हज़रत आयतुल्लाह बुरुजर्दी के सियासी इक़दामात

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हज़रत आयतुल्लाह बुरुजर्दी के सियासी इक़दामात अगरचे इस मुख़्तसर तहरीर में नहीं बयान किए जा सकते हैं लेकिन चन्द मुख्तसर मवाक़े व मवाकिफ़ को शुमार ज़रुर किया जा सकता है।

1. दरबारे शाह और मरजईयत

आयतुल्लाह बुरुजर्दी की ज़आमत व मरजईयत के ज़माने में अगरचे शाही हुकूमत और ख़ारजी अनासीर के साथ सख्त इन्क़ेलाबी टक्कर लेने का ज़मीना फ़राहम नहीं था क्यों कि इस्लामी इन्केलाब के नताएज बर्दाश्त करने की लोगों में न तो अभी इतनी ताक़त थी और न ही इस क़द्र आशनाई व आगाही थी। ये यक़ीन कर लेना चाहिए कि आप की मरजइयत के ज़माने में ही आईन्दा इन्क़ेलाब के लिए बहुत सी तवानाइयाँ इन्केलाब के लिए तरबीयत पा चुकी थीं जिन्हों ने क़याम व इन्केलाब के पूरे दौर में तारीख़ साज़ किरदार अदा किये। बॉज़ सियासी साहेबाने अफ़कार व नज़रियात के बकौल रज़ा खान की तरफ़ से शदीद घुटन का माहौल बनाने और मस्जिदों, इमाम बारगाहों को बन्द करने नीज़ लेबासे रुहानियत पर रोक लगाने के बाद शियों का एक अहम कारनामा जिसमें आयतुल्लाह बुरुजर्दी का बहुत बड़ा हिस्सा रहा है। हौज़ ए इल्मिया कुम और मुल्क़ के दूसरे शहरों में दीनी हौज़ात की तशकील व तौसीअ है। सन 1330 से सन 1340 हिजरी शमसी के दस साला फासले में जब कि उलमा काफी हद तक खामोशी की ज़िन्दगी बसर कर रहे थे। हौज़ ए इल्मिय ए कुम ने तक़रीबन हज़रत इमाम जाफ़रे साहिक अलैहिस्सलाम के काम के मानिन्द काम अन्जाम दिया, हज़ारों की तादाद में दीनी इन्क़ेलाबी मोक़ल्लेदीन रोज़ाना के मसाएल से वाकिफ़ और इल्मो फहम के साथ तरबीयत पा कर इन्केलाब के लिए ज़खीरा बन गए और अगर ये लोग न होते तो मुहाल था कि ईरान में पहलवी शहनशाहियत को शिकस्त होती।

(हाशमी रफ्सन्जानी सन 1376 जिल्द 3, सफहा 379)

इन सब के बावजूद आयतुल्लाह बुरुजर्दी को जहाँ कहीं भी खतरे का ऐहसास होता था इक्दाम करने से नहीं हिचकते थे। फौरन मौकिफ़ इख्तेयार करते थे मसलन जब शाह ईरान ने फारसी तहरीर को लातीन में तब्दील करना चाहा तो आपने भर पूर तरीके से उस रुसवा कुन हरकत का मुकाबला किया और फरमायाः जब तक मैं ज़िन्दा हूँ इस काम के अम्ली होने की इजाज़त नहीं दूँगा उसका नतीजा चाहे जो हो जाए।

(गुलशने अबरार, जिल्द 2, सफ़हा 671).

