رضوی

رضوی

अलजलिल में स्थित एक यहूदी बस्ती में आग भड़क उठी दस दिन पहले यरुशलम शहर के पहाड़ों में भी आग लगने की घटनाएँ हुई थीं।

इब्रारानी भाषा के सोशल मीडिया नेटवर्क्स ने खबर दी है कि कब्ज़े वाले उत्तरी फ़िलिस्तीन के अलजलिल इलाके में स्थित यहूदी आबादकारों की बस्ती "दीर हाना" में एक भीषण आग भड़क उठी सामने आई वीडियोज़ इस आग की व्यापकता को दिखा रही हैं।

इससे पहले शुक्रवार को भी यहूदी सूत्रों ने बताया था कि "याफा अलनासिरा" और "अलनासिरा" के बीच स्थित इलाके में भी एक बड़ी आग लगी थी, जो तेज़ी से रिहायशी इलाकों की ओर बढ़ रही थी।

यह घटना ऐसे समय में हुई है जब सिर्फ दस दिन पहले ही कब्ज़े वाले यरुशलम (क़ुद्स) के पहाड़ी इलाकों में एक गंभीर आगज़नी की घटना हुई थी, जिसमें लगभग 5,000 हेक्टेयर ज़मीन जलकर राख हो गई थी। इस आग के चलते कई यहूदी बस्तियाँ खाली कराई गई थीं और यरुशलम से तेल अवीव जाने वाले मुख्य हाईवे कई घंटों तक बंद रहे थे।

इस आग पर काबू पाने में 30 घंटे लग गए थे, और इस्राइली सरकार को आग बुझाने के लिए यूरोपीय देशों से मदद लेनी पड़ी थी।

मुदीरियत हौज़ा ए इल्मिया ने फ़ारस की खाड़ी के ऐतिहासिक नाम को बदलने के किसी भी प्रयास को दृढ़ता से खारिज कर दिया है, इसे ईरान की राष्ट्रीय और धार्मिक पहचान के खिलाफ एक नापाक साजिश कहा है और इस तरह की कार्रवाई को उपनिवेशवादी देशद्रोह कहा है।

मुदीरियत हौज़ा ए इल्मिया ने फारस की खाड़ी के पवित्र और ऐतिहासिक नाम को बदलने के प्रयासों पर अपनी कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए एक आधिकारिक बयान जारी किया है। बयान में कहा गया है कि हौज़ात ए इल्मिया पर ईरानी राष्ट्र की ऐतिहासिक, धार्मिक और राष्ट्रीय पहचान को विकृत करने का प्रयास करने वाली किसी भी कार्रवाई की कड़ी निंदा करती है।

बयान में आगे कहा गया है कि हौज़ा ए इल्मिया और धर्मगुरूओ की जिम्मेदारी है कि वे सच्चाई के साथ खड़े हों और इतिहास और वास्तविकता के विरूपण के खिलाफ मजबूती से खड़े हों। ईरानी राष्ट्र का गौरवशाली इतिहास शत्रुओं के सामने बलिदानों से भरा पड़ा है और यह राष्ट्र हमेशा इस्लामी शिक्षाओं का वाहक रहा है और हमेशा सत्य के लिए खड़ा रहा है।

केंद्र का कहना है कि फारस की खाड़ी ईरानी राष्ट्र की पहचान की एक मूल्यवान संपत्ति है, जिसका नाम इस भूमि के प्राचीन इतिहास में समाया हुआ है और जिसका उल्लेख सदियों से विश्वसनीय ऐतिहासिक ग्रंथों में किया जाता रहा है।

बयान में कहा गया है कि ईरान अन्य देशों की सीमाओं और संस्कृतियों का सम्मान करता है, लेकिन अगर कोई ईरान की भौतिक या आध्यात्मिक राजधानी पर अतिक्रमण करने की कोशिश करता है, तो उसका मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा, जैसा कि अतीत में दिया गया है।

केंद्र ने चेतावनी दी कि इस तरह के उपाय वास्तव में मुस्लिम राष्ट्रों को विभाजित करने की औपनिवेशिक शक्तियों की साजिश का हिस्सा हैं, ताकि वे क्षेत्रीय संसाधनों को लूट सकें और ज़ायोनी शासन के लिए एक सुरक्षित वातावरण प्रदान कर सकें।

