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सुप्रीम लीडर ने सोमवार 20 अक्टूबर 2025 की सुबह को खेलों के मुख़्तलिफ़ अंतर्राष्ट्रीय मुक़ाबलों और अंतर्राष्ट्रीय साइंसी ओलंपियाड्स में मैडल हासिल करने वाले सैकड़ों अफ़राद और चैंपियनों से मुलाक़ात की।

सुप्रीम लीडर ने समोवार 20 अक्टूबर 2025 की सुबह को खेलों के मुख़्तलिफ़ अंतर्राष्ट्रीय मुक़ाबलों और अंतर्राष्ट्रीय साइंसी ओलंपियाड्स में मैडल हासिल करने वाले सैकड़ों अफ़राद और चैंपियनों से मुलाक़ात की।

उन्होंने इस मौक़े पर अपने संबोधन में मुल्क़ और क़ौम के लिए इन इफ़्तिख़ार आफ़रीन खिलाड़ियों और मैडल हासिल करने वालों को क़ौम की पीशरफ़्त का मज़हर और ताक़त का जलवा बताया और कहा कि आपने साबित कर दिया कि क़ौम के मज़हर की हैसियत से प्रिया ईरान की उम्मीद आफ़रीन जवानों में यह ताक़त पाई जाती है कि वो सब से ऊँची चोटियों पर खड़े हों और दुनिया के ज़ेहनों और आँखों को ईरान की मुनव्वर फ़ज़ा की तरफ़ मुतवज्जेह कराएँ।

उन्होंने ऐसे पुर-अज़्म जवानों के दरमियान अपनी मौजूदगी पर प्रसन्नता ज़ाहिर करते हुए कहा कि आपने खेल और साइंस के मैदानों में अपनी कोशिशों और हौसले से क़ौम को खुश किया और जवानों को इश्तियाक़ दिलाया। उन्होंने कहा कि आपके मैडल दूसरे ज़मानों के मैडलो से कहीं ज़्यादा महत्व रखते हैं क्योंकि आपने ये मैडल ऐसे हालात में हासिल किए हैं जब दुश्मन सॉफ़्ट वार के ज़रिए क़ौम को मायूस करना और उसकी तवानाइयों से ग़ाफ़िल करना चाहता है, लेकिन आपने मैदान-ए-अमल में क़ौम की ताक़त व तवानाई का इज़्हार करके उसे सबसे दंदान-शिकन जवाब दिया है।

आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामनाई ने इसी तरह अमरीकी सदर की हालिया हरज़हसराई और बकवास की तरफ़ इशारा करते हुए कहा कि उस शख़्स ने कोशिश की कि अपने ऊँचे रवैये और ख़ित्ते, ईरान और ईरानी क़ौम के बारे में बेहिसाब झूठ के ज़रिए ज़ायोनियों की हौसला-अफ़ज़ाई करे और खुद को ताक़तवर ज़ाहिर करे। लेकिन अगर उसमें ताक़त है तो उन दसियों लाख लोगों को पुरसुकून करे जो अमरीका की मुख़्तलिफ़ रियासतों में उसके ख़िलाफ़ नारे लगा रहे हैं।

उन्होंने 12 दिवसीय युद्द में जायोनी हुकूमत पर पड़ने वाले इस्लामी जम्हूरिया के ना-मुमकिन से थप्पड़ को ज़ायोनियों की मायूसियों का सबब बताया और कहा कि उन्हें उम्मीद नहीं थी कि ईरान के मिज़ाइल उनके हस्सास और अहम मराकिज़ तक पहुंच जाएंगे और उन्हें तबाह कर देंगे।

सुप्रीम लीडर ने इस बात पर ज़ोर देते हुए कहा कि ईरान ने मिज़ाइल कहीं से ख़रीदे नहीं हैं बल्कि वो ईरानी जवानों के हाथों बने हुए हैं। उन्होंने कहा कि जब ईरानी जवान मैदान में आता है और अपनी कोशिशों से साइंसी इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार करता है तो वो ऐसे बड़े-बड़े काम करने की क़ाबिलियत रखता है। हमारी मुसल्लह फ़ोर्सेज़ और फौजी इंडस्ट्रीज़ के पास ये मिज़ाइल पहले से तैयार थे, उन्होंने उन्हें इस्तेमाल किया और उनके पास ऐसे मिज़ाइल और भी हैं — अगर ज़रूरत हुई तो वो फिर से इस्तेमाल किए जाएंगे।

