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इस्लामी जगत के मतभेद का कारण इस्राईल, ज़ायोनी शासन के मिटते ही एकजुट हो जाएगा इस्लामी समुदाय

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इस्लामी जगत के मतभेद का कारण इस्राईल, ज़ायोनी शासन के मिटते ही एकजुट हो जाएगा इस्लामी समुदाय

ईदुल फ़ित्र के दिन ईरान के वरिष्ठ अधिकारियों, तेहरान में तैनात इस्लामी देशों के राजदूतों तथा जनता के विभिन्न वर्गों के हज़ारों लोगों ने इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता से मुलाक़ात की।

ईद की नमाज़ के कुछ देर बाद होने वाली इस मुलाक़ात में इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने भाषण देते हुए कहा कि इस्लामी जगत के वैभव और गरिमा का सबसे महत्वपूर्ण कारक इस्लामी समुदाय की एकता तथा विवादों का समाधान है।

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने ज़ोर देकर कहा कि इस्राईल इस इलाक़े में तथा इस्लामी देशों के बीच मतभेद पैदा करने वाली प्रमुख वजह है। उन्होंने कहा कि इस्राईल की सबसे बड़ी समस्या उसका ग़ैर क़ानूनी अस्तित्व है, जायोनी शासन जिसकी स्थापना ग़लत आधारों पर हुई है ईश्वर की कृपा और मुस्लिम राष्ट्रों के हौसले से निश्चित रूप से मिट जाएगा।

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता का कहना था कि इस समय इलाक़े में साम्राज्यवादी शक्तियों की रणनीति मुसलमानों के बीच मतभेद और विवाद पैदा करना है। आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई ने कहा कि अपराधी अमरीका तथा ज़ायोनियों की इस साज़िश का मुक़ाबला करने की एक मात्र मार्ग दुशमन की साज़िशों का ज्ञान तथा उसके मुक़ाबले में डट जाना है।

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता के अनुसार साम्राज्यवाद की नीतियों के मुक़ाबले में राष्ट्रों के डट जाने के संबंध में इस्लामी जगत की सरकारों और राजनैतिक, धार्मिक व सांस्कृतिक हस्तियों की ज़िम्मेदारी बहुत बड़ी है।

आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई ने पश्चिमी एशिया के इलाक़े में ग़ैर क़ानूनी ज़ायोनी शासन की स्थापना के मूल उद्देश्य बयान करते हुए कहा कि एक लक्ष्य मुस्लिम राष्ट्रों के बीच मतभेद की आग भड़काना है लेकिन एतिहासिक अनुभवों से साबित होता है कि ज़ायोनी शासन जिसे अपने अस्तित्व की अवैधता की समस्या का सामना है ज़्यादा टिक नहीं पाएगा।

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता का कहना था कि इलाक़े की कुछ कमज़ोर इच्छाशक्ति वाली सरकारों का ज़ायोनी शासन के साथ विदित या गुप्त रूप से कूटनैतिक रिश्ते स्थापित करना या अमरीका का अपना दूतावास तेल अबीब से बैतुल मुक़द्दस स्थानान्तरित करना किसी भी समस्या को हल नहीं करेगा। आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई ने कहा कि इस शासन की स्थापना बल प्रयोग, धमकियों, नरसंहार और एक राष्ट्र को उसके घरबार से निर्वासित कर देने पर हुई है इसीलिए इस्लामी राष्ट्रों के दिलों में ज़ायोनी शासन के अस्तित्व की अवैधता की बात बैठी हुई है कोई भी दुनिया के एतिहासिक मानत्रित्र से फ़िलिस्तीन का नाम नहीं मिटा सकता। निर्वासित कर देने पर हुई है इसीलिए इस्लामी राष्टऔर

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने एक बार फिर ईरान का ठोस स्टैंड दोहराते हुए फ़िलिस्तीनियों में जनमत संग्रह कराए जाने पर ज़ोर दिया जिसमें फ़िलिस्तीनी मुसलमान, ईसाई और यहूदी सब शामिल हों और इस जनमत संग्रह के आधार पर नई शासन व्यवस्था की स्थापना की जाए। आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई ने कहा कि इस प्रकार कर जनमत संग्रह कराना और फिर फ़िलिस्तीनियों की इच्छा के अनुसार सरकार का गठन वास्तव में जाली ज़ायोनी शासन के मिट जाने के अर्थ में है। और निश्चित रूप से एसा होकर रहेगा।  आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई ने कहा कि ज़ायोनी शासन के मिटते ही इस्लामी जगत में एकता और गरिमा बहाल हो जाएगी।

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता के भाषण से पहले राष्ट्रपति रूहानी ने अपने संक्षिप्त भाषण में एकता और एकजुटता पर ज़ोर दिया। उन्होंने कहा कि इस बात की ज़रूरत है कि अन्य विभाग विशेष रूप से आम जनता सरकार की भरपूर मदद करे।

डाक्टर रूहानी ने कहा कि आज जिस दुशमन का सामना है उसके पास अनुभव और विवेक का अभाव है दुशमन इस कोशिश में है कि केवल ईरानी राष्ट्र के मामले में नहीं बल्कि अंतर्राष्ट्रीय व क्षेत्रीय स्तर के समझौतों के तहत भी अपनी प्रतिबद्धताओं का उल्लंघन करे।

 

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