
رضوی
हिज़्बुल्लाह महासचिव: हम हमेशा सब्र नहीं कर सकते
लेबनान के इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन हिज़्बुल्लाह के महासचिव शैख़ नईम क़ासिम ने अल-मयादीन चैनल को दिए एक इंटरव्यू में मध्यपूर्व की घटनाओं, ईरान और इस्लामी क्रांति के नेता की प्रतिरोध के मोर्चे को मजबूत करने में भूमिका, और इस्राइल के खिलाफ इस आंदोलन की रणनीति पर रोशनी डाली।
अल-मयादीन चैनल से हुए इस विस्तृत इन्टरव्यू में जो गुरुवार को जारी किया गया, लेबनान में हिज़्बुल्लाह के महासचिव शैख़ नईम क़ासिम ने विभिन्न मुद्दों पर अपने विचार व्यक्त किए, जिनमें ग़ज़ा युद्ध का समर्थन करने की प्रक्रिया, लेबनान में युद्ध, राजनीतिक और सैन्य आयामों में हिज़्बुल्लाह की वर्तमान स्थिति, पेजर घटना और ईरान से संबंधित घटनाक्रम शामिल हैं।
पार्सटुडे के अनुसार, उन्होंने कहा: लेबनान के हिज़्बुल्लाह नेतृत्व परिषद में ग़ज़ा पर ज़ायोनी शासन के हमलों के बाद आयोजित बैठक के बाद, यह फ़ैसला किया कि ग़ज़ा के लिए समर्थन सीमित तरीके से किया जाएगा और इस संबंध में अंतिम निर्णय होने तक घटनाक्रमों की समीक्षा की जाएगी।
उन्होंने कहा: समर्थन अभियान में शामिल होने के कुछ हफ़्ते बाद, अंतिम परिणाम यह निकला कि हिज़्बुल्लाह मुकम्मल युद्ध में शामिल नहीं होगा। इसका कारण यह था कि मुकम्मल युद्ध में शामिल हुए बिना भी वांछित लक्ष्यों को प्राप्त करना संभव था।
लेबनान के हिज़्बुल्लाह के महासचिव ने कहा कि समर्थन मोर्चे के लिए आंदोलन के लक्ष्यों में उत्तरी क्षेत्र में बड़ी संख्या में इज़राइली सैन्य बलों को शामिल करना, उत्तरी मक़बूज़ा फिलिस्तीन में सामाजिक, आर्थिक और सुरक्षा संकट पैदा करने के लिए प्रवासियों को भेजना और इज़राइली सैनिकों को सबसे अधिक संख्या में हताहत करना शामिल है।
हिज़्बुल्लाह को तूफ़ान अल-अक्सा ऑप्रेशन की पहले से कोई जानकारी नहीं थी
शैख़ नईम क़ासिम ने इस बात पर ज़ोर दिया कि तूफ़ान अल-अक्सा के ऑप्रेशन के संबंध में फिलिस्तीनी प्रतिरोध बलों के साथ कोई समन्वय नहीं था। उन्होंने आगे कहा: "हमें इस ऑप्रेशन की जानकारी नहीं थी और इसी कारण से हम पूर्ण युद्ध में शामिल नहीं हुए।
उन्होंने कहा कि हिज़्बुल्लाह को क़स्साम ब्रिगेड के कमांडर-इन-चीफ़ शहीद मुहम्मद ज़ैफ़ से एक पत्र मिला है, जिसमें कहा गया है कि ग़ज़ा में हिज़्बुल्लाह के समर्थन अभियान पर्याप्त हैं और वे उपरोक्त लक्ष्यों को प्राप्त कर सकते हैं।
लेबनान के इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन हिज़्बुल्लाह के महासचिव ने कहा कि उनके पास जो जानकारी है उसके अनुसार, तेहरान को भी 7 अक्टूबर के ऑप्रेशन की जानकारी नहीं थी, और यहां तक कि ग़ज़ा के बाहर हमास के कई कमांडरों को भी इस ऑपरेशन की जानकारी नहीं थी।
पेजर धमाकों की कहानी क्या थी?
लेबनान के हिज़्बुल्लाह के महासचिव ने कहा: पेजर खरीदने के मामले में, पिछले डेढ़ साल में सुरक्षा संबंधी खामी सामने आ गयी है, और पेजर में लगाए गए विस्फोटक ऐसे थे, जिन्हें मौजूदा उपकरणों से नहीं पकड़ा जा सकता था।
शैख़ नईम क़ासिम ने कहा कि पेजर ऑप्रेशन से दो दिन पहले, संदिग्ध संकेत मिले थे, जिसमें यह तथ्य भी शामिल था कि पेजर टूट गए थे, जिसके कारण इज़राइल को अपना ऑप्रेशन पहले ही करना पड़ा।
उन्होंने कहा कि तुर्किए में 1 हज़ार 500 बम से लैस पेजर थे, जिन्हें लेबनान के अंतरिम प्रधानमंत्री नजीब मीक़ाती के अर्दोग़ान से अनुरोध पर तबाह कर दिया गया।
शैख़ नईम क़ासिम ने हिज़्बुल्लाह के तत्वों पर मानवीय प्रभाव को गुप्तचर गतिविधियों, ड्रोनों और अन्य टेक्नालाजीज़ के माध्यम से प्राप्त जानकारी की मात्रा की तुलना में बहुत सीमित बताया, तथा इस बात पर ज़ोर दिया कि विशेष रूप से हिज़्बुल्लाह के मुख्य तत्वों या आंतरिक नेताओं के बीच कोई सुरक्षा प्रभाव नहीं था। उन्होंने वादा किया कि यदि ऐसा कुछ साबित हो जाता है तो वे इस मुद्दे को जनता के साथ साझा करेंगे।
लेबनान के युद्धविराम के बाद के घटनाक्रम पर हिज़्बुल्लाह की प्रतिक्रिया
युद्ध विराम पर हस्ताक्षर के बाद लेबनान के खिलाफ ज़ायोनी शासन के निरंतर हमलों के संबंध में, शैख़ नईम क़ासिम ने ज़ोर देकर कहा कि हिज़्बुल्लाह अनिश्चित काल तक इंतजार नहीं करेगा।
