्त्री (र) और मुल्ला मुहम्मद तकी बरग़ानी (र) ने अधिकार और सम्मान प्राप्त किया है। धर्म ने सत्य का साथ दिया और पथभ्रष्टों का खुलकर विरोध किया तथा इस मार्ग पर अपने प्राणों की भी परवाह नहीं की। अल्लाह से दुआ है कि हमें शहीदों का ज्ञान प्रदान करें तथा उनके बताए मार्ग पर चलने की क्षमता प्रदान करें।
लेखक: मौलाना सययद अली हाशिम आबिदी
हिज़्बुल्लाह लेबनानी जनता के दुख-दर्द से वजूद में आई
लेबनानी सांसद और हिज़्बुल्लाह से जुड़े प्रतिनिधि हसन फज़लुल्लाह ने कहा है कि हिज़्बुल्लाह लेबनानी जनता की पीड़ा और दुख-दर्द से जन्म लेने वाला एक जन आंदोलन है, जिसने देश की रक्षा में अपने प्राणों की आहुति दी है।
लेबनानी सांसद और हिज़्बुल्लाह से जुड़े प्रतिनिधि हसन फज़लुल्लाह ने कहा है कि हिज़्बुल्लाह लेबनानी जनता के दुख, कष्ट और पीड़ा से जन्म लेने वाली एक जन-आंदोलन है, जिसने देश की रक्षा में अपनी जानें कुर्बान की हैं।
उन्होंने स्पष्ट किया कि लेबनान पर इस्राइली आक्रमण हमेशा अमेरिका के समर्थन से हुए हैं और ये अत्याचार आज भी जारी हैं।
हसन फज़लुल्लाह ने आगे कहा,हिज़्बुल्लाह ने न केवल देश की रक्षा की, बल्कि अमेरिका की ज़लिम नीतियों से पीड़ित मजलूमों का साथ देने में भी क़ुर्बानियाँ दी हैं।
उनका कहना था कि हिज़्बुल्लाह को लेबनानी जनता का एक बड़ा हिस्सा अपना प्रतिनिधि चुनता है, क्योंकि वे अपने राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा इसी पार्टी को सौंपते हैं।
उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि हिज़्बुल्लाह संविधान और देश के क़ानूनों के अनुसार कार्य करती है, और इसे इसकी ईमानदारी, पारदर्शिता और भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ संघर्ष के कारण पहचाना जाता है।
फज़लुल्लाह ने हालिया इस्राइली आक्रमण को लेबनान में हुई तबाही का ज़िम्मेदार ठहराया और कहा कि यह सब कुछ पाँच सदस्यीय अंतरराष्ट्रीय समिति की आँखों के सामने हो रहा है, लेकिन फिर भी इस्राइली अत्याचार जारी हैं।
लेबनानी सांसद ने हिज़्बुल्लाह पर सोने की तस्करी के आरोप को सख्ती से ख़ारिज करते हुए माँग की कि संबंधित सरकारी संस्थाएं इस मामले की जानकारी सार्वजनिक करें।
उन्होंने आगे कहा,हम हवाई अड्डे की सुरक्षा को अत्यधिक महत्व देते हैं और क़ानून की समान रूप से अनुपालना में विश्वास रखते हैं। हमने हवाई अड्डे की सुरक्षा और शांति सुनिश्चित करने के लिए सरकारी सुरक्षा एजेंसियों के साथ पूरा सहयोग किया है।
हमारा मसला सिर्फ उनसे है जो हमारी ज़मीन पर क़ब्ज़ा किए हुए हैं
बेरूत के इमामे जुमआ हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैय्यद अली फ़ज़लुल्लाह ने क्षेत्र "हारह हरिक़" में स्थित इस्लामी सांस्कृतिक केंद्र में एक संवादात्मक बैठक को संबोधित करते हुए इस्लाम में बातचीत की अहमियत और उसके उसूलों पर रौशनी डाली।
