
رضوی
12 दिन के युद्ध में शहीद हुए ईरानी बच्चों की यादगार तस्वीरें
12 दिन के युद्ध के दौरान शहीद हुए नन्हे ईरानी और मासूम बच्चों की तस्वीरें दिल दहला देती हैं। ये छोटे-छोटे फ़रिश्ते, जिन्होंने अपनी जान गंवाकर वतन की हिफ़ाज़त की, आज भी ईरानी जनता के दिलों में जिंदा हैं।
ये तस्वीरें न सिर्फ उनकी याद दिलाती हैं, बल्कि उस बर्बरता की भी गवाही देती हैं जिसने इन मासूमों को हमसे छीन लिया। ईरान इन शहीद बच्चों के सपनों को हमेशा संजोकर रखेगा।
तेहरान के ज़मान संग्रहालय में किडल कैफ़े में इस्राइली और अमेरिकी शासन के खिलाफ 12 दिन के युद्ध में शहीद हुए बच्चों की स्मृति में एक कार्यक्रम आयोजित किया गया।
रिपोर्ट के अनुसार अंतर्राष्ट्रीय समर्थन के साये में इस्राइल ने गैर-सैनिकों को निशाना न बनाने के दावों के बावजूद ईरानी भूमि पर व्यापक हमले किए और एक बार फिर बच्चों के हत्यारे के रूप में अपनी वास्तविक पहचान दिखाई।
ये बच्चे न तो सैनिक थे, न राजनेता, न परमाणु वैज्ञानिक। उनके पास अपने भविष्य के लिए कई सपने थे - ऐसे सपने जो अब कभी सुबह का सूरज नहीं देख पाएंगे।
हर युद्ध और सैन्य आक्रमण में मारे गए बच्चों की तस्वीरें मानव इतिहास के सबसे काले पन्नों को दर्शाती हैं। फर्क़ नहीं पड़ता कि ये बच्चे ग़ाज़ा में मारे गए हों या यूक्रेन में, तेहरान के दिल में हों या दुनिया के किसी अन्य कोने में - उनकी मौत की तस्वीरें हर जागृत विवेक को झकझोर देती हैं।
तेहरान की सुबह की खामोशी को भीषण विस्फोटों ने तोड़ दिया और कुछ ही घंटों बाद शहीद बच्चों की तस्वीरों ने लोगों को गहरे सदमे और अवसाद में डाल दिया।
संयुक्त राष्ट्र में ईरान के राजदूत ने सुरक्षा परिषद की बैठक में, जो इस्राइली शासन द्वारा ईरान पर आक्रमण के संबंध में आयोजित की गई थी, शहीद हुए ईरानी बच्चों की तस्वीरों को पेश करते हुए कहा कि ये तस्वीरें इस्राइल के उस झूठ का सबूत हैं जिसमें वह केवल सैन्य लक्ष्यों को निशाना बनाने का दावा करता है।
ऑशविट्ज़ शिविरों में अपनी मजबूरी की दास्ताँ सुनाने वाला ज़ायोनी शासन, अपने युद्धों में बच्चों को सबसे पहले और सबसे असहाय शिकार बनाता है। यह कड़वी सच्चाई न केवल विश्व राजनीति के इतिहास पर एक कलंक है, बल्कि आज की दुनिया में मानवता की गहराई को मापने का एक आईना भी है।
अभी भी कई शहीदों के शवों की पहचान नहीं हो पाई है। यह घिनौना अपराध एक बार फिर ज़ायोनी शासन का असली चेहरा दुनिया के सामने लाया है।
इमाम हुसैन (ा.स) की शहादत के बाद
इमाम हुसैन (अ) की शहादत: हज़रत अली असग़र की शहादत के बाद अल्लाह का एक पाक बंदा, पैग़म्बरे इस्लाम (स) का चहीता नवासा, हज़रत अली का शेर दिल बेटा, जनाबे फातिमा की गोद का पाला और हज़रत हसन के बाज़ू की ताक़त यानी हुसैन-ए-मज़लूम कर्बला के मैदान में तन्हा और अकेला खड़ा था।
इस आलम में भी चेहरे पर नूर और सूखे होंटों पर मुस्कराहट थी, खुश्क ज़ुबान में छाले पड़े होने के बावजूद दुआएँ थीं। थकी थकी पाक आँखों में अल्लाह का शुक्र था। 57 साल की उम्र में 71 अज़ीज़ों और साथियों की लाशें उठाने के बाद भी क़दमों का ठहराव कहता था की अल्लाह का यह बंदा कभी हार नहीं सकता। इमाम हुसैन (अ) शहादत के लिए तैयार हुए, खेमे में आये, अपनी छोटी बहनों जनाबे जैनब और जनाबे उम्मे कुलसूम को गले लगाया और कहा कि वह तो इम्तिहान की आखिरी मंज़िल पर हैं और इस मंज़िल से भी वह आसानी से गुज़र जाएँगे लेकिन अभी उनके परिवार वालों को बहुत मुश्किल मंज़िलों से गुज़रना है। उसके बाद इमाम उस खेमे में गए जहाँ उनके सब से बड़े बेटे अली इब्नुल हुसैन(जिन्हें इमाम ज़ैनुल आबिदीन कहा जाता है)थे। इमाम तेज़ बुखार में बेहोशी के आलम में लेटे थे।
इमाम ने बीमार बेटे का कन्धा हिलाया और बताया की अंतिम कुर्बानी देने के लिए वह मैदान में जा रहें हैं। इस पर इमाम ज़ैनुल आबिदीन (अ) ने पूछा कि “सारे मददगार, नासिर और अज़ीज़ कहाँ गए?”। इस पर इमाम ने कहा कि सब अपनी जान लुटा चुके हैं। तब इमाम ज़ैनुल आबिदीन ने कहा कि अभी मै बाक़ी हूँ, में जिहाद करूँगा। इस पर इमाम हुसैन (अ) बोले कि बीमारों को जिहाद की अनुमति नहीं है और तुम्हें भी जिहाद की कड़ी मंजिलों से गुज़ारना है मगर तुम्हारा जिहाद दूसरी तरह का है।
