رضوی

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मुहर्रम का महीना सोच-विचार का महीना है, हमें इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के साथ अपने रिश्ते के बारे में सोचना चाहिए। चूँकि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के समय में विभिन्न विचारों के लोग थे, इसलिए यह निर्धारित करना होगा कि हम किस समूह और किस विचारधारा के हैं।

हज्जत-उल-इस्लाम वल-मुस्लिमीन मुहम्मद महदी मीर बाकरी ने मुहर्रम की दूसरी रात हजरत मासूमा क़ुम की दरगाह में सभा को संबोधित करते हुए कहा,  अल्लाह तआला ने पवित्र कुरान में लोगों को अलग-अलग स्थानों में विभाजित किया है: कुरान अल-करीम ने तीन प्रकार के लोगों का उल्लेख किया है, सूरह अल-हमद में, उन्होंने मनुष्यों को तीन प्रकारों में विभाजित किया है, जिन्हें मार्गदर्शन का आशीर्वाद मिला है। हे परमेश्वर, वे जो भटके हुए हैं और मार्ग न पाने के कारण खेदित हैं, नहीं, और जो परमेश्वर से क्रोधित हैं, और परमेश्वर का क्रोध भोगते हैं।

उन्होंने कहा: परंपराओं के अनुसार, पुनरुत्थान के दिन, कुछ लोग स्वर्ग के लोग होंगे, कुछ लोग नर्क के लोग होंगे, और कुछ लोग अस्पष्ट होंगे। हमें इमाम हुसैन (अ) के साथ अपने रिश्ते के बारे में सोचना चाहिए क्योंकि इमाम हुसैन (अ) के समय में अलग-अलग विचारों के लोग थे, इसलिए यह तय करना होगा कि हम किस समूह और किस विचारधारा के हैं, कुछ लोग कर्बला में देर से पहुंचे, और कुछ लोग कर्बला में होते हुए भी भाग निकले कर्बला, और कुछ लोग सैय्यद अल-शाहदा (अ) के उपदेश सुनने के बावजूद इमाम हुसैन (एएस) के खिलाफ लड़ने को तैयार थे।

खतीब हरम हज़रत मासूमा क़ुम ने कहा: यदि हमारे पास उन लोगों के गुण हैं जो हज़रत अबा अब्दुल्लाह अल-हुसैन (अ) के खिलाफ खड़े थे, तो निश्चिंत रहें कि हम अहल-अल-बैत के कारवां को बुलाएंगे कहीं से अलग हो जाएगा, मुहर्रम इस विचार और विचार को संदर्भित करता है ताकि एक व्यक्ति यह जान सके कि वह किस समूह और किस विचारधारा का है, एक व्यक्ति यह जान सकता है कि वह इतिहास के किस बिंदु पर खड़ा है, यदि हम इमाम हुसैन (अ) हैं यदि वे इमाम हुसैन (अ) के युग में थे या किसी अन्य पंक्ति में थे?

उन्होंने कहा: इस कठोर माहौल में भी, इमाम हुसैन (अ) ने बताया कि मुहम्मदन उम्मत को कैसा होना चाहिए।

उन्होंने आगे कहा: कभी-कभी ईश्वर के पैगम्बरों ने जिस मार्ग पर मनुष्य का मार्गदर्शन किया वह ओवन और जलती हुई आग की तरह दिखता था, लेकिन जब मनुष्य उस पर चला, तो उसने देखा कि ईश्वर की दया का मार्ग उस मार्ग पर खुला है।

 

 

 

 

 

झारखंड में हेमंत सोरेन सरकार ने विश्वास मत हासिल कर लिया है। इसके बाद कैबिनेट का विस्तार किया गया। इस बार कैबिनेट में हेमंत सरकार ने तीन नए चेहरों को मौका दिया ।

इसी कड़ी में शपथ लेने से पहले झारखंड के मंत्री हफीजुल हसन ने कुरान की आयत पढ़ी, जिस पर बीजेपी ने विरोध जताया है। असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने भी इसको लेकर निशाना साधा है।

हिमंत बिस्वा सरमा ने सोशल मीडिया पर लिखा,झारखंड राज्य में मंत्री ऐसे शपथ लेते हैं? हम चुप नहीं बैठेंगे। नेता प्रतिपक्ष अमर बाउरी ने माननीय राज्यपाल से अनुरोध किया है कि हफीजुल हसन जी को कार्यभार ग्रहण न करने दें, क्योंकि यह शपथ अमान्य है और संविधान के विरुद्ध है।

