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भारत के प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी ईरान पर प्रसन्नता जताई है।

सोमवार को ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैय्यद अली ख़ामेनई और राष्ट्रपति हसन रूहानी से मुलाक़ात के बाद मोदी ने ट्वीट किया कि इस यात्रा में ईरानी नेताओं के साथ सार्थक बातचीत हुई और हम अपने रिश्तों को अधिक मज़बूत बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।

मोदी ने अपने ट्वीटर एकाउंट में लिखा कि मैं ईरान के अच्छे लोगों की दोस्ती के लिए शुक्रिया अदा करता हूं, ईरान की मेरी यात्रा लाभदायक रही, जिसके सकारात्मक परिणाम दोनों देशों को प्रभावित करेंगे।

मोदी की तेहरान यात्रा क दौरान, भारत और ईरान ने आपसी सहयोग के 12 समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं।

इनमें सांस्कृतिक सहयोग बढ़ाने, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, सांस्कृतिक आदान-प्रदान, चाबहार बंदरगाह के विकास और संचालन और चाबहार-ज़ाहेदान के बीच रेलवे लाइन बिछाने संबंधी समझौते प्रमुख हैं।

भारतीय प्रधान मंत्री दो दिवसीय ईरान यात्रा पर रविवार को दो तेहरान पहुंचे थे।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने सोमवार की शाम अफगान राष्ट्रपति से भेंट में कहा कि इस्लामी गणतंत्र ईरान ने हमेशा अफगानिस्तान के हितों और सुरक्षा पर विशेष ध्यान दिया है और वह सभी क्षेत्रों में इस देश के विकास को अपना विकास समझता है।

वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई ने इस भेंट में कहा कि इस्लामी गणतंत्र ईरान अमरीका व ब्रिटेन जैसे कुछ देशों के विपरीत सदैव अफगान जनता के साथ सम्मान, भाईचारे और आतिथ्य प्रेम पर आधारित व्यवहार करता रहा है और अफगानिस्तान द्वारा अपने देश के प्राकृतिक संसाधनों से लाभ उठाने के प्रयास में ईरान उसकी हर प्रकार की सहायता के लिए तैयार है।

वरिष्ठ नेता ने कहा कि अफगानिस्तान को प्राकृतिक संसाधनों और मानव बल के रूप में दो बड़ी नेमत मिली है जिसके बल पर वह अच्छी तरह से विकास कर सकता है।

वरिष्ठ नेता ने दोनों देशों के मध्य सीमावर्ती नदियों के मामले के जल्द निपटारे की ज़रूरत पर बल दिया और कहा कि इस प्रकार के मुद्दे, ईरान और अफगानिस्तान जैसे देशों के मध्य शिकायत व दूरी का कारण नहीं बनने चाहिएं जो वास्तव में संयुक्त सीमा, संयुक्त संस्कृति व संयुक्त ज़रूरत रखते हैं।

इस भेंट में अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने भी तेहरान में होने वाली वार्ता विशेषकर चाबहार के रास्ते ट्राज़िस्ट के लिए भारत के साथ हुए समझौते पर खुशी प्रकट की कहा कि हम ईरानी जनता की ओर से अफगान नागरिकों की मेज़बानी और अफगानिस्तान के प्रति आप की सकारात्मक दृष्टि के लिए सदैव आभारी रहेंगे और आशा है कि तेहरान वार्ता परस्पर संबंधों में अधिक विकास का कारण बनेगी।  

भारतीय सूत्रों का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ईरान यात्रा के अवसर पर ईरान के बक़ाया पैसों में से 750 मिलयन डालर, ईरान के अकान्ट में डाल दिये गए।

इर्ना की रिपोर्ट के अुनसार 750 मिलयन डालर में से 500 मिलयन डालर, मेंगलोर रिफायनरी ने अदा किये जबकि बाक़ी राशि का भुगतान अन्य तेल रिफ़ायनरी ने किया। यह पैसा, यूनियन बैंक आफ इंडिया के माध्यम से तुर्की की हैलिक बैंक में भेजा गया।

भारत की एस्सार तेल कंपनी ने भी घोषणा की है कि वह शीघ्र ही ईरान के बक़ाया 500 मिलयन डालर का भुगतान करेगी। इससे पहले भारतीय अधिकारियों ने कहा था कि ईरान की बक़ाया तेल राशि के भुगतान के लिए कोई उचित माध्यम उपलब्ध नहीं हो पा रहा है।

जानकार सूत्रों का कहना है कि भारत पर ईरान का 6 दश्मलव 5 अरब डालर का तेल का बक़ाया है।

रक्षा मामलों में रूसी राष्ट्रपति के सलाहकार ने कहा है कि एक S-300 मीज़ाईल शील्ड ईरान को दी जा चुकी है और साल के अंत तक कई और शील्ड उसे दी जाएंगी।

विलादिमीर कोजीन ने गुरुवार को बताया कि उनके देश ने ईरान को S-300 नामक एक प्रक्षेपास्त्रिक ढाल दे दी है और जारी वर्ष की समाप्ति से पहले उसे कई और प्रक्षेपास्त्रिक ढाल दी जाएगी। उन्होंने बताया कि S-300 मिलने में विलम्ब पर ईरान ने जो शिकायत की थी उसे फ़िलहाल उसने टाल दिया है लेकिन अभी यह ज्ञात नहीं है कि वह इस शिकायत को कब वापस लेगा?

