
رضوی
"दुनिया ने ईरान के अद्वितीय हथियारों की प्रभावशीलता देख ली
सेंट पीटर्सबर्ग माइनिंग यूनिवर्सिटी के कुलपति ने 12-दिवसीय युद्ध में इज़रायल और अमेरिका की कार्रवाइयों की निंदा करते हुए कहा: "ईरानी सशस्त्र बलों ने अपने वैज्ञानिकों और इंजीनियरों के अथक प्रयासों से विकसित अद्वितीय हथियारों का कुशलतापूर्वक उपयोग करके अपनी क्षमता का प्रदर्शन किया।
समाचार एजेंसी पार्सटुडे के अनुसार प्रोफ़ेसर व्लादिमीर लिटविनेंको ने इमाम हुसैन यूनिवर्सिटी के कुलपति मोहम्मद रेज़ा हसनी आहनगर को लिखे पत्र में यह बात कही, जिसकी एक प्रति मंगलवार को मॉस्को स्थित आईआरएनए कार्यालय को सौंपी गई।
सेंट पीटर्सबर्ग माइनिंग यूनिवर्सिटी के कुलपति ने ज़ोर देकर कहा: "हालिया इज़राइली हमलों में ईरानी वैज्ञानिकों, उनके परिवारों और अन्य नागरिकों की हत्या मानव जीवन के मौलिक अधिकार और अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानूनों का स्पष्ट उल्लंघन है जिसकी वैश्विक स्तर पर निंदा होनी चाहिए।"
विश्व बहुध्रुवीय व्यवस्था की ओर आगे बढ़ रहा है
पत्र में उन्होंने इज़राइल और अमेरिका द्वारा इस्लामिक रिपब्लिक ईरान पर सैन्य आक्रमण का कारण विश्व की एकध्रुवीय व्यवस्था से बहु-ध्रुवीय व्यवस्था की ओर अग्रसर होने की प्रक्रिया में देखा। उन्होंने कहा:
"उदारवाद का संकट मानव जीवन के सभी पहलुओं में स्पष्ट है। इसने हमारी सभ्यता को न केवल सांस्कृतिक, वैचारिक, वैज्ञानिक, तकनीकी और आर्थिक गतिरोध में धकेल दिया है बल्कि इसके अस्तित्व को भी गंभीर खतरे में डाल दिया है।
अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में हाल के वर्षों में हुए परिवर्तनों का उल्लेख करते हुए लिटविनेंको ने कहा:
तब से अब तक विश्व मूलभूत रूप से बदल गया है और क्षेत्रीय व्यवस्था का एक नया युग शुरू हो गया है।
उन्होंने आगे कहा: इस संदर्भ में, उदारवादी विचारधारा पतन, विघटन और मृत्यु के संकेत प्रदर्शित कर रही है। साथ ही, हम पतनकारी सांस्कृतिक प्रसार, विकृतियों का वैधीकरण, पारिवारिक संस्था का विध्वंस, अल्पसंख्यकों का तानाशाही रवैया, जन्म दर में गिरावट, सार्वजनिक रूप से शैतानवाद का प्रचार और वैचारिक व राजनीतिक हितों के लिए विज्ञान के साधनात्मक दुरुपयोग को देख रहे हैं।
ईरान पर हमला निराधार था
सेंट पीटर्सबर्ग माइनिंग यूनिवर्सिटी के कुलपति का मानना है:
"वर्तमान परिस्थितियों में हम राष्ट्रीय संप्रभुता को नष्ट करने, वैध सरकारों को गिराने और सशस्त्र संघर्ष भड़काने के प्रयास देख रहे हैं। परमाणु विश्वयुद्ध द्वारा मानवता के विनाश की धमकी अब कोई भयावह कल्पना नहीं, बल्कि एक ठोस वास्तविकता बन चुकी है। जैसा कि ईरान में हुआ - बिना किसी उचित कारण के अमेरिका ने अपनी पूर्व शक्ति का प्रदर्शन करने हेतु परमाणु प्रौद्योगिकी विकसित करने की संभावना वाले केंद्रों पर बमबारी की।"
राष्ट्रीय संप्रभुता की रक्षा में अग्रणी ईरान
लिटविनेंको ने पत्र के एक अन्य भाग में उल्लेख किया:
"पारंपरिक मूल्यों पर आधारित ईरान, वैश्विक उदारवाद-विरोधी इस परिवर्तन और पश्चिम के विरोध में, राष्ट्रीय संप्रभुता की रक्षा करने वाले अग्रणी देशों की पंक्ति में खड़ा है।
शोक संदेश
पत्र के अंत में इमाम हुसैन विश्वविद्यालय के कुलपति को संबोधित करते हुए उन्होंने लिखा:
"कृपया हमारे विश्वविद्यालय के शैक्षणिक स्टाफ और कर्मचारियों की हार्दिक संवेदनाएँ निर्दोष पीड़ितों के परिवारों और गौरवशाली ईरानी जनता तक पहुँचाएँ। हमारी आशा है कि यह दुःख आपके राष्ट्र को स्वयं की संप्रभुता की रक्षा के मार्ग में और अधिक एकजुट करेगा।"
सेंट पीटर्सबर्ग माइनिंग यूनिवर्सिटी ने अपनी वेबसाइट पर इस पत्र को प्रकाशित करते हुए लिखा है: "पिछले कुछ हफ्तों में, इस्लामिक रिपब्लिक ईरान के कई प्रतिष्ठित और विश्व-विख्यात शोधकर्ता आतंकवादी कार्यवाहियों के शिकार होकर शहीद हुए हैं।
रूसी विश्वविद्यालय ने आगे कहा: "इनमें से अनेक वैज्ञानिक हस्तियाँ हमारे विश्वविद्यालय के शिक्षाविदों के लिए परिचित थीं, क्योंकि ईरान के प्रमुख विश्वविद्यालयों के साथ सहयोग के दौरान उनके साथ घनिष्ठ संपर्क था।"
रिपोर्ट में जोड़ा गया: "रूसी संघ के एक रणनीतिक साझेदार के रूप में रूसी विशेषज्ञों के ईरान में प्रशिक्षण कार्यक्रम और ईरानी शोधकर्ताओं की रूस की उत्तरी राजधानी सेंट पीटर्सबर्ग की वैज्ञानिक यात्राएँ हमेशा पूरी तरह से रचनात्मक और शैक्षणिक प्रकृति की रही हैं। इस संदर्भ में तेल निष्कर्षण एवं प्रसंस्करण, ऊर्जा, खनिज संसाधनों की खोज और पहचान जैसे क्षेत्रों में अंतर्राष्ट्रीय समूह बने हैं और सफलतापूर्वक कार्य कर रहे हैं।
विश्वविद्यालय ने बताया: "दोनों देशों के प्रतिष्ठित प्रोफेसरों के मार्गदर्शन में छात्र पारस्परिक समर स्कूलों में भाग लेते रहे हैं। 'हम साथ में अधिक मजबूत हैं' का नारा न केवल पिछले सहयोगों का केंद्रबिंदु रहा है बल्कि संयुक्त कार्यक्रम 'उम्मीद-मोबाइल इंटेलिजेंस' का मुख्य आदर्श वाक्य बना हुआ है।
ग़ाज़ा युद्ध में ज़ायोनी सैनिकों के हताहतों की संख्या क्यों बढ़ रही है?