मौजूदा मालूमात के मुताबिक़ पता चलता है कि उस फर्ज़ाना व आगाह बुज़ुर्ग मरज ए तक़लीद ने मोमिन इन्केलाबियों की मदद के साथ साथ अजीब और बड़ी बारीक सियासत अपना रखी थी। उनका ख्याल था कि लोगों में अभी मुश्केलात और दुशवारियों को बर्दाश्त करने की ज़्यादा आमादगी पैदा नहीं हुई है, वह हुकूमती सख्तियों से रुबरु होंगे तो मरजइयत को अकेला छोड़ सकते हैं। इसी लिए आप दरबारे शाह से बराहे रास्त टकराने को मुनासिब नहीं समझते थे और दूसरी जानिब शाह को अकेला छोडने और उसे मुकम्मल तरीके से अलहिदा करने की सूरत में उसके बेगानों के दामन में मज़ीद चले जाने का अन्देशा था। इस लिए कभी भी आप उससे मदारा करते थे ताकि वह मग़रुर हाकिम अपने पाय कमज़ोर न समझ बैठे और अपने तहफ्फुज़ के लिए बेगानों की पनाह में न चला जाए।

(गुलशने अबरार, सन 1382 शुमारा, जिल्द 2, सफ़हा 671)

2. सियासी फिरक़े बहाईयत का मुकाबला

आयतुल्लाह बुरुजर्दी के वतन में सुकूनत होने के ज़माने में उस गुमराह फिरक़े ने बुरुजर्द और उसके अतराफ़ में अपनी सर गर्मियों को हुकूमती इदारों में खास नुफुज़ व रुसूख के बाईस बहुत वसीअ कर लिया था। चूँकि आयतुल्लाह बुरुजर्दी इस मसले से आगाह थे लेहाज़ा आप ऐतेराज़ के तौर पर उस शहर से बाहर निकल आये। इस से लोगों में हयजानी कैफ़ियत तारी हो गई और वह टेली ग्राफ खानों पर टूट पड़े । इस मौक़े पर मरकज़ी हुकुमत को खतरा महसूस हुआ और इस लिए आप को शहर में वापस करने के मुक़द्देमात फ़राहम करने में जुट गए और हुक्म सादिर हो गया कि बहाईयों के अलनी व उमूमी जलसों और इज्तेमाआत पर पाबन्दी लगाई जाती है और उस गिरोह से वाबस्ता अफ़राद हुकूमती इदारों से माज़ूल किऐ जाते हैं और फिर आयतुल्लाह बुरुजर्दी लोगों की तारीख़ी और इन्केलाबी इस्तिक़बाल के साथ वतन वापस हो गये।

(अहमदी व दीगरान सन 1379 शु, सफ़हा 342)

इसी तरह आपने अपनी उमूमी मरजईयत के ज़माने में क़ुम से ही पुरे मुल्क में बहाईयत के ख़िलाफ़ मुहाज़ को वुसअत बख्शी। जिसके नतीजे में सन 1335 शु में बहाईयों की फ़आलियत व सर गर्मी के तेहरान में वाक़े ख़तीरतुल कुदस नामी मरकज़ को ढो दिया गया। इसी तरह आपने माहिर ख़तीब आप मिर्ज़ा मुहम्मद तक़ी फलसफ़ी को हुक्म दिया कि तेहरान की शाही मस्जिद में मिम्बर पर तशरीफ़ ले जाऐं और बहाईयत के बातिल अफ़कार लोगो के कानों तक पहुँचायें। आक़ा ए फलसफी की दलाएल पर मबनी और मोहकम तक़रीरें रेडियो से भी नश्र होती थीं।

(अहमदी व दीगरान सन 1379 शु सफ़हा 55,141,व 190)

