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ग़ज़ा नरसंहार में अमेरिका की कितनी भूमिका है?

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ग़ज़ा नरसंहार में अमेरिका की कितनी भूमिका है?

ब्रिटिश अखबार द गार्जियन ने एक विस्तृत विश्लेषण में पर्दा फ़ाश किया है कि "अमेरिका के बिना शर्त समर्थन के बिना, इज़राइल ग़ज़ा की जनता को भूखा नहीं मार सकता था, उनके बुनियादी ढांचे को नष्ट नहीं कर सकता था और इस व्यवस्थित नरसंहार को जारी नहीं रख सकता था।

द गार्जियन के स्तंभकार मेहदी हसन ने जोर देकर कहा है कि अमेरिका न केवल इज़राइल के अपराधों पर चुप रहा है, बल्कि सक्रिय रूप से इनमें शामिल भी है। वाशिंगटन को अपने आप को निर्दोष दिखाने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।

 एमनेस्टी इंटरनेशनल, ह्यूमन राइट्स वॉच, डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स और यहां तक कि इज़राइली मानवाधिकार संगठन बेटसेलेम भी मानता है कि ग़ज़ा में जो कुछ हो रहा है, वह फिलिस्तीनी समाज को व्यवस्थित रूप से मिटाने की एक योजना है। इज़राइली सेना के सेवानिवृत्त जनरल इत्जाक ब्रिक ने स्वीकार किया है कि अमेरिकी हथियारों के बिना, इज़राइल ग़ज़ा के खिलाफ युद्ध जारी नहीं रख सकता था।

 गार्जियन की रिपोर्ट के अनुसार, ट्रम्प और उनके रिपब्लिकन सहयोगियों ने बार-बार तेल अवीव को ग़ज़ा में कुछ भी करने की खुली छूट दी है। कांग्रेस के कुछ सदस्यों ने तो ग़ज़ा पर परमाणु बम गिराने की वकालत भी की है लेकिन डेमोक्रेट्स भी इस मामले में अलग नहीं हैं, राष्ट्रपति बाइडेन ने इज़राइल को 2000 पाउंड के बम दिए, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में युद्धविराम प्रस्तावों को वीटो किया और इज़राइल को हथियारों की आपूर्ति जारी रखी।

 अमेरिकी मीडिया ने, चाहे वह रूढ़िवादी हो या उदारवादी, पक्षपातपूर्ण रिपोर्टिंग करके फिलिस्तीनी पीड़ितों को पृष्ठभूमि में धकेल दिया और इजरायली अपराधों को कम करके आंका। शब्द जैसे "हत्या" और "अपराध" आमतौर पर केवल इजरायली पीड़ितों के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं। कुछ अमेरिकी विश्वविद्यालयों और टेक कंपनियों ने भी ग़ज़ा युद्ध के विरोधियों को दबाकर इस नरसंहार में सहयोग दिया है।

 पश्चिमी थिंक टैंक्स का मानना है कि "इज़राइल के प्रति अमेरिका का बिना शर्त समर्थन अमेरिकी विदेश नीति के गहरे संकट को दर्शाता है। ब्रुकिंग्स इंस्टीट्यूशन की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि "ग़ज़ा युद्ध में अमेरिकी भागीदारी ने न केवल वाशिंगटन की वैश्विक विश्वसनीयता को नष्ट किया है, बल्कि अमेरिका और वैश्विक जनमत के बीच गहरी खाई पैदा कर दी है। रिपोर्ट के अनुसार, "अमेरिका ने इज़राइल के अपराधों का समर्थन करके अंतरराष्ट्रीय कानून के मूल सिद्धांतों को ताक पर रख दिया है और वैश्विक अलगाव को तेज कर दिया है।

 यूरोपीय संघ के पूर्व विदेश एवं सुरक्षा नीति प्रमुख जोसेप बोरेल ने द गार्जियन में प्रकाशित एक लेख में यूरोपीय संघ को इज़राइल के अपराधों का सहयोगी बताया है। बोरेल ने लिखा: जिनके पास सुनने के लिए कान और देखने के लिए आंखें हैं, उनके लिए इसमें कोई संदेह नहीं कि इजरायली सरकार ग़ज़ा में नरसंहार कर रही है, नागरिकों को व्यवस्थित रूप से बुनियादी ढांचे को नष्ट करने के बाद मार रही है और भूखा मार रही है। साथ ही, इजरायली सेना और बस्तीवादी पश्चिमी तट और पूर्वी यरुशलम में अंतरराष्ट्रीय कानून व मानवाधिकारों का बार-बार व बड़े पैमाने पर उल्लंघन कर रहे हैं।"

 बोरेल ने आगे लिखा: "ग़ज़ा में हो रहे नरसंहार के प्रति यूरोप की चुप्पी और निष्क्रियता ने न केवल यूरोपीय संघ के आदर्शों को कमजोर किया है, बल्कि इसे इजरायली अपराधों का साझीदार बना दिया है।" उनके अनुसार, "यूरोपीय संघ के पास इज़राइल पर दबाव डालने के कई उपकरण हैं - व्यापारिक व वित्तीय सहयोग रोकने से लेकर मानवाधिकार शर्तों वाले समझौतों को निलंबित करने तक। लेकिन इज़राइल द्वारा बार-बार शर्तों का उल्लंघन किए जाने के बावजूद यूरोप ने इन उपायों को लागू करने से इनकार कर दिया है, जिससे उसकी कानूनी वैधता खत्म हो गई है।"

ब्रिटिश थिंक टैंक चैथम हाउस ने अपने विश्लेषण में कहा है कि ग़ज़ा नरसंहार के प्रति यूरोप की चुप्पी ने न केवल बहुपक्षवाद के सिद्धांतों को रौंदा है, बल्कि पश्चिम एशिया और अफ्रीका में उसकी भूमिका को भी संकट में डाल दिया है। संस्था ने सिफारिश की है कि यूरोपीय संघ को तुरंत इज़राइल के साथ सहयोग समझौते को निलंबित करना चाहिए और हथियारों का निर्यात रोकना चाहिए।

 आज वाशिंगटन और ब्रसेल्स दोनों एक महत्वपूर्ण परीक्षा के सामने हैं। इज़राइल के अपराधों के प्रति उनकी चुप्पी और समर्थन ने न केवल उनकी नैतिक व राजनीतिक साख को ध्वस्त किया है, बल्कि वैश्विक स्तर पर यह स्पष्ट कर दिया है कि "अमेरिका और यूरोप नरसंहार और मानवता के खिलाफ अपराधों में सहभागी हैं।" भविष्य में इस दौर को "आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई" के रूप में नहीं, बल्कि "मानवता के खिलाफ अपराध में साझेदारी" के रूप में याद किया जाएगा।

 

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