इमाम खैमे से रुखसत हुए और मैदान में आये। ऐसे हाल में जब की कोई मददगार और साथी नहीं था और न ही विजय प्राप्त करने की कोई उम्मीद थी फिर भी इमाम हुसैन (अ) बढ़ बढ़ कर हमले कर रहे थे। वह शेर की तरह झपट रहे थे और यज़ीदी फ़ौज के किराए के टट्टू अपनी जान बचाने की पनाह मांग रहे थे। किसी में इतनी हिम्मत नहीं थी की वह अकेले बढ़ कर इमाम हुसैन (अ) पर हमला करता। बड़े बड़े सूरमा दूर खड़े हो कर जान बचा कर भागने वालों का तमाशा देख रहे थे। इस हालत को देख कर यज़ीदी फ़ौज का कमांडर शिम्र चिल्लाया कि “खड़े हुए क्या देख रहे हो? इन्हें क़त्ल कर दो, खुदा करे तुम्हारी माएँ तुम्हें रोएँ, तुम्हे इसका इनाम मिलेगा”। इस के बाद सारी फ़ौज ने मिल कर चारों तरफ से हमला कर दिया। हर तरफ से तलवारों, तीरों और नैज़ों की बारिश होने लगी आखिर में सैंकड़ों ज़ख्म खाकर इमाम हुसैन (अ) घोड़े की पीठ से गिर पड़े।
इमाम जैसे ही मैदान-ए-जंग में गिरे, इमाम का क़ातिल उनका सर काटने के लिए बढ़ा। तभी खैमे से इमाम हसन का ग्यारह साल का बच्चा अब्दुल्लाह बिन हसन अपने चाचा को बचाने के लिए बढ़ा और अपने दोनों हाथ फैला दिए लेकिन कर्बला में आने वाले कातिलों के लिए बच्चों और औरतों का ख्याल करना शायद पाप था। इसलिए इस बच्चे का भी वही हश्र हुआ जो इससे पहले मैदान में आने वाले मासूमों का हुआ था। अब्दुल्लाह बिन हसन के पहले हाथ काटे गए और बाद में जब यह बच्चा इमाम हुसैन (अ) के सीने से लिपट गया तो बच्चों की जान लेने में माहिर तीर अंदाज़ हुर्मलाह ने एक बार फिर अपना ज़लील हुनर दिखाया और इस मासूम बच्चे ने इमाम हुसैन (अ) (अ) की आग़ोश में ही दम तोड़ दिया।
फिर सैंकड़ों ज़ख्मों से घायल इमाम हुसैन (अ) का सर उनके जिस्म से जुदा करने के लिए शिम्र आगे बढ़ा और इमाम हुसैन (अ) को क़त्ल करके उसने मानवता का चिराग़ गुल कर दिया। इमाम हुसैन (अ) तो शहीद हो गए लेकिन क़यामत तक यह बात अपने खून से लिख गए कि जिहाद किसी पर हमला करने का नाम नहीं है बल्कि अपनी जान दे कर इंसानियत की हिफाज़त करने का नाम है।
शहादत के बाद:
इमाम हुसैन की शहादत के बाद यज़ीद की सेनाओं ने अमानवीय, क्रूर और बेरहम आदतों के तहत इमाम हुसैन की लाश पर घोड़े दौड़ाये। इमाम हुसैन के खेमों में आग लगा दी गई। उनके परिवार को डराने और आतंकित करने के लिए छोटे छोटे बच्चों के साथ मार पीट की गई। पैग़म्बरे इस्लाम (स) के पवित्र घराने की औरतों को क़ैदी बनाया गया, उनका सारा सामन लूट लिया गया।
इसके बाद इमाम हुसैन और उनके साथ शहीद होने वाले अज़ीज़ों और साथियों के परिवार वालों को ज़ंजीरों और रस्सियों में जकड़ कर गिरफ्तार किया गया। इस तरह इन पवित्र लोगों को अपमानित करने का सिलसिला शुरू हुआ। असल में यह उनका अपमान नहीं था, खुद यज़ीद की हार का ऐलान था।
इमाम हुसैन के परिवार को क़ैद करके पहले तो कूफ़े की गली कूचों में घुमाया गया और बाद में उन्हें कूफ़े के सरदार इब्ने ज़ियाद(इब्ने ज़ियाद यज़ीद की फ़ौज का एक सरदार था जिसे यज़ीद ने कूफ़े का गवर्नर बनाया था) के दरबार में पेश किया गया, जहाँ ख़ुशी की महफ़िलें सजाई गईं और और जीत का जश्न मनाया गया। जब इमाम हुसैन के परिवार वालों को दरबार में पेश किया गया तो इब्ने ज़ियाद ने जनाबे जैनब की तरफ इशारा करके पूछा यह औरत कौन है? तो उम्र सअद ने कहा की “यह हुसैन की बहन जैनब है”। इस पर इब्ने ज़ियाद ने कहा कि “ज़ैनब!, एक हुसैन कि ना-फ़रमानी से सारा खानदान तहस नहस हो गया। तुमने देखा किस तरह खुदा ने तुम को तुम्हारे कर्मों कि सज़ा दी”। इस पर ज़ैनब ने कहा कि “हुसैन ने जो कुछ किया खुदा और उसके हुक्म पर किया, ज़िन्दगी हुसैन के क़दमों पर कुर्बान हो रही थी तब भी तेरा सेनापति शिम्र कोशिश कर रहा था कि हुसैन तेरे शासक यज़ीद को मान्यता दे दें। अगर हुसैन यज़ीद कि बैयत कर लेते तो यह इस्लाम के दामन पर एक दाग़ होता जो किसी के मिटाए न मिटता। हुसैन ने हक़ कि खातिर मुस्कुराते हुए अपने भरे घर को क़ुर्बान कर दिया। मगर तूने और तेरे साथियों ने बनू उमय्या के दामन पर ऐसा दाग़ लगाया जिसको मुसलमान क़यामत तक धो नहीं सकते।”
उसके बाद इमाम हुसैन की बहनों, बेटियों, विधवाओं और यतीम बच्चों को सीरिया कि राजधानी दमिश्क़, यज़ीद के दरबार में ले जाया गया। कर्बला से कूफ़े और कूफ़े से दमिश्क़ के रास्ते में इमाम हुसैन कि बहन जनाबे ज़ैनब ने रास्तों के दोनों तरफ खड़े लोगों को संबोधित करते हुए अपने भाई की मज़लूमी का ज़िक्र इस अंदाज़ में किया कि सारे अरब में क्रांति कि चिंगारियां फूटने लगीं।