बयान का समापन यह कहते हुए किया गया है कि संपूर्ण इस्लामी उम्माह और विश्व फिलिस्तीन और दुनिया के उत्पीड़ितों की रक्षा करने में ईरानी राष्ट्र की बहादुरी और दृढ़ता के साक्षी हैं, और मदरसे हमेशा की तरह इस राष्ट्रीय और धार्मिक पहचान की रक्षा में एक मजबूत किला साबित होंगे।

प्रांतीय पुलिस कमांडर ने ज़ोर देते हुए कहा,पुलिस बल पूरी तरह तैयार है ताकि नागरिकों को बेहतर सेवा प्रदान की जा सके।

समनान प्रांत के पुलिस कमांडर सैयद मूसा हुसैनी ने समनान प्रांत में प्रतिनिधि-ए-वली-ए-फ़क़ीह के साथ एक आत्मीय बैठक के दौरान "दह-ए-करामत" और इमाम रज़ा (अ.स.) के जन्मदिवस की मुबारकबाद पेश की और प्रांतीय उच्च अधिकारियों द्वारा पुलिस बल के साथ सहयोग और एकजुटता के लिए धन्यवाद किया।

उन्होंने कहा,आप जैसे सम्मानित व्यक्तियों की उपस्थिति, पुलिसकर्मियों के लिए हौसला बढ़ाने का कारण है, और हम इस पर ईश्वर का आभार मानते हैं।उन्होंने आगे कहा,पिछले वर्षों में मैं लगभग 21 वर्षों तक समनान प्रांत की पुलिस में सेवा करता रहा हूं और इस प्रांत के धार्मिक जनता और अधिकारियों से मेरा बहुत अच्छा संबंध रहा है।

हुसैनी ने समनान पुलिस के कार्यों को सकारात्मक बताया और कहा,पुलिस, अन्य सरकारी और कार्यकारी संस्थानों के सहयोग से सबसे बेहतर ढंग से आगे बढ़ेगी।

प्रांतीय पुलिस कमांडर ने बताया कि हाल के वर्षों में पुलिस ने कुरआन और नहजुल बलाग़ा की रक्षा, धार्मिक शिक्षाओं की उन्नति, और शरई मुद्दों की व्याख्या में काफी प्रयास किए हैं। उन्होंने यह भी जोड़ा कि कर्मचारियों की सुरक्षा और संरक्षण के क्षेत्र में भी कड़ी मेहनत की गई है।

उन्होंने कहा कि सांस्कृतिक और सामाजिक विषयों को सभी राष्ट्रीय और धार्मिक आयोजनों में कर्मचारियों को याद दिलाया जाता है और सिखाया जाता है।

उन्होंने प्रशासनिक कार्यों में ईमानदारी और नैतिकता पर बल देते हुए कहा,इंशाअल्लाह, हम अपनी पूरी ताकत और अनुभव के साथ अपने कर्मचारियों के सहयोग से समनान प्रांत की सम्मानित जनता की सेवा में हाज़िर हैं।

 

मियां-बीवी जिस वक़्त घर में आते हैं उनका दिल चाहता है कि घर उनको आराम व सुकून, सुख चैन का एहसास दिलाए दोनों एक दूसरे से तवक़्क़ो रखते हैं कि काश माहौल को ख़ुश, ज़िन्दगी के लायक़,थकन दूर करने के लायक़ बना दें।

हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने फरमाया,मियां-बीवी जिस वक़्त घर में आते हैं उनका दिल चाहता है कि घर उनको आराम व सुकून, सुख चैन का एहसास दिलाए। दोनों एक दूसरे से तवक़्क़ो रखते हैं कि काश माहौल को ख़ुश, ज़िन्दगी के लायक़,थकन दूर करने के लायक़ बना दें।

यह तवक़्क़ो बिल्कुल सही है और बेजा भी नहीं है कि दोनों एक दूसरे से इस तरह की तवक़्क़ो रखें, अगर कर सकते हों तो यह काम कीजिए, ज़िन्दगी में मिठास आ जाएगी, सभी इंसानों को ज़िन्दगी में इस सुरक्षा की ज़रूरत है।

