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इजरायल के राष्ट्रीय सुरक्षा मंत्री और दक्षिणपंथी नेता इतमार बेन-ग्वेर, जो अपने फिलिस्तीनी विरोधी बयानों के लिए हर दिन सुर्खियों में रहते हैं, अमेरिका की अपनी यात्रा पर वाशिंगटन पहुंचे। सूत्रों के अनुसार, बेन-गोवर ने सोमवार को वाशिंगटन डीसी स्थित अमेरिकी संसद का दौरा किया तथा यूएस कैपिटल में सांसदों से मुलाकात की। 

बेन-ग्वेर की अमेरिका यात्रा के विरोध में राजधानी सहित पूरे देश में प्रदर्शन हो रहे हैं। फिलिस्तीनी समर्थक प्रदर्शनकारियों ने वाशिंगटन डीसी स्थित अमेरिकी कैपिटल में इजरायल के राष्ट्रीय सुरक्षा मंत्री इतामार बेन-गवर्नर का विरोध किया और उनके खिलाफ नारे लगाए। प्रदर्शनकारियों ने नारे लगाए "युद्ध अपराधी!", "तुम्बे शर्म आनी चाहिए!" और "स्वतंत्र फिलिस्तीन।" इससे पहले, गुरुवार को न्यूयॉर्क शहर के मैनहट्टन में एक भाषण कार्यक्रम के दौरान भी बेन-गवर्नर की अमेरिका यात्रा का विरोध किया गया था।

सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे वीडियो में बेन-गॉवर को तीव्र क्रोध की स्थिति में प्रदर्शनकारियों पर चिल्लाते हुए देखा जा सकता है। उन्होंने अपने सुरक्षा गार्डों को धक्का देकर प्रदर्शनकारियों के करीब आने की भी कोशिश की। बाद में वह कांग्रेस के सदस्य के कार्यालय में शामिल हो गये। स्मरण रहे कि पिछले बुधवार को उन्होंने दावा किया था कि अमेरिकी रिपब्लिकन प्रतिनिधियों ने युद्धग्रस्त गाजा पट्टी में खाद्य एवं सहायता केंद्रों पर बमबारी करने के उनके आह्वान का समर्थन किया था।

अमेरिकी मुस्लिम संगठन एक फिलिस्तीनी-अमेरिकी महिला को कथित रूप से परेशान करने के आरोप में बेन-ग्वेर को अमेरिका से निर्वासित करने की मांग की। संगठन ने एक बयान में कहा कि इजरायली मंत्री ने कथित तौर पर अपने सुरक्षा दल के एक सदस्य को केफियेह पहने हुए एक फिलिस्तीनी महिला को परेशान करने का निर्देश दिया था। महिला वाशिंगटन डीसी में यूएस काउंसिल ऑफ मुस्लिम ऑर्गेनाइजेशन (यूएससीएमओ) के 10वें वार्षिक राष्ट्रीय मुस्लिम वकालत दिवस में भाग लेने के लिए कैपिटल हिल का दौरा कर रही थी। यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि अमेरिकी मुसलमान यूएससीएमओ द्वारा आयोजित राष्ट्रीय मुस्लिम वकालत दिवस समारोह में भाग लेने के लिए कैपिटल में बड़ी संख्या में एकत्र हुए, जहां उन्होंने गाजा पट्टी में युद्ध विराम और घेरे हुए क्षेत्र में फिलिस्तीनियों के नरसंहार को समाप्त करने का आह्वान किया।

सीएआईआर के सरकारी मामलों के निदेशक रॉबर्ट एस. मैककॉ ने कहा, "हम इतामार बेन-ग्वेर और उनके सुरक्षा गार्डों द्वारा कैपिटल हिल पर एक फिलिस्तीनी-अमेरिकी महिला को सिर्फ इसलिए धमकाने के प्रयास की कड़ी निंदा करते हैं, क्योंकि उसने फिलिस्तीनी संस्कृति का एक प्राचीन प्रतीक (केफ़ियेह) पहना हुआ था।" उन्होंने कहा कि "बेन गुएरे एक नस्लवादी, युद्ध अपराधी और कायर है, जिसे हेग में होना चाहिए (जहां इजरायल पर अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में मुकदमा चल रहा है), न कि कांग्रेस भवन में घूमने और अमेरिकियों को परेशान करने के लिए स्वतंत्र होना चाहिए।" सीएआईआर के बयान के अनुसार, बेन गुएरे और उनके सुरक्षा गार्डों ने बाद में मैरीलैंड प्रतिनिधिमंडल के छात्रों और सीएआईआर के राष्ट्रीय स्टाफ के सदस्यों से मुलाकात की, जिन्होंने बेन गुएरे को "युद्ध अपराधी" कहा।

मैककॉ ने संगठन की ओर से कांग्रेस के सदस्यों से बेन-ग्वेर से मिलने से इनकार करने का आह्वान किया। संगठन ने संयुक्त राज्य अमेरिका से उनके निष्कासन की भी मांग की। उन्होंने कहा कि यह अत्यंत दुःखद है कि एक युद्ध अपराधी को अमेरिकियों को खुलेआम परेशान करने की अनुमति दी गई, जबकि उसके युद्ध अपराधों का शांतिपूर्ण विरोध कर रहे छात्रों को आव्रजन हिरासत में रखा गया।

