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तेहरान में छठीं अंतर्राष्ट्रीय फ़िलिस्तीन कान्फ़्रेन्स का आयोजन हुआ जिसका उदघाटन इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई के भाषण से हुआ।

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने अपने भाषण में कहा कि फ़िलिस्तीन की कहानी और फ़िलिस्तीनी जनता की सहनशीलता, प्रतिरोध और मज़लूमियत हर न्यायप्रेमी और स्वतंत्रता प्रेमी इंसान को दुखी कर देती है।

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि इतिहास के किसी भी भाग में दुनिया का कोई भी राष्ट्र एसे अत्याचारी से रूबरू नहीं हुआ कि बाहर से रची जाने वाली साज़िश के तहत पूरे देश पर क़ब्ज़ा कर लिया जाए, वहां की जनता को निर्वासित कर दिया जाए और उसके स्थान पर दुनिया भर से एकत्रित करके एक समूह को बसा दिया जाए। इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि यह भी इतिहास का एक काला अध्याय है जो अन्य काले अध्यायों की तरह ईश्वर की कृपा से बंद हो जाएगा।

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि यह सम्मेलन अत्यंत कठिन क्षेत्रीय व अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों में आयोजित हो रहा है। हमारा यह क्षेत्र जो फ़िलिस्तीनी जनता के संघर्ष का समर्थक रहा है, इन दिनों हिंसा तथा विभिन्न संकटों में फंसा हुआ है। उन्होंने कहा कि क्षेत्र के अलग अलग संकटों के कारण फ़िलिस्तीन का विषय प्रभावित हुआ है। इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि इन संकटों पर विचार करने से हमें समझ में आता है कि इन से लाभ उठाने वाली शक्तियां कौन हैं? वही हैं जिन्होंने इस क्षेत्र में ज़ायोनी शासन का गठन किया है ताकि एक दीर्घकालिक टकराव थोप कर इस क्षेत्र की स्थिरता और उन्नति का रास्ता रोक दें।

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि फ़िलिस्तीनी राष्ट्र के राजनैतिक समर्थन की कदापि उपेक्षा नहीं करना चाहिए। अलग अलग वैचारिक रुजहान और स्वभाव के मुस्लिम राष्ट्र और सभी स्वतंत्रता प्रेमी एक लक्ष्य पर एकत्रित हो सकते हैं और वह लक्ष्य है फ़िलिस्तीन तथा उसकी स्वतंत्रता के लिए संघर्ष की अनिवार्यता।

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि ज़ायोनी शासन के बिखराव के लक्षण स्पष्ट होते जा रहे हैं और उसके समर्थकों विशेष रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका पर छाने वाली कमज़ोरी के बाद देखने में आ रहा है कि धीरे धीरे माहौल भी ज़ायोनी शासन की शत्रुतापूर्ण, ग़ैर क़ानूनी और ग़ैर इंसानी कार्यवाहियों से मुक़ाबले की ओर बढ़ रही हैं।

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि फ़िलिस्तीनी जनता का बर्बरतापूर्ण दमन, बड़े पैमाने पर गिरफ़तारियां, जनसंहार, भूमियों पर क़ब्ज़ा और वहां यहूदी बस्तियों का निर्माण, बैतुल मुक़द्दस और मुस्जिदुल अक़सा में इस्लामी व ईसाई धार्मिक स्थानों की पहिचान बदलने की कोशिशें और दूसरे बहुत से अत्याचार जारी हैं और इन अत्याचारों को अमरीका तथा कुछ पश्चिमी सरकारों का समर्थन प्राप्त है।

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि फ़िलिस्तीनी राष्ट्र ने जो अंतर्राष्ट्रीय ज़ायोनिज़्म और उसे धूर्त समर्थकों से मुक़ाबले को बोझ अकेले उठाए हुए है, बड़े बड़े दावे करने वालों को एक अवसर दिया कि वह अपने दावों को व्यवहारिक करें।