ग़ाज़ा युद्ध, विशेषकर हाल के हफ़्तों में ज़ायोनी शासन के हताहतों में वृद्धि के लिए चार मुख्य कारक ज़िम्मेदार हैं।
अल-मयादीन टीवी चैनल ने मंगलवार को एक लेख में बताया कि ग़ाज़ा पट्टी में ज़ायोनी शासन द्वारा "ऑपरेशन गिडियन्स चारियट्स" शुरू करने के बाद से, इस शासन के हताहतों की संख्या अभूतपूर्व रूप से बढ़ गई है। हाल के हफ्तों में ख़ान यूनिस और शुजाईया क्षेत्रों में प्रतिरोध बलों द्वारा कई हमले किए गए हैं।
इन ऑपरेशनों, विशेष रूप से ख़ान यूनिस में एक बख़्तरबंद वाहन में 16 ज़ायोनी सैनिक मारे गये। यह कार्यवाही बहुत ही साहसिक तरीके से अंजाम दी गयी और यह लंबे समय तक जारी रहेगी। 8 मार्च को ज़ायोनी शासन द्वारा ग़ाज़ा पर फिर से हमला करने से पहले ऐसा नहीं देखा गया था।
हाल के हफ्तों में ग़ाज़ा में संघर्ष की गतिशीलता में उल्लेखनीय बदलाव आया है। ज़ायोनी शासन द्वारा व्यापक सेंसरशिप के बावजूद, ऑपरेशनल और सामरिक स्तर पर कई घटनाएँ घटी हैं जिन्होंने ज़ायोनी सैनिकों को तहस-नहस कर दिया है। इन घटनाओं के कारण कई सैनिक युद्ध जारी रखने के खिलाफ़ नाराज़ हैं और कुछ ने रिज़र्व फोर्सेज में शामिल होने से इनकार कर दिया है।
नए विस्फोटक सामग्री तक पहुँच
इन परिवर्तनों में से एक विशेष रूप से अल-क़स्साम और अल-कुद्स ब्रिगेड्स द्वारा नए प्रकार के हस्तनिर्मित बमों का उपयोग है। इनमें से कुछ जैसे "शोवाज़" और "साक़िब" बम ज़मीन में दबाए जाते हैं और दुश्मन के भारी टैंकों और सैन्य वाहनों को निशाना बनाते हैं जबकि कुछ "एंटी-पर्सनल" बम हैं जो टैंकों और वाहनों के बाहर मौजूद दुश्मन सैनिकों को भारी नुकसान पहुँचाते हैं।
यह एक महत्वपूर्ण प्रगति है जिसका एक बड़ा नतीजा यह है कि प्रतिरोध समूहों ने अत्यधिक विस्फोटक क्षमता वाली बड़ी मात्रा में विस्फोटक सामग्री हासिल कर ली है जो पहले उनके पास नहीं थी। ऐसा लगता है कि "सी-4" जैसे उच्च-शक्तिशाली विस्फोटकों तक पहुँच, जासूसों और भाड़े के सैनिकों द्वारा किए जाने वाले विध्वंसक अभियानों के लिए भेजे गए सामानों को ज़ब्त करके हासिल की गई है। प्रतिरोध ने इन सामग्रियों को अंधेरे बिंदुओं अर्थात अंधेरे स्थानों में पाया और अपने नए बमों के निर्माण में इनका उपयोग कर रहा है। इनमें से एक बड़ा हिस्सा एंटी-आर्मर बम बनाने में प्रयोग किया जा रहा है जो ज़ायोनी दुश्मन के बख़्तरबंद उपकरणों में आसानी से घुसपैठ करने की क्षमता रखते हैं।
प्रतिरोध की संयुक्त कार्यवाहियों की रणनीतिक क्षमता का विस्तार
दूसरी ओर फिलिस्तीनी प्रतिरोध की रणनीतिक क्षमताएं, विशेष रूप से संयुक्त हमलों को अंजाम देने के मामले में, बढ़ी हुई प्रतीत होती हैं। वे अलग-अलग क्षेत्रों में इस प्रकार की कार्यवाहियों को कर रहे हैं। ये हमले आमतौर पर बड़े पैमाने के विस्फोटकों से शुरू होते हैं जिसके बाद हल्की और मध्यम मशीनगनों से सीधी मुठभेड़ की जाती है। कुछ दिन पहले शुजाईया क्षेत्र में हुआ "अल-हुदा हमला" भी इसी प्रकार का था।
संयुक्त घात लगाने और हमला करने की एक महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि यह दुश्मन सैनिकों को आराम करने या उचित प्रतिक्रिया देने का मौका नहीं देता बल्कि उन्हें गलत परिचालनात्मक निर्णय लेने के लिए मजबूर करता है। कई मामलों में, इससे दुश्मन के नुकसान और भी बढ़ जाते हैं।
इज़राइली शासन के युद्ध योजनाओं की पुनरावृत्ति
तीसरा महत्वपूर्ण रणनीतिक कारक - जिसका महत्व पिछले बिंदुओं से कम नहीं है - वह है ज़ायोनी शासन की सेना द्वारा बार-बार एक ही तरह की परिचालन योजनाओं का उपयोग। इससे प्रतिरोधक बलों को इज़राइली सेना के हमलों के तरीके, उनके मार्ग और उनके द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले हथियारों की पूर्व जानकारी हो जाती है। कई वीडियो साक्ष्य दिखाते हैं कि ज़ायोनी सैनिक लंबे समय तक प्रतिरोध बलों की निगरानी में रहते हैं।
अवैध अधिकृत क्षेत्रों में ज़ायोनी शासन के सैन्य कमांडरों की कड़ी आलोचना हो रही है। उन पर सेना और सैन्य नेतृत्व को नई युद्ध योजनाओं की कमी और लड़ने की इच्छाशक्ति खोने का आरोप लगाया जा रहा है। यह सिर्फ अधिकारियों और सैनिकों के मनोबल में कमी का मामला नहीं है बल्कि यह "रणनीतिक दिवालियापन" का परिणाम है जो युद्ध के लंबे खिंच जाने के कारण पैदा हुआ है। यह ग़ाज़ा में तैनात बड़ी संख्या में ज़ायोनी सैनिकों में पनप रही निराशा और हताशा को और बढ़ा रहा है।
ज़ायोनी शासन द्वारा पुराने और अप्रचलित उपकरणों व हथियारों का उपयोग
तेल अवीव के नुकसान बढ़ने का चौथा प्रमुख कारण यह है कि ज़ायोनी सेना अपने अभियानों में कई ऐसे उपकरणों का उपयोग कर रही है जिन्हें पिछले कई वर्षों से अप्रचलित घोषित किया जा चुका था। इससे प्रतिरोध बलों के हमलों के कारण होने वाली क्षति और हताहतों की संख्या में वृद्धि हुई है जिससे इज़राइल को भारी जान-माल का नुकसान उठाना पड़ा है।
विशेष रूप से हाल के महीनों में ज़ायोनी बलों ने मुख्य रूप से पुराने और जर्जर टैंकों तथा बख्तरबंद वाहनों का उपयोग किया है जो अक्सर पूरी तरह से नष्ट हो जाते हैं या विस्फोटों में जलकर खाक हो जाते हैं। यह स्थिति ज़ायोनी सेना के बख्तरबंद डिवीजन में उपकरणों की कमी के कारण पैदा हुई है जिसकी पुष्टि इज़राइली सेना के प्रमुख जनरल हेरज़ल हेलेवी ने भी की थी।