यज़ीद के दरबार में पहुँचने पर सैंकड़ों दरबारियों की मौजूदगी में जब हुसैनी काफ़िले को पेश किया गया तो यज़ीद ने बनी उमय्या के मान सम्मान को फिर से बहाल करने और जंग-ए-बद्र में हज़रत अली के हाथों मारे जाने वाले अपने काफ़िर पूर्वजों की प्रशंसा की और कहा की आज अगर जंग-ए-बद्र में मरने वाले होते तो देखते कि किस तरह मैंने इन्तिक़ाम लिया। इसके बाद यज़ीद ने इमाम ज़ैनुल आबिदीन से कहा कि “हुसैन कि ख्वाहिश थी कि मेरी हुकूमत खत्म कर दे लेकिन मैं जिंदा हूँ और उसका सर मेरे सामने है।” इस पर जनाबे ज़ैनब ने यज़ीद को टोकते हुए कहा कि तुझ को तो खुछ दिन बाद मौत भी आ जायेगी मगर शैतान आज तक जिंदा है। यह हमारे इम्तिहान कि घड़ियाँ थीं जो ख़तम हो चुकीं। तू जिस खुदा के नाम ले रहा है क्या उस के रसूल(पैग़म्बर) की औलाद पर इतने ज़ुल्म करने के बाद भी तू अपना मुंह उसको दिखा सकेगा”।
इधर इमाम हुसैन के परिवार वाले क़ैद मैं थे और दूसरी तरफ क्रांति की चिंगारियाँ फूट रही थी और अरब के विभिन्न शहरों मैं यज़ीद के शासन के ख़िलाफ़ आवाज़ें बुलंद हो रही थी। इन सब बातों से परेशान हो कर यज़ीद के हरकारों ने पैंतरा बदल कर यह कहना शुरू कर दिया था की इमाम हुसैन का क़त्ल कूफ़ियों ने बिना यज़ीद की अनुमति के कर दिया। इन लोगों ने यह भी कहना शुरू कर दिया कि इमाम हुसैन तो यज़ीद के पास जाकर अपने मतभेद दूर करना चाहते थे या मदीने मैं लौट कर चैन की ज़िन्दगी गुज़ारना चाहते थे। लेकिन सच तो यह है की इमाम हुसैन कर्बला के लिये बने थे और कर्बला की ज़मीन इमाम हुसैन के लिए बनी थी। इमाम हुसैन के पास दो ही रास्ते थे। पहला तो यह कि वह यज़ीद कि बैयत करके अपनी जान बचा लें और इस्लाम को अपनी आँखों के सामने दम तोड़ता देखें। दूसरा रास्ता वही था कि इमाम हुसैन अपनी, अपने बच्चों और अपने साथियों कि जान क़ुर्बान करके इस्लाम को बचा लें। ज़ाहिर है हुसैन अपने लिए चंद दिनों कि ज़िल्लत भरी ज़िन्दगी तलब कर ही नहीं सकते थे। उन्हें तो अल्लाह ने बस इस्लाम को बचाने के लिए ही भेजा था और वह इस मैं पूरी तरह कामयाब रहे।
क्रांति की आग:
कर्बला के शहीदों का लुटा काफ़िला जब दमिश्क से रिहाई पा कर मदीने वापस आया तो यहाँ क्रांति की चिंगारियाँ आग में बदल गईं और ग़ुस्से में बिफरे लोगों ने यज़ीद के गवर्नर उस्मान बिन मोहम्मद को हटा कर अब्दुल्लाह बिन हन्ज़ला को अपना शासक बना लिया। यज़ीद ने इस क्रांति को ख़तम करने के लिए एक बहुत बड़े ज़ालिम मुस्लिम बिन अक़बा को मदीने की ओर भेजा।
मदीना वासियों ने अक़बा की सेना का मदीने से बाहर हर्रा नामक स्थान पर मुकाबला किया। इस जंग में दस हज़ार मुसलमान क़त्ल कर दिए गए ओर सात सो ऐसे लोग भी क़त्ल किये गए जो क़ुरान के हाफ़िज़ थे(जिन लोगों को पूरा क़ुरान बिना देखे याद हो, उन्हें हाफ़िज़ कहा जाता है)। मदीने के लोग यज़ीद की सेना के सामने ठहर न सके और यज़ीदी सेनाओं ने मदीने में घुस कर ऐसे कुकर्म किये कि कभी काफ़िर भी न कर सके थे। सारा शहर लूट लिया गया। हज़ारों मुसलमान लड़कियों के साथ बलात्कार किया गया, जिसके नतीजे में एक हज़ार ऐसे बच्चे पैदा हुए जिनकी माताओं के साथ बलात्कार किया गया था। मदीने के सारे शहरी इन ज़ुल्मों की वजह से फिर से यज़ीद को अपना राजा मानने लगे। इमाम ज़ैनुल आबिदीन इस हमले के दौरान मदीने के पास के एक देहात में रह रहे थे। इस मौके पर एक बार फिर इमाम हुसैन के परिवार ने एक ऐसी मिसाल पेश की कि कोई इंसान पेश नहीं कर सकता।
जब मदीने वालों ने अपना शिकंजा कसा तो उसमें मर-वान की गर्दन भी फंस गई।(मर-वान वही सरदार था जिसने मदीने मे वलीद से कहा था कि हुसैन से इसी वक़्त बैयत ले ले या उन्हें क़त्ल कर दे)। मर-वान ने इमाम ज़ैनुल-आबिदीन से पनाह मांगी और कहा कि सारा मदीना मेरे खिलाफ हो गया है, ऐसे में, मैं अपने बच्चों के लिए खतरा महसूस करता हूँ तो इमाम ने कहा की तू अपने बच्चों को मेरे गाँव भेज दे मैं उनकी हिफाज़त का ज़िम्मेदार हूँ। इस तरह इमाम ने साबित कर दिया कि बच्चे चाहे ज़ालिम ही के क्यों न हों, पनाह दिए जाने के काबिल हैं।
मदीने को बर्बाद करने के बाद मुस्लिम बिन अक़बा मक्के की तरफ़ बढ़ा। मक्के में अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर की हुकूमत थी। लेकिन अक़बा को वक़्त ने मोहलत नहीं दी और वह मक्का के रास्ते में ही मर गया। उस की जगह हसीन बिन नुमैर ने ली और चालीस दिन तक मक्के को घेरे रखा। उसने अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर को मात देने की कोशिश में काबे पर भी आग बरसाई गई। लेकिन जुबैर को गिरफ्तार नहीं कर सका। इस बीच यज़ीद के मरने की खबर आई और मक्के में हर तरफ़ जश्न का माहोल हो गया और शहर का नक्शा ही बदल गया। इब्ने जुबैर को विजय प्राप्त हुई और हसीन बिन नुमैर को भाग कर मदीने जाना पड़ा।
यज़ीद की मौत:
