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हज़रत इमाम रज़ा अ.स. की ज़ुबानी अहले क़ुम की मुनफ़रिद ख़ुसूसीयत

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हज़रत इमाम रज़ा अ.स. की ज़ुबानी अहले क़ुम की मुनफ़रिद ख़ुसूसीयत

 इमाम रज़ा अ.स.ने एक हदीस में अहले क़ुम को शियों के बीच मुमताज़ और जन्नत में एक ख़ास मुक़ाम के हामिल अफ़राद क़रार दिया है।

मासूमीन और अहले बैत अ.स की रिवायतों में इमाम रज़ा अ.स.के अहले क़ुम से मुतअल्लिक़ इर्शादात, ईमान और विलायत के बहुत मज़बूत रिश्ते की रौशन मिसालें हैं।

इमाम रज़ा अ.स.ने मोहब्बत भरे अंदाज़ में इस सरज़मीन और इसके निवासियों की अज़मत (महानता) को बयान फ़रमाया और उनके लिए रज़ा-ए-इलाही की दुआ की।

सफ़वान बिन याहया फरमाते हैं,एक दिन मैं इमाम रज़ा (अ.स) की ख़िदमत में हाज़िर था। गुफ़्तगू के दौरान क़ुम और अहले क़ुम का ज़िक्र आया और उनकी इमाम मेहदी (अ.स) से मोहब्बत का तज़किरा हुआ।

हज़रत इमाम रज़ा अ.स ने उन्हें मोहब्बत से याद किया और फ़रमाया,ख़ुदावंद उनसे राज़ी हो।

इसके बाद फ़रमाया,जन्नत के आठ दरवाज़े हैं, जिनमें से एक दरवाज़ा अहले क़ुम के लिए है। वे दूसरे शहरों के मुक़ाबले में हमारे शियों के मुमताज़ और बरग़ूज़ीदा अफ़राद हैं। ख़ुदावंद मुतआअल ने हमारी विलायत को उनकी फ़ितरत (स्वभाव) के साथ मिला दिया है।

 

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