इनमें "बूमा", "शोज़ारित" और "एम-113" बख्तरबंद वाहनों के साथ-साथ तीसरी पीढ़ी के "मिर्कावा" टैंक शामिल हैं जिन्हें कई साल पहले सेवामुक्त कर दिया गया था लेकिन अब उन्हें फ़िर से युद्ध क्षेत्र में उतारा गया है। इज़राइली सेना को "डी-9" बुलडोज़रों की भी कमी का सामना करना पड़ रहा है जिसके कारण उसे कम सुरक्षा वाले उपकरणों और वाहनों का उपयोग करना पड़ रहा है। इससे प्रतिरोध बलों को न्यूनतम प्रयास से ही इन उपकरणों को नुकसान पहुँचाने का अवसर मिल जाता है।
अल-मयादीन ने अपनी रिपोर्ट के अंत में स्पष्ट किया है कि युद्धविराम वार्ताओं से अलग - जिन्हें कई लोग जटिल मानते हैं - ज़ायोनी सेना पर युद्ध के बढ़ते खर्च का आंतरिक मोर्चे और मैदान में तैनात इज़राइली सैनिकों पर गहरा मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ रहा है। इससे ज़ायोनी शासन के इस युद्ध के लक्ष्यों का दायरा सिमट रहा है और अंततः यह अधिकृत भूमि में चरमपंथी दक्षिणपंथी सरकार के पतन का कारण बन सकता है।
इस्लामिक रिपब्लिक ईरान के साथ सीधे टकराव में ज़ायोनी शासन की भारी हार के बाद यह बात विशेष रूप से और अधिक स्पष्ट हो गई है। अब यह महसूस किया जा रहा है कि ज़ायोनी शासन की सैन्य और राजनीतिक स्थिति पहले से कहीं अधिक कमज़ोर हुई है जिससे उसके आंतरिक मोर्चे पर दबाव बढ़ता जा रहा है।
गाज़ा में शहीदों की संख्या 57 हजार 680 तक पहुंच गई; इजरायली आक्रामकता जारी
फिलिस्तीन के स्वास्थ्य मंत्रालय ने बुधवार को ज़ायोनी आक्रामकता के नवीनतम आंकड़े जारी करते हुए घोषणा की है कि गाजा पर जारी इजरायली हमलों में शहीदों की संख्या 57 हजार 680 तक पहुंच चुकी है, जबकि घायलों की कुल संख्या 1 लाख 37 हजार 409 हो गई है।
फिलिस्तीन के स्वास्थ्य मंत्रालय ने बुधवार को ज़ायोनी आक्रामकता के नवीनतम आंकड़े जारी करते हुए घोषणा की है कि गाजा पर जारी इजरायली हमलों में शहीदों की संख्या 57 हजार 680 तक पहुंच चुकी है, जबकि घायलों की कुल संख्या 1 लाख 37 हजार 409 हो गई है।
स्वास्थ्य मंत्रालय गाज़ा के अनुसार पिछले 24 घंटों के दौरान ज़ायोनी हमलों में 105 फिलिस्तीनियों की शहादत और 530 लोग घायल हुए, जिन्हें विभिन्न अस्पतालों में भर्ती कराया गया है।
एक रिपोर्ट के अनुसार, 7 अक्टूबर 2023 से अब तक इजरायली हमलों के परिणामस्वरूप गाजा में मानवीय त्रासदी और भी गंभीर होती जा रही है। विशेष रूप से 18 मार्च 2025 को इजरायल द्वारा अस्थायी युद्धविराम समाप्त किए जाने के बाद से अब तक 7 हजार 118 और लोग शहीद तथा 25 हजार 368 फिलिस्तीनी घायल हो चुके हैं।
स्वास्थ्य मंत्रालय ने यह भी स्पष्ट किया कि अभी भी दर्जनों शहीदों के शव मलबे के नीचे दबे हुए हैं या सड़कों पर पड़े हुए हैं, जहां तक नागरिक सुरक्षा और बचाव दल लगातार बाधाओं के कारण नहीं पहुंच पाए हैं।
इस बीच, इजरायली सेना द्वारा सहायता सामग्री प्राप्त करने के लिए एकत्र हुए फिलिस्तीनी नागरिकों पर हमले भी जारी हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय ने बताया कि पिछले 24 घंटों में सहायता की प्रतीक्षा कर रहे सात लोग शहीद और 57 घायल हुए। अब तक इजरायली आक्रामकता के दौरान सहायता का इंतजार कर रहे 773 फिलिस्तीनी शहीद और 5 हजार 101 से अधिक घायल हो चुके हैं।
यह बर्बर हमले ऐसे समय में जारी हैं जब अंतरराष्ट्रीय संगठन और मानवाधिकार संस्थाएं अपराधिक चुप्पी साधे हुए हैं और फिलिस्तीनी जनता सबसे भयानक मानवीय संकट का सामना कर रही है।
ईरानी जनता ने दुश्मनों के आक्रमण के सामने एकता और प्रतिरोध से डटकर मुकाबला किया
बासिज संगठन के प्रमुख ने कहा,दुश्मनों को यह गलतफहमी थी कि सैन्य हमलों के शुरू होते ही लोग सड़कों पर उतर आएंगे लेकिन ईरान की जनता ने सर्वोच्च नेता के मार्गदर्शन और अपनी एकता के बल पर बड़ी जीत हासिल की।
बासिज संगठन के प्रमुख सरदार गुलामरजा सुलेमानी ने 12 दिनों के थोपे गए युद्ध के शहीदों के सम्मान में आयोजित कार्यक्रम में दुश्मनों की गलत भविष्यवाणियों का जिक्र करते हुए कहा,उन्हें लगता था कि सैन्य हमलों के साथ ही ईरान के लोग सड़कों पर उतरकर व्यवस्था के खिलाफ हो जाएंगे।
यह न सिर्फ गलत, बल्कि मूर्खतापूर्ण आकलन था जिसने हमारी मातृभूमि पर आक्रमण का रास्ता साफ किया।
सुलेमानी ने कहा कि दुश्मनों के तीन मुख्य लक्ष्य थे, ईरानी व्यवस्था को गिराना,ईरान का विखंडन करना,देश के परमाणु ढांचे को नष्ट करना,लेकिन ईरानी जनता ने दिखा दिया कि वह ऐसी धमकियों का कैसे जवाब देती है।
उन्होंने कहा,ईरान की जनता ने इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता के नेतृत्व में मैदान में उतरकर एक सामरिक जीत हासिल की। इस जीत के असली ध्वजवाहक शहीद हैं और कमांडर-इन-चीफ इस सफलता के सृजक हैं लेकिन जनता के बिना यह जीत संभव नहीं थी।
सुलेमानी ने जोर देकर कहा कि युद्ध के पहले ही दिनों में ईरानी जनता ने अपनी मौजूदगी से दुश्मन को हरा दिया। दुश्मन की योजना 10 दिनों में तीन चरणों में अपने मंसूबे पूरे करने की थी, लेकिन ईरानी जनता ने हजारों साल के इतिहास में अद्वितीय एकता का परिचय देते हुए निर्णायक सामरिक जीत दर्ज की।
