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ईश्वरीय आतिथ्य-10

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ईश्वरीय आतिथ्य-10

धैर्य एवं संयम

रमज़ान के पवित्र महीने में रोज़ा रखने वालों पर स्वर्ग की शीतल व सुहावना पवन बह रहा है। हमें चाहिये कि हम अपने हृदयों को इस पवित्र महीने की १३वें दिन की दुआ से प्रकाशमयी बनायें। हे ईश्वर! हे हमारे पालनहार! आज के दिन में हमें अपवित्रताओं से पवित्र रख/ जो कुछ तुमने हमारे बारे में फैसला किया है हमें उस पर धैर्य करने की कृपा कर/ सदाचारिता एवं अच्छे लोगों के साथ उठने बैठने में हमें सफल बना और अपनी सहायता से बेसहारा लोगों की सहायता कर"

जो चीज़ कठिनाइयों से मुक़ाबले के लिए मनुष्य को शक्तिशाली बनाती है वह धैर्य है। जिस धैर्य का स्रोत ईमान और ईश्वरीय भय होता है वह मनुष्य को इस योग्य बना देता है कि वह समस्याओं व कठिनाइयों के तूफान को पार कर जाता है। कुछ मनोवैज्ञानिकों के कथनानुसार जिन लोगों को समस्याओं व कठिनाइयों का सामना होता है वे कुछ स्थितियों का चयन करते हैं। कुछ लोग क्रोध और निराशा की स्थिति में कठिनाइयों का सामना करते हैं और अंत में वे अवसाद का शिकार हो जाते हैं। कुछ दूसरे लोग हैं जो कठिनाइयों को सहन नहीं कर पाते हैं और अंत में वे आत्म हत्या कर लेते हैं। कुछ लोग एसे भी हैं जो समस्याओं से भागने के लिए विशेष संगीत सुनते हैं, और मादक पदार्थों अथवा हर्षोन्माद पैदा करने वाली गोलियों का सेवन करते हैं। लोगों का एक गुट ऐसा भी है जो इन तीनों प्रकार के लोगों से भिन्न होता है। यह गुट महान व सर्व समर्थ ईश्वर पर भरोसा करके धैर्य व प्रतिरोध से कठिनाइयों का सामना करता है।

इस्लामी संस्कृति में महान ईश्वर पर ईमान रखने वाला व्यक्ति कभी भी निराशा का शिकार नहीं होता है। ईश्वरीय धर्म इस्लाम ने कठिनाइयों व समस्याओं से मुक़ाबले के लिए धैर्य, संयम व प्रतिरोध नाम की दवा के सेवन की अनुशंसा की है। महान ईश्वर पवित्र कुरआन में कहता है" हे ईमान लाने वालों धैर्य एवं नमाज़ से सहायता लो। निःसंदेह ईश्वर धैर्य करने वालों के साथ है"

महान ईश्वर पर आस्था रखने वाला व्यक्ति कठिनाइयों में उस ईश्वर पर भरोसा करता है और वह अपने पालनहार से ही आशा रखता है। महान ईश्वर ने भी धैर्य करने वालों को स्वर्ग देने, मार्ग दर्शन करने और अपनी विशेष कृपा का पात्र बनाने का वादा किया है। कुछ इस्लामी इतिहासों में तीन प्रकार के धैर्य की बात की गयी है। पहला, महान ईश्वर के आदेशापालन पर धैर्य है। संभव है कि उसके आदेशापालन को जारी रखने में कठिनाइयों का सामना हो है और ईमानदार व्यक्ति उस धैर्य करता है। दूसरा धैर्य है कि मनुष्य महान ईश्वर की अवज्ञा न करने पर धैर्य करता है। यह धैर्य उस समय पेश आता है जब मनुष्य का सामना पाप से होता है पंरतु ईमानदार व्यक्ति धैर्य से काम लेता और पाप करने से दूरी करता है। तीसरा धैर्य यह है कि मनुष्य विपत्तियों में भी धैर्य से काम लेता है। इन तीनों धैर्यों में वह धैर्य सबसे बेहतर व उत्तम है जो पापों के मुक़ाबले में होता है। क्योंकि पापों के मुक़ाबले में स्वयं को नियंत्रित करना कठिन कार्य है और इस पर धैर्य करने का बहुत अधिक पुण्य है। पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों के विश्वस्त कथनों में आया है कि पापों पर धैर्य, ईश्वरीय भय के चरम शिखर पर पहुंचाता है। इस प्रकार के धैर्य के लिए पवित्र क़ुरआन हज़रत यूसुफ़ और ज़ुलैख़ा के मध्य होने वाली घटना का वर्णन करता है। पवित्र क़ुरआन की इस घटना में ज़ुलैख़ा हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम को कुकर्म के लिए उकसाने हेतु नाना प्रकार की चालें चलती हैं परंतु हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ईश्वर से डरते और धैर्य से काम लेते हैं तथा वह कुकर्म करने के बजाये जेल में जाने को प्राथमिकता देते हैं। उनके धैर्य का परिणाम यह हुआ कि महान ईश्वर ने उनका स्थान बहुत ऊंचा कर दिया तथा मिस्र की शासन व्यवस्था उनके हाथ में दे दी।