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि जिस ज़माने में यथार्थवाद के नाम पर और न्यूनतम अधिकारों को भी हाथ से निकल जाने से बचाने के नाम पर ज़ायोनी शासन से संधि का प्रस्ताव पेश किया गया, फ़िलिस्तीनी जनता यहां तक कि उन संगठनों ने भी जिनकी नज़र में इस प्रस्ताव की विफलता पहले से ही निश्चित थी, इसे एक अवसर दिया। अलबत्ता इस्लामी गणतंत्र ईरान ने शुरू से ही इस विचार को ग़लत ठहराया और उसके विनाशकारी परिणामों की ओर से सचेत किया। उन्होंने कहा कि इस शैली को जो अवसर दिया गया उससे फ़िलिस्तीनी जनता के संघर्ष को नुक़सान पहुंचा लेकिन इसका फ़ायदा यह हुआ कि यथार्थवाद की कल्पना का ग़लत होना साबित हो गया।

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि ज़ायोनी शासन से सांठगांठ की शैली की ख़राबी केवल यह नहीं थी कि इसमें एक राष्ट्र के अधिकार को नज़रअंदाज़ करके अतिग्रहणकारी शासन को औपचारिकता दे गई, बल्कि इसकी सबसे बड़ी ख़राबी यह है कि फ़िलिस्तीन की वर्तमान स्थिति से इसकी कोई समानता नहीं है।

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि फ़िलिस्तीनी राष्ट्र तीन दशकों के दौरान दो अलग अगल माडल आज़मा चुका है और समझ चुका है कि कौन सा माडल उसकी स्थिति से किस सीमा तक समन्वय रखता है। सांठगाठ की शैली के मुक़ाबले में दूसरी शैली इंतेफ़ाज़ा आंदोलन और संघर्ष की शैली है जिसने इस राष्ट्र को महान उपलब्धियों से संपन्न किया है। उन्होंने अपने भाषण में कहा कि यह समझने की ज़रूरत है कि अगर संघर्ष का रास्ता न अपनाया जाता तो आज क्या हालत होती? संघर्ष की सबसे बड़ी सफलता यह रही कि ज़ायोनी शासन की बड़ी योजनाएं ठप्प पड़ गईं। इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि संघर्ष ने पूरे क्षेत्र पर क़ब्ज़ा कर लेने के ज़ायोनी शासन के इरादों को नाकाम कर दिया।

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने अतीत के युद्धों का हवाला देते हुए कहा कि वर्ष 1973 के युद्ध में सीमित स्तर पर ही सही जो सफलताएं मिलीं उनमें संघर्ष की भूमिका को नज़र अंदाज़ नहीं किया जा सकता।

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता का कहना था कि वर्ष 1982 से संघर्ष का दायित्व व्यवहारिक रूप से फ़िलिस्तीन के भीतर मौजूद जनता के कंधों पर आ गया, इसी बीच लेबनान के इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन हिज़्बुल्लाह का उदय हुआ जो फ़िलिस्तीनियों के संघर्ष में मददगार बना।

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि दक्षिणी लेबनान की आज़ादी, गज़्ज़ा की आज़ादी वास्तव में फ़िलिस्तीन को पूरी तरह आज़ाद करवाने के चरणबद्ध संघर्ष के दो महत्वपूर्ण अध्याय समझे जाते हैं। उन्होंने कहा कि 80 के दशक के आरंभ से लेकर बाद के समय तक ज़ायोनी शासन न केवल यह कि नए क्षेत्रों पर क़ब्ज़ा नहीं कर सका बल्कि दक्षिणी लेबनान से उसे पीछे हटना पड़ा और यह पक्रिया गज़्ज़ा से ज़ायोनी शासन के निष्कासन के रूप में आगे बढ़ी।

