हज़रत ख़दीजा को दो कफ़न क्यूँ दिये गये?

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हज़रत ख़दीजा को दो कफ़न क्यूँ दिये गये?

हज़रत ख़दीजा अ. के बाप ख़ुवैलद और मां फ़ातिमा बिंते ज़ाएदा बिंते असम हैं। जिस परिवार में आपका पालन पोषण हुआ वह परिवार अरब के सारे क़बीलों में सम्मान की नज़र से देखा जाता था और पूरे अरब में उसका प्रभाव था।

हज़रत ख़दीजा अ. अपनी क़ौम के बीच एक अलग स्थान रखती थीं जिसकी तुलना किसी से नहीं की जा सकती। आपके स्वभाव में नम्रता थी और आपके अख़लाक़ व नैतिकता में भी कोई कमी नहीं थी इसी वजह से मक्के की औरतें आपसे जतलीं थी और आपसे ईर्ष्या करती थीं।

आप इतनी पवित्र थीं कि आपको जाहेलियत के ज़माने में भी ताहेरा (पवित्र), मुबारेका (शुभ) और सय्यदा-ए-ज़ेनान (औरतों की सरदार) के नाम से जाना जाता था। यह इस बात का प्रतीक भी है कि उस गंदे माहौल में भी आपकी ज़िंदगी पूरी तरह से पवित्र थी।

(अल-एसाबः फ़ी मअरेफ़तिस सहाबा भाग 7 पेज 600)

 

हज़रत ख़दीजा पर ख़ुदा का सलाम

हज़रत ख़दीजए कुबरा स. का स्थान ख़ुदा के नज़दीक इतना बड़ा था कि बहुत ज़्यादा अवसरों पर उसने आपको सलाम व दुरूद भिजवाया।

जैसा कि हज़रत मोहम्मद बाक़िर अ. फ़रमाते हैं कि जब पैग़म्बरे अकरम स. मेराज से पलट रहे थे तो जिबरईल सामने आए और कहा कि ख़ुदा वन्द आलम ने फ़रमाया है कि मेरी तरफ़ से ख़दीजा को सलाम पहुँचा देना।

(बेहारुल अनवार भाग 6 पेज 7)

 

जब तक आप ज़िन्दा रहीं पैग़म्बर स. ने दूसरी शादी नहीं की।

ज़हबी आपकी श्रेष्ठता (महानता) में लिखते हैः वह महान, पवित्र, समझदार, उदार और जन्नती महिला थीं। हर तरह से एक पूर्ण महिला थीं। पैग़म्बरे अकरम स. हमेशा उनकी प्रशंसा व तारीफ़ करते रहते थे और उनको दूसरी बीवियों पर वरीयता देते थे और आपका बहुत सम्मान करते थे। यही वजह थी कि हज़रत आयशा कहती हैं कि मैं ख़दीजा से हसद (ईर्ष्या) करती थी क्योंकि पैग़म्बरे अकरम स. उनको बहुत चाहते थे।

आपकी फ़ज़ीलत (श्रेष्ठता) के लिये यही काफ़ी है कि पैग़म्बरे अकरम स. नें आपकी ज़िन्दगी में किसी दूसरी औरत से शादी नहीं की और ना ही कनीज़ रखी। सच्चाई यह है कि हज़रत ख़दीजा आप (स.) की सबसे अच्छी बीवी और साथी थीं। आपने अपना सारा माल व दौलत इस्लाम की तरक़्क़ी के लिये दान कर दिया और उस जगह पर पहुँच गईं कि ख़ुदा वन्दे आलम नें हज़रत रसूले अकरम स. को आदेश दिया कि ख़दीजा को जन्नत में आरामदायक घर मिलने की ख़बर दे दें। (सियरे आलामुन नुबलाअ भाग 2 पेज 110)

हज़रत अली अ. फ़रमाते हैं कि पैग़म्बरे अकरम स. नें फ़रमायाः

 

«أفضل نساء الجنة أربع: خدیجة بنت خویلد، و فاطمة بنت محمد، و مریم بنت عمران، و آسیة بنت مزاحم امرأة فرعون»

 

