सुकून पाएँगे मौला तेरे ज़हूर के बाद

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सुकून पाएँगे मौला तेरे ज़हूर के बाद

मुझे नहीं पता आप कहाँ हैं, लेकिन इतना जानता हूँ कि आप सब कुछ जानते हैं। यह मेरी बदक़िस्मती है कि मैं सब देख रहा हूँ, लेकिन मेरी आँखें आपके दीदार के लिए तरस रही हैं।हे अल्लाह के अज़ीज़ और महबूब! मुझे जिस तरह ख़ुदा के वजूद पर यक़ीन है उसी तरह आपकी मौजूदगी पर भी ईमान है।

ऐ मेरे इमाम! आप पर मेरा सलाम ऐ मेरे आक़ा, ऐ मेरे सैयद व सरदार! आप पर मेरा सलाम।

मुझे नहीं मालूम आप कहाँ हैं लेकिन ये जानता हूँ कि आप सब कुछ जानते हैं। ये मेरी बदकिस्मती है कि मैं सब देख रहा हूँ लेकिन मेरी आँखें आपके दीदार को तरस रही हैं।

ऐ अल्लाह के अज़ीज़ व महबूब! मुझे जिस तरह वुजूद-ए-ख़ुदा पर यक़ीन है उसी तरह आपकी मौजूदगी पर ईमान है।

बुरहान-ए-नज़्म से जहाँ वजूद-ए-ख़ुदा का इस्बात होता है वहीं आपका वुजूद-ए-मुबारक भी साबित होता है कि जिस तरह बग़ैर ख़ालिक़ के ये कायेनात ख़ल्क़ नहीं हो सकती उसी तरह बग़ैर इमाम के ये निज़ाम-ए-कायेनात बाक़ी नहीं रह सकता।

मेरे मौला! आप कहाँ हैं मुझे नहीं मालूम लेकिन अगर आप न होते तो ये आसमान गिर जाता और ये ज़मीन फ़ना हो जाती।ऐ साकिन-ए-ग़ैबत! अगरचे मुझे मालूम है कि आपका पर्दा भी रहमत है कि बहुत सों पर पर्दे पड़े हुए हैं और जब नेक़ाब उलटेगी तो सिर्फ़ आप ज़ाहिर नहीं होंगे बल्कि बहुत सों की हक़ीक़तें ज़ाहिर हो जाएँगी।

लेकिन मौला! चाहता हूँ आप से दर्द-ए-दिल करूँ। आप से मदद माँगूँ और आपको पुकारूँ। अगरचे मुझे न माँगने का सलीक़ा है और न मेरे पास दुआ का तरीक़ा है।

ऐ दुनिया को अद्ल व इंसाफ़ से पुर करने वाले! दुनिया ज़ुल्म व जौर और नाफ़रमानी की आग में जल रही है। आपको मालूम है कि शिया बच्चों के सर काटे जा रहे हैं, क़तीफ़, लेबनान और पारा-चिनार जैसे न जाने किन-किन मक़ामात पर शियों पर ज़ुल्म हो रहा है।

मौला! मुसलमान दर्द और मुश्किलात से गुज़र रहे हैं।मेरे आका! ज़ालिमों के ज़ुल्म व जरायेम बढ़ गए हैं, नाम-नेहाद मुस्लिम ममालिक के हुक्मरानों की ख़यानतें अपने उरूज पर हैं। एक जानिब मज़लूम की हिमायत पर जलसे करते हैं और हिमायत का ऐलान करते हैं तो दूसरी जानिब इन्हीं ज़ालिमों की दस्तबोसी और चापलूसी को अपने लिए शरफ़ समझते हैं।

मौला! ये ख़ियानतकार खिलाफ़-ए-तौहीद इत्तेहाद के नारे लगाते हैं और फ़र्ज़ंदान-ए-तौहीद पर हो रहे मज़ालिम पर सिर्फ़ लकलक़ा करते हैं, एक जानिब मज़लूमों पर हो रहे मज़ालिम के खिलाफ़ बोलते हैं तो दूसरी जानिब ज़ालिम को असलहे देते हैं।

मेरे महबूब! आप कहाँ हैं कि ज़ालिम और ख़ुदा को भूले हुए हुक्मरानों की ख़ुदग़र्ज़ी और सितम की आग दुनिया को बर्बादी की तरफ़ धकेल रही है।ऐ मेरे मेहरबान इमाम! मैं जानता हूँ कि आप सब कुछ जानते हैं, लेकिन मेरा दिल तंग है और मुझे आप से कहना है कि दुनिया कितनी तारीक हो गई है और हर शख़्स सिर्फ़ अपनी फ़िक्र में लगा हुआ है।

क़िब्ला-ए-अव्वल और उसके मुजाविरीन दहाइयों से ज़ुल्म का शिकार हैं।
क़िब्ला-ए-अव्वल के ग़ासिबीन के जराइम और क़िब्ला-ए-सानी और हरमैन-ए-शरीफ़ैन पर क़ब्ज़ा करने वालों के मज़ालिम और ख़यानतों से इंसानियत तड़प रही है, बशरियत नौहा-कुनाँ है, आदमियत सिसक रही है।

ऐ मेरे प्यारे इमाम! हर जुमे को यही उम्मीद करता हूँ कि आप आ जाएँ लेकिन नहीं मालूम आप कब आएँगे।मेरे दिलदार! मैं सख़्त बेक़रार हूँ और जानता हूँ कि आप जानते हैं। ऐ यूसुफ़-ए-ज़हरा (अ.स.)! हमारे हालात आपके पेश-ए-नज़र हैं लिहाज़ा आप ख़ुद ख़ुदा से दुआ करें कि आपका ज़हूर क़रीब हो और आप लोगों का हाथ थाम लें।

ऐ मज़लूमों और बेबसों के इमाम! कब और कहाँ आपकी सवारी नमूदार होगी और आप उस पर सवार होकर हमारे दिलों को रौशनी बख़्शेंगे?दुनिया और उसके लोग आप पर यक़ीन नहीं रखते, लेकिन मैं कहता हूँ कि दुनिया आपके मुबारक वुजूद के गिर्द गर्दिश कर रही है और ख़ुदा ने दुनिया को आपके नूरानी वजूद के लिए पैदा किया है।

ऐ मेरे इमाम! मैं और मेरे जैसे सब आपके वुजूद के सख़्त मोहताज और ज़रूरतमंद हैं। हमारा हाथ थाम लीजिए ताकि हम राह-ए-हक़ से न भटकें और आपके हक़ीक़ी मुन्तज़िर बन सकें।

आप पर सलाम, आपके आ'बाए ताहिरीन पर सलाम।

ख़ुद को क्या लिखूँ?अगर शिया लिखूँ तो वो सिफ़ात ख़ुद में नहीं पाता।
मुहिब लिखूँ तो वो मोहब्बत के तक़ाज़े और सबूत कैसे पेश करूँ।
मुन्तज़िर लिखूँ तो विजदान कहता है कि तुमने ज़हूर की क्या तैयारी की है?


सैयद अली हाशिम आब्दी

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