साथ ही उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि मौजूदा दबावों से वांछित लक्ष्य हासिल नहीं होंगे और हिज़्बुल्लाह कभी भी आत्मसमर्पण नहीं करेगा। लेबनान के इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन हिज़्बुल्लाह के महासचिव ने कहा कि हिज़्बुल्लाह सुधार के दौर में है, तथा इस बात पर जोर दिया कि यदि इज़राइल, लेबनान पर हमला करता है तो हम उनसे लड़ेंगे।
उन्होंने हिज़्बुल्लाह के 500 मध्यम और भारी हथियारों के डिपो को नष्ट करने के बारे में ज़ायोनी अफवाहों का उल्लेख किया और कहा कि वे केवल लीतानी नदी के दक्षिण के क्षेत्र के बारे में बात कर रहे हैं, लेकिन लेबनान विशाल है और मैं विवरण के बारे में बात नहीं करना चाहता।
प्रतिरोध की मज़बूती में ईरान की भूमिका
लेबनान के हिज़्बुल्लाह के महासचिव ने युद्ध के मुद्दे में ईरान की भूमिका की ओर इशारा किया और इस बात पर ज़ोर दिया कि तेहरान का स्पष्ट आकलन है कि युद्ध में ईरान के प्रवेश का मतलब होगा अमेरिका का ईरान के साथ युद्ध में प्रवेश, जिससे इजरायल को लाभ होगा, जो अमेरिका को संघर्ष में घसीटना चाहता था।
उन्होंने कहा: इसलिए, ईरानियों के लिए बेहतर होता कि वे इस प्रक्रिया में हस्तक्षेप न करते और वित्तीय, सैन्य, राजनीतिक और मीडिया समर्थन प्रदान करने में अपनी भूमिका जारी रखते। इस समर्थन ने हमारी स्थिरता और प्रतिरोध की पूरी धुरी की स्थिरता में एक बुनियादी भूमिका निभाई।
उन्होंने कहा कि इस्लामी क्रांति के नेता इमाम ख़ामेनेई ग़ज़ा और लेबनान में हो रहे घटनाक्रम पर दैनिक आधार पर नजर रखते थे और रिपोर्टें उन तक पहुंचती थीं तथा उन्होंने इस संबंध में असाधारण कार्रवाई की।
सीरिया के घटनाक्रम पर हिज़्बुल्लाह की पोज़ीशन
शैख़ नईम क़ासिम ने कहा कि सीरिया के घटनाक्रम का ग़ज़ा पर प्रभाव पड़ा, इसलिए जब सीरियाई सरकार गिर गई, तो सीरिया की सहायक भूमिका भी समाप्त हो गई।
उन्होंने ज़ायोनी शासन के साथ संबंधों को सामान्य बनाने से संबंधित मुद्दों को बहुत खतरनाक बताया और इस बात पर ज़ोर दिया कि सीरिया को सामान्यीकरण प्रक्रिया में शामिल नहीं किया जाना चाहिए।
यह उल्लेख करते हुए कि सीरियाई लोगों पर हमारा भरोसा बहुत ज़्यादा है। शैख़ नईम क़ासिम ने कहा कि सीरियाई लोग सामान्यीकरण को स्वीकार नहीं करेंगे, और यह उनकी और हमारी ज़िम्मेदारी है।
ज़ायोनी शासन द्वारा सीरियाई भूमि पर जारी क़ब्ज़े का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि इज़राइल ने गोलान हाइट्स और कुनैतरा के 600 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर क़ब्ज़ा कर लिया है, लेकिन सीरियाई सरकार ने कुछ नहीं किया है।
उन्होंने सीरियाई सेना और सरकार के लिए कोई सैन्य शक्ति नहीं छोड़ी है और अपने हमले जारी रखे हैं। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि ज़ायोनी शासन एक अतिवादी और आपराधिक शासन है जो ख़ूंख़ार और बर्बर है, और दुनिया का सबसे बड़ा तानाशाह अमेरिका उसके साथ है।
हिज़्बुल्लाह के महासचिव ने कहा कि हिज़्बुल्लाह, सीरियाई सरकार के संबंधों को सामान्य बनाने के दृष्टिकोण को बदलने के लिए कोई व्यावहारिक कदम नहीं उठाएगी क्योंकि उसका इससे कोई लेना-देना नहीं है। बल्कि, वह सैद्धांतिक रूप से सामान्यीकरण प्रक्रिया का विरोध करती है।
लेबनान के आंतरिक घटनाक्रम
लेबनान के हिज़्बुल्लाह के महासचिव ने भी देश के आंतरिक घटनाक्रम और जनरल जोसेफ़ औन के रुख़ की समीक्षा की, इन रुखों की प्रशंसा की और कहा: यह पहले ही क्षण से स्पष्ट था कि उन्होंने हमेशा इस बात पर जोर दिया कि इज़राइल को लेबनान से निकल जाना चाहिए।
उन्होंने आगे कहा कि ये सिद्धांत वही सिद्धांत हैं जिन पर हिज़्बुल्लाह विश्वास करता है, और ये पूरी तरह से राष्ट्रवादी सिद्धांत हैं।
उन्होंने सेना, राष्ट्र और प्रतिरोध के त्रिकोण को लेबनान की वर्तमान ताक़त का बिंदु माना, और इस बात पर ज़ोर दिया कि दुनिया वर्तमान में इस बारे में सोच रही है कि लेबनान के साथ कैसे बातचीत की जाए, क्योंकि यह देश मजबूत है, और अगर लेबनान कमजोर होता, तो कोई भी इस पर ध्यान नहीं देता।
इमाम हुसैन (अ.स) के आंदोलन के उद्देश्य
हज़रत इमाम हुसैन (अस) ने सन् (61) हिजरी में यज़ीद के विरूद्ध आंदोलन किया। उन्होने अपने आंदोलन के उद्देश्यों को इस तरह बयान किया है किः