यज़ीद की मौत को लेकर इतिहासकारों में अलग अलग राय है। कुछ लोगों का मानना है कि एक दिन यज़ीद महल से शिकार खेलने निकला और फिर जंगल में शिकार का पीछा करते हुए अपने साथियों से अलग हो गया और रास्ता भटक गया और बाद में खुद ही जंगली जानवरों का शिकार बन गया। लेकिन कुछ इतिहासकार मानते हैं 38 साल कि उम्र में क़ोलंज के दर्द(पेट में उठने वाला ऐसा दर्द जिसमें पीड़ित हाथ पैर पटकता रहता है) का शिकार हुआ और उसी ने उसकी जान ली।
जब यज़ीद को अपनी मौत का यकीन हो गया तो उस ने अपने बेटे मुआविया बिन यज़ीद को अपने पास बुलाया और हुकूमत के बारे में कुछ अंतिम इच्छाएँ बतानी चाहीं। अभी यज़ीद ने बात शुरू ही की थी कि उसके बेटे ने एक चीख मार कर कहा “खुदा मुझे उस सल्तनत से दूर रखे जिस कि बुनियाद रसूल के नवासे के खून पर रखी गई हो”। यज़ीद अपने बेटे के यह अलफ़ाज़ सुन कर बहुत तड़पा मगर मुविया बिन यज़ीद लानत भेज कर चला गया। लोगों ने उसे बहुत समझाया की तेरे इनकार से बनू उमय्या की सल्तनत का ख़ात्मा हो जाएगा मगर वह राज़ी नही हुआ। यज़ीद तीन दिन तक तेज़ दर्द में हाथ पाँव पटक पटक कर इस तरह तड़पता रहा कि अगर एक बूँद पानी भी टपकाया जाता तो वह तीर की तरह उसके हलक़ में चुभता था। यज़ीद भूखा प्यासा तड़प तड़प कर इस दुनिया से उठ गया तो बनू उमय्या के तरफ़दारों ने ज़बरदस्ती मुआविया बिन यज़ीद को गद्दी पर बिठा दिया। लेकिन वह रो कर और चीख़ कर भागा और घर में जाकर ऐसा घुसा की फिर बाहर न निकला और हुसैन हुसैन के नारे लगाता हुआ दुनिया से रुखसत हो गया।
कुछ लोगों का मानना है कि 21 साल के इस युवक को बनू उमय्या के लोगों ने ही क़त्ल कर दिया क्योंकि गद्दी छोड़ने से पहले उसने साफ़ साफ़ कह दिया था कि उस के बाप और दादा दोनों ने ही सत्ता ग़लत तरीकों से हथियाई थी और इस सत्ता के असली हक़दार हज़रत अली और उनके बेटे थे। मुआविया बिन यज़ीद की मौत के बाद मर-वान ने सत्ता पर क़ब्ज़ा कर लिया और इस बीच उबैद उल्लाह बिन ज़ियाद ने इराक पर क़ब्ज़ा कर लिया और मुल्क में पूरी तरह अराजकता फ़ैल गई।
यज़ीद की मौत की खबर सुन कर मक्के का घेराव कर रहे यजीदी कमांडर हसीन बिन नुमैर ने मदीने की ओर रुख किया और इसी आलम में उसका सारा अनाज और गल्ला ख़तम हो गया। भटकते भटकते मदने के करीब एक गाँव में इमाम हुसैन के बेटे हज़रत जैनुल आबिदीन मिले तो इमाम ने भूख से बेहाल अपने इस दुश्मन की जान बचाई। इमाम ने उसे खाना और गल्ला भी दिया और पैसे भी नहीं लिए। इस बात से प्रभावित हो कर हसीन बिन नुमैर ने यज़ीद की मौत के बाद इमाम से कहा की वह खलीफ़ा बन जाएँ लेकिन इमाम ने इनकार कर दिया और यह साबित कर दिया की हज़रत अली की संतान की लड़ाई या जिहाद खिलाफत के लिए नहीं बल्कि दुनिया को यह बताने के लिए थी कि इस्लाम ज़ालिमों का मज़हब नहीं बल्कि मजलूमों का मज़हब है।
ख़ून के बदले का अभियान:
मक्के, मदीने के बाद कूफ़े में भी क्रांति की चिंगारियां भड़कने लगीं। वहाँ पहले एक दल तव्वाबीन(तौबा करने वालों) के नाम से उठा। इस दल के दिल में यह कसक थी कि इन्हीं लोगों ने इमाम हुसैन को कूफ़ा आने का न्योता दिया। लेकिन जब इमाम हुसैन कूफ़ा आये तो इन लोगों ने यज़ीद के डर और खौफ़ के आगे घुटने टेक दिए। और जिन 18 हज़ार लोगों ने इमाम हुसैन का साथ देने कि कसम खायी थी, वह या तो यज़ीद द्वारा मार दिए गए थे या जेल में डाल दिए गए थे। तव्वाबीन, खूने इमाम हुसैन का बदला लेने के लिए उठे लेकिन शाम(सीरिया) की सैनिक शक्ति का मुकाबला नहीं कर सके।
इमाम हुसैन के क़त्ल का बदला लेने में सिर्फ़ हज़रत मुख़्तार बिन अबी उबैदा सक़फ़ी को कामयाबी मिली। जब इमाम हुसैन शहीद किए गए तो मुख्तार जेल में थे। इमाम हुसैन की शहादत के बाद हज़रत मुख़्तार को अब्दुल्लाह बिन उमर कि सिफ़ारिश से रिहाई मिली। अब्दुल्लाह बिन उमर, मुख़्तार के बहनोई थे और शुरू शुरू में यज़ीद की बैयत न करने वालों में आगे आगे थे लेकिन बाद में वह बनी उमय्या की ताक़त से दब गए।
मुख़्तार ने रिहाई मिलते ही इमाम हुसैन के क़ातिलों से बदला लेने की योजना बनाना शुरू कर दी। उन्होंने हज़रत अली के सब से क़रीबी साथी मालिके अशतर के बेटे हज़रत इब्राहीम बिन मालिके अशतर से बात की। उन्होंने इस अभियान में मुख्तार का हर तरह से साथ देने का वायदा किया। उन दिनों कूफ़े पर ज़ुबैर का क़ब्ज़ा था और इन्तिक़ामे खूने हुसैन का काम शुरू करने के लिए यह ज़रूरी था कि कूफ़े को एक आज़ाद मुल्क घोषित किया जाए। कूफ़े को क्रांति का केंद्र बनाना इस लिए भी ज़रूरी था कि इमाम हुसैन के ज़्यादातर क़ातिल कूफ़े में ही मौजूद थे और अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर सत्ता पाने के बाद इन्तिक़ाम-ए-खूने हुसैन के उस नारे को भूल चुके थे जिसके सहारे उन्होंने सत्ता हासिल की थी। मुख्तार और इब्राहीम ने अपना अभियान कूफ़े से शुरू किया और इब्ने ज़ुबैर के कूफ़ा के गवर्नर अब्दुल्लाह बिन मुतीअ को कूफ़ा छोड़ कर भागना पड़ा।