उन्होंने कहा कि ग़ज़्ज़ा युद्ध में यक़ीनी तौर पर अमरीका ज़ायोनी हुकूमत का असली शरीक-ए-जुर्म है, जैसा कि खुद अमरीकी सदर ने इकरार किया कि हम ग़ज़्ज़ा में इस सरकार के साथ मिलकर काम कर रहे थे। अगर वो इकरार न भी करते तो भी यह बात वाज़ेह थी क्योंकि ग़ज़्ज़ा के बेसहारा लोगों को अमरीकी हथियारों से ही निशाना बनाया जा रहा था।

आयतुल्लाह ख़ामनाई ने आतंकवाद से अमरीका की जंग के ट्रम्प के दावे को उनकी झूठी बातों की एक और मिसाल बताया और कहा कि ग़ज़्ज़ा की जंग में बीस हज़ार से ज़्यादा छोटे और नव-मौलूद बच्चे शहीद हुए — क्या वो दहशतगर्द थे? आतंकवादी तो अमरीका है जिसने दाइश को पैदा किया और उसे लोगों की जान के पीछे लगा दिया, और आज भी वो दाइश के बहुत से अफ़राद को अपने कंट्रोल में रखे हुए है ताकि वक़्त पर उन्हें इस्तेमाल कर सके।

उन्होंने ग़ज़्ज़ा की जंग में सत्तर हज़ार लोगों के क़त्ल और 12 दिवसीय युद्ध में एक हज़ार से ज़्यादा ईरानियों की शहादत को अमरीका और ज़ायोनी हुकूमत को आतंकवाद का खुला सबूत बताया और कहा कि उन्होंने आम लोगों के अलावा तहेरांची और अब्बासी जैसे हमारे साइंसीदानों को भी निशाना बनाया और इस जुर्म पर फख्र किया, लेकिन उन्हें मालूम होना चाहिए कि साइंस को क़त्ल नहीं किया जा सकता।

सुप्रीम लीडर ने अमरीकी सदर की उन बातों की तरफ़ इशारा करते हुए कहा जिनमें उन्होंने ईरान की एटमी सनअत पर बमबारी पर फख्र किया था, कहा कि कोई बात नहीं — आप उस ख़याल में रहिए, लेकिन आप हैं कौन कि किसी मुल्क़ से कहें कि यह करो या वो न करो। अमरीका से क्या मतलब कि ईरान के पास एटमी सनअत और वसाइल हैं या नहीं। यह ग़लत दख़लअंदाज़ी और मनहज़ोरी है।

उन्होंने अमरीका की मुख़्तलिफ़ रियासतों और शहरों में क़रीब सत्तर लाख लोगों की शिरकत से ट्रम्प के ख़िलाफ़ होने वाले मुज़ाहिरों की तरफ़ इशारा करते हुए कहा कि अगर आप में इतनी तवानाई है तो झूठ फैलाने, दूसरे देशों में दख़ल देने और फौजी अड्डे बनाने के बजाय उन दसियों लाख लोगों को पुरसुकून कीजिए और उन्हें उनके घरों को लौटाइए।

आयतुल्लाह ख़ामनाई ने इस बात पर ज़ोर देते हुए कहा कि हक़ीक़ी दहशतगर्द और दहशतगर्दी का मज़हर अमरीका है। उन्होंने ईरानी अवाम की हिमायत के ट्रम्प के दावे को झूठा बताया और कहा कि अमरीका की सेकेंडरी पाबंदियां भी ईरानी क़ौम के ख़िलाफ़ हैं, इस लिए वो दोस्त नहीं, दुश्मन हैं।

उन्होंने डील के लिए ट्रम्प की आमादगी के ऐलान की तरफ़ इशारा करते हुए कहा कि वो कहते हैं कि “मैं डील करने वाला इंसान हूँ”, जबकि अगर डील मनहज़ोरी के साथ हो और उसका नतीजा पहले से तय हो तो वो डील नहीं बल्कि डिक्टेशन है — और ईरानी क़ौम कभी भी डिक्टेशन बर्दाश्त नहीं करेगी।

सर्वोच्च नतेा ने मग़रिबी एशिया के ख़ित्ते में मौत और जंग के बारे में ट्रम्प की एक और बात की तरफ़ इशारा करते हुए कहा कि “जंग आप शुरू कराते हैं, अमरीका ही जंग फैलाने वाला है और लोगों को क़त्ल करता है, वरना इस ख़ित्ते में अमरीका के इतने ज़्यादा फौजी अड्डों का क्या मतलब है? आप यहाँ क्या कर रहे हैं? इस इलाक़े का आप से क्या लेना देना है? यह इलाक़ा यहाँ के लोगों का है और यहाँ की मौत और जंग आपकी मौजूदगी की वजह से है।”