इस्लामी शिक्षाओं में रोज़े को धैर्य का सुन्दरतम उदारहण बताया गया है। वास्तव में मनुष्य रोज़े की स्थिति में ईश्वर के आदेशापालन और पाप न करने पर धैर्य का अभ्यास करता है।

रमज़ान का पवित्र महीना पवित्रता और हृदय को पापों व ग़लतियों से दूर रखने का महीना है ताकि मनुष्य स्वच्छ व पवित्र मन के साथ अपने पालनहार की सेवा में उपस्थित हो सके। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम कहते हैं" रमज़ान वह महीना है जिसके रोज़ों को ईश्वर ने तुम पर अनिवार्य किया है और जो भी उसके रोज़ों को ईश्वरीय दायित्व समझ कर रखेगा उसके पाप क्षमा कर दिये जायेंगे और वह व्यक्ति उस दिन की भांति हो जायेगा जिस दिन अपनी मां के पेट से पैदा हुआ है"

पवित्र रमज़ान महीने और उसमें रोज़ा रखने वालों का महत्व ईश्वर के निकट बहुत अधिक है। इस प्रकार से कि महान ईश्वर ने कुछ फरिश्तों को यह कार्य सौंपा है कि वे इस महीने में रोज़ा रखने वालों के लिए दुआ और प्रायश्चित करें। इस संबंध में हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम कहते हैं" निःसंदेह ईश्वर के पास कुछ फरिश्ते हैं जो पूरे रमज़ान महीने में रोज़ा रखने वालों के लिए प्रायश्चित करते हैं"

पवित्र कुरआन और कुछ दुआओं में भी पवित्र रमज़ान का ६४ बार नाम लिया गया है जो इस महीने की महानता एवं विशेषता का सूचक है। उनमें कुछ नाम इस प्रकार हैं, प्रायश्चित का महीना, दया का महीना, क़ुरआन का महीना, विभूति का महीना, धैर्य का महीना, आजीविका का महीना, दान का महीना पवित्रता का महीना और क़ुरआन पढ़ने का महीना।

रमज़ान के पवित्र महीने में महान ईश्वर अपने बंदों की ओर क्षमा का द्वार खोल देता है ताकि वे पवित्र क़ुरआन को पढ़ने, दुआ करने और रमज़ान महीने की रातों व दिनों की विभूतियों से लाभ उठायें तथा अपने आध्यात्मिक स्थान में वृद्धि करें। मनुष्य इस विभूतिपूर्ण महीने में आध्यात्म की सीढ़ियों को अधिक तीव्र गति से तय कर सकता है।

रमज़ान का अर्थ पत्थर पर सूरज का प्रचंड गर्मी के साथ चमकना है। रमज़ान महीने के लिए इस प्रकार के शब्द का चयन विशेष सूक्ष्मता का परिचायक है। क्योंकि गर्म होने की बात करना यानी दूसरे शब्दों में महान ईश्वर की कृपा व दया के सूरज की छत्रछाया में मनुष्य का परिवर्तित हो जाना है ताकि वह इस महीने में अपनी आंतरिक इच्छाओं का मुक़ाबला कर सके। रमज़ान का पवित्र महीना आंतरिक भूख -प्यास के मुक़ाबले में धैर्य व प्रतिरोध का महीना है। इसी कारण पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम ने कहा है कि चूंकि रमज़ान का महीना पापों को जला देता है और उन्हें भस्म कर देता है इसलिए रमज़ान के लिए इस प्रकार के नाम का चयन किया गया है"

महान ईश्वर के निकट रमज़ान महीने का बहुत महत्व है। उसने इस महीने को अपना महीना कहा है। श्रोता मित्रो जैसाकि आप जानते हैं कि उपासना के कार्यों में हर एक का ईश्वर के निकट प्रतिदान है और ईश्वर ने उसे एक दायित्व के रूप में मनुष्यों के लिए निर्धारित किया है। जिस तरह रमज़ान महीने के रात दिन और घंटे दूसरे महीनों के रात दिन व घंटों से बहुत बेहतर व उत्तम हैं उसी प्रकार रमज़ान महीने में रखा जाने वाला रोज़ा भी दूसरे महीनों में रखे जाने वाले रोज़ों से बहुत बेहतर व श्रेष्ठ है और उसका विशेष प्रतिदान है। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम कहते हैं" ईश्वर ने कहा है कि रोज़ा हमारे लिये है और मैं स्वयं उसका प्रतिदान दूंगा"