- जब हुकूमती यातनाओं से तंग आकर हज़रत इमाम हुसैन (अस) मदीना छोड़ने पर मजबूर हुये तो उन्होने अपने आंदोलन के उद्देश्यों को इस तरह स्पष्ट किया। कि मैं अपने व्यक्तित्व को चमकाने या सुखमय ज़िंदगी बिताने या फ़साद करने के लिए आंदोलन नहीं कर रहा हूँ। बल्कि मैं केवल अपने नाना (पैगम्बरे इस्लाम स.अ.) की उम्मत में सुधार के लिये जा रहा हूँ। तथा मेरा मक़सद लोगों को अच्छाई की ओर बुलाना व बुराई से रोकना है। मैं अपने नाना पैगम्बर(स.) व अपने बाबा इमाम अली (अस) की सुन्नत पर चलूँगा।
- एक दूसरे अवसर पर आपने कहा कि ऐ अल्लाह तू जानता है कि हम ने जो कुछ किया वह हुकूमत से दुश्मनी या दुनियावी मोहमाया के लिये नहीं किया। बल्कि हमारा उद्देश्य यह है कि तेरे दीन की निशानियों को यथा स्थान पर पहुँचाए। तथा तेरे बंदों के बीच सुधार करें ताकि लोग अत्याचारियों से सुरक्षित रह कर तेरे दीन के सुन्नत व वाजिब आदेशों का पालन कर सके।
- जब आप की मुलाक़ात हुर इब्ने यज़ीदे रिहायी की सेना से हुई तो, आपने कहा कि ऐ लोगो अगर तुम अल्लाह से डरते हो और हक़ को हक़दार के पास देखना चाहते हो तो यह काम अल्लाह को ख़ुश करने के लिए बहुत अच्छा है। ख़िलाफ़त पद के अन्य अत्याचारी दावेदारों के मुकाबले में हम अहलेबैत सबसे ज़्यादा अधिकार रखते हैं।
- एक अन्य स्थान पर कहा कि हम अहलेबैत हुकूमत के लिये उन लोगों से ज़्यादा हक़दार हैं जो हुकूमत पर क़ब्ज़ा जमाए हैं। इन चार कथनों में जिन उद्देश्यों की और इशारा किया गया है वह इस तरह हैं,
- इस्लामी समाज में सुधार।
- लोगों को अच्छे काम की नसीहत।
- लोगों को बुरे कामों के करने से रोकना।
- हज़रत पैगम्बर(स.) और हज़रत इमाम अली (अस) की सुन्नत को किर्यान्वित करना।
- समाज को शांति व सुरक्षा प्रदान करना।
- अल्लाह के आदेशो के पालन के लिये रास्ता समतल बनाना।
यह सारे उद्देश्य उसी समय हासिल हो सकते हैं जब हुकूमत की बाग़डोर ख़ुद इमाम के हाथो में हो, जो इसके वास्तविक अधिकारी भी हैं। इसलिये इमाम ने ख़ुद कहा भी है कि हुकूमत हम अहलेबैत का अधिकार है न कि हुकूमत कर रहे उन लोगों का जो अत्याचारी हैं।
हज़रत इमाम हुसैन अ.स. ने यज़ीद से बैअत क्यों नहीं की?
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन जवाद मोहद्दसी ने अपने विशेष खिताब में "दरस-ए-आशूरा" के तहत इस अहम सवाल का जवाब दिया है कि इमाम हुसैन अ.स.ने यज़ीद से बैअत क्यों नहीं की?
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन जवाद मोहद्दसी ने अपने विशेष खिताब में "दरस-ए-आशूरा" के तहत इस अहम सवाल का जवाब दिया है कि इमाम हुसैन अ.स.ने यज़ीद से बैअत क्यों नहीं की?
उन्होंने लिखा कि इमाम अ.स. का इनकार न तो किसी निजी दुश्मनी की वजह से था और न ही यह कोई साधारण राजनीतिक विरोध था, बल्कि यह फैसला एक गहरी क़ुरआनी और धार्मिक सोच पर आधारित था। यह इस्लाम के बुनियादी सिद्धांतों की हिफाजत के लिए ज़रूरी था।
इस्लामी शिक्षाओं के अनुसार, हुकूमत का हक सिर्फ उसी को है जो:कुरआन की गहरी समझ रखता हो,अमली तौर पर दीनदार हो,और अल्लाह का आज्ञाकारी हो।
इमाम हुसैन अ.स. ने इन्हीं उसूलों की बुनियाद पर यज़ीद जैसे फासिक और पापी शासक की बैअत से इनकार कर दिया, क्योंकि वह कुरआन, ईमानदारी और इंसाफ की राह से भटक चुका था।
इस्लामी निज़ाम में क़ियादत उन्हें मिलनी चाहिए जो आम जनता से ज़्यादा जागरूक, न्यायप्रिय और परहेज़गार हों, ताकि वो समाज को अल्लाह के दीन के मुताबिक चला सकें। जबकि बनू उमय्या ने ताक़त, फरेब और मुनाफ़िक़त (पाखंड) के ज़रिये हुकूमत पर क़ब्ज़ा कर रखा था और इस्लामी मूल्यों को रौंद रहे थे।
हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) का क़ियाम दरअसल एक इलाही जिहाद था, ताकि उम्मत-ए-मुस्लिमा को दोबारा हक़, इंसाफ और तक़्वा (पवित्रता) की राह पर लाया जाए, और ज़ालिम और गुनहगार हुक्मरानों के हाथों में उम्मत की तक़दीर न रहे।
इमाम (अ.स.) के बैअत से इंकार ने यह बात साफ कर दी कि बातिल की इताअत (आज्ञा) मुमकिन नहीं है, चाहे उसकी ताक़त कितनी भी बड़ी क्यों न हो। और यही आशूरा का सबसे बुनियादी सबक है:ज़ुल्म के सामने ख़ामोशी नहीं, बल्कि क़ियाम ही एकमात्र रास्ता है।
अस्सलामु अलैक या अबा अब्दिल्लाहिल हुसैन (अ.स.)