उन्होंने अपने संबोधन के आख़िर में अमरीकी सदर के मौक़िफ़ को ग़लत और बहुत-से मामलात में झूठ और दरोग़-गुई पर मबनी बताया और कहा कि हो सकता है कुछ मुल्क़ों पर मनहज़ोरी असर कर जाए लेकिन अल्लाह की तौफ़ीक़ से ईरानी क़ौम पर इसका कोई असर नहीं होगा।

आयतुल्लाह सय्यद अली ख़ामनाई ने अपने ख़िताब के एक हिस्से में इन्क़लाब के बाद कुछ शोबों में होने वाली तेज़ रफ़्तार तरक़्क़ी की तरफ़ इशारा करते हुए कहा कि इस साल खिलाड़ियों और ओलंपियाड्स में शिरकत करने वालों की ज़बरदस्त कामयाबी वाक़ई मुल्क़ की स्पोर्ट्स तारीख़ में बे-मिसाल है।

उन्होंने मुल्क़ के परचम के एहतराम, मैदान में खिलाड़ियों के सज्दे और दुआ को ईरानी क़ौम का मज़हर बताया और कहा कि साइंसी ओलंपियाड्स में शिरकत करने वाले ये अज़ीज़ जवान फिलहाल एक दरख़्शाँ सितारा हैं, लेकिन दस साल बाद जद्दोजहद जारी रखने की शर्त पर वो दरख़्शाँ ख़ुरशीद बन जाएंगे — और इस सिलसिले में ज़िम्मेदार अफ़राद पर संगीन ज़िम्मेदारी है।

सुप्रीम लीडर ने इस्लामी इन्क़लाब की कामयाबी के बाद जवानों की जानिब से निभाए गए अहम किरदार को एक मुसलसल अमल बताया और कहा कि आठ साल की मुसल्लत जंग में जवान नस्ल ने बेसुमार मेहरूमियों और खाली हाँथ होने के बावजूद ऐसी अज़ीम फौजी जिद्दत-तराज़ियाँ दिखाईं कि ईरान, सर-तापर मुसल्लह दुश्मन के मुकाबले में, जिसे हर तरफ़ से सहारा हासिल था, फत्तह-याब हुआ।

उन्होंने ईरान की मुख़्तलिफ़ साइंसी पेशरफ़्तों को रोकने की दुश्मनों की कोशिश की तरफ़ इशारा करते हुए कहा कि वो अब भी कोशिश में हैं कि कुछ कामयाबियों को नज़रअंदाज़ कर दें या उनका इन्कार करें, और कुछ कमियों को बढ़ा-चढ़ा कर पेश करें ताकि ईरान का माहौल तारीक दिखाई दे। मगर आपने स्पोर्ट्स और साइंस की चोटियों पर खड़े होकर मुल्क़ की रोशन फ़ज़ा पूरी दुनिया को दिखा दी।

आयतुल्लाहिलल उज़्मा सय्यद अली ख़ामनाई ने आख़िर में दोबारा कहा कि अमरीकी सदर की हालिया हरज़हसराई और बकवास उसके झूठे और कमज़ोर मिज़ाज की अलामत है — अगर उसमें दम है तो अपने मुल्क़ के अंदर उठने वाले लाखों मुज़ाहिरों को ख़ामोश करे जो उसी के ख़िलाफ़ नारे लगा रहे हैं।

 

सनंदज के अहले-सुन्नत इमामे-जुमा ने कहा: “आज इस्लामी समाज का मार्गदर्शन, विद्वानोऔर दीनी बुजुर्गों की ज़िम्मेदारी है क्योंकि दुश्मन दीन को समाज से दूर करने की भरपूर कोशिश कर रहा है।”

ईरान के शहर सनंदज के अहले-सुन्नत इमामे-जुमा मौलवी सय्यद अहसन हुसैनी ने कहा: “दिनी महाफ़िल समाज के लिए बरकत का कारण हैं और उनका तस्सल्सुल समाजी बुराइयों में कमी और मुनकरात से दूरी का असरअंदाज़ ज़रिया बन सकता है।”

उन्होंने कहा: “उलेमा को चाहिए कि मुख़लिस हुकूमती ज़िम्मेदारों के साथ ज़्यादा सहयोग करें ताकि वो दीन और जनता की बेहतर सेवा कर सकें।”

मौलवी हुसैनी ने कहा: “आज इस्लामी समाज का मार्गदर्शन, विद्वानो और दीनी बुज़ुर्गों की ज़िम्मेदारी है, क्योंकि दुश्मन दीन को समाज से दूर करने की भरपूर कोशिश कर रहा है।”