जन्नत की सबसे महान औरतें, चार हैः ख़दीजा ख़ुवैलद की बेटी व फ़ातिमा स. मोहम्मद स.अ. की बेटी, मरियम इमरान की बेटी और फ़िरऔन की बीवी आसिया।

(सही बुख़ारी भाग 3 पेज 1388)

हज़रत ख़दीजा बहुत मालदार थीं जोकि उन्होंने अपनी मेहनत और गुणवत्ता से हासिल किया था। आपकी सम्पत्ति और दौलत के बारे में अल्लामा मजलिसी कुछ रिवायतें बयान करते हैं कि जिनके अनुसार मक्का शहर में उनसे ज़्यादा अमीर कोई नहीं था। उनके बहुत से नौकर और मवेशी थे। 80 हज़ार से ज़्यादा ऊँट आपके पास थे जिनसे आप विभिन्न क्षेत्रों में व्यापार करती थीं। आपके बहुत से देशों में फ़ार्म थे जिनमें आपके आदमी व्यापारिक काम किया करते थे। मक्का शहर में आपका बहुत बड़ा घर था। कहा जाता है कि मक्के के सभी लोग इसमें आ सकते थे।

(बिहारूल अनवार भाग 16 पेज 21 व 22)

आपने पैग़म्बरे अकरम स. से शादी के बाद अपनी सारी दौलत और सम्पत्ति इस्लाम की तरक़्की के लिये दान कर दी।

(बिहारूल अनवार भाग 16 पेज 71)

 

क्या हज़रत ख़दीजा पैग़म्बर से शादी के समय कुँवारी थीं?

कुछ लोग कहते हैं कि हज़रत ख़दीजा नें पैग़म्बरे अकरम स. से शादी करने से पहले दो लोगों कि जिनके नाम अतीक़ बिन आएज़ मख़ज़ूमी और अबी हाला बिन अलमुज़िरुल असदी हैं, शादी की थी।

(बिहारूल अनवार भाग 16 पेज 10)

लेकिन बहुत से इतिहास कारों और विद्वानों नें जैसे

अबुल क़ासिम कूफ़ी, अहमद बलाज़री, सय्यद मुर्तज़ा किताबे शाफ़ी में और शेख़ तूसी काफ़ी के सारांश में लिखते है कि ख़दीजा अ. नें जब पैग़म्बरे अकरम स. से शादी की तो वह कुँवारी थीं। कुछ समकालीन लेखक जैसे अल्लामा सय्यद जाफ़र मुर्तज़ा नें भी यही बात कही है और अपनी बात को साबित करने के लिये किताबें लिखी हैं।

(अल-इस्तेग़ासा भाग 1 पेज 70)

 

हज़रत ख़दीजा की शादी के समय उनकी आयु

शादी के समय आपकी आयु कितनी थी इस बार में मतभेद पाया जाता है। कुछ लोग कहते हैं कि आप चालीस साल की थी लेकिन बैहेक़ी कहते हैं-

 

«... بلغت خدیجة خمسا و ستین سنة، و یقال: خمسین سنة، وهو أصح»

 

यानी ख़दीजा नें 65 साल ज़िन्दगी की और कुछ लोग कहते हैं 50 साल ज़िन्दगी की, यही बात सही है। वह दूसरी जगह लिखते हैं-

 

«أن النبی تزوج بها وهو ابن خمس و عشرین سنة قبل أن یبعثه الله نبیا بخمس عشرة سنة»

 

यानी रसूले ख़ुदा स. की आयु शादी के समय 25 साल थी और उन्होंने बेसत से 15 साल पहले शादी की।

(दलाएलुन नुबूव्वः भाग 2, पेज 71 व 72)

इसलिये बैहिक़ी के कथन के अनुसार हज़रत ख़दीजा देहांत के समय 50 साल की थीं और आपका देहांत बेसत के 10 साल बाद हुआ और आपकी शादी बेसत से 15 साल पहले हुई इस तरह से आप की आयु शादी के समय 25 साल थी।

कुछ इतिहास कार शादी के समय आपकी आयु 28 साल बताते हैं।

शज़रातुज़्ज़हब में लिखा है-

 

»و رجح کثیرون أنها ابنة ثمان و عشرین«

 

बहुत से इतिहास कारों नें इस बात वरीयता दी है कि वह शादी के समय 28 साल

की थीं।

 