बेरूत के इमामे जुमा हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैय्यद अली फ़ज़लुल्लाह ने क्षेत्र "हारे हरीक़" में स्थित इस्लामी सांस्कृतिक केंद्र में एक संवादात्मक बैठक को संबोधित करते हुए इस्लाम में संवाद (गुफ़्तगू) की अहमियत और उसके उसूलों (सिद्धांतों) पर रोशनी डाली बैठक के अंत में उन्होंने प्रतिभागियों के सवालों के जवाब भी दिए।
उन्होंने कहा कि हर प्रभावशाली संवाद के लिए कुछ बुनियादी उसूलों का ख्याल रखना जरूरी है, जिनमें सबसे अहम यह है कि कोई भी पक्ष खुद को पूर्ण सत्य (मुतलक हक़) पर न समझे। अगर ऐसा रवैया अपनाया जाए तो संवाद शुरू होने से पहले ही नाकाम हो जाता है। संवाद की बुनियाद हमेशा सत्य की खोज पर होनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि इस्लाम चाहता है कि बातचीत धार्मिक, क़ौमी (राष्ट्रीय) और इंसानी साझा मूल्यों के आधार पर हो और यह विचारात्मक हो, न कि व्यक्तिगत या पक्षपातपूर्ण।
हुज्जतुल इस्लाम फ़ज़लुल्लाह ने आगे कहा कि संवाद के दौरान आपसी सम्मान बहुत जरूरी है। किसी के अकीदे या विचारों की तौहीन (अपमान) या मज़ाक उड़ाना नहीं चाहिए, क्योंकि जब सम्मान की जगह अपमान ले लेता है तो संवाद अपनी अहमियत खो देता है।
बेरूत के इमामे जुमआ ने कहा कि इस्लाम पड़ोसियों के साथ अच्छे बर्ताव की तालीम देता है। हम इस देश में किसी सीमित और संकीर्ण फिरकापरस्ती के घेरे में क़ैद नहीं हैं। हम सभी मसालिक (विचारधाराओं) और मज़ाहिब (धर्मों) के साथ बेहतर ताल्लुकात (संबंध) चाहते हैं और यह हमारी कमजोरी नहीं, बल्कि दीन (धर्म) की तालीमात और इस्लामी उसूलों का तकाज़ा (मांग) है।
अपने ख़िताब (भाषण) के आखिर में उन्होंने वाज़ेह (स्पष्ट) किया कि हमारा दुनिया से कोई मसला नहीं है, हमारा असली मसला उन लोगों से है जो हमारे मुल्क पर हमला करते हैं, हमारी ज़मीन पर क़ब्ज़ा करना चाहते हैं और हमारे वसाइल (संसाधनों) को लूटते हैं। यह हमारा हक़ और फर्ज़ है कि हम अपने वतन का दिफा करें और दुश्मन को उसके नापाक इरादों में कामयाब न होने दें।
संपादी छात्रों की एशियाई भौतिकी ओलंपियाड 2025 सऊदी अरब में सफ़लता
इस्लामी गणराज्य ईरान के स्कूली छात्रों की भौतिकी ओलंपियाड टीम ने 25वीं एशियाई भौतिकी ओलंपियाड में एक रजत पदक और छह कांस्य पदक जीतकर बड़ी सफलता हासिल की है।
25वीं एशियाई भौतिकी ओलंपियाड सऊदी अरब के शहर ज़हरान में 15 से 22 उर्दीबेहश्त 1404 अर्थात 5 से 12 मई 2025 तक आयोजित की गई।
ईरानी टीम के सभी सदस्य इस प्रतिस्पर्धा में पदक जीतने में सफल रहे, जो एक महत्वपूर्ण गौरव है और यह दर्शाता है कि ईरानी छात्रों की वैज्ञानिक क्षमता अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कितनी उच्च है।
