भारत में वली ए फकीह के प्रतिनिधि हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन अब्दुल मजीद हकीम ईलाही ने एक बयान में उम्माते मुस्लिमा से एकता, एकजुटता और आपसी सम्मान को बढ़ावा देने की अपील करते हुए कहा कि आंतरिक मतभेद न केवल राष्ट्र की प्रतिष्ठा और गौरव को कमजोर करता हैं बल्कि दुश्मनों को हस्तक्षेप का मौका भी प्रदान करता हैं।
भारत में वली ए फकीह के प्रतिनिधि हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन अब्दुल मजीद हकीम ईलाही ने एक बयान में उम्माते मुस्लिमा से एकता, एकजुटता और आपसी सम्मान को बढ़ावा देने की अपील करते हुए कहा कि आंतरिक मतभेद न केवल राष्ट्र की प्रतिष्ठा और गौरव को कमजोर करता हैं बल्कि दुश्मनों को हस्तक्षेप का मौका भी प्रदान करता हैं।
उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत जैसे बहुसांस्कृतिक और महान देश में मुसलमानों को इस्लामी एकता और अंतरधार्मिक सहयोग को बढ़ावा देना चाहिए ताकि न केवल इस्लामी राष्ट्र बल्कि पूरा देश विकास और समृद्धि के मार्ग पर आगे बढ़ सके।
पूरा बयान इस प्रकार है:
بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيْمِ
وَاعْتَصِمُوا بِحَبْلِ اللَّهِ جَمِيعًا وَلَا تَفَرَّقُوا
(आले इमरान 103) और सभीमिलकर अल्लाह की रस्सी (कुरआन) को मजबूती से थाम लो और तुम में फूट न पड़ने दो)
आज मुस्लिम उम्मा, विशेष रूप से दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों में और खासकर महान, विविध और बहुसांस्कृतिक देश भारत में, पहले से कहीं अधिक एकता, एकजुटता और सामंजस्य की आवश्यकता है।
आंतरिक मतभेद और धार्मिक विभाजन न केवल उम्मा की प्रतिष्ठा और गौरव को नुकसान पहुंचाते हैं बल्कि इस्लाम के दुश्मनों को हस्तक्षेप और प्रभुत्व प्राप्त करने का अवसर भी प्रदान करता हैं।
कुरआन करीम ने बहुत स्पष्ट रूप से आदेश दिया है और सभी मिलकर अल्लाह की रस्सी को मजबूती से थाम लो और तुम में फूट न पड़ने दो।
इन प्रकाशमय शिक्षाओं के प्रकाश में सभी मुसलमानों का कर्तव्य है कि वे केवल धार्मिक सिद्धांतों और समानताओं में ही नहीं बल्कि एक-दूसरे की पवित्र वस्तुओं का सम्मान करने में भी एकजुटता अपनाएं, और ऐसे हर कथन और कार्य से परहेज करें जो विभिन्न मतों और संप्रदायों के अनुयायियों की भावनाओं को आहत करे। आपसी विश्वासों और धार्मिक परंपराओं के सम्मान पर आधारित दृष्टिकोण ही वास्तविक विश्वास और स्थायी एकता की नींव है।
इस्लाम ने हमें अन्य धर्मों के अनुयायियों के साथ भी सकारात्मक संवाद और शांतिपूर्ण सहअस्तित्व का आह्वान किया है। कुरआन मजीद की आयत है:
"لَا يَنْهَاكُمُ اللَّهُ عَنِ الَّذِينَ لَمْ يُقَاتِلُوكُمْ فِي الدِّينِ وَلَمْ يُخْرِجُوكُمْ مِنْ دِيَارِكُمْ أَنْ تَبَرُّوهُمْ وَتُقْسِطُوا إِلَيْهِمْ"
इस आधार पर मुसलमानों का दायित्व है कि वे विकास, सुधार और शांति के क्षेत्र में अपने गैर-मुस्लिम भाइयों और बहनों के साथ सहयोग करें ताकि ऐसा समाज बने जिसमें सभी निवासी शांति, सुरक्षा और आपसी सम्मान के साथ जीवन व्यतीत कर सकें।
भारतीय मुसलमान, जो ज्ञान, सभ्यता और साम्राज्यवाद विरोधी संघर्ष के शानदार इतिहास के धनी हैं, हमेशा से इस धरती की पहचान और सभ्यता के निर्माण में मूलभूत भूमिका निभाते रहे हैं। आज भी वह इस्लामी एकता और अंतरधार्मिक सहयोग को मजबूत करके देश के विकास और समृद्धि में महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं।
मैं, भारत में वली ए फकीह के प्रतिनिधि के रूप में, सभी विद्वानों, बुद्धिजीवियों, वक्ताओं, शिक्षकों, शोधकर्ताओं, हौज़ा और विश्वविद्यालय के छात्रों, और विशेष रूप से राष्ट्र के युवाओं को आमंत्रित करता हूं कि वे संवाद और सहयोग, एकजुटता और विश्वास, और मुस्लिम राष्ट्र की गरिमा और भारत देश के विकास के लिए कंधे से कंधा मिलाकर चलें।
आशा है कि कुरआन करीम की शिक्षाओं और पैगंबर-ए-मकरम सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व सल्लम के पवित्र जीवन चरित्र के सहारे, मुस्लिम उम्मा पूरी दुनिया में एकता, सम्मान और साझा विकास के मार्ग पर मजबूती से आगे बढ़ेगी।
अब्दुल मजीद हकीम इलाही प्रतिनिधि,वली-ए-फकीह, भारत