बयान के अनुसार, सीएआईआर-वाशिंगटन सामुदायिक कानूनी अधिवक्ता सबरीन ओउडा, जो केफियेह पहने हुए थीं, रेबर्न बिल्डिंग के गलियारे में खड़ी थीं, जब बेन-ग्वेर अपने सहयोगियों और सुरक्षा गार्डों के साथ उनके पास आया और उनका उत्पीड़न किया। ओउदा ने कहा, "मेरे या किसी अन्य व्यक्ति के पास जाकर उन्हें डराने का प्रयास करना, क्योंकि वे फिलिस्तीनी संस्कृति का प्रतीक पहनते हैं, नस्लवादी उत्पीड़न का कार्य है, जो हमारे देश में अस्वीकार्य होना चाहिए।"

 

अलजज़ीरा नेटवर्क ने बुधवार सुबह रिपोर्ट दी कि इस्राइली सरकार द्वारा ग़ाज़ा पट्टी पर पिछले एक दिन में किए गए हमलों में 38 फ़िलिस्तीनी शहीद हो गए।

अलजज़ीरा नेटवर्क ने बुधवार सुबह बताया कि इस्राइली सरकार के ग़ाज़ा पट्टी पर पिछले 24 घंटे के हमलों में 38 फ़िलिस्तीनी शहीद हो गए हैं।

अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं और मंचों की चुप्पी के साये में इस्राइली सरकार के ग़ाज़ा पट्टी पर ज़ालिमाना हमले और फ़िलिस्तीनियों का नरसंहार बीती रात भी जारी रहा।

अलजज़ीरा ने चिकित्सा स्रोतों के हवाले से बताया कि पिछले 24 घंटों के दौरान इस्राइली सेना के हमलों में 38 फ़िलिस्तीनी शहीद हुए।

ग़ाज़ा में अलजज़ीरा के संवाददाता ने बताया कि सियॉनिस्ट कब्ज़ा करने वाली सेना के टैंकों ने ग़ाज़ा शहर के शुजायिया मोहल्ले के पूर्वी हिस्से को निशाना बनाया, और उसी दौरान इलाके में आकाश में रोशनी के गोले भी दागे गए।

अलमयादीन नेटवर्क ने भी जानकारी दी कि इस्राइली सैनिकों ने ग़ाज़ा पट्टी के दक्षिण में स्थित ख़ान यूनुस शहर के पूर्वी हिस्से में बनी सुहैला नाम की बस्ती पर हमला किया।

 

पाकिस्तान के उत्तर पश्चिमी प्रांत खैबर पख्तूनख्वा में एक बम विस्फोट में कम से कम 7 लोगों की मौत हो गई है।

स्थानीय मीडिया के अनुसार, यह धमाका दक्षिण वज़ीरिस्तान के वाना क्षेत्र में स्थित सरकार समर्थक शांति समिति झगड़ा निपटारा परिषद के कार्यालय के बाहर हुआ।

पुलिस के अनुसार, इस धमाके में 15 लोग घायल हुए हैं जिन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया है।

स्थानीय पुलिस प्रमुख उस्मान वज़ीर ने कहा कि बमबारी का निशाना शांति समिति का कार्यालय था और घायलों में कुछ की हालत गंभीर बताई जा रही है।

यह धमाका उस दिन के बाद हुआ है जब पाकिस्तानी सुरक्षा बलों ने उत्तरी वज़ीरिस्तान में एक बड़े अभियान में 54 आतंकवादियों को मार गिराया था।

 

अलजज़ीरा के हवाले से बताया है कि फिलिस्तीन के स्वास्थ्य मंत्रालय ने ग़ाज़ा पट्टी पर इज़राइली सेना के हमलों में अब तक के शहीदों और घायलों का ताज़ा आंकड़ा जारी किया है।

अलजज़ीरा के हवाले से बताया है कि फिलिस्तीन के स्वास्थ्य मंत्रालय ने ग़ाज़ा पट्टी पर इज़राइली सेना के हमलों में अब तक के शहीदों और घायलों का ताज़ा आंकड़ा जारी किया है।

स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, 7 अक्टूबर 2023 से लेकर अब तक ग़ज़ा पट्टी पर इज़राइली सेना के हमलों में 52,365 लोग शहीद हो चुके हैं।

इसके अलावा इस मंत्रालय ने बताया कि हमलों की शुरुआत से लेकर अब तक 1,17,905 लोग घायल हुए हैं।पिछले 24 घंटों में 51 शहीदों के शव अस्पतालों में लाए गए, और 113 लोग घायल हुए।

स्वास्थ्य मंत्रालय ने यह भी बताया कि 18 मार्च 2025 से शुरू हुई नई लहर के दौरान 2,273 लोग शहीद और 5,864 लोग घायल हुए हैं।ग़ज़ा पट्टी में अब भी हज़ारों लोग लापता हैं या मलबे के नीचे दबे हुए हैं।

आयतुल्लाह जवादी आमुली ने कहा, हालाँकि ईरान इन दिनों मुश्किलों में है लेकिन अहलुलबैत अ.स की विलायत, उनके ख़ानदान की अज़मत और मक़ाम, इन तमाम दुखों का इलाज है हज़रत मासूमा (स.अ) का हरम रहमत और फ़ज़ीलत का केंद्र है बुज़ुर्गों ने हमेशा इस बात पर ज़ोर दिया है कि क़ुम में सबसे पहले बीबी हज़रत मासूमा स.अ से तवस्सुल किया जाए।