)شذرات‌الذهب فی أخبار من ذهب، ج1، ص14(

 

इब्ने असाकिर नें तारीख़ो मदीनातिद दमिश्क़ (पेज 193, जिल्द 2) में, ज़हबी नें सियरे आलामुन नुबलाअ में और इरबेली ने कश्फ़ुल ग़म्मा में इब्ने अब्बास से नक़्ल किया है कि वह कहते हैं ख़दीजा शादी के समय 28 साल की थीं।

 

हज़रत ख़दीजा की तीन वसीयतें

जब हज़रत ख़दीजा की बीमारी बढ़ गई तो आपनें पैग़म्बरे अकरम से फ़रमाया कि उनकी वसीयत को सुन लें फिर आपनें फ़रमाया- ऐ रसूले ख़ुदा स. मेरी वसीयत यह है कि मेरी जो कमियां आपके हक़ को अदा करने में रह गईं हैं उनको माफ़ कर दें। पैग़म्बरे अकरम स. नें फ़रमाया- ऐसा बिल्कुल नहीं है मैंने तुम से किसी कमी को नहीं देखा है। तुमनें अपनी पूरी कोशिश और ताक़त रिसालत के अधिकारों के अदा करने में लगा दी है। सबसे ज़्यादा कठिनाइयां तुमनें मेरे साथ उठाईं हैं। अपने सारी दौलत को तुमनें ख़ुदा के रास्ते पर निछावर कर दिया है।

फिर आपनें फ़रमाया मैं आप स. से वसीयत करती हों अपनी बेटी फ़ातिमा स. के बारे में यह मेरे बाद यतीम और अकेली हो जाएगी बस कोई क़ुरैश की औरतों में से उसे परेशान न करे, कोई उसको थप्पड़ न मारे, कोई उसको डांटे नहीं, कोई उसके साथ सख़्ती न करे।

और मेरी तीसरी वसीयत जोकि मैं अपनी बेटी फ़ातिमा से करुँगी कि वह उस को बता दें क्योंकि मुझे आप (स.) के सामने कहते हुए शर्म आती है।

पैग़म्बरे अकरम कमरे से बाहर चले गए उस समय हज़रत ख़दीजा अ. नें हज़रत फ़ातिमा अ. से कहा- ऐ मेरी प्यारी बेटी पैग़म्बरे अकरम स. से कह देना मैं क़ब्र से डरती हूँ मुझे अपनी से चादर से जो आप स. वही के आने के समय ओढ़ते हैं, में कफ़न दें। जब हज़रत फ़ातिमा नें यह बात पैग़म्बर स. को बताई तो आप स. नें जल्दी से वह चादर फ़ातिमा स. को दे दी, उन्होंने अपनी माँ जनाबे ख़दीजा स. को ला कर दी। यह देख कर हज़रत ख़दीजा बहुत ख़ुश हुईं।

 

हज़रत ख़दीजा का कफ़न जन्नत से आया

जब हज़रत ख़दीजा का निधन हुआ और आपकी रूह जन्नत की तरफ़ चली गई तो पैग़म्बर स. नें आपको ग़ुस्ल दिया और काफ़ूर लगाया और जब यह चाहा कि उसी चादर से आपको कफ़न दें जिसकी वसीयत हज़रत ख़दीजा नें की थी, उसी समय जिबरईल आए और कहने लगे ऐ ख़ुदा के रसूल आप पर ख़ुदा का सलाम व दुरूद हो। ख़ुदा वन्दे आलम नें कहा है कि क्योंकि ख़दीजा नें अपनी सारी सम्पत्ति उसके लिये निछावर कर दी इसलिये उनका कफ़न ख़ुदा की तरफ़ से होगा। फिर जिबरईल नें कफ़न रसूल स. को दिया और कहा कि यह कफ़न जन्नत का है जिसको ख़ुदा नें हज़रत ख़दीजा को उपहार में दिया है। पैग़म्बर स. नें पहले अपनी चादर से जनाबे ख़दीजा को कफ़न दिया दिया उसके बाद उस कफ़न को जिसे जिबरईल लाये थे उस पर ओढ़ाया, इसी लिये हज़रत ख़दीजा दो कफ़न के साथ दफ़्न हुईं।

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