आप क़ुरआन को पढ़िए तो पाएंगे कि जिस वक़्त क़ुरआन ने शादी की बहस छेड़ी है, फ़रमाया हैः और फिर उसकी ज़िन्स से उसका जोड़ा बनाया, ताकि वह (उसकी रिफ़ाक़त में) सुकून हासिल करे। (सूरए आराफ़, आयत-189) सुकून का स्रोत, सुकून का ज़रिया हो।

मियां बीवी को एक दूसरे के लिए आराम व सुकून का ज़रिया होना चाहिए, आप दोनों लोगों के लिए घर में अम्न व अमान और सुख का चैन का माहौल होना चाहिए।

 

अराक़ स्थित फातिमा ज़हरा (स.ल.) धर्मिक विद्यालय की पूर्व छात्रा ने एक धार्मिक कार्यक्रम में बच्चों की धार्मिक क्षमताओं को पहचानने और उन्हें निखारने में माता-पिता की भूमिका पर प्रकाश डाला।

आज सुबह फातिमा ज़हरा (स) धार्मिक विद्यालय के सांस्कृतिक विभाग की पहल पर एक धार्मिक बैठक का आयोजन हुआ, जिसमें इस विद्यालय की स्नातक ख़ानूम हदादी ने भाग लिया।

बैठक में, ख़ानूम हदादी ने शैक्षिक दृष्टिकोण से बच्चों की व्यक्तिगत विशेषताओं पर ध्यान देने की अहमियत बताते हुए कहा,हर बच्चे की अपनी अलग क्षमताएँ और योग्यताएँ होती हैं, इसलिए हमें उनकी पहचान कर उन्हें प्रोत्साहित करना चाहिए ताकि वे अच्छे से विकसित हो सकें।

उन्होंने बच्चों की सफलता और उनके लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए माता-पिता द्वारा मार्गदर्शन और प्रोत्साहन की ज़रूरत पर ज़ोर दिया।

क़ुरआन की आयत

“لا یُكَلِّفُ اللهُ نفساً إلا وُسعَها”
(अर्थ: अल्लाह किसी जान पर उसकी क्षमता से अधिक बोझ नहीं डालता) का हवाला देते हुए उन्होंने कहा:"प्रयास उसी सीमा तक करना चाहिए जितनी क्षमता हो, क्योंकि ईश्वर कभी किसी उसकी शक्ति से अधिक अपेक्षा नहीं करता।

अपने संबोधन में उन्होंने माता-पिता को यह सुझाव दिया,बच्चों की रुचियों और क्षमताओं पर विशेष ध्यान दें,आपस में उनकी तुलना न करें,ऐसा माहौल तैयार करें जहाँ वे अपनी योग्यताओं को व्यक्त कर सकें,और दूसरों के निर्णय या आलोचना से न डरें।

अंत में उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि बच्चों की धार्मिक परवरिश के हर चरण में ईश्वर की रज़ा (संतुष्टि) को ध्यान में रखा जाए।

सोशल मीडिया और विभिन्न अंतरराष्ट्रीय स्रोतों से प्राप्त तस्वीरों और वीडियो में देखा जा सकता है कि ग़ाज़ा के लोग अपने हाथों से चावल और मकारोनी पीस रहे हैं, ताकि उससे आटे का विकल्प तैयार कर रोटियां बनाई जा सकें।

ग़ाज़ा में गेहूं और दूसरी ज़रूरी खाद्य वस्तुओं की भारी कमी ने आम लोगों के लिए रोज़ की रोटी को भी एक सपना बना दिया है। अलजज़ीरा की एक ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक, इस्राइली सेना ने पिछले दो महीनों से ग़ाज़ा पट्टी के सभी सीमावर्ती रास्तों को बंद कर रखा है, जिसकी वजह से आटे सहित तमाम खाने-पीने की चीज़ों की आपूर्ति लगभग पूरी तरह से रुक चुकी है।

इस मुश्किल वक्त में फ़िलस्तीनी जनता, ख़ासतौर पर महिलाएं, अपने बच्चों को भूख से बचाने के लिए असाधारण तरीक़े अपना रही हैं। वे मसूर की दाल, लोबिया, पास्ता (मकारोनी) और चावल को पीसकर उनसे रोटियां बना रही हैं, ताकि किसी तरह पेट भरा जा सके।

