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मंगलवार, 16 जुलाई 2024 15:20

करबला..... दरसे इंसानियत

उफ़ुक़ पर मुहर्रम का चाँद नुमुदार होते ही दिल महज़ून व मग़मूम हो जाता है। ज़ेहनों में शोहदा ए करबला की याद ताज़ा हो जाती है और इस याद का इस्तिक़बाल अश्क़ों की नमी से होता है जो धीरे धीरे आशूरा के क़रीब सैले रवाँ में तबदील हो जाती है। उसके बाद आँसूओं के सोते ख़ुश्क होते जाते हैं और दिल ख़ून के आँसू बहाने पर मजबूर हो जाता है। यह कैसा ग़म है जो मुनदमिल नही

उफ़ुक़ पर मुहर्रम का चाँद नुमुदार होते ही दिल महज़ून व मग़मूम हो जाता है। ज़ेहनों में शोहदा ए करबला की याद ताज़ा हो जाती है और इस याद का इस्तिक़बाल अश्क़ों की नमी से होता है जो धीरे धीरे आशूरा के क़रीब सैले रवाँ में तबदील हो जाती है। उसके बाद आँसूओं के सोते ख़ुश्क होते जाते हैं और दिल ख़ून के आँसू बहाने पर मजबूर हो जाता है।

यह कैसा ग़म है जो मुनदमिल नही होता?।

यह कैसा अलम है जो कम नही होता?।

यह कैसा कर्ब है जिसे एफ़ाक़ा नही होता?।

यह कैसा दर्द है जिसे सुकून मयस्सर नही आता?।

सादिक़े मुसद्दक़ पैग़म्बर (सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम) ने फ़रमाया था:

बेशक क़त्ले हुसैन से मोमिनीन के दिल में ऐसी हरारत पैदा होगी जो कभी भी ख़त्म नही होगी।

वाक़ेयन यह ऐसी हरारत है जो न सिर्फ़ यह कि कम नही होती बल्कि चौहद सदियाँ गुज़रने के बाद भा बढ़ती ही जाती है, बढ़ती ही जा रही है।

मैदाने करबला में फ़रज़ंदे रसूल (स) सैय्यदुश शोहदा हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके अंसार व अक़रबा को तीन दिन का भूखा प्यासा शहीद कर दिया गया। करबला वालों का ऐसा कौन सा अमल है जो दूसरों की बनिस्बत ख़ास इम्तेयाज़ का हामिल है?। जहाँ हमे करबला के मैदान में अज़मते आमाल व किरदार के बहुत से नमूने नज़र आते हैं उन में एक निहायत अहम सिफ़त उन में आपस में एक दूसरे के लिये जज़्ब ए ईसार का पाया जाना है। शोहदा ए करबला की ज़िन्दगी के हर हर पहलू पर, हर हर मंज़िल पर ईसार व फ़िदाकारी व क़ुरबानी की ऐसी मिसालें मौजूद हैं जिसकी नज़ीर तारीख़े आलम में नही मिलती। शहादत पेश करने के लिये अंसार का बनी हाशिम और बनी हाशिम का अंसार पर सबक़त करना तारीख़े ईसारे आलम की सबसे अज़ीम मिसाल है।

करबला करामाते इंसानी की मेराज है।

करबला के मैदान में दोस्ती, मेहमान नवाज़ी, इकराम व ऐहतेराम, मेहर व मुहब्बत, ईसार व फ़िदाकारी, ग़ैरत व शुजाअत व शहामत का जो दर्स हमें मिलता है वह इस तरह से यकजा कम देखने में आता है। मैंने ऊपर ज़िक किया कि करबला करामाते इंसानी की मेराज का नाम है। वह तमाम सिफ़ात जिन का तज़किरा करबला में बतौरे अहसन व अतम हुआ है वह इंसानी ज़िन्दगी की बुनियादी और फ़ितरी सिफ़ात है जिन का हर इंसान में एक इंसान होने की हैसियत से पाया जाना ज़रुरी है। उसके मज़ाहिर करबला में जिस तरह से जलवा अफ़रोज़ होते हैं किसी जंग के मैदान में उस की नज़ीर मिलना मुहाल है। बस यही फ़र्क़ होता है हक़ व बातिल की जंग में। जिस में हक़ का मक़सद, बातिल के मक़सद से सरासर मुख़्तलिफ़ होता है। अगर करबला हक़ व बातिल की जंग न होती तो आज चौदह सदियों के बाद उस का बाक़ी रह जाना एक ताज्जुब ख़ेज़ अम्र होता मगर यह हक़ का इम्तेयाज़ है और हक़ का मोजिज़ा है कि अगर करबला क़यामत तक भी बाक़ी रहे तो किसी भी अहले हक़ को हत्ता कि मुतदय्यिन इंसान को इस पर ताज्जुब नही होना चाहिये।

