इमाम ख़ुमैनी की बर्सी पर वरिष्ठ नेता का अति महत्वपूर्ण भाषण

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इस्लामी क्रांति के महान नेता और इस्लामी गणतंत्र ईरान के संस्थापक इमाम खुमैनी की २४वीं बरसी पर वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई के अति महत्वपूर्ण भाषण के कुछ भाग।

हम ईश्वर के आभारी हैं कि उसने हमें एक बार पुनः इस बात का अवसर दिया कि हम ऐसी तिथि पर इमाम खुमैनी को श्रद्धांजलि अर्पित करें और उनमें अपनी आस्था की घोषणा करें। यद्यपि इमाम खुमैनी सदैव हमारे राष्ट्र में जीवित हैं किंतु ४ जून की तिथि इमाम खुमैनी से ईरानी जनता की आस्था के प्रदर्शन का दिन है। इस वर्ष इसी तिथि के साथ इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम का शहादत दिवस तथा ५ जून के निर्णायक जन प्रदर्शनों की वर्षगांठ है। ५ जून की घटना अत्यन्त संवेदनशील समय में अत्यन्त संवेदनशील घटना है। मैं इस संदर्भ में संक्षेप में कुछ बातें कहना चाहूंगा उसके बाद अपने मुख्य विषय पर बात करूंगा।

५ जून १९६३ की घटना से यह सिद्ध हो गया कि जब जनता मैदान में उतर आती है, जब जनता किसी आंदोलन का समर्थन करती है तो वह आंदोलन जारी रहता है और उसे विजय प्राप्त होती है। ५ जून १९६३ की घटना ने यह सिद्ध कर दिया कि जनता धर्मगुरुओं के साथ है। इमाम खुमैनी की गिरफ्तारी के साथ ही तेहरान और कुछ अन्य नगरों में इतना भारी विरोध हुआ कि सरकारी मशीनरी हरकत में आ गयी और जनता का बर्बरता के साथ दमन किया, असंख्य लोग, बहुत अधिक लोग, मारे गये, तेहरान की सड़कें, इस राष्ट्र के सपूतों के रक्त से लाल हो गयीं और ५ जून की घटना तानाशाह के क्रूर चेहरे को पूर्ण रूप से सामने ले आयी। किंतु १५ जून १९६३ की घटना में एक महत्वपूर्ण बिन्दु जो है और जिस पर हमारी जनता को ध्यान देना चाहिए वह यह है कि तेहरान और कुछ अन्य नगरों में क्रूरता से किये गये जनसंहार पर विश्व की तथाकथित मानवाधिकार संस्थाओं ने कोई आपत्ति नहीं की। जनता और धर्मगुरु मैदान में अकेले रह गये। इमाम खुमैनी जनता के साथ मैदान में अकेले रह गये किंतु वे वास्तविक अर्थ में एक ईश्वरीय मार्गदर्शक थे और इसी लिए उन्होंने इतिहास और लोगों के सामने अपने ठोस संकल्प का प्रदर्शन किया।

इमाम खुमैनी में तीन विश्वास थे जिनसे उन्हें संकल्प मिलता था, साहस मिलता था और प्रतिरोध की शक्ति मिलती थी। ईश्वर पर भरोसा, जनता पर विश्वास और स्वंय पर भरोसा। इस प्रकार के विश्वासों की झलक इमाम खुमैनी के सभी निर्णयों में सही अर्थों में दिखायी देती है। इमाम खुमैनी ने अपने ह्रदय से लोगों से बात की और जनता ने भी अपने पूरे अस्तित्व से उनकी बात का उत्तर दिया, मैदान में कूद पड़े और मर्दों की तरह डट गये और इस प्रकार से वह आंदोलन जिसे विश्व के किसी भी क्षेत्र में सहानुभूति नहीं मिल रही थी और जिसने न ही किसी के सामने सहायता के लिए हाथ फैलाया, धीरे धीरे सफलता की ओर बढ़ने लगा और अन्ततः सफल हो गया।