3. आक़ा हुसैन क़ुम्मी के इक़दामात की हिमायत

सन 1320 में शाहे ईरान के फ़रार कर जाने के बाद आयतुल्लाह हाज आक़ा हुसैन क़ुम्मी जिन्हे मस्जिदे गौहरशाद के तारीख़ी क़याम के नतीजे में करबला जिला वतन कर दिया गया वतन वापस हुऐ और उन्होंने कश्फे हेजाब के सामराजी कानून के मुकाबले में बड़ा सख्त मौकिफ़ इख्तेयार किया और प्राईमरी और हाई इस्कूलों में मज़हबी मरासिम क़ायम करने की आज़ादी की माँग की। शाह और हुक्काम आप की माँगों को पूरा करने में सुस्ती बरत रहे थे। यहाँ तक कि आयतुल्लाह बुरुजर्दी ने जो कि इस ज़माने में बुरुजर्द में क़याम पज़ीर थे। हाज आका हुसैन कुम्मी की हिमायत में उस ज़माने के वज़ीरे आज़म के पास टेली ग्राफ भेजा जिसकी ईबारत ये थीः

आयतुल्लाह के मुतालेबात हमारे भी मुतालेबात हैं अगर उनकी माँगों को पूरा न किया गया तो मैं ख़ुद तेहरान के लिए निकल पड़ूँगा और उसके बुरे नताऐज के ज़िम्मेदार खुद हुक्काम होंगे।

(मजल्ले हौज़े, शु 43, 44, सफ़हा 232, ब नक़्ल अज़ सय्यद जवाद आमली)

इस टेलीग्राम की ख़बर फैलने से लोगों के दरमियान ख़ास तौर से लुरिस्तान के अशाएर लोगों की सरबराहों ने आयतुल्लाह बुरुजर्दी की हिमायत में तहरीकें कीं। इस तरह की हुकूमत को ख़तरा महसूस हुआ और वह मजबूर होकर आप की माँगों के सामने झुक गई। आयतुल्लाह बुरुजर्दी इसी तरह (तिले कोमाए जाने की तहरीक) शाह की इस्लाह अराज़ी की साज़िश को रोकने और ईरान में आतिश परस्ती के मुज़ाहरे को रोकने के लिए मुकम्मल तौर से दख़ील थे।

आसारो तॉलीफात

आप ने शागिर्दों की तर्बियत व तदरीस के पहलू ब पहलू वसीअ पैमाने पर तहकीकाती उमूर अन्जाम दिए हैं और आप के मजमूई आसार को रजाली, हदीसी, फिक्ही और उसूली चार दस्तों में तक़सीम किया जा सकता है।

इख्तेसार के तौर पर हम बाज़ मतबूआ आसार की फेहरिस्त अलिफ़ बा के हिसाब से कारेईन की नज़्र कर रहे हैं:

1. अल अहादीसुल मक्लूबह व जूबातोहा। चन्द मक्लूब हदीस के बारे में आयतुल्लाहुल उज़्मा सय्यद हुसैन आका बुरुजर्दी तबा तबाई से सवाल किया गया था। जिन के जवाबात के साथ नीज़ मुहम्मद रज़ा हुसैनी जलाली के मुकद्दमे और तर्जुमे के साथ ये किताब दारुल हदीस कुम से सन 1426 हिज्री मुताबिक़ सन 1374 श 67 सफ़हात पर मुश्तमिल छप चुकी है।

2. अल बज़रुज़्ज़ाहिर फ़ी सलातिल जुमुआ वल मुसाफिर। आयतुल्लाह बुरुजर्दी के दुरुस का मजमुआ है जिसे आयतुल्लाह मुन्तज़री ने क़लम बन्द फरमाया था। कुम कुतुब खाने आयतुल्लाह मुन्तज़री सन 1416 हिज्री सन 1357 श. सफ़हात 399

3. अल ब्यानुल वाफी फी ततारीफ़ बे केताबीम तर्तीबे असानिदील काफी लिल इमामील बुरुजर्दी महमूद दर्याबुल नजफी कुम, मोवस्स्सए आयतुल्लाह बुरुजर्दी सन 1422 हिज्री सन 1385 श।