इस के बाद हज़रत मुख़्तार और हज़रत इब्राहीम की फ़ौज ने इमाम हुसैन और उनके परिवार वालों को क़त्ल करने वाले क़ातिलों को चुन चुन कर मार डाला। इमाम हुसैन के क़त्ल का बदला लेने के लिए जो जो लोग भी उठे उन में हज़रत मुख्तार और इब्राहीम बिन मालिके अशतर का अभियान ही अपने रास्ते से नहीं हटा। इस अभियान की ख़ास बात यह थी कि इन लोगों ने सिर्फ़ क़ातिलों से बदला लिया, किसी बेगुनाह का खून नहीं बहाया।
उधर मदीने में अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर पैग़म्बरे इस्लाम (स) के परिवार वालों से नाराज़ हो चुके थे। यहाँ तक कि इब्ने ज़ुबैर ने इमाम हुसैन के छोटे भाई मोहम्मद-ए-हनफ़िया और पैग़म्बरे इस्लाम (स) के चचेरे भाई इब्ने अब्बास को एक घर में बंद करके ज़िन्दा जलाने की कोशिश भी कि लेकिन इसी बीच हज़रत मुख़्तार का अभियान शुरू हो गया और उन दोनों कि जान बच गई।
हज़रत मुख्तार और इब्ने ज़ुबैर की फ़ौजों में टकराव हुआ और मुख़्तार हार गए लेकिन तब तक वह क़ातिलाने इमाम हुसैन को पूरी तरह सजा दे चुके थे।
कर्बला से हमने क्या सीखा ?
असत्य पे सत्य की जीत की पूरी दुनिया में पहचान बन चुके हुसैन पैगंम्बर ऐ इस्लाम हज़रत मुहम्मद के नाती थे और मुसलमानो के खलीफा हज़रत अली के बेटे थे | इमाम हुसैन की माँ हज़रत मुहम्मद की इकलौती बेटी फातिमा बिन्ते मुहम्मद थीं | इस घराने ने हमेशा दुनिया के हर मसले का हल शांतिपूर्वक तलाशने की कोशिश की यहां तक की लोग जब इनपे ज़ुल्म करते तो यह सब्र करते | इनका पैग़ाम था समाज में जहां रहते हो वहाँ हक़ का साथ दो , इन्साफ से काम लो और जो अपने लिए पसंद करते हो वही दूसरों के लिए पसंद करो और दुनिया के हर धर्म के इंसानो के साथ नेकी करो मानवता का त्याग कभी मत करना |
जैसा की दनिया में होता आया है सत्य का परचम जहां लहराया की असत्य की राह पे चलने वालों को तकलीफ होते लगती है क्यों की उनको उनका वजूद ख़त्म होता दिखाई देने लगता है | ऐसा ही उस दौर के असत्य की राह पे चलने वालों लगता था और वे हज़रत मुहम्मद के इस घराने पे ज़ुल्म किया करते थे लोगों को उनके लिए अफवाहों और झूटी कहानियों से भ्रमित किया करते थे लेकिन इस घराने ने कभी सत्य का हक़ का और सब्र का साथ नहीं छोड़ा |
पैगंम्बर ऐ इस्लाम हज़रत मुहम्मद (स ) की वफ़ात के बाद से इस घराने पे ज़ुल्म बढ़ते गए | हज़रत अली के इल्म के आगे कोई नहीं था लेकिन मिम्बर ऐ रसूल पे लोगों ने साज़िश फरेब से किसी और को बिठा दिया | हज़रत अली की नमाज़ के आगे क्या किसी की नमाज़ थी लेकिन उनके खिलाफ अफवाह फैलाई और उन्हें बेनमाजी क़रार दिया गया और यह अफवाह इतनी फैली की जब मस्जिद ऐ कूफ़ा में सजदे में शहादत पायी तो लोग पूछते थे अरे अली मस्जिद में क्या कर रहे थे ?
यह ज़ुल्म का सिलसिला हज़रत अली के बाद इमाम हुसैन के साथ बढ़ता चला गया और इंतेहा यह हो गयी की शराबी यज़ीद ज़ालिम यज़ीद खलीफा बन गया और कमाल तो यह की मुसलमानो ने बग़ावत भी न की जबकि सब जानते थे हक़ क़ुरआन है हक़ हुसैन के साथ है |
आज भी यह सिलसिला जारी है | हक़ का साथ देने वाला , इन्साफ करने वाला, , आलिम और जाहिल का फ़र्क़ करने वाला , सब्र करने वाला , हराम माल से परहेज़ करने वाला , अफवाहों को फैलाने से परहेज़ करने वाला , झूटी तोहमतें न लगाने वाला, औरतों की इज़्ज़त करने वाला , दूसरों के अकेले में किये गए गुनाहों को आम न करने वाला शिया ने अली , हुसैनी कहलाता और जो कोई भी इसके खिलाफ चले वो खुद को चाहे कुछ भी कहे हुसैनी नहीं हो सकता |
अफ़सोस का मक़ाम है की कर्बला में इमाम हुसैन की शहादत के बाद आज भी मजमा ऐ आम उस दौर की तरह अपना दुनियावी फायदा देख के लोगों का साथ देता , इज़्ज़त करता नज़र आता है जबकि देना चाहिए उसका साथ जो क़ुरआन के साथ हो जो हुसैन के नक़्शे क़दम पे चलने की कोशिश करता हो जो इंसाफ पसंद हो अब ऐसे में हमारे वक़्त ऐ इमाम का ज़हूर हो जाय तो क्या होगा ? खुदा न करे हमारी आदत हक़ पसंदगी की न रही खौफ से लालच से हक़ का साथ न देने की आदत रही तो कहीं फिर एक कर्बला ना हो जाय की अलअजल की दुआ कर के इमाम को बुलाने वाले कोफ़ियों की तरह साथ न छोड़ दें?
