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अय्याम-ए-फातिमिया;ग़म और विलायत के साथ तजदीद अहद का पैगाम

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अय्याम-ए-फातिमिया;ग़म और विलायत के साथ तजदीद अहद का पैगाम

उड़ी,जम्मू और कश्मीर की तहसील उड़ी जिला बारामूला के इलाके घाटी में अय्याम-ए-फातिमिया के अवसर पर एक भव्य शोक जुलूस निकाला गया, जिसमें घाटी, छोलां और आसपास के गांवों से बड़ी संख्या में मोमिनीन और अहलेबैत के शोकमनाने वालों ने हिस्सा लिया।

उड़ी,जम्मू और कश्मीर की तहसील उड़ी जिला बारामूला के इलाके घाटी में अय्याम-ए-फातिमिया के अवसर पर एक भव्य शोक जुलूस निकाला गया, जिसमें घाटी, छोलां और आसपास के गांवों से बड़ी संख्या में मोमिनीन और अहलेबैत के शोकमनाने वालों ने हिस्सा लिया।

इस भव्य शोक जुलूस का उद्देश्य रसूल स.अ.व. की बेटी, सैय्यदा फातिमा जहरा(स.अ.) की मज़लूमियत को याद करना, उनकी पवित्र सीरत को उजागर करना और उनके सत्य एवं न्याय के संदेश को आम लोगों के दिलों तक पहुंचाना था।

जुलूस के दौरान माहौल "या फातिमा अज़-जहरा स.अ."लब्बैक या जहरा(स.अ.)" और "या हुसैन(अ.स.)" के नारों से गूंज उठा।

इस मौके पर उलेमा ए किराम ने सैय्यदा-ए-कायनात(स.अ.) के फज़ाइल और मसाइब पर रौशनी डाली।

हौज़ा ए इल्मिया इमाम हादी(अ.स.) नूरख़्वाह उड़ी के मुनीम (प्रबंधक) हुज्जतुल इस्लाम वाल मुस्लिमीन सैय्यद दस्त-ए-अली नकवी ने विशेष संबोधन में कहा कि सैय्यदा फातिमा जहरा(स.अ.) न केवल नबी-ए-अकरम(स.अ.व.) की लख़्त-ए-जिगर थीं, बल्कि आप(स.अ.) का चरित्र इस्लामी समाज में इफ्फत तहारत (शुद्धता), शजाअत (साहस) और विलायत-ए-अली(अ.स.) से वफादारी की सबसे चमकदार निशानी है।

उन्होंने मोमिनीन को सैय्यदा जहरा(स.अ.) की शिक्षाओं पर अमल करने की सीख दी और कहा कि अय्याम-ए-फातिमिया केवल दुःख के दिन नहीं हैं, बल्कि विलायत के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को नवीकरण करने का अवसर भी हैं।शोक जुलूस के समापन पर इस्लाम के शहीदों और मुक़ाविमत के शहीदों को याद किया गया।

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