अनमोल बातें - 2

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अनमोल बातें - 2

ईश्वर की उपासना का अर्थ उसका आज्ञापालन और उसकी प्रसन्नता की दिशा में क़दम उठाना है।

ईश्वर की उपासना मुक्ति की सीढ़ी, उससे प्रेम का तरीक़ा और सौभाग्य की प्राप्ति का सबसे ठोस दस्तावेज़ है। ईश्वर की उपासना उससे संपर्क बनाने का साधन, उसके आज्ञापालन का एलान और उसके सामने नत्मस्तक होना है।

इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं कि ईश्वर कहता हैः हे मेरे प्रिय बंदो! इस तुच्छ भौतिक दुनिया के जीवन में मेरी उपासना की अहमियत को समझो। इस नेमत की क़द्र करो।

नमाज़ ईश्वर की बहुत बड़ी उपासना है। रोज़ा, ज़कात और ख़ुम्स नामक विशेष कर और हज ईश्वर की अनुकंपा है। इन उपासनाओं का हमारे लिए अनिवार्य होना नेमत की तरह है। ईश्वर कहता है कि दुनिया में मेरी उपासना को अहम समझो। उपासना को अपने लिए बोझ न समझो, बल्कि ईश्वर की ओर से मिलने वाली नेमत समझो।

जहां तक मुमकिन हो धर्मपरायण बंधु के मुंह से निकली बात को सही मानो। अगर हम सिर्फ़ इसी उसूल को अपने जीवन में चरितार्थ कर लें तो बहुत सी दुश्मनियां और अफ़वाहें कम हो जाएंगी।

जिस समय कोई धर्मपरायण भाई कोई बात कहे तो उसमें दो संभावनाएं मौजूद होती हैं एक अच्छी और दूसरी बुरी। जब तक मुमकिन हो उसके नकारात्मक आयाम को अहमियत न दीजिए बल्कि अच्छे आयाम को अहमियत दीजिए। यह मूल नियम और नैतिक सिद्धांतों में है जिससे सामाजिक संबंध मज़बूत होते हैं। क्योंकि समाज की अखंडता बहुत अहम है। अगर समाज में लोगों के बीच संबंध मज़बूत हों तो उनके अपने लक्ष्य तक पहुंचने की संभावना अधिक है न कि फूट की स्थिति में।

जब आपका धर्मपरायण भाई कोई बात कहे तो उस वक़्त तक उसकी बात का बुरा अर्थ न निकालिए जब तक उसकी बात में अच्छाई का पहलू निकल सकता हो। अगर अच्छा अर्थ निकल सकता है कि उससे अच्छा ही अर्थ निकालिए।

 

 

 

      

 

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