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ईरानी संसद सभापति: अमरीका को उसके निर्णय का जवाब दिया जाएगा।
ईरान के संसद सभापति डाक्टर अली लारीजानी ने ईरान विरोधी दस वर्षीय प्रतिबंधों की समय सीमा बढ़ाने के क़ानून के बारे में सेनेट के निर्णय को यातनादायक कार्यवाही बताया है।
संसद सभापति ने मंगलवार की शाम एक पत्रकार सम्मेलन में अमरीका की ओर से जेसीपीओए के उल्लंघन और ईरान विरोधी प्रतिबंधों के जारी रहने के बारे में कहा कि देश की सर्वोच्च राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद और जेसीपीओए के क्रियान्वयन पर नज़र रखने वाली परिषद, अमरीका की इन कार्यवाहियों के मुक़ाबले के बारे में फ़ैसला करेगी।
डाक्टर अली लारीजानी ने कहा कि जेसीपीओए के दस्तावेज़ के 70वें अनुच्छेद में आया है कि सरकार को अपने प्रतिरक्षा आधारों को मज़बूत करना चाहिए और मीज़ाइल के क्षेत्र में भी ईरान को अपनी मीज़ाइल क्षमताओं को बढ़ाना चाहिए।
संसद सभापति ने कहा कि परमाणु समझौता, ईरान और अमरीका के मध्य हुआ कोई समझौता नहीं है बल्कि यह एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है क्योंकि यह संयुक्त राष्ट्र संघ में पास हुआ है और इसी के आधार पर एक प्रस्ताव भी पारित किया गया है और यह कोई बात नहीं हुई कि एक देश इसके बारे में फ़ैसला करे और इसका उल्लंघन करे।
संसद सभापति ने सीरिया संकट के बारे में कहा कि सीरिया संकट के समाधान का बेहतरीन मार्ग, राजनैतिक वार्ता है क्योंकि सैन्य समाधान का कोई परिणाम सामने नहीं आएगा। संसद सभापति ने इसी प्रकार इराक़ के बारे में कहा कि ईरान ने सदैव इराक़ की अखंडता और संप्रभुता का सम्मान किया है।
संसद सभापति ने कहा कि क्षेत्र की विषम परिस्थिति से सबसे अधिक लाभ ज़ायोनी शासन उठा रहा है क्योंकि इन परिस्थितियों में फ़िलिस्तीनी जनता के उमंगों के लिए प्रयास करना कठिन हो गया है। उन्होंने कहा कि समस्त देशों को चाहिए कि इस संबंध में अपने सहयोग बढ़ाएं।
अमेरिका में मुसलमानों को हिंसात्मक हमलों का सामना।
आधिकारिक रूप से डोनल्ड ट्रंप के सत्ता की बागडोर संभालने से पहले इस्लामी केन्द्रों और मुसलमानों पर हमले ट्रंप के राष्ट्रपति चुने जाने के कुछ परिणाम हैं जो अभी से स्पष्ट हो गये हैं।
अमेरिका में हालिया सप्ताहों विशेषकर इस देश में राष्ट्रपति चुनावों के परिणामों की घोषणा के बाद इस देश की अधिकांश मुसलमान महिलाओं को हिंसात्मक हमलों का सामना रहा है।
इस संबंध में अमेरिकी टीवी चैनल सीएनएन ने जो रिपोर्ट तैयार की है उसमें आया है कि अमेरिका के नव निर्वाचित राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने चुनावी प्रचार के दौरान जो अतिवादी भाषण दिये थे वे इस देश में विशेषकर मुसलमानों के विरुद्ध घृणा और अपराध में वृद्धि का कारण बने हैं।
आधिकारिक रूप से डोनल्ड ट्रंप के सत्ता की बागडोर संभालने से पहले इस्लामी केन्द्रों और मुसलमानों पर हमले ट्रंप के राष्ट्रपति चुने जाने के कुछ परिणाम हैं जो अभी से स्पष्ट हो गये हैं।
इस मध्य हिजाब करने के कारण सबसे अधिक मुसलमान महिलाओं को सामाजिक, मानसिक और दूसरे प्रकार के हमलों का सामना है।
अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के परिणामों की घोषणा से लेकर अब तक 700 से अधिक बार अमेरिकी मुसलमानों के विरुद्ध हमले पंजीकृत हो चुके हैं। इन हमलों से मुकाबले के लिए बहुत सी मुसलमान महिलाएं हमलों से बचाव की प्रशिक्षण क्लासों में जाने पर बाध्य हुई हैं।
डोनल्ड ट्रंप ने इस्लाम विरोधी अपने एक भाषण में कहा था कि अमेरिका में मुसलमानों के प्रवेश को रोका जाना चाहिये।
अमेरिका का राष्ट्रपति चुने जाने के बाद भी डोनल्ड ट्रंप का यही दृष्टिकोण है। वास्तव में डोनल्ड ट्रंप के इस्लाम और मुसलमान विरोधी वक्तव्यों ने अमेरिका में दक्षिणपंथियों और जातीवादियों को आवश्यक बहाना दे दिया है ताकि वे इस्लामी केन्द्रों और मुसलमानों पर अपने हमलों को जारी रख सकें।
अभी कुछ दिन पूर्व अमेरिका और इस्लामी संबंधों की परिषद ने एक रिपोर्ट में चेतावनी दी कि अमेरिका में मुसलमानों के प्रति जो नकारात्मक आभास है वह इस देश के राजनीतिक वातावरण से प्रभावित है और इसी संबंध में अमेरिका में मुसलमानों के प्रवेश को रोके जाने पर आधारित उसने डोनल्ड ट्रंप के वक्तव्य की ओर संकेत किया।
मस्जिदों और उपासना स्थलों पर हमले व आग लगाये जाने, इसी प्रकार मुसलमानों के साथ भेदभाव और हमलों को अमेरिकी समाज में मौजूद इस्लामोफोबिया के परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है।
ईरान ने अपनी प्रतिबद्धताएं पूरी कीं, आईएईए
अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी आईएईए ने पुष्टि की है कि ईरान ने परमाणु समझौते के अंतर्गत अपनी प्रतिबद्धताएं पूरी करते हुए 11 टन भारी पानी देश से बाहर भेज दिया है।
कूटनयिक सूत्रों ने आईएईए के दस्तावेज़ों के आधार पर रिपोर्ट दी है कि आईएईए ने छह दिसम्बर को यह पुष्टि कर दी कि ईरान 11 टन भारी पानी बाहर भेज चुका है जिसके बाद ईरान के पास भारी पानी का भंडार 130 टन से कम हो गया है।
ईरान ने छह विश्व शक्तियों के साथ हुए परमाणु समझौते के तहत अपना परमाणु कार्यक्रम सीमित किया है लेकिन दूसरी अमरीका ने इस समझौते के तहत अपनी प्रतिबद्धताएं नहीं पूरी की हैं बल्कि परमाणु समझौते का बार बार उल्लंघन किया है। इस संदर्भ में ताज़ा घटना ईरान के विरुद्ध प्रतिबंधों के क़ानून की अवधि बढ़ाने संबंधी बिल का अमरीकी कांग्रेस से पारित होना है।
इस्लामी गणतंत्र ईरान ने घोषणा कर दी है कि वह अमरीका द्वारा परमाणु समझौते के उल्लंघन पर निश्चित रूप से जवाबी कार्यवाही करेगा।
रोहिंगिया मुसलमानों के जनसंहार की जांच के लिए कूफ़ी अन्नान की मियांमार यात्रा
संयुक्त राष्ट्र संघ के पूर्व महासचिव कूफ़ी अन्नान म्यांमार की सेना के हाथों रोहिंगिया मुसलमानों के जनसंहार के बारे में जांच के लिए राख़ीन प्रांत पहुंचे हैं।
प्रेस टीवी के अनुसार अन्नान एक टीम के साथ शुक्रवार को एेसी स्थिति में राख़ीन प्रांत पहुंचे कि जब म्यांमार के सरकारी आंकड़ों के अनुसार हालिया वर्षों में सेना के हाथों सैकड़ों रोहिंगिया मुसलमान मारे गए हैं। कूफ़ी अन्नान के म्यांमार पहुंचने पर इस देश के कुछ सरकार विरोधियों ने सरकार के विरुद्ध नारे लगाए और विदेश मंत्री तथा सरकार की वरिष्ठ सलाहकार आंग सांग सूची के ख़िलाफ़ नारे लगाए। सूची विदित रूप से प्रजातांत्रिक सिद्धांतों पर कटिबद्धता की बात करती हैं लेकिन उन्होंने रोहिंगिया मुसलमानों की स्थिति की अनदेखी करके देश में नस्ली भेदभाव को औपचारिकता प्रदान कर दी है।