कर्बला के मैदान में वहब इब्ने अब्दुल्लाह अलकलबी की महान कुर्बानी
हज़रत वहब इब्ने अब्दुल्लाह इब्ने हवाब कलबी आप बनी क्लब के एक फर्द थे हुस्नो जमाल में नजीर न रखते थे आप खुश किरदार और खुश अतवार भी थे और आपने कर्बला के मैदान में दिलेरी के साथ दर्जऐ शहादत हासिल किया।
आप का नाम वहब इब्ने अब्दुल्लाह इब्ने हवाब कलबी था । आप बनी क्लब के एक फर्द थे । हुस्नो जमाल में नजीर न रखते थे आप खुश किरदार और खुश अतवार भी थे और आपने कर्बला के मैदान में दिलेरी के साथ दर्जऐ शहादत हासिल किया है।
हम आप के वाकेयाते शहादत को किताब के ज़रिये ज़िक्र-अल-अब्बास से नक़ल करते है कर्बला की हौलनाक जंग में हुस्सैनी बहादुर निहायत दिलेरी से जान दे-दे श्र्फे शहादत हासिल कर रहे थे ।
यहाँ तक की जनाबे वहब बिन अब्दुल्लाह अल-कलबी की बारी आई । यह हुस्सैनी बहादुर पहले नसरानी था और अपनी बीवी और वालिद समेत इमाम हुसैन अलै० के हाथो पर मुसलमान हुआ था ।
आज जब की यह इमाम हुसैन अलै० पर फ़िदा होने के लिए आमादा हो रहे है उनकी वालेदा हमराह है माँ ने दिल बढ़ाने के लिए वहब से कहा , बेटा आज फ़रज़न्दे रसूल पर कुर्बान हो कर रूहे रसूल मकबूल स० को खुश कर दो । बहादुर बेटे ने कहा, मादरे गिरामी आप घबराये नहीं इंशा अल्लाह ऐसा ही होगा।
अलगरज आप इमाम हुसैन अलै० से रुखसत होकर रवाना हुए और रजज पढ़ते हुए दुश्मनों पर हमलावर हुए आप ने कमाले जोश व शुजाअत में जमाअत की जमाअत को कत्ल कर डाला इस के बाद अपनी माँ “कमरी”और बिवी की तरफ वापिस आये ।
माँ से पूछा मादरे गिरामी आप खुश हो गई माँ ने जवाब दिया मै उस वक्त तक खुश न होउंगी जब तक फ़रज़न्दे रसूल के सामने तुम्हे खाको खून में गलता न देखूं । यह सुन कर बीवी ने कहा, ऐ वहब मुझे अपने बारे में क्यों सताते हो और अब क्या करना चाहते हो?
माँ पुकारी “यांनी बनी ल तक्बिल कौल्हा” बेटा बीवी की मोहब्बत में न अ जाना खुदारा जल्द यहाँ से रुखसत होकर फ़रज़न्दे रसूल पर अपनी जान कुर्बान कर दो वहब ने जवाब दिया मादरे गिरामी ऐसा ही होगा।
मुझे इमाम हुसैन का इज्तेराब और हजरते अब्बास जैसे बहादुर की परेशानी दिखाई दे रही है भला क्योकर मुमकिन है की मै ऐसी हालत में ज़रा भी कोताही करूँ इस के बाद जनाबे वहब मैदाने जंग की तरफ वापिस चले गए और कुछ अशआर पढ़ते हुए हमलावर हुए यहाँ तक की आपने उन्नेस१९ ब-कौले१२ सवार और १२ प्यादे कत्ल किये इसी दौरान में आप के दो हाथ कट गए
उनकी यह हालत देखकर उनकी बीवी को जोश आ गया और वह एक चौबे खेमा लेकर मैदान की तरफ दौड़ी और अपने शौहर् को पुकार का कहा खुदा तेरी मदद करें । हाँ फ़रज़न्दे रसूल के लिए जान दे दो और सुन इसके लिए मै अब भी अमादा हूँ ।
यह देख कर वहब अपनी बीवी की तरफ इसलिए फौरन्न आये की उन्हें खेमे तक पंहुचा दे उस मुख्द्दर ने उन का दामन थाम लिया और कहा मै तेरे साथ मौत की आगोश में सोउंगी । फिर इमाम हुसैन अले० ने उसे हुकुम दिया की वह खेमो में वापिस चली जाए । चुनाचे वह वापिस चली गई उसके बाद वहब मशगूले कार्जार हो गए ।
और काफी देर तक नबर्द आजमाई के बाद दर्जा-ऐ-शहादत पर फाऐज हुए वहब के ज़मीन पर गिरते ही उनकी बीवी ने दौड़ कर उन् का सर अपनी आगोश में उठा लिया उन के चेहरे से गर्दो-गुबार और सर व आख से खून साफ़ करने लगी इतने में शिमरे लई के हुकुम से उसके गुलाम रुस्तम लई ने उस मोमिना के सर पर गूरजे आहनी मारा और यह बेचारी भी शहीद हो गई ।
मोर्रखींन का कहना है की “वही अव्वल अम्रात क्त्ल्त:फी अस्कर-अल-हुसैन” यह पहली औरत है जो लश्करे हुसैन में कत्ल की गई । एक रिवायत में है जब वहब ज़मीन पर गिरे तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया यानी उनकी लाश पर कब्ज़ा करके सर काट लिया गया ।
उसके बाद उस सर को खेमा-ऐ-हुस्सैनी की तरफ फेक दिया और माँ ने उस सर को उठा लिया बोसे दिए और दुश्मन की तरफ फेक कर कहा, हम जो चीज़ रहे मौला में देते है उसे वापिस नहीं लेते । कहते है की वहब का फेका हुआ सर एक दुश्मन के लगा और वह हालाक हो गया । फिर माँ चौबे खेमा लेकर निकली और दुश्मनों को कत्ल कर के ब-हुक्मे इमाम हुसैन खेमे में वापिस चली गई ।