हजरत जैनब एक महान खातून थी जिन्होंने मदीने में रहने से ज़्यादा अफजल इमाम के साथ जाने में समझा और इमाम के साथ हमराही की और इस्लाम को बचा कर लाई आज इस्लाम जिंदा है इन्हीं की बदौलत उनकी महानता को कोई भूला नहीं सकता।

हज़रत ज़ैनब एक अज़ीम ख़ातून हैं। इस अज़ीम ख़ातून को मुस्लिम क़ौमों में जो अज़मत हासिल है वह किस वजह से है? यह नहीं कहा जा सकता कि इसलिए है कि आप हज़रत अली की बेटी या इमाम हुसैन या इमाम हसन अलैहिमुस्सलाम की बहन हैं रिश्ते ऐसी अज़मत का सबब नहीं बन सकते।

हमारे सभी इमामों की माएं और बहनें थी, लेकिन हज़रत ज़ैनब के जैसा कौन है?हज़रत ज़ैनबे कुबरा की अहमियत व अज़मत, अल्लाह के फ़रीज़े के मुताबिक़ आपकी अज़ीम इस्लामी व इंसानी तहरीक की वजह से है।

इस अज़मत का एक हिस्सा यह है कि आपने पहले हालात को पहचाना इमाम हुसैन अलैहिस्सालम के कर्बला जाने से पहले के हालात को भी, आशूर के दिन संकटमय हालात को भी और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शहादत के बाद के हौलनाक हालात को भी पहचाना और फिर हर मौक़े के लिए मुनासिब क़दम को चुना।

इसी तरह के फ़ैसलों से हज़रत ज़ैनब की शख़्सियत बनी कर्बला रवाना होने से पहले इब्ने अब्बास और इब्ने जाफ़र जैसी इस्लाम के आग़ाज़ की मशहूर हस्तियां जो फ़िक़्ह की महारत, बहादुरी और नेतृत्व की दावेदार थी फ़ैसला न कर पाने की हालत का शिकार थीं, यह न समझ सकीं कि उन्हें क्या करना चाहिए।

लेकिन हज़रत ज़ैनब तज़बज़ुब का शिकार नहीं हुयीं और आप समझ गयीं कि आपको उस रास्ते को चुनना चाहिए और अपने इमाम को अकेला नहीं छोड़ना चाहिए और आप गयीं। ऐसा नहीं था कि आप न समझती हों कि यह रास्ता बहुत सख़्त है।

आप दूसरों से बेहतर इस बात को महसूस कर रही थीं आप एक औरत थीं आप एक ऐसी ख़ातून थीं जो अपने फ़रीज़े को अंजाम देने के लिए अपने शौहर और घरवालों से दूर हो रही थीं। इसी बिना पर अपने छोटे बच्चों के अपने साथ लिया आप अच्छी तरह महसूस कर रही थीं कि कितनी बड़ी घटना सामने है।

 

 

 

आयतुल्लाहिल उज़मा जवादी आमोली ने आज़ादाराने हुसैनी विशेष कर युवाओ को नसीहत करते हुए कहा कोई अज़ादारी के दस्तूर में बे वुज़ू दाखिल ना हो।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,मरजय तकलीद हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा जवादी आमोली ने आज़ादाराने हुसैनी को खिताब करते हुए कहा,कोई अज़ादारी के दस्तूर में बे वुज़ू दाखिल ना हो।

वुज़ू करते हुए नियत करें खुदाया! मैं वुज़ू करता हूं ताकि पाक और पाक़ीज़ा होकर अज़ादारी ए इमामे हुसैन अलैहिस्सलाम ने दाखिल हो सकूं।

इस मरजय तकलीद ने खोतबा और मुब्लागीन को नसीहत करते हुए कहा,मजालिस हुसैनी अ.स.में मआरिफ के बारे में और जो इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के हदफ है उसको बयान किया जाए।

हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा जवादी आमोली

ने कहां यह भी सलाह दी उन्हें मुहर्रम के दिनों में रात में अपने बच्चों, पोते-पोतियों और परपोते-पोतियों को कर्बला की कहानी सुनानी चाहिए ताकि वे अपना सारा समय बेकार फिल्में देखने में न बर्बाद करें, उनको इस्लाम और कर्बला के वाक्य सुनना चाहिए।