आयतुल्लाहिल उज़मा जवादी आमुली ने अपने फ़िक़्ह के दर्स-ए-ख़ारिज़ में हज़रत फ़ातिमा मासूमा (स.ल.) की विलादत की मुबारकबाद पेश करते हुए ईरान की मौजूदा हालात की ओर इशारा करते हुए कहा,हालाँकि ईरान इन दिनों मुश्किलों में है, लेकिन अहलुलबैत अ.स की विलायत, उनके घराने की अज़मत और मक़ाम, इन तमाम दुखों का इलाज है।

उन्होंने कहा,हज़रत मासूमा (स.अ) का हरम रहमत और फ़ज़ीलत का मरकज़ है। बुज़ुर्गों ने हमेशा इस बात पर ज़ोर दिया है कि क़ुम में सबसे पहले बीबी हज़रत मासूमा (स.अ) से तवस्सुल किया जाए।

आयतुल्लाह ने आगे कहा,इस ख़ुशी का मक़सद सिर्फ़ दुनियावी नहीं, बल्कि यह एक 'विलायती ख़ुशी' है यह सिर्फ़ एक रस्म नहीं, बल्कि एक रूहानी रिश्ता है जो न सिर्फ़ मरहूमीन के लिए जन्नत का सबब बनता है बल्कि ज़िंदा लोगों को सब्र और अज्र भी अता करता है।

उन्होंने इस्लामी संस्कृति में औरत के मुक़ाम की अहमियत बताते हुए कहा,औरत इस्लाम में एक आम इंसान नहीं है। न सभी औरतें बराबर हैं और न सभी मर्द। हज़रत मासूमा स.अ को देखिए, जिनकी शान में कम से कम तीन इमामों ने ख़ास करामत और सम्मान का इज़हार किया है।

एक इमाम ने उनके लिए ज़ियारतनामा भी तहरीर किया जिसमें उनकी शान यूँ बयान की गई अस्सलामु अलैकी या बिन्त वलीय्यिल्लाह, अस्सलामु अलैकी या उख़्त वलीय्यिल्लाह, अस्सलामु अलैकी या अम्मत वलीय्यिल्लाह" यानि,वलीए ख़ुदा की बेटी पर सलाम, वलीए ख़ुदा की बहन पर सलाम, वलीए ख़ुदा की फूफी पर सलाम।ये सारे रिश्ते उनके ऊँचे मक़ाम की दलील हैं।

आयतुल्लाह ने यह भी कहा कि हज़रत मासूमा (स.अ) का मक़बरा एक रूहानी मरकज़ है, जिसके पास क़ायम हुआ हौज़ा-ए-इल्मिया क़ुम" खुद एक बड़ी नेमत है कई इल्मी बुनियादें, जैसे फ़िक़्ह की तालीम, इसी मुबारक हरम के क़रीब रखी गई हैं।

उन्होंने तौक़ीद की हम सिर्फ़ ज़ाहिरी जश्न नहीं मनाते, बल्कि उनके हरम में अदब, मोहब्बत और तवस्सुल का सिलसिला कायम रखते हैं।

 

अगर देखा जाए तो हर इमाम अ.स. का अलग हरम है किसी का कर्बला किसी का काज़मैन किसी का सामरा किसी का मशहद लेकिन फिर भी इमाम इमाम सादिक़ अ.स. ने अहलेबैत अ.स. के हरम को क़ुम कहा जो हमारा ध्यान अपनी ओर आकर्षित करता है, और फिर इमाम की इस हदीस के बाद ही हज़रत मासूमा स.अ. का दुनिया में आना और और क़ुम में दफ़्न होना और आपकी ज़ियारत का सवाब जन्नत होना इस बात ने हमारे ध्यान को और अधिक अपनी ओर खींच लिया है

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,आपकी आध्यात्मिकता और मानवियत पर सबसे बड़ी दलील यह है कि मासूम इमामों ने हदीसों में आपके दर्जे और रुत्बे को बयान किया है, आप की शख़्सियत कई प्रकार से अहम है, पहले यह कि इमाम अ.स. की सभी औलाद में से हज़रत मासूमा स.अ. की ज़ियारत पर सबसे अधिक ज़ोर दिया गया है।

दूसरे आप अपने घराने में अपने सभी भाईयों बहनों में सबसे अधिक अपने वालिद (इमाम काज़िम अ.स.) और भाई (इमाम रज़ा अ.स.) के क़रीब थीं, इसके अलावा दूसरे इमामों जैसे इमाम सादिक़ अ.स. और इमाम मोहम्मद तक़ी अ.स. से आपके किरदार और मानवियत की वजह से आपकी ज़ियारत के बारे में कई हदीसें नक़्ल हुई हैं,

जैसाकि इमाम सादिक़ अ.स. ने आपकी विलादत की ख़बर देत हुए आपकी मारेफ़त के साथ की गई ज़ियारत का सवाब जन्नत को बताया और फ़रमाया कि आपके द्वारा शियों के हक़ में की गई शफ़ाअत ज़रूर क़ुबूल होगी।

इमाम सादिक़ अ.स. की मंसूर दवानीक़ी द्वारा शहादत 148 हिजरी में हुई और हज़रत मासूमा 179 हिजरी में पैदा हुईं यानी इमाम अ.स. की शहादत से क़रीब 30 साल बाद आप पैदा हुईं लेकिन इमाम अ.स. हज़रत मासूमा स.अ. की विलादत से 30 साल पहले ही आपके मानवी दर्जे और मक़ाम के आधार पर आपके वुजूद की अहमियत को बयान किया जैसाकि आपने फ़रमाया अल्लाह का एक हरम है जो मक्के में है,