अगर दोबारा हमला हुआ तो दुश्मन को धरती से मिटा देंगें
इरानी सशस्त्र बलों के प्रमुख जनरल मूसवी ने चेतावनी दी है कि अगर ईरान पर दोबारा हमला किया गया तो दुश्मन को सख्त जवाबी कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा।
इरानी सशस्त्र बलों के चीफ ऑफ जनरल स्टाफ मेजर जनरल सैयद अब्दुलरहीम मूसवी ने कहा है कि अगर इजरायली सरकार ने इरान पर दोबारा हमला करने की हिमाकत की तो हम कड़ा और निर्णायक जवाब देने के लिए पूरी तरह तैयार हैं, क्योंकि हमें दुश्मन की युद्धविराम और अन्य वादों पर कोई भरोसा नहीं रह गया है।
सऊदी अरब के रक्षा मंत्री खालिद बिन सलमान से टेलीफोन वार्ता के दौरान जनरल मूसवी ने स्पष्ट किया कि इजरायली सरकार और अमेरिका ने हमला तब किया जब ईरान पूरी तरह धैर्य दिखा रहा था और अमेरिका के साथ अप्रत्यक्ष वार्ता चल रही थी।
इन दोनों ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि वे किसी भी अंतरराष्ट्रीय कानून या नियम को नहीं मानते, और उनकी बेईमानी 12 दिनों के युद्ध के दौरान पूरी दुनिया पर स्पष्ट हो गई।
उन्होंने आगे कहा कि ईरान ने युद्ध शुरू नहीं किया, लेकिन हमने पूरी ताकत से आक्रामक दुश्मन को जवाब दिया। और चूंकि हमें दुश्मन के युद्धविराम जैसे वादों पर कोई भरोसा नहीं है इसलिए हम किसी भी संभावित हमले का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए पूरी तरह तैयार हैं।
टेलीफोन वार्ता के दौरान सऊदी रक्षा मंत्री खालिद बिन सलमान ने कहा कि सऊदी सरकार ने ईरान पर हमले के दौरान सिर्फ निंदा करने तक सीमित नहीं रही, बल्कि युद्ध और आक्रामकता को रोकने के लिए गंभीर प्रयास किए हैं। उन्होंने हाल के युद्ध में इरानी सशस्त्र बलों के कमांडरों की शहादत पर संवेदना भी व्यक्त की है।
हमास और इजरायल के बीच कतर में पांचवें दौरे की वार्ता बिना नतीजे के समाप्त
कतर में इजरायल और हमास के बीच हुए वार्ता में इजरायली प्रतिनिधिमंडल के गैर-गंभीर रवैये के कारण कोई प्रगति नहीं हो सकी।
कतर में इजरायल और हमास के बीच युद्धविराम से जुड़े इस दौर की वार्ता में भी कोई सफलता नहीं मिली।
एक फिलिस्तीनी अधिकारी ने कहा,ज़ायोनी प्रतिनिधिमंडल सिर्फ सुनता है, हर मुद्दे पर तेल अवीव से सलाह लेता है खुद प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों के पास कोई अधिकार नहीं है।
याद रहे कि कतर ने हमास को 60 दिनों के युद्धविराम का प्रस्ताव दिया था, जिसमें 10 इजरायली बंधकों की रिहाई, 18 शवों की वापसी, गाजा की सीमा से इजरायली सेना की वापसी और मानवीय सहायता की आपूर्ति शामिल थी।
इस प्रस्ताव में यह भी शामिल था कि इस अस्थायी युद्धविराम के दौरान स्थायी युद्धविराम पर वार्ता जारी रहेगी।
हम हर तरह के अपमान और हमले का "अपने दिल और जान से" बचाव करेंगे
हौज़ा ए-इल्मिया के 102 प्रतिष्ठित शिक्षकों ने इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह खामेनेई के प्रति अपना पूर्ण समर्थन घोषित किया है, और इस बात पर ज़ोर दिया है कि हम सर्वोच्च नेता के पवित्र व्यक्तित्व पर किसी भी तरह के अपमान या हमले का अपने जीवन, शब्दों और कर्मों से जवाब देंगे, और हर समय जिहाद के क्षेत्र में मौजूद रहेंगे।
हौज़ा ए इल्मिया क़ुम के 102 प्रतिष्ठित शिक्षकों ने इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह खामेनेई के प्रति अपना पूर्ण समर्थन घोषित किया है, और इस बात पर ज़ोर दिया है कि हम सर्वोच्च नेता के पवित्र व्यक्तित्व पर किसी भी तरह के अपमान या हमले का अपने जीवन, शब्दों और कर्मों से जवाब देंगे, और हर समय जिहाद के क्षेत्र में मौजूद रहेंगे।
अपने बयान में शिक्षकों ने अल्लाह के बंदों के शोक दिवस और मुजाहिदीन, बुद्धिजीवियों और हमवतनों की शहादत के अवसर पर अपनी संवेदना व्यक्त करते हुए कहा कि इस्लामी गणतंत्र ईरान एक ऐसी व्यवस्था है जो शुद्ध शिया न्यायशास्त्र के प्रकाश में ईश्वर के धर्म की स्थापना की व्यावहारिक व्याख्या प्रस्तुत कर रही है। यह व्यवस्था न केवल विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विकास की ऊंचाइयों पर पहुंच गई है, बल्कि न्याय और निष्पक्षता के क्षेत्रों और भौतिक और आध्यात्मिक क्षेत्रों में भी महत्वपूर्ण सफलताएं हासिल की हैं।
