इमाम जवाद अलैहिस्सलाम की रिवायत में मोमिन की कामयाबी के तीन बुनियादी उसूल

Rate this item
(0 votes)
इमाम जवाद अलैहिस्सलाम की रिवायत में मोमिन की कामयाबी के तीन बुनियादी उसूल

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन रज़ा बहरामी ने इमाम मुहम्मद तकी अल-जवाद अलैहिस्सलाम की एक अहम रिवायत का हवाला देते हुए कहा कि एक मोमिन इंसान की कामयाबी के लिए तीन बुनियादी ज़रूरतें होती हैं: तौफ़ीक़े इलाही, अंदरूनी वाइज़, और नसीहत को क़बूल करने का जज़्बा।

,हज्जतुल इस्लाम वल-मुस्लिमीन रज़ा बहरामी ने जवादुल-अइम्मा हज़रत इमाम मुहम्मद तकी अलैहिस्सलाम की विलादत बा-सआदत के मौके पर मुबारकबाद पेश की। उन्होंने कहा कि किताब तुहफ़तुल-उक़ूल में नक़्ल की गई एक बहुत अहम रिवायत में इमाम जवाद अलैहिस्सलाम ने मोमिन इंसान की फ़िक्री और अख़लाक़ी बुनियादों को बहुत ही मुकम्मल अंदाज़ में बयान फ़रमाया है।

उन्होंने रिवायत बयान करते हुए कहा कि इमाम जवाद अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं,एक मोमिन को तीन चीज़ों की ज़रूरत होती है:
अल्लाह की तरफ़ से तौफ़ीक़,
अपने नफ़्स की तरफ़ से नसीहत करने वाला ज़मीर,
और उस शख़्स की बात को क़बूल करने का जज़्बा जो उसे नसीहत करे।

हुज्जतुल-इस्लाम बहारामी ने वज़ाहत की कि मोमिन के लिए सबसे पहली और बुनियादी ज़रूरत अल्लाह तआला की ख़ास तौफ़ीक़ और मदद है। इसके बाद इंसान के अंदर ऐसा बेदार ज़मीर होना चाहिए जो उसे नेकी की तरफ़ बुलाए और बुराई से रोके। तीसरी और बहुत अहम शर्त यह है कि इंसान ख़ैरख़्वाहों की नसीहत को खुले दिल से क़बूल करे।

उन्होंने कहा कि नसीहत को क़बूल करना एक बहुत अहम और फ़ैसला-कुन मरहला है। हिकमत से भरी बात को ध्यान से सुनना और उस पर अमल करना इंसान की रूहानी तरक़्क़ी पर गहरा असर डालता है। इसी वजह से बड़े उलमा और असातिज़ा-ए-अख़लाक़ हमेशा साहिबाने-दिल और औलिया-ए-इलाही की सोहबत इख़्तियार करने और उनकी नसीहतों से फ़ायदा उठाने पर ज़ोर देते रहे हैं।

हौज़ा के उस्ताद ने गुफ़्तगू के दौरान इमाम जवाद अलैहिस्सलाम की मुख़्तसर सीरत पर भी रोशनी डाली। उन्होंने बताया कि मशहूर क़ौल के मुताबिक़, आपकी विलादत 10 रजब 195 हिजरी क़मरी को मदीना मुनव्वरा में हुई। आपने सिर्फ़ आठ साल की उम्र में अपने वालिद-ए-गिरामी इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की शहादत के बाद मंसब-ए-इमामत सँभाला।
उन्होंने कहा कि अब्बासी ख़लीफ़ा मामून ने सियासी चाल के तहत अपनी बेटी उम्मुल-फ़ज़्ल का निकाह इमाम जवाद अलैहिस्सलाम से किया, ताकि शिया तहरीक को क़ाबू में रखा जा सके, लेकिन यह साज़िश नाकाम रही।

इमाम जवाद अलैहिस्सलाम की इमामत का दौर सत्रह साल पर मुश्तमिल था और आख़िरकार मुअतसिम अब्बासी के हुक्म पर आपको बहुत कम उम्र, यानी 25 साल की उम्र में शहादत नसीब हुई।

हुज्जतुल इस्लाम बहारामी ने आगे कहा कि इमाम जवाद अलैहिस्सलाम के दरबारी उलमा, ख़ास तौर पर क़ाज़ी-उल-क़ुज़ात यह्या बिन अक्सम के साथ होने वाले इल्मी मुनाज़रे, अहले-बैत अलैहिमुस्सलाम के इल्म-ए-इलाही और फ़िक्री अज़मत का रौशन सबूत हैं, जिनमें हर बार मुख़ालिफ़ीन को शिकस्त का सामना करना पड़ा।

Read 1 times