ज्ञात रहे कि ईरान और रूस ने वर्ष 2007 में एक समझौता किया था जिसके अनुसार रूस ईरान को कम से कम पांच S-300 प्रक्षेपास्त्रिक ढाल देने वाला था लेकिन वर्ष 2010 में रूस ने इस बहाने से कि यह प्रक्षेपास्त्रिक ढाल ईरान को बेचने से संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव का उल्लंघन होगा, उसे तेहरान के हवाले करने से इन्कार कर दिया था। माॅस्को के इस निर्णय के बाद ईरान के रक्षा मंत्रालय ने अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में शिकायत दर्ज कराके रूस से चार अरब डाॅलर के हर्जाने की मांग की थी। रूस के राष्ट्रपति ने इसी साल मार्च के महीने में एक आदेश जारी करके ईरान को S-300 बेचने पर लगी रोक समाप्त कर दी थी जिसके बाद यह प्रक्षेपास्त्रिक ढाल ईरान के हवाले करने का काम शुरू कर दिया गया था।  

इस्लामी देशों ने संयुक्त राष्ट्र संघ में इस्राईल द्वारा लगाई गई प्रदर्शनी पर गहरी आपत्ती जताई।

 इस्लामी देशों ने संयुक्त राष्ट्र संघ के मुख्यालय में ज़ायोनी शासन द्वारा लगाई गई प्रदर्शनी के उस पोर्ट्रेट पर आपत्ति जताई जिसमें अवैध अधिकृत बैतुल मुक़द्दस को ज़ायोनी शासन की राजधानी दर्शाया गया है।

संयुक्त राष्ट्र संघ में फ़िलिस्तीनी प्रतिनिधिमंडल ने बृहस्पतिवार को संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव बान की मून और महासभा के अध्यक्ष मोगेन्ज़ लिटकोफ़ को पत्र लिखकर ओआईसी के 57 सदस्य देशों की आपत्ति से अवगत करावाया और मांग की कि इस्रईल की इस प्रदर्शनी से उस तसवीर को फौरना हटाया जाना चाहिए।

फ़िलस्तीनी प्रतिनिधिमंडल ने अपने पत्र में कहा है कि एसी कोई भी चीज़ जो बैतुल मुक़द्दस पर ज़ायोनी शासन के दावे का समर्थन करे क़ानूनी, राजनैतिक और नैतिक रूप से ग़लत और अस्वीकार्य है।

फ़िलिस्तीनियों की मांग है कि वर्ष 1967 की सीमाओं के आधार पर फ़िलिस्तीन देश की स्थापना की जाए लेकिन इस्रईल लगातार अपनी अतिग्रहणकारी कार्यवाहियां जारी रखे हुए है।

ईरानी विदेश मंत्रालय ने नकबा दिवस के उपलक्ष्य में एक बयान जारी करके एक बार फिर अतिग्रहणकारी ज़ायोनी शासन के मुक़ाबले में फ़िलिस्तीनी राष्ट्र के समर्थन पर बल दिया है।

फ़िलिस्तीन पर ज़ायोनी शासन के अवैध क़ब्ज़े की बरसी या नकबा दिवस के उपलक्ष्य में जारी होने वाले बयान में ज़ायोनी काॅलोनी निर्माण जैसे इस शासन के अवैध व अमानवीय कार्यों के संसार में हो रहे भरपूर विरोध की सराहना करते हुए कहा गया है कि फ़िलिस्तीनी राष्ट्र के संबंध में ज़ायोनी शासन के षड्यंत्रों की समाप्ति के लिए विश्व स्तर पर कार्यवाही की जानी चाहिए। ईरानी विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा है कि इस्लामी जगत के हृदय और फ़िलिस्तीन की अवैध अधिकृत धरती में अवैध ज़ायोनी शासन का गठन, फ़िलिस्तीन के इतिहास के सबसे दुखद दिनों और इस राष्ट्र पर पड़ने वाली असंख्य मुसीबतों की याद दिलाता है।

