इमाम हुसैन (अ) और कर्बला के शहीदों का चेहलुम

Rate this item
(1 Vote)

इमाम हुसैन (अ) की शहादत के 40 दिन बीत जाने के बाद यानी 20 सफ़र को चेहलुम के दिन दुनिया भर में इमाम हुसैन (अ) के प्रेमी ऐसी हस्ती का सोग मनाते हैं, जिसने संपूर्ण मानवता की रक्षा की और जिसकी शहादत ने इस्लाम को जीवनदान दिया।

चेहलुम ऐसे लोगों की याद ताज़ा करता है, जिन्होंने, मानवता, इस्लाम और क़ुरान के लिए न केवल अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया, बल्कि अपनी जान भी क़ुरबान कर दी। इमाम हुसैन की शहादत के दिन यानी आशूरा के दिन और उसके बाद उनके चेहलुम तक हज़रत ज़ैनब की भूमिका बहुत अहम है। कर्बला में अपनी अहम भूमिका के बाद, इमाम हुसैन के आंदोलन को जारी रखने में भी उनकी भूमिका अद्वितीय है।  

हज़रत ज़ैनब (स) हज़रत अली (अ) और जनाबे फ़ातिमा (अ) की बेटी हैं। वे पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स) की नवासी हैं। कर्बला में इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत के बाद, उनकी महत्वपूर्ण भूमिका शुरू हुई। ऐसी भूमिका जिसने इमाम हुसैन (अ) के आंदोलन को आगे बढ़ाया, जो चेहलुम के दिन अपने चरम पर पहुंचा।

40 दिन तक क़ैदी बने रहने के बावजूद, हज़रत ज़ैनब ने पूरे साहस से और तार्किक शैली अपनाकर इमाम हुसैन (अ) के उद्देश्यों की रक्षा की। आशूर अर्थात मोहर्रम के महीने की दस तारीख़ की शाम, यज़ीद की सेना ने कर्बला की लड़ाई में मारे गए अपने सैनिकों को दफ़्न कर दिया। लेकिन इमाम हुसैन (अ) और उनके वफ़ादार साथियों के पवित्र शव ज़मीन पर ऐसे ही पड़े रहे और उन्हें दफ़्न करने की अनुमति नहीं दी गई। यज़ीद के सैन्य अधिकारियों ने बंदी बनाए गए इमाम हुसैन के परिजनों को जिनमें अधिकांश संख्या महिलाओं और बच्चों की थी,  ज़मीन पर पड़े शहीदों के शवों के निकट से गुज़ारा, ताकि शहीदों और उनके परिजनों का अधिक से अधिक अपमान कर सकें।

 

इमाम हुसैन (अ) ने अपमानजनक जीवन पर सम्मानजनक मौत को प्राथमिकता दी, हालांकि दुश्मन इमाम हुसैन को जीवन और मौत के बाद कमज़ोर दर्शाना चाहता था। उन्होंने महिलाओं और बच्चों को क्षत-विक्षत हुए उनके प्यारों के शवों के निकट से गुज़ारा। इनमें इन महिलाओं का कोई भाई है, कोई पति है तो कोई बेटा। लेकिन यह महिलाएं विलाप नहीं करती हैं। इसलिए कि उनकी नज़रें हज़रत ज़ैनब (स) पर टिकी हुई थीं। वे हज़रत ज़ैनब के पीछे पीछे चल रही थीं। जब हज़रत ज़ैनब इमाम हुसैन (अ) के क्षत-विक्षत पवित्र शरीर के निकट से गुज़रीं, कि जिस पर सिर नहीं था और कोई अंग अपनी असली स्थिति में नहीं था, थोड़ा सा झुकीं। शरीर पर पड़े पत्थरों और टूटे हुए भालों को धीरे धीरे हटाया, अपने दोनों हाथों को आसमान की ओर उठाया और कहा, हे ईश्वर हमारी इस क़ुर्बानी को क़बूल कर। यह उस महिला की आवाज़ है, जिसके बारे में सब जानते हैं कि वह अपने भाई इमाम हुसैन से कितना प्यार करती थी और इमाम हुसैन उसके लिए सब कुछ थे। लेकिन उसने यह कहकर यह एलान कर दिया कि हमने इमाम हुसैन को ईश्वर और उसके धर्म के मार्ग में क़ुर्बान कर दिया। अब हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि हमारी इस क़ुर्बानी को क़बूल कर ले।