इजरायली आक्रामकता ने पश्चिमी एशिया की शांति और स्थिरता को खतरे में डाल दिया
ईरानी विदेश मंत्री ने सऊदी क्राउन प्रिंस से मुलाकात में कहा,इज़राईली सरकार और अमेरिका की सैन्य आक्रामकता ने पूरे पश्चिमी एशिया की शांति और स्थिरता को एक अभूतपूर्व खतरे में डाल दिया है।
ईरान के विदेश मंत्री सैयद अब्बास अराकची ने मंगलवार रात सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस और मंत्रिपरिषद के अध्यक्ष मोहम्मद बिन सलमान से मुलाकात की। मुलाकात में दोनों देशों के बीच संबंधों और आपसी सहयोग के मुद्दों की समीक्षा की गई।
विदेश मंत्री अराकची ने इस अवसर पर ईरान और सऊदी अरब के बीच संबंधों को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि इस्लामी गणतंत्र ईरान अपने पड़ोसी देशों, विशेष रूप से सऊदी अरब के साथ अच्छे पड़ोसी संबंध और दोनों राष्ट्रों के हित के आधार पर संबंध मजबूत बनाना चाहता है। उन्होंने आर्थिक, व्यापारिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में संबंधों को बढ़ावा देने के लिए ईरान की तैयारी भी व्यक्त की।
ईरानी विदेश मंत्री ने ईरान के खिलाफ हुई आक्रामकता की निंदा पर सऊदी अरब के जिम्मेदार रुख की सराहना की और क्षेत्र की हालिया सुरक्षा स्थिति पर ईरान का रुख स्पष्ट किया। उन्होंने कहा कि अमेरिका और इजरायल की आपराधिक सैन्य कार्रवाइयाँ न केवल संयुक्त राष्ट्र के चार्टर और अंतरराष्ट्रीय कानूनों की खुली अवहेलना हैं, बल्कि परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकने के समझौते (NPT) की भी स्पष्ट अवहेलना हैं।
उन्होंने चेतावनी दी कि ऐसी कार्रवाइयाँ पूरे पश्चिमी एशिया की शांति और स्थिरता को अभूतपूर्व खतरे में डाल रही हैं अराकची ने जोर देकर कहा कि क्षेत्र के सभी देशों का एकजुट और मजबूत रुख इस बात का प्रमाण है कि ज़ायोनी नस्लवादी और विस्तारवादी महत्वाकांक्षाओं के खिलाफ संयुक्त कार्रवाई समय की महत्वपूर्ण आवश्यकता है।
इस अवसर पर सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने ईरान और सऊदी अरब के बीच बढ़ती समझदारी और सहयोग पर संतोष व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि सऊदी नेतृत्व इस सकारात्मक प्रक्रिया को जारी रखने और दोनों देशों के संबंधों को हर क्षेत्र में विस्तार देने के लिए प्रतिबद्ध है।
क्राउन प्रिंस ने ईरान की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता पर हुई सैन्य आक्रामकता की कड़ी निंदा करते हुए कहा कि क्षेत्र की शांति और स्थिरता का संरक्षण केवल क्षेत्र के देशों के आपसी सहयोग और समझदारी से संभव है।
उन्होंने आगे कहा कि सऊदी अरब अपने सभी संसाधनों का उपयोग करते हुए क्षेत्र में बढ़ती अस्थिरता को रोकने और समस्याओं के समाधान के लिए राजनयिक साधनों का उपयोग करने के लिए तैयार है और हर संभव सहयोग प्रदान करेगा।
अमेरिकी धमकियों और ज़ायोनी दुस्साहस के गंभीर और अपूरणीय परिणाम होंगे: जामेअतुल मुस्तफ़ा
जामेअतुल मुस्तफ़ा ने अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा सर्वोच्च नेता को दी गई हत्या की धमकी की कड़ी निंदा की है और चेतावनी दी है कि इस तरह के ईशनिंदापूर्ण कृत्यों के परिणाम गंभीर होंगे और अमेरिका, ज़ायोनी शासन और उनके सहयोगियों को अपूरणीय क्षति का सामना करना पड़ेगा।
जामेअतुल मुस्तफ़ा ने अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा सर्वोच्च नेता को दी गई हत्या की धमकी की कड़ी निंदा की है और चेतावनी दी है कि इस तरह के ईशनिंदापूर्ण कृत्यों के परिणाम गंभीर होंगे और अमेरिका, ज़ायोनी शासन और उनके सहयोगियों को अपूरणीय क्षति का सामना करना पड़ेगा।
जामेअतुल मुस्तफ़ा ने अपने बयान में स्पष्ट किया है कि यह शैक्षणिक, धार्मिक और अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, जो संवाद, सह-अस्तित्व, शांति, आध्यात्मिकता और न्याय का वैश्विक समर्थक है, महान इस्लामी विद्वानों, विशेषकर अयातुल्ला मकारम शिराज़ी और नूरी हमदानी द्वारा मरजाइय्यात की रक्षा में दिए गए स्पष्ट फतवों का पूर्ण समर्थन करता है।
बयान में कहा गया है कि अमेरिका और ज़ायोनी शासन द्वारा धार्मिक और राजनीतिक नेताओं को निशाना बनाना अंतर्राष्ट्रीय कानून, मानवाधिकारों और जिनेवा कन्वेंशन सहित सभी मानवीय सिद्धांतों का स्पष्ट उल्लंघन है। धार्मिक नेताओं को निशाना बनाना धार्मिक घृणा भड़काने, हिंसक प्रवृत्तियों को बढ़ावा देने और विश्व शांति को खतरे में डालने के समान है।
जामेअतुल मुस्तफ़ा ने इस बात पर ज़ोर दिया है कि इस्लामी दुनिया के महान विद्वानों - चाहे वे क़ुम, नजफ़, अल-अज़हर या अन्य शैक्षणिक केंद्रों में हों - ने स्पष्ट रूप से किसी भी धार्मिक या राजनीतिक व्यक्ति को धमकी देने या मारने को पृथ्वी पर युद्ध और भ्रष्टाचार घोषित किया है, जिसकी कड़ी निंदा की जाती है और इस्लामी कानून के अनुसार कड़ी सज़ा का हकदार है।
बयान में अंतर्राष्ट्रीय संगठनों, मानवाधिकार संगठनों और सभी स्वतंत्र सोच वाले व्यक्तियों से वैश्विक शांति, आध्यात्मिक मूल्यों और मानवता की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए ऐसी उत्तेजक कार्रवाइयों के खिलाफ कड़ा रुख अपनाने की अपील की गई।