सोशल मीडिया और अंतरराष्ट्रीय स्रोतों से मिलने वाली तस्वीरों और वीडियो में साफ़ देखा जा सकता है कि ग़ाज़ा के लोग चावल और मकारोनी को हाथ से पीस रहे हैं, ताकि उनसे आटे का विकल्प तैयार कर रोटियां बनाई जा सकें।

एक फ़िलस्तीनी महिला ने अलजज़ीरा से बातचीत में कहा,हम दाल और मकारोनी को रातभर पानी में भिगोकर रखते हैं, फिर सुबह उसे छानकर, अगर थोड़ा बहुत आटा मिल जाए तो मिलाकर खमीर तैयार करते हैं। यह पर्याप्त नहीं होता, लेकिन यही खा रहे हैं क्योंकि खाने को कुछ और है ही नहीं।

यह स्पष्ट है कि ग़ाज़ा पहले से ही गंभीर मानवीय संकट का सामना कर रहा है, और इस्राइली नाकाबंदी हालात को दिन-ब-दिन और भी बदतर बना रही है। वहीं, अंतरराष्ट्रीय समुदाय अब तक इस मानवीय त्रासदी पर खामोश तमाशबीन बना हुआ है।

मौलाना इब्ने हसन अमलवी वाइज़ ने कहां,ख़ाना-ए-काबा किसी एक क़ौम या क़बीले के लिए नहीं, किसी ख़ास देश या समुदाय के लिए नहीं है, बल्कि इसकी तामीर और बुनियाद का मक़सद खुद परवरदिगार ने क़ुरआन-ए-मजीद में साफ़ तौर पर इस तरह बयान किया है

ख़ाना-ए-काबा किसी एक क़ौम या क़बीले के लिए नहीं, किसी ख़ास देश या समुदाय के लिए नहीं है, बल्कि इसकी तामीर और बुनियाद का मक़सद खुद परवरदिगार ने क़ुरआन-ए-मजीद में साफ़ तौर पर इस तरह बयान किया है निःसंदेह सबसे पहला घर जो ज़मीन पर इंसानों के लिए बनाया गया, वह मक्का मुक़र्रमा में है, जो तमाम जहानों के लिए हिदायत और बरकत का केंद्र है।
और जब काबा की तामीर मुकम्मल हो गई, तो अल्लाह ने हज़रत इब्राहीम (अ.स.) को हुक्म दिया,ऐ इब्राहीम लोगों को हज के लिए पुकारो।

इसका साफ़ मतलब यह है कि काबा का मक़सद वैश्विक अमन व शांति की स्थापना करना, पूरी मानवता को इंसानियत, हमदर्दी और एकजुटता की तरफ़ बुलाना है, और इंसान को एक बेहतरीन और ऊँचे दर्जे का इंसान बनने की कोशिश की प्रेरणा देना है।

ऐसा इंसान, जिसका तसव्वुर मशहूर शायर मिर्ज़ा ग़ालिब ने अपने शेर में इस तरह किया है,बस कि दुश्वार है हर काम का आसां होना, आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसां होना।याद रखिए,आदमी” होना एक बात है और “इंसान” होना दूसरी बात। मेरी गुज़ारिश है कि आप यहाँ से “आदमी” बनकर जाएं और “अच्छे इंसान” बनकर लौटें।

इन विचारों का इज़हार हुज्जतुल इस्लाम, हाजी मौलाना इब्ने हसन अमलवी (सदरुल अफाज़िल, वाइज़) संस्थापक और संरक्षक हसन इस्लामिक रिसर्च सेंटर अमलो मुबारकपुर और प्रवक्ता, मज़मआ उलमा व वाइज़ीन पूरवांचल ने दिनांक 9 मई, शुक्रवार को मौलाना अली मियां नदवी हज हाउस, सरोजिनी नगर, लखनऊ में हज यात्रियों की फ्लाइट रवाना होने के अवसर पर आयोजित दुआ कार्यक्रम में मुख्य भाषण के दौरान व्यक्त किए।

कार्यक्रम की शुरुआत हाजी सईद हसन साहब लखनवी द्वारा हज यात्रा से जुड़ी सुरक्षा जानकारियों की प्रस्तुति से हुई।

अंत में,उत्तर प्रदेश राज्य हज कमेटी द्वारा आयोजित इस दुआ कार्यक्रम के संचालक और संरक्षक मुफ़्ती आफ़ताब आलम साहब नदवी (मुबल्लिग़, नदवतुल उलमा)ने हज और उमरा के वाजिबात व मुस्तहबात पर रोशनी डालते हुए दुआ की अहमियत और फ़ायदों पर विस्तार से चर्चा की।

