इस्लामी क्रांति के नेता ने ज़ोर देकर कहा है कि दुश्मन पर भरोसा मत करो।
ईरान की इस्लामी क्रांति के नेता हज़रत आयतुल्लाह इमाम ख़ामेनेई ने 1399 हिजरी-शम्सी में इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (आईआरजीसी) की क़ुद्स फ़ोर्स के पूर्व कमांडर शहीद जनरल क़ासिम सुलैमानी की शहादत की बरसी के अवसर पर ज़िम्मेदार व्यक्तियों से मुलाक़ात में कहा: दुश्मन पर भरोसा मत करो यह मेरी अंतिम और निश्चित सिफ़ारिश है। आपने देखा कि ट्रम्प का अमेरिका और ओबामा का अमेरिका आपसे कैसे पेश आया। बेशक, केवल ट्रम्प ही नहीं जिसने ईरानी राष्ट्र के साथ बुरा किया, बल्कि तीन यूरोपीय देश इंग्लैंड, फ़्रांस और जर्मनी – ने भी इसी तरह बुरा व्यवहार किया। इन तीन यूरोपीय देशों ने चरम स्तर की बदअमली की और ईरानी राष्ट्र के सामने नीचता, दोगलापन और कपट दिखाया।
परमाणु समझौते के पक्षकारों ने अपने वादों पर अमल नहीं किया
इसी संदर्भ में इमाम ख़ामेनेई ने ईदे नौरोज़ के अवसर पर अपने भाषण में ईरानी राष्ट्र को संबोधित करते हुए कहा था कि हमने परमाणु समझौते के मामले में जल्दबाज़ी की हमें जल्दबाज़ी नहीं करनी चाहिए थी उनके सारे काम काग़ज़ पर थे हमारे सारे काम ज़मीन पर थे हमने जल्दबाज़ी की और अपने काम पूरे कर दिए लेकिन उन्होंने अपने काम पूरे नहीं किए, अपने वादों पर अमल नहीं किया। बेशक, यह एक बहुत अहम मसला है कि हमें इस का ध्यान रखना चाहिए कि हमारा सब्र और धैर्य बहुत है और हम अपना काम कर रहे हैं हम इनके काम पर भरोसा नहीं करते इनके वादों का हमारे लिए कोई मूल्य नहीं है।
दुश्मन के सामने झुकना नहीं और उस पर भरोसा न करना
इसी तरह इस्लामी क्रांति के नेता ने ईदे मबअस अर्थात पैग़म्बर की पैग़म्बरी की घोषणा के अवसर पर टेलीविज़न भाषण में भी ज़ोर देकर कहा: हमें यह जानना चाहिए कि इस भारी अमानत के साथ, जो इस्लामी क्रांति ने हमारे कंधों पर और ईरानी राष्ट्र के कंधों पर रखी है और उनके सामने जो सुख और मुक्ति का मार्ग खोला है, हमारी ज़िम्मेदारियाँ हैं इन ज़िम्मेदारियों में से एक है – हक़ और सब्र की ताकीद, दुश्मन की पहचान, दुश्मन के सामने डटे रहना, दुश्मन के सामने समर्पण न करना और इस धूर्त दुश्मन पर भरोसा न करना।
फ़िलिस्तीनियों का असली दुश्मन अमेरिका, इंग्लैंड और यहुदियों के दुष्ट सत्ताधारी हैं
इसी संदर्भ में इस्लामी क्रांति के नेता ने विश्व क़ुद्स दिवस के मौक़े पर टेलीविजन भाषण में कहा: फ़िलिस्तीनियों की एकता के दुश्मन, ज़ायोनी शासन, अमेरिका और कुछ अन्य राजनीतिक शक्तियाँ हैं मगर यदि फ़िलिस्तीनी समाज के भीतर की एकता न टूटे तो बाहरी दुश्मन कुछ भी कर नहीं पाएँगे। इस एकता का केन्द्र आंतरिक जिहाद और दुश्मनों पर भरोसा न करना होना चाहिए। फ़िलिस्तीनियों का असली दुश्मन — यानी अमेरिका और इंग्लैंड और दुष्ट ज़ायोनी शासन को फ़िलिस्तीनियों की नीतियों का सहारा व आधार नहीं बनाना चाहिए। फ़िलिस्तीनियों को चाहे वे ग़ाज़ा में हों, क़ुद्स और पश्चिमी किनारे में हों, 1948 के इलाक़ों में हों या यहाँ तक कि शरणार्थी शिविरों में हों — सब एक इकाई बनाते हैं और उन्हें एकदूसरे से जुड़े रहने की रणनीति अपनानी चाहिए हर हिस्सा दूसरे हिस्सों की रक्षा करे और उन पर दबाव पड़ने पर अपने पास उपलब्ध उपकरणों का इस्तेमाल करे।