ईदे ग़दीर
जिस वक़्त पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम के पास ईश्वरीय संदेश वही लाने वाले फ़रिश्ते हज़रत जिबरईल मायदा सूरे की आयत नंबर 67 लेकर उतेर कि जिसमें ईश्वर कह रहा है, हे पैग़म्बर! जो बात आप तक पहुंचायी जा चुकी है उसे लोगों तक पहुंचा दीजिए, पैग़म्बरे इस्लाम किसी बात से बहुत चिंतित थे। उन्हें इस्लाम के भविष्य की ओर से चिंता थी। यही कारण था कि आयत नंबर 67 के संदेश को पहुंचाने में विलंब करते जा रहे थे ताकि उचित समय पर ईश्वर के इस संदेश को लोगों तक पहुंचाएं किन्तु ईश्वर का यह
ईदे ग़दीर
जिस वक़्त पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम के पास ईश्वरीय संदेश वही लाने वाले फ़रिश्ते हज़रत जिबरईल मायदा सूरे की आयत नंबर 67 लेकर उतेर कि जिसमें ईश्वर कह रहा है, हे पैग़म्बर! जो बात आप तक पहुंचायी जा चुकी है उसे लोगों तक पहुंचा दीजिए, पैग़म्बरे इस्लाम किसी बात से बहुत चिंतित थे। उन्हें इस्लाम के भविष्य की ओर से चिंता थी। यही कारण था कि आयत नंबर 67 के संदेश को पहुंचाने में विलंब करते जा रहे थे ताकि उचित समय पर ईश्वर के इस संदेश को लोगों तक पहुंचाएं किन्तु ईश्वर का यह संदेश दुबारा कुछ और बातों के इज़ाफ़े के साथ आया। इस बार के संदेश में एक तरह की धमकी थी। ईश्वर ने पैग़म्बरे इस्लाम से दो टूक शब्दों में कहा कि अगर आपने यह संदेश नहीं पहुंचाया तो मानो आपने अपना दायित्व नहीं निभाया। उसके बाद ईश्वर ने पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम को यह भी संदेश भिजवाया कि वह उन्हें लोगों की ओर से ख़तरे से बचाएगा ।
दसवीं हिजरी क़मरी का ज़माना था। पैग़म्बरे इस्लाम ने हज का एलान किया और लोगों को यह कहलवा भेजा कि जिस जिस व्यक्ति में हज करने की क्षमता है वह ज़रूर हज करे क्योंकि ईश्वर के दो संदेश अभी भी संपूर्ण रूप में लोगों तक नहीं पहुंचे थे। एक हज और दूसरा पैग़म्बरे इस्लाम के उत्तराधिकारी का विषय था। इस सार्वजनिक एलान के बाद ज़्यादातर मुसलमान हज के मौक़े पर मक्का पहुंचे ताकि हज के विषय को विस्तार से समझ सकें। इसके अलावा पैग़म्बरे इस्लाम ने सांकेतिक रूप में यह भी कहलवा दिया था कि यह उनका आख़िरी हज होगा। यही कारण था कि सन दस हिजरी क़मरी के हज के अवसर पर 120000 हाजी हज करने पहुंचे। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम हज के संस्कार एक के बाद एक अंजाम देते और उसके बारे में विस्तार से बताते जाते थे।
मिना के मैदान में पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम ने एक बड़ा भाषण दिया। इस भाषण में पैग़म्बरे इस्लाम ने सबसे पहले मुसलमानों की जान, माल, और इज़्ज़त की नज़र से सामाजिक सुरक्षा का उल्लेख किया। उसके बाद अज्ञानता के काल में निर्दोष लोगों के बहाए गए ख़ून और छीने गए माल को क्षमा कर दिया ताकि लोगों के मन से एक दूसरे के प्रति द्वेष ख़त्म हो जाए और सामाजिक सुरक्षा के लिए माहौन बन जाए। उसके बाद पैग़म्बरे इस्लाम ने मुसलमानों को आपस में मतभेद व फूट से दूर रहने की सिफ़ारिश की और एक प्रसिद्ध कथन सुनाया जो ‘हदीसे सक़लैन’ के नाम से मशहूर है।
पैग़म्बरे इस्लाम ने कहा, मैं दो मूल्यवान चीज़ें तुम्हारे बीच छोड़ कर जा रहा हूं अगर इन दोनों से जुड़े रहे तो मेरे बाद कभी भी सही राह से नहीं भटकोगे। एक ईश्वर की किताब क़ुरआन और दूसरे मेरे पवित्र परिजन हैं। मिना के मैदान में ठहराव के तीसरे दिन पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम ने लोगों को ख़ीफ़ नामक मस्जिद में इकट्ठा होने का आदेश दिया। वहां भी पैग़म्बरे इस्लाम ने भाषण दिया। इस भाषण में लोगों को कर्म में शुद्धता, मुसलमानों के मार्गदर्शक के साथ हमदर्दी और आपस में मतभेद से दूर रहने की नसीहत की और इस बात पर बल दिया कि मुसलमान आपस में ईश्वरीय आदेश के अनुसार, अधिकार की दृष्टि से बराबर हैं। उसके बाद अपने उत्तराधिकरी जैसे महत्वपूर्ण विषय की ओर संकेत किया और हदीसे सक़लैन को दोहराया।
पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम अपनी जन्म भूमि मक्का से दस साल तक दूर रहने के बाद, मक्का लौटे थे। इसलिए लोग यह समझ रहे थे कि वह हज के संस्कार पूरे होने के बाद कुछ दिन वहां ठहरेंगे। लेकिन जैसे ही हज ख़त्म हुआ पैग़म्बरे इस्लाम ने हज़रत बेलाल से कहा कि वह लोगों तक यह संदेश पहुंचाए कि सबके सब मक्का से बाहर निकलें। लगभग सभी हाजी पैग़म्बरे इस्लाम के साथ थे। यहां तक कि यमन के वे हाजी भी उनके साथ थे जिनका मार्ग उत्तर की ओर था। जब हाजियों का यह कारवां कुराअल ग़मीम नामक क्षेत्र में पहुंचा जहां ग़दीरे ख़ुम स्थित है, तो पैग़म्बरे इस्लाम ने कहा कि हे लोगो! मेरी बात को मानो कि ईश्वर का पैग़म्बर हूं। पैग़म्बर का यह वाक्य किसी बहुत बड़े संदेश की पृष्ठिभूमि था। उसके बाद पैग़म्बरे इस्लाम ने सारे हाजियों को रुकने का आदेश दिया।