इस प्रतियोगिता में एशियाई देशों की 30 टीमों ने हिस्सा लिया, जिनमें चीन, रूस, जापान, दक्षिण कोरिया, भारत, कज़ाक़िस्तान और सिंगापुर जैसे देश शामिल थे। छात्र दो पाँच-पाँच घंटे की परीक्षाओं, एक सैद्धांतिक और एक प्रायोगिक अर्थात theoretical and practical में भाग लेकर आपस में प्रतिस्पर्धा कर रहे थे।
शहीद आयतुल्लाह रईसी सदाक़त की व्यावहारिक मिसाल थे
दक्षिण खुरासान में सर्वोच्च नेता के प्रतिनिधि, हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन सय्यद अली रजा एबादी ने कहा है कि शहीद आयतुल्लाह इब्राहिम रईसी सदाक़त और सेवा की एक मिसाल थे, जिन्होंने बिना किसी सांसारिक हितों के लोगों की सेवा करने के लिए अपनी जान जोखिम में डाल दी और जिहाद के मैदान में डटे रहे।
दक्षिण खुरासान में सर्वोच्च नेता के प्रतिनिधि, हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन सय्यद अली रजा एबादी ने कहा है कि शहीद आयतुल्लाह इब्राहिम रईसी सदाक़त और सेवा की एक मिसाल थे, जिन्होंने बिना किसी सांसारिक हितों के लोगों की सेवा करने के लिए अपनी जान जोखिम में डाल दी और जिहाद के मैदान में डटे रहे।
बीरजंद में मदरसा "सफीरान ए हिदायत" के शिक्षकों और छात्रों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि अल्लाह तआला ने इंसान को परीक्षा के लिए बनाया है और "संकट, परीक्षा और चुनाव" जैसी वास्तविकताएं सांसारिक जीवन का आधार हैं। उनके अनुसार, अल्लाह ने 124,000 पैगम्बरों को भेजकर प्रमाण पूरा कर दिया, अब यह इंसान की अपनी पसंद की शक्ति है जो उसकी खुशी या दुख का निर्धारण करती है, न कि समय की परिस्थितियां।
हुज्जतुल इस्लाम एबादी ने मौजूदा राष्ट्रीय संकटों के लिए इस्लामी क्रांति को नहीं बल्कि दुश्मन तत्वों के प्रभाव, अज्ञानता और स्वार्थ को जिम्मेदार ठहराया और कहा कि "जहां भी क्रांतिकारी और इस्लामी सिद्धांतों पर काम किया गया है, वहां महत्वपूर्ण सफलताएं हासिल हुई हैं, चाहे वह शैक्षणिक, सैन्य या आर्थिक क्षेत्र में हो।"
उन्होंने कहा कि अगर राष्ट्र और जिम्मेदार लोग आस्था के सिद्धांतों के आधार पर काम करते हैं, तो कोई भी कठिनाई नहीं रहेगी।
हुज्जतुल इस्लाम एबादी ने शहीद आयतुल्लाह रईसी के व्यक्तित्व को "सेवा, सदाकत और इमानदारी" का प्रतीक बताया और कहा: "यदि सभी व्यक्ति समान ईमानदारी से काम करें, तो देश जल्द ही सभी कठिनाइयों को पार कर जाएगा।" उन्होंने कहा कि आज सही और गलत के बीच वैश्विक संघर्ष तेज हो गया है और इस्लामी क्रांति पश्चिमी उदार लोकतंत्र के सामने एक सीसे की दीवार बन गई है। उन्होंने कहा कि पूरी दुनिया में, यहां तक कि पश्चिम में भी, लोग अहंकारी उत्पीड़न के खिलाफ जाग रहे हैं और यह भविष्य में सच्चाई की जीत का