पैग़म्बर स.अ. का भी एक हरम है जो मदीने में है, इमाम अली अ.स. का भी एक हरम है जो कूफ़ा में है उसी तरह हम अहलेबैत अ.स. का भी हरम है जो क़ुम में है और बहुत जल्द वहां हमारी औलाद में से एक ख़ातून दफ़्न होगी जिसका नाम फ़ातिमा होगा, जिसने भी उनकी ज़ियारत की जन्नत उस पर वाजिब होगी, इमाम सादिक़ ने यह बात उस कही जब हज़रत मासूमा अभी दुनिया में नहीं आई थीं।

इस हदीस में इमाम अली अ.स. के बाद से सभी इमामों के हरम को इमाम सादिक़ अ.स. ने क़ुम बताया है, वैसे हदीस में कुल्लना का शब्द है जिसे देख कर कहा जा सकता है सभी चौदह मासूम अ.स. शामिल हैं,

जबकि अगर देखा जाए तो हर इमाम अ.स. का अलग हरम है किसी का कर्बला किसी का काज़मैन किसी का सामरा किसी का मशहद लेकिन फिर भी इमाम अ.स. ने अहलेबैत अ.स. के हरम को क़ुम कहा जो हमारा ध्यान अपनी ओर आकर्षित करता है, और फिर इमाम की इस हदीस के बाद ही हज़रत मासूमा स.अ. का दुनिया में आना और और क़ुम में दफ़्न होना और आपकी ज़ियारत का सवाब जन्नत होना इस बात ने हमारे ध्यान को और अधिक अपनी ओर खींच लिया है।

उलमा बयान करते हैं इस हदीस का मक़सद लोगों को हज़रत मासूमा स.अ. की ज़ियारत की तरफ़ शौक़ दिलाना है ताकि इंसान आपके हरम में जा कर अल्लाह से क़रीब हो सके और उस मानवियत को हासिल कर सके जिसकी ओर इमाम सादिक़ अ.स. ने इशारा किया है और फिर क़यामत में आपकी शफ़ाअत हासिल करते हुए जन्नत में जा सके।

ज़ियारत में आपके शफ़ाअत करने के अधिकार का ज़िक्र किया गया है और यह उसी के पास होगा जो ख़ुद अल्लाह से क़रीब हो, जिस से पता चलता है आप का आध्यात्मिक दर्जा कितना बुलंद है और हदीस में जो ज़ियारत के सवाब में जन्नत के वाजिब होने की बात कही गई हैंं

। इसका मतलब यह नहीं है कि इंसान गुनाह करता रहे और ज़ियारत कर ले उसके लिए भी जन्नत है, क्योंकि दूसरी और हदीसों में मारेफ़त के साथ ज़ियारत करने की शर्त है, ज़ाहिर है वह इंसान जिसको मारेफ़त होगी वह अच्छे तरह जानता होगा कि गुनाह को क़ुर्आन ने नजासत कहा और नजासत का अल्लाह ने अहलेबैत अ.स. के क़रीब न लाने का इरादा किया है।

इमाम मूसा काज़िम (अ.स.) और उनके भाई इमाम अली रज़ा (अ.स.) ने उन्हें इस्लामी तालीमात और इल्म की ऊँचाइयों से सरफ़राज़ किया।

बीबी मासूमा (स.अ) की ज़िन्दगी ईमान, तक़वा और इल्म का बेहतरीन नमूना थी। वह एक ऐसी आला दर्जे की ख़ातून थीं जिनकी मिसाल देना मुश्किल है। उनका असली नाम फ़ातिमा था, लेकिन अपनी पवित्रता और बेहतरीन किरदार की वजह से उन्हें "मासूमा" का लक़ब मिला। उनके वालिद इमाम मूसा काज़िम (अ.स.) और उनके भाई इमाम अली रज़ा (अ.स.) ने उन्हें इस्लामी तालीमात और इल्म की ऊँचाइयों से सरफ़राज़ किया।

बीबी मासूमा (स.अ) का शुमार उन खास ख़वातीन में होता है, जिन्होंने इस्लामी समाज को अपने इल्म और तालीम से रौशन किया। उन्होंने अपने घराने से हासिल की गई रूहानी तालीम से इस्लाम की तालीमात को आम किया। उनके पास इल्म और हिकमत का समंदर था, और उन्होंने कई लोगों की इल्मी तिश्नगी को अपने इल्म के समंदर से सैराब किया। वह सिर्फ़ एक बहन या बेटी नहीं थीं, बल्कि वह एक रूहानी और दीनी रहनुमा थीं जिनके किरदार और इल्म से लाखों लोगों ने फ़ायदा उठाया।

उनकी ज़िन्दगी का हर लम्हा इस बात की दलील है कि एक औरत किस तरह से अपने दीन और इल्म के ज़रिये समाज की रहनुमाई कर सकती है। उन्होंने अपने भाई इमाम अली रज़ा (अ.स.) की गैर मौजूदगी में भी दीन और इस्लाम के अहकामात को आम किया और लोगों के दिलों में एहसास और मोहब्बत का चिराग़ रौशन किया।