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई ने कहा कि 33 दिवसीय लेबनान युद्ध में लेबनान की जनता और हिज़्बुल्लाह के जवानों तक सहायता पहुंचाने के सारे रास्ते बंद हो गए थे लेकिन ईश्वर की कृपा से और लेबनान की महान जनता की अपार क्षमताओं की मदद से ज़ायोनी शासन और उसके असली समर्थक अमरीका को शर्मनाक पराजय का मुंह देखना पड़ा और अब वह आसानी से इस इलाक़े पर हमले की हिम्मत नहीं कर पाएंगे।

आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई ने कहा कि गज़्ज़ा के क्षेत्र का प्रतिरोध जो अब प्रतिरोधक मोर्चे का अजेय दुर्ग बन चुका है बार बार होने वाले युद्धों में साबित कर चुका है कि ज़ायोनी शासन के पास एक राष्ट्र की इच्छ शक्ति के सामने टिकने की शक्ति नहीं है।

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि ज़ायोनी शासन के अस्तित्व से पैदा होने वाले ख़तरों की कदापि उपेक्षा नहीं करना चाहिए, इस लिए प्रतिरोधकर्ता मोर्चे को अपना संघर्ष जारी रखने के लिए सभी ज़रूरी संसाधनों से संपन्न किया जाना चाहिए और इस संबंध में क्षेत्र के सभी राष्ट्रों, सरकारों तथा दुनिया भर के स्वतंत्रता प्रेमियों की ज़िम्मेदारी है कि इस साहसी राष्ट्र की सारी ज़रूरतें पूरी करें और इस सिलसिले में पश्चिमी तट के क्षेत्र के प्रतिरोधकर्ता मोर्चे की मूल आवश्यकताओं की ओर से भी निश्चेत नहीं रहना चाहिए जो इस समय अपने कंधे पर इंतेफ़ाज़ा आंदोलन का बोझ उठाए हुए है।

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि फ़िलिस्तीनी प्रतिरोधक संगठनों को भी चाहिए कि अतीत से पाठ लेते हुए इस बिंदु पर ध्यान दें कि वह इस्लामी या अरब देशों के आपसी विवादों में और समुदायों के सांप्रदायिक झगड़ों में न पड़ें।

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई ने कहा कि जो संगठन भी ज़ायोनी शासन के विरुद्ध संघर्ष में डटा रहेगा हम उसके साथ हैं और जो संगठन भी इस रास्ते से हटा वह हमसे दूर हो गया।

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने फ़िलिस्तीनी संगठनों के आपसी मतभेद के बारे में कहा कि संगठनों में विचार की विविधता के कारण मतभेद स्वाभाविक है लेकिन समस्या तब पैदा होती है जब यह मतभेद आपसी टकराव में बदल जाएं।

 

 

 

अंतरराष्ट्रीय कुरान समाचार एजेंसी «mainepublic» से उद्धृत किया है कि अमेरिका में मुसलमान विवादास्पद राजनीतिक बहस के अधीन है लेकिन कार्यालयों में कुछ मुसलमान राजनीतिक प्रतिनिधी और गैर लाभ वाले समूह (Jetpac) मुसलमान सामाजिक और राजनीतिक भागीदारी को मजबूत करने के लिए कोशिश करते हैं।

इस समूह के मिशन के हिस्से ने मुस्लिम उम्मीदवारों को राजनीतिक और सामाजिक मान्यता के क्षेत्र में रोजगार के अवसरों में मदद करती है।

" गैर लाभ वाले समूह (Jetpac) के संस्थापक और "कैम्ब्रिज" नगर परिषद के सदस्य नदीम Muezzinने कहा कि संभावित मुसलमान उम्मीदवार का रजिस्टर करना महत्वपूर्ण मुद्दा है।

उन्हों ने समूह को अमेरिका में राजनीतिक क्षेत्र में प्रवेश के लिए मुसलमानों को प्रोत्साहित किया है और कहा: कि पिछले दो दशकों में अमेरिका के मुसलमान बचाव की मुद्रा में रहते है लेकिन अब समयअपनी मौजदग़ी दर्ज करने का है।

 