उन्होंने समाज के मार्गदर्शन में उलेमा और रुहानियत के किरदार पर प्रकाश डालते हुए कहा: “मौजूदा हालात में विद्वानो को आपसी सहानुभूति और सहयोग के माध्यम से वहदत व मआनवियात का पैग़ाम फैलाना चाहिए, और जम्हूरिया इस्लामी ईरान के मुख़लिस ज़िम्मेदारान के साथ मिलकर मुल्क़ की दीनी और सकाफ़ती तरक़्क़ी के लिए कोशिश करनी चाहिए।”

 

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन अलीज़ादेह मूसवी ने कहा कि आज के दौर में दुश्मन ने सूचना और मीडिया पर प्रभुत्व स्थापित कर रखा है इस मीडिया निर्भरता को तोड़ना और इस्लामिक केंद्रों को मीडिया की दुनिया में प्रभावी बनाना समय की महत्वपूर्ण आवश्यकता है।

बांग्लादेश के वली ए फकीह के प्रतिनिधि हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन अलीज़ादेह मूसवी ने मंगलवार 21 अक्टूबर 2025 को हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के विभिन्न विभागों का विस्तृत दौरा किया।

इस अवसर पर एजेंसी के अधिकारियों और प्रबंधकों ने उन्हें न्यूज़ एजेंसी की गतिविधियों, परियोजनाओं और विशेष रूप से अंतर्राष्ट्रीय विभाग की प्रगति से अवगत कराया।

बाद में, हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन अलीज़ादेह मूसवी ने हौज़ा ए इल्मिया ईरान के मीडिया और साइबर स्पेस सेंटर के प्रमुख और हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के प्रबंधक हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन रज़ा रूस्तमी से मुलाकात की, जिसमें मीडिया सहयोग को बढ़ावा देने पर विचार-विमर्श किया गया।

उन्होंने हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की गतिविधियों की सराहना करते हुए कहा कि आज के दौर में सटीक और समय पर सूचना देना एक धार्मिक और सामाजिक आवश्यकता है। उनके अनुसार, दुश्मन के मीडिया वर्चस्व को तोड़ना और हौज़ा न्यूज़ को खबरों के वास्तविक केंद्र के रूप में स्थापित करना और उसे इस उच्च स्तर तक पहुंचाना अत्यंत महत्वपूर्ण है।

प्रतिनिधि वली फकीह ने आगे कहा कि आज का युवा धार्मिक शिक्षण संस्थानों की विद्वतापूर्ण और बौद्धिक विरासत से पूरी तरह अवगत नहीं है। इसलिए यह आवश्यक है कि धार्मिक स्कूलों और विद्वानों की सेवाओं को आधुनिक आवश्यकताओं के अनुरूप प्रस्तुत किया जाए, ताकि यह संदेश युवा पीढ़ी तक प्रभावी ढंग से पहुंच सके।

 

फिलिस्तीनी शिक्षा मंत्रालय ने घोषणा की है कि 7 अक्टूबर 2023 से शुरू हुए इसराइली आक्रमण के नतीजे में अब तक 20,058 छात्र शहीद और 31,139 घायल हो चुके हैं, जबकि 1,037 शिक्षक और शैक्षिक कर्मचारी भी शहादत प्राप्त कर चुके हैं।

फिलिस्तीनी शिक्षा मंत्रालय ने घोषणा की है कि 7 अक्टूबर 2023 से शुरू हुए इसराइली आक्रमण के नतीजे में अब तक 20,058 छात्र शहीद और 31,139 घायल हो चुके हैं, जबकि 1,037 शिक्षक और शैक्षिक कर्मचारी भी शहादत प्राप्त कर चुके हैं।

मंत्रालय के बयान के अनुसार, शहीद हुए छात्रों में से 19,910 गाजा पट्टी के हैं, जबकि 148 छात्र वेस्ट बैंक में शहीद हुए। इसके अलावा, गाजा में 30,097 छात्र घायल और वेस्ट बैंक में 1,042 छात्र घायल हुए, जबकि 846 व्यक्तियों को हिरासत में लिया गया है।

शिक्षा मंत्रालय ने आगे बताया कि अब तक 179 सरकारी स्कूल गाजा में पूरी तरह से तबाह हो चुके हैं, 63 यूनिवर्सिटी इमारतें मलबे का ढेर बन गईं, जबकि 118 सरकारी और 100 से ज़्यादा UNRWA स्कूल भी इसराइली बमबारी की जद में आए। इन हमलों के कारण 30 से ज़्यादा स्कूल अपने छात्रों और शिक्षकों समेत पूरी तरह से नष्ट हो गए।