ईश्वर में विश्वास के मामले में इमाम खुमैनी कुरआने मजीद की उस आयत को यथार्थ करते हैं जिसमें कहा गया है कि और वह जिन से लोगों ने कहा कि लोग तुम्हारे विरुद्ध एकत्रित हो गये हैं इस लिए उनसे डरो तो इससे उनके विश्वास में वृद्धि हो गयी और उन्होंने कहा कि ईश्वर हमारे लिए पर्याप्त है और वह सब से अच्छा रक्षक है। इमाम खुमैनी को उस पर पूरा विश्वास था। इमाम खुमैनी को ईश्वर पर पूरा भरोसा था और ईश्वरीय वचन में विश्वास था इसी लिए उन्होंने ईश्वर के लिए अपना अभियान आरंभ किया, काम किया, बातें कीं और फैसले किये और उन्हें भली भांति ज्ञात था कि यदि तुम ईश्वर की सहायता करोगे तो ईश्वर तुम्हारी सहायता करेगा, ईश्वरीय वचन है और इसे हर हाल में पूरा होना है।

जनता में विश्वास के संदर्भ में, इमाम खुमैनी को इस अर्थ का सम्पूर्ण रूप से ज्ञान था। इमाम खुमैनी का मानना था कि यह राष्ट्र ऐसा राष्ट्र है जिसका ईमान गहरा और जिसकी बुद्धि तीव्र है तथा यह साहसी है इस लिए यदि इस राष्ट्र को योग्य नेता मिल जाएं तो यह राष्ट्र विभिन्न क्षेत्रों में सूर्य की भांति चमक सकता है, इमाम खुमैनी को इस पर विश्वास था। यह राष्ट्र अपने गौरवपूर्ण अभियान को दिल्ली से काला सागर तक ले जा सकता है, इस तथ्य को इमाम खुमैनी ने इतिहास में पढ़ा था, वे ईरानी राष्ट्र को पहचानते थे और उस पर उन्हें भरोसा था। इमाम खुमैनी की दृष्टि में जनता, प्रिय थी, और जनता के शत्रु अत्याधिक घृणित थे। यह जो आप देखते हैं कि इमाम खुमैनी, साम्राज्यवादी शक्तियों से मुक़ाबले में एक क्षण के लिए भी चुपचाप नहीं बैठते थे उसका मुख्य कारण यह था कि साम्राज्यवादी शक्तियां मानव कल्याण की शत्रु थीं और इमाम जनता के शत्रुओं से शत्रुता रखते थे।

आत्मविश्वास के संदर्भ में इमाम खुमैनी ने ईरानी जनता को " हम में क्षमता है " का मंत्र सिखाया किंतु इस से पूर्व कि ईरानी जनता को यह सिखाएं उन्होंने स्वंय अपने भीतर, हम में क्षमता है । वर्ष १९६३ में इमाम खुमैनी ने कुम में छात्रों के मध्य और हर प्रकार के अभावों से जूझते हुए, मुहम्मद रज़ा शाह को जो अमरीका और विदेशी शक्तियों के समर्थन के कारण निरंकुश होकर पूरे ईरान पर शासन कर रहा था, धमकी दी कि यदि तुम इसी प्रकार से आगे बढ़ते रहे और इसी मार्ग पर चलते रहे तो मैं ईरानी जनता से कह दूंगा कि तुम को ईरान से निकाल बाहर करे! यह कौन कहता है? कुम में रहने वाला एक धर्म गुरु, जिसके पास न हथियार है, न साधन हैं, न संसाधन हैं और न ही धन है और न ही अंतरराष्ट्रीय समर्थन, केवल ईश्वर के भरोसे , आत्म विश्वास के कारण ही इस मैदान में कदम जमाया जा सकता है। जब इमाम खुमैनी देश निकाले के बाद वापस आए तो इसी स्थान पर उन्होंने बख्तियार सरकार को धमकी दी और ऊंचे स्वर में यह घोषणा की कि मैं बख्तियार सरकार को तमांचा मारूंगा, मैं सरकार निर्धारित करूंगा। यह आत्मविश्वास था। इमाम खुमैनी को स्वंय पर, अपनी क्षमताओं पर विश्वास था। इमाम खुमैनी के कामों में, उनकी बातों में यही आत्मविश्वास, ईरानी राष्ट्र में पहुंचा। मेरे दोस्तो! १०० वर्षों तक हमारे ईरानी राष्ट्र को यह समझाया गया था कि तुम लोगों में क्षमता नहीं है, तुम लोग अपना देश नहीं चला सकते, तुम लोग सम्मान प्राप्त नहीं कर सकते, तुम लोग निर्माण नहीं कर सकते, तुम लोग ज्ञान विज्ञान के क्षेत्र में आगे नहीं बढ़ सकते, यह नहीं कर सकते वह नहीं कर सकते, और हमें भी इस पर विश्वास हो गया था।

