
رضوی
हिजाब समाज की पाकीज़गी का ज़ामिन: जवादी आमुली
हज़रत आयतुल्लाहिल उज़्मा जवादी आमुली ने कहा है कि सामाजिक पवित्रता और सम्मान इफफ्त और हिजाब के माध्यम से ही संभव है, और इन सिद्धांतों का उल्लंघन समाज को भ्रष्टता की गहराइयों में धकेल देता है।
एक रिपोर्ट के अनुसार, अंजुमने फिक्क और कानून संघ के सदस्यों ने हज़रत आयतुल्लाहिल उज़्मा जवादी आमुली से मुलाकात की जहां उन्होंने इफफ्त और हिजाब के विषय पर चर्चा की।
इस अवसर पर उनका कहना था कि आंख, जुबान, कान और आचरण की पवित्रता एक सभ्य समाज का निर्माण करती है जबकि इन सिद्धांतों का उल्लंघन सामाजिक शांति को खतरे में डाल देता है।
हज़रत आयतुल्लाहिल उज़्मा जवादी आमुली ने कहा कि परिवार की बुनियाद शील और पवित्रता पर होती है और यह स्वाभिमान के माध्यम से संरक्षित रहती है। उन्होंने स्वाभिमान को ईश्वरीय गुणों में से एक महत्वपूर्ण गुण बताया और इसके तीन मुख्य पहलुओं पर प्रकाश डाला:
- अपनी पहचान और स्थिति को पहचानना।
- दूसरों की सीमाओं में हस्तक्षेप न करना।
- अपनी सीमाओं में दूसरों को हस्तक्षेप करने की अनुमति न देना।
उन्होंने कहा कि जो व्यक्ति अपनी मानवीय पहचान और अपने अधिकार क्षेत्र को पहचानता है, वह न तो दूसरों के अधिकारों का अतिक्रमण करता है और न ही किसी को अपने अधिकारों का उल्लंघन करने देता है। ऐसे व्यक्ति और समाज अशीलता के नुकसान से सुरक्षित रहते हैं।
हज़रत आयतुल्लाहिल उज़्मा जवादी आमुली ने स्पष्ट किया कि हिजाब और शील न केवल व्यक्ति की बल्कि समाज की पवित्रता के लिए भी आवश्यक हैं। उन्होंने कहा कि केवल स्वाभिमानी समाज ही वास्तविक प्रगति और शांति की ओर अग्रसर हो सकता है।
हिज़बुल्लाह के सामने इजरायल हार गया
रविवार को, इसरायली मीडिया ने स्वीकार किया है कि इज़राईली सेना हिज़बुल्लाह लेबनान को मात देने और घुटने टेकने पर मजबूर करने में नाकाम रही है।
एक रिपोर्ट के अनुसार, आज, रविवार को, इसरायली मीडिया ने स्वीकार किया है कि कब्ज़ा करने वाली इसरायली सेना हिज़बुल्लाह लेबनान को पराजित करने और उसे घुटने टेकने पर मजबूर करने में नाकाम रही है।
इसरायली मीडिया ने कब्ज़ा करने वाली इसरायली सेना में गंभीर जनशक्ति की कमी का हवाला देते हुए यह स्वीकार किया कि इसरायली सेना हिज़बुल्लाह को हराने और सियोनी बस्तियों के निवासियों को कब्ज़ा किए गए फिलिस्तीन के उत्तरी इलाकों में वापस लाने में विफल रही है।
इसरायली चैनल i24 के सैन्य विश्लेषक, यूसी येहोशा ने एक साल से जारी हिज़बुल्लाह के साथ युद्ध की स्थिति पर बात करते हुए कहा,हम माफी चाहते हैं... असल में हिज़बुल्लाह को हराना संभव नहीं है।
यूसी ने आगे कहा कि इसरायली सेना पहले ही हमास को नियंत्रित करने में विफल हो चुकी है, जबकि हिज़बुल्लाह की ताकत हमास से दस गुना ज्यादा है। उन्होंने सेना की भंडारण की गई सेनाओं की कमी और उनके हतोत्साहन का भी जिक्र किया।
उन्होंने कहा,गाज़ा युद्ध के साथ-साथ पश्चिमी तट में 24 बटालियनों की मौजूदगी के बीच यह कहना कि हिज़बुल्लाह को भी हराया जा सकता है, हैरान करने वाला है क्योंकि हमारे पास इतने संसाधन और सैनिक नहीं हैं कि हम इसे संभव बना सकें।