4. तर्तीबो असानीदे किताबित तहज़ीबे ले शैखीत्तूसी तॉलीफ हुसैन अत्तबा तबाई अल बुरुजर्दी फिरीस्ते किताबीत्तहज़ीब मोरत्तेबन अलल हुरुफ व फेहरिस्ते किताबील इस्तेफ्सार मुरत्तेबन अलल हुरुफ रत्तबहा हसन अन नूरी अल हम्दानी, मशहद आस्ताने रज़्वीया अल बहुसुल इस्लामीया. न 1414 हिज्री सन 1372 श 544 सफ़हा।

काबिले ज़िक्र बात ये है कि तर्तीबुल असनीद या तजरीदुल असानीद या तब्कातुर्रेजाल जैसी किताबें इल्मे रेजाल में आयतुल्लाह बुरुजर्दी के ईजादात में से शुमार होती हैं। इन मजमुओं में हदीसी किताबें जैसे काफी, इस्तेसार, तहज़ीब, अमाली, खेसाल और रेजाली किताबों जैसे रेजाले नज्जासी व रेजाले तूसी को अस्ली मुतून से जुदा करके उन पर तहकीक की गई है।

5. तक्रीरो बहस सय्यदनल उस्ताद अल मर्जईद दिनिल अक्बर आयतुल्लाहील उज़्मा अल्हाज असय्यद हुसैन अत्तबा तबाई अल बुरुजर्दी फिल किब्ला वस्सीतरे वस्सातीर वमकानील मुसल्ली तक़रीरे अली पनाह अल इस्तेहारदी, कुम जामऐ मुदर्रेसीन सन 1416 हिज्री 1374 श 2 जिल्द।

6. तक़रीरातो सलास अव वसीयत वल मुनज्जेज़ातील मरीज़ मिरासो अज़्वाजील गसब हुसैन अल बुरु जर्दी अत्तबा तबाई तक़रीर अली पनाह अल इस्तेहारदी, कुम जामऐ मुदर्रेसीन सन 1413 हिज्री 1372 श, सफहा 231

7. तक़रीरात फी उसूलील फिक्ह आयतुल्लाहील उज़्मा हुसैन अव बुरु जर्दी कद्दरहा अली पनाह अल इस्तेहारदी, कुम जामऐ मुदर्रेसीन सन 1417 हिज्री 1375 श, 306 सफहा।

8. जामेए अहादीसे शिया, हुसैन अत्तबा तबाई अल बुरुजर्दी, कुम जामऐ मदीनतुल इल्म सन 1381 श. 30 जिल्द हदीस का ये ग्रान्कद्र मजमुआ किताब व वसाएलुश्सिया की तकमील उस के नवाकिस की बर्तरफी जैसे तक्तीअ रिवायात तकरारे अस्नाद, तक्सीरे अब्वाब, ज़खामत की ज़ियादती वगैरह जैसे उमूर के लिए आयतुल्लाह बुरुजर्दी की जिद्दत तालीफ में से है और बहुत सी सहूलियात जैसे आहादिस पर जिल्द से जिल्द दस्तरसी और उन से इस्तेन्बात में सुरअत वगैरह में मदद गार साबित होती है अब तक इस मजमुऐ की तीस जिल्दें छप चुकी हैं।

9. हाशितुल उर्वतुल वुस्क़ा तालीफ़ मुहम्मद काज़िम यज़्दी, बा हवाशी आयतुल्लाह बुरुजर्दी तेहरान, इस्लामियाः सन 1373 हिज्री सन 1322 श, 647 सफहा.

10. अल हाशिया अला किफायतील उसूल, तर्हे मुबानी हुसैन अत्तबा तबाई अल बुरु जर्दी, तॉलीफे बहाउद्दीन अल हुज्जली अल बुरुजर्दी कुम अल नेसारियान सन 1412 हिज्री सन 1379 श, मुतआद्दिद जिल्दें.

11. हाशिया अला वसाएलीस्शिया।

12. अल हुज्जः फिल फिक्ह तक़रीरात व तहसीलात फी फरासात हुसैन तबा तबाई अल बुरुजर्दी तॉलीफ मेहदी हाऐरी यज़्दी मोवस्सेसतुल रेसाल हुसैनीए ओमाद ज़ादे सन 1419 हिज्री सन 1377 शु 7 जिल्दें.