अगर करबला दो शाहज़ादों की जंग होती?। जैसा कि बाज़ हज़रात हक़ीक़ते दीन से ना आशना होने की बेना पर यह बात कहते हैं और जिन का मक़सद सादा लौह मुसलमानों को गुमराह करने के अलावा कुछ और होना बईद नज़र आता है तो वहाँ के नज़ारे क़तअन उस से मुख़्तलिफ़ होते जो कुछ करबला में वाक़े हुआ। वहाँ शराब व शबाब, गै़र अख़लाक़ी व गै़र इंसानी महफ़िलें तो सज सकती थीं मगर वहाँ शब की तारीकी में ज़िक्रे इलाही की सदाओं का बुलंद होना क्या मायना रखता?। असहाब का आपस में एक दूसरों को हक़ और सब्र की तलक़ीन करना का क्या मफ़हूम हो सकता है?। माँओं का बच्चों को ख़िलाफ़े मामता जंग और ईसार के लिये तैयार करना किस जज़्बे के तहत मुमकिन हो सकता है?। क्या यह वही चीज़ नही है जिस के ऊपर इंसान अपनी जान, माल, इज़्ज़त, आबरू सब कुछ क़ुर्बान करने के लिये तैयार हो जाता है मगर उसके मिटने का तसव्वुर भी नही कर सकता। यक़ीनन यह इंसान का दीन और मज़हब होता है जो उसे यह जुरअत और शुजाअत अता करता है कि वह बातिल की चट्टानों से टकराने में ख़ुद को आहनी महसूस करता है। उसके जज़्बे आँधियों का रुख़ मोड़ने की क़ुव्वत हासिल कर लेते हैं। उसके अज़्म व इरादे बुलंद से बुलंद और मज़बूत से मज़बूत क़िले मुसख़्ख़र कर सकते हैं।

यही वजह है कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के पाये सबात में लग़ज़िश का न होना तो समझ में आता है कि वह फ़रज़ंदे रसूल (स) हैं, इमामे मासूम (अ) हैं, मगर करबला के मैदान में असहाब व अंसार ने जिस सबात का मुज़ाहिरा किया है उस पर अक़्ल हैरान व परेशान रह जाती है। अक़्ल उस का तजज़िया करने से क़ासिर रह जाती है। इस लिये कि तजज़िया व तहलील हमेशा ज़ाहिरी असबाब व अवामिल की बेना पर किये जाते हैं मगर इंसान अपनी ज़िन्दगी में बहुत से ऐसे अमल करता है जिसकी तहलील ज़ाहिरी असबाब से करना मुमकिन नही है और यही करबला में नज़र आता है।

*हमारा सलाम हो हुसैने मज़लूम पर

*हमारा सलाम हो बनी हाशिम पर

*हमारा सलाम हो मुख़द्देराते इस्मत व तहारत पर

*हमारा सलाम हो असहाब व अंसार पर।

*या लैतनी कुन्तो मअकुम।

 

हुसैन बिन अली अहलेबैत और पैग़म्बरे इस्लाम के नाती ने अपने महाआंदोलन से पहले फ़रमाया था कि मैंने अत्याचार और भ्रष्टाचार करने के लिए आंदोलन नहीं किया है। मैंने केवल अपने नाना की उम्मत में सुधार के लिए आंदोलन किया है।

दुनिया में कोई भी इंसान इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की भांति आज़ाद व स्वतंत्र लोगों के दिलों में जगह नहीं रखता। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम आध्यात्म, निष्ठा, बहादुरी, साहस, न्यायप्रेम, अन्याय विरोधी और साथ ही अल्लाह की बंदगी के सर्वोत्तम आदर्श है। यहां पर हम इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की जीवनी और उनसे विचारों पर एक दृष्टि डालेंगे।

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम पैग़म्बरे इस्लाम के नाती, शियों के पहले इमाम हज़रत अली बिन अबी तालिब और हज़रत फ़ातेमा ज़हरा स. के बेटे हैं।  उनका जन्म चौथी हिजरी क़मरी में पवित्र नगर मदीना में हुआ था।

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम पैग़म्बरे इस्लाम के अहलेबैत में से एक हैं जिनके बारे में आयते तत्हीर नाज़िल हुई थी। इस आयत में कहा गया है कि अहलेबैत हर प्रकार की गंदगी से पाक हैं। आयते तत्हीर अहलेबैत की शान में नाज़िल हुई है। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के पास जो कुछ भी था उन्होंने सब कुछ अल्लाह की राह में लुटा दिया। शिया और सुन्नी मुसलमानों की एतिहासिक किताबों के अनुसार इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम जब पैदा हुए थे उसी समय पैग़म्बरे इस्लाम ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शहादत की ख़बर दी थी और उनका नाम हुसैन रखा था।

पैग़म्बरे इस्लाम ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शान में जो हदीसें बयान की हैं उनका उल्लेख शिया और सुन्नी दोनों की किताबों में हुआ है जिसकी वजह से शिया-सुन्नी दोनों उनका सम्मान करते और उनके प्रति श्रृद्धा रखते हैं।

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम अमवी शासक मोआविया के क्रियाकलापों पर कड़ी आपत्ति जताते थे। जिन चीज़ों पर कड़ी आपत्ति जताते थे उनमें से एक यज़ीद का मोआविया का उत्तराधिकारी होना था और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने यज़ीद की बैअत नहीं किया। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम यज़ीद को एक तुच्छ, पस्त, अत्याचारी, भ्रष्ट और सामाजिक व मानवता विरोधी व्यक्ति मानते थे। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ख़िलाफ़त को एक ईश्वरीय पद मानते थे और उनका मानना था कि समाज का अभिभावक पैग़म्बरे इस्लाम की भांति होना चाहिये और उन सबका निर्धारण पैग़म्बरे इस्लाम अपने स्वर्गवास से पहले ही कर चुके थे।

मोआविया के मरने के बाद यज़ीद ने बैअत लेने के लिए इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम पर बहुत दबाव डाला यहां तक कि उसने कहा कि अगर इमाम हुसैन बैअत न करें तो उनकी हत्या कर दी जाये।

