जीने की कला-2

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जीने की कला-2

हमने पहली कड़ी में चिंतन और विचार के महत्व के बारे में बात की थी हमने बताया कि अच्छे जीवन के लिए सबसे पहला क़दम यह है कि इंसान सोच विचार करने वाला हो।

हमें चिंतन मनन की शुरुआत ईश्वर के बारे में और ब्रह्मांड के बारे में चिंतन से करना चाहिए और अपने मन मस्तिष्क का दायरा विस्तृत करना चाहिए। इंसान अपने शरीर के जिस अंग का भी अधिक प्रयोग करता है उसमें अधिक उत्थान और क्षमता पैदा होती है। ज़ाहिर है कि जब कोई इंसान चिंतन मनन पर अपना मन केन्द्रित करे तो उसकी चिंतन शक्ति का दायरा बढ़ता है और वह अपने जीवन में बेहतर निर्णय लेने की स्थिति में आ जाता है। एसा व्यक्ति अपने जीवन पर पूरी तरह नियंत्रण रखता है और जीवन के सभी मामलो के लिए उसका मस्तिष्क विशलेषण करने और समाधान निकालने में सक्षम हो जाता है। समय प्रबंधन विशलेषक एलेक मैकेन्ज़ी का कहना है कि हर विफलता का कारण बग़ैर चिंतन किए क़दम उठाना है।

हर काम में पहले चिंतन करने का आदेश सभी पैग़म्बरों और रसूले इस्लाम ने दिया है। बुद्धि का मतलब अज्ञानता का रास्ता बंद करना है। बुद्धि वही शक्ति है जो हक़ीक़त तक पहुंच जाती है। इंसान की इच्छाएं हमेशा नियंत्रण से बाहर होने की कोशिश करती हैं, वह जंगली जानवर की तरह होती हैं कि यदि उन्हें बांध कर न रखा जाए तो निरंकुश होकर बार बार झपट पड़ती हैं। यह इंसान को कभी किसी दिशा में और कभी किसी अन्य दिशा में खींचती हैं और इंसान संकट में उलझकर रह जाता है। इंसान की इच्छाओं पर बुद्धि का पहरा होना ज़रूरी है। पैग़म्बरे इस्लाम बुद्धि की परिभाषा में कहते हैं कि यह अज्ञानता को मिटाने का सबसे बड़ा हथियार है। पैग़म्बरे इस्लाम का कथन हैः निश्चित रूप से बुद्धि अज्ञानता के मार्ग को बंद करने का नाम है, इंसान की इच्छाएं सबसे दुष्ट जानवर की भांति होती हैं  यदि उनके पांव में बेड़ी न डाली जाए तो वह हर तरफ़ चकराती फिरती हैं। अतः बुद्धि अज्ञानता के पांव में बेड़ियां डाल देती है।

कहते हैं कि एक मूर्ख व्यक्ति महान दार्शनिक अरस्तू के सामने एक ज्ञानी व्यक्ति की कमियां गिनवाने लगा और उसकी बुराई करने लगा। समझदार व्यक्ति ख़ामोश नहीं रहा बल्कि उस मूर्ख व्यक्ति को डांटने लगा। अरस्तू ने मूर्ख व्यक्ति से तो कुछ नहीं कहा लेकिन समझदार व्यक्ति को डांटा। उसने आश्चर्य से पूछा कि आप मुझें क्यों डांट रहे हैं जबकि बुरा भला कहना तो उस मूर्ख ने शुरू किया था? दूसरी बात यह है कि वह मूर्ख आदमी है जबकि मैंने तो ज्ञान हासिल किया है। अरस्तू ने जवाब दिया कि मैं भी इसी लिए तुमको डांट रहा हूं कि तुम समझदार आदमी हो और समझदार आदमी मूर्ख व्यक्ति को पहचानता है इसलिए कि वह ख़ुद भी किसी समय अज्ञानी था बाद मे उसने ज्ञान प्राप्त किया और ज्ञानी हो गया मगर अज्ञानी व्यक्ति ज्ञानी को नहीं पहचानता क्योंकि वह अब तक ज्ञान से दूर है।

क़ुरआन और पैग़म्बरे इस्लाम की शिक्षाओं के अनुसार इंसान को यह अधिकार नहीं है कि जिस चीज़ को वह अनुचित समझता है उस पर विश्वास कर ले और एसी विशेषताएं अपने भीतर पैदा करे जो अच्छी नहीं हैं, वह काम करे जिसे वह उचित नहीं समझता। इस्लाम इंसानों को सोचने और चिंतन करने की आदत डालना चाहता है। ईश्वर क़ुरआन के सूरए युनुस की आयत संख्या 100 में कहता है कि ईश्वर उन लोगों पर जो चिंतन नहीं करते पस्ती डाल देता है।