आंग सान सूची ने अगस्त में अन्नान से अपील की थी कि वे एक टीम के साथ रोहिंगिया मुसलमानों के जनसंहार के कारणों की जांच करें। हालिया वर्षों में रोहिंगिया मुसलमानों के विरुद्ध चरमपंथी बौद्धों की हिंसक कार्यवाहियों में सैकड़ों लोग मारे जा चुके हैं जबकि तीस हज़ार से अधिक रोहिंगिया मुसलमान बेघर हो गए हैं।रोहिंगिया मुसलमान म्यांमार में नागरिक अधिकारों से वंचित हैं और एक लाख बीस हज़ार से अधिक रोहिंगिया मुसलमान शरणार्थी शिविरों में अत्यंत दयनीय स्थिति में जीवन बिता रहे हैं।
पैग़म्बरे इस्लाम (स) का स्वर्गवास और इमाम हसन की शहादत
पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा अपने स्वर्गवास से पहले इस्लाम को परिपूर्ण धर्म के रूप में मानवता के सामने पेश कर चुके थे।
उन्होंने कहा था कि मुझको नैतिकता को उच्च स्थान तक पहुंचाने के लिए भेजा गया है। जिस समय पैग़म्बरे इस्लाम इस नश्वर संसार में आए उस समय अरब जगत में अज्ञानता का अंधेरा छाया हुआ था। ईश्वर के बारे में उस समय के अरब लोगों के विचार अंधविश्वासों पर आधारित थे। वे लोग ज्ञान से बहुत दूर थे। उस काल में महिलाओं को कोई विशेष महत्व प्राप्त नहीं था।
पैग़म्बरे इस्लाम ने अपने जीवन में अथक प्रयास करते हुए अज्ञानता से संघर्ष किया और उस काल में व्याप्त अंधविश्वासों और कुरीतियों को दूर करने के लिए अन्तिम समय तक प्रयास किये। अपने पहले संदेश में पैग़म्बरे इस्लाम ने ज्ञान के महत्व को समझाते हुए ज्ञान अर्जित करने पर बल दिया। उन्होंने लोगों को एकेश्वर की उपासना का निमंत्रण दिया।
वास्तव में ईश्वर द्वारा उसके दूतों को भेजने का मूल उद्देश्य यह था कि मनुष्यों का ध्यान इस ओर आकृष्ट कराया जाए कि महान ईश्वर के अतिरिक्त किसी उन्य की उपासना नहीं करनी चाहिये। पैग़म्बरे इस्लाम ने जिस एकेश्वरवाद की आधारशिला रखी उसमें प्रेम और ईमान जैसे रत्न हैं। पैग़म्बर द्वारा बताया गया ईमान एसा ईमान है जो मनुष्य के दिल में होता है और वह सही दिशा में मनुष्य का मार्गदर्शन करता है। ईश्वर के अन्तिम दूत पैग़म्बरे इस्लाम, दया व कृपा की प्रतिमूर्ति थे। महान ईश्वर ने उन्हें पूरे संसार के लिए दया व कृपा का आदर्श बताया है। जिन लोगों ने वर्षों, पैग़म्बरे इस्लाम (स) से शत्रुता की थी पैग़म्बरे इस्लाम ने उन्हें माफ कर दिया। इस प्रकार पैग़म्बरे इस्लाम ने हर प्रकार की हिंसा, अन्याय, भेदभाव और पक्षपात का विरोध किया और सबके साथ समान व्यवहार किया। पैग़म्बरे इस्लाम की कृपा और उनकी दया केवल उनके परिवार वालों या मानने वालों तक ही सीमित नहीं थी बल्कि इससे अन्य धर्मों के मानने वाले भी लाभान्वित होते थे। इस्लाम धर्म को भलिभांति पहचानने का एक मार्ग, पैग़म्बरे इस्लाम के जीवन का अध्ययन है। पवित्र क़ुरआन में पैग़म्बरे इस्लाम (स) को मानवता के लिए आदर्श के रूप में बताया गया है।