13. खान्दाने आयतुल्लाह बुरुजर्दी, नवीश्ते आयतुल्लाह बुरुजर्दी मुकद्दमे व तर्जुमे और पावरकी अज़ अली दवानी, कुम अन्सारियान सन 1371 शु 152 शु.

14. रेसालए तौज़ीहुल मसाएल की जिसका मतन आयतुल्लाह बुरुजर्दी के फतावा के मुताबिक है आयाते ऐज़ाम और शिया ओलमा के हवाशी के साथ, मोवल्लीफ, गुलाम हुलैन रहीमी इस्फहानी, तेहरान, जावेदान. फराहानी, सन 1348 शु 592, सफहा.

15. रेसालए शरीफ मनासिके हज. मुताबिक बा फतावा हाज आयतुल्लाह बुरुजर्दी की बकोशिश महमूद किताबची, तेहरान, इस्लामीया सन 1367 हिज्री 1326 शु 140 सफहा.

16. लम्हातुल उसूल एफादातुल फिक्हीया अल हज्जत आयतुल्लाहील उज़्मा बुरु जर्दी वे कल्मील इमामील खुमैनी तहकीक मोवस्सेसे तन्ज़ीम व नश्रे आसार इमाम खुमैनी, तेहरान मोवस्सेसे तन्ज़ीमो नश्रे आसार इमाम खुमैनी 1421 हिज्री.

17. अल मजदी बहुस फिल वसीया वल मुनज्जेज़ातुल मरीज़ व इकरारुल मरीज़ ले मुकीर्रेही अली अस्साफी अल गुल्पाऐगानी, कुम गन्जे इर्फान. सन 1421 हिजरी सन 1381 शु 215 सफहा.

18. अल मन्हजुर्रेजाली वल अमलीर्राएद फी मोसुअते रेजालीया अल अहादीसुल मक्लूबा व जवाबातुहा. हुसैन अल तबा तबाई बुरुजर्दी, बे एहतेमाम मुहम्मद रज़ा अल हुसैनी अल जलाली, कुम मक्तबे अल एलामुस्सलामी, सन 1420 हिज्री सन 1378 शु 384 सफहा.

19. नेहायतुल उसूल. तकरीरे इब्हास हुसैन अल तबा तबाई बुरुजर्दी, बे कलमे हुसैन अली अल मुन्तजडरी, तेहरान नश्रे तफक्कुर सन 1415 हिज्री सन 1373 मोतअद्दिद जिल्दें.

20. नेहायतुत्तकरीर फी मबाहिस्सलात तकरीरल लेमा अफादहू हुसैन अत्तबा तबाई अल बुरु जर्दी तालीफ फाज़ील लन्करानी कुम मर्कज़ऐ फिक्हो अइम्मतुल अतहार

आफ़ताबे ज़िन्दगी ग़ुरुब हो गया

धीरे धीरे सन 1380 हिज्री में शव्वाल का महीना आ पहुँचा और बीमारी ने उस 88 साला आलमे इस्लाम के अज़ीम मर्जे के जिस्मे अक़दस पर अपना पंजा गड़ा दिया। दुशवार बीमारी दूसरी तकालीफ़ से मुतफ़ावुत थी। जो उस अज़ीम शख्सियत को अज़ीयत दे रही थी उन्हीं दिनों कुछ अकीदत मन्दों ने आप की अयादत फ़रमाई। उस्ताद जो की बहुत ज़ियादा ग़मगीन थे सर उठाया और फरमायाः सर अन्जाम हमारी उम्र गुज़र गई हम चले और अपने लिए कुछ ज़ादे राह नहीं भेज सके और न ही कोई क़ीमती अमल अन्जाम दे सके। हाज़रीन में से एक शख्स ने अर्ज़ कियाः आक़ा आप इस तरह फ़रमा रहे हैं आपने इतने सारे आसार छोड़े हैं परहेज़गार शागिर्दों की तरबियत फ़रमाई है क़ीमती किताबें तालिफ़ की हैं। मस्जिदें, कुतुब खाने बनवाये हैं ऐसी बातें तो हम लोगों को कहनी चाहिए। पारसा शिया फकीह ने फरमायाः अमल में इख्लास पैदा करो कि वह (खुदा) बड़ा बीना और नकाद है।