एक इस्राईली समाचारपत्र ने लिखा है कि लेबनान के हिज़्बुल्लाह संगठन के पास एेसा ख़तरनाक हथियार है जिनसे इस्राईल के शक्ति के समीकरण को बिगाड़ दिया है।

यदीऊत अहारनूत ने रविवार के अंक में लिखा है कि हिज़्बुल्लाह के पास रूस के "याख़ून्त" मीज़ाइल हैं जो अपने आप में दुनिया के सबसे विकसित मीज़ाइल हैं। ज़ायोनी शासन इससे पहले भी ऐसी स्थिति में हिज़्बुल्लाह के पास मौजूद इन मीज़ाइलों पर अपनी गहरी चिंता व्यक्त कर चुका है। जब वह ख़ुद परमानु बमों से संपन्न शासन है। उसने दावा किया था कि लेबनान के तटों पर मौजूद इस्राईली व अमरीकी समुद्री जहाज़ों और बेड़ों के लिए भारी ख़तरे के कारण, ये मीज़ाइल शक्ति के संतुलन को बिगाड़ रहे हैं।

इस्राईल की चिंता इस वजह से भी बढ़ गई है कि उसके पास इन मी़ज़ाइलों को रोकने या इनका रास्ता बदल देने की टेक्नोलोजी नहीं है। याख़ून्त मीज़ाइल 300 किलो मीटर की दूरी से किसी भी लक्ष्य को 750 मीटर प्रति सेकेंड की रफ़्तार से भेद सकता है। लक्ष्य को भेदते समय इसकी ऊंचाई केवल 10 से 15 मीटर होती है और इसी लिए इसे रडार पर नहीं देखा जा सकता। मुख्य रूप से समुद्री जहाज़ों को निशाना बनाने वाला याख़ून्त मीज़ाइल 200 किलो ग्राम का वाॅर हेड ले जाने में भी सक्षम है। रूस ने यह मीज़ाइल 2014 में नैटो के समुद्री जहाज़ों के संभावित हमले को रोकने के लिए क्रिमिया प्रायद्वीप में तैयार किया था।

 

अंतरराष्ट्रीय कुरान समाचार एजेंसी  ने «alkafeel.net» जानकारी डेटाबेस के अनुसार बताया कि यह संगोष्ठी प्रोफेसरों और शोधकर्ताओं की मौजुदग़ी जैसे नजफ मदरसे के प्रोफेसर "सैयद मोहम्मद अली Alhlv" और पवित्र हरमे अब्बासी के दारुल कुरआन के निदेशक "शेख जिया अल Zubaidi की मौजुदग़ी में आयोजित किया गया।

संगोष्ठी में यूरोप में कुरआन गतिविधियों के विकास और इस्लामी मोहम्मदी संस्कृति जो शांति, सआदत, सभ्य जीवन और मानवीय मूल्यों के लिए आमंत्रित करता है चर्चा की ग़ई।

"सैयद मोहम्मद अली Alhlv" ने संगोष्ठी में लंदन में कुरआन की गतिविधियों और समस्याओं के क्षेत्र में शामिल अन्य विषयों के लिए चिंताओं और सिफारिशों और सुझावों दिए

लंदन में पवित्र हरमे अब्बासी के दारुल कुरआन शाखा ने अब तक कई पाठ्यक्रम कुरआन विज्ञान और व्याख्या आयोजित कर चुका है

 

 

रूस के विदेशमंत्री ने कहा कि अमरीका को चाहिए कि वह दाइश से संघ के लिए हिज़्बुल्लाह को आधिकारिक रूप से स्वीकार करे।

रूस के विदेशमंत्री सर्गेई लावरोफ़ ने एनटीवी चैनल से बात करते हुए कहा कि अमरीका को लेबनान के हिज़बुल्लाह को जिसे ईरान का समर्थन प्राप्त है और दाइश से संघर्ष कर रहा है, आधिकारिक रूप से स्वीकार कर लेना चाहिए।