अग्रदूत है। उन्होंने जोर देकर कहा कि दुश्मन अपने धोखे के माध्यम से अपना असली चेहरा छिपाने की कोशिश कर रहा है, इसलिए आध्यात्मिक और धार्मिक अभिजात वर्ग का कर्तव्य है कि वे युवाओं को इन साजिशों के बारे में सूचित करें। अंत में, उन्होंने मरहूम आयतुल्ललाह हाएरी शिराज़ी की भविष्यवाणी को उद्धृत किया: "दुनिया जल्द ही दो भागों में विभाजित हो जाएगी: एक ओर, पश्चिम के नेतृत्व में धोखेबाज देशद्रोही, और दूसरी ओर, ईरान के नेतृत्व में वफादार लोग। आज, इस परिवर्तन के संकेत स्पष्ट हैं, और अंततः जीत इस्लाम और क्रांति की होगी।"
यमन;अनसरुल्लाह की इज़राईल की दो एयरलाइनों को चेतावनी
यमन की अंसारुल्लाह आंदोलन के एक राजनीतिक दफ्तर के सदस्य ने दो एयरलाइनों द्वारा बिन गोरियन एयरपोर्ट के लिए उड़ानें जारी रखने को लेकर खतरे की घंटी बजाई है।
क़ुद्स अलअखबारीया की रिपोर्ट में बताया गया कि यमनी अंसारुल्लाह आंदोलन के राजनीतिक कार्यालय के सदस्य हिज़ाम अलअसद ने कहा है: इस्राईली एयरलाइन एल-आल और संयुक्त अरब अमीरात की इतिहाद एयरवेज अभी भी अपनी "मोहलत भरी" उड़ानों को जारी रख रही हैं और अपने यात्रियों, विशेष रूप से पश्चिमी नागरिकों की जान जोखिम में डाल रही हैं।
हिज़ाम अलअसद ने बताया कि ये दोनों कंपनियां यमन की सशस्त्र सेनाओं की उस चेतावनी को नजरअंदाज़ कर रही हैं, जिसमें अललिद (बिन गूरियन) एयरपोर्ट के लिए उड़ानों पर रोक लगाने की बात कही गई है।
उन्होंने कहा कि ये लापरवाही उस स्थिति में हो रही है जब दुनिया की अधिकांश एयरलाइनों ने यमन की इस चेतावनी को गंभीरता से लिया है।
अलअसद ने ज़ोर देकर कहा: इन दोनों कंपनियों की मौजूदा नीति पर अड़े रहने की स्थिति में इसके गंभीर परिणाम होंगे जो चेतावनी देता है, वह जिम्मेदारी से बच जाता है।
क़ुरआन करीम के माध्यम से समाज की वर्तमान आवश्यकताओं का जवाब दें
सिपाह फज्र के उप कमांडर अमीर जाहदी ने कहा है कि पवित्र कुरान में चिंतन के माध्यम से हम समाज के सवालों और जरूरतों का जवाब दे सकते हैं।
सिपाह फज्र के उप कमांडर अमीर जाहदी ने कहा है कि पवित्र कुरान में चिंतन के माध्यम से हम समाज के सवालों और जरूरतों का जवाब दे सकते हैं।
उन्होंने यह बात शिराज में आयोजित राष्ट्रव्यापी "बसीजी छात्रों और आध्यात्मिक नेताओं के दूसरे कुरानिक समारोह" के दौरान कही, जिसे ईरान के अहले बैत (अ) के तीसरे तीर्थ द्वारा आयोजित किया गया था। उन्होंने कहा कि देश के 32 प्रांतों के छात्रों और बसीजी विद्वानों, जिनमें 196 कुरानिक अभिजात वर्ग शामिल थे, ने इस कुरानिक समारोह में भाग लिया।
इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता के बयानों का जिक्र करते हुए अमीर जाहिदी ने कहा कि आयतुल्लाह खामेनेई ने हमेशा पवित्र कुरान को जीवन का केंद्र बनाने पर जोर दिया है। इस्लामी क्रांति से पहले भी उन्होंने इस बात पर जोर दिया था कि हर किसी को अपने साथ एक छोटा कुरान रखना चाहिए और कुरान पर विचार करने की आदत डालनी चाहिए। उन्होंने कहा कि आज के दौर में अगर हमें समाज के सवालों का जवाब देना है तो इसका एकमात्र रास्ता पवित्र कुरान है। छात्रों और विद्वानों की एक बड़ी जिम्मेदारी इस कुरान की क्षमता का लाभ उठाना है। हमें उम्मीद है कि हम भविष्य में भी बेहतर योजना के साथ आपकी सेवा में मौजूद रहेंगे।
आयतुल्लाहिल उज़मा बहजत/इलाही इल्म के माहिर आलिम और विशिष्ट फक़ीह थे
इमाम ख़ुमैनी शैक्षिक और शोध संस्थान के सदस्य हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन अली मिसबाह यज़दी ने कहा है कि इंसानियत की हिदायत और फ़िक्री रौशनी, दीन के अलमबरदारी उलमा की ज़िम्मेदारी है और मरहूम आयतुल्लाहिल उज़मा बहजत उन अज़ीम उलमा में से थे जो इलाही मआरिफ़ के माहिर और एक बेमिसाल फक़ीह थे।
इमाम ख़ुमैनी शैक्षिक और शोध संस्थान के सदस्य हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन अली मिसबाह यज़दी ने कहा है कि इंसानियत की हिदायत और फ़िक्री रौशनी, दीन के अलमबरदारी उलमा की ज़िम्मेदारी है और मरहूम आयतुल्लाहिल उज़मा बहजत उन अज़ीम उलमा में से थे जो इलाही मआरिफ़ के माहिर और एक बेमिसाल फक़ीह थे।
उन्होंने यह बात बुधवार की रात फ़ूमन शहर की जामा मस्जिद में आयोजित आयतुल्लाह बहजत की सोलहवीं बरसी और शहीद छात्रों व उलमा की याद में आयोजित एक मजलिस को संबोधित करते हुए कही।
उन्होंने कहा कि इस्लामी इतिहास में कई बुज़ुर्ग और महान उलेमा गुज़रे हैं जिन्होंने इंसानियत की ख़िदमत की, लेकिन कुछ शख्सियतों का फ़ुक़्दान ऐसा होता है जिसे कभी पूरा नहीं किया जा सकता। रिवायतों के मुताबिक़ जब कोई बड़ा आलिम दुनिया से रुख़्सत होता है तो एक ऐसा ख़ला पैदा होता है जो क़यामत तक बाक़ी रहता है, क्योंकि ऐसे उलेमा का किरदार और मर्तबा इंसानी हिदायत के अज़ीम फ़रीज़े से जुड़ा होता है।
उन्होंने वाज़ेह किया कि इंसान की तख़लीक़ का मक़सद यह है कि वो हर सांस और हर कदम के साथ ख़ुदा के क़रीब होता चला जाए। और यह क़ुर्बे इलाही तभी हासिल होता है जब इंसान इस छोटी सी दुनियावी ज़िंदगी में रुश्द व कमाल (विकास और पूर्णता) के रास्ते पर चले।
हुज्जतुल इस्लाम मिसबाह यज़दी ने कहा कि इंसान के कमाल के सफ़र में एक राहशिनास (मार्गदर्शक) का होना ज़रूरी है और यह रहनुमा अंबिया, औलिया और उलमा होते हैं। हर आलिम अपने असर के दायरे में एक ख़ला को भरता है, लेकिन जब वो दुनिया से चला जाता है तो उसका खालीपन बाक़ी रह जाता है।