अपने किरदार को हुसैनी किरदार बनाएं और यक़ीन रखें ज़हूर ऐ इमाम ऐ वक़्त जल्द से जल्द होगा और कर्बला के शहीदों को इन्साफ मिलेगा और हमें ज़ुल्म से निजात |
ईंट का जवाब पत्थर से दिया जाएगा।अंसारुल्लाह यमन
यमनी संगठन अंसारुल्लाह के नेता मोहम्मद अलबख़ीती ने इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और उनके मंत्रिमंडल को चेतावनी दी है कि किसी भी प्रकार की आक्रामकता की स्थिति में यमन उन्हें करारा जवाब देगा।
यमनी संगठन अंसारुल्लाह के नेता मोहम्मद अलबख़ीती ने इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और उनके मंत्रिमंडल को चेतावनी दी है कि किसी भी प्रकार की आक्रामकता की स्थिति में यमन उन्हें करारा जवाब देगा।
दूसरी ओर आज सुबह यमन द्वारा दागे गए एक मिसाइल ने एक बार फिर लाखों सियोनिस्टों को शरण लेने के लिए भागने पर मजबूर कर दिया। अधिकृत बैतुल मुक़द्दस (यरुशलम) और तेल अवीव के विस्तृत क्षेत्रों में खतरे के सायरन बजने लगे।इस हमले के कारण बेन गुरियन हवाई अड्डे की गतिविधियाँ भी कुछ देर के लिए निलंबित हो गईं।
इजरायली सेना के प्रवक्ता ने दावा किया है कि मिसाइल को रास्ते में ही रोककर नष्ट कर दिया गया था, हालाँकि, यमनी स्रोतों द्वारा अभी तक इस दावे की पुष्टि नहीं की गई है।
ईरान ने कितने इज़राइली ड्रोन मार गिराए?
एक इन्टरव्यू में, इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कोर के पूर्व कमांडर ने ज़ायोनी शासन और ईरान के बीच हाल ही में हुए बारह दिवसीय युद्ध के विभिन्न पहलुओं और अमेरिका और ज़ायोनी शासन के मीडिया दावों पर रोशनी डाली।
रिवोल्यूशनरी गार्ड्स के पूर्व कमांडर मेजर जनरल मोहसिन रेज़ाई ने मंगलवार शाम को एक साक्षात्कार में कहा: हाल ही में हुए बारह दिवसीय युद्ध में, इज़राइल और अमेरिका, ईरान से हार गए।
श्री मोहसिन रेज़ाई ने वाशिंगटन और तेल अवीव द्वारा हाल के घटनाक्रमों का दुष्प्रचार करने का उल्लेख करते हुए कहा: इस दुष्प्रचार के कई लक्ष्य हैं: पहला, जनता की राय को भटकाना और ईरान की जीत पर सवाल उठाने वाली कहानियां बताना।
"दूसरा लक्ष्य, ऐसा लगता है कि जब ट्रम्प ने कहा कि परमाणु मामला खत्म हो गया है, तो उनका लक्ष्य ईरान को धोखा देना था, जैसी चाल उन्होंने बातचीत के दौरान चली थी।
उन्होंने आगे कहा: अब हमें देखना होगा कि वास्तव में ये जीते हैं या नहीं, हम किस दृष्टिकोण से इज़राइल की उपलब्धियों और लागतों की जांच कर सकते हैं।
इज़रायल के वित्त मंत्रालय के अनुसार, इन 12 दिनों में युद्ध पर लगभग 20 बिलियन डॉलर का खर्च आया।
अमेरिकी THAAD मिसाइलों के दो साल के उत्पादन के बराबर उत्पादन इन 12 दिनों में खर्च हो गया। प्रत्येक मिसाइल बहुत महंगी है। इसका मतलब है कि उन्होंने दो साल के उत्पादन के बराबर मिसाइल को 12 दिनों में ही आसमान में दाग़ दिया।
रज़ाई ने ईरान की सैन्य उपलब्धियों का उल्लेख करते हुए स्पष्ट किया:
हमने लगभग 80 ड्रोन मार गिराए हैं, जिनमें से 32 ड्रोन के मलबे अभी हमारे पास हैं। इनमें हरमीस और हेरॉन जैसे अत्याधुनिक ड्रोन शामिल हैं। हमारे रडारों ने 80 सफल हमले दर्ज किए हैं। साथ ही, इस्राइल की मानवीय क्षति और सुरक्षा व आर्थिक केंद्रों को भारी नुकसान पहुंचा है। अब देखना यह है कि इतनी भारी कीमत चुकाकर उन्हें क्या हासिल हुआ।
उन्होंने इस्राइल की सुरक्षा नीतियों की जड़ों पर रोशनी डालते हुए कहा:
इस्राइल का अस्तित्व पूरी तरह 'पूर्ण सुरक्षा' की अवधारणा पर टिका है। उन्होंने दुनिया भर से लोगों को बसाकर यह विश्वास दिलाया कि यहां उन्हें कोई ख़तरा नहीं है। साथ ही, आर्थिक लाभ भी सुरक्षा पर निर्भर रहा है। लेकिन इस बार इस्राइल की सुरक्षा प्रणाली ध्वस्त हो गई है। उनकी सुरक्षा व्यवस्था छलनी और जर्जर हो चुकी है, जो इस्राइल के अस्तित्व के लिए गंभीर चिंता का विषय बन गया है।
गाज़ा में इस्राइली बमबारी से 24 और फिलिस्तीनी शहीद
गाज़ा में इस्राइली सेना की नई बमबारी में 24 और फिलिस्तीनी शहीद हो गए, जिनमें ज्यादातर महिलाएं और बच्चे शामिल हैं।
गाज़ा में इस्राइली सेना की नई बमबारी में 24 और फिलिस्तीनी शहीद हो गए, जिनमें ज्यादातर महिलाएं और बच्चे शामिल हैं।
अस्पतालों में ईंधन खत्म, मदद की गुहार गाज़ा के दो बड़े अस्पतालों ने ईंधन खत्म होने की वजह से दुनिया से मदद की अपील की है।