इब्ने ज़ियाद ने अपने दरबार में क़ैदी बनाकर लाए गए इमाम हुसैन के परिजनों में से हज़रत ज़ैनब से जब कहा, तुमने देखा ईश्वर ने तुम्हारे भाई के साथ क्या किया? उन्होंने जवाब में कहा, ईश्वर की सौगंध, मैंने सुन्दरता के अलावा कुछ नहीं देखा। वे ऐसे लोग थे कि जिन्हें ईश्वर ने शहादत प्रदान की और वे अपनी मंज़िल की ओर चले गए। शहीदों के सरदार इमाम हुसैन की शहादत के बारे में हज़रत ज़ैनब ने यह दृष्टिकोण अपनाया, जिससे अन्य महिलाएं भी अपने शहीदों के प्रति अपने कर्तव्य को समझ गईं कि यह समय रोने पीटने का नहीं है, बल्कि अत्याचारियों और हत्यारों के मुक़ाबले में दृढ़ता और डट जाने का समय है। अपने इस व्यवहार से हज़रत ज़ैनब एवं अन्य महिलाओं ने यह स्पष्ट कर दिया कि हमने पूर्ण ज्ञान और जानकारी के साथ अपने इमाम का मार्ग चुना है और अगर ईश्वरीय धर्म को इससे भी अधिक क़ुर्बानी की ज़रूरत होगी तो हम तैयार हैं।

दमिश्क़ में भी हज़रत ज़ैनब के भाषण ने यज़ीद के शासन की ईंट से ईंट बजा दी। यह वह शहर था, जिसे काफ़ी सजाया गया था, लेकिन हज़रत ज़ैनब के भाषण के बाद, यहां सन्नाटा पसर गया। बनी उमय्या शासन के अधिकारी जो कर्बला की लड़ाई में अपनी तथाकथित जीत पर अपनी खालों में नहीं समा रहे थे, हज़रत ज़ैनब और पैग़म्बरे इस्लाम के सामने मजबूर हो गए।

 

जनाबे ज़ैनब हज़रत अली (अ) की बेटी हैं, जो बहादुरी और वीरता के शिखर पर हैं। यही कारण है कि सिर से पैर तक हथियारों से लैस दुश्मन के सामने उन्हें किसी तरह का कोई संकोच नहीं हुआ और उन्होंने स्पष्ट रूप से अपनी बात कही और अत्याचारी दुश्मन को उसकी औक़ात बता दी। इब्ने ज़ियाद के दरबार में, सत्ता के रौब में आए बिना वे उसे अत्याचारी और भ्रष्ट क़रार देते हुए कहती हैं, हम आभारी हैं उस ईश्वर के जिसने मोहम्मद (स) को अपना दूत बनाकर हमें सम्मान दिया और बुराईयों से दूर रखा। जो लो कि भ्रष्ट व्यक्ति अपमानित होता है और बुराई करने वाला झूठ बोलता है।

यज़ीद के दरबार में भी उसे ललकार कर कहती हैं, अगर हालात ने मुझे आज तुझ जैसे से बात करने पर मजबूर किया है, तो जान ले कि मेरे निकट तेरी कोई हैसियत नहीं है, लेकिन तेरी निंदा करने को मैं अहम समझती हूं। हज़रत ज़ैनब की बातों ने लोगों की नज़रों में यज़ीद को इतना तुच्छ और बेहैसियत कर दिया था कि उसने हज़रत ज़ैनब और अन्य बंदियों को तुरंत आज़ाद करके मदीना भेजने का आदेश दे दिया। इसलिए कि दमिश्क़ यज़ीद की राजधानी था, और यहां अन्य इलाक़ों से व्यापारियों और अधिकारियों का आना जाना रहता था। यह नई स्थिति किसी भी तरह से यज़ीद के पक्ष में नहीं थी। इसलिए उसने हज़रत ज़नब और उनके साथियों को मदीना लौटाने का आदेश दिया।

क़ैदियों का काफ़िले को बहुत कठिनाईयों और यातनाओं के साथ शाम या वर्तमान के सीरिया ले जाया गया। हालांकि वहां से मदीना वापस लौटाते समय इन कठिनाईयों को कुछ कम कर दिया गया था। यज़ीन ने जनक्रांति और अधिक अपमान से बचने के लिए काफ़िले के मुखिया नोमान बिन बशीर को आदेश दिया कि प़ैग़म्बरे इस्लाम के क़ैदी परिजनों के साथ अधिक कड़ा व्यवहार न करे। इसीलिए बशीर ने कर्बला में क़ैदी बनने वालों के साथ दमिश्क़ से मदीना तक की यात्रा के बीच कड़ा व्यवहार नहीं किया। इन क़ैदियों को कूफ़े से शाम तक की यात्रा के दौरान जानबूझकर लम्बे रास्ते और विभिन्न शहरों से होकर गुज़ारा गया, लेकिन शाम से मदीना वापस लौटते समय छोटे रास्ते का चयन किया गया और तेज़ी से रास्ता तय किया गया, ताकि जितने जल्दी संभव हो सके वे कर्बला पहुंच जाएं। क़ैदी कर्बला की उस सरज़मीन पर वापस लौटने के लिए एक एक पल गिन रहे थे, जहां उनके चहीतों का ख़ून बहाया गया था। यात्रा की कठिनाईयों को सहन करते हुए वे आशूर के 40 दिन बाद अर्थात 20 सफ़र को कर्बला पहुंच गए।

