Print this page

हज़रत मासूमा स.अ.हज़रत ज़हेरा स.अ. की यादगार

Rate this item
(0 votes)
हज़रत मासूमा स.अ.हज़रत ज़हेरा स.अ. की यादगार

हरम ए मुत्तहर हज़रत मासूमा सलामुल्लाह अलैहा में आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए हरम के ख़तीब ने कहा कि औलिया ए ख़ुदा अल्लाह के नेक और करीब लोग हैं हज़रत मासूमा स.अ. के हरम को हज़रत फ़ातिमा ज़हेरा स.अ.की यादगार समझते थे और यहाँ आकर तवस्सुल किया करते थे।

हरम के खतीब हज़रत मासूमा स.ल.के हुज्जतुल वल इस्लाम हामिद काशानी ने अपने संबोधन में कहा,इस्लाम के आरंभ से अब तक हज़रत ख़दीजा (स.ल.) हज़रत फ़ातिमा ज़हेरा (स.ल.)और हज़रत उम्मे सल्मा (स.ल.) जैसी महान महिलाओं ने हमेशा रसूल अक़रम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और अहल-ए-बैत अलैहिमुस्सलाम के साथ रहकर दीन-ए-ख़ुदा की नसरत की और इस्लामी इतिहास उनकी बहादुर और समर्पित कोशिशों का नतीज़ा है।

उन्होंने हज़रत उम्मे सल्मा स.ल.की ज़िन्दगी से उदाहरण देते हुए बताया कि इस नेक महिला ने उस दौर के शासकों की लालच और रिश्वत को ठुकराया और अपने ईमान को कभी बेचने को तैयार नहीं हुईं, भले ही इस वजह से उनका वज़ीफ़ा एक साल तक बैतुल मॉल से बंद कर दिया गया उन्होंने कठिनाइयों के बावजूद हक़ पर डटे रहकर यह साबित किया कि एक मोमना औरत समाज में रोशनी फैला सकती है।

हुज़्ज़तुल इस्लाम काशानी ने आगे कहा,हज़रत उम्मे सल्मा ने अपनी सच्चाई और ख़ुलूस से आयत-ए-तत्हीर कुरआन की वह आयत जो अहल-ए-बैत की पवित्रता की तस्दीक करती है की व्याख्या की और गवाही दी कि नबी अक़रम (स.ल.) के खास अहल ए बैत केवल पंजतंन-ए-आल-ए-अबा हैं। उनके इस कार्य के कारण नबी की दूसरी पत्नियों में से कोई भी इस ख़ासियत का दावा नहीं कर सकीं।

खतीब ने हज़रत उम्मे सल्मा (स.ल.) की इमाम हसन और इमाम हुसैन (अ.स) से मोहब्बत की ओर इशारा करते हुए कहा,वह ऐसी नानी थीं जिनके घर में रसूल की बेटी (स.ल.) के बच्चे चैन से रहते थे। यह दो तरफ़ा मोहब्बत इस महान महिला के लिए एक बड़ी फज़ीलत थी।

उन्होंने बात को हज़रत फ़ातिमा मासूमा (स.ल.) की तरफ मोड़ते हुए कहा, इमामों की संतान सभी समान नहीं थीं, कुछ ने तो इमाम रज़ा (अ.स.) की भी तौहीन की, लेकिन हज़रत मासूमा (स.ल.) ने अपने भाई की नसरत करके उस मुकाम तक पहुंची कि कई इमामे मासूमीन (अ.ल.) ने उनकी ज़ियारत के फ़ज़ाइल के बारे में हदीसें बयान कीं।

हुज़्ज़तुल इस्लाम काशानी ने क़ुम में हज़रत मासूमा (स.ल.) की मौजूदगी के प्रभाव पर प्रकाश डालते हुए कहा, हालांकि क़ुम पहले भी एक धार्मिक शहर था, लेकिन जब हज़रत मासूमा (स.ल.) यहाँ दफन हुईं तो यह ज़मीन हरम-ए-आहल-ए-बैत" और इल्म का केंद्र बन गई। इसी समय से हौज़ा इल्मिया क़ुम की स्थापना हुई, और आज यहाँ से अहल-ए-बैत के उलूम दुनिया के कोनों तक पहुँच रहे हैं। जिस तरह पहले नजफ अशरफ शीअत का केंद्र था, आज क़ुम इल्मी तौर पर शीअत का केंद्र है।

 

 

Read 6 times