रमज़ान का नवॉं दिन।

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रमज़ान का नवॉं दिन।

इस साल स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह की बरसी 9 रमज़ान को पड़ रही ।

इमाम ख़ुमैनी ने ईरान में ऐसी क्रान्ति का नेतृत्व संभाला जिसकी सफलता से अंतर्राष्ट्रीय समीकरण उलट पलट गए। ऐसी क्रान्ति जो थोड़े समय में अन्य देशों की जनता को अपना समर्थक बनाने में सफल हुयी। इमाम ख़ुमैनी का व्यक्तित्व या शख़सियत ईरानी राष्ट्र में आध्यात्मिक बदलाव लाने में सबसे अहम तत्व था। इस्लामी क्रान्ति के दौरान और फिर इराक़ द्वारा थोपी गयी आठ वर्षीय जंग में जनता की भव्य उपस्थिति और जनता में इस्लामी मूल्यों की ओर रुझान का श्रेय इमाम ख़ुमैनी को जाता है। एक ऐसा नेता जो साम्राज्य के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने के साथ साथ आत्मज्ञानी व धर्मपरायण विद्वान थे। इमाम ख़ुमैनी आध्यात्मिक हस्ती होने के साथ साथ पीड़ितों की रक्षा और अत्याचारियों का मुक़ाबला करने में पूरी तरह दृढ़ थे। ज्ञान, राजनीति और अध्यात्म के संगम से हासिल अतुल्य शक्ति इमाम ख़ुमैनी के व्यक्तित्व के आकर्षक जलवे थे। एक ऐसी हस्ती जो ज्ञान व अध्यात्म के जटिल चरणों को तय करते हुए शिखर पर पहुंचे और साथ ही एक सामाजिक व राजनैतिक दृष्टि से प्रभावी नेता भी हो। ऐसी हस्ती इतिहास की सबसे ज़्यादा आश्चर्य में डालने वाली सच्चाई है। उनका संतुष्ट दिखाई देने वाला चेहरा, ईश्वरीय अनुकंपाओं पर गहरी आस्था की देन था। धैर्य के ऐसे चरण पर थे कि सख़्त से सख़्त हालात भी उन्हें डिगा न सके। इमाम ख़ुमैनी की नज़र में यह संसार ईश्वर की जलवागाह है अर्थात जिस तरफ़ नज़र उठाओ ईश्वर का जलवा नज़र आएगा। इसी प्रकार वह ईश्वरीय कृपा पर आस्था रखते थे। जो भी इमाम ख़ुमैनी के जीवन की समीक्षा तो वह पाएगा कि पवित्र क़ुरआन की छत्रछाया में जीवन बिताते थे। इस बारे में वह कहते थे, “अगर हम अपनी ज़िन्दगी के हर क्षण ईश्वर का इस बात के लिए आभार व्यक्त करने हेतु सजदे में रहें कि क़ुरआन हमारी किताब है, तब भी हम इसका हक़ अदा नहीं कर सकते।”

 

पवित्र क़ुरआन को समझने के लिए सबसे पहला क़दम यह है कि उसे हमेशा पढ़ें क्योंकि ऐसा न करने की स्थिति हम पवित्र क़ुरआन के तर्क व अर्थ को नहीं समझ पाएंगे। इमाम ख़ुमैनी के इराक़ के पवित्र नगर नजफ़ में देश निकाला के जीवन के समय साथ रहने वाले एक व्यक्ति का कहना है, “जिन दिनों में नजफ़ में इमाम ख़ुमैनी रह रहे थे, उन्हें अनेक मुश्किलों का सामना था। पवित्र रमज़ान के महीने में हर दिन 10 पारह पढ़ते थे और इस तरह तीन दिन में पूरा क़ुरआन पढ़कर ख़त्म कर देते थे।”                

क़ुरआन की दुनिया में क़दम रखने के संबंध में यह बात अहम है कि सोच-समझ कर क़ुरआन पढ़ने की बहुत अहमियत है और क़ुरआन की आयतों पर चिंतन मनन से ही हम इस ख़ज़ाने से लाभ उठा सकते हैं। इमाम ख़ुमैनी इस तरह क़ुरआन पढ़ने पर बहुत बल देते थे। वह अपनी एक बहू से अनुशंसा करते हुए कहते हैं, “ईश्वर की कृपा के स्रोत क़ुरआन में चिंतन मनन करो। हालांकि महबूब ख़त समान इस किताब को पढ़ने का सुनने वाले पर अच्छा असर पड़ता है लेकिन इसमें सोच विचार से इंसान का उच्च स्थान की ओर मार्गदर्शन होता।”