अन्य राष्ट्रों पर वर्चस्व के लिए शत्रुओं का एक प्रभावशाली हथकंडा यही क्षमता का न होना है ताकि इस प्रकार से राष्ट्र निराश हों और यह समझने लगें कि हम में कुछ करने की क्षमता ही नहीं है। इस हथकंडे के कारण ईरानी राष्ट्र राजनीति, ज्ञान विज्ञान, अर्थ व्यवस्था जैसे सभी क्षेत्रों में १०० वर्ष पीछे हो गया। इमाम खुमैनी न परिस्थितियां बदल दीं, वर्चस्व के इस हथकंडे को महाशक्तियों के हाथ से छीन लिया और ईरानी राष्ट्र से कहा कि तुम में क्षमता है, हमें साहस प्रदान किया, ठोस फैसला करना सिखाया, हमारा आत्मविश्वास लौटाया और हम में यह भावना जगायी कि हम में क्षमता है, हम आगे बढ़े, काम किया, इसी लिए ईरानी राष्ट्र इन ३० वर्षों में सभी क्षेत्रों में विजयी रहा।

आंदोलन के आरंभ में भी ईश्वर पर भरोसा, जनता पर भरोसा और अपने आप पर भरोसा ही वह मुख्य तत्व था जिसने इमाम खुमैनी को शक्ति प्रदान की और उनके सारे फैसलों में यह तीन विश्वास प्रभावी और मुख्य तत्व रहे हैं। इमाम खुमैनी के जीवन के अंतिम क्षण तक किसी ने भी हमारे इमाम खुमैनी के अस्तित्व में अवसाद, निराशा, असमंजस, थकन या झुकने की भावना का कोई लक्षण नहीं देखा। वे बूढ़े हो रहे थे किंतु उनका ह्रदय जवान था, उनकी आत्मा जीवित थी। इसी लिए उन्होंने दूसरों पर निर्भर ईरान को, आत्मनिर्भर व स्वाधीन बना दिया।