बयान में आगे कहा गया है कि हालांकि इस्लाम के दुश्मनों ने इस्लामी गणतंत्र ईरान की प्रगति को रोकने के लिए मीडिया युद्ध, आर्थिक प्रतिबंध और सैन्य साजिशों का सहारा लिया, लेकिन वेलायत-ए-फकीह की छाया में यह व्यवस्था आज दुनिया भर के उत्पीड़ित और स्वतंत्रता-प्रेमी लोगों की आशा बन गई है।
शिक्षकों ने बताया कि इस्लामी गणतंत्र ने हाल के इतिहास में सबसे बड़े हमले में यह साबित कर दिया है कि यह एकमात्र ऐसा देश है जो न केवल फिलिस्तीन का समर्थन करता है बल्कि व्यावहारिक रूप से ज़ायोनी शासन और उसके समर्थकों को चुनौती भी देता है।
उन्होंने इस जीत को इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता हज़रत अली ख़ामेनेई के नेतृत्व में हिज़्बुल्लाह और जुन्दुल्लाह की जीत बताया और कहा कि यह लड़ाई वास्तव में इस्लाम और कुफ्र के बीच आमने-सामने की लड़ाई बन गई है।
बयान में इस बात पर भी ज़ोर दिया गया कि इस्लामी ईरान के प्रतिरोध से बार-बार निराश और पराजित होने वाला दुश्मन अब इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता की महान शख्सियत को निशाना बनाने की हिम्मत कर रहा है, लेकिन मदरसों के विद्वान, महान अधिकारी और ईरानी राष्ट्र इस अपमान का जवाब देने के लिए हर क्षेत्र में तैयार हैं।
अंत में शिक्षकों ने इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता की सुरक्षा, सम्मान और दीर्घायु, महान अधिकारियों के अस्तित्व और इस्लामी व्यवस्था के आगे विकास और स्थिरता के लिए प्रार्थना की और घोषणा की कि हम सभी प्रकार के हमलों और अपमान के खिलाफ दृढ़ रहेंगे और किसी भी कीमत पर उम्माह के इमाम की महानता और पवित्रता को धूमिल नहीं होने देंगे। इस्लाम और मुसलमानों की आयतें और तर्क:
- मोहसिन अराकी
- अलीरेज़ा अराफ़ी
- मुहम्मद बाकिर द्वारा लिखित
- अली अकबर रशद
- अबुल कासिम अलीदोस्त
- जवाद फ़ाज़िल लंकारानी
- अब्बास काबी
- मुहम्मद मोहम्मदी क़ैनी
- हादी विंक
- सैयद यदुल्लाह यज़दान पनाह
- सैयद मुहम्मद हुसैन सईदी हुसैनी
- असगर मद्दी
- मेहदी रोशन दिल
- अलीरेज़ा गोदार्ज़ी
- मुहम्मद बाक़ेरी राष्ट्रपति
- महमूद खोसरवांजाम
- मिहराब ज़ारे
- मुहम्मद जनरल
- अब्दुल जलील महमूदी
- मेहदी शाबान
- मयसम कासमी
- मेहदी अहमदी
- सैयद महदी हाशेमियन
- मोहम्मद जवादी राड
- मेहदी अबू तालाबी
- अहमद राहदार
- अलीरेज़ा नेमाती
- इनायतुल्लाह रमजानपुर
- मुहम्मद इब्राहिम ने इस्तीफा दे दिया
- सैयद मुस्तफा हुसैनी
- महदी फ़रमानियन
- मुहम्मद हुसैन सिद्दीकी नये
- मुहम्मद महदी, विद्वान, शाहरुदी
- निमातुल्लाह लुत्फी नियासर (काशानी)
- मुहम्मद हसन महमूदी
- मोहम्मद हसन मोहम्मदी
- सैयद मुहम्मद जवाद तादीन
- माजिद मोहम्मदी
- ईसा मसीह अल्लाह असेफ़ी
- सईद जवादी मोघदाम
- नासिर रफ़ी मोहम्मदी
- मुस्तफ़ा ग़ैबी
- मुजतबी छात्र
- हसन मोरादी
- मोहसिन अलवरी
- मेहदी हामती सजंकी
- अब्बास अब्दुलाही
- मुस्तफा मेहरानपुर
- मेहदी अब्दुल्लाही
- इब्राहिम मुसाज़ादेह
- यासिर सादाती
- मुहम्मद महदी इस्लामियन
- मुहम्मद बाकिर अदीबी लारिजानी
- रुहोल्लाह रसूल
- सैयद महदी हाशी नसरबदी
- सैयद अली मौसवी
- हमज़ा फ़ख़रुद्दीन अलीज़ादेह
- मुर्तज़ा जहाँशाही
- सैयद हुसैन नकीबपुर
- अहमद इब्राहिमी क़ैनी
- सैयद मसऊद शरीफ़ी
- मुहम्मद मोहसिन कांदी
- अली असगर हबीबियन
- सईद सलीह मिर्ज़ई
- मोहम्मद हुसैन रज़ाज़ादे सकाई
- अली सादेघी
- अकबर रुस्तई
- मुहम्मद अस्तवार मैमंडी
- हुसैन अहमदी
- सैयद सज्जाद एज़ादेही
- सैयद हुसैन कश्फ़ी
- मोहम्मद अशायरी मोनफर्ड
- अब्दुल नासिर जलालियाँ
- मोहम्मद कृपाण सादेघी
- मोहम्मद अली कमाली न्यू
- मेहदी खोसरोबेगी
- मुहम्मद अली ख़ादिमी कोशा
- अहमद हाजी दे आबादी
- सैयद अहमद अलवी और तौकी
- अमीन असदलाह ज़ादे दरियानी
- महदी रहमाना
- मोहम्मद अंसारी परिसराय
- हमीद ख्वाजा अरज़ानी
- मुहम्मद हसन नहवी
- मुहम्मद रज़ा फ़तेह