इमाम ख़ुमैनी की एक संतान उनके बारे में कहती है, “पवित्र रमज़ान में उनका उपासना का कार्यक्रम यूं होता था कि रात से सुबह तक नमाज़ और दुआ पढ़ते थे और सुबह की नमाज़ पढ़ने और थोड़ा आराम के बाद अपने काम के लिए तय्यार होते थे। पवित्र रमज़ान को विशेष रूप से अहमियत देते थे। इतनी अहमियत देते थे कि इस महीने में कुछ काम नहीं करते थे ताकि पवित्र रमज़ान की विभूतियों से ज़्यादा से ज़्यादा फ़ायदा उठाएं। वह अपनी ज़िन्दगी में इस विशेष महीने में बदलाव लाते थे। बहुत कम खाना खाते थे। यहां तक कि लंबे दिनों में सहरी और इफ़्तार के समय इतना कम खाते थे कि हमें लगता था कि हुज़ूर ने कुछ खाया ही नहीं है।”       

सूरे निसा की 69वीं आयत में ईश्वर कह रहा है, “जो लोग ईश्वर और उसके दूतों का पालन करते हैं वे ईश्वरीय दूतों, सच्चों, शहीदों और सदाचारियों के साथ होंगे कि जिन्हें ईश्वर अपनी अनुकंपाओं से नवाज़ता है और ऐसी लोग अच्छे साथी हैं।”

 

इस आयत का अर्थ यह है कि जो लोग ईश्वर और उनके दूत के आदेश का पालन करते हुए ख़ुद को समर्पित कर देते हैं, वे ऐसे लोगों के साथ होंगे जिन्हें ईश्वर अपनी नेमतों से नवाज़ता है। पवित्र क़ुरआन के हम्द नामक सूरे में कि जिसे मुसलमान कम से कम हर दिन 10 बार पढ़ता है, इस प्रकार के लोगों का उल्लेख है। जैसा कि सूरे हम्द में जब हम यह कहते हैं कि इहदिनस सिरातल मुस्तक़ीम अर्थात ईश्वर हमारा सीधे रास्ते की ओर मार्गदर्शन कर, तो इसके बाद वाले टुकड़े में सीधा मार्ग उन लोगों का मार्ग कहा गया है जिन पर ईश्वर की अनुकंपाएं नाज़िल होती हैं। जो लोग सीधे मार्ग पर चलते हैं वह तनिक भी नहीं भटकते।

निसा सूरे की आयत नंबर 69 उन लोगों के बारे में हैं जिन पर ईश्वर की अनुकंपाएं पूरी हुयीं। इसमें पहला गुट ईश्वरीय दूतों का है जो लोगों को सीधे मार्ग की ओर बुलाने का बीड़ा उठाते हैं। उसके बाद सिद्दीक़ीन अर्थात सच बोलने वालों का गुट है। सिद्दीक़ीन उन्हें कहते हैं जो सच बोलते हैं और अपने व्यवहार व चरित्र से अपनी सच्चाई को साबित करते हैं और यह दर्शाते हैं कि वह सिर्फ़ दावा नहीं करते बल्कि ईश्वरीय आदेश पर उन्हें आस्था व विश्वास है। इस आयत से स्पष्ट होता है कि नबुव्वत अर्थात ईश्वरीय दूत के स्थान के बाद सच्चों से ऊंचा किसी का स्थान नहीं है।

इसके बाद शोहदा का स्थान है। शोहदा वे लोग हैं जो प्रलय के दिन लोगों के कर्मों के गवाह होंगे। यहां शोहदा से अभिप्राय जंग में शहीद होने वाले नहीं है। आख़िर में सालेहीन अर्थात सदाचारियों का स्थान है। ये वे लोग हैं जो सार्थक व लाभ दायक कर्म करते हैं। ईश्वरीय दूतों का पालन करके ऐसे स्थान पर पहुंचे कि ईश्वरीय अनुकंपाओं के पात्र बन सकें। स्पष्ट है कि ऐसे लोग भले साथी हैं।

 

दूसरी ओर यह आयत इस सच्चाई की ओर भी इशारा करती है एक इंसान की दूसरे इंसान के साथ संगत इतनी अहम है कि परलोक में स्वर्ग की अनुकंपाओं को संपूर्ण करने के लिए उन्हें दूसरी अनुकंपाओं के साथ साथ ईश्वरीय दूतों, सच्चों, शहीदों और सदाचारियों के साथ रहने का अवसर भी मिलेगा।