बयान में यह भी कहा गया कि वेस्ट बैंक में इसराइली सेना ने याता में उमैरा प्राइमरी स्कूल और तुबास में अल-अकबा स्कूल को ध्वस्त कर दिया, जबकि 8 विश्वविद्यालयों और कॉलेजों पर कई बार हमले और तबाही की घटनाएं पेश आई हैं।

फिलस्तीनी शिक्षा मंत्रालय ने वैश्विक समुदाय से अपील की है कि वह इसराइली आक्रमण को रोकने और फिलस्तीनी शैक्षिक प्रणाली को पूरी तबाही से बचाने के लिए तत्काल कदम उठाए।

 

मेजर जनरल मोहम्मद पाकपुर ने यमनी चीफ ऑफ स्टाफ को अपने संवेदना संदेश में कहा कि ईरान क्षेत्र में सामान्य खतरों का मुकाबला करने और फिलिस्तीन व गाजा का समर्थन जारी रखने के लिए यमनी सेना के साथ सहयोग को और गहरा करने के लिए तैयार है।

इंकेलाब गार्ड कमांडर मेजर जनरल मोहम्मद पाकपुर ने यमनी सेना के साथ रणनीतिक सहयोग को और गहरा करने की इच्छा व्यक्त की है, ताकि वैश्विक साम्राज्यवाद का मुकाबला किया जा सके और फिलिस्तीन व गाज़ा का समर्थन जारी रखा जा सके।

यह संदेश उन्होंने यमनी सशस्त्र बलों के चीफ ऑफ स्टाफ ब्रिगेडियर जनरल यूसुफ हसन अल-मदानी को जनरल मोहम्मद अब्दुल करीम अल-गमारी की शहादत पर संवेदना व्यक्त करने के अवसर पर भेजा।

जनरल पाकपुर ने इस बात पर जोर दिया कि ऐसी कुर्बानियाँ वैश्विक साम्राज्यवाद और अंतर्राष्ट्रीय ज़ायोनिज़्म के खिलाफ प्रतिरोध की भावना को मजबूत करती हैं।

उन्होंने इस्लामी गणराज्य ईरान की ओर से यमनी सेना के साथ रणनीतिक सहयोग बढ़ाने की पूरी तत्परता दोहराई।

जनरल पाकपुर ने अपने संदेश में कहा कि जनरल अल-गमारी की शहादत यमन के दृढ़ और बहादुर लोगों के जज्बे को और मजबूत करेगी और वे क्षेत्र के दुश्मनों के खिलाफ अपना संघर्ष जारी रखेंगे।

उन्होंने कहा कि यमन का संघर्ष फिलिस्तीन और गाजा के मजलूम लोगों के समर्थन के साथ क्षेत्र में जारी प्रतिरोध और न्याय की लहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

 

 

विशेष पाठयक्रम “तरबियत-ए-मुबल्लिग़-ए-नह्ज़ुल-बलाग़ा” का उद्घाटन समारोह ईरान के शहर क़ुम में फुज़ला, तुल्लाब और नह्ज़ुल-बलाग़ा के शाएकीन की मौजूदगी में आयोजित हुआ।

विशेष पाठयक्रम “तरबियत-ए-मुबल्लिग़-ए-नह्ज़ुल-बलाग़ा” का उद्घाटन समारोह ईरान के शहर क़ुम में फुज़ला, तुल्लाब और नह्ज़ुल-बलाग़ा के शाएकीन की मौजूदगी में आयोजित हुआ।

इस पाठयक्रम का आयोजन दफ़्तर-ए-तब्लिग़ात-ए-इस्लामी की ओर से किया गया है, जिसका मक़सद नह्ज़ुल-बलाग़ा के मुबल्लेग़ीन और मुदर्रिसीन का प्रशिक्षण है।

रिपोर्ट के अनुसार यह पहल सुप्रीम लीडर की उस तक़ीद के पेश-ए-नज़र किया गई है जिसमें उन्होंने इस क़ीमती इस्लामी सरमाया यानी नह्ज़ुल-बलाग़ा पर ज़्यादा ध्यान देने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया था।

समारोह के शुरूआत  में दफ़्तर-ए-तब्लिग़ात-ए-इस्लामी के मरकज़-ए-अमली तर्बियत के प्रमुख मुहम्मद अली सुलैमानी ने हाज़िरीन का स्वागत करते हुए इस कोर्स की पृष्ठभूमि और लाभ की वज़ाहत की।