पवित्र क़ुरआन में अंतिम ईश्वरीय दूत की विभिन्न विशेषताओं का उल्लेख किया गया है और विभिन्न अवसरों पर उनके बारे में बताया गया है। ईश्वरीय संदेश में पैग़म्बरे इस्लाम के आज्ञापालन को ईश्वर के आज्ञापालन और उनकी अवज्ञा को ईश्वर की अवज्ञा की संज्ञा दी गई है। पवित्र क़ुरआन अनेक आयतों में पैग़म्बरे इस्लाम के व्यक्तित्व व शिष्टाचार की प्रशंसा करता है।
इतिहास इस बात का साक्षी है कि इस्लाम इतने कम समय में जो विश्व के कोने-कोने में फैल गया उसका मुख्य कारण पैग़म्बरे इस्लाम का व्यक्तित्व था। इस प्रकार कहा जा सकता है कि मुसलमान, पैग़म्बरे इस्लाम के जीवन का अनुसरण करके लोक-परलोक में कल्याण प्राप्त कर सकता है। पैग़म्बरे इस्लाम के दृष्टिगत समाज वह है जिसके सभी सदस्य एकेश्वरवाद के आधार पर एक-दूसरे से भाईचारा रखें। इस आदर्श समाज में भाईचारे की भावना प्रवाहित होगी और इसके सारे सदस्य एक दूसरे से एसे मिलेंगे जिससे एकता को बल मिले। पैग़म्बरे इस्लाम का कथन है कि प्रेम, मित्रता और दया में ईमान वाले एक शरीर के अंगों की भांति हैं। जब कोई अंग किसी समस्या के कारण पीड़ा में होता है तो यह पीड़ा अन्य अंगों को निश्चित रूप से प्रभावित करती है। एकता का पाठ सिखाने वाले पैग़म्बरे इस्लाम का एक क़दम यह है जो उन्होंने मक्के पर विजय प्राप्त करने के बाद उठाया। आपने कहा था कि हर मुसलमान, मुसलमान का भाई है। उसे अपने भाई पर अत्याचार नहीं करना चाहिए। अपने भाई को अपमानित नहीं करना चाहिए और उसके साथ कभी भी विश्वासघात नहीं करना चाहिए।
पैग़म्बरे इस्लाम ने एकता व एकजुटता को प्रबल बनाने के लिए नस्लभेद और जातिवाद को पूर्ण रूप से नकार दिया। इस्लाम ने जातिवाद और नस्लभेद से संघर्ष किया और कहा है कि केवल तक़वा या ईश्वरीय भय ही श्रेष्ठता का एकमात्र मापदंड है। उन्होंने नस्लभेद को समाप्त और एकता को मज़बूत करने के लिए बेलाले हब्शी और सलमान फ़ारसी को सम्मान दिया ताकि जातिवाद और नस्लभेद का अंत हो तथा ईश्वरीय व धार्मिक मूल्यों के पालन को सामाजिक महत्व प्राप्त हो।
पैग़म्बरे इस्लाम के बड़े नवासे हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम का भी शहादत दिवस है। पैग़म्बरे इस्लाम के स्वर्गवास के 40 वर्षों के बाद सन 50 हिजरी क़मरी को आज ही के दिन इमाम हसन अलैहिस्सलाम शहीद हुए थे।
इमाम हसन अलैहिस्सलाम, हज़रत अली और हज़रत फ़ातेमा के बड़े बेटे थे। अपने जीवन के आठ वर्ष उन्होंने अपने नाना पैग़म्बरे इस्लाम के साथ व्यतीत किये थे। पैग़म्बरे इस्लाम से उन्होंने बहुत कुछ सीखा था। कभी-कभी ऐसा भी होता था कि जिस समय पैग़म्बरे इस्लाम पर वह्य नाज़िल होती थी उस समय इमाम हुसैन भी वहां पर हुआ करते थे। इन आयतों को वे अपनी माता हज़रत फ़ातेमा को सुनाया करते थे। इमाम हसन के बारे में कहा जाता है कि उनका व्यक्तित्व उनकी चाल-चलन सबकुछ पैग़म्बरे इस्लाम से मिलता-जुलता था। वे लोगों में बहुत अधिक दान-दक्षिणा किया करते थे जिसके कारण उन्हें करीमे अहलैबैत भी कहा जाता है। करीम का अर्थ होता है अधिक दान-दक्षिणा करने वाला।