इस आदेश पर सारे हाजी रुक गए। जो हाजी आगे बढ़ गए थे वे पीछे लौटे यहां तक कि सारे हाजी ग़दीरे ख़ुम नामक इलाक़े में इकटठा हो गए। वहां पर मौजूद पत्थरों और ऊंटों के कजावे से लोगों के बीचो बीच बहुत ऊंचा मिम्बर बनाया गया ताकि पैग़म्बरे इस्लाम जब भाषण दें तो सबके सब उन्हें देख सकें और उनकी बात सुन सकें। लोगों की प्रतीक्षा की घड़ी ख़त्म हुयी। पहले अज़ान दी गयी और हाजियों ने ज़ोहर की नमाज़ पढ़ी। उसके बाद पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम मिंबर पर खड़े हुए और हज़रत अली अलैहिस्सलाम को बुलवाया और उनसे मिंबर के दाहिने ओर एक पायदान नीचे खड़े होने के लिए कहा।
उसके बाद पैग़म्बरे इस्लाम ने दुनिया वालों के लिए अपना आख़िरी भाषण देना शुरु किया। उन्होंने ईश्वर की प्रशंसा व गुणगान के बाद कहा कि ईश्वर ने मुझे यह संदेश भेजा है, हे पैग़म्बर जो बात आप पर पहले भेजी जा चुकी है उसे लोगों तक पहुंचाइये। अगर ऐसा न किया तो मानो पैग़म्बरी का दायित्व नहीं निभाया और ईश्वर उन लोगों से आपकी रक्षा करेगा जो आपको नुक़सान पहुंचाना चाहते हैं। उसके बाद पैग़म्बरे इस्लाम ने प्रेम व स्नेह से भरे स्वर में लोगों से कहा, हे लोगो! ईश्वर ने जो कुछ मुझ पर नाज़िल किया उसे पहुंचाने में मैंने तनिक लापरवाही नहीं की। मैं आप लोगों को इस आयत के उतरने का कारण बताना चाहता हूं। जिबरईल तीन बार मेरे पास आए और ईश्वर की ओर से मुझे यह आदेश दिया कि आप सबको यह बताऊं कि अली इब्ने अबी तालिब मेरे भाई मेरे बाद मुसलमानों पर मेरे उत्तराधिकारी व इमाम हैं। हे लोगो! मैंने जिबरईल से कहा कि ईश्वर से कहो कि मुझे यह संदेश पहुंचाने की ज़िम्मेदारी से माफ़ कर दें क्योंकि मैं जानता हूं कि ईश्वर से डरने वाले कम, मिथ्याचारी और इस्लाम का मज़ाक़ उड़ाने वालों तथा चालबाज़ों की संख्या ज़्यादा है लेकिन ईश्वर ने तीसरी बार मुझे यह धमकी दी कि अगर मैंने उसे नहीं पहुंचाया जिसके पहुंचाने का मुझे आदेश दिया गया है, तो मैने अपने दायित्व का निर्वाह नहीं किया। पैग़म्बरे इस्लाम ने ग़दीर में दिए गए अपने भाषण में अपने बाद अपने 12 उत्तराधिकारियों का आधिकारिक रूप से एलान किया और कहा कि इस तरह की भीड़ को मैं आख़िरी बार संबोधित कर रहा हूं। तो मेरी बात ध्यान से सुनो और उस पर अमल करो। ईश्वर के आदेश के सामने नत्मस्तक हो जाओ! वैध काम करने और अवैध व वर्जित काम से दूर रहने का आदेश देता हूं।
मुझे यह आदेश दिया गया है कि तुम लोगों से मोमिनों के इमाम अली और उनकी नस्ल से जो इमाम आएंगे उनके आज्ञापालन का तुमसे वचन लूं। मेरे आख़िरी उत्तराधिकारी महदी होंगे जो अंतिम दौर में प्रकट होंगे। उसके बाद पैग़म्बरे इस्लाम ने लोगों से आधिकारिक रूप से हज़रत अली के आज्ञापालन का वचन पैने के लिए कहा, हे लोगों तुम्हारा स्थान इस बात से कहीं ऊंचा है कि तुम लोग एक एक करके हमारे आज्ञापालन का वचन देने के लिए अपना हाथ हमारे हाथ में दो हालांकि ईश्वर की ओर से यह ज़िम्मेदारी मुझे दी गयी है कि तुममें से हर एक की ज़बान से इस बात का इक़रार करवाऊं कि मोमिनों पर हज़रत अली की हुकूमत को स्वीकार करते हे और इस बात की भी ज़िम्मेदारी दी गयी है कि मेरे कुटुंब और अली की नस्ल से आने वाले इमामों की इमामत और विलायत को मानने का तुमसे वचन लूं। अब जबकि ऐसा है तो तुम सबके सब एक आवाज़ में कहो, आपने जो कुछ अली और उनकी नस्ल से आने वाले इमामों की विलायत और असीमित नेतृत्व के बारे में ईश्वर की ओर से हम तक पहुंचाया, उसे हमने सुना और हम उसके पालन पर नत्मस्तक हैं और इससे प्रसन्न हैं।
अब हम अपनी ज़बान, मन और पूरे वजूद से अली विलायत के बारे में आपका आज्ञापालन करते और इस बात का वचन देते हैं कि इसी आस्था के साथ ज़िन्दगी गुज़ारेंगे और इसी आस्था के साथ इस दुनिया से जाएंगे यहां तक कि प्रलय के दिन उठाए जाएं। यह सुनकर लोगों ने एक साथ कहा, जी हां हमने सुना और ईश्वर व उसके पैग़म्बर के आदेश के अनुसार अपनी ज़बान, मन और हाथ से पालन करेंगे। इसके बाद लोग पैग़म्बरे इस्लाम और हज़रत अली अलैहिस्सलाम के पास इकट्ठा होने लगे और उनके हाथ पर हाथ रख कर आज्ञापालन का वचन देना शुरु किया। जब पैग़म्बरे इस्लाम ने यह देखा तो हज़रत अली की विलायत के मामले को मज़बूत करने के लिए दो ख़ैमे लगाने का आदेश दिया ताकि लोग सुव्यवस्थित रूप से हज़रत अली अलैहिस्सलाम के आज्ञापालन का ले सकें। इस प्रकार एक ख़ैमे में पैग़म्बरे इस्लाम और दूसरे ख़ैमे में हज़रत अली अलैहिस्सलाम उपस्थित हुए। लोग छोटे-छोटे गुटों में पहले पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम के ख़ैमे में जाते और उनके आज्ञापालन का वचन व बधाई देते। उसके बाद लोग हज़रत अली अलैहिस्सलाम के ख़ैमे में जाते।
पैग़म्बरे इस्लाम के बाद उनके उत्तराधिकारी के रूप में उनकी आज्ञापालन का वचन देते और उन्हें मोमिनों के इमाम की उपाधि से संबोधित करके सलाम करते और बधाई देते। अभी भीड़ अपनी जगह पर थी कि ईश्वरीय संदेश वही लाने वाले फ़रिश्ते हज़रत जिबरईल पैग़म्बरे इस्लाम के पास मायदा सूरे की तीसरी आयत लेकर पहुंचे। इस आयत में ईश्वर ने पैग़म्बरे इस्लाम को इस बात की शुभसूचना दी, आज आपका धर्म परिपूर्ण हो गया। अपनी अनुकंपाएं आप पर पूरी कर दीं और इस्लाम को तुम्हारे लिए धर्म के रूप में पसंद किया। जी हां इस बार मरुस्थल में ग़दीर में पानी का छोटा सा स्रोत आस्था व पहचान का समुद्र बन गया ताकि आने वाली पीढ़ियां उससे अपनी आध्यात्म की प्यास को तृप्त करती रहें। ग़दीर, पैग़म्बरे इस्लाम के मन पर झरने की भांति उतरने वाले संदेश से छलकने लगा और पवित्र इस्लाम की स्थिरता का प्रतिबिंबन ग़दीरे ख़ुम के स्वच्छ पानी में दिखने लगा।