अंततः इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम यज़ीद और उसके मज़दूरों के भारी दबाव के कारण मदीना से मक्का चले जाते हैं। वह चार महीनों तक मक्का में रहते हैं। वहां पर कूफ़ा वासियों की ओर से इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को बहुत पत्र मिलते हैं जिनमें लिखा होता था कि हम यज़ीद को शासक के रूप में स्वीकार नहीं करते हैं और आप आइये और हम आपके हाथों पर बैअत करेंगे। इस प्रकार के अनुरोधों के बाद इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने मुस्लिम बिन अक़ील को अपना प्रतिनिधि व उत्तराधिकारी बना कर कूफ़ा भेजा। हज़रत मुस्लिम ने कूफ़ियों के समर्थन की पुष्टि की और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम कूफ़ा रवाना हो गये। दूसरी ओर यज़ीद ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का मुक़ाबला करने के लिए सेना भेज दी।

अंततः सन् 61 हिजरी क़मरी में दोनों पक्षों का कर्बला में एक दूसरे से आमना- सामना हुआ परंतु कूफ़ा वासियों ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के समर्थन का जो वचन दिया था उस पर वे बाक़ी न रहे और उन्होंने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को अकेला छोड़ दिया। एतिहासिक किताबों में बयान किया गया है कि यज़ीद ने जो सेना भेजी थी उसकी संख्या लगभग 30 हज़ार थी जबकि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के सैनिकों व साथियों की संख्या 72 थी परंतु इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने बातिल की बैअत नहीं की। 10वीं मोहर्रम को घमासान की लड़ाई हुई और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के चाहने वाले साथियों व सैनिकों ने अपनी बहादुरी व शूरवीरता का इतिहास रच दिया।

यज़ीद के सिपाहियों ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके साथियों पर पानी तक बंद कर दिया था और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके वफ़ादार साथी भूखे और प्यासे शहीद हो गये और यज़ीद के राक्षसी सैनिकों ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके वफ़ादार साथियों के सिरों को उनके शरीरों से अलग कर दिया था और वे सब इन सिरों को यज़ीद के दरबार में ले गये।

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने अपनी शहादत से पहले एक पत्र में कहा था कि मैंने अत्याचार और फ़साद करने के लिए आंदोलन नहीं किया है मैंने केवल अपने नाना की उम्मत में सुधार के लिए आंदोलन किया है। मैं भलाई का आदेश देना चाहता हूं और बुराई से रोकना चाहता हूं और अपने नाना और बाबा अली बिन अबीतालिब की सीरत व आचरण पर चलता चाहता हूं।

पैग़म्बरे इस्लाम ने बारमबार इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के बारे में फ़रमाया है कि हुसैन मुझसे हैं और मैं हुसैन से हूं। इस हदीस का पहला भाग पूरी तरह स्पष्ट है जिसमें आपने फ़रमाया है कि हुसैन मुझसे हैं जबकि दूसरे भाग का अर्थ यह है कि मेरा धर्म हुसैन की क़ुर्बानी से ज़िन्दा रहेगा ताकि मानवता अपने वास्तविक गंतव्य तक पहुंच जाये।

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके वफ़ादार साथियों की क़ब्र इराक़ के पवित्र कर्बला नगर में है और आज दुनिया के लाखों लोग उनकी ज़ियारत के लिए कर्बला जाते हैं और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शहादत दुनिया के स्वतंत्रता प्रेमियों और कमज़ोंरों की पूंजी और आदर्श है।

ओमान में एक मजलिसे अजा को निशाना बनाकर की गई गोलीबारी की खबर है। इस गोलीबारी में चार लोग शहीद और कई अन्य घायल हुए हैं। घायलों की स्थिति को देखते हुए मृतकों की संख्या बढ़ने की आशंका जताई जा रही है।

पुलिस के अनुसार, ओमान की राजधानी मस्कत के नजदीक स्थित अल-वादी अल-कबीर इलाके में स्थित इमाम बारगाह में गोलीबारी हुई। संदिग्ध अपने साथ हथियार लेकर घटनास्थल पर पहुंचा और लोगों पर फायरिंग शुरू कर दी।

अरब सागर के पूर्व में स्थित ओमान में इस तरह की हिंसा बेहद दुर्लभ घटना है। अमेरिकी दूतावास ने बयान जारी कर अमेरिकी नागरिकों को उस इलाके से दूर रहने की सलाह दी है। अमेरिकी दूतावास ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, 'अमेरिकी नागरिकों को सतर्क रहना चाहिए, स्थानीय समाचारों पर नजर रखनी चाहिए और स्थानीय अधिकारियों के निर्देशों का पालन करना चाहिए।'

रिपोर्ट्स के अनुसार जिस समय हमला हुआ उस समय मजलिस में 700 से अधिक लोग मौजूद थे।

 

हरिद्वार: उत्तराखंड के जिला हरिद्वार के मंगलौर में अतीत की भांति इस साल भी इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके साथियों की शहादत की याद में समाज सेवा और सामाजिक न्याय के संदेश के साथ द मैसेज ऑफ़ कर्बला ट्रस्ट के तत्वाधान में हुसैनी यूथ्स की ओर से रक्तदान शिविर का आयोजन किया जाएगा ।

इमाम हुसैन के नाम पर जरूरतमंदो की मदद और रोगियों की सहायता के मकसद से इस शिविर का आयोजन किया जा रहा है। चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार नियमित रूप से रक्तदान करने से आयरन की अतिरिक्त मात्रा नियंत्रित हो जाती है। जो दिल की सेहत के लिए अच्छी है। उन्होंने बताया कि कई बार मरीजों के शरीर में खून की मात्रा इतनी कम हो जाती है कि उन्हें किसी और व्यक्ति से ब्लड लेने की आवश्यकता पड़ जाती है। ऐसी ही इमरजेंसी स्थिति में खून की आपूर्ति के लिए लोगों को रक्तदान करने के लिए आगे आना चाहिए।

 