उनका कहना था कि वर्तमान समय में ईरान और अमरीका के बीच दुश्मनी ओबामा के काल से कम नहीं है। रूस के विदेशमंत्री ने स्वीकार किया कि यदि अमरीका के नये राष्ट्रपति के निकट अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद से संघर्ष को प्राथमिकता प्राप्त है तो उन्हें सीरिया में दाइश से संघर्ष करने वाली एक इकाई के रूप मे हिज़्बुल्लाह को स्वीकार करना चाहिए।

रूस के विदेशमंत्री ने कहा कि यदि वास्तविकताओं पर ध्यान दें तो हमें हिज़्बुल्लाह को दाइश से संघर्ष करने वाले के रूप में स्वीकार करना चाहिए।

 

 

फ़िलिस्तीन के इस्लामी प्रतिरोधी आंदोलन हमास ने ग़ज्ज़ा पट्टी में अपने नए नेता के नाम का एलान कर दिया है।

सोमवार को हमास के अधिकारियों ने बताया कि इस्लामी आंदोलन की सैन्य शाख़ा इज़्ज़ुद्दीन क़स्साम ब्रिगेड के वरिष्ठ कमांडर याहया सिनवर को ग़ज्ज़ा पट्टी में हमास के राजनीतिक कार्यालय का प्रमुख चुना गया है।

सिनवर इस्माईल हनिया का स्थान लेंगे, जो ग़ज्ज़ा में प्रधान मंत्री का पद संभाल चुके हैं।

राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि हनिया, हमास के राजनीतिक ब्यूरो चीफ़ ख़ालिद मशअल का स्थान ले सकते हैं।

50 वर्षीय सिनवर इज्ज़ुद्दीन क़स्साम ब्रिगेड के संस्थापक हैं। इस्राईल ने उन्हें 1988 में गिरफ़्तार करके जेल में डाल दिया था। 2011 में इस्राईली सैनिक गिलाद शालित को आज़ाद करने के बदले इस्राईल ने 1,000 फ़िलिस्तीनी क़ैदियों को रिहा किया था, जिसमें सिनवर भी शामिल थे।

 

 

अंतरराष्ट्रीय कुरान समाचार एजेंसी ने खबर "रसिया अल-यौम" के अनुसार रूस में हलाल उत्पादों की एक बड़ी संख्या ने प्रदर्शनी में भाग लिया है।

यह प्रदर्शनी उपभोक्ताओं के लिए हलाल उत्पादों के क्षेत्र में रूसी कंपनियों के लिए इस बाजार की हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए कोशिश कर रहे हैं और रूसी खाद्य उद्योग का एक अभिन्न अंग के रूप में हलाल उद्योग लगाने के लिए आयोजित किया गया है।

प्रदर्शनी की गतिविधि रूस के Muftis की परिषद द्वारा मुसलमानों के आध्यात्मिक प्रशासन के प्रायोजित शुक्रवार तक आयोजित किया जा रहा है ।

प्रदर्शनी के दौरान विशेषज्ञों और प्रतिभागियों ने घरेलू और विदेशी बाजारों की प्रवृत्ति, मुस्लिम देशों के लिए हलाल उत्पादों की वृद्धि के निर्यात और हलाल उत्पादों के लिए अंतरराष्ट्रीय मानकों की आवश्यकताओं के बारे में जानकारी और विचारों का आदान-प्रदान किया।

 

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने अमरीका के नए राष्ट्रपति के बयानों की ओर संकेत करते हुए कहा है कि अमरीका की इच्छा कभी भी पूरी नहीं होगी और कोई भी शत्रु ईरानी राष्ट्र को बांध नहीं सकता।

आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने मंगलवार को देश की वायु सेना के कमांडरों और जवानों से मुलाक़ात में कहा कि अमरीका के नए राष्ट्रपति कहते हैं कि हमें ओबामा का आभारी होना चाहिए! क्यों? दाइश को अस्तित्व प्रदान करने के लिए, इराक़ व सीरिया में आग लगाने के लिए और वर्ष 2009 में ईरान में हुए उपद्रव का खुल कर समर्थन करने के लिए उनका आभारी होना चाहिए? वही थे जिन्होंने अपने विचार में ईरानी राष्ट्र को तोड़ देने के वाले प्रतिबंंध लगाए। वरिष्ठ नेता ने कहा कि ट्रम्प कहते हैं मुझसे डरो! बिल्कुल नहीं, ईरानी जनता 11 फ़रवरी के जुलूसों में उनकी इस बात का जवाब देगी और दिखा देगी कि ईरानी राष्ट्र धमकियों के मुक़ाबले में किस प्रकार का रुख़ अपनाता है। उन्होंने कहा कि अमरीका में सत्ता हाथ में लेने वाले इन महोदय के हम आभारी हैं! आभार इस लिए कि इन्होंने हमारा काम सरल कर दिया और अमरीका का अस्ली चेहरा दिखा दिया। हम पिछले तीन दशक से जो बात कह रहे थे कि अमरीकी सरकार में राजनैतिक भ्रष्टाचार, आर्थिक भ्रष्टाचार, नैतिक भ्रष्टाचार और सामाजिक भ्रष्टाचार व्याप्त है, इन महोदय ने चुनाव अभियान के दौरान और उसके बाद इस तथ्य को पूरी तरह से खुल कर दिखा दिया। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने कहा किइस समय भी जो काम ये कर रहे हैं और पांच साल के बच्चे को हथकड़ी लगा रहे हैं, उससे पता चलता है कि अमरीकी मानवाधिकार की सच्चाई क्या है?

 

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने देश की वायु सेना के कमांडरों और जवानों से मुलाक़ात में, जो आठ फ़रवरी वर्ष 1979 को ईरान की वायु सेना के जवानों द्वारा स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी से की गई बैअत (आज्ञापालन के वचन) की वर्षगांठ के अवसर पर हुई, उक्त बैअत को इस्लामी क्रांति के इतिहास में एक निर्णायक घटना बताया और कहा कि अत्याचारी शाही शासन के काल में वायु सेना, अमरीका की पिट्ठू राजनैतिक व्यवस्था से सबसे निकट विभागों में से एक थी और उसी ने उस व्यवस्था को सबसे बड़ा आघात पहुंचाया। आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने बल देकर कहा कि शैतानों पर भरोसा करना और मूल इस्लामी व्यवस्था के विरोधियों से आशा लगाना बहुत बड़ी  भूल है।

 

वाशिंग्टन पोस्ट ने ईरान के विरुद्ध दबाव बढ़ाने के लिए ट्रंप सरकार की नीतियों की ओर संकेत करते हुए कहा कि ईरान पिछले चालीस वर्षों के दौरान वर्तमान समय में सबसे शक्तिशाली देश है।

वाशिंग्टन पोस्ट ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि अमरीका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप, ईरान पर दबाव डालना चाहते हें किन्तु अब ईरान पहले से अधिक शक्तिशाली है।

रिपोर्ट में बताया गया है कि ट्रंप ने ईरान के विरुद्ध कठोर नीति के लिए अरब जगत के दृष्टिकोणों को आकर्षित कर लिया है किन्तु यह रिस्क भी मौजूद है कि ईरान पिछले चालीस वर्ष के दौरान इस समय सबसे शक्तिशाली है।

डोनल्ड ट्रंप ने पिछले समाप्त सचेत करते हुए कहा था कि ईरान पर उनकी विशेष दृष्टि है। समाचार पत्र लिखता है कि ट्रंप के इस बयान से पता चलता है कि वह ओबामा की नीतियों से दूर होना चाहते हैं और परमाणु समझौते के बाद ईरान और अमरीका के मध्य तनाव समाप्त काम करने की जो चर्चा हो रही है, उसे प्रभावित कर रहे हैं।