विवेक और चिंतन इंसान के लिए अपने लौकिक जीवन को सुव्यवस्थित करने का सबसे अच्छा साधन है। इंसानों के बीच यदि कोई अंतर है तो वह उनके विचारों और सोच का अंतर है। हर व्यक्ति अपनी सोच और रुजहान के अनुसार अपने जीवन के मामलों को निपटाता है। सफल इंसान उच्च विचारों, सार्थक, अंकुरित और सृजनकारी सोच के साथ अपने लिए उपलब्धियां अर्जित करते हैं जबकि विफल लोग नकारात्मक सोच, दुर्भावना और अज्ञानता में अपने जीवन को अंधकार की गहराइयों में पहुंचा देते हैं।

जीवन की कड़ियां और उसका पूरा नक़्शा हमारे अपने हाथ में होता है और इसका प्रबंधन हमारी बुद्धि द्वारा होता है। अलबत्ता कठिनाइयां और विपरीत परिस्थितियां हर इंसान के जीवन में आती रहती हैं। कठिन परिस्थितियों में ईश्वर पर भरोसा करना और उससे भलाई की दुआ करना चाहिए और अपनी बुद्धि से हालात को नियंत्रण में लाने की कोशिश करना चाहिए। उदाहरण स्वरूप हो सकता है कि कोई व्यक्ति अपने बेटे की बीमारी की ख़बर सुनकर यह महसूस करे कि अब वह दीवार से जा लगा है और सारे रास्ते बंद हो गए हैं जबकि दूसरा व्यक्ति इस स्वभाव का होता है कि इस प्रकार की स्थिति का सामना होने पर तत्काल अपने बेटे के लिए योग्य डाक्टर की तलाश में लग जाता है।

जीवन के मामलों का सही प्रबंधन, सही योजनाबंदी, तथा नफ़ा नुक़सान का आंकलन विवेक और बुद्धि के माध्यम से ही होता है। इस्लामी कथनों और शिक्षाओं में जीवन के विषयों को सही प्रकार समझने के लिए बुद्धि और विवेक प्रयोग करने पर ज़ोर दिया गया है। इस बात पर अधिक बल दिया गया है कि कामों के अंजाम के बारे में पहले से ही अच्छी तरह सोच लिया जाए और समस्त संभावित परिस्थितियों के लिए पहले से ही तैयारी की जाए।

इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम कहते हैं कि एक व्यक्ति पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के पास आया और उसने कहा कि हे पैग़म्बर मुझे आप कोई नसीहत कर दीजिए। पैगम्बरे इस्लाम ने उससे तीन बार पूछा कि अगर मैं नसीहत करूं तो तुम उस पर अमल करोगे? उस व्यक्ति ने तीनों बार यही जवाब दिया कि हां मैं अमल करुंगा। पैगम्बरे इस्लाम ने कहा कि मैं तुम्हें नसीहत करता हूं कि जब भी कोई काम करना चाहो तो उसके अंजाम के बारे में अच्छी तरह विचार कर लो। यदि वह अंजाम तुम्हारे उत्थान और मार्गदर्शन में मददगार हो तो अंजाम दो और यदि वह गुमराही का कारण बने तो उससे परहेज़ करो।

उस व्यक्ति से अमल करने का वादा लेने की पैग़म्बरे इस्लाम की शैली से पता चलता है कि अंजाम के बारे में सोचना बहुत ज़रूरी है। पैग़म्बरे इस्लाम हमें यह संदेश देना चाहते हैं कि हमें चिंतन मनन की आदत होनी चाहिए कभी भी हमको एसे किसी काम में नहीं पड़ना चाहिए जिसके परिणामों के बारे में हमने पहले से ही अच्छी तरह सोच विचार और चिंतन नहीं किया है।

कोई भी बुद्धिमान व्यक्ति जब कोई काम शुरू करता है तो पहले उसके अंजाम के बारे में सोच लेता है। वह यूंही कोई काम शुरू नहीं करता बल्कि उस काम के भौतिक और आध्यात्मिक लाभ का भलीभांति आंकलन कर लेता है। चूंकि इंसान की बुद्धि अच्छाई और बुराई के अंतर को समझन में मदद देती है अतः बुद्धि का प्रयोग करके किसी भी चीज़ और किसी भी काम के सभी संभावित आयामों और पहलुओं को समझा जा सकता है और भलीभांति समझ लेने के बाद उसे अंजाम दिया जा सकता है। मनोविशेषज्ञों का कहना है कि बुद्धि ब्रह्मांड को उत्थान और परिपूर्णता के अंतिम बिंदु पर ले जाने वाला साधन है।