बता दें कि द मैसेज ऑफ़ कर्बला ट्रस्ट की जानिब से 10 मोहर्रम को दिल्ली हरिद्वार हाईवे पर सबीले इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का आयोजन भी किया जाता है जिसमे राहगीरों को बोतलबंद पानी के साथ कर्बला और इमाम हुसैन से संबंधित ब्रोशर आदि भी दिए जाते हैं।

 

 

 

ईरान के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति ने इस्लामी क्रांति के सिपाहे पासदारान फ़ोर्स के कमांडरों से मुलाक़ात के बाद ट्वीट पर लिखा कि आज दुनिया के स्वतंत्रता प्रेमियों का परचम हमारे कांधों पर है।

सिपाहे पासदारान के प्रमुख मेजर जनरल हुसैन सलामी और सिपाहे पासदारान में सर्वोच्च नेता के प्रतिनिधि हुज्जतुल इस्लाम अब्दुल्लाह हाजी सादेक़ी, सिपाहे पासदारान की थलसेना के कमांडर मोहम्मद पाकपूर, सिपाहे पासदारान में क़ुद्स ब्रिगेड के कमांडर इस्माईल क़ानी और सिपाहे पासदारान में एरो स्पेस के कमांडर अमीर अली हाजीज़ादे, सिपाहे पासदारान की नौसेना कमांडर अलीरज़ा तंगसीरी और सिपाहे पासदारान के दूसरे कमांडरों ने ईरान के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति मसऊद पिज़िश्कियान से भेंटवार्ता की।

इस मुलाक़ात में सिपाहे पासदारान के प्रमुख की ओर से शिया मुसलमानों के तीसरे इमाम, इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के ध्वज को नवनिर्वाचित राष्ट्रपति को भेंट किया गया।

 नवनिर्वाचित राष्ट्रपति ने सोशल साइट एक्स पर लिखा कि सिपाहे पासदारान में प्रिय भाइयों से आज की मुलाक़ात में मुझे इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के पवित्र रौज़े का परचम भेंट किया गया। आज दुनिया के स्वतंत्रता प्रेमियों का ध्वज हमारे कांधों पर है। इस परचम का ध्वजावाहक बाक़ी रह जाने के लिए हज़रत अब्बास अलैहिस्सलाम की भांति न्यायप्रेमी, वफ़ादारी, त्यागी, बलिदानी और शिष्टाचारी होने की ज़रूरत है।

इस्लामी क्रांति की सिपाहे पासदारान फ़ोर्स एक सैनिक इकाई है जिसका गठन स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी रह. के आदेश से दो उर्दीबहिश्त सन् 1358 हिजरी शमसी को हुआ था।

26 शहरीवर 1364 हिजरी शमसी को सिपाहे पासदारान को जल, थल और वायु तीन भागों में बांट दिया गया और उसके बाद वर्ष 1369 हिजरी शमसी में ईरान की इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता सय्यद अली ख़ामेनेई के आदेश से क़ुद्स और साज़माने मुक़ावत बसीज नाम की दो सेनाओं को सिपाहे पासदारान में शामिल कर दिया गया। इस प्रकार सिपाहे पासदान में पांच सेनायें हो गयीं। सिपाहे पासदारान सैनिक गतिविधियों के अलावा, सूचना, निर्माण व आबादकारी और सांस्कृतिक क्षेत्रों में भी सक्रिय रहती है।

आतंकवादी गुट दाइश से मुक़ाबला और उसकी सरकार को ख़त्म कर देना सिपाहे पासदारान की क़ुद्स फ़ोर्स की बड़ी कामयाबियों से एक है।

अमेरिकी सरकार ने 19 फ़रवरदीन 1398 हिजरी शमसी को एक बयान करके सिपाहे पासदारान विशेषकर उसकी क़ुद्स ब्रिगेड का नाम आधिकारिक तौर पर विदेशी आंतकवादी गुटों की सूची में क़रार दे दिया। ईरान की सर्वोच्च राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद ने भी अमेरिका की इस कार्यवाही के जवाब में उसके नाम की घोषणा "आतंकवाद की समर्थक सरकार" के रूप में किया। इसी प्रकार ईरान ने पश्चिम एशिया में अमेरिकी सेना सेंटकॉम को "आतंकवादी गुट" का नाम दिया।

1398 हिजरी शमसी में इराक़ में अमेरिका की सैनिक छावनी एनुल असद पर भारी मिसाइल हमला और इसी प्रकार जारी वर्ष पर इस्राईल पर प्रक्षेपास्त्रिक और ड्रोन हमला इस इकाई के सबसे मशहूर हमले हैं।

सिपाहे पासदारान का साम्राज्यवाद विरोधी दृष्टिकोण और पश्चिम से संबंधित आतंकवादी गुटों को पश्चिम एशिया से ख़त्म करने हेतु उसके प्रयास ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसे बहुत लोकप्रिय बना दिया है।

मिस्र के लेखक और राजनीतिक विश्लेषक हसन बदीअ का कहना है: ईरान के खिलाफ ज़ायोनी शासन की धमकियों का मतलब है कि ज़ायोनी अधिकारियों ने आत्महत्या के बारे में मन बना लिया है और उन्हें लगता है कि वे अपने अंत के क़रीब हैं।

ईरान के ख़िलाफ़ ज़ायोनी शासन की धमकियों और इन धमकियों का सही विश्लेषण बहुत ज़रूरी है।

इस संबंध में, ईरान के ख़िलाफ़ ज़ायोनी शासन के पूर्व युद्धमंत्री एविग्डोर लिबरमैन की बयानबाज़ियों के जवाब में हसन बदीअ का कहना है: हक़ीक़त यह है कि लिबरमैन ने ईरान को परमाणु हमले की धमकी दी है जबकि ज़ायोनी शासन कितने गहरे संकट से जूझ रहा है और अमेरिका और नाटो के समर्थन के बावजूद वह पतन की हालत में पहुंच गया है।