ईदे ग़दीर की इब्तेदा
तारीख़ की वरक़ गरदानी से यह मालूम होता है कि इस अज़ीम ईद की इब्तेदा पैग़म्बरे अकरम (स) के ज़माने से हुई है। इसकी शुरुआत उस वक़्त हुई जब पैग़म्बरे अकरम (स) ने ग़दीर के सहरा में ख़ुदा वंदे आलम की जानिब से हज़रत अली (अ) को इमामत व विलायत के लिये मंसूब किया। जिसकी बेना पर उस रोज़ हर मोमिन शाद व मसरुर हो गया और हज़रत अली (अ) के पास आकर मुबारक बाद पेश की। मुबारक बाद पेश करने वालों में उमर व अबू बक्र भी हैं जिनकी तरफ़ पहले इशारा किया जा चुका है और इस वाक़ेया को अहम क़रार देते हुए और उस मुबारक बाद की वजह से हस्सान बिन साबित और क़ैस बिन साद बिन ओबाद ए अंसारी वग़ैरह ने इस वाक़ेया को अपने अशआर में बयान किया है।
ग़दीर के पैग़ामात
उस ज़माने में बाज़ अफ़राद ग़दीर के पैग़मात को इस्लामी मुआशरे में नाफ़िज़ करना चाहते थे। लिहा़ज़ा मुनासिब है कि इस मौज़ू की अच्छी तरह से तहक़ीक़ की जाये कि ग़दीरे ख़ुम के पैग़ामात क्या क्या हैं? क्या उसके पैग़ामात रसूले अकरम (स) की हयाते मुबारक के बाद के ज़माने से मख़्सूस हैं या रोज़े तक उन पर अमल किया जा सकता है? अब हम यहाँ पर ग़दीरे पैग़ाम और नुकात की तरफ़ इशारा करते हैं जिनकी याद दहानी जश्न और महफ़िल के मौक़े पर कराना ज़रुरी है:
- हर पैग़म्बर के बाद एक ऐसी मासूम शख़्सियत को होना ज़रुरी है जो उसके रास्ते को आगे बढ़ाये और उसके अग़राज़ व मक़ासिद को लोगों तक पहुचाये और कम से कम दीन व शरीयत के अरकान और मजमूए की पासदारी करे जैसा कि रसूले अकरम (स) ने अपने बाद के लिये जानशीन मुअय्यन किया और हमारे ज़माने में ऐसी शख़्सियत हज़रत इमाम मेहदी अलैहिस्सलाम हैं।
- अंबिया (अ) का जानशीन ख़ुदा वंदे आलम की तरफ़ मंसूब होना चाहिये जिनका तआरुफ़ पैग़म्बर के ज़रिये होता है जैसा कि पैग़म्बरे अकरम (स) ने अपने बाद के लिये अपना जानशीन मुअय्यन किया, क्योकि मक़ामे इमामत एक इलाही मंसब है और हर इमाम ख़ुदा वंदे की तरफ़ से ख़ास ता आम तरीक़े से मंसूब होता है।
- ग़दीर के पैग़ामात में से एक मसअला रहबरी और उसके सिफ़ात व ख़ुसूसियात का मसअला है, हर कस न नाकस इस्लामी मुआशरे में पैग़म्बरे अकरम (स) का जानशीन नही हो सकता, रहबर हज़रत अली (अ) की तरह हो जो पैग़म्बरे अकरम (स) का रास्ते पर हो और आपके अहकाम व फ़रमान को नाफ़िज़ करे, लेकिन अगर कोई ऐसा न हो तो उसकी बैअत नही करना चाहिये, लिहाज़ा ग़दीर का मसअला इस्लाम के सियासी मसायल के साथ मुत्तहिद है।
चुँनाचे हम यमन में मुलाहिज़ा करते हैं कि चौथी सदी के वसत से जश्ने ग़दीर का मसअला पेश आया और हर साल अज़ीमुश शान तरीक़े पर यह जश्न मुनअक़िद होता रहा और मोमिनीन हर साल उस वाक़ेया की याद ताज़ा करते रहे और नबवी मुआशरे में रहबरी के शरायत से आशना होते रहे, अगरचे चंद साल से हुकूमते वक़्त उस जश्न के अहम फ़वायद और पैग़ामात की बेना पर उसमें आड़े आने लगी, यहाँ तक कि हर साल इस जश्न को मुनअक़िद करने की वजह से चंद लोग क़त्ल हो जाते हैं, लेकिन फिर भी मोमिनीन इस्लामी मुआशरे में इस जश्न की बरकतों और फ़वायद की वजह से इसको मुनअक़िद करने पर मुसम्मम हैं।
- ग़दीर का एक हमेशगी पैग़ाम यह है कि पैग़म्बरे अकरम (स) के बाद इस्लामी मुआशरे का रहबर और नमूना हज़रत अली (अ) या उन जैसे आईम्मा ए मासूमीन में से हो। यह हज़रात हम पर विलायत व हाकिमियत रखते हैं, लिहाज़ा हमें चाहिये कि उन हज़रात की विलायत को क़बूल करते हुए उनकी बरकात से फ़ैज़याब हों।
- ग़दीर और जश्ने ग़दीर, शिईयत की निशानी है और दर हक़ीक़त ग़दीर का वाक़ेया इस पैग़ाम का ऐलान करता है कि हक़ (हज़रत अली (अ) और आपकी औलाद की महवरियत में है) के साथ अहद व पैमान करें ता कि कामयाबी हासिल हो जाये।
- वाक़ेय ए ग़दीर से एक पैग़ाम यह भी मिलता है कि इंसान को हक़ व हकी़क़त के पहचानने के लिये हमेशा कोशिश करना चाहिये और हक़ बयान करने में कोताही से काम नही लेना चाहिये, क्योकि पैग़म्बरे अकरम (स) अगरचे जानते थे कि उनकी वफ़ात के बाद उनकी वसीयत पर अमल नही किया जायेगा, लेकिन लोगों पर हुज्जत तमाम कर दी और किसी भी मौक़े पर मख़ूससन हज्जतुल विदा में हक़ बयान करने में कोताही नही की।
- रोज़े क़यामत तक बाक़ी रहने वाला ग़दीर का एक पैग़ाम अहले बैत (अ) की दीनी मरजईयत है, इसी वजह से पैग़म्बरे अकरम (स) ने उन्ही दिनों में हदीस सक़लैन को बयान किया और मुसलमानों को अपने मासूम अहले बैत से शरीयत व दीनी अहकाम हासिल करने की रहनुमाई फ़रमाई।
- ग़दीर का एक पैग़ाम यह है कि बाज़ मवाक़े पर मसलहत की ख़ातिर और अहम मसलहत की वजह से मुहिम मसलहत को मनज़र अंदाज़ किया जा सकता है और उसको अहम मसलहत पर क़ुर्बान किया जा सकता है। हज़रत अली (अ) हालाकि ख़ुदा वंदे आलम की तरफ़ से और रसूले अकरम (स) के ज़रिये इस्लामी मुआशरे की रहबरी और मक़ामे ख़िलाफ़त पर मंसूब हो चुके थे, लेकिन जब आपने देखा कि अगर मैं अपना हक़ लेने के लिये उठता हूँ तो क़त्ल व ग़ारत और जंग का बाज़ार गर्म हो जायेगा और यह इस्लाम और मुसलमानों की मसलहत में नही है तो आपने सिर्फ़ वअज़ व नसीहत, इतमामे हुज्जत और अपनी मज़लूमीयत के इज़हार को काफ़ा समझा ताकि इस्लाम महफ़ूज रहे, क्योकि हज़रत अली (अ) अगर उशके अलावा करते जो आपने किया तो फिर इस्लाम और मुसलमानों के लिये एक दर्दनाक हादेसा पेश आता जिसकी तलाफ़ी मुमकिन नही थी, लिहाज़ा यह रोज़ क़यामत तक उम्मते इस्लामिया के लिये एक अज़ीम सबक़ है कि कभी कभी अहम मसलहत के लिये मुहिम मसलहत को छोड़ा जा सकता है।