मुफ़्ती साहब ने बताया कि आज शिया हज यात्रियों की फ्लाइट रवाना हो रही है, इसलिए एक शिया आलिम और ख़तीब को भी विशेष रूप से कार्यक्रम में बुलाया गया जो अपने आप में एक नया और अहम क़दम है।

इंटरव्यू के दौरान मुफ़्ती साहब ने यह भी बताया कि आज की फ्लाइट में कोई भी महिला बिना हिजाब के नहीं है जो कि उत्तर प्रदेश राज्य हज कमेटी की बेहतरीन सेवाओं का नतीजा है।

इस मौके पर तीन हज इंस्पेक्टरों ने भी अपना परिचय दिया और हाजियों को हर संभव मदद देने का भरोसा दिलाया।कार्यक्रम का समापन मुफ़्ती आफ़ताब आलम नदवी साहब की दुआ के साथ हुआ।

कार्यक्रम से पहले,उत्तर प्रदेश राज्य हज कमेटी के सचिव श्री एस.पी. तिवारी को उनके दफ्तर में मौलाना इब्ने हसन अमलवी साहब द्वारा उर्दू में लिखा गया एक धन्यवाद पत्र हाजी मास्टर सागर हुसैनी साहब (हज इंस्पेक्टर) के माध्यम से सौंपा गया, जिसे उन्होंने पहले पढ़ा, फिर मुस्कराकर दस्तखत कर स्वीकार किया और आफिसर आरिफ रऊफ साहब को हिदायत दी कि इस पत्र को फाइल में सुरक्षित रखें।

श्री मोहम्मद जावेद खान (ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी) ने हमारे संवाददाता से बातचीत में बताया कि आज की फ्लाइट में कुल 288 हाजी रवाना किए जा रहे हैं 76 शिया हाजी 7 बिहार से 156 मऊ से और 77 आज़मगढ़ से शामिल हैं।

यह भी उल्लेखनीय है कि पिछले कुछ वर्षों में केंद्र और राज्य हज कमेटियों की सेवाएं जैसे कि हज इंस्पेक्टरों का चयन आदि की वजह से इनकी लोकप्रियता में काफ़ी इज़ाफा हुआ है।हज कमेटी ऑफ इंडिया हाजियों को हर संभव उत्तम सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए पूरी तरह से तत्पर और प्रतिबद्ध है।

ईरान की सर्वोच्च राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के सचिव ने अमेरिका के साथ हो रही अप्रत्यक्ष वार्ताओं में ईरान की अटल नीतियों पर ज़ोर देते हुए चेतावनी दी और कहा कि धमकी और ज़बरदस्ती किसी भी रूप में स्वीकार्य नहीं है।

ईरान और अमेरिका ने इस वर्ष 12 अप्रैल से ओमान की मध्यस्थता में अप्रत्यक्ष वार्ताएं शुरू की हैं।

 ईरानी छात्र समाचार एजेंसी (ISNA) के हवाले से बताया है कि ईरान की सर्वोच्च राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के सचिव अली अकबर अहमदियान ने बृहस्पतिवार को तेहरान के इस्लामिक रेवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (IRGC) के कमांडरों के सम्मेलन में कहा कि जिस तरह दबाव और धमकी की स्थिति में सीधी वार्ता करना नासमझी और सम्मानहीनता है, उसी तरह समानता और धमकी रहित परिस्थितियों में वार्ता करना बुद्धिमत्तापूर्ण और सम्मानजनक होता है।

 अहमदियान ने क्षेत्रीय परिवर्तनों की ओर भी संकेत करते हुए कहा कि प्रतिरोध का मोर्चा अपनी क्षमताओं को पुनः मज़बूत करके और नये परिवर्तनों की ज़रूरतों को पहचान कर  पहले से भी अधिक शक्ति के साथ राष्ट्रों के वास्तविक दुश्मन के सामने खड़ा है।