अपने पिता इमाम अली की शहादत के बाद इमाम हसन ने ईश्वर की ओर से लोगों के मार्गदर्शन का दायित्व संभाला था। जिस समय इमाम हसन ने यह ईश्वरीय दायित्व संभाला उस समय इस्लामी समाज बहुत ही संवेदनशील चरण से गुज़र रहा था। अपने एक संबोधन में इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने पैग़म्बरे इस्लाम को, वास्तविकता को स्पष्ट करने वाले द्वीप की संज्ञा दी थी। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा था कि वे पैग़म्बरे इस्लाम के मार्ग पर चलेंगे।
इमाम हसन के ईश्वरीय पद पर आसीन होने से माविया बहुत क्रोधित हुआ। सीरिया पर शासन करने वाले माविया ने इमाम हसन से मुक़ाबला करने की योजना बनाई। वह विभिन्न बहानों से इमाम हसन को क्षति पहुंचाने के प्रयास में लगा रहता था। इमाम हसन ने माविया को संबोधित करते हुए कहा था कि वह अपनी ग़लत हरकतें छोड़ दे। इस्लामी जगत का विशाल भाग इमाम हसन के शासन के अधीन था किन्तु इस दौरान मोआविया की ओर से निरंतर विध्वंसक कृत्य किए जा रहे थे जो सीरिया का तत्कालीन शासक था। माविया की ओर से अवज्ञा और विध्वंसक कृत्य के कारण युद्ध छिड़ने की नौबत आ गई थी और इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने भी युद्ध के लिए सेना तैयार कर ली थी किन्तु इस्लामी समाज की उस समय की स्थिति के दृष्टिगत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने युद्ध करने में संकोच से काम लिया। इसी समय माविया ने इमाम हसन अलैहिस्सलाम को शांति संधि का प्रस्ताव दिया और इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने भविष्य को देखते हुए उस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया।
शांति का प्रस्ताव स्वीकार करने के बाद इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने एक भाषण में कहा था कि इस समय युद्ध, मुसलमानों के हित में नहीं है। इसके बाद उन्होंने सूरए अंबिया की आयत संख्या 111 पढ़ी जिसके अनुसार शांति समझौता, लोगों की परीक्षा और उनके हित में है। इमाम हसन अलैहिस्सलाम इस बात को भलिभांति समझ चुके थे कि उद्देश्य की प्राप्ति, सैन्य मार्ग से संभव नहीं है। इमाम हसन का उद्देश्य शुद्ध इस्लाम की रक्षा करना और उसे कुरीतियों से सुरक्षित करना था। ऐसे में इमाम के सामने माविया से संधि करने के सिवा कोई अन्य मार्ग नहीं था। यही कारण था कि वे सत्ता से हट गए ताकि इस्लामी जगत को और गंभीर ख़तरों से बचाया जाए। इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने अपने इस क़दम से यह दर्शा दिया कि वे सत्तालोलुप नहीं हैं क्योंकि ये सब उच्च उद्देश्य तक पहुंचने के साधन मात्र हैं।
पैग़म्बरे इस्लाम की शिक्षाओं को जीवित रखना और धर्म की रक्षा करना इमामों का मुख्य उद्देश्य रहा है। शासन का गठन करना, असत्य के ख़िलाफ़ उठ खड़े होना, शांति संधि करना और मौन इन सबके पीछे इमाम का उद्देश्य इस्लाम की रक्षा तथा पैग़म्बरे इस्लाम के आचरण को जीवित करना था। जब परिस्थिति ऐसी हुईं कि असत्य के ख़िलाफ़ उठ खड़े होना ज़रूरी हो गया तो वे उठ खड़े हुए और फिर उन्होंने मौत से टक्कर ली। यदि परिस्थिति ऐसी होतीं कि शांति संधि से इस्लाम की रक्षा हो सकती थी तो वे संधि करते थे। इमाम हसन अलैहिस्सलाम के काल में इस्लामी समाज की स्थिति इतनी संवेदनशील हो गयी थी कि माविया से जंग करने के परिणाम में इस्लाम के मिट जाने का ख़तरा मौजूद था।