हसन बदीअ कहते हैं:

ईरान के ख़िलाफ़ लिबरमैन की बकवासों का मतलब है कि तेल अवीव ईरान से डरता है और प्रतिरोध के मोर्चे की लगातार कामयाबियों से चिंतित है, ख़ासकर मक़बूज़ा क्षेत्रों पर ईरान के मिसाइल हमले के बाद।

 

उन्होंने कहा: इस ब्लैक अटैक और विध्वंसकारी हमले और ज़ायोनी दुश्मन के 2 हवाई अड्डों की तबाही ने तेल अवीव को यह सबक सिखा दिया है कि ईरान की आग और प्रतिरोध के मोर्चे से खिलवाड़ न करे।

ज़ायोनी शासन ईरान को धमकी दे रहा है जबकि इस शासन के मीडिया ने इस्राईल की सेना में बलों की कमी और ज़ायोनी सैनिकों की मनोवैज्ञानिक समस्याओं को स्वीकार किया है।

ज़ायोनी मीडिया ने ज़ायोनी सेना में प्रसिद्ध गोलानी ब्रिगेड के एक सैनिक के हवाले से बताया कि ये सैनिक ग़ज़ा पट्टी और लेबनान में हिज़्बुल्लाह के साथ उत्तरी मोर्चे पर अनिर्णायक और बेनतीजा युद्ध से थक चुके हैं और सेना लेबनान से युद्ध के मोर्चे पर जाने के लिए तैयार नहीं है और युद्ध जारी रहने से सेना को मनोवैज्ञानिक आघात पहुंचेगा।

इससे पहले, मीडिया ने बताया था कि ज़ायोनी शासन ने सैनिकों की तलाश और भर्ती के लिए सोशल मीडिया और फ़ेसबुक पर विज्ञापन देना शुरू कर दिया है क्योंकि ग़ज़ा युद्ध में मौजूद कई सैनिक इस प्रक्रिया को जारी रखने में सक्षम नहीं हैं और कई जवान सेना में शामिल होने के योग्य ही नहीं हैं और सेना के भाग निकले हैं।

इन धमकियों के साथ ही, ज़ायोनी शासन ग़ज़ा में नरसंहार और प्रतिरोध के कमांडरों की टारगेट क्लिंग के प्रयास जारी रखता है और हर बार एक नया अपराध अंजाम देता है।

क्षेत्र में रणनीतिक मुद्दों के विश्लेषक अब्दुल बारी अतवान ने राय अल-यौम अख़बार की वेबसाइट पर एक लेख में लिखा: ग़ज़ा पट्टी में 9 महीने के नरसंहार और जातीय सफ़ाए के बाद, ज़ायोनी शासन के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू अभी भी किसी भी तरह से क़स्साम ब्रिगेड के कमान्डरों में से एक सीनियर कमान्डर यहिया सेनवार या उनके एक प्रतिनिधि और सलाहकार शामिल की हत्या की कोशिश कर रहे हैं लेकिन ये प्रयास विफल रहे और नेतन्याहू के माथे पर एक और शर्मनाक हार दर्ज हो गयी है।

तेल अवीव के हालिया दावे का ज़िक्र करते हुए कि ख़ान यूनिस शहर के पश्चिम में अल-मवासी इलाक़े पर हाल ही में हुए बर्बर हमलों में क़स्साम ब्रिगेड के कमांडर "मोहम्मद अल-ज़ैफ़ और खान यूनिस ब्रिगेड के कमांडर राफ़ेअ सलामा शहीद हो गये।

उन्होंने कहा: बेशक, यह जीत का जश्न लंबे समय तक नहीं चल सका, और तेल अवीव की जासूसी सेवाएं, जिसके बारे में नेतन्याहू ने निगरानी करने में अत्यधिक सक्षम होने का दावा किया था, प्रतिरोधकर्ताओं और उनके हौसलों के सामने लगातार हजारवीं बार नाकाम रही हैं, और हर तरफ़ उनकी विफलता और नाकामी की आवाज़ें सुनाई दे रही हैं।

इस क्षेत्रीय विशेषज्ञ ने बताया कि ज़ायोनी शासन को सबसे लंबे और सबसे महंगे युद्ध में उलझाने के लिए प्रतिरोध के कमांडर अपने भूमिगत वॉर रूम में ही रहेंगे।

उन्होंने कहा: ये अपराध ज़ायोनी शासन के लिए बहुत महंगे साबित होंगे और राजनीतिक या सैन्य कमांडरों सहित अपराधियों को उनके कामों के लिए दंडित किया जाएगा और उनकी सज़ाएं नाज़ी जर्मनी या अन्य अंतर्राष्ट्रीय अपराधियों के मुक़ाबले में सबसे बदतर होगी

जम्मू में बीते कुछ महीनों में आतंकी हमले बढ़े हैं। इसे लेकर कांग्रेस ने मोदी सरकार को घेरा है। कांग्रेस अध्यक्ष खरगे ने कहा है कि सरकार ऐसे काम कर रही है जैसे सब कुछ सामान्य रूप से चल रहा है और कुछ भी नहीं बदला लेकिन उन्हें पता होना चाहिए कि जम्मू क्षेत्र इन हमलों का खामियाजा तेजी से भुगत रहा है।

