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अगर हौज़ा और यूनिवर्सिटी धर्मनिष्ठा के मार्ग पर चलते रहेंगे तो समाज भी सुधार के मार्ग पर आगे बढ़ेगा

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अगर हौज़ा और यूनिवर्सिटी धर्मनिष्ठा के मार्ग पर चलते रहेंगे तो समाज भी सुधार के मार्ग पर आगे बढ़ेगा

आयतुल्लाहfल उज़्मा जवाद आमोली ने फ़रमाया कि तक़वा, तौहीद, अक़्लानियत और अद्ल ही वे बुनियादें हैं जो न सिर्फ़ मुआशरे बल्कि हौज़ा और यूनिवर्सिटी को भी संभाले रखती हैं। अगर ये दोनों इल्मी मराकिज़ दीनदारी के रास्ते पर दुरुस्त सिम्त में गामज़न रहें तो पूरा मुआशरा भी दुरुस्त सिम्त में आगे बढ़ेगा।

आयतुल्लाह जवाद आमोली ने इंसानी हयात और मौत के फ़लसफ़े पर बात करते हुए फ़रमाया: “हम दुनिया में मिटने के लिए नहीं आए बल्कि खोल से निकलने के लिए आए हैं। हम इसलिए आए हैं कि मौत को मार दें, न कि ख़ुद मर जाएँ। यह पैग़ाम अम्बिया अलैहिमुस्सलाम का है। दुनिया में कोई और विचारधारा ऐसी नहीं जो यह कहे कि इंसान मौत को मग़लूब करता है।”

उन्होंने क़ुरआन करीम की आयत का हवाला देते हुए कहा: “अल्लाह तआला ने फ़रमाया — کُلُّ نَفْسٍ ذَائِقَةُ الْمَوْتِ (कुल्लो नफ़्सिन ज़एक़तुल मौत), यानी नफ़्स को मौत का स्वाद चखना है, न कि मौत हमें चखती है। स्वाद लेने वाला चीज़ को हज़्म करता है। हम मौत को चखते हैं और उसे मग़लूब कर देते हैं। मौत हमें फ़ना नहीं करती बल्कि हम मौत को फ़ना कर देते हैं।”

हज़रत आयतुल्लाह जवाद आमोली ने आख़िर में ज़ोर दिया कि “हमेशा रहने वाली हकीकत तक़वा, तौहीद, फ़ज़ीलत, अक़्लानियत और अद्ल है। यही अक़दारे मुआशरे, हौज़ा और यूनिवर्सिटी को संभालती हैं। अगर ये दोनों इदारें इन उसूलों पर अमलपेरा रहें तो पूरा समाज सही सिम्त में हरकत करेगा।”

 

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