इमाम हुसैन (अ) की पवित्र क़ब्र की सबसे पहले जाबिर बिन अंसानी ने ज़ियार की थी। वे पैग़म्बरे इस्लाम (स) के साथियों में से थे और अहले बैत से विशेष श्रद्धा रखते थे। वे पहले ऐसे व्यक्ति थे, जो चेहलुम के दिन कर्बला पहुंचे और चेहलुम के दिन इमाम हुसैन की क़ब्र की ज़ियारत की परम्परा की शुरूआत की। चेहलुम के दिन जाबिर के साथ कर्बला पहुंचने वाले व्यक्ति का नाम अतिया ऊफ़ी था, वे जाबिर के दास और क़ुरान के व्याख्याकर्ता थे। अतिया ऊफ़ी का कहना है कि मैं इमाम हुसैन (अ) की क़ब्र की ज़ियारत करने जाबिर बिन अब्दुल्लाह अंसारी के साथ कर्बला पहुंचा। जाबिर नहरे फ़ुरात पर गए। वहां उन्होंने स्नान किया। उसके बाद हम पवित्र क़ब्र की ओर चल दिए। जाबिर हर क़दम पर ईश्वर का गुणगान करते थे। जब हम क़ब्र के निकट पहुंचे तो उन्होंने मुझसे कहा कि मुझे क़ब्र पर ले चलो, मैंने उनका हाथ पकड़ा और क़ब्र पर रख दिया। उन्होंने तीन बार कहा, या हुसैन, या हुसैन, या हुसैन और बेहोश होकर गिर पड़े। जैसे ही उन्हें होश आया इमाम हुसैन (अ) को संबोधित करते हुए कहा, हे हुसैन क्यों मेरा जवाब नहीं दे रहे हो? उसके बाद ख़ुद ही अपनी बात का जवाब दिया और कहा, आप किस तरह जवाब दे सकते हैं, जबकि आपका सिर क़लम कर दिया गया। मैं गवाही देता हूं कि आप अंतिम ईश्वरीय दूत पैग़म्बरे इस्लाम और हज़रत अली (अ) के बेटे हैं, आप पर अल्लाह का दुरूद और सलाम हो।

 

उसके बाद जाबिर इमाम हुसैन के साथियों की क़ब्रों पर गए और कहा, सलाम हो तुम पर इमाम हुसैन (अ) के मार्ग में शहीद होने वाली आत्माओं। मैं गवाही देता हूं कि तुमने नमाज़ की स्थापना की, ज़कात अदा की और अच्छे कार्यों का आहवान किया और लोगों को बुराई से रोका, नास्तिकों से जेहाद किया, यहां तक अपनी जानें क़ुर्बान कर दीं।

चेहलुम का दिन हज़रत ज़ैनब के कर्बला वापस पहुंचने का दिन है। हज़रत ज़ैनब ने 40 दिन बहुत कठिनाईयों बिताए हैं। वह महिला जिसे टूट जाना चाहिए था, वह जीतकर वापस लौट रही है। उसने इन 40 दिनों में अपनी ज़िम्मेदारी को अच्छी तरह से अंजाम दिया है। हालांकि इमाम हुसैन पर होने वाले अत्याचारों का ग़म ऐसा शोला था, जो किसी के भी दिल को जलाकर राख कर सकता था, हज़रत ज़ैनब की तो बात ही अलग है। उन्होंने अत्यधिक कठिनाईयों को सहन किया, कोड़े खाए, भूखी और प्यासी रहीं और क़ैदी बनाई गईं, लेकिन कसी भी अत्याचार ने उन्हें भाई की दूरी से अधिक नहीं सताया था। इसीलिए जब उन्होंने कर्बला में प्रवेश किया और इमाम हुसैन (अ) के पवित्र मज़ार पर पहुंचीं तो बहुत ही दर्दनाक आवाज़ में अपने भाई को पुकारा, हे पैग़म्बरे इस्लाम (स) के प्यारे लाडले, हे मक्का और मिना के लाडले और हे ज़हरा और अली के बेटे, आह। इन शब्दों ने जो ऐसे दुखी दिल से निकल रहे थे, जो ग़मों से भरा हुआ था, वहां मौजूद लोगों को व्याकुल कर दिया। कोई ऐसी आंख नहीं थी, जिससे आंसू नहीं निकल रहे थे और लोग ऊंची आवाज़ों में विलाप कर रहे थे

 

Read 2348 times