रोज़ा मनुष्य में परलोक की भावना को जागृत करता है। हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम कहते हैं"रोज़ा अनिवार्य होने का रहस्य यह है कि मनुष्य भूख व प्यास के स्वाद को चखे और ईश्वर के निकट विनम्र हो जाये तथा आवश्यकता का आभास करे। अपने कार्य के प्रतिदान को चाहे और धैर्य को अपनाये ताकि अंत में यह आवश्कता प्रलय में उसकी आवश्यकता की ओर ध्यान देने की भूमिका बने" पवित्र क़ुरआन और पैग़म्बरे इस्लाम तथा उनके पवित्र परिजनों के कथनों से जो निष्कर्ष निकलता है वह यह है कि खाने पीने से दूरी के साथ ही मनुष्य की पांचों ज्ञानेन्द्रियों को एक नियत समय में अनुचित कार्यों से दूर व पवित्र होना चाहिये। रोज़ा रखने वाले मनुष्य को चाहिये कि उसके साथ उसका हृदय भी रोज़े से हो और ग़लत व दूषित सोचों से दूर हो। हज़रत अली अलैहिस्सलाम इस संबंध में कहते हैं" हृदय का रोज़ा ज़बान के रोज़े से बेहतर है और ज़बान का रोज़ा पेट के रोज़े से बेहतर है"

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रोज़े से हटकर अब एक महान हस्ती की संक्षिप्त जीवनी पर प्रकाश डाल रहे हैं।

इस संसार में एसे रत्न व हस्तियां पैदा हुई हैं जो मानवता के जीवन का मार्ग दर्शक रही हैं। इन हस्तियों ने अपनी दूरगामी दृष्टि, ज्ञान, सोच और अपने हृदय की सच्चाई से मानवता के जीवन को सुगंधित बना दिया और हर काल में दूसरों के लिए आदर्श रही हैं। इन हस्तियों में से एक दिवंगत आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद शहाबुद्दीन मरअशी नजफी हैं जो एक धर्मशास्त्री, अध्ययनकर्ता और इतिहासकार हैं और उन्होंने ७० से अधिक वर्षों तक ईरान के पवित्र नगर क़ुम मंर शिक्षा देकर बहुत अधिक शिष्यों का प्रशिक्षण किया। उन्होंने पवित्र नगर कुम में एक बहुत बड़ा पुस्तकालय छोड़ा है। यह इस्लामी जगत का तीसरा सबसे बड़ा पुस्तकालय है और इस समय इस पुस्तकाल में मशीन से छपी ढ़ाई लाख से अधिक पुस्तकें मौजूद हैं जबकि दो हज़ार हस्तलिखित पुस्तकें हैं। आयतुल्लाह नजफी मरअशी पुस्तकों को एकत्रित करने और एक पुस्तकालय बनाने के कारण के बारे में कहते हैं" मैं एक बार इराक़ के नजफ नगर की बाज़ार से गुज़र रहा था। मैंने देखा कि एक दुकान पर छात्र बहुत अधिक आ- जा रहे हैं। मैंने पूछा कि क्या बात है। उत्तर में कहा गया कि जिस विद्वान का निधन हो जाता है उसकी किताबों को यहां लाकर नीलाम करते हैं। इसके बाद मैं अंदर गया तो देखा कि लोग घेरा बनाकर खड़े हुए हैं। एक व्यक्ति किताबों को लाया है और उसने इनकी नीलामी लगा रखी है। लोग बोली बोलते हैं और जो सबसे अधिक बोली लगाता है वही किताब को ख़रीद लेता है। लोगों के मध्य एक अरब व्यक्ति भी बैठा था और उसकी बग़ल में पैसे का एक थैला था और किताब का सबसे अधिक मूल्य वही देता और किताब ख़रीद लेता था और दूसरों को किताब ख़रीदने का अवसर ही नहीं देता था। मैं समझ गया कि क़ाज़िम नाम का यह व्यक्ति बग़दाद स्थित ब्रिटिश काउंसलेट का दलाल है। वह पूरे सप्ताह किताबें खरीदता है और हर शुक्रवार को उन्हें बग़दाद ले जाकर ब्रिटिश काउंसलेट के हवाले कर देता है। इसके बाद से आयतुल्लाह नजफी मरअशी ने विशेषकर हस्तलिखित किताबों की लूट को रोकने का निर्णय किया। इस आधार पर वह प्रतिदिन शिक्षा दीक्षा के बाद रातों को चावल कूटने की एक दुकान पर काम करने लगे और अपना खाना कम कर दिया तथा किराये पर पढ़ी जाने वाली नमाज़ पढ़कर और रोज़ा रखकर पैसा कमाते और किताब ख़रीदते। इस प्रकार उन्होंने किताब एकत्रित करने का कार्य किया। चूंकि इस महान धर्मगुरू की आय पर्याप्त नहीं थी इसलिए वह अपने पूरे जीवन में एक बार भी हज न कर सके परंतु अपने विभूतिपूर्ण जीवन में उन्होंने १४८ से अधिक पुस्तकें, पुस्तिकायें और लेख लिखे हैं।

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