जब वह अपने भाई से मिलने के लिए ईरान की तरफ़ सफ़र कर रही थीं, रास्ते में बीमार हो गईं और क़ुम में आकर उनका इंतक़ाल हुआ। क़ुम की सरज़मीन को बीबी मासूमा (स.अ) के मुक़द्दस रौज़े से वह मुक़ाम हासिल हुआ जो आज भी अकीदतमंदों के लिए रोशनी का मरकज़ है। उनका रौज़ा आज भी लाखों लोगों के दिलों की क़ुर्बत और दुआओं का मरकज़ बना हुआ है।

क़ुम के हरम में जब तुल्लाब (स्टूडेंट्स) या अन्य अकीदतमंद अपनी माँ की याद में तड़पते हैं, तो बीबी मासूमा (स.अ) के दर पर आकर उनके दिलों को सुकून मिलता है, मानो उन्हें अपनी माँ की ममता का एहसास हो रहा हो। बीबी ने हमें यह सिखाया कि इल्म, तक़वा और सच्चाई की रहनुमाई में ज़िन्दगी बसर की जाए और समाज में अच्छाई और दीन को फैलाया जाए।

मेरी अपनी ज़िन्दगी में, जब मेरी वालिदा का इंतकाल हुआ, तो मेरे दिल की तिश्नगी भी बीबी मासूमा (स.अ) के हरम की क़ुर्बत में सैराब हुई। बीबी का दर उन लोगों के लिए हमेशा से पनाहगाह रहा है, जो दिल से अपनी माँ की ममता और प्यार की तलाश करते हैं।

लेखक :सैयद साजिद हुसैन रज़वी मोहम्मद

हज़रत फ़ातिमा मासूमा स.अ.का जन्म सन 173 हिजरी इस्लामी कैलेंडर के ग्यारहवे महीने ज़ीक़ादा की पहली तारीख में मदीना शहर में हुई, आपका पालन पोषण ऐसे परिवार में हुआ जिसका प्रत्येक व्यक्ति अख़लाक़ और चरित्र के हिसाब से अद्वितीय था, आप का घराना इबादत और बंदगी, तक़वा और पाकीज़गी, सच्चाई और विनम्रता, लोगों की मदद करने और सख़्त हालात में अपने को मज़बूत बनाए रखने और भी बहुत सारी नैतिक अच्छाइयों में मशहूर था।

हज़रत फ़ातिमा मासूमा (स.अ.)कि विलादत पहली ज़ीक़ादा सन 173 हिजरी में मदीना शहर में हुई, आपकी परवरिश ऐसे घराने में हुई जिसका हर शख़्स अख़लाक़ और किरदार के एतबार से बेमिसाल था, आप का घराना इबादत और बंदगी, तक़वा और पाकीज़गी, सच्चाई और विनम्रता, लोगों की मदद करने और सख़्त हालात में अपने को मज़बूत बनाए रखने और भी बहुत सारी नैतिक अच्छाइयों में मशहूर था ।

सभी अल्लाह के चुने हुए ख़ास बंदे थे जिनका काम लोगों की हिदायत था, इमामत के नायाब मोती और इंसानियत के क़ाफ़िले को निजात दिलाने वाले आप ही के घराने से थे।

इल्मी माहौल

हज़रत मासूमा (स.अ) ने ऐसे परिवार में परवरिश पाई जो इल्म, तक़वा और नैतिक अच्छाइयों में अपनी मिसाल ख़ुद थे, आप के वालिद हज़रत इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम की शहादत के बाद आप के भाई इमाम अली रज़ा अलैहिस्सलाम ने सभी भाइयों और बहनों की परवरिश की ज़िम्मेदारी संभाली, आप ने तरबियत में अपने वालिद की बिल्कुल भी कमी महसूस नहीं होने दी, यही वजह है कि बहुत कम समय में इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम के बच्चों के किरदार के चर्चे हर जगह होने लगे।

इब्ने सब्बाग़ मलिकी का कहना है कि इमाम मूसा काज़िम (अ) की औलाद अपनी एक ख़ास फ़ज़ीलत के लिए मशहूर थी, इमाम मूसा काज़िम (अ) की औलाद में इमाम अली रज़ा (अ) के बाद सबसे ज़ियादा इल्म और अख़लाक़ में हज़रत फ़ातिमा मासूमा (स.अ) ही का नाम आता है और यह हक़ीक़त को आप के नाम, अलक़ाब और इमामों द्वारा बताए गए सिफ़ात से ज़ाहिर है।

फ़ज़ाएल का नमूना:

हज़रत फ़ातिमा मासूमा (स.अ) सभी अख़लाक़ी फ़ज़ाएल का नसूना हैं, हदीसों में आपकी महानता और अज़मत को इमामों ने बयान फ़रमाया है, इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम इस बारे में फ़रमाते हैं कि जान लो कि अल्लाह का एक हरम है जो मक्का में है, पैग़म्बर (स) का भी एक हरम है जो मदीना में है, इमाम अली (अ) का भी एक हरम है जो कूफ़ा में है, जान लो इसी तरह मेरा और मेरे बाद आने वाली मेरी औलाद का हरम क़ुम है। ध्यान रहे कि जन्नत के 8 दरवाज़े हैं जिनमें से 3 क़ुम की ओर खुलते हैं, हमारी औलाद में से (इमाम मूसा काज़िम अ.स. की बेटी) फ़ातिमा नाम की एक ख़ातून वहां दफ़्न होगी जिसकी शफ़ाअत से सभी जन्नत में दाख़िल हो सकेंगे।