अत्याचारी पहलवी शासन की पहले ब्रिटेन पर और बाद में अमरीका पर निर्भरता के बारे में बहुत से विषय हैं जिनसे हमारे युवाओं को अवगत होना चाहिए। इन शासकों की निर्भरता लज्जाजनक स्थिति तक पहुंच गयी थी। क्रांति की सफलता के बाद एक अमरीकी कूटनैतिक ने इस बारे में बताया और लिखा भी। उसने लिखा कि हम ईरान के नरेश को बताते थे कि आपको अमुक चीज़ की आवश्यकता है या अमुक वस्तु की आवश्यकता नहीं है! यह वही बताते थे कि ईरान को किससे संबंध स्थापित करना चाहिए और किस से संबंध तोड़ लेना चाहिए, तेल को कितनी मात्रा में निकालना चाहिए, इतनी मात्रा में बेचना चाहिए, किसे बेचना चाहिए , किसे नहीं बेचना चाहिए! देश अमरीकी नीतियों से, अमरीकी योजना से चल रहा था और उससे पूर्व बिट्रेन की नीतियों से चल रहा था। यह निर्भर देश एक स्वाधीन देश बना। इस देश पर भ्रष्ट, गद्दार, भौतिक व पाश्विक सुख भोग में व्यस्त शासक राज करते थे, उनके स्थान पर अब जनता के प्रतिनिधि आ गये, इन ३३-३४ वर्षों में जिन लोगों के हाथ में इस देश की सत्ता रही, वह सब जनता के प्रतिनिधि थे। क्रांति से पूर्व हम ने ज्ञान विज्ञान के क्षेत्र में कोई कारनामा नहीं किया था। आज अन्य लोग हमारे बारे में बता रहे हैं, अंतरराष्ट्रीय संगठन ईरान के बारे में सूचना दे रहे हैं कि ईरान में वैज्ञानिक विकास, विश्व के औसत से ११ गुना अधिक है। यह कम है? वैज्ञानिक विकास का आंकलन करने वाली संस्थाओं का कहना है कि वर्ष २०१७ तक ईरान विश्व में विज्ञान के क्षेत्र में चौथे स्थान पर पहुंच जाएगा। यह साधारण बात है? जिस देश का विज्ञान का क्षेत्र में कोई कारनामा नहीं था आज इस चरण पर पहुंच गया है।

अतीत में हमारा ऐसा देश था कि यदि हम एक सड़क या राजमार्ग बनाना चाहते, कोई बांध या कारखाना बनाना चाहते तो हमें विदेशियों के सामने हाथ फैलाना पड़ता ताकि विदेशी इंजीनियर आएं और हमारे लिए बांध बनाएं, सड़क बनाए, कारखाने बनाएं किंतु आज इस देश के युवा, विदेशियों पर ध्यान दिये बिना, हज़ारों कारखाने, सैंकड़ों बांध पुल और सड़कें बना चुके हैं।

स्वास्थ्य व उपचार के क्षेत्र में ज़रा सी जटिलता रखने वाले आप्रेशन के लिए हमारे रोगी को, युरोप के अस्पतालों के चक्कर लगाने पड़ते थे वह भी यदि उसके पास पैसे होते और यदि न होते तो उसे मर जाना होता था। आज हमारे देश में अत्याधिक जटिल आप्रेशन होते हैं वह भी केवल तेहरान में नहीं बल्कि देश के सुदूर नगरों में भी। ईरानी राष्ट्र को इस क्षेत्र में विदेशियों की आवश्यकता नहीं है और ईरानी राष्ट्र इस अत्यंत महत्वपूर्ण क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो चुका है।

हम यह बातें इस लिए नहीं कर रहे हैं कि झूठा गौरव उत्पन्न हो जाए, खुश हों और यह कहें कि चलो धन्य है ईश्वर! हम सफल हो गये, सब खत्म हो गया, नहीं, हमारे सामने अभी लंबा रास्ता है। मैं आप से कह रहा हूं, यदि हम स्वंय की अत्याचारी शाही काल के ईरान से तुलना करें तो यह विशेषताएं नज़र आएंगी किंतु यदि हम वांछित इस्लामी देश ईरान से तुलना करें तो हमारे सामने अभी लंबा समय है। रोडमैप भी हमारे सामने है। हमारा रोडमैप क्या है? हमारा रोडमैप वही है इमाम खुमैनी के सिद्धान्त हैं, वही सिद्धान्त जिनके सहारे उन्होंने पीछे रह जाने वाले अपमानित राष्ट्र को इस गौरवशाली व विकसित राष्ट्र में बदल दिया। हमारे लिए इमाम खुमैनी का केवल नाम लेना ही पर्याप्त नहीं है हमें उनके सिद्धान्तों पर प्रतिबद्ध भी रहना चाहिए। इमाम खुमैनी अपने सिद्धान्तों के साथ ईरानी राष्ट्र के लिए अमर हैं।