बयान में कहा गया है कि फ़िलिस्तीनी क्षेत्रों पर अवैध क़ब्ज़ा जारी रखना, निर्दोष फ़िलिस्तीनियों की हत्या, बैतुल मुक़द्दस के यहूदीकरण की कोशिश, मस्जिदुल अक़सा का अनादर, पश्चिमी तट में यहूदी काॅलोनियों का निर्माण और ग़ज़्ज़ा की दस वर्षों से जारी घेराबंदी ज़ायोनी शासन के एेसे अपराध हैं जिन्होंने पूरी विश्व की घृणा को भड़का दिया है। ज्ञात रहे कि 68 साल पहले 14 मई 1948 को ज़ायोनियों ने अंग्रेज़ों की सहायता से फ़िलिस्तीन की धरती पर अवैध रूप से क़ब्ज़ा करके वहां ज़ायोनी शासन का गठन कर दिया था। इस धरती के दसियों लाख निवासी अब भी शरणार्थियों का जीवन बिता रहा हैं।

अमरीकी कांग्रेस के एक आयोग ने सचेत किया है कि चीन अपने नये मीज़इल सिस्टम से प्रशांत क्षेत्र में मौजूद गुआम सैन्‍य ठिकाने को ध्वस्त कर सकता है।

प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका-चीन आर्थिक एवं सुरक्षा समीक्षा आयोग ने इस सप्ताह जारी रिपोर्ट में डीएफ़-26 बैलेस्टिक मिसाइल के खतरों को लेकर सचेत किया। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि चीन की डीएफ़-26 मिसाइल से बीजिंग बहुत सशक्त हो गया है और अमेरिका के कई स्थान उसकी मारक क्षमता में आते हैं। इस मीज़ाइल की मारक क्षमता 5,500 किलोमीटर है। बीजिंग ने इस मीज़ाइल को पिछले वर्ष सितंबर में सैन्य शक्ति के प्रदर्शन के दौरान दुनिया के सामने पहली बार पेश किया था।

अमरीकी रक्षामंत्रालय ने चीन की सैन्य गतिविधियों पर अपनी वार्षिक रिपोर्ट कांग्रेस में पेश किया जिसमें चीन की बढ़ती शक्ति पर चिंता व्यक्त की गयी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन ने दक्षिणी चीन सागर में 3200 एकड़ जमीन पर फिर से कब्‍जा कर लिया है। चीन के रक्षामंत्रालय ने अमरीका की इस रिपोर्ट का कड़ाई से खंडन किया है।

ज्ञात रहे कि चीन के अतिरिक्त दक्षिण-पूर्वी एशिया के कई देश ताइवान, फ़िलीपींस, वियतनाम और मलेशिया भी इस क्षेत्र पर अपना अपना दावा करते हैं। दक्षिणी चीन सागर के बारे में कहा जा है कि यहां तेल और गैस के बड़े भंडार हैं। अमेरिका अनुसार, इस क्षेत्र में 213 अरब बैरल तेल और 900 ट्रिलियन घनमीटर प्राकृतिक गैस का भंडार है।   

कुवैत के एक सांसद ने ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता की सराहना करते कहा है कि आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई के विचार मुसलमानों में एकता का उत्तरदायी है।

फारस समाचार एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार कुवैती संसद के सदस्य अब्दुल हमीद दश्ती ने कहा कि क्षेत्र में ईरान और प्रतिरोध आंदोलनों का समर्थन न करने के बारे में सऊदी अरब के तमाम दबावों के बावजूद कुवैत के शासक, ईरान की इस्लामी क्रांति वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई को क्षेत्र का महान नेता समझते हैं। उन्होंने अपने ट्विटर पेज पर आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई को बहुत महान व्यक्ति का मालिक बताया। 

यह ऐसी स्थिति में है कि कुछ समय पहले कुवैत में सऊदी अरब के राजदूत अब्दुल अल-फ़ाएज़ ने लेबनान और फ़िलिस्तीन में इस्लामी प्रतिरोध आंदोलनों का समर्थन एवं सीरियाई राष्ट्र और वहां की सरकार से एकजुटता व्यक्त करने पर कुवैत के इस सांसद के ख़िलाफ़ अनुशासनात्मक कार्यवाही करने की धमकी दी थी।

उल्लेखनीय है कि कुवैत के सांसद अब्दुल हमीद दश्ती ने वहाबी विचारधारा को ख़त्म किए जाने की आवश्यकता पर बल दिया था जिसके बाद उन्हें कुवैत के एक और सांसद हमद अल-हिरशानी की हिंसा का सामना करना पड़ा था। अब्दुल हमीद दश्ती, मध्यपूर्व में अतिक्रमणकारियों और आतंकवादियों तथा वहाबी विचारधारा के विरुद्ध प्रतिरोध आंदोलनों का समर्थन करते रहे हैं और सऊदी नीतियों के ख़िलाफ़ खड़े होने के कारण सऊदी अधिकारियों और सऊदी प्रभावित संचार माध्यमों द्वारा हमेशा उनकी आवाज़ दबाए जाने की कोशिश की जाती रही है।   