आपका इल्मी मर्तबा:

हज़रत फ़ातिमा मासूमा (स.अ) इस्लामी दुनिया की बहुत अज़ीम और महान हस्ती हैं और आप का इल्मी मर्तबा भी बहुत बुलंद है। रिवायत में है कि एक दिन कुछ शिया इमाम मूसा काज़िम (अ) से मुलाक़ात और कुछ सवालों के जवाब के लिए मदीना आए, इमाम काज़िम (अ) किसी सफ़र पर गए थे, उन लोगों ने अपने सवालों को हज़रत मासूमा (स.अ) के हवाले कर दिया उस समय आप बहुत कमसिन थीं (तकरीबन सात साल) अगले दिन वह लोग फिर इमाम के घर हाज़िर हुए लेकिन इमाम अभी तक सफ़र से वापस नहीं आए थे, उन्होंने आप से अपने सवालों को यह कहते हुए वापस मांगा कि अगली बार जब हम लोग आएंगे तब इमाम से पूछ लेंगे, लेकिन जब उन्होंने अपने सवालों की ओर देखा तो सभी सवालों के जवाब लिखे हुए पाए, वह सभी ख़ुशी ख़ुशी मदीने से वापस निकल ही रहे थे कि अचानक रास्ते में इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम से मुलाक़ात हो गई, उन्होंने इमाम से पूरा माजरा बताया और सवालों के जवाब दिखाए, इमाम ने 3 बार फ़रमाया: उस पर उसके बाप क़ुर्बान जाएं।

शहर ए क़ुम में दाख़िल होना:

क़ुम शहर को चुनने की वजह हज़रत मासूमा (स.अ) अपने भाई इमाम अली रज़ा (अ) से ख़ुरासान (उस दौर के हाकिम मामून रशीद ने इमाम को ज़बरदस्ती मदीना से बुलाकर ख़ुरासान में रखा था) में मुलाक़ात के लिए जा रहीं थीं और अपने भाई की विलायत के हक़ से लोगों को आशना करा रही थी। रास्ते में सावाह शहर पहुंची, आप पर मामून के जासूसों ने डाकुओं के भेस में हमला किया और ज़हर आलूदा तीर से आप ज़ख़्मी होकर बीमार हों गईं, आप ने देखा आपकी सेहत ख़ुरासान नहीं पहुंचने देगी, इसलिए आप क़ुम आ गईं, एक मशहूर विद्वान ने आप के क़ुम आने की वजह लिखते हुए कहा कि, बेशक आप वह अज़ीम ख़ातून थीं जिनकी आने वाले समय पर निगाह थी, वह समझ रहीं थीं कि आने वाले समय पर क़ुम को एक विशेष जगह हासिल होगी, लोगों के ध्यान को अपनी ओर आकर्षित करेगी यही कुछ चीज़ें वजह बनीं कि आप क़ुम आईं।

आपकी ज़ियारत का सवाब:

आपकी ज़ियारत के सवाब के बारे में बहुत सारी हदीसें मौजूद हैं, जिस समय क़ुम के बहुत बड़े मोहद्दिस साद इब्ने साद इमाम अली रज़ा (अ) से मुलाक़ात के लिए गए, इमाम ने उनसे फ़रमाया: ऐ साद! हमारे घराने में से एक हस्ती की क़ब्र तुम्हारे यहां है, साद ने कहा, आप पर क़ुर्बान जाऊं! क्या आपकी मुराद इमाम मूसा काज़िम (अ) की बेटी हज़रत फ़ातिमा मासूमा (स.अ) हैं? इमाम ने फ़रमाया: हां! और जो भी उनकी मारेफ़त रखते हुए उनकी ज़ियारत के लिए जाएगा जन्नत उसकी हो जाएगी।

शियों के छठे इमाम हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं: जो भी उनकी ज़ियारत करेगा उस पर जन्नत वाजिब होगी।

ध्यान रहे यहां जन्नत के वाजिब होने का मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि इंसान इस दुनिया में कुछ भी करता रहे केवल ज़ियारत कर ले जन्नत मिल जाएगी, इसीलिए एक हदीस में शर्त पाई जाती है कि उनकी मारेफ़त रखते हुए ज़ियारत करे और याद रहे गुनाहगार इंसान को कभी अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम की हक़ीक़ी मारेफ़त हासिल नहीं हो सकती। जन्नत के वाजिब होने का मतलब यह है कि हज़रत मासूमा (स.अ) के पास भी शफ़ाअत का हक़ है।

अगर हौज़ा-ए-इल्मिया विदेशी विचारों का खुलकर सामना करें और अपने इल्म के ढांचे में सुधार करें, तो इससे इस्लामी सरकार और फिर इस्लामी सभ्यता की स्थापना की उम्मीद बढ़ जाएगी। क्योंकि मौजूदा सरकार से इस्लामी सरकार की ओर बदलाव सिर्फ़ ज्ञान और सोच में बदलाव लाकर ही संभव है। अगर ऐसा नहीं हुआ, तो देश के प्रबंधकों और विचारकों के बीच विचारों का मिलाजुला संकरापन पैदा हो जाएगा, जिससे जनता का लोकतंत्र और इस्लामियत पर विश्वास गहरा नुकसान झेल सकता है।