निसा सूरे की आयत नंबर 69 की व्याख्या में ख़्वाजा अब्दुल्लाह अंसारी कहते हैं, “सौबान पैग़म्बरे इस्लाम के विशेष साथियों में थे। उन्हें पैग़म्बरे इस्लाम से बहुत गहरी श्रद्धा थी। एक दिन पैग़म्बरे इस्लाम ने उनसे पूछा, बहुत ज़्यादा कठिनाई सहन कर रहे हो कि इतने कमज़ोर हो गए हो? सौबान ने कहा, “मुझे इस बात की चिंता सता रही है कि आप परलोग में स्वर्ग के सबसे उच्च स्थान में होंगे और हम आपका दीदार न कर पाएंगे।” तो यह आयत उनके बारे में उतरी।”       

 

हम ने पवित्र रमज़ान के महीने में पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य पदार्थ के सेवन और सेहत पर उसके असर के बारे में बताया। यह बिन्दु भी बहुत अहम कि पवित्र रमज़ान में किस प्रकार का खाद्य पदार्थ हो और उसे किस तरह उपभोग करें। रोज़ेदारों की यह कोशिश होती है कि अपने परिजनों के लिए हलाल व पाक आजीविका कमाए। क्योंकि हलाल रोज़ी व आजीविका से ही इंसान में नैतिक गुण पनपते हैं। कृपालु व आजीविका देने वाला ईश्वर इस बात का उल्लेख करते हुए कि सृष्टि में उसने उपभोग के लिए बहुत सी अनुकंपाएं इंसान के लिए मुहैया की हैं, इंसान पर बल देता है कि वह पाक व हलाल आजीविका हासिल करे। पवित्र क़ुरआन में पाक खाने और सदकर्म पर बहुत बल दिया गया है। जैसा कि मोमेनून नामक सूरे की आयत नंबर 51 में ईश्वर अपने दूतों से कह रहा है कि वे पाक खाना खाएं और उससे हासिल ऊर्जा को लाभदायक कर्म में इस्तेमाल करें। ईश्वर ने पाक रोज़ी को मानव जाति की अन्य प्राणियों पर श्रेष्ठता का तत्व कहा है। पाक व हलाल रोज़ी अच्छी बातों की तरह इंसान के व्यक्तित्व के विकास में प्रभावी होती है। उसे आध्यात्मिक आत्मोत्थान व नैतिक मूल्यों की रक्षा में मदद देती है और स्वच्छ बारिश की तरह इंसान के अस्तित्व में नैतिकता का पौधा उगाती है। खाना स्वच्छ, हलाल, पाक, गंदगी से दूर, मूल पदार्थ और उसका बर्तन उचित हो और उसमें खाद्य पदार्थ के सभी प्रकार के गुट शामिल हों। ये वे बिन्दु हैं जिन पर भोजन के संबंध में ध्यान देने की ज़रूरत है।

पाक लुक़मे से ही इंसान की प्रवृत्ति संतुलित रहती है। अपनी मेहनत से हासिल भोजन के सेवन से इंसान संतुष्टि का आभास करता है। विशेषज्ञों का मानना है कि इंसान की हलाल व पाक आजीविका, उसे सेहत व शिफ़ा देती है।

पवित्र क़ुरआन में ऐसी अनेक आयतें हैं जिनमें ऐसे फलों व खाद्य पदार्थ का उल्लेख है जो इंसान की सेहत के लिए बहुत अहम हैं। इस्लामी रवायतों में इन खाद्य पदार्थ के इंसान के व्यवहार व शिष्टाचार पर पड़ने वाले कुछ प्रभाव का उल्लेख किया गया है। जैसा कि इस्लामी रिवायत में आया है, “मुध या शहद खाने से याददाश्त बढ़ती है। खजूर से इंसान में धैर्य आता है।” इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ज़ैतून खाने की अनुशंसा करते हुए फ़रमाते हैं, “ज़ैतून का तेल खाने से अमाशय साफ़ रहता है, स्नायु तंत्र मज़बूत होता है, इंसान में शिष्टाचार विकसित होता है और आत्मा को सुकून मिलता है।” अंगूर भी उन फलों में है जिससे दुख ख़ुशी में बदल जाता है। आहार विशेषज्ञों का कहना है कि रोज़ा रखने वालों इन फलों व मेवों को अपने खाने में शामिल करना चाहिए।

 

 

 

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