- मुस्तफ़ा मोंटेज़ेरी
- मोहम्मद कासमी
- जावद रायपुर
- अली गंज बख्श (खुरासानी)
- सैयद अली अलवी वासुकी
- अहमद नकवी
- मुजतबी रहबर
- मुहम्मद मोमिनपुर
- सैयद जवाद मुर्तज़वी
- सैयद हुसैन इमाम
- सईद कुवंत झारमी
- मेहदी जहाँशाही
- इब्राहिम दासलान
- अलीरेज़ा लियाकाती
- हैदर फातेमी निया
- अहमदरेज़ा कमाली
- मुर्तज़ा रूहानी माज़ंदरानी
ट्रम्प और नेतन्याहू को "मुहारिब" और "मुफ़्सिद फ़िल अर्ज़" बताकर अदालत में पेश किया जाना चाहिए
इस्लामी देशों के प्रमुख विद्वानों, मुफ़्तियों, बुद्धिजीवियों और अधिकारियों ने पवित्र कुरान, पैगंबर की सुन्नत, स्थापित न्यायशास्त्रीय सिद्धांतों और अंतर्राष्ट्रीय कानूनों की रोशनी में ट्रम्प और नेतन्याहू को "मुहारिब" और "मुफ़्सिद फ़िल अर्ज़" कहा है और उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की पुरज़ोर माँग की है।
इस्लामी जगत के विद्वानों, मुफ़्तियों, बुद्धिजीवियों और उच्च अधिकारियों ने एक संयुक्त बयान जारी कर ट्रम्प और नेतन्याहू को मानवता के विरुद्ध अपराधी बताया है और उनके खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय और इस्लामी अदालतों में कानूनी कार्रवाई की माँग की है। इस कथन का मूलपाठ इस प्रकार है:
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्राहीम
الحمدلله رب العالمین و الصلاۃ و السلام علی سیدنا محمد و آله الطاهرین و صحبه المنتجبین، و بعد؛
हम, इस्लामी देशों के महान विद्वान, मुफ़्ती, बुद्धिजीवी और ज़िम्मेदार हस्तियाँ, पवित्र क़ुरआन, पैगंबर की सुन्नत, इस्लामी न्यायशास्त्र के स्थापित सिद्धांतों और स्थापित अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के आधार पर निम्नलिखित बिंदुओं की घोषणा करते हैं:
- ट्रम्प और नेतन्याहू की "मुहारिब" और "मुफ़्सिद फ़िल अर्ज़" के रूप में स्पष्ट निंदा:
अल्लाह तआला का मार्गदर्शन है: اِنَّمَا جَزَاءُ الَّذِینَ یُحَارِبُونَ اللَّهَ وَرَسُولَهُ وَیَسْعَوْنَ فِی الْأَرْضِ فَسَادًا أَنْ یُقَتَّلُوا أَوْ یُصَلَّبُوا.. "जो लोग अल्लाह और उसके रसूल से युद्ध करते हैं और धरती में भ्रष्टाचार की तलाश करते हैं, उनका बदला बस यही है कि उन्हें मार दिया जाए या सूली पर चढ़ा दिया जाए..." (सूर ए माइदा, आयत 33)
ट्रम्प, नेतन्याहू और हड़पने वाले ज़ायोनी शासन के अन्य नेताओं ने इस्लामी ज़मीनों पर कब्ज़ा, रक्तपात, फ़िलिस्तीनी लोगों का नरसंहार और मानवता के विरुद्ध अपराध किए हैं। ये लोग अल्लाह और उसके रसूल के दुश्मन हैं और धरती पर भ्रष्टाचार फैलाने वाले हैं, इसलिए इन्हें इस्लामी और अंतर्राष्ट्रीय अदालतों में न्याय के कटघरे में लाया जाना चाहिए।
- आयतुल्लाह अली ख़ामेनेई के नेतृत्व को पूर्ण समर्थन:
इस्लामी जागृति के नेता, इस्लामी सम्मान के ध्वजवाहक और प्रतिरोध मोर्चे के नेता के रूप में, हज़रत अयातुल्ला ख़ामेनेई इस्लामी उम्माह को बुद्धि, साहस और विवेक के साथ एकता, सम्मान और दृढ़ता के मार्ग पर मार्गदर्शन कर रहे हैं। हम उन्हें इस्लामी उम्माह के लिए वैध और आदर्श नेतृत्व का आदर्श मानते हैं।
- इज़राइल और अमेरिका के साथ सभी प्रकार की मिलीभगत का कानूनी, वैध और नैतिक रूप से खंडन:
शरिया के स्थापित सिद्धांतों के आलोक में, विशेष रूप से "काफिरों और युद्धरत पक्षों के साथ मित्रता और षड्यंत्र के निषेध" के नियम के आधार पर, सभी प्रकार की समझ और मेल-मिलाप को गैरकानूनी माना जाता है।
- ज़ायोनीवाद और अहंकार की साजिशों के खिलाफ मुसलमानों और धार्मिक विद्वानों के बीच एकता का आह्वान
- 12-दिवसीय युद्ध में इस्लामी गणराज्य ईरान की पूर्ण और व्यापक विजय की मान्यता
- ज़ायोनी अपराधियों और उनके समर्थकों के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय न्यायिक कार्रवाई की मांग:
हम तत्काल अंतरराष्ट्रीय स्वतंत्र न्यायालयों की स्थापना की मांग करते हैं ताकि ट्रम्प, नेतन्याहू और अन्य ज़ायोनी अपराधियों और उनके समर्थकों को न्याय के कटघरे में लाया जा सके और मानवता और विश्व शांति के खिलाफ उनके अपराधों के लिए जवाबदेह ठहराया जा सके।