जम्मू-कश्मीर के डोडा में बीती रात से आतंकियों और सुरक्षाबलों के बीच मुठभेड़ जारी है। जंगल में दोनों तरफ से लगातार फायरिंग हो रही है। एनकाउंटर में सेना के एक अधिकारी समेत 4 जवान मारे गए हैं। जानकारी के मुताबिक एक से दो आतंकी जंगल में छिपे हो सकते हैं। सुरक्षाबलों ने इस पूरे इलाके को घेर लिया है और हेलीकॉप्टर की मदद से आतंकियों की तलाश की जा रही है।इस ऑपरेशन को सेना, पुलिस और CRPF की संयुक्त टीम अंजाम दे रही है।

 

मंगलवार, 16 जुलाई 2024 15:11

रूस ने इस्राईल को चेतावनी दी

रूसी विदेशमंत्रालय की प्रवक्ता ने चेतावनी दी है कि सीरिया में इस्राईली अधिकारियों की दायित्वहीन कार्यवाहियां पश्चिम एशिया में लड़ाई के विस्तृत होने व फ़ैलने का कारण बनेंगी।

ज़ायोनी सरकार ने हालिया वर्षों में दमिश्क और सीरिया के दूसरे विभिन्न क्षेत्रों पर बारमबार हवाई हमला किया है परंतु सीरियाई एअरडिफ़ेन्स ने समय पर सक्रिय होकर अधिकांशतः इन हमलों को नाकाम बना दिया।

सीरिया पर इस्राईल के हवाई हमले ऐसी स्थिति में होते रहते हैं जब दमिश्क ने बारमबार राष्ट्रसंघ और सुरक्षा परिषद के नाम पत्र भेजकर इन हमलों की भर्त्सना की और इन हमलों के बंद किये जाने की मांग की है।

रूस की विदेशमंत्रालय की प्रवक्ता मारिया ज़ाख़ारोवा ने अलमयादीन टीवी चैनल से वार्ता में सीरिया पर ज़ायोनी सरकार के हमलों की भर्त्सना करते हुए कहा कि इस्राईली अधिकारियों की ग़ैर ज़िम्मेदाराना कार्यवाहियां पश्चिम एशिया में सशस्त्र झड़पों की संभावना को अधिक कर रही हैं और क्षेत्र को ख़तरनाक तबाही की ओर ले जा रही हैं।

 

ज़ाख़ारोवा ने दमिश्क में ईरानी काउंसलेट पर इस्राईल के हालिया हमले की ओर संकेत किया और कहा कि इस्राईल के इस हमले से क्षेत्र बड़ी जंग के मुहाने पर पहुंच गया था। उन्होंने कहा कि इस्राईल को चाहिये कि वह सीरिया पर हमले करने से परहेज़ करे और अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों का सम्मान करे।

उन्होंने कहा कि इस्राईल के स्ट्रैटेजिक घटक यानी अमेरिका और उसके पश्चिमी घटकों ने पश्चिम एशिया के परिवर्तनों के संबंध में चुप्पी साध रखी है और सीरिया पर इस्राईल के बारमबार के प्रक्षेपास्त्रिक हमलों और बमबारी को एक सामान्य व वास्तविक चीज़ के रूप में स्वीकार करते और देखते हैं।

रूसी विदेशमंत्रालय की प्रवक्ता ने कहा कि पश्चिम एशिया में शांति को व्यवहारिक बनाने और इस्राईली हमलों को बंद कराने के संबंध में मॉस्को के पास नियत सुझाव व प्रस्ताव हैं और क्षेत्रीय देशों के साथ इन प्रस्तावों की समीक्षा व मूल्यांकन के लिए उनका देश तैयार है।

ग़ज़्ज़ा पर जारी इज़रायली आक्रमण को नौ महीने हो गए हैं। इन नौ महीनों में गाज़ा ने सभी प्रकार की पीड़ित जनता, मुस्लिम शासकों की उदासीनता, विश्व जनमत की फूट और मानव की असहायता देखी है।

ग़ज़्ज़ा पर जारी इजरायली आक्रमण को नौ महीने हो गए हैं। इन नौ महीनों में गाजा ने हर तरह की क्रूरता और आतंक, मुस्लिम शासकों की उदासीनता, अंतरराष्ट्रीय जनमत की सहमति और मानवाधिकार संगठनों की बेबसी देखी है। इसके अलावा, गाजा के लोगों ने जो देखा और सहा है उसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते। आखिर इन अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के अस्तित्व का क्या फायदा अगर ये अपनी स्थापना के उद्देश्य को पूरा करने में लगातार विफल हो रहे हैं? संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में युद्धविराम प्रस्ताव पेश किया गया और हर बार अमेरिका ने इस पर वीटो किया। इसके बाद जब युद्धविराम पर सहमति बनी तो इजराइल के इस तानाशाही रवैये को पश्चिम और मानवाधिकार संगठनों ने भी खारिज कर दिया अगर किसी अन्य देश ने विश्व जनमत को इस तरह से देखा होता तो क्या होता, यह किसी को बताने की जरूरत नहीं है, लेकिन इजराइल ने, जिसके हर जुल्म में अमेरिका भी बराबर का भागीदार है अंतर्राष्ट्रीय राय को नजरअंदाज किया, बल्कि उसका तिरस्कार भी किया, अगर अब तक संयुक्त राज्य अमेरिका उसकी पीठ पर न खड़ा होता, तो इजरायल का अंत सफल होता, लेकिन अत्याचारी ने अत्याचारी का समर्थन किया और आज इजराइल इसके बावजूद गाजा छोड़ने को तैयार नहीं है।