जनाब अली असगरी ने हौज़ा ए इल्मिया की पुनर्स्थापना की 100वीं वर्षगांठ के विषय पर हौज़ा मीडिया के लिए एक विशेष नोट में लिखा:

मशरूता क्रांति के बाद, जब रोशनफिक्री प‍हलवी शासन की वैचारिक नींव बनी, तो ईरान के ज्ञान (विज्ञान) के संस्थान में एक बुनियादी बदलाव आया।

उस समय के रोशनफिक्रों के अनुसार, धर्म को विज्ञान और राजनीति से अलग करना (यानि सेक्युलरिज़ेशन) ही ईरान के विकास का एकमात्र रास्ता माना जाता था।

शायद बहुत से विश्वविद्यालयों के लोग या आम जनता इस बदलाव पर ज्यादा ध्यान नहीं दे रहे थे; लेकिन धर्म को उसकी असली पहचान से अलग करने के नतीजे में, विदेशी या विरोधी संस्कृतियों के छोटे-छोटे तत्वों को ईरानी समाज की आम संस्कृति में बदलने का रास्ता खुल गया।

ईरान में सेकुलराइजेशन का एक सबसे बड़ा असर यह हुआ कि विदेशी विचारों से प्रभावित संस्थाओं की भूमिका सरकार में बढ़ गई, जबकि धर्म की सभ्यतागत और पहचान बनाने वाली भूमिका कमज़ोर हुई। इस धर्म की सामाजिक और राजनीतिक भूमिका को हौज़ा-ए-इल्मिया निभाता था, लेकिन जब धर्म और विज्ञान अलग हुए तो यह भूमिका धीरे-धीरे कमजोर होती गई।

पहली और दूसरी पहलवी सरकारों की कोशिशें हौज़ा को समाज से अलग करने की, भले ही ज्ञान के संस्थान को गहरा नुकसान पहुंचाया, लेकिन लोगों की जन्मजात ज़रूरत धर्म और अल्लाह की शिक्षाओं की कभी खत्म नहीं हुई।

इस बात का सबूत बीसवीं सदी की एक बड़ी घटना, यानी ईरानी इस्लामी क्रांति है। इस क्रांति ने फिर से "इस्लाम की व्यापकता" को याद दिलाया और दिखाया कि ईरानी राष्ट्र का विकास और प्रगति केवल तभी संभव है जब एक तौहीदी हुकूमत लागू हो [1]।

इस्लामी क्रांति के बाद और विलायत फ़क़ीह के राजनीतिक सिद्धांत के लागू होने से यह उम्मीद थी कि माह्यूमैनिटीज में सुधार होगा। लेकिन शिक्षा संस्थानों में सेक्युलर सोच जारी रहने से यह सुधार नहीं हो पाया और पश्चिमी और इस्लामी विचारधाराओं के बीच टकराव देश की सबसे बड़ी वैज्ञानिक समस्या बन गया। इसलिए, उच्च सांस्कृतिक क्रांति परिषद ने मानविकी को इस्लामी बनाने की जिम्मेदारी ली ताकि देश का ज्ञान और कार्यभार ईरानी-इस्लामी पहचान के अनुसार फिर से परिभाषित हो सके।

पश्चिमी आधुनिक विचारों जैसे सापेक्षवाद, भौतिकवाद, मानवतावाद आदि ने कुछ विश्वविद्यालयी बुद्धिजीवियों के समर्थन से एक मजबूत दीवार बना ली, जिससे धार्मिक विज्ञान को समाज की गहरी तहों तक फैलने से रोका गया और इसे असंभव माना गया।

धीरे-धीरे, 1990 के दशक में पॉपरी सुधारों [2] को राजनीतिक तौर पर स्वीकार करना और धार्मिक बहुलवाद का प्रस्ताव, इस्लामी शिक्षा संस्थानों के लिए आधुनिकता के विचारों का मुकाबला करना जरूरी बना दिया। इस संदर्भ में, आयतुल्लाह मंसूर यजदी ने तेहरान के शुक्रवार की नमाज़ से पहले भाषण में उन विचारों के सवालों का जवाब दिया और "परियोजना वलायत" नामक एक शैक्षिक कार्यक्रम शुरू किया ताकि इस्लामी विचारकों को तैयार किया जा सके।

आयतुल्लाह मंसूर यजदी पर हुए हमलों की संख्या और आज सापेक्षवाद के बढ़ते प्रचार के साथ पश्चिमी मानविकी के स्नातकों द्वारा सांस्कृतिक उदारवाद फैलाने से पता चलता है कि इस्लामी शिक्षा संस्थानों की भूमिका आधुनिक वैज्ञानिक हमलों के खिलाफ लड़ाई में दिन-ब-दिन ज्यादा महत्वपूर्ण होती जा रही है।

यह स्थिति तब और स्पष्ट हो जाती है जब किसी समाज के कार्य, प्रतीक, नियम और अंत में उसके मूल्य, कुछ जिम्मेदार लोगों की निष्क्रियता और आज़ादी की ओर बढ़ते रवैये के कारण बदलने लगें। ऐसा हो सकता है कि पश्चिमी सोच वाले शिक्षित लोगों के ज्ञान और समझ का प्रभाव देश की सांस्कृतिक नीतियों और प्रतीकों पर इतना बढ़ जाए कि फिर से धार्मिक विचारों को अलग-थलग करने का माहौल बन जाए।