वाशिंग्टन पोस्ट ने लिखा कि क्षेत्र के बहुत से लोग यह भविष्यवाणी कर रहे हैं कि ईरान और अमरीका के मध्य स्थिति जार्ज बुश के काल में पाए जाने वाले तनाव जैसी हो गयी है जब तेहरान और वाशिंग्टन की कार्यवाहियां इराक़ में युद्ध छिड़ने का कारण बनीं, मध्यपूर्व क्षेत्र में शिया और सुन्नी विवाद गहरा गया, अमरीका का मुख्य घटक इस्राईल, ईरान के मुख्य घटक हिज़्बुल्लाह के साथ कठिन युद्ध में कूद पड़ा।

इस रिपोर्ट में लिखा गया कि वर्तमान समय में अमरीका को एक शक्तिशाली ईरान का सामना है, उस देश से सामना है जिसने अरब जगत में पिछले छह वर्ष के दंगों और अशांति से लाभ उठाया और इसी के साथ निरंतर अपनी सैन्य क्षमताओं में वृद्धि करता रहा है।

नई अमरीकी सरकार में सुरक्षा केन्द्र के टीकाकार निकोलस हेरास इस संबंध में कहते हैं कि ईरान से मुक़ाबला करने या तेहरान पर दबाव डालने की प्रक्रिया से संभव है कि स्वयं को एक व्यापक और विस्तृत विवाद में उलझा लें जो विश्व की अर्थव्यवस्था के लिए बहुत ख़तरनाक होगी और अमरीका के घटक या अमरीका का भीतरी जनमत जिसको सहन करने की क्षमता नहीं रखता।  

 

अबनाः हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा हज़रत इमाम अली अ. और हज़रत ज़हरा स. की बेटी हैं जो सन 5 या 6 हिजरी को मदीना में पैदा हुईं। आप इमाम हुसैन अ. के साथ कर्बला में मौजूद थीं और 10 मुहर्रम वर्ष 61 हिजरी को जंग ख़त्म हो जाने के बाद यज़ीद की फ़ौज के हाथों बंदी बंदी बनाई गईं और उन्हें कूफ़ा और शाम ले जाया गया। उन्होंने कैद के दौरान, दूसरे बंदियों की सुरक्षा और समर्थन के साथ साथ, अपने भाषणों के माध्यम से बेखबर लोगों को सच्चाई से अवगत कराती रहीं।
हज़रत ज़ैनब अ. ने बचपन के दिनों में अपने बाबा हज़रत अली अ. से पूछा: बाबा जान, क्या आप हमें प्यार करते हैं?
अमीरूल मोमेनीन हज़रत अली अ. ने फ़रमाया: मैं तुमसे प्यार क्यों न करूँ, तुम तो मेरे दिल का टुकड़ा हो।
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम से आपका ख़ास लगाव।
हज़रत ज़ैनब (स) बचपने से ही इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम से बहुत प्यार करती थीं। जब कभी इमाम हुसैन (अ) आपकी आँखों से ओझल हो जाते तो बेचैन हो जाती थीं और जब आप भाई को देखतीं तो ख़ुश हो जाती थीं।
अगर झूले में रो पड़तीं तो भाई हुसैन (अ) के दर्शन करके या आपकी आवाज़ सुनकर शांत हो जाती थीं। दूसरे शब्दों में इमाम हुसैन (अ) का दर्शन या आपकी आवाज़ ज़ैनब (स) के लिए आराम और सुकून का कारण था।
इसी अजीब प्यार के मद्देनजर एक दिन हज़रत ज़हरा (स) ने यह बात रसूले अकरम (स) को बताई तो आपने स. फरमाया: "ऐ मेरी बेटी फ़ातिमा यह बच्ची मेरे हुसैन (अ) के साथ करबला जाएगी और भाई की मुसीबतों, दुखों और संकटों में उसकी भागीदार होगी।
आशूर के दिन आप अपने दो कम उम्र लड़कों औन और मोहम्मद को लेकर इमाम हुसैन (अ) के पास आई और कहा मेरी यह भेंट स्वीकार करें अगर ऐसा न होता कि जेहाद महिलाओं के लिए जाएज़ नहीं है, तो मैं अपनी जान आप पर क़ुरबान कर देती।