इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम का शुभ जन्म दिवस

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सत्रह रबीउल अव्वल को पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के शुभ जन्म दिवस के दिन ही उनके पवित्र परिवार में एक नवजात ने आंखें खोलीं जिसने आगे चल कर मानवता, ज्ञान, प्रतिष्ठा व अध्यात्म के संसार में अनेक अहम परिवर्तन किए।

वह नवजात, इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के घर में जन्मा था जिसका नाम जाफ़र रखा गया और आगे चल कर उसे सादिक़ अर्थात सच्चे की उपाधि दी गई।

इस्लामी समुदाय की एकता व एकजुटता का विषय पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों के निकट अत्यंत महत्वपूर्ण मामलों में से एक था, इस प्रकार से कि वे मुसलमानों की एकता की रक्षा पर अत्यधिक बल देने के साथ ही इस पर ध्यान देने को धार्मिक विरोधियों के संबंध में शियों का मुख्य दायित्व बताते थे। इसी तरह उनका और उनके मानने वालों अर्थात शियों का व्यवहारिक चरित्र भी अन्य मुसलमानों के साथ सहनशीलता पर आधारित था जिससे उनके निकट इस विषय के महत्व का पता चलता है। यह बिंदु शिया मुसलमानों की सही धार्मिक संस्कृति को दर्शाने के साथ ही उन पर लगाए जाने वाले बहुत से आरोपों और भ्रांतियों को दूर कर सकता है।

पैग़म्बरे इस्लाम के परिजन उन ईश्वरीय नेताओं में से हैं जिन्हें पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने क़ुरआने मजीद के साथ लोगों के कल्याण व मोक्ष का कारण बताया है। उनकी बातें, क़ुरआन की ही बातें हैं और उनका लक्ष्य ईश्वरीय आदेशों को लागू करना है। हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ईश्वरीय नेताओं का संपूर्ण नमूना हैं जो हर चीज़ से ज़्यादा लोगों की एकता व एकजुटता के बारे में सोचते थे और हमेशा इस बात पर बल देते थे कि लोगों के बीच गहरे मानवीय व स्नेहपूर्ण संबंध होने चाहिए। वे कहते थे। एक दूसरे से जुड़े रहो, एक दूसरे से प्रेम करो, एक दूसरे के साथ भलाई करो और आपस में मेल-जोल से रहो। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम का वंशज होने और गहरा ज्ञान, तत्वदर्शिता, शिष्टाचार और इसी प्रकार के अन्य सद्गुणों से संपन्न होने के कारण इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम मुसलमानों के बीच एकता के लिए मज़बूत पुल की हैसियत रखते थे।

इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम आपसी फूट को इस्लाम की कमज़ोरी और दुश्मन की ओर से ग़लत फ़ायदा उठाए जाने का कारण बताते थे। उन्होंने अपने एक साथी से इस प्रकार कहा थाः हमारे मानने वालों तक हमारा सलाम पहुंचाओ और उनसे कहो कि ईश्वर उस बंदे पर दया करता है जो लोगों की मित्रता को अपनी ओर आकृष्ट करे। इमाम सादिक़ का मानना था कि सभी धार्मिक वर्ग व गुट इस्लामी समाज के सदस्य हैं और उनका सम्मान व समर्थन किया जाना चाहिए क्योंकि वे भी शासकों के अत्याचारों से सुरक्षित नहीं रहे हैं। इसी लिए वे बल देकर कहते थे कि मुसलमानों के लिए ज़रूरी है कि वे आपसी मित्रता व प्रेम को सुरक्षित रखने के साथ ही सभी इंसानों की आवश्यकताएं पूरी करने में उनके सहायक रहें। वे स्वयं भी हमेशा ऐसा ही करते थे।

इतिहास साक्षी है कि इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम की इमामत का काल, संसार में इस्लामी ज्ञानों यहां तक कि विज्ञान व दर्शनशास्त्र के विकास का स्वर्णिम काल था। उन्होंने सरकारी तंत्र की ओर से अपने और अपने प्रमुख शिष्यों के ख़िलाफ़ डाले जाने वाले भीषण दबाव और कड़ाई के बावजूद अपने निरंतर प्रयासों से इस्लामी समाज को ज्ञान-विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में मौजूद अपने प्रतिद्वंद्वियों से काफ़ी आगे पहुंचा दिया। इमाम सादिक़ और उनके पिता इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिमस्सलाम की इमामत के काल में यूनान के अनेक वैचारिक व दार्शनिक संदेह इस्लामी क्षेत्रों में पहुंचने के अलावा भीतर से भी विभिन्न प्रकार के ग़लत विचार पनप रहे थे। इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने इन दोनों मोर्चों के मुक़ाबले में अपने ज्ञान व युक्तियों से इस्लामी समाज की धार्मिक व वैज्ञानिक स समस्याओं का समाधान करने के अलावा उन उपायों की ओर से भी निश्चेतना नहीं बरती जो मुसलमानों के बीच एकता का कारण बनते थे। वे अपने अनुयाइयों से कहते थे कि सुन्नी रोगियों से मिलने के लिए जाया करो, उनकी अमानतें उन्हें लौटाओ, उनके पक्ष में न्यायालय में गवाही दो, उनके मृतकों के अंतिम संस्कारों में भाग लो, उनकी मस्जिदों में नमाज़ पढ़ो ताकि वे लोग कहें कि अमुक व्यक्ति जाफ़री है, अमुक व्यक्ति शिया है जो इस तरह के काम करता है और यह बात मुझे प्रसन्न करती है।

इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम को वास्तव में इस्लामी एकता का ध्वजवाहक कहा जा सकता है। वे मुसलमानों के बीच एकजुटता के लिए कहते थे। जो अहले सुन्नत के साथ नमाज़ की पहली पंक्ति में खड़ा हो वह उस व्यक्ति की तरह है जिसने पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के पीछे जमाअत से नमाज़ पढ़ी हो। उनके एक शिष्य इस्हाक़ इब्ने अम्मार कहते हैं। इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने मुझसे कहाः हे इस्हाक़! क्या तुम अहले सुन्नत के साथ मस्जिद में नमाज़ पढ़ते हो? मैंने कहा कि जी हां, मैं पढ़ता हूं। उन्होंने कहाः उनके साथ नमाज़ पढ़ो कि उनकी पहली पंक्ति में नमाज़ पढ़ने वाला, ईश्वर के मार्ग में खिंची हुई तलवार की तरह है। उनके इसी व्यवहार के कारण उनके शिष्यों में सिर्फ़ शिया नहीं थे बल्कि अहले सुन्नत के बड़े बड़े धर्मगुरू भी उनके शिष्यों में दिखाई देते हैं। मालिक इब्ने अनस, अबू हनीफ़ा, मुहम्मद इब्ने हसन शैबानी, सुफ़यान सौरी, इब्ने उययना, यहया इब्ने सईद, अय्यूब सजिस्तानी, शोबा इब्ने हज्जाज, अब्दुल मलिक जुरैह और अन्य वरिष्ठ सुन्नी धर्मगुरू इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के शिष्यों में शामिल हैं।

अहले सुन्नत के बड़े बड़े धर्मगुरुओं और इतिहासकारों ने इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम की महानता के बारे में बातें कही हैं और उनके शिष्टाचार, अथाह ज्ञान, दान दक्षिणा और उपासना की सराहना की है। ज्ञान के क्षेत्र में उनकी महानता के बारे में इतना ही जानना काफ़ी है कि अहले सुन्नत के 160 से अधिक धर्मगुरुओं ने अपनी किताबों में उनकी सराहना की है और उनकी बातें व हदीसें लिखी हैं। अहले सुन्नत के इमाम प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के शिष्य थे। मालिक इब्ने अनस ने इमाम सादिक़ से ज्ञान अर्जित किया और वे उनके शिष्य होने पर गर्व करते थे। अबू हनीफ़ भी दो साल तक उनके शिष्य रहे। वे इन्हीं दो वर्षों को अपने ज्ञान का आधार बताते थे और कहते थे कि अगर वे दो साल न होते तो नोमान (अबू हनीफ़ा) तबाह हो गया होता।

इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम एक स्थान पर कहते हैं। मुसलमान, मुसलमान का भाई और उसकी आंख, दर्पण व पथप्रदर्शक के समान है और व कभी भी उससे विश्वासघात नहीं करता और न ही उसे धोखा देता है। वह उस पर न तो अत्याचार करता है, न उससे झूठ बोलता है और न पीठ पीछे उसकी बुराई करता है। इस प्रकार उन्होंने मुसलमानों के बीच अत्यंत निकट व मैत्रीपूर्ण संबंधों व बंधुत्व पर बल देते हुए इस भाईचारे और निकट संबंध को बुरे व्यवहारों से दूर बताया है। उनके चरित्र से भी यही पता चलता है कि उन्होंने कभी भी अपने आपको सामाजिक या धार्मिक बंधनों और भेदभाव में नहीं फंसाया और हमेशा सभी इस्लामी मतों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों पर बल देते रहे।

शायद कुछ लोग यह सोचें कि इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने डर कर या अहले सुन्नत का ध्यान रखते हुए इस तरह की बातें कही हैं लेकिन वास्तविकता यह है कि यह सोच न तो इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम के काल की परिस्थितियों से समन्वित है और न वर्तमान समय के उच्च शिया धर्मगुरुओं के फ़त्वों से मेल खाती है क्योंकि इस समय भी शिया धर्मगुरुओं के फ़त्वे भी उन्हीं आधारों के अंतर्गत दिए गए हैं जिन्हें इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम कई शताब्दियों पूर्व अहले सुन्नत के साथ व्यवहार के संबंध में बयान किया था।

 

 

 

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