उन्होंने कहा: सुप्रीम लीडर की हिदायत के बाद दफ़्तर-ए-तब्लिग़ात-ए-इस्लामी के सांस्कृतिक एवं प्रचारक सरपरस्त की ओर से हिदायत वसूल होने पर माहेरीन और मुम्ताज़ शिक्षको से परामर्श करके इस कोर्स का इल्मी मनसूबा तैयार किया गया।

मुहम्मद अली सुलैमानी ने मजीद कहा: इस कोर्स के ऐलान के बाद ग़ैर-मामूली दिलचस्पी देखी गई, दो सौ से ज़्यादा लोगो ने प्रारम्भिक रूप से रजिस्ट्रेशन कराया जिनमें अस्सी अफ़राद शहर क़ुम से और बाकी दुसरे शहरों से थे। तख़स्सुसी इंटरव्यूज़ के बाद इकतालिस लोगो को हत्मी तौर पर मुन्तख़िब किया गया।

उन्होंने इस कोर्स की वज़ाहत करते हुए कहा: यह क्लासें हफ़्ते में तीन दिन शाम तीन से सात बजे तक मुनअक़िद होंगी और मजमुई तौर पर अठावन दरसी नशिस्तों पर मुश्तमिल होंगी जो एक सौ सोलह तालीमी घंटों के बराबर हैं। इस कोर्स की नमायाँ ख़ुसूसियात में मावज़ूई तनोअ, नह्ज़ुल-बलाग़ा के दक़ीक़ मुताला और इसके मुबाहिस को मौजूदा दौर के मावज़ूआत जैसे मुक़ावमत, सब्र और अस्र-ए-हाज़िर के चैलेंजों से जोड़ने की कोशिश शामिल है।

 

अफ्रीकी देश कॉन्गो की राजधानी किंशासा में शिया समुदाय की निरंतर कोशिशों से एक महान अंतरधार्मिक सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसका विषय धर्मों के बीच एकता और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व था।

अफ्रीकी देश कॉन्गो की राजधानी किंशासा में शिया समुदाय की निरंतर कोशिशों से एक महान अंतरधार्मिक सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसका विषय धर्मों के बीच एकता और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व था।

यह सम्मेलन शिया मुस्लिम काउंसिल कॉन्गो किंशासा के तत्वावधान में मस्जिद अररसूल में आयोजित किया गया जिसमें विद्वानों, विभिन्न धार्मिक नेताओं, चर्च के पादरियों और धार्मिक अल्पसंख्यकों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया इस कार्यक्रम को स्थानीय और क्षेत्रीय मीडिया में भी असाधारण स्वीकृति मिली।

सम्मेलन में ईरान, पाकिस्तान, सूडान, मिस्र के राजदूतों, कॉन्गो की राष्ट्रीय असेंबली के कुछ सदस्यों और संघीय कैबिनेट के प्रतिनिधियों ने भी भाग लिया।

इस अवसर पर शिया मुस्लिम काउंसिल कॉन्गो के अध्यक्ष शेख अबू जाफर ईसा एम्बाकी ने अपने संबोधन में कहा कि इस्लाम दया, प्रेम और क्षमा का धर्म है, और इसके अनुयायियों का कर्तव्य है कि वे अन्य धर्मों के साथ शांति और सम्मान के साथ रहें। उन्होंने बताया कि पिछले दस वर्षों में शिया काउंसिल ने धार्मिक और सामाजिक स्तर पर उल्लेखनीय सफलताएं हासिल की हैं।

उल्लेखनीय है कि शिया मुस्लिम काउंसिल कॉन्गो किंशासा की स्थापना फरवरी 2015 में हुई थी, जिसमें 20 सदस्य हैं। यह संस्था राजधानी किंशासा में कई मस्जिदों और सांस्कृतिक केंद्रों का प्रबंधन संभालती है, जहाँ 800 से अधिक शिया लोग सीधे और 3 हजार से अधिक लोग अप्रत्यक्ष रूप से इससे जुड़े हुए हैं।

 

जामेअ मुदर्रेसीन हौज़ा इल्मिया क़ुम की कार्यकारी परिषद के सदस्य ने कहा: “जम्हूरिया इस्लामी ईरान प्रतिरोधी मोर्चे का केंद्र और धुरि है।”

