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अमरीका, अफ़ानिस्तान में युद्ध हार गया है

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अमरीका, अफ़ानिस्तान में युद्ध हार गया है

17 वर्ष पूर्व 7 अक्तूबर 2001 को अमरीका ने अफ़ग़ानिस्तान पर हमला किया था, लेकिन 17 वर्ष बीत जाने के बाद वाशिंगटन और उसके घटकों को न केवल इस देश में कोई सफलता नहीं मिली है, बल्कि वे यह जंग हार गए हैं।

जिस तरह से अफ़ग़ानिस्तान की अधिकांश जनता का मानना है कि अमरीका, उनके देश में यह युद्ध हार गया है, उसी तरह अमरीकी जनता का भी यही मानना है कि उनका देश अफ़ग़ानिस्तान में युद्ध हार रहा है और अमरीकी सैनिकों को इस देश से निकल जाना चाहिए।

अमरीका ने नाइन इलेवन की घटना के बाद अल-क़ायदा और तालिबान को ख़त्म करने के दावे के साथ अफ़ग़ानिस्तान पर धावा बोल दिया था। इसके अलावा अमरीका का दावा था कि वह चरमपंथ को मिटाकर इश देश में शांति व्यवस्था की स्थापना कर देगा। हालांकि ज़मीनी सच्चाई यह बताती है कि न केवल अमरीका अपने घोषित लक्ष्यों में से एक भी हासिल नहीं कर सका है, बल्कि अफ़ग़ानिस्तान पहले से भी अधिक अस्थिर हुआ है और आतंकवाद एवं चरमपंथ का विस्तार पहले से भी अधिक हुआ है। इसके अलावा, अमरीकी सैनिकों की उपस्थिति में इश देश में मादक पदार्थों की पैदावार एवं तस्करी में अत्यधिक वृद्धि हुई है।

दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि अमरीकी सेना कि जिसने अफ़ग़ानिस्तान की जनता को आतंकवाद एवं चरमपंथ से मुक्ति दिलाने के नारे के साथ काबुल पर हमला किया था, आज आतंकवाद के प्रसार एवं अस्थिरता का मुख्य कारण वह ख़ुद है।

अफ़ग़ानिस्तान में सक्रिय एक ग़ैर सरकारी संगठन का कहना है कि इस साल केवल सितम्बर के महीने में अमरीका और नाटो के हवाई हमलों में 100 से अधिक आम नागरिक मारे गए हैं। इस संदर्भ में काबुल यूनिवर्सिटी के एक प्रोफ़ैसर का कहना है कि अमरीकी सैनिकों की उपस्थिति हमारे देश में अशांति एवं अस्थिरता का मुख्य कारण है। अमरीका का लक्ष्य शुरू से ही शांति की स्थापना नहीं है, बल्कि उसका लक्ष्य कुछ और है, इसीलिए वह इस देश में स्थिरता नहीं चाहता है।

राजनीतिक मामलों के विशेषज्ञ माइकल ह्यूज़ का मानना है कि अमरीका की नज़र अफ़ग़ानिस्तान के खनिज संसाधनों पर है, जिसके लिए उसे इस देश में बने रहने के लिए कोई न कोई बहाना तो चाहिए होगा।     

 

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