ईरानी नौसेना का एक वॉरशिप उस समय डूब गया जब उसकी होर्मुज जलडमरूमध्य के निकट एक बंदरगाह पर मरम्मत की जा रही थी। ईरान के सरकारी मीडिया ने यह जानकारी दी। समाचार एजेंसी इरना (IRNA) की रिपोर्ट में कहा गया है कि मरम्मत के दौरान 'सहंद' वॉरशिप का संतुलन इसके कई टैंक में पानी घुसने के कारण बिगड़ गया।

एजेंसी ने कहा कि पानी की गहराई कम होने के कारण विध्वंसक को दोबारा संतुलित स्थिति में लाना संभव है। एजेंसी ने बताया कि घायल लोगों को अस्पताल ले जाया गया, लेकिन इससे अधिक जानकारी नहीं दी गई। सहंद वॉरशिप का नाम उत्तरी ईरान के एक पहाड़ के नाम पर रखा गया है। इस वॉरशिप को बनाने में छह साल लगे और दिसंबर 2018 में फारस की खाड़ी में इसे समंदर में उतारा गया था।

1,300 टन वजनी सहंत वॉरशिप सतह से सतह और सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलों, विमान भेदी बैटरियों और परिष्कृत रडार और रडार से बचने की क्षमताओं से लैस था। इसके पहले जनवरी 2018 में एक नौसैनिक विध्वंसक 'दमावंद' दुर्घटनाग्रस्त होने के बाद कैस्पियन सागर में डूब गया था।

लखनऊ की तारीखी शाह नजफ़ इमामबाड़े, हज़रतगंज में रात 9 बजे अशरे का इनकाद किया गया है जिसको मौलाना अली अब्बास खान साहब ख़िताब मौलाना ने फरमाया,इंसान निजाम ए इलाही को पहचाने और अपनी ज़िम्मेदारी को पहचाने इलाही नुमाइन्दे इंसान की रूहानी तरक्की के लिए आए थे, दुनियावी तरक्की इंसान खुद कर सकता है लेकिन एक अच्छा इंसान नहीं बन सकता।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,लखनऊ, 8 जुलाई 2024 | लखनऊ की तारीखी शाह नजफ़ इमामबाड़े, हज़रतगंज में रात 9 बजे अशरे का अनेकाद किया गया है जिसको मौलाना अली अब्बास खान साहब ख़िताब कर रहे हैं, ये अशरा पिछले 8 सालों से मौलाना ख़िताब कर रहे हैं।

अशरे की पहली मजलिस को क़ारी रजा हुसैन साहब ने तिलावत ए कुरान से आगाज़ किया और फिर मोहम्मद हुसैन साहब ने अशआर पेश किए और फिर सैयद अली शुजा साहब ने पुर दर्द मर्सिया पेश किया और मौलाना अली अब्बास खान साहब ने मजलिस को खि़ताब करते हुए फरमाया के इंसान निजाम ए इलाही को पहचाने और अपनी ज़िम्मेदारी को पहचाने।

इलाही नुमाइन्दे इंसान की रूहानी तरक्की के लिए आए थे, दुनियावी तरक्की इंसान खुद कर सकता है लेकिन एक अच्छा इंसान नहीं बन सकता, इंसान अभी तक इलाही नुमाइन्दे की सारी बातें नहीं समझ पाया आज तक अगर उसकी अक्ल समझ में आ जाएगी तो वो दुनिया के साथ साथ मानवी तरक्की करेगा। आखिर में अज़ादार इमाम हुसैन को याद करके अश्कबार हो गए।

शहीद रईसी की विदेश नीति, आत्मसम्मान के साथ दुनिया के साथ सहयोग पर आधारित थी

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने रविवार 7 जुलाई 2024 की सुबह कार्यवाहक राष्ट्रपति मुख़बिर और तेरहवें मंत्रीमंडल के सदस्यों से मुलाक़ात की।

उन्होंने इस मुलाक़ात में, जो तेरहवें मंत्रीमंडल के सदस्यों से आख़िरी मुलाक़ात थी, तेरहवीं सरकार को "काम, उम्मीद और ऐश्कन" की सरकार बताया और कहा कि शहीद रईसी हक़ीक़त में हक़ और भविष्य के बारे में आशावान थे और निर्धारित लक्ष्य को हासिल करने के लिए ठोस इरादा रखते थे।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने शहीद रईसी की ख़ुसूसियतों को बयान करते हुए उनके अवाम से जुड़े होने को उनकी बहुत अहम ख़ुसूसियत और सभी अधिकारियों के लिए इसे आदर्श बताया और कहा कि अज़ीज़ रईसी अवाम के बीच पहुंच कर हक़ीक़त और ज़रूरतों को क़रीब से महसूस करते थे और उन्होंने अवाम की मुश्किल को दूर करने और उनकी ज़रूरतों को पूरा करने को अपने प्रोग्रामों और योजनाओं का केन्द्र बिंदु क़रार दिया था।