 ईरान की सर्वोच्च राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के सचिव ने अपने भाषण के एक अन्य भाग में ईरानी राष्ट्र के विरुद्ध दुश्मन द्वारा चलाये जा रहे संचारिक युद्ध की ओर संकेत करते हुए कहा कि  जनता को निराश करना, समस्याओं को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करना, राजनीतिक और सामाजिक विभाजनों को सक्रिय करना, और अधिकारियों के बीच, अधिकारियों व जनता के बीच, तथा स्वयं जनता के विभिन्न वर्गों के बीच फूट डालना, आज दुश्मन की प्राथमिक रणनीति बन चुका है।

रांची भारत; इस्लामिक टूर्स एंड ट्रैवल्स लखनऊ ने रांची की जाफरिया मस्जिद में हज प्रशिक्षण शिविर का आयोजन किया और बड़ी संख्या में तीर्थयात्री इस शिविर में शामिल हुए।

रांची भारत की एक रिपोर्ट के अनुसार; इस्लामिक टूर्स एंड ट्रैवल्स लखनऊ ने रांची की जाफरिया मस्जिद में हज प्रशिक्षण शिविर का आयोजन किया और बड़ी संख्या में तीर्थयात्री इस शिविर में शामिल हुए।

झारखंड सुन्नी वक्फ बोर्ड के सदस्य और रांची की जाफरिया मस्जिद के इमाम और उपदेशक मौलाना हाजी सैयद तहज़ीबुल हसन रिजवी ने हज की रस्मों पर व्याख्यान दिया, जिन्होंने तीर्थयात्रियों को हज की शुरुआत से लेकर अंत तक की रस्मों के बारे में जानकारी दी।

शिविर में हज के विशेष पांच दिनों के दौरान किए जाने वाले अनुष्ठानों के बारे में भी बताया गया; जैसे काबा की परिक्रमा, सफा से मरवा तक दौड़ना, अराफात, मीना, कुर्बानी और अन्य कार्य। हज पर जा रहे हबीब अहमद को इस्लामिक टूर्स एंड ट्रैवल्स लखनऊ की ओर से मस्जिद जाफरिया में सम्मानित किया गया।

अंत में मौलाना सैयद तहजीबुल-हसन ने देश की तरक्की, खुशहाली, अमन, मोहब्बत और एकता के लिए दुआ की।

इस अवसर पर सैयद नेहाल हुसैन सरियावी, सैयद जावेद हैदर, जसीम रिजवी, इकबाल फातमी, नदीम रिजवी, हाशिम, इकबाल हुसैन, अशरफ रिजवी, हबीब अहमद, अत्ता इमाम रिजवी, सैयद शाहरुख हसन रिजवी, फराज समेत बड़ी संख्या में लोग मौजूद थे।

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैयद अली रज़ा अबादी, जो ख़ुरासान-ए-जनूबी प्रांत में वली-ए-फ़क़ीह के प्रतिनिधि हैं दह-ए-करामत के अवसर पर एक महत्वपूर्ण भाषण में तौहीद को इंसानियत की निजात का एकमात्र रास्ता करार दिया उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि अगर दुनिया की क़ौमें गुमराही, तबाही और नैतिक पतन से बचना चाहती हैं तो उन्हें ला इलाहा इल्लल्लाह के उसूलों को अमल में लाना होगा।

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैयद अली रज़ा अबादी, जो ख़ुरासान-ए-जनूबी प्रांत में वली-ए-फ़क़ीह के प्रतिनिधि हैं, दह-ए-करामत के अवसर पर एक महत्वपूर्ण भाषण में तौहीद को इंसानियत की निजात का एकमात्र रास्ता करार दिया। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि यदि विश्व की क़ौमें गुमराही, तबाही और नैतिक पतन से बचना चाहती हैं, तो उन्हें "ला इलाहा इल्लल्लाह के वास्तविक अर्थ को अपनाकर उसे अमल में लाना होगा।

तौहीद की राह में महिलाओं की भूमिका

हुज्जतुल इस्लाम अबादी ने ज़ोर देकर कहा कि मर्द और औरत, दोनों इंसानी परिपूर्णता की राह में बराबर हैं। उन्होंने हज़रत मरयम (अ.स), हज़रत आसिया (अ.स), हज़रत ख़दीजा (अ.स) और हज़रत ज़ैनब (अ.स) जैसी महान महिलाओं का उदाहरण देते हुए कहा कि ये सब महिलाएं तौहीदी संघर्ष में प्रमुख स्थान रखती हैं।