पैग़म्बरे इस्लाम जीवन के मामलों में चिंतन मनन के महत्व को बयान करते हुए कहते हैं कि मैं अनुशसा करता हूं कि जब भी तुम कोई काम करना चाहो तो उसके अंजाम के बारे में पहले ही सोच लो, यदि उससे तुम्हें विकास और उत्थान मिलने वाला हो तो उसको अंजाम दो और यदि उससे ख़राबी और विनाश होने वाला हो तो उसे छोड़ दो।

कहते हैं कि एक दिन एक गौरैया अपना घोंसला बनाने में व्यवस्था थी। उसने बड़ी मेहनत करके एक पेड़ पर अपना घोसला बना लिया। उस जंगल में जहां वह पेड़ था एक हुदहुद रहता था जिसे बहुत बुद्धिमान माना जाता था। हुदहुद बार बार गौरैया से कह रहा था कि तुम इस पेड़ पर घोसला न बनाओ मगर गौरैया ने उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया। दिन गुज़रते गए, उस गौरैया ने अपने घोसले में अंडे दिए और अपने अंडों की बड़ी देखभाल करती थी। अंडों से बच्चों के निकलने का समय क़रीब आ रहा था। एक दिन सुबह को लोगों के बोलने और आरी चलने की आवाज़ आने लगी। गौरैया ने यह आवाज़ सुनी तो बाहर देखा और यह देखकर रोने लगी कि उसी पेड़ को कुछ लोग काट रहे हैं जिस पर उसका घोसला है। वह रोती हुई हुदहुद के पास पहुंची। गौरैया ने कहा कि मेरी मदद करो। हुदहुद ने कहा कि तुमने एसे पेड़ पर घोंसला बनाया जो इंसानों के गुज़रने के रास्ते में पड़ता था। मैंने इसी लिए तुमको बार बार चेतावनी दी थी कि इस पेड़ पर घोंसला न बनाओ किसी और पेड़ पर घोसला बनाओ। अब कुछ नहीं हो सकता। जल्दबाज़ी करने और बिना सोचे काम करने का यही अंजाम है।

अंजाम के बारे में सोच लेना समझदार इंसानों की पहिचान है जिससे इंसान को अच्छी ज़िंदगी मिलती है। जो लोग अपने कामों के अंजाम के बारे में पहले ही सोचने और विचार करने की आदत नहीं रखते वह बार बार ग़लतियां करते और फिसलते हैं और वह बार बार नीचे गिरते हैं। कोई भी महत्वपूर्ण फ़ैसला करने के लिए ज़रूरी है कि सोचा जाए और आंकलन किया जाए। हर इंसान के लिए ज़रूरी है कि अपने काम के अंजाम के बारे में सोचे और इस तरह अपने जीवन को बेहतर बनाए। जो लोग अंजाम के बारे में सोचे बग़ैर काम करते हैं और भविष्य की संभावित परिस्थितियों का आंकलन किए बग़ैर फ़ैसला कर लेते हैं वह हमेशा मुसीबतों में फंसते हैं और रोज़ रोज़ पछताते और परेशान होते हैं। काम के सभी पहलुओं पर पहले से विचार कर लेना और भलीभांति सोच विचार करना सबसे उचित तरीक़ा है और इससे इंसान ख़ुद को गलतियों से बचा सकता है।

महापुरुषों का कहना है कि जो व्यक्ति बिना सोचे समझे और विवेक का प्रयोग किए बग़ैर कोई काम शुरू कर देता है वह उस यात्री की भांति है जो ग़लत रास्ते  पर चल पड़ा हो, वह अपनी रफ़तार जितनी बढ़ाएगा अपने रास्ते और अपने गंतव्य से उतना ही दूर होता जाएगा।

 

सोच विचार और अंजाम के आंकलन के मार्ग में एक बड़ी रुकावट है घमंड। हज़रत अली अलैहिस्सलाम का कथन है कि जो व्यक्ति घमंड में पड़ जाता है वह अपने कामों के अंजाम के बारे में नहीं सोचा।

घमंड करने वाला इंसान कभी न कभी पछताता है क्योंकि एसी स्थिति में इंसान सही मूल्यांक नहीं कर पाता न ख़ुद को समझ पाता है और न दूसरों को समझ पाता है। वह अपने जीवन के मामलों के आंकलन में हमेशा ग़लती करता है और इसी के चलते उसे बार बार अनेक मामलों में पछताना पड़ता है।

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