पश्चिम एशिया के महानायक जनरल क़ासिम सुलैमानी के बारे में सबसे अधिक पढ़ी जाने वाली 12 किताबें

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पश्चिम एशिया के महानायक जनरल क़ासिम सुलैमानी के बारे में सबसे अधिक पढ़ी जाने वाली 12 किताबें

तेहरान में किताबों की अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनी आरंभ हो गयी है। साथ ही बहुत से अनुवादक ईरानी किताबों को अपने देशों की भाषाओं में अनुवाद करने में दिलचस्पी दिखा रहे हैं।

इन बातों के दृष्टिगत हम पश्चिम एशिया में आतंकवादी गुट दाइश से मुकाबले के महानायक जनरल क़ासिम सुलैमानी के संबंध में बहुत अधिक पढ़ी जाने वाली कुछ किताबों से परिचित करायेंगे।

जनरल क़ासिम सुलैमानी हाज क़ासिम के नाम से मशहूर हैं। वह ईरान की सिपाहे पासदारान फोर्स आईआरजीसी की क़ुद्स ब्रिगेड के पूर्व कमांडर और पश्चिम एशिया में आतंकवादी गुट दाइश और अमेरिका और जायोनी सरकार से मुकाबले के महानायक थे। इराक और सीरिया में आतंकवादी गुट दाइश के ज़ाहिर होने के बाद जनरल क़ासिम सुलैमानी इन देशों में हाज़िर हुए और इन दोनों देशों की सरकारों के सहयोग से वहां के स्वयं सेवी बलों को समन्वित करके आतंकवादी गुटों से मुकाबला आरंभ किया और इन दोनों देशों में आतंकवादी गुट दाइश द्वारा अतिग्रहित क्षेत्रों को आज़ाद कराने और इस गुट की सरकार को खत्म करने में उल्लेखनीय भूमिका निभाई।

जनरल क़ासिम सुलैमानी सैनिक टैक्टिक को लागू करने और साम्राज्यवादी योजना को नाकाम बनाने में बहुत माहिर व दक्ष थे इस प्रकार से कि उन्हें बिना साये के जनरल की उपाधि दी थी।

अंततः 63 साल की उम्र में शुक्रवार की सुबह 13 दैय 1398 शमसी अर्थात 3 जनवरी 2020 को अमेरिकी सैनिकों ने इराक में एक आतंकवादी हमले में उन्हें शहीद कर दिया। अमेरिका के इस आतंकवादी हमले के बाद ईरान ने इराक में आधुनिकतम हथियारों से लैस अमेरिका की सैनिक छावनी एनुल असद को मिसाइलों से निशाना बनाया और उसके बाद से पश्चिम एशिया में अमेरिकी सैनिकों के खिलाफ ईरान की ग़ैर आधिकारिक आतंकवाद विरोधी सैनिक लड़ाई आरंभ हो गयी।

पश्चिम एशिया में आतंकवाद के ख़िलाफ लड़ाई के महानायक जनरल क़ासिम सुलैमानी के संबंध में बहुत अधिक पढ़ी जाने वाली 12 किताबों पर एक नज़र

जनरल क़ासिम सुलैमानी के संबंध में लिखी जाने वाली एक किताब का नाम है" मैं किसी चीज़ से नहीं डरता था"

रोचक बात यह है कि इस किताब को ख़ुद जनरल क़ासिम सुलैमानी ने लिखा है और इसमें उन्होंने अपनी जीवनी लिखा है। इस किताब के पहले एडीशन को "मकतबे हाज क़ासिम" नामक प्रेस ने प्रकाशित किया है। इस किताब में ईरान की इस्लामी क्रांति के नेता इमाम ख़ामनेई ने कुछ नोट लिखे हैं। इस किताब में शहीद जनरल क़ासिम सुलैमानी के हाथों से लिखी हुई किरमान प्रांत के क़नात मलिक गांव में बचपने की घटनाओं का उल्लेख किया गया है।

जनरल क़ासिम सुलैमानी के संबंध में एक अन्य किताब का नाम है" हाज क़ासिमी की मन मी शनाख़्तम" है।

इस किताब को सईद अल्लामियान ने लिखा है और इसे "ख़त्ते मुक़द्दम" नाम प्रेस ने प्रकाशित किया है। इस किताब में सईद अल्लामियान ने जनरल क़ासिम सुलैमियान के साथ 40 वर्षों तक साथ रहने की घटनाओं का उल्लेख किया है। इस किताब में 12 भाग हैं। जंग के दौरान की घटनायें और इस जंग में एक सैनिक के रूप में जनरल क़ासिम सुलैमानी के प्रवेश के साथ यह किताब आरंभ होती है।