घरेलू राजनीति में, इमाम खुमैनी का यह सिद्धान्त है कि जनता के मतों पर भरोसा किया जाए, राष्ट्र में एकता बनायी जाए, जनाधार बढ़ाया जाए, अधिकारियों में सुखभोग न पैदा होने पाए, अधिकारी, राष्ट्र के हितों पर ध्यान रखे। विदेश नीतियों में, इमाम खुमैनी का यह सिद्धान्त है कि वर्चस्ववादी व हस्तक्षेप करने वाली शक्तियों के सामने डट जाया जाए, मुसलमान राष्ट्रों से पर भाई चारे का संबंध स्थापित किया जाए, सभी देशों के साथ समानता के आधार संबंध स्थापित किया जाए, सिवाए उन देशों के जो ईरान के विरुद्ध शत्रुता करते हैं, ज़ायोनियों के विरुद्ध संघर्ष, फिलिस्तीन देश की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष, विश्व भर के पीड़ितों की सहायता, अत्याचारियों का मुकाबला। इमाम खुमैनी का वसीयत नामा हमारे सामने है।

संस्कृति के क्षेत्र में इमाम खुमैनी का सिद्धान्त यह है कि पश्चिम की निरंकुश संस्कृति को नकारा जाए, रूढ़िवाद को नकारा जाए, धर्म पराणता में दिखावे से बचा जाए, इस्लामी नैतिकता व शिक्षाओं की रक्षा तथा समाज में अश्लीलता व भ्रष्टाचार के विरुद्ध संघर्ष किया जाए। अर्थ व्यवस्था में इमाम खुमैनी का सिद्धान्त, राष्ट्रीय अर्थ व्यवस्था पर भरोसा है। आत्म निर्भरता पर भरोसा है। उत्पादन व वितरण में आर्थिक न्याय है, अभावग्रस्त लोगों की रक्षा है। इमाम अत्याचारपूर्ण व्यवस्था के विरोधी थे।

और अब चुनाव के बारे में जो एक महत्वपूर्ण और वर्तमान समय का विषय है। वास्तव में चुनाव उन तीनों विश्वासों का प्रदर्शन है जो इमाम खुमैनी में था और जिसे हम में होना चाहिए। ईश्वर पर भरोसा, क्योंकि यह कर्तव्य है। यह हमारा कर्तव्य है कि हम अपने देश के भविष्य निर्धारण में हस्तक्षेप करें, राष्ट्र के हर सदस्य का यह कर्तव्य है। जनता में विश्वास का प्रदर्शन है क्योंकि चुनाव जनता के संकल्प का प्रतीक है यह जनता है जो देश के अधिकारियों का चयन करती है और आत्मविश्वास का प्रदर्शन है क्योंकि जो भी मतपेटी में अपना मत डालता है, यह समझता है कि उसने देश के भविष्य निर्धारण में अपनी भूमिका निभा दी, यह बहुत महत्वपूर्ण है। तो चुनाव ईश्वर में विश्वास, जनता में विश्वास और अपने ऊपर विश्वास का प्रदर्शन है।