(गुलशने अबरार, सन 1382, जिल्द 2, सफहा 672)

इस गुफ्तुगू ने हाज़ेरीन को बहुत मुतअस्सिर किया चन्द रोज के बाद ही उस्ताद बुज़ुर्गवार का जनाज़ा मज़ीद दर्दों गम का बाईस बना आख़िर कार उस बहादुर फक़ीह का जनाज़ा दसियों हज़ार सोगवारों के नौहे व मातम के दरमीयान बड़ी अज़मत के साथ तशीअ हो रहा था जिसकी नज़ीर बहुत कम मिलती है और हज़रते मासूमा फातेमा अलैहस सलाम के हरमे मोतह्हर लेराहने की सिम्त में मस्जिदे आज़म के वुरुदी दरवाज़े के पहलु में दफ्न किया गया। ये मस्जिद आप ही की यादगार है और उसके साथ ही ईरान के तमाम शहरों में अज़ादारी का आगाज़ हो गया। दुकानें बन्द हो गईं। सड़कों गलियों और बाज़ारों के उपर स्याह पर्चम लहराने लगे और अक्सर इस्लामी मुल्कों खास तौर से नजफ़ और कर्बला में बड़ी अज़ीमुश्शान मजलिसे तर्हीम और मरासीमे अज़ादारी बर्पा हुईं और ईरान में उन मरासिम का सिल्सिला आप के चेहलुम तक जारी रहा। इस्लामी मुल्कों के नुमाइन्दों और सफीरों ने इज़्हारे हमदर्दी किया। यहाँ तक की रुस, अमेरीका और इंगलैन्ड के सेफारत खानों के पर्चम इज़हारे अज़ा के तौर पर झुका दिए गए। मरहूम आयतुल्लाह मुज्तबा इराकी, आयतुल्लाह बुरुजर्दी की तदफीन व तशई के ज़िम्मेदार थे फरमाते हैः

खुदा वन्दे मोतआल ने मुझे ये इफ्तेखार अता फ़रमाया कि उस बुज़ुर्ग हस्ती को सुपुर्दे लहद करुँ ये अमल आप की वसीयत के मुताबिक़ अन्जाम पाया। इस वाक़ये से मुझ पर अजीबो ग़रीब हासत तारी थी और जिस वक्त मैं क़ब्र में उतरा दफ्न के तमाम मुस्तहबात मेरे ज़ेहन में आ गऐ जो पहले से ज़ेहन में नहीं थे।

(अहमदी व दीगरान सन 1379 शु सफ़हा 179)

असरे हाज़िर में शिया तारीख़ के इस अज़ीमुल मर्तबत इन्सान की मुफ़स्सल स्वानहे हयात का इस मुख्तसर तहरीर से कभी अदा नहीं हो सकता। जो कुछ इस मुख़्तसर मकाले में आया है वह सिर्फ उस अज़ीम दीनी मरजअ और फिक्हे इलाही की याद ताज़ा करने का एक बहाना था कि इन्शा अल्लाह हमारे लिए और तमाम पाकीज़गी और सच्चाई को दोस्त रखने वालों के लिए दर्स होगा।

वस्सलाम

मनाबे व मआख़ज़

1. आयतुल्लाह बुरुजर्दी, खान्दाने आयतुल्लाह बुरु जर्दी, मुकद्देमा व तर्जुमा अज़ अली दवानी, कुम अन्सारियान 1371 शम्सी।