अल-अक्सा तूफान के बाद इजराइल ने दावा किया था कि वह हमास को मार डालेगा. हमास आज भी मौजूद है, जिसके साथ इजराइल लगातार संघर्ष विराम पर बातचीत कर रहा है, तो पिछले नौ महीनों में इजराइली सेना ने किसके खिलाफ लड़ाई लड़ी? यह मान लिया गया कि हमास समाप्त हो गया है, तब उसने ज़ायोनी सैनिकों पर भारी हमले किए, नोमा की लगातार लड़ाई के बाद भी हमास के विभिन्न लड़ाके अभी भी मैदान में डटे हुए हैं , तो फिर गाजा में ज़ायोनी सेना से कौन लड़ रहा है? अगर नोमा के लगातार युद्ध के बावजूद इजरायली सेना हमास को खत्म नहीं कर सकी, तो इस युद्ध का क्या फायदा? या क्या इजरायल का लक्ष्य गाजा को नष्ट करना था? क्या ज़ायोनी सेना निर्दोष लोगों का नरसंहार करके फ़िलिस्तीनियों को आतंकित करना चाहती थी ताकि वे गाज़ा लौटने के बारे में सोचें भी नहीं, इसके बाद शरणार्थी शिविरों पर हवाई हमले शुरू हो गए इजरायली सेना का मकसद हमास को खत्म करना था, उसके सैनिकों को ढूंढ-ढूंढ कर मार दिया जाता, लेकिन यह युद्ध गाजा के लोगों के खिलाफ था, इसलिए युद्ध का दायरा भी लोगों तक ही सीमित था अब तक इस दावे पर कि हमास ने शरणार्थी शिविरों को आश्रय स्थल बनाया है, अस्पताल और पूजा स्थल उसके सैनिकों का केंद्र रहे हैं, फिर इन इमारतों पर हमला क्यों किया गया? मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर क्यों नष्ट किया गया? इसका कारण किसी से छिपा नहीं है। इजराइल का लक्ष्य गाजा के लोगों का नरसंहार था, इसलिए वह नहीं चाहता था कि घावों से जूझ रहे और मर रहे लोगों को समय पर इलाज मिले सार्वजनिक इमारतें नष्ट कर दी गईं। लेकिन दुर्भाग्य से दुनिया को इजराइल का यह युद्ध अपराध नजर नहीं आया। अन्यथा, दुनिया अब तक इजराइली आक्रामकता के खिलाफ एक राय पर पहुंच चुकी होती। रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध में अंतरराष्ट्रीय जनमत की एकता देखने को मिली यूक्रेन के कारण गाजा में मानवीय संकट? यदि नहीं तो दुनिया इस क्रूरता पर चुप क्यों थी? वैश्विक स्तर पर 'चेहरा बचाएं' वर्ना इस युद्ध में अमेरिका ने सबसे ज्यादा हथियार इजराइल को भेजे हैं, अगर अमेरिकी मदद नहीं होती तो अल-अक्सा तूफान के बाद यह युद्ध कब तय होता? इजराइल की सेना को सहायता और हथियार लगातार स्टॉकहोम भेजे गए। अनुसंधान संगठन इंटरनेशनल पीस स्टडीज इंस्टीट्यूट के अनुसार, संयुक्त राज्य अमेरिका ने 2019 से 2023 तक इजरायल को उसकी 69% हथियारों की जरूरतें प्रदान की हैं। 7 अक्टूबर के बाद यह प्रतिशत बढ़ गया है। जिसके सटीक आँकड़े अभी तक जारी नहीं किये गये हैं, उससे अमेरिकी पाखंड का अंदाज़ा लगाया जा सकता है।

 

यदि ज़ायोनी सेना अपने मंसूबों में सफल होती तो इज़रायली नागरिक कभी भी बंधकों की रिहाई के लिए विरोध प्रदर्शन नहीं करते। उनके लगातार विरोध से पता चलता है कि ज़ायोनी सेना को हर मोर्चे पर हार का सामना करना पड़ रहा है। कुछ इज़रायली मंत्रियों और पूर्व सैनिकों ने भी यह स्वीकार किया है युद्ध हार चुके हैं, अभी तक गाजा पर कब्जा नहीं किया जा सका है, जिसके लिए नेतन्याहू ने दावा किया था कि कुछ ही दिनों में हम गाजा को जीत लेंगे और हमास को खत्म कर देंगे, और हिजबुल्लाह को इससे काफी नुकसान हुआ है गाजा में इजराइल को लाल सागर में भी कम आर्थिक नुकसान नहीं हुआ है, हिजबुल्लाह ने इजराइल के अंदर ऐसे ठिकानों को सफलतापूर्वक निशाना बनाया है जिसकी ज़ायोनी शासक कभी कल्पना भी नहीं कर सकते हैं, यही कारण है कि युद्ध अब लेबनान की सीमाओं की ओर बढ़ रहा है पिछले चार महीनों में और अभी भी ऐसा करना जारी है।

लोगों को निशाना बनाया जा रहा है. क्योंकि ज़ायोनी जितना हिज़्बुल्लाह से डरते हैं, उतना ही शायद किसी अन्य प्रतिरोधी संगठन से भी. इसकी वजह यह है कि संयुक्त राज्य अमेरिका लगातार इज़रायल को हिज़बुल्लाह के साथ हाथ आजमाने से रोकने की कोशिश कर रहा है नुकसान. अमेरिका और इजराइल दोनों का विचार सही है।