चुनाव में मुख्य मुद्दा, राजनीतिक कारनामा अंजाम देना है कारनामे का क्या अर्थ होता है? कारनामा अर्थात वह गौरवशाली काम जिसे उत्साह के साथ किया जाए। आप ने इन ८ प्रत्याशियों में से जिसे भी वोट दिया वह आप का वोट इस्लामी गणतंत्र व्यवस्था के लिए मत समझा जाएगा क्योंकि मतदाता के रूप में या प्रत्याशी के रूप में जो भी इस मैदान में क़दम रखता है उसका अर्थ यह होता है कि वह इस व्यवस्था में विश्वास रखता है, चुनाव प्रक्रिया में विश्वास रखता है। देश से बाहर हमारे शत्रु, बेचारे यह सोच रहे हैं कि इस चुनाव को इस्लामी व्यवस्था के विरुद्ध एक चुनौती बना दें, जबकि चुनाव, इस्लामी व्यवस्था के लिए एक बहुत बड़ा अवसर है। उन्हें आशा है चुनाव ठंडा रहेगा ताकि यह कह सकें कि जनता को इस्लामी व्यवस्था से रूचि नहीं है, या चुनाव के बाद हंगामें करें जैसा कि अत्याधिक उत्साह के साथ आयोजित होने वाले पिछले चुनाव के बाद उन्होंने किया था। जो लोग यह सोचते हैं कि इस देश में बहुसंख्यक इस्लामी व्यवस्था के विरोधी और मौन धारण किये हैं वह यह भूल गये हैं कि ३४ वर्षों से हर वर्ष क्रांति की सफलता की वर्षगांठ पर इस देश के सभी नगरों में विशाल जन समूह एकत्रित होता है और अमरीका मुर्दाबाद के नारे लगाते हैं। चुनाव से लोगों को निराश करने के लिए वे संचार माध्यमों में बैठ कर नित नयी बातें और दावे करते हैं कभी कहते हैं कि चुनाव पूर्व नियोजित है, कभी कहते हैं कि चुनाव स्वतंत्र नहीं है, कभी कहते हैं कि चुनाव जनता की नज़र में कानूनी नहीं हैं। वे न तो हमारी जनता को पहचानते हैं, न हमारे चुनाव के बारे में कुछ जानते हैं और न ही इस्लामी गणतंत्र व्यवस्था के बारे में जानकारी रखते हैं और जो लोग रखते भी हैं वह भी अन्याय करते हैं और इसमें उन्हें संकोच भी नहीं होता।

विश्व के किस देश में विभिन्न प्रकार के प्रत्याशियों को प्रसिद्ध हस्तियों से लेकर अंजान लोगों तक को देश के और राष्ट्रीय संचार माध्यमों से समान रूप से लाभ उठाने का अवसर दिया जाता है? विश्व के किस देश में ऐसा होता है। अमरीका में है? पुंजीवादी देशों में है? चुनाव में भाग लेने के लिए केवल एक वस्तु है जो निर्णायक होती है और वह है कानून। इसी कानून के आधार पर कुछ लोग आ सकते हैं , कुछ लोग नहीं आ सकते। कानून ने शर्तें रखी हैं, योग्यता का निर्धारण किया है, किंतु विदेशों में बैठे शत्रु इन सब चीज़ों की अनदेखी करते हैं और जो मन में आता है बोलते हैं किंतु ईरानी राष्ट्र अपनी उपस्थिति द्वारा और अपने संकल्प द्वारा, इन सभी हथकंडों का उत्तर देगा और ईरानी राष्ट्र का उत्तर, करारा और ठोस होगा।