जनरल क़ासिम सुलैमानी के संबंध में एक अन्य किताब का नाम "हाज क़ासिम रफ़ीक़े ख़ुशबख्ते मा" है। इस किताब को "सिब्ते अकबर" प्रेस ने प्रकाशित किया है। इस किताब में शहीद जनरल क़ासिम सुलैमानी की जीवनी और उनके वसीयतनाम का उल्लेख किया गया है। इसी प्रकार इस किताब में यह बयान किया गया है कि इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता और सैयद हसन नस्रुल्लाह के कलाम में जनरल क़ासिम सुलैमान कैसी हस्ती हैं।

जनरल क़ासिम सुलैमानी के संबंध में एक अन्य किताब का नाम है "मन क़ासिम सुलैमानीअम" इस किताब को मुर्तज़ा शाहकरम ने लिखा है और इसे सूरे मेहर प्रेस ने प्रकाशित किया है। इस किताब में पांच ड्रामे लिखे गये हैं। इन ड्रामों का उद्देश्य शहीद जनरल क़ासिम सुलैमानी की हस्ती, आइडियालोजी और विचारधारा से मुख़ातब को बेहतर ढंग से पहचनवाना है। इस किताब में जो पांच ड्रामे हैं उनके नाम इस प्रकार हैं मोहन्दिसे मीन, काख़े रियासत जम्हूरी, सरबाज़े सरदार, मफ़क़ूदे दुव्वोम और एक छोटा ड्रामा "मन क़ासिम सुलैमानीअम" है।

शहीद जनरल क़ासिम सुलैमानी के संबंध में एक अन्य किताब का नाम "रोज़ी रोज़गारी हाज क़ासिम सुलैमानी" है।

इस किताब को अब्बास मिर्ज़ाई ने लिखा है और या ज़हरा प्रेस ने प्रकाशित किया है। इस किताब में इस बात का उल्लेख किया गया है कि शहीद जनरल क़ासिम सुलैमानी के मातहत जो सैनिक होते थे जंग के कठिन से कठिन हालात में उन्हें वह किस प्रकार आदेश देते थे और उनका किस प्रकार मार्गदर्शन करते थे।  "रोज़ी रोज़गारी हाज क़ासिम सुलैमानी" के नाम से या ज़हरा प्रेस ने कई किताबें छापी है। एक किताब का नाम है "हुजूम बे तहाजुम" इस किताब में बहमन 1360 हिजरी शमसी से लेकर उर्दीबहिश्त 1361 हिजरी शमसी तक की घटनाओं को बटालियन "41 सारल्लाह" के तत्कालीन कमांडर की ज़बान से बयान किया गया है। इसी प्रकार दूसरी किताब का नाम है "नबर्दे सैयद जाबिर" इस किताब में शहीद जनरल क़ासिम सुलैमानी के जीवन से संबंधित घटनाओं को उर्दीबहिश्त महीने से तीर महीने तक बयान किया गया है। इन घटनाओं का संबंध 1361 हिजरी शमसी से है।

शहीद जनरल क़ासिम सुलैमानी के संबंध में जो किताबें लिखी गयी हैं उनमें से एक काम नाम "ज़ुल फ़ेक़ार" है। इस किताब को "या ज़हरा" प्रेस ने प्रकाशित किया है। इस किताब को अली अकबर मुज़्दाबादी ने लिखा है जिसमें जनरल क़ासिम सुलैमानी के जीवन की मौखिक घटनाओं को बयान किया गया है। ज़ुलफ़ेक़ार किताब 248 पेज की है। इस किताब में पहली बार इराक़ द्वारा ईरान पर थोपे गये युद्ध के दौरान की घटनाओं और इसी प्रकार सीरिया और इराक में शहीद जनरल क़ासिम की भूमिका का उल्लेख किया गया है। यह पहली बार है जब इस किताब के 100 पेजों में उन तस्वीरों को दिखाया गया है जिन्हें अब तक नहीं दिखाया गया था और ये तस्वीरें शहीद जनरल क़ासिम सुलैमानी से विशेष हैं।

इसी प्रकार शहीद जनरल क़ासिम सुलैमानी के संबंध में एक अन्य किताब का नाम है "मुत्वल्लिदे मार्स"

इस किताब को अली अकबर मुज़्दाबादी ने लिखा है और इसे या ज़हरा प्रेस ने छापा है। मार्स को जंग की रूह का नाम दिया गया है और साथ ही मुहाफिज़े सुल्ह भी कहा गया है। प्राचीन समय में इंसानों की जो समस्त आस्थायें होती थीं मार्स उनका प्रतिनिधि होता था। "जंग व सुल्ह" और "मुतवल्लिदे मार्स" किताब में शहीद जनरल क़ासिम सुलैमानी, उनके दोस्तों और युद्ध में निकट लोगों की यादों को बयान किया गया है। इसी प्रकार इन किताबों में इराक और सीरिया में होने वाले परिवर्तनों और जनरल कासिम सुलैमानी के शहीद होने तक की घटनाओं को बयान किया गया है। इन घटनाओं को साक्षात्कार के रूप में एकत्रित व संकलित किया गया है।