7 अक्टूबर के बाद से गाजा के लोग लगातार निर्वासन में रह रहे हैं. वे जहां भी शरण लेते हैं वहां ज़ायोनी सेना बम गिराना शुरू कर देती है. इस दौरान कितने उत्पीड़क बेघर हो गए हैं लोग गाजा छोड़ चुके हैं। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में समन्वयक सिगर्ड काग ने अपने भाषण के दौरान कहा कि "गाजा में 19 मिलियन लोग निर्वासन में रहने को मजबूर हैं। उनकी स्थिति बहुत चिंताजनक है, जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते।" इन परिस्थितियों में, राफा क्रॉसिंग को फिर से खोलने की आवश्यकता है, यदि ऐसा नहीं होता है, तो कुपोषण के कारण एक बड़ी आबादी की मृत्यु हो सकती है, यदि जल्द ही गाजा में मानवीय सहायता का एक बड़ा बैच पहुंचाया गया, तो दस लाख से अधिक फिलिस्तीनियों की जान चली जाएगी इस क्षेत्र में खतरा पैदा हो जाएगा. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने लगातार कहा है कि इजरायल गाजा के खिलाफ भूख को हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहा है. शहादत की भावना लगातार दृढ़ता और प्रतिरोध की मांग कर रही है और वे अपनी मांगों पर अड़े हुए हैं ज़ायोनी सेना की हार का मुख्य कारण। अन्यथा, अगर गाजा के लोग हमास के खिलाफ खड़े होते, तो यह युद्ध आज नौवें महीने में प्रवेश नहीं करता, इसलिए गाजा के लोगों के प्रतिरोध और शहादत के जज्बे को सलाम किया जाना चाहिए।

करबला के मैदान में दोस्ती, मेहमान नवाज़ी, इकराम व ऐहतेराम, मेहर व मुहब्बत, ईसार व फ़िदाकारी, ग़ैरत व शुजाअत व शहामत का जो दर्स हमें मिलता है वह इस तरह से यकजा कम देखने में आता है। मैंने ऊपर ज़िक किया कि करबला करामाते इंसानी की मेराज का नाम है।

वह तमाम सिफ़ात जिन का तज़किरा करबला में बतौरे अहसन व अतम हुआ है वह इंसानी ज़िन्दगी की बुनियादी और फ़ितरी सिफ़ात है जिन का हर इंसान में एक इंसान होने की हैसियत से पाया जाना ज़रुरी है। उसके मज़ाहिर करबला में जिस तरह से जलवा अफ़रोज़ होते हैं किसी जंग के मैदान में उस की नज़ीर मिलना मुहाल है। बस यही फ़र्क़ होता है हक़ व बातिल की जंग में।

जिस में हक़ का मक़सद, बातिल के मक़सद से सरासर मुख़्तलिफ़ होता है। अगर करबला हक़ व बातिल की जंग न होती तो आज चौदह सदियों के बाद उस का बाक़ी रह जाना एक ताज्जुब ख़ेज़ अम्र होता मगर यह हक़ का इम्तेयाज़ है और हक़ का मोजिज़ा है कि अगर करबला क़यामत तक भी बाक़ी रहे तो किसी भी अहले हक़ को हत्ता कि मुतदय्यिन इंसान को इस पर ताज्जुब नही होना चाहिये।

अगर करबला दो शाहज़ादों की जंग होती?। जैसा कि बाज़ हज़रात हक़ीक़ते दीन से ना आशना होने की बेना पर यह बात कहते हैं और जिन का मक़सद सादा लौह मुसलमानों को गुमराह करने के अलावा कुछ और होना बईद नज़र आता है तो वहाँ के नज़ारे क़तअन उस से मुख़्तलिफ़ होते जो कुछ करबला में वाक़े हुआ।

वहाँ शराब व शबाब, गै़र अख़लाक़ी व गै़र इंसानी महफ़िलें तो सज सकती थीं मगर वहाँ शब की तारीकी में ज़िक्रे इलाही की सदाओं का बुलंद होना क्या मायना रखता?

असहाब का आपस में एक दूसरों को हक़ और सब्र की तलक़ीन करना का क्या मफ़हूम हो सकता है?। माँओं का बच्चों को ख़िलाफ़े मामता जंग और ईसार के लिये तैयार करना किस जज़्बे के तहत मुमकिन हो सकता है?। क्या यह वही चीज़ नही है जिस के ऊपर इंसान अपनी जान, माल, इज़्ज़त, आबरू सब कुछ क़ुर्बान करने के लिये तैयार हो जाता है मगर उसके मिटने का तसव्वुर भी नही कर सकता।

यक़ीनन यह इंसान का दीन और मज़हब होता है जो उसे यह जुरअत और शुजाअत अता करता है कि वह बातिल की चट्टानों से टकराने में ख़ुद को आहनी महसूस करता है। उसके जज़्बे आँधियों का रुख़ मोड़ने की क़ुव्वत हासिल कर लेते हैं। उसके अज़्म व इरादे बुलंद से बुलंद और मज़बूत से मज़बूत क़िले मुसख़्ख़र कर सकते हैं।

यही वजह है कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के पाये सबात में लग़ज़िश का न होना तो समझ में आता है कि वह फ़रज़ंदे रसूल (स) हैं, इमामे मासूम (अ) हैं, मगर करबला के मैदान में असहाब व अंसार ने जिस सबात का मुज़ाहिरा किया है उस पर अक़्ल हैरान व परेशान रह जाती है।

अक़्ल उस का तजज़िया करने से क़ासिर रह जाती है। इस लिये कि तजज़िया व तहलील हमेशा ज़ाहिरी असबाब व अवामिल की बेना पर किये जाते हैं मगर इंसान अपनी ज़िन्दगी में बहुत से ऐसे अमल करता है जिसकी तहलील ज़ाहिरी असबाब से करना मुमकिन नही है और यही करबला में नज़र आता है।

 हमारा सलाम हो हुसैने मज़लूम पर

*हमारा सलाम हो बनी हाशिम पर

*हमारा सलाम हो मुख़द्देराते इस्मत व तहारत पर

*हमारा सलाम हो असहाब व अंसार पर।

*या लैतनी कुन्तो मअकुम।