उन्होंने अवाम से जुड़े होने की ख़ुसूसियत को अधिकारियों और ज़िम्मेदारों से इस्लाम का मुतालेबा बताया और जनाब मालिके अश्तर के नाम अमीरुल मोमेनीन अलैहिस्सलाम के ख़त का हवाला देते हुए कहा कि अमीरुल मोमेनीन मालिके अश्तर से बल देकर कहते हैं कि तुम्हारी नज़र में सबसे पसंदीदा काम वह होना चाहिए जो अवाम की मर्ज़ी और ख़ुशी हासिल करे। शहीद रईसी अमीरुल मोमेनीन की इस शैली को अपनाए हुए थे और इसे भी सभी के लिए आदर्श होना चाहिए।

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने मुल्क की सलाहियतों पर गहरे विश्वास को शहीद रईसी की एक और नुमायां ख़ुसूसियत बताया और कहा कि रईसी दिल की गहराइयों से मुल्क के मसलों के हल के लिए मुल्क की सलाहियतों व क्षमताओं को इस्तेमाल करने पर यक़ीन रखते थे।

उन्होंने धार्मिक व क्रांतिकारी नज़रिए के खुलकर एलान, द्विअर्थी बातों और दूसरों की ख़ुशामद से परहेज़ को शहीद राष्ट्रपति की एक और ख़ुसूसियत बताया और कहा कि रईसी जो बात साफ़ तौर पर कहते थे, व्यवहारिक तौर पर उसकी पाबंदी भी करते थे, मिसाल के तौर पर राष्ट्रपति बनने के बाद जब उनके पहले इंटरव्यू में उनसे सवाल किया गया कि क्या आप फ़ुलां मुल्क से संबंध क़ायम करेंगे तो उन्होंने जवाब दिया थाः "नहीं" और वह आख़िर तक उसी दो टूक व स्पष्ट स्टैंड पर डटे रहे।

 

 इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने काम से न थकने को शहीद रईसी की एक और ख़ुसूसियत बताते हुए कहा कि मैं बिना रुकावट के काम जारी रखने के लिए उनसे बारंबार कहता था कि वो थोड़ा आराम कर लें तो वो कहते थे कि मुझे काम से थकन नहीं होती और वो सचमुच थकते नहीं थे।

उन्होंने आगे कहा कि राष्ट्रपति रईसी में एक और नुमायां ख़ुसूसियत थी और वह यह कि वो विदेश नीति में दो ख़ुसूसियतों की एक साथ पाबंदी करते थे, एक सहयोग और दूसरे आत्मसम्मान की रक्षा। वह सहयोग करने वाले थे लेकिन आत्म सम्मान की रक्षा के साथ, वो न तो इतनी सख़्त बहस करते थे कि संपर्क टूट जाए और न ही फ़ुज़ूल में अपने आप को कमतर ज़ाहिर करते और रिआयत देते थे।

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने इस सिलसिले में याद दिलाया कि इज़्ज़त व आत्मसम्मान के साथ दूसरे मुल्कों ख़ास तौर पर पड़ोसी मुल्कों के साथ हमारे शहीद राष्ट्रपति का सहयोग इस बात का सबब बना की उनकी शहादत के बाद दुनिया के कई बड़े राष्ट्राध्यक्षों ने अपने सांत्वना संदेशों में उन्हें एक मामूली राजनेता नहीं बल्कि एक नुमायां हस्ती के तौर पर याद किया।

उन्होंने शहीद रईसी में अध्यात्म, अल्लाह की याद, उससे दुआ और अहलेबैत को अल्लाह से दुआ में ज़रिया क़रार देने को उनकी एक और नुमायां ख़ुसूसियत बताया।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने कहा कि ये ख़ुसूसियतें एक आइडियल की व्याख़्या और इतिहास में उसे दर्ज करने के लिए बयान हुयीं ताकि यह पता चल सके कि एक राष्ट्रपति अनेक वैचारिक, व्यवहारिक व हार्दिक महानताओं का स्वामी हो सकता है और अपने सरकारी व व्यक्तिगत कामों के दौरान भी उनकी पाबंदी कर सकता है।