अशशिफा अस्पताल के निदेशक डॉ. मोहम्मद अबू सलमिया ने कहा,अस्पताल में 100 से ज़्यादा नवजात बच्चे और 350 डायलिसिस मरीज़ खतरे में हैं। ऑक्सीजन, ब्लड बैंक और लैब जल्द ही बंद हो जाएंगे।
यह जगह जल्द ही एक कब्रिस्तान बन सकती है। अलअक्सा अस्पताल और अल-बुरेज शरणार्थी कैंप भी भारी बमबारी से प्रभावित हुए हैं।
ज़ायोनियों से जुड़ा एक और जहाज़ डूबा, ग़ज़ा के लोगों के समर्थन में यमनी शैली का बदला
यमनी सशस्त्र बलों के एक प्रवक्ता ने घोषणा की कि उम्म-अर-रश्राश (इलात) की मक़बूज़ा बंदरगाह के लिए जा रहे एक व्यापारिक जहाज़ को निशाना बनाकर डुबो दिया गया।
यमनी सशस्त्र बलों के प्रवक्ता ब्रिगेडियर जनरल यहिया सरी ने बुधवार को एक बयान जारी कर कहा: मज़लूम फ़िलिस्तीनी जनता और उनके साहसी मुजाहेदीन के समर्थन में, यमनी नौसेना ने ड्रोन नौका और 6 क्रूज़ व बैलिस्टिक मिसाइलों से उस व्यापारिक जहाज़ (इटर्निटी सी) (ETERNITY C) को निशाना बनाया जो मक़बूज़ा फ़िलिस्तीन के उम्म अल-रशराश बंदरगाह की ओर बढ़ रहा था। इस ऑप्रेशन के परिणामस्वरूप जहाज पूरी तरह डूब गया और इस ऑपरेशन का पूरा ऑडियो और वीडियो बनाया गया।
ब्रिगेडियर जनरल यहिया सरी ने कहा: इस ऑपरेशन के बाद, यमनी नौसेना की एक विशेष इकाई को जहाज के चालक दल के कई सदस्यों को बचाने के लिए भेजा गया और उन्हें बुनियादी चिकित्सा देखभाल प्रदान करने के बाद, सुरक्षित स्थान पर स्थानांतरित कर दिया गया।"
यमनी सशस्त्र बलों के प्रवक्ता ने बयान में जोर देकर कहा कि जहाज और उसकी मालिक कंपनी ने एक बार फिर इस मार्ग पर यात्रा करने का प्रयास किया है, जो उम्म अल-रशराश बंदरगाह के साथ संपर्क पर प्रतिबंध लगाने के निर्णय का स्पष्ट उल्लंघन है और उन्होंने यमनी नौसेना की चेतावनियों और संदेशों को भी नजरअंदाज किया है।
यहिया सरी ने एक बार फिर रेड सी और अरब सी के जलक्षेत्र में समुद्री यातायात पर इज़राइली शासन की नाकेबंदी जारी रखने पर जोर दिया, तथा चेतावनी दी कि मक़बूज़ा फिलिस्तीनी बंदरगाहों के साथ संपर्क रखने वाली सभी कंपनियों को निशाना बनाया जाएगा, चाहे उनके जहाजों का स्थान या मार्ग कुछ भी हो।
बयान में कहा गया है कि ये सैन्य कार्रवाइयां ज़ायोनी शासन और उसके समर्थकों को ग़ज़ा की घेराबंदी हटाने, आक्रमण को रोकने और फिलिस्तीनी जनता के खिलाफ भीषण नरसंहार को समाप्त करने के लिए मजबूर करने का एक प्रयास है।
यमनी सशस्त्र बलों के प्रवक्ता ने मज़लूम फिलिस्तीनी जनता के साथ अपने सहायक सैन्य अभियानों और उनके सच्चे और नेक प्रतिरोध को तब तक जारी रखने पर जोर दिया जब तक कि आक्रमणों का पूर्ण अंत नहीं हो जाता और ग़ज़ा पर घेराबंदी नहीं हटा ली जाती।
यमनी सशस्त्र बलों के प्रवक्ता ने सोमवार को एक बयान में बताया कि यमनी सेना की नौसेना, मिसाइल और ड्रोन इकाइयों ने एक बड़े पैमाने पर ऑप्रेशन के दौरान, लाल सागर में "मैजिक सीज़" व्यापारी जहाज को निशाना बनाया, जो उस कंपनी से संबंधित था जिसका मक़बूज़ा फिलिस्तीन के बंदरगाहों में प्रवेश पर प्रतिबंध का उल्लंघन करने का इतिहास रहा है।
एक आधिकारिक बयान में कहा गया है कि सोमवार का ऑप्रेशन मज़लूम फिलिस्तीनी लोगों के समर्थन और लाल और अरब सागर के पानी में इज़राइली शासन के जहाजों की निरंतर नौसैनिक नाकेबंदी के जवाब में किया गया था।
यहिया सरी ने कहा कि हमले के दौरान सतह से हवा में मार करने वाली दो मिसाइलें, पांच बैलिस्टिक और क्रूज मिसाइलें तथा तीन हमलावर ड्रोन का इस्तेमाल किया गया।
उन्होंने कहा: मैजिक सीज़ जहाज पर सीधा हमला हुआ और यमनी बलों ने जहाज के चालक दल को सुरक्षित बाहर निकलने में मदद की। इस बयान के बाद, यमनी सशस्त्र बलों ने मैजिक सीज़ जहाज के पूरी तरह डूबने की तस्वीरें जारी कीं।
दीन के प्रचार के लिए नेक काम ज़रूरी हैं
आयतुल्लाहिल उज़्मा जवादी आमोली ने कहा: हमारे पास प्रचार के साधनों और प्रमाणों की कोई कमी नहीं है। अगर, अल्लाह न करे, हम प्रचार में ढिलाई बरतें, तो यह हमारी लापरवाही या गलती का संकेत है।
शिया मरजा तक़लीद हज़रत आयतुल्लाहिल उज़्मा जवादी आमोली ने एक लेख में कहा है कि "हमारे पास प्रचार के लिए पर्याप्त सामग्री है। अगर, अल्लाह न करे, हम इसे कम कर दें, तो इसका मतलब है कि कमी हममें है।"