एक वाक्य सम्मानीय प्रत्याशियों से भी कहना चाहूंगा। प्रत्याशी इन कार्यक्रमों में, बड़ी अच्छी तरह, एक दूसरे की आलोचना करते हैं, यह उनका अधिकार है, जो चीज़ भी उन्हें लगे उस पर वह टिप्पणी और उसकी आलोचना कर सकते हैं किंतु उन्हें ध्यान रखना चाहिए कि आलोचना, देश के बेहतर भविष्य की रचना के उद्देश्य से की जानी चाहिए, दूसरे के अपमान तथा नकारात्मकता व अन्याय के लिए नहीं। इस बात पर ध्यान दें। मेरे दृष्टिगत कोई प्रत्याशी नहीं है। यह विदेशी संचार माध्यम कहते हैं कि मैं अमुक प्रत्याशी को चाहता हूं यह झूठ है, मेरे दृष्टिगत कोई नहीं है, मैं वास्तविकताएं बताता हूं। मैं अपने उन भाइयों से जो इस देश की जनता का विश्वास जीतना चाहते हैं यह कहना चाहूंगा कि सकारात्मक आलोचना करें आलोचना सरकार के कामों की अनदेखी के अर्थ में न हो चाहे यह सरकार चाहे उस से पहले वाली सरकारें। लंबे समय से विभिन्न सरकारें सत्ता में आयीं, हज़ारों परियोजनाएं पूरी की गयीं इस देश के विकास का मूल ढांचा तैयार किया गया इन सब को बताए, कमियां और गलतियां भी बताए। आज हमारे देश में जो भी सत्ता संभालेगा, उसे शून्य से आरंभ नहीं करना होगा। विज्ञान में प्रगति हुई है विभिन्न क्षेत्रों में प्रगति हुई है उसे हाथ से नहीं जाने देना चाहिए केवल इस बहाने से आज महंगाई है, हम इन सब वास्तविकताओं का इन्कार नहीं कर सकते। निश्चित रूप से आर्थिक समस्याएं हैं, मंहगाई है। इशांल्लाह जो सत्ता संभालेगा वह इन समस्याओं का समाधान खोज लेगा, यह ईरानी राष्ट्र की इच्छा है किंतु इसका यह अर्थ नहीं होना चाहिए कि यदि हम वर्तमान समस्याओं के लिए कोई समाधान दृष्टि में रखते हैं तो उसके कारण आज तक जो भी हुआ है उसका इन्कार करें। उसके बाद जनता को असंभव वचन दें। मैं सभी प्रत्याशियों से कहता हूं इस प्रकार से बात करें कि यदि अगले वर्ष इसी समय उनकी बयान को कैसिट उनके सामने लगाया जाए तो वह लज्जित न हों, इस प्रकार के वचन दें कि यदि बाद में आप को आप के वचन याद दिलाए जांए तो वचन पूरे न होने का ज़िम्मेदार इनको उनको बनाना पड़े और यह कहना न पड़े कि इन लोगों ने ऐसा नहीं होने दिया। आप लोग जो काम कर सकते हों उसी का वचन दें।

हमारे देश में हमारे संविधान के अनुसार, राष्ट्रपति को अत्याधिक अधिकार प्राप्त होता है , हमारे देश में राष्ट्रपति के सामने यदि कोई सीमा है कोई अंकुश है तो वह केवल कानून का है। यह भी सीमा नहीं है, कानून मार्गदर्शक होता है, सीमा नहीं होता। कानून हमें यह बताता है कि मार्ग पर कैसे चलें। कुछ लोग इस गलत विचारधारा के कारण कि यदि हम शत्रुओं को विशिष्टता देंगें तो हम पर उनका आक्रोश कम हो जाएगा, व्यवहारिक रूप से उनके हितों को राष्ट्रीय हितों पर प्राथमिकता देते हैं। यह गलती है। उनका क्रोध इस लिए है कि आप उपस्थित हैं, इस लिए है कि इस्लामी गणतंत्र व्यवस्था है। इस लिए वे क्रोधित हैं कि इमाम खुमैनी, लोगों में और देश की योजनाओं में जीवित हैं।

यदि जनता शक्तिशाली होगी, समर्थ होगी, अपनी आवश्यकताओं को कम कर लेगी तो समस्याओं स्वंय ही समाप्त हो जाएंगी और यदि आज आर्थिक समस्या का समाधान खोज लिया जो मुख्य विषय है तो शत्रु ईरानी राष्ट्र के सामने निहत्था हो जाएगा। बहरहाल महत्वपूर्ण यह है कि संकल्प, ईश्वर पर भरोसा, जनता पर भरोसा, अपने आप पर भरोसा, चुनावी प्रत्याशियों के लिए, और जनता के लिए आवश्यक है। दस दिनों के बाद मेरे दोस्तो! मेरे भाइयो! एक बड़ी परीक्षा का दिन है और हमें आशा है कि इस बड़ी परीक्षा में ईश्वर इस राष्ट्र को बड़े अच्छे परिणाम देगा।

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