उन्होंने अपने ख़ेताब के आख़िर में एक बार फिर एक अच्छे और बिना कड़वाहट के चुनाव के आयोजन के लिए अवाम, अधिकारियों, गृह मंत्रालय, राष्ट्रीय मीडिया, पुलिस फ़ोर्स और क़ानून लागू करने वाले विभागों की कोशिशों का शुक्रिया अदा किया और कहा कि दुनिया के कुछ मुल्कों में इलेक्शन मारपीट और एक दूसरे का गरेबान पकड़े बिना नहीं होता जबकि हमारे मुल्क में चुनाव बेहतरीन तरीक़े से आयोजित हुआ।

इमाम हुसैन  अ.स.  के रौज़े की तरफ से एक बार फिर ऐलान किया गया है कि इस बार लंदन की सड़कों पर 40000 से ज़्यादा अलम लहराएंगे जिस पर इमाम हुसैन अ.स.  के रौज़े के लोगो समेत मानवाधिकार और इमाम हुसैन अ.स. से संबंधित स्लोगन होंगे।

इमाम हुसैन रौज़े के उप प्रबंधक डॉ अला ज़ियाउद्दीन ने कहा: शेख अब्दुल महदी अल-करबलाई के समर्थन से इस साल आशूरा के दिन लंदन के केंद्र में ऑक्सफोर्ड स्ट्रीट पर 40,000 अलम फहराए जाएंगे।

 

ग़ज़्ज़ा में ज़ायोनी सेना की ओर से जारी फिलिस्तीनी बेगुनाहों का जनसंहार विकराल रूप लेने से एक कदम दूर है। हाल ही में ज़ायोनी सेना और हिज़्बुल्लाह के बीच बड़े तनाव ने पूरी दुनिया को संकट में डाल दिया है। हिज़्बुल्लाह ने साफ़ शब्दों में ऐलान किया है कि वह मक़बूज़ा फिलिस्तीन के संवेदनशील ठिकानो को निशाना बनाने की क्षमता रखता है। वहीं अमेरिका ने तनाव कम करने के लिए अपने दूत को लेबनान यात्रा पर भेजा है।

ज़ायोनी हमले मे हिज़्बुल्लाह कमांडर अबुतालिब की शहादत के बाद से ही मक़बूज़ा फिलिस्तीन के नॉर्दर्न बॉर्डर पर तनाव बढ़ गया है और किसी भी वक्त यह तनाव एक बड़ी जंग का रूप ले सकता है। अपने कमांडर की मौत के कुछ ही घंटों बाद हिज़्बुल्लाह ने ज़ायोनी शासन के खिलाफ कार्रवाई करते हुए करीब 200 रॉकेटों की बरसात की थी, जिसके बाद पूरे नॉर्दन इस्राईल में डर का माहौल बन गया। ज़ायोनी सेना ने 18 जून को कहा कि ‘लेबनान ऑपरेशन प्लान’ को IDF के नॉर्दन कमांड चीफ मेजर जनरल ओरी गॉर्डिन और ऑपरेशनल चीफ ओडेड बासियुक से मंजूरी मिल गई है, जिसके बाद हिज़्बुल्लाह के खिलाफ व्यापक युद्ध छेड़ा जा सकता है। लेकिन हिज़्बुल्लाह के इस एलान के बाद ज़ायोनी सेना, उसके एयर डिफेंस, इंटेलिजेंस और सर्विलांस यूनिट से लेकर सरकार की भी नींद उड़ गई है।

हिज़्बुल्लाह ने एक वीडियो जारी की है, जिसमें उसके ड्रोन को मक़बूज़ा फिलिस्तीन के आसमान पर उड़ता दिखाया गया है। 9 मिनट की इस फुटेज में टोही ड्रोन को किरयात शमोना, नहरिया, सफद, कारमील, अफुला कस्बों से लेकर हैफा पोर्ट तक उड़ते हुए दिखाया गया है। इन फुटेज में ज़ायोनी सेना की कई संवेदनशील साइट्स को भी मार्क किया गया है। ज़ायोनी शासन के लिए चिंता की बात यह भी है कि यह ड्रोन बिना उसकी रडार में आए वापस लेबनान भी लौट गया है। ड्रोन ने उस रडार को चकमा दिया है, जिसको इस्राईल दुनिया का सबसे अच्छा एयर डिफेंस सिस्टम बताता है।