2. आबाज़री अब्दुर्रहीम, आयतुल्लाह बुरु जर्दी आयते इख्लास, तेहरान, मज्मऐ जहानी तक्रीबे मज़ाहिबे इस्लामी, 1383 शम्शी।

3. अहमदी मुज्तबा व दिग्रान, चश्मो चेरागे मर्जेईयत, मुसाहेबे विजे मजल्ले हौज़े बा शागिर्दाने आयतुल्लाह बुरु जर्दी, कुम, दफ्तरे तब्लीगाते इस्लामी मर्कज़े इन्तेशारात, 1379 श।

4. दवानी अली, ज़िन्दगानीऐ ज़ईमे बुज़ुर्गे आलमे तशइयो आयतुल्लाह बुरु जर्दी, विराईश, 2, तेहरान, नश्रे मुतहर, 1372 श।

5. शकूहे फकाहत, याद नामे आयतुल्लाह मर्हूम हाज आका हुसैन बुरु जर्दी, तहईये व नश्र मर्कज़े इन्तेशारात दफ्तरे तब्वीगाते इस्लामी हौज़ऐ इल्मीए कुम, 1379 श।

6. सहीफे हौज़े, बिजे नामे रुज़नामे जम्हुरी इस्लामी, दोशन्बे 3,11, 79

7. अबीरी अब्बास आयतुल्लाह बुरु जर्दी, ज़ईमे बुज़ुर्ग, तेहरान, साज़माने तब्लीगाते इस्लामी, 1380 श।

8. अली आबादी, मुहम्मद, उलगपऐ ज़ेआमतः सर गुज़श्तहाऐ विजे हज़रत आयतुल्लाह बुरुजर्दी अज़ ज़बाने ओलमा व मराजे हमराह बा तक्रीज़े आयतुल्लाह अब्दुस्साहेब मुर्तज़वी लँगरोदी, कुम, इन्तेशाराते लाहीजी, 1379 श।

9. गुल्शने अब्रार, खुलासेई अज़ ज़िन्दगी उस्वहाऐ इल्मो अमल, तहइये व तदवीन जमई अज़ पजो हिश्गराने हौज़ऐ इल्मिये कुम, ज़िरे नज़र पजो हिश्कदे बाकीरुल ओलूम, कुम नश्रे मारुफ, 1382 श।

10. मजल्ले हौज़े, शुमारहाई मुख्तलीफ के दर मत्न आमदे अस्त।

11. मुतहरी, मुर्तज़ा, तकामुल इज्तेमाई इन्सान, बे ज़मीमे हदफे ज़िनदगीः इल्हामी अज़ शैखुत्ताऐफे, मज़ाया व खदमाते मर्हूम आयतुल्लाह बुरु जर्दी, तेहरान व कुम सदरा, 1363 श।

12. मुतहरी, मुर्तज़ा, शिश मकाले खत्मे नबुवत, प्याबरे उम्मी, वेलायेहा व वेलायतेहा, विराईशे दो, कुम सदरा, 1380 श।

13. वाऐज़ ज़ादे खुरासानी, मुहम्मद, अज़ ज़िन्दगी आयतुल्लाह बुरु जर्दी व मक्तबे फिक्ही, उसूली, हदीसी, और रेजालीऐ वै, तेहरान, मज्मऐ जहानी तक्रीबे मज़ाहीबे इस्लामी, 1379 श 1421 हिज्री।

14. हाशेमी रफ़सन्जानी, अकबर, खुतबाहा ए जुमे, ज़ीरे नज़र मुहसिन हाशमी रफ़सन्जानी, तेहरान, दफ्तरे नश्रे मआरीफटे इन्केलाब, साज़माने मदारिके फ़रहँगी इन्केलाबे इस्लामी, 1376 शम्सी।

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