इसी प्रकार शहीद जनरल क़ासिम सुलैमानी के संबंध में लिखी गयी एक किताब का नाम "सुलैमानी अज़ीज़" है। इस किताब को आलेमा तहमास्बी, लैला मूसवी और महदी क़ुरबानी ने मिलकर लिखा है। इस किताब में शहीद जनरल क़ासिम सुलैमानी की जीवनी को बयान किया गया है। साथ ही यह किताब शहीद जनरल क़ासिम सुलैमानी के वसीयत नामे के पूरे मत्न को बयान करती है जिसे इस किताब को पढ़ने वाले आसानी से पढ़ सकते हैं।

इसी प्रकार शहीद जनरल क़ासिम सुलैमानी के संबंध में लिखी जाने वाली एक किताब का नाम" माअनवियते इजतेमाई दर मकतबे सुलैमानी है।

यह उन महत्वपूर्ण किताबों में से है जिनमें शहीद जनरल क़ासिम सुलैमानी के विचारों को बयान किया गया है और इस किताब को आस्ताने क़ुद्से रज़वी प्रेस ने प्रकाशित किया है।

 

इसी प्रकार जनरल क़ासिम सुलैमानी के संबंध में लिखी गयी एक अन्य किताब का नाम है "बरादर क़ासिम" यह किताब विलायत, क्रांति, पवित्र प्रतिरक्षा, शहादत, हरम की रक्षा और संस्कृत आदि क्षेत्रों में शहीद जनरल क़ासिम के विचारों में एक सैर है। इस किताब की विशेष बात यह है कि इस किताब के लेखक ने शहीद जनरल क़ासिम सुलैमानी के विचारों की चर्चा की है और हवाले के साथ किताब के नीचे उसका उल्लेख किया है। इसी प्रकार यह किताब शहीद जनरल क़ासिम से परिचित कराने के अलावा पाठकों को दूसरी जानकारियां भी देती है। यह किताब दस भागों में है। जैसे विलायत, विलायतमदारी अर्थात वलीये फक़ीह का अनुपालन, पवित्र प्रतिरक्षा, शहीद, शहादत, पवित्र प्रतिरक्षा के शहीद, ईरान, ईरान की ओर झुकाव, प्रतिरोध का मोर्चा, हरम की रक्षा करने वाले, हरम की रक्षा में शहीद होने वाले और संस्कृति आदि का उल्लेख किया गया है। इस किताब को अबूज़र मेहरवान फर ने लिखा है।

शहीद जनरल क़ासिम सुलैमानी के संबंध में लिखी गयी एक किताब का नाम" बच्चाहाये हाज क़ासिम" है। इस किताब को अफ़सर फ़ाज़ेली शहर बाबकी ने लिखा है जिसमें हुसैन मारूफी की यादों को लिखा है। इराक द्वारा ईरान पर थोपे गये आठ वर्षीय युद्ध के दौरान हुसैन मारूफी एक वरिष्ठ ईरानी कमांडर थे जिन्होंने पवित्र प्रतिरक्षा के दौरान उल्लेखनीय काम किया था और बाद में इराकी सेना ने उन्हें बंदी भी बना लिया था। इस किताब में उनकी शूरवीरता की अनकही बातों का उल्लेख किया गया है। शहीद जनरल कासिम सुलैमानी के कथनानुसार पवित्र प्रतिरक्षा काल में "41 सारल्लाह" नामक बटालियन के वह सबसे कम उम्र कमांडर थे।

इसी प्रकार शहीद जनरल क़ासिम सुलैमानी के संबंध में जो किताबें लिखी गयी हैं उनमें एक का नाम" ईन मर्द पायान नदारद" है।

इस किताब में शहीद जनरल क़ासिम सुलैमानी की जेहादी ज़िन्दगी के मात्र छोटे से भाग को बयान किया गया है। इस किताब के मत्न और तस्वीरों की कलर प्रिंटिंग की गयी है।

यह किताब टेक्स्ट और कलर्ड तस्वीरों के साथ प्रकाशित हुई है। पढ़ने वालों को रेज़िस्टेंस फ़्रंट के महान कमांडर की कुछ तस्वीरों के अलावा कुछ स्मृतियां भी पढ़ने को मिलती हैं जो पहली बार प्रकाशित हुई हैं। किताब को इस अंदाज़ से संकलित किया गया है कि पढ़ने वाले को शहीद क़ासिम सुलैमानी की विचारधारा की काफ़ी हद तक जानकारी मिल जाती है।

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