 

 

अहले बैत वर्ल्ड इस्लामिक असेंबली के जनरल सेक्रेटरी आयतुल्लाह रज़ा रमज़ानी ने कहा कि हज का असली अर्थ और उसकी आत्मा तौहीद और शिर्क से बेज़ारी के साथ गूँधा हुआ है। अगर हम हज के रहस्यों पर घोर करें तो पाएंगे कि वह अंदरूनी और बाहरी शिर्क से मुक़ाबला करना है।

इस्राईल के अत्याचारी चेहरा एक बार फिर दुनियया के सामने बेनक़ाब हो चुका है। फिलिस्तीनी लोगों की मज़लूमियत और ज़ायोनी शासन के अत्याचारों के कारण इस साल का हज हज्जे बराअत के नाम से मशहूर हो गया।

अहले बैतियन एक्टिविस्ट ने हज कांग्रेस के नाम आयतुल्लाह ख़ामेनेई के पैग़ाम और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उसके प्रभाव के शीर्षक से अहले बैत वर्ल्ड इस्लामिक असेंबली की सहायता से अबना में एक वेबिनार का आयोजन किया गया।

अहले बैत वर्ल्ड इस्लामिक असेंबली के जनरल सेक्रेटरी आयतुल्लाह रज़ा रमज़ानी ने कहा कि हज एक तरह से अल्लाह की बंदगी का अभ्यास है। हज एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मलेन है जिसमे हर साल दुनियाभर से अलग अलग नस्ल और समाज के मुसलमान शामिल होते हैं। यह बेहतरीन अवसर हैं जहाँ हम अपने मामलात और दुनिया के बारे में फैसला ले सकते हैं।

आयतुल्लाह रज़ा रमज़ानी ने कहा कि हज में शिर्क और मुशरेकीन से बराअत, प्रभुत्ववाद, साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद से बेज़ारी का रंग गहरा होना चाहिए।

उन्होंने कहा कि हज का एक बेहतरीन तोहफा उम्मते इस्लामी का इत्तेहाद है। अगर मुसलमानों के बीच सही अर्थों में एकजुटता और इत्तेहाद हो जाए तो दुनिया में सबसे बड़ी आर्थिक, राजनीतिक, सुरक्षा, सांस्कृतिक और सामाजिक स्थिति मुसलमानों की होगी, जो हम सभी की इच्छाओं और आशाओं का हिस्सा है।

रूसी लोगों ने आयतुल्लाह ख़ामेनेई के बयान का स्वागत किया

रूस के दागेस्तान स्टेट यूनिवर्सिटी के सहायक प्रोफेसर डॉ. नूरी मोहम्मदज़ादेह ने भी कहा: हज तौहीद का प्रतीक है और शिर्क और उत्पीड़न से मुक्ति का प्रतीक भी। इसलिए, इस वर्ष के हज संदेश में आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने बराअत पर इतना ज़ोर दिया। उन्होंने कहा कि हमने रूसी ज़बान में आयतुल्लाह ख़ामेनेई के पैग़ाम को सोशल मीडिया की सहारे वायरल करने की भरपूर कोशिश की है। जिसका सकारात्मक जवाब भी मिला।

हाजियों पर जमी हैं फिलिस्तीनी लोगों की निगाहें

अर्जेंटीना के ब्यूनस आयर्स मस्जिद के इमाम शेख अब्दुलकरीम पाज़ ने हज कांग्रेस को एक महत्वपूर्ण अवसर बताते हुए कहा कि हज सभी मुसलमानों के लिए ईश्वर की ओर से एक महत्वपूर्ण कर्तव्य है और यह एक महान अवसर भी है जिसका हमें लाभ उठाना चाहिए।

उन्होंने इस साल के हज सीज़न में शिर्क से बराअत के मुद्दे को अतीत से अलग माना और कहा कि आज ग़ज़्ज़ा में बहुत बड़ा और भयानक नरसंहार हो रहा है। पिछले वर्षों में हज के दौरान सऊदी अरब में फ़िलिस्तीन की आज़ादी के नारे पर प्रतिबंध लगा दिया गया था, लेकिन इस साल वह चाह कर भी ऐसा नही कर सकते और हाजियों को चुप रहने पर मजबूर नहीं कर पाएंगे।