- इकमाले दीन, इतमामे नेमत और हक़ व हक़ीक़त के बयान औप लोगों पर इतमामे हुज्जत करने से ख़ुदा वंदे आलम की रिज़ायत हासिल होती है जैसा कि आय ए शरीफ़ ए इकमाल में इशारा हो चुका है।
- तबलीग़ और हक़ के बयान के लिये आम ऐलान किया जाये और छुप कर काम न किया जाये जैसा कि पैग़म्बरे अकरम (स) ने हुज्जतुल विदा में विलायत का ऐलान किया और लोगों के मुतफ़र्रिक़ होने से पहले मला ए आम में विलायत को पहुचा दिया।
- ख़िलाफ़त, जानशीनी और उम्मते इस्लामिया की सही रहबरी का मसअला तमाम मासयल में सरे फैररिस्त है और कभी भी इसको तर्क नही करना चाहिये जैसा कि रसूले अकरम (स) हालाकि मदीने में ख़तरनाक बीमारी फैल गई थी और बहुत से लोगों को ज़मीन गीर कर दिया था लेकिन आपने विलायत के पहुचाने की ख़ातिर इस मुश्किल पर तवज्जो नही की और आपने सफ़र का आग़ाज़ किया और इस सफ़र में अपने बाद के लिये जानशीनी और विलायत के मसअले को लोगों के सामने बयान किया।
- इस्लामी मुआशरे में सही रहबरी का मसअला रुहे इस्लामी और शरीयत की जान की तरह है कि अगर इस मसअले को बयान न किया जाये तो तो फिर इस्लामी मुआशरे के सुतून दरहम बरहम हो जायेगें, लिहाज़ा ख़ुदा वंदे आलम ने अपने रसूल (स) से ख़िताब करते हुए फ़रमाया:
और अगर आप ने यह न किया तो गोया उसके पैग़ाम को नही पहुचाया।
( सूर ए मायदा आयत 67)
हज़रत अली से मोहब्बत ही हमारा ईमान है
ईरान के दक्षिण-पूर्व में मिर्जावा के सुन्नी समुदाय के इमाम जुमा मौलवी अब्दुर्रहीम रीगियानपुर ने कहा: कि ग़दीरे ख़ुम की घटना सुन्नी धर्म के मान्य किताबों में भी भी दर्ज है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम से मोहब्बत सुन्नी मुसलमानों के ईमान की पहचान है।
सुन्नी समुदाय का मानना है कि ग़दीर की घटना वास्तव में हुई थी और उसमें पैगंबर मोहम्मद ने हज़रत अली की बहादुरी, मोहब्बत, ईमान, परहेजगारी और न्याय के बारे में कहा था ताकि यह हमेशा के लिए और आख़िर तक इतिहास में दर्ज रहे।
ईरान के सिस्तान व बलूचिस्तान प्रांत के मिर्जावा के सुन्नी इमाम जुमाह ने कहा: दुश्मन मोहब्बत के बीच सीमा बनाने की चाल चला रहा है ताकि शियाओं की हज़रत अली अलै. से मोहब्बत और सुन्नियों की मोहब्बत के बीच फ़र्क़ डाला जा सके और उन्हें केवल शियाओं तक सीमित कर दिया जाए। यहूदी और इस्लाम के दुश्मन इस्लाम के बढ़ते प्रभाव से डरते हैं। इसलिए वे उन बिंदुओं पर हमला करते हैं जो विवाद पैदा कर सकते हैं। ज़ायोनी और इस्लाम के दुश्मन इसी तरह के विभिन्न मतों के जरिए विवाद पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं और इसका फ़ायदा उठाने का मौका पा रहे हैं।
इसी संदर्भ में ज़ाहदान जिले के इस्लामी प्रचार विभाग के प्रमुख हज्जतुल इस्लाम वल मुसलमीन जवाद हैरी ने कहा: सिस्तान व बलूचिस्तान में बड़े पैमाने पर मनाया जाने वाला ईद-ए-ग़दीर का त्योहार इस्लामी एकता और एकजुटता का भव्य रूप है। इस दिन शिया और सुन्नी पूरी शांति और अपने परिवारों के साथ ग़दीर के जश्न में एक साथ भाग लेते हैं। यह उपस्थिति इस क्षेत्र में सुरक्षा और गहरे जनसंपर्क का स्पष्ट प्रमाण है।
ज़ाहदान इस्लामी प्रचार विभाग के प्रमुख ने कहा: ग़दीर का लंबा जश्न ईरानी राष्ट्र के लिए एक अवसर और अल्लाह की एक नेअमत है ताकि वे व्यापक भागीदारी के साथ अपनी इस्लामी एकजुटता पर मुहर लगाएं। जैसे कि अल्लाह ने फरमाया है: «और सब मिलकर अल्लाह की रस्सी को थामो और फूट मत डालो» हमारे लोग अल्लाह की रस्सी को थामकर और अहल-ए-बैत (अ.) से लगाव रखकर और प्रेम व मोहब्बत करके अपना धर्म पूरा करते हैं और अल्लाह की नेमत को समझते हैं।
जंग छिड़ी तो इलाके से अमेरिका का जनाजा निकलेगा : अबू आला अलवेलाई:
इराकी प्रतिरोध संगठन कताइब सय्यद अलशोहदा" के महासचिव ने संभावित क्षेत्रीय युद्ध के संदर्भ में अमेरिका को कड़ी चेतावनी देते हुए कहा है कि यदि युद्ध भड़का तो हमारे सैकड़ों फिदाई मुजाहिदीन मैदान में उतरेंगे और अमेरिका को एक बार फिर अपमानजनक हार का सामना करना पड़ेगा।
इराकी प्रतिरोध संगठन "कताइब सय्यद अलशोहदा" के महासचिव अबू आला अलवलाई ने संभावित क्षेत्रीय युद्ध के मद्देनजर अमेरिका को सख्त चेतावनी देते हुए कहा है कि यदि युद्ध भड़की तो हमारे सैकड़ों फिदाई मुजाहिदीन मैदान में उतरेंगे और अमेरिका को एक बार फिर शर्मनाक हार का सामना करना पड़ेगा, जैसा कि वह अतीत में इराक से हारकर निकल चुका है।
अबू आला अलवलाई ने अपने बयान में कहा कि इस चरण की शुरुआत के साथ ही मध्य पूर्व में अमेरिकी मौजूदगी और उसके सभी स्थानीय एजेंटों का अंत हो जाएगा, और वे सरकारें जो अमेरिकी समर्थन पर टिकी हैं, धराशायी हो जाएंगी।
उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि अंततः यह लड़ाई जब्ह ए मुक़ाविमत के पक्ष में समाप्त होगी, और सफलता अल्लाह और उसके वफादार बंदों का नसीब बनेगी।