इमाम हसन की गतिविधियों से माविया बहुत चिंतित था। उसने इनको रुकवाने के लिए बहुत प्रयास किये किंतु सफल नहीं हो सका। अंततः उसने इमाम हसन अलैहिस्सलाम की हत्या करने की योजना बनाई। इस प्रकार माविया ने एक षडयंत्र के अन्तर्गत सन 50 हिजरी क़मरी को इमाम को ज़हर दिलवाया जिसके कारण आज ही के दिन वे शहीद हो गए।
दोबारा प्रतिबंध, समझौते का उल्लंघन है, वरिष्ठ नेता
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने अमरीकी कांग्रेस को चेतावनी देते हुए कहा है कि एेसे प्रतिबंधों को दोबारा लागू करना जिन का समय समाप्त हो चुका हो, प्रतिबंध लगाना और वचनों का उल्लंघन है।
वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली खामेनई ने रविवार को इस्लामी गणतंत्र ईरान की नौसेना दिवस के अवसार पर नौसेना के कमांडरों से मुलाकात की और ईरान के खिलाफ अमरीकी कांग्रेस की ओर से प्रतिबंधों की समय सीमा बढ़ाए जाने और इस दावे का उल्लेख करते हुए कि यह प्रतिबंध लगाना नहीं बल्कि पहले से लगे प्रतिबंध की सीमा बढ़ाना है, कहा कि नया प्रतिबंध लगाना या किसी प्रतिबंध की समय सीमा समाप्त होने के बाद उसे बढ़ाना एक ही बात है और समय सीमा बढ़ाना भी प्रतिबंध लगाना तथा दूसरे पक्ष की ओर से की गयी प्रतिबद्धता का उल्लंघन है।
वरिष्ठ नेता ने इसी प्रकार ईरान की नौसेना की विभिन्न क्षेत्रों में तरक्की की सराहना की और कहा कि सभी योजनाओं और कार्यक्रमों को पूरा करना ज़रूरी है।
वरिष्ठ नेता ने कुछ देशों के विकास में जहाज़रानी के महत्व का उल्लेख करते हुए कहा कि ईरान के पास बड़ी समुद्री सीमा और जहाज़रानी का पुराना अनुभव है इस आधार पर नौसेना की शक्ति और क्षमता इस्लामी व्यवस्था की शान और ईरान के इतिहास के अनुसार होना चाहिए।
वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई ने इसी प्रकार आजा़द समुद्र में ईरानी नौसेना की शक्तिशाली उपस्थिति को ईरान की शक्ति में वृद्धि का कारण बताया और कहा कि अतंरराष्ट्रीय समुद्र में ईरानी नौसेना की उपस्थिति बढ़ायी जानी चाहिए।
वरिष्ठ नेता के भाषण से पहले ईरानी नौसेनाध्यक्ष एडमिरल हबीबुल्लाह सैयारी ने आज़ाद समुद्र में ईरानी नौसेना की शक्तिशाली उपस्थिति पर एक रिपोर्ट पेश की।
ईरान में हर साल 27 नवम्बर को नौसेना दिवस मनाया जाता है।
स्लोवाकिया में इस्लाम के लिए कोई स्थान नहीं,
पश्चिमी देशों में फैलाई जा रही इस्लाम विरोधी लहर के बीच स्लोवाकिया ने एक क़ानून पास किया है जो इस्लाम को सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त धर्म का दर्जा देने से रोकता है।
यह प्रस्ताव दक्षिणपंथी स्लोवाक नेशनल पार्टी की ओर से संसद में पेश किया गया था। इसमें कहा गया है कि किसी भी धर्म को औपचारिक रूप से उस समय मान्यता प्राप्त हो सकती है जब उसके मानने वालों की संख्या कम से कम 50 हज़ार हो। पार्टी के नेता आंदरेज दान्को ने कहा कि हमें भविष्य में किसी भी मस्जिद के निर्माण को रोकने के लिए हर संभव क़दम उठाना चाहिए।