"ला इलाहा इल्लल्लाह" का वास्तविक अर्थ

उन्होंने सूरह हुजुरात की आयत "إِنَّ أَكْرَمَكُمْ عِندَ اللَّهِ أَتْقَاكُمْ" (निःसंदेह अल्लाह के निकट सबसे इज़्ज़तदार वह है जो सबसे ज़्यादा परहेज़गार है) की तिलावत करते हुए कहा कि सच्चा परहेज़गारी (तक़वा) ही वास्तविक तौहीद है, जो इंसान को उसके सोच, दिल, अमल और विश्वास की बुराइयों से बचाता है।

उन्होंने याद दिलाया कि सिर्फ "ला इलाहा इल्लल्लाह" कह देने से नजात नहीं मिलती, जब तक कि यह कलिमा सच्चाई और अमली प्रतिबद्धता के साथ न कहा जाए।

पश्चिमी प्रवृत्ति: तौहीद से भटकाव की निशानी

बिरजंद के इमामे जुमआ ने पश्चिमी विचारों की आलोचना करते हुए कहा कि पश्चिमी सभ्यता कोई भौगोलिक मुद्दा नहीं है, बल्कि यह एक मानसिक और नैतिक गुमराही का समूह है। उन्होंने कहा कि आज का आधुनिक इंसान पहले से ज़्यादा इस बात का ज़रूरतमंद है कि वह "विलायत-ए-इलाही" यानी तौहीद के केंद्र की ओर वापस लौटे।

ग़ैबत के दौर में विलायत की अहमियत

हुज्जतुल इस्लाम अबादी ने दुनिया में शीत युद्ध, साम्यवाद और उदारवाद की टकराव की चर्चा करते हुए कहा कि इस्लामी गणराज्य ईरान, एक तौहीदी किले के रूप में उपस्थित है।

उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि अगर विलायत-ए-फ़क़ीह की व्यवस्था, सोवियत संघ के पतन और लिबरल डेमोक्रेसी की वैश्विक हुकूमत के समय मौजूद न होती, तो दुनिया तौहीद से पूरी तरह भटक चुकी होती विलायत-ए-फ़क़ीह वही "हुज्जत-ए-बालिग़ा" है जिसे खुदा ने इस दौर के लिए तय किया है।

अध्यात्मिक दृष्टि और ईश्वरीय समझ

उन्होंने रब्बानी उलमा की दूरदृष्टि का ज़िक्र करते हुए आयतुल्लाह नायिनी और मुल्ला फत्हुल्लाह सुलतान आबादी के एक क़िस्से को बयान किया, जो भविष्य की घटनाओं को समझने की क्षमता रखते थे।

उन्होंने कहा कि इस तरह की रूहानी समझ सच्ची बंदगी और तौहीद में इख़लास (निष्ठा) का नतीजा होती है। जैसा कि हदीस-ए-क़ुद्सी में आया है:जब मेरा बंदा नफ़्ल इबादतों के ज़रिए मेरे करीब होता है, तो मैं उससे मोहब्बत करने लगता हूँ। फिर मैं उसका कान बन जाता हूँ जिससे वह सुनता है, उसकी आंख बन जाता हूँ जिससे वह देखता है, और उसकी ज़ुबान बन जाता हूँ जिससे वह बोलता है।

तौहीद, उलमा और इंसानी समाजों के लिए नजात की राह

हुज्जतुल इस्लाम अबादी ने आख़िर में कहा कि रहबर-ए-मुअज़्ज़म (सुप्रीम लीडर) के समझदारी से भरे हुए बयानों को इस संवेदनशील दौर में उलमा और हौज़ा-ए-इल्मिया के लिए एक मार्गदर्शक नक्शा समझा जाना चाहिए।

उन्होंने कहा कि इमाम जाफर सादिक़ (अ.स) और इमाम रज़ा (अ.स) के इल्मी स्कूल की पैरवी करते हुए आज के दौर में भी तौहीद को अमली रूप में ज़िंदा करने की ज़रूरत है।

उन्होंने स्पष्ट किया कि आधुनिक इंसान की मुक्ति चाहे वह सांस्कृतिक संकट से हो, विचारधारा और नैतिकता की गिरावट से सिर्फ उसी समय मुमकिन है जब हम तौहीद, विलायत और अंबिया के संदेशों की गहराई को समझें और उन पर अमल करें।