जमीयत-ए-अमल-ए-इस्लामी बहरैन ने सऊदी अरब में क़तीफ़ से ताल्लुक़ रखने वाले तीन शिया युवकों को फाँसी दिए जाने को खुला राजनीतिक अपराध, न्याय व इंसाफ़ का स्पष्ट उल्लंघन और मानवाधिकारों के अंतरराष्ट्रीय सिद्धांतों की अवहेलना क़रार देते हुए अंतरराष्ट्रीय समुदाय से तत्काल और प्रभावी कार्रवाई की मांग की है।
सऊदी अरब में शिया आबादी के ख़िलाफ़ अत्याचार लगातार जारी हैं। इस वर्ष भी दिसंबर के अंतिम दिनों में और शहीद आयतुल्लाह शेख़ निम्र बाक़िर की दसवीं बरसी के अवसर पर सोशल मीडिया पर क़तीफ़ के तीन निर्दोष युवकों को फाँसी दिए जाने की ख़बर सामने आई, जिसने एक बार फिर आले सऊद सरकार के दमनकारी चेहरे को उजागर कर दिया है।
जमीयत-ए-अमल-ए-इस्लामी बहरीन ने इस बर्बर कार्रवाई की कड़ी निंदा करते हुए अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों तथा आलम-ए-इस्लाम और आलम-ए-अरब की संबंधित संस्थाओं से अपील की है कि वे केवल बयानों तक सीमित न रहें, बल्कि व्यावहारिक और ठोस क़दम उठाएँ।
बयान में कहा गया है कि क़तीफ़ के लोगों के ख़िलाफ़ संगठित और गंभीर मानवाधिकार उल्लंघन शहीद आयतुल्लाह निम्र (र.) की शहादत के बाद से निरंतर जारी हैं। आयतुल्लाह निम्र (र.) की शहादत एक निर्णायक मोड़ थी, जिसने यह स्पष्ट कर दिया कि आले-सऊद सरकार स्वतंत्र आवाज़ों को दबाने और न्याय व गरिमा की मांग को कुचलने की नीति पर चल रही है।
बयान के अनुसार, मंगलवार 23 दिसंबर 2025 को सैयद हुसैन अल-क़ल्लाफ़, मुहम्मद अहमद अल-हमद और हसन सालेह अल-सालिम को दी गई फाँसी एक सोची-समझी राजनीतिक कार्रवाई है, जिसकी पूरी ज़िम्मेदारी वर्तमान सऊदी हुक्मरानों पर आती है।
यह कदम न केवल न्याय के ख़िलाफ़ है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संधियों का भी खुला उल्लंघन है और राजनीतिक प्रतिशोध, सामूहिक सज़ा तथा आंतरिक संकटों से निपटने के लिए बल प्रयोग को दर्शाता है।
जमीयत-ए-अमल-ए-इस्लामी बहरीन ने स्पष्ट किया कि इन कार्रवाइयों को सांप्रदायिक भेदभाव, राजनीतिक दबाव और धार्मिक व राजनीतिक स्वतंत्रताओं पर संगठित प्रतिबंधों से अलग नहीं किया जा सकता, जो नागरिक समानता और एक न्यायपूर्ण राज्य के बुनियादी सिद्धांतों के सर्वथा विरुद्ध हैं।
बयान में अंतरराष्ट्रीय समुदाय की ख़ामोशी को इन अपराधों में परोक्ष सहभागिता क़रार देते हुए संयुक्त राष्ट्र, सुरक्षा परिषद के सदस्यों, बड़ी शक्तियों तथा मानवाधिकार और मानवीय संगठनों को इन अत्याचारों को रोकने और ज़िम्मेदारों को जवाबदेह ठहराने में विफल रहने का उत्तरदायी बताया गया है।
जमीयत ने दुनिया भर की राजनीतिक व धार्मिक ताक़तों और मानवाधिकार संगठनों विशेषकर आलेम-ए-अरब और आलम-ए-इस्लाम—से अपील की कि वे केवल निंदात्मक बयानों पर संतोष न करें, बल्कि स्पष्ट और ज़िम्मेदार रुख़ अपनाएँ, जो पीड़ित जनता के वैध अधिकारों की रक्षा, न्याय और स्वतंत्रता के प्रसार तथा आल-ए-सऊद द्वारा जारी संगठित दमन के अंत का कारण बने।
अंत में, जमीयत-ए-अमल-ए-इस्लामी बहरैन ने इस महान त्रासदी पर शहीदों के परिजनों, क़तीफ़ के लोगों और दुनिया भर के सभी स्वतंत्र-विचार लोगों के प्रति गहरी संवेदना और सहानुभूति व्यक्त की और दुआ की कि अल्लाह तआला शहीदों को अपनी व्यापक रहमत में स्थान दे, उनके पवित्र रक्त को सत्य के मार्ग में मशाल-ए-राह बनाए और शेष परिजनों को धैर्य, सुकून और दृढ़ता प्रदान करे।