उन्होंने आगे कहा: "लोगों का स्वभाव इन बातों को स्वीकार करता है, बुद्धि भी इन बातों को स्वीकार करती है, लेकिन इन बातों का असर होने के लिए ज़रूरी है कि इन्हें पाक और अच्छी वाणी से कहा जाए और उसके बाद नेक काम किए जाएँ। तभी लोग इन्हें अपने दिल और आत्मा से स्वीकार करेंगे।"
प्रतिरोध ही ईरानी राष्ट्र की प्रतिष्ठा और गरिमा को बचाने का एकमात्र विकल्प है
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मोहम्मद सादिक वहीदी गुलपायगानी ने कहा कि ईरान का आशूरा-प्रेमी दुश्मनों के अत्याचार के आगे झुकने वाला नहीं है उन्होंने कहा कि इज़राईल और उनके समर्थकों के खिलाफ संघर्ष ही इस राष्ट्र की प्रतिष्ठा, गरिमा और गौरव को बचाने का एकमात्र विकल्प है।
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मोहम्मद सादिक वहीदी गुलपायगानी ने कहा कि ईरान का आशूरा-प्रेमी दुश्मनों के अत्याचार के आगे झुकने वाला नहीं है उन्होंने कहा कि इज़राईल और उनके समर्थकों के खिलाफ संघर्ष ही इस राष्ट्र की प्रतिष्ठा, गरिमा और गौरव को बचाने का एकमात्र विकल्प है।
उन्होने कहा कि सियोनिस्ट शासन के खिलाफ लड़ाई की जड़ें कुरान की शिक्षाओं में हैं उन्होंने कहा, "सियोनिस्टों के खिलाफ प्रतिरोध को राष्ट्रवादी या केवल मानवतावादी मुद्दे तक सीमित नहीं किया जाना चाहिए।
उन्होंने आगे कहा,अल्लाह ने कुरान में सियोनिस्ट यहूदियों के मानवता-विरोधी और धर्म-विरोधी कार्यों के बारे में बात की है और हमें इस समूह से सावधान रहने की चेतावनी दी है। आज दुनिया में यह समूह कला और मीडिया के हथियारों से लैस होकर गाजा में नरसंहार और ईरान पर आक्रमण को सही ठहराता है और इसे 'पूर्व-emptive ऑपरेशन' कहता है।
उन्होंने कहा,सियोनिस्ट शासन के खिलाफ संघर्ह राजनीतिक इस्लाम के सिद्धांतों, मानवीय नैतिकता, तर्क और ठोस तर्क पर आधारित है। इसी आधार पर, सियोनिस्ट शासन के आक्रमण के दिनों में भी ईरानी राष्ट्र पहले से अधिक मजबूती के साथ मैदान में उतरा और एकजुट होकर दुश्मन को घुटनों पर ला दिया आज भी यह राष्ट्र दुश्मनों के झूठे प्रचार और भ्रम फैलाने से प्रभावित नहीं होता।
हुज्जतुल इस्लाम वहीदी गुलपायगानी ने कहा, ईरान का आशूरा-प्रेमी राष्ट्र दुश्मनों के अत्याचार के आगे झुकने वाला नहीं है। सियोनिस्टों और उनके समर्थकों के खिलाफ प्रतिरोध और संघर्ष ही इस राष्ट्र की प्रतिष्ठा, गरिमा और गौरव को बचाने का एकमात्र विकल्प है यह वही रास्ता है जो इमाम हुसैन (अ.स.) और उनके साथियों ने आशूरा के आंदोलन में हमें दिखाया था।
उन्होंने कहा,प्रतिरोध की कीमत आत्मसमर्पण और समझौते की कीमत से कहीं कम है अगर हम आत्मसमर्पण कर दें, तो राष्ट्रीय पहचान और मानवीय गरिमा नष्ट हो जाएगी और हमें हर दिन दुश्मनों के सामने और अधिक झुकना पड़ेगा, हम हीन और अपमानित हो जाएंगे।
इराक से लीबिया तक कई देशों का अनुभव इस सच्चाई को साबित करता है। इसी आधार पर, सर्वोच्च नेता इमाम खामेनेई, इमाम खुमैनी र.ह के आंदोलन को जारी रखते हुए और इस्लामी गणतंत्र के आदर्शों के आधार पर, प्रतिरोध के विकल्प पर जोर देते हैं।
ब्रिटिश संसद के निराधार आरोपों पर ईरान की कड़ी प्रतिक्रिया
लंदन स्थित इस्लामी गणतंत्र ईरान के दूतावास ने एक बयान जारी कर ब्रिटेन द्वारा तेहरान की ओर से सुरक्षा खतरों के दावों को निराधार बताया और इसे लंदन की काल्पनिक दुश्मनी की नीति का हिस्सा करार दिया हैं।
लंदन स्थित इस्लामी गणतंत्र ईरान के दूतावास ने एक बयान जारी कर ब्रिटेन द्वारा तेहरान की ओर से सुरक्षा खतरों के दावों को निराधार बताया और इसे लंदन की काल्पनिक दुश्मनी की नीति का हिस्सा करार दिया हैं।
ईरान के दूतावास के बयान में ब्रिटिश संसद द्वारा तेहरान पर लगाए गए आरोपों को निराधार गैर-जिम्मेदाराना और तथ्यों को तोड़ मरोड़कर पेश करने की एक श्रृंखला बताया गया, जिसका उद्देश्य ईरान के हितों को नुकसान पहुँचाना है।
बयान में कहा गया कि ब्रिटिश संसद के ये आरोप पक्षपातपूर्ण और राजनीतिक हैं तथा इनका कोई विश्वसनीय सबूत नहीं है।
ईरानी दूतावास ने चेतावनी दी कि लंदन इन खतरनाक और अपमानजनक आरोपों के जरिए बिना किसी वजह तनाव बढ़ा रहा है और कूटनीतिक नियमों को कमजोर कर रहा है, जिसके परिणामस्वरूप स्थिति और गंभीर हो सकती है।