उन्होंने आयतुल्लाह बहजत की इल्मी और रुहानी ख़िदमात को ख़िराजे तहसीन पेश करते हुए कहा,वो एक ऐसे फक़ीह और आलिमे रब्बानी थे जिन्होंने अपनी पुरबरकत ज़िंदगी में लोगों की हिदायत और तर्बियत का फ़रीज़ा अंजाम दिया, और उनका इल्म और तक़्वा आज भी उम्मत के लिए एक मशअले राह (रौशनी का स्रोत) है।
उन्होंने यह भी कहा कि उलमा का फ़रीज़ा सिर्फ़ तालीम देना नहीं, बल्कि वो फ़िक्री और अकीदती हमले का जवाब देना भी है जो शैतानी ताक़तें वक़्तन फवक़्तन इंसानियत पर करती हैं। इसी वजह से उलमा, ख़ास तौर पर फुक़हा, को दुश्मनों की सख़्त मुख़ालिफ़त का सामना करना पड़ता है।
मिसबाह यज़दी ने कहा कि इंक़िलाबे इस्लामी ईरान आज के दौर की एक अज़ीम नेमत है। इमाम ख़ुमैनी की क़ियादत और मोमिन क़ौम की इस्तेक़ामत ने दीन और दीनदारी को दोबारा ज़िंदा किया, जिसे गुज़िश्ता दौर में फ़रामोशी के हवाले किया जा रहा था।
उन्होंने कहा कि आज भी इंक़िलाब को दुश्मनों की साज़िशों और फ़िक्री हमलों का सामना है सख़्त जंग, सकाफ़ती यलग़ार इस्लाम को बदनाम करना और लोगों के अकीदों को डगमगाना करना इन साज़िशों की मुख़्तलिफ़ शक्लें हैं। ऐसे हालात में रूहानियत की ज़िम्मेदारी पहले से कहीं ज़्यादा संगीन और हस्सास हो चुकी है।
अपने ख़िताब के आख़िर में उन्होंने जिहादे तबीइन यानी दीन की सही और वाज़ेह तशरीह को आज की सबसे बड़ी ज़रूरत क़रार देते हुए कहा कि इस्लामी समाज की रहनुमाई किसी एक इलाक़े तक महदूद नहीं, बल्कि पूरी इंसानियत की हिदायत उलमा की आलमी ज़िम्मेदारी है।
अंत में उन्होंने याद दिलाया कि अगर आज हम शोहदा के खून, बाशऊर क़ौम और रहबर मुअज़्ज़म की क़ियादत की बदौलत इस्लामी निज़ाम में सांस ले रहे हैं, तो लाज़मी है कि इस नेमत को दिनी मआरिफ़ के फैलाव और शऊर की बेदारी के लिए भरपूर इस्तेमाल करें।
हमास के साथ अमेरिका की सीधी बातचीत को इस्राइल की रणनीतिक हार माना जा रहा है
एक ज़ायोनी विश्लेषक ने एक इस्राइली मीडिया में चेतावनी दी है कि अमेरिका और ज़ायोनी शास के बीच विशेष संबंध टूटने के कगार पर हो सकते हैं।
इस्राइल की हैफ़ा यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान के प्रोफ़ेसर और इस्राइल -अमेरिका संबंधों के विशेषज्ञ अब्राहम बिन त्सवी ने इस्राइलीअख़बार यिस्राएल ह्यूम में लिखा: "छह दशकों से अमेरिका और इस्राइल के बीच जो गहरा, रणनीतिक और कूटनीतिक सहयोग रहा है वह साझा मूल्यों पर आधारित था और उसे विशेष संबंध कहा जाता था और अब वह एक संवेदनशील मोड़ पर पहुंच गया है जो इस गठबंधन के भविष्य को ख़तरे में डाल सकता है।"
बिन तसफ़ी ने लिखा: "डोनाल्ड ट्रंप और ज़ायोनी शासन के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू क्षेत्रीय और वैश्विक संवेदनशील मुद्दों पर सीधे टकराव की ओर तेज़ी से बढ़ रहे हैं।"