जामेअ मुदर्रेसीन हौज़ा इल्मिया क़ुम की कार्यकारी परिषद के सदस्य हुज्जतुल-इस्लाम वल-मुस्लेमीन हुसैन बुनियादी ने हौज़ा न्यूज़ के रिपोर्टर से बातचीत में ग़ज़्ज़ा की हालिया सूरत-ए-हाल और जंगबंदी का ज़िक्र करते हुए कहा: “अमरीकी राष्टर्पति ट्रम्प ने मध्य एशिया के दौरे के दौरान बार-बार जम्हूरिया इस्लामी ईरान का नाम लिया जो इस बात की आलामत है कि ईरान ख़ित्ते में असरअंदाज़ किरदार रखता है।”

उन्होंने कहा: “ग़ज़्ज़ा की जंग ने दुनिया के सामने एक ख़बीस और मुजरिमाना गिरोह की चरम दरिंदगी को उजागर कर दिया जो न किसी अंतर्राष्ट्रीय क़ानून का एहतराम करता है और न ही इंसानी उसूलों का।”

हुज्जतुल-इस्लाम हुसैन बुनियादी ने कहा: “इजराइली हुकूमत का हक़ीक़ी चेहरा अब दुनिया वालों पर ज़ाहिर हो चुका है। दो साल पहले दुनिया के लोग इस हुकूमत के बारे में क्या सोचते थे और आज क्या है? आज सब पर इस हुकूमत की इस्तिकबारी और ज़िद्द-ए-इंसानी रविश का पर्दा फ़ाश हो गया है।”

उन्होंने जम्हूरिया इस्लामी ईरान को प्रतिरोध मोर्चे का केंद्र बताते हुए कहा: “ट्रम्प के बयानात में बार-बार ईरान का ज़िक्र होना यह ज़ाहिर करता है कि ख़ित्ते में असर व रसूख़ का मरकज़ ईरान है।”

जामेअ मुदर्रेसीन के इस सदस्य ने मजीद कहा: “कभी वह जम्हूरिया इस्लामी ईरान से ताल्लुक़ात की बात करते हैं और कभी धमकियाँ देते हैं — यह सब नफ़्सियाती खेल हैं। लेकिन इन सब बातों का ख़ुलासा यही है कि वो प्रतिरोध की धुरी को ईरान समझते हैं।”

हुज्जतुल-इस्लाम वल-मुस्लिमीन बुनियादी ने कहा: “हालिया अर्से में मिस्र के राष्ट्रपति की ओर से ईरान के राष्ट्रपति या दूसरे ईरानी अधिकारियो को शर्म-अल-शेख़ कांफ़्रेंस में शिरकत का निमंत्रण देना और जम्हूरिया इस्लामी ईरान का उस दावत को मुस्तरद कर देना एक अत्यंत सोचा समझा फ़ैसला था। इस इनकार की वज्ह यह है कि ईरान अपने अह्द, नारों और आरमानों पर क़ायम है और वो कभी भी उन क़ातिलों के साथ एक मेज़ पर नहीं बैठेगा जो मज़लूमों और दुनिया के हुर्रियत-पसंदों के क़ातिल हैं।”

उन्होंने कहा: “जो लोग वार्ता की बात करते हैं, उन्हें यह समझना चाहिए कि उनका मुख़ातिब कौन है। अगर कोई फ़रीक़ फ़रेब और धोखे के ज़रिए अपनी मर्ज़ी मनवाना चाहता है तो वह वार्ती नहीं बल्कि अपमान है।”

 

इज़राइली विपक्ष नेता यायर लैपिड ने स्वीकार किया है कि ग़ाज़ा युद्धविराम समझौते के बावजूद इस्राइल को अपनी इतिहास के सबसे खतरनाक राजनीतिक संकट का सामना करना पड़ रहा है।

इज़राइली विपक्ष नेता यायर लैपिड ने स्वीकार किया है कि ग़ाज़ा युद्धविराम समझौते के बावजूद इस्राइल को अपनी इतिहास के सबसे खतरनाक राजनीतिक संकट का सामना करना पड़ रहा है।

लेबनानी न्यूज चैनल अलमयादीन के अनुसार, लापीद ने कहा कि वैश्विक स्तर पर फिलिस्तीनी राज्य को मान्यता देने की प्रक्रिया तेजी से बढ़ रही है और अब तक 142 देशों ने फिलिस्तीन को आधिकारिक रूप से मान्यता दे दी है।

उन्होंने बताया कि नॉर्वे का सरकारी निवेश फंड अधिकृत फिलिस्तीनी क्षेत्रों से अपना पूंजी वापस ले रहा है, जबकि कई अंतरराष्ट्रीय कंपनियां इज़राइली परियोजनाओं से अपना सहयोग समाप्त कर रही हैं।

लापीद के अनुसार, यूरोपीय बाजारों में अतिक्रमणकारी इज़राइली उत्पादों की बिक्री रुक गई है और इन उत्पादों को चुपचाप दुकानों की शेल्फों से हटाया जा रहा है।