अमरीका के टेक्सास राज्य के गिरिजाघरों ने प्रतीकात्मक रूप में इस्लाम का समर्थन किया है।

टेक्सास के ऑस्टिन नगर के गिरिजाघरों ने एेसे बैनर लगाए जिन पर लिखा था कि ईसाई, अपने मुसलमान पड़ोसियों के साथ खड़े हैं।

ऑस्टिन में एक चर्च के पादरी रियो जॅान एलफोर्ड ने पहले बैनर के अनावरण के अवसर पर कहा कि इन बैनरों से बहुत असर हुआ है और अब तक चौदह गिरिजाघरों में एेसे बैनर लगाए जा चुके हैं।

 

उन्होंने बताया कि ऑस्टिन के मुसलमानों ने इस पहल का स्वागत किया है।

उन्होंने कहा कि यह बैनर, अमरीका में राष्ट्रपति चुनाव के खत्म होने तक गिरिजाघरों और युनिवर्सिटियों के सामने लगे रहेंगे ताकि मुस्लिम छात्रों को यह महसूस हो कि उनका हम समर्थन करते हैं।

याद रहे अमरीका में इस्लामोफोबिया की लहर में ट्रंप के राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी बनने की संभावना के बाद तेज़ी आयी है।  

शनिवार को तेहरान के धार्मिक शिक्षा केन्द्रों के धर्मगुरूओं और धार्मिक छात्रों ने वरिष्ठ नेता से भेंट की।

इस भेंट में ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई ने आज की दुनिया में धर्मगुरूओं और तानाशाही के विरुद्ध आंदोलनों की भूमिका को स्पष्ट किया। वरिष्ठ नेता ने समाज में धर्म और इस संबंध में धर्मगुरूओं की भूमिका के संदर्भ में कहा कि अगर समाज की हर ज़रूरत सही ढंग से मौजूद हो परंतु समाज में धर्म न हो तो वह राष्ट्र लोक- परलोक में वास्तविक घाटा उठायेगा और उसे समस्याओं का सामना होगा और समाज को एक धार्मिक समाज में बदलने की भारी ज़िम्मेदारी धर्मगुरूओं और धार्मिक छात्रों की है।

वरिष्ठ नेता ने विशुद्ध इस्लामी शिक्षाओं को बयान करने को धार्मिक मार्ग दर्शन बताया। वरिष्ठ नेता ने धार्मिक संदेहों की वृद्धि में साइबर स्पेस के प्रभावों और युवाओं के ज़ेहनों को खराब करने के पीछे राजनीतिक कारणों की ओर संकेत किया और कहा कि यह क्षेत्र वास्तव में रणक्षेत्र है और धर्मगुरूओं एवं धार्मिक छात्रों को चाहिये कि वे ज्ञान के हथियार से लैस होकर भ्रष्ट विचारों का मुकाबला करें।

वरिष्ठ नेता ने रूढ़ीवादी, धार्मांधी, आध्यात्मिक सच्चाई से दूर और संकीर्णता से ग्रस्त इस्लाम को भ्रष्ट विचारों का प्रतीक बताते हुए कहा कि क़ैंची के दूसरे फल में अमरीकी इस्लाम है जो शुद्ध इस्लाम के मुकाबले में खड़ा है। उन्होंने पैग़म्बरे इस्लाम के आचरण पर आधारित शुद्ध इस्लाम की समझ को धर्मगुरुओं का महत्वपूर्ण दायित्व बताते हुए कहा कि ईश्वरीय पैग़म्बर इसी शुद्ध विचार को फैलाने के लिए आए थे। आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनई ने जनता के व्यवहारिक मार्गदर्शन को उनके वैचारिक मार्गदर्शन का पूरक बताया।

उन्होंने धार्मिक छात्रों पर ख़ूब पढ़ाई करने और आत्म निर्माण पर बल दिया। वरिष्ठ नेता ने कहा कि मध्यपूर्व और उत्तरी अफ्रीका की जनक्रांति का विफलता का एक महत्वपूर्ण कारण सही व एक धार्मिक नेतृत्व का न होना है। वरिष्ठ के अनुसार इन देशों में धर्म लोगों को सड़कों पर ले आया परंतु चूंकि इन देशों के धार्मिक तंत्र बिखरे हुए थे इसलिए वहां पर इस्लामी जागरुकता न तो जारी रह सकी और न ही आवश्क परिणाम तक पहुंच सकी परंतु इस्लामी गणतंत्र ईरान में धर्मगुरूओं और जनता की उपस्थिति ने क्रांति के जारी रहने को संभव बना दिया है।