- इस्लामी उम्माह की फ़िलिस्तीन और कुद्स अल-शरीफ़ के प्रति नई प्रतिबद्धता:
फ़िलिस्तीन, पहला क़िबला और कुद्स अल-शरीफ़ का मुद्दा अभी भी इस्लामी उम्माह की सर्वोच्च प्राथमिकता है, और जब तक फ़िलिस्तीन आज़ाद नहीं हो जाता और ज़ायोनीवाद की सड़ी हुई जड़ें नहीं मिट जातीं, तब तक यह धार्मिक, धार्मिक और सर्वव्यापी संघर्ष जारी रहेगा।
«و ما النصر إلا من عند الله العزیز الحکیم»
नोट: इस वक्तव्य की पीडीएफ फाइल और इस्लामी देशों के हस्ताक्षरकर्ताओं, विद्वानों, मुफ्तियों और अधिकारियों की सूची निम्नलिखित लिंक से डाउनलोड की जा सकती है:
ईरान के राष्ट्रपति ने 12-दिवसीय थोपे गए युद्ध में नर्सों की भूमिका की सराहना की
ईरान के राष्ट्रपति मसूद पिज़ेश्कियान ने कहा है कि स्वास्थ्य कर्मियों, विशेष रूप से नर्सों ने कोरोना महामारी के दौरान की तरह, मैदान नहीं छोड़ा और युद्ध के खतरनाक पलों में घायलों के ज़ख्मों पर मरहम लगाते हुए देश के चिकित्सा इतिहास में एक और स्वर्णिम अध्याय जोड़ा हैं।
ईरान के राष्ट्रपति मसूद पिज़ेश्कियान ने कहा है कि स्वास्थ्य कर्मियों, विशेष रूप से नर्सों ने कोरोना महामारी के दौरान की तरह, मैदान नहीं छोड़ा और युद्ध के खतरनाक पलों में घायलों के ज़ख्मों पर मरहम लगाते हुए देश के चिकित्सा इतिहास में एक और स्वर्णिम अध्याय जोड़ा हैं।
अपने संदेश में, राष्ट्रपति पिज़ेश्कियान ने12-दिवसीय थोपे गए युद्ध के दौरान चिकित्सा कर्मियों, खासकर नर्सों की सेवाओं की सराहना की और उनके प्रयासों को देश की स्वास्थ्य प्रणाली के इतिहास में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि बताया।
उन्होंने जोर देकर कहा कि नर्सों ने कोरोना महामारी की तरह ही युद्ध की कठिन परिस्थितियों में घायलों का इलाज किया और दुःखी परिवारों की पूरी मदद की।
पिज़ेश्कियान ने ज़ायोनी शासन द्वारा थोपी गई आक्रामकता के दौरान देश की रक्षा और सेवाओं को जारी रखने में सशस्त्र बलों, राहतकर्मियों, चिकित्सा कर्मियों और मीडिया की भूमिका की भी प्रशंसा की।
उन्होंने इस राष्ट्रीय एकता को दुश्मन के घिनौने मंसूबों की विफलता का कारण बताया। उन्होंने इस एकजुटता को ईरान की प्रतिष्ठा, आज़ादी और प्रगति का आधार बताया।
संदेश के अंत में, ईरान के राष्ट्रपति ने देश के चिकित्सा कर्मियों के लिए स्वास्थ्य, सफलता और शुभकामनाएं व्यक्त कीं। उन्होंने युद्ध के कठिन दिनों और उसके बाद जनता की सेवा करने वाले सभी संस्थानों और बलों का हृदय से आभार व्यक्त किया और कहा कि उनका योगदान ईरानी राष्ट्र के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाएगा।
इज़रायल के पूर्व प्रधानमंत्री ने नेतन्याहू से ग़ाज़ा में तुरंत युद्ध खत्म करने की मांग की
इज़रायल में विपक्ष के नेता और पूर्व प्रधानमंत्री यायर लैपिड ने ग़ाज़ा के उत्तरी क्षेत्र बैते हानून में इज़रायली सैनिकों की मौत पर प्रतिक्रिया देते हुए ग़ाज़ा युद्ध को ख़त्म करने की मांग की है।
इज़रायल में विपक्ष के नेता और पूर्व प्रधानमंत्री यायर लैपिड ने ग़ाज़ा के उत्तरी क्षेत्र बैते हानून में इज़रायली सैनिकों की मौत पर प्रतिक्रिया देते हुए ग़ाज़ा युद्ध को ख़त्म करने की मांग की है।
लैपिड ने यह बयान उस समय दिया जब बेंजामिन नेतन्याहू, अमेरिका में व्हाइट हाउस की आधिकारिक बैठकों में शामिल हो रहे है उन्होंने कहा,इज़रायल की खातिर, यह युद्ध अब ख़त्म होना चाहिए।
लैपिड ने दो अलग अलग संदेशों में ‘बैत हानून’ ऑपरेशन में मारे गए इज़रायली सैनिकों पर शोक जताया। यह हमला सड़क किनारे बम विस्फोट से शुरू हुआ, जिसने वहाँ से गुजर रही इज़रायली सेना को निशाना बनाया इसके बाद राहत और बचाव दल पर भी दोबारा धमाके और सीधी फायरिंग की गई।
इज़रायली सेना ने अब तक 5 सैनिकों की मौत और 14 के घायल होने की पुष्टि की है, जबकि ग़ैर-इज़रायली सूत्रों के अनुसार मृतकों की संख्या इससे अधिक हो सकती है।हमास के सैन्य विंग ‘कताइब अल-क़स्साम’ के प्रवक्ता अबू उबैदा ने इस ऑपरेशन के बाद चेतावनी दी कि, यदि इज़राइली सेना ग़ाज़ा में बनी रही, तो और सैनिकों की गिरफ़्तारी और मौतें होंगी।