लेखक के अनुसार ग़ज़ा पट्टी में युद्ध का शीघ्र अंत डोनाल्ड ट्रंप के लिए एक महत्वपूर्ण मुद्दा है जो उन्हें एक दृढ़ और निर्णायक नेता के रूप में स्थापित करने में मदद करेगा, ऐसा नेता जो लगातार बड़े संकटों को सुलझाने या कम से कम उन्हें नियंत्रित करने का प्रयास करता है। ट्रंप ख़ुद को एक मध्यस्थ के रूप में पेश करना चाहते हैं और ग़ज़ा युद्ध उनके लिए पश्चिमी एशिया को अमेरिका के नियंत्रण में पुनः डिज़ाइन करने के प्रयासों का हिस्सा माना जाता है।
बिन तसफ़ी ने आगे कहा: इस लक्ष्य की प्राप्ति वॉशिंगटन और फ़ार्स की खाड़ी क्षेत्र के अरब देशों के बीच आपसी समझौतों पर निर्भर है। अमेरिका इन देशों को उन्नत व विकसित हथियार दे रहा है बदले में उनसे अपनी अर्थव्यवस्था में भारी निवेश की अपेक्षा करता है ताकि क्षेत्र में उनके सैन्य प्रभाव और स्थिति को मज़बूत किया जा सके।
इस विश्लेषण व समीक्षा में बताया गया है: व्हाइट हाउस की इस नीति का अंतिम उद्देश्य एक व्यापक कूटनीतिक और रणनीतिक गठबंधन बनाना है जो अमेरिका के समर्थन से क्षेत्रीय और वैश्विक खतरों और चुनौतियों का सामना कर सके और नए क्षेत्रीय व्यवस्था के ख़िलाफ पैदा होने वाले ख़तरों को नियंत्रित कर सके।
बिन तसफ़ी ने चेतावनी दी कि अमेरिका और ज़ायोनी शासन के बीच विशेष संबंध अब अभूतपूर्व दबाव में हैं, क्योंकि डेमोक्रेटिक पार्टी के वामपंथी धड़े को इस संबंध के लिए एक गंभीर ख़तरे के रूप में देखा जा रहा है। वहीं रिपब्लिकन पार्टी के अलगाववादी धड़े में भी इस रिश्ते को लेकर बढ़ती उदासीनता के संकेत नज़र आ रहे हैं।
इस राजनीति विश्लेषक ने आगे कहा: "यह स्थिति व्हाइट हाउस के भीतर नेतन्याहू के प्रति बढ़ती निराशा और ग़ुस्से का कारण बनी है और अब यह असंतोष स्पष्ट रूप से सामने आ चुका है।"
बिन तसफ़ी ने कहा: "डोनाल्ड ट्रंप और उनके मध्य पूर्व मामलों के प्रतिनिधि Steve Witkoff यह समझने में असमर्थ हैं कि ज़ायोनी शासन ग़ज़ा के दलदल में अपनी मौजूदगी क्यों बनाए हुए है, क्योंकि उनकी दृष्टि में यह युद्ध न तो कोई स्पष्ट उद्देश्य रखता है और न ही कोई अर्थ।"
इस इस्राइली ज़ायोनी विश्लेषक ने क्षेत्र में हाल ही में हुए घटनाक्रमों की ओर इशारा किया जो अमेरिका और इस्राइली के बीच संबंधों को और अधिक बिगाड़ सकते हैं।
इनमें से एक उदाहरण दोहरी नागरिकता रखने वाले इस्राइली -अमेरिकी बंदी 'ईदान अलेक्ज़ेंडर' की रिहाई है जिसे हमास ने अमेरिका के साथ सीधी बातचीत के बाद आज़ाद किया।
उसने अंत में यह संभावना जताई कि निकट भविष्य में ग़ज़ा के बाद प्रशासन में हमास की राजनीतिक भूमिका को स्वीकार कर लिया जाये भले ही वह प्रतीकात्मक रूप में हो। इसके अलावा यह भी संभव है कि भविष्य में ईरान के साथ कोई परमाणु समझौता ज़ायोनी शासन से परामर्श के बिना किया जाए, और सऊदी अरब के असैन्य परमाणु कार्यक्रम को समर्थन देने का निर्णय भी इस्राइल की सहमति के बिना लिया जाए।