इसलिए, हौज़ा-ए-इल्मिया द्वारा विदेशी विचारों का खुलकर सामना कर निहायत सुधार करना, इस्लामी सरकार और बाद में इस्लामी सभ्यता की प्राप्ति की उम्मीद जगाता है [3]। क्योंकि आधुनिक सरकार से इस्लामी सरकार की ओर बदलाव केवल वैज्ञानिक और ज्ञानात्मक परिवर्तन के जरिए ही संभव है। यदि ऐसा न हुआ, तो प्रशासनिक और विचारक वर्ग के बीच मिली-जुली नीतियां देश के राष्ट्रीय विश्वास-चाहे वह लोकतांत्रिक हो या इस्लामी-को गहरा नुकसान पहुंचाएंगी।

हवालाः

1- सुखनरानी टेलीवीजयूनी रहबरे इंकेलाब बे मुनासबत सालगर्द रहलत इमाम ख़ुमैनी (र) / तारीख: 14/03/1399 (ईरानी कैलेंडर)

2- "हफत मौज ए इस्लाहात" / लेखक: हमीद पारसानिया

3- दीदार रहबरे इंकेलाब बा हौज़ावीयान / तारीख: 18/02/1398 (ईरानी कैलेंडर)

धार्मिक अध्ययन के शिक्षक ने कहा: तीन इमामों ने कहा है कि हज़रत मासूमा के पास जाने का इनाम, अल्लाह उसे आशीर्वाद दे और उसे शांति प्रदान करे, स्वर्ग है, या स्वर्ग उस पर अनिवार्य हो जाता है। इसलिए हमें क़ोम शहर में हज़रत मासूमा (स) की तीर्थयात्रा की सराहना करनी चाहिए। तो जिस महिला ने हमारे भविष्य की गारंटी दी है वह हमारी दुनिया को भी आबाद कर सकती है। हमारे जीवन में कठिनाइयों से छुटकारा पाने के लिए हज़रत मासूमा (स) से प्रार्थना करने की आवश्यकता है।

हुज्जतुल-इस्लाम वल-मुस्लेमीन हबीबुल्ला फरहजाद ने हजरत फातिमा मासूमा के जन्म के मौके पर बीबी की मजार पर जाएरीन की एक सभा को संबोधित करते हुए कहा: ज़िलक़दा हराम महीनों में से एक है। इस महीने में काफ़िर से लड़ाई करना जायज़ नहीं है और इस महीने में किसी से भी दुश्मनी और द्वेष से बचना चाहिए।

उन्होंने कहा: इस महीने की क्रियाओं में से एक प्रत्येक रविवार को एक विशिष्ट प्रार्थना है। इस प्रार्थना में चार रकअत होते हैं, जिन्हें दो, दो रकअत के रूप में पढ़ना चाहिए। नीतिशास्त्र के विद्वानों ने इस प्रार्थना को पढ़ने पर बहुत बल दिया है। इस प्रार्थना के बारे में इस्लाम के पैगंबर (स) ने कहा: "जो कोई भी इस प्रार्थना को पढ़ता है, सर्वशक्तिमान ईश्वर उसके पश्चाताप को स्वीकार करेगा, उसकी मृत्यु आसान होगी, और धर्मी उसकी गर्दन पर होगा, सर्वशक्तिमान ईश्वर "वह उन्हें इसके बारे में विश्वास दिलाकर उनकी कब्र को रोशन करेगा।"

हुज्जत-उल-इस्लाम फरहजाद ने करामात के दस साल और हजरत मासूमा के जन्मदिन का जिक्र करते हुए, भगवान उन्हें आशीर्वाद दे और उन्हें शांति प्रदान करे, कहा: हजरत मासूमा के क़ोम आने से पहले भी, क़ोम एक पवित्र शहर था और यहाँ रहने वाले लोग अहले-बैत (अ) का विलायत स्वीकार कर लिया था। हज़रत इमाम जाफ़र सादिक (अ) ने क़ुम शहर के बारे में कहा, "क़ुम अहले-बैत का हरम है"। एक अन्य रिवायत में कहा गया है कि "क़ुम शहर मुहम्मद के परिवार का घर है"। यहां तक ​​कि क़ुम में दफन होने के संकेतों और आशीर्वादों का भी परंपराओं में उल्लेख किया गया है और क़ुम में दफनाए जाने वाले लोग क़यामत के दिन शोक नहीं देखेंगे।

धार्मिक अध्ययन के इस शिक्षक ने कहा: शिया धर्म के प्रचार में क़ोम के लोग भी सबसे आगे हैं। धर्म के बड़े-बुजुर्ग कहते हैं कि अगर कोम के लोग न होते तो धर्म खत्म हो जाता।

उन्होंने कहा: यह वर्णन किया गया है कि अंत समय में, अहले-बैत (अ) का ज्ञान क़ुम शहर से अन्य शहरों में पहुंच जाएगा।

हुज्जतुल-इस्लाम फरहज़ाद ने कहा: क़ुम के लोगों के लिए सबसे बड़ा आशीर्वाद हज़रत मासूमा का अस्तित्व है। इमाम जाफर सादिक़ अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया है कि "बहुत जल्द मेरे एक बच्चे को क़ुम शहर में दफ़्न किया जाएगा, जिसका नाम "फ़ातिमा" होगा और वह हज़रत मूसा काज़िम की बेटी होगी, और सभी शिया उसकी सिफ़ारिश से जन्नत में दाख़िल होंगे।