स्लोवाकिया के प्रधानमंत्री राबर्ट फ़ीको कह चुके हैं कि इस देश में इस्लाम के लिए कोई स्थान नहीं है।
सैयद हसन नसरुल्लाह हम से अधिक इस्राईल को पहचानते हैंः यहूदी धर्मगुरू
एक इस्राईली धर्मगुरू ने ज़ायोनी टेलीवीजन चैनल से बात करते हुए ज़ायोनी शासन की कमज़ोरी और बाहरी दिखावे पर आधारित सैयद हसन नसरुल्लाह के बयान की पुष्टि की है।
ज़ायोनी शासन के एक वरिष्ठ धर्मगुरू ने ज़ायोनी शासन के टेलीवीजन चैनल-10 से बात करते हुए लेबनान के इस्लामी प्रतिरोध संगठन हिज़्बुल्लाह के महासचिव की इस मिसाल की ओर संकेत करते हुए कि इस्राईल मकड़ी के जाल से भी कमज़ोर है, कहा कि मैं समझता हूं कि सैयद हसन नसरुल्लाह हम से बेहतर तरीक़े से हमारे शासन को पहचानते हैं।
ज़ायोनी शासन के इस धर्म गुरू का कहना है कि जब सैयद हसन नसरुल्लाह ने इस्राईल को मकड़ी के जाले से कमज़ोर बताया था तो हमने उस समय उनके बयान को इस्राईल के विरुद्ध मनोवैज्ञानिक युद्ध समझा था कि यह बातें हिज़्बुल्लाह के प्रतिरोधकर्ताओं के मनोबल को बढ़ाने के लिए कही गयी है किन्तु मैं यह समझता हूं कि सैयद हसन नसरुल्लाह, हम से बेहतर इस्राईल को समझते हैं।
इस यहूदी धर्मगुरू ने हालिया दिनों में हैफ़ा में भीषण आग और उस पर नियंत्रण पाने में इस्राईली शासन की अक्षमता की ओर संकेत करते हुए कहा कि आग लगे हुए कई दिन हो गये किन्तु हमारी पराजित सरकार उस पर नियंत्रण पाने में सफल नहीं हो सकी। अब मुझे विश्वास नहीं है कि क्षेत्र में युद्ध आरंभ होने की स्थिति में इस्राईल कम से कम अपनी जनता की रक्षा में सफल नहीं हो सकेगा।
इस इस्राईली धर्म गुरू ने कहा कि दुनिया ने 2000 और 2006 में हमारा मज़ाक़ उड़ाया और नितिन याहू के कारण, दुनिया पहले से अधिक हम पर हंस रही है।
जॉर्डन में मस्जिद अबूदर्वेश
जॉर्डन की राजधानी अम्मान में मस्जिद अबूदर्वेश, इस शहर में पर्यटकों के लिऐ एक आकर्षण से है।
इस मस्जिद की वास्तुशिल्प डिजाइन, 1961 में बनाई गई है जो सीरिया की पारंपरिक वास्तुकला का एक उदाहरण है।
क्वेटा में हिफ़्ज़े कुरान कार्यक्रम का समापन आयोजित किया गया
'इस्लामिक स्टडीज स्कूल के विशेष ख़िज़ां मोसम का हिफ़्ज़े कुरान कार्यक्रम का समापन समारोह,हाफ़िज़ों, विद्वानों, अधिकारियों, गणमान्य व्यक्तियों और क्वेटा में विभिन्न सुन्नियों के क़ुरानी स्कूलों के भावुक छात्रों की उपस्थिति में आयोजित किया गया।
इन कार्यक्रमों का उद्देश्य छात्रों को कुरान याद करने के लिए प्रोत्साहित करना है।
मौलाना अब्दुल हक़ हाशमी, पाकिस्तान बलूचिस्तान के जमाअते इस्लामी के अमीर ने हिफ़्ज़े कुरान समापन समारोह कार्यक्रम में कहा है कि वह दिल जो पवित्र कुरान ख़ज़ाना हैं दुनिया और आख़िरत में सम्मान की बात है और बिना शक के खुशी की राह, कुरान पर अमल करना है।
बलूचिस्तान के जमाअते इस्लामी के अमीर ने सरकारी अधिकारियों व पाकिस्तानी राजनीतिज्ञ पार्टियों की आलोचना करते हुऐ कहाःयह लोग स्वयं देश में क़ुरानी सिस्टम को लागु करने में बड़ी रूकावट हैं और इस्लाम व क़ुरान के निज़ाम पर अमल किऐ बिना देश की स्थित में बदलाव मुम्किन नहीं है।
यह समारोह हाफ़िज़ों को पुरस्कार दान कर के और उनकी रैंकिंग की रक्षा करने के साथ समाप्त हो गया।