उन्होंने यह भी कहा कि इज़राइली नेतृत्व के कई उच्च पदाधिकारी अपने पदों से इस्तीफा दे चुके हैं, जो इस संकट की गंभीरता को दर्शाता है।

 

 हुज्जतुल इस्लाम कोहसारी जो की हौज़ा एल्मिया के संचार एवं अंतर्राष्ट्रीय मामलों के प्रमुख हैं उन्होने कहा है कि वर्ष 1447, जो पैगंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद स.अ.व. की 1500वीं जयंती का वर्ष है, मुस्लिम उम्माह के लिए एक ऐतिहासिक और स्वर्णिम अवसर है। उन्होंने कहा कि इस अवसर का शैक्षिक,तब्लीग़ और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उपयोग करते हुए हमें पैग़ाम-ए-नबवी का प्रसार करना चाहिए, इस्लामी उम्माह की एकता को मजबूत करना चाहिए और फिलिस्तीन जैसे वैश्विक मुद्दों के समाधान के लिए एक संयुक्त रणनीति तैयार करनी चाहिए।

हुज्जतुल इस्लाम कोहसारी जो की हौज़ा एल्मिया के संचार एवं अंतर्राष्ट्रीय मामलों के प्रमुख हैं उन्होने कहा है कि वर्ष 1447, जो पैगंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद स.अ.व. की 1500वीं जयंती का वर्ष है, मुस्लिम उम्माह के लिए एक ऐतिहासिक और स्वर्णिम अवसर है।

उन्होंने कहा कि इस अवसर का शैक्षिक,तब्लीग़ और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उपयोग करते हुए हमें पैग़ाम-ए-नबवी का प्रसार करना चाहिए, इस्लामी उम्माह की एकता को मजबूत करना चाहिए और फिलिस्तीन जैसे वैश्विक मुद्दों के समाधान के लिए एक संयुक्त रणनीति तैयार करनी चाहिए।

हौज़ा ए इल्मिया के संचार एवं अंतर्राष्ट्रीय मामलों के प्रमुख ने घोषणा की है कि इस महान अवसर पर हौज़ा एल्मिया की ओर से राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न शैक्षिक, बौद्धिक, सांस्कृतिक और प्रचारात्मक कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे।

उन्होंने बताया कि इस प्रस्ताव को वैश्विक इस्लामी संस्थानों और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर स्वीकृति मिली है और अब सरकार, हौज़ा ए इल्मिया हौज़ा से जुड़े संस्थान और अन्य संबंधित संगठन इस दिशा में सक्रिय हैं।

हुज्जतुल इस्लाम हुसैनी कोहसारी के अनुसार, इन कार्यक्रमों में शैक्षिक एवं शोध संबंधी चर्चाएं, विश्वविद्यालय और हौज़ा ए इल्मिया के संयुक्त कार्यक्रम, महिलाओं और युवाओं के लिए विशेष सत्र, कलात्मक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम और अंतर-धर्म संवाद शामिल होंगे।

उन्होंने कहा कि वर्तमान वैश्विक परिस्थितियां, विशेष रूप से प्रतिरोध अक्ष और गाजा की स्थिति, इस अवसर के महत्व को कई गुना बढ़ा देती हैं। इस वर्ष को उम्माह के पुनर्निर्माण, जागरूकता और वैश्विक एकजुटता को बढ़ावा देने के लिए एक नई शुरुआत में बदलना होगा।

उन्होंने आगे कहा कि मीडिया, शैक्षिक केंद्रों और बौद्धिक संस्थानों को चाहिए कि वे सीरत-ए-नबवी के विभिन्न पहलुओं को आधुनिक और प्रभावी तरीके से प्रस्तुत करें ताकि नई पीढ़ी और बौद्धिक वर्ग तक रसूल-ए-अकरम स.अ.व. का सार्वभौमिक संदेश पहुंचा सके।

हौज़ा ए इल्मिया के संचार एवं अंतर्राष्ट्रीय मामलों के प्रमुख ने इस अवसर पर अल-अजहर (मिस्र), मजामए फिक़ही जेद्दा और अन्य वैश्विक संस्थानों के साथ बौद्धिक एवं व्यावहारिक सहयोग की आवश्यकता पर भी जोर दिया और कहा कि इस पवित्र वर्ष में इस्लामी उम्माह की सामूहिक समस्याओं, विशेष रूप से फिलिस्तीन के मुद्दे को एक एकजुट और प्रभावी तरीके से दुनिया के सामने पेश किया जाएगा।