इसरायली मीडिया ने तीन दिन पहले सूचना दी थी कि कब्ज़ा करने वाली सेना को लेबनानी सीमा के पास दूसरे रक्षा रेखा में गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। ये क्षेत्र फिलिस्तीन की कब्ज़ा की गई सीमा से केवल 5 से 10 किलोमीटर की दूरी पर हैं।
हिज़बुल्लाह पिछले एक साल से इसराइल के खिलाफ युद्ध में व्यस्त है और हाल ही के दो महीनों में इसराइल की बढ़ती आक्रामकता के जवाब में अपनी कार्रवाइयों को और तेज़ कर दिया है।
इससे पहले भी इसरायली अखबार यदीआत आहरोनोत ने रिपोर्ट दी थी कि हिज़बुल्लाह के पास इतने मिसाइल हैं जो रोज़ाना लाखों इसरायली बस्तियों के निवासियों को शरण लेने पर मजबूर कर सकते हैं।
यह स्थिति इसराइल की वार्ता की स्थिति को कमजोर कर रही है और उसकी युद्ध क्षमता पर सवाल उठा रही है।
ये स्वीकारोक्तियाँ इसरायली सेना की लगातार असफलताओं और हिज़बुल्लाह की बढ़ती ताकत को दर्शाती हैं जो इसराइल के लिए एक बड़ा चुनौती बन चुकी है।
हिज़बुल्लाह का ऐलान, 100 से अधिक इसरायली सैनिक मारे गए सैकड़ों घायल
लेबनान की इस्लामी प्रतिरोधी आंदोलन हिज़बुल्लाह ने घोषणा की है कि पिछले दो महीनों के दौरान उसने 100 से अधिक इसरायली सैनिकों को मार डाला और सैकड़ों को घायल किया है।
एक रिपोर्ट के अनुसार, हिज़बुल्लाह ने आज, रविवार को अपनी सैन्य कार्रवाइयों के विवरण जारी करते हुए बताया कि 17 सितंबर से अब तक यानी लगभग 60 दिनों के दौरान प्रतिरोधी बलों ने 456 इसरायली बस्तियों को निशाना बनाया है।
कार्रवाइयों के विवरण के अनुसार, हिज़बुल्लाह ने बताया कि पिछले दो महीनों के दौरान 1349 हमले किए गए, जिनके परिणामस्वरूप 100 से अधिक इसरायली सैनिक मारे गए और 1000 से अधिक घायल हुए। 361 सैन्य स्थलों, 164 ठिकानों, और 127 सीमा केंद्रों पर हमले किए गए। 25 कार्रवाइयों में इसरायली ज़मीनी सेना की आगे बढ़ने को रोक दिया गया। 101 सैन्य शिविरों को निशाना बनाया गया।
हिज़बुल्लाह ने यह भी बताया कि 58 कब्ज़ा किए गए शहरों और 29 इसरायली ड्रोन और सैन्य विमानों को निशाना बनाया गया। 28 कार्रवाइयों में इसरायली बलों के दखल को नाकाम किया गया। 61 सैन्य वाहनों, 53 कमांड सेंटरों, 30 तोपख़ाने के ठिकानों, और 17 सैन्य कारखानों को नष्ट कर दिया गया।
हिज़बुल्लाह के अनुसार, इन कार्रवाइयों ने इसरायली सेना को भारी नुकसान पहुंचाया है और सियोनी शासन की आक्रामक नीतियों को विफल किया है। संगठन ने अपनी प्रतिरोध जारी रखने की प्रतिबद्धता भी व्यक्त की है।
संयुक्त राष्ट्र के 170 सदस्य देशों का फिलिस्तीनी लोगों को समर्थन
संयुक्त राष्ट्र समिति के फैसले के बाद 170 सदस्य देशों ने फिलिस्तीनी लोगों के आत्मनिर्णय के अधिकार का समर्थन किया। फैसले में कहा गया है कि फिलिस्तीनी लोगों के आत्मनिर्णय के अधिकार और एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना की पुष्टि की गई है।
संयुक्त राष्ट्र समिति के फैसले के बाद 170 सदस्य देशों ने फिलिस्तीनी लोगों के आत्मनिर्णय के अधिकार का समर्थन किया। सामाजिक, मानवीय और सांस्कृतिक मुद्दों पर विचार करने के लिए तीसरी परिषद में फिलिस्तीनी लोगों के आत्मनिर्णय के अधिकार पर एक मसौदा प्रस्ताव पर मतदान किया गया। मसौदा प्रस्ताव को 170 सकारात्मक वोटों और 6 नकारात्मक वोटों के साथ मंजूरी दी गई जबकि 9 सदस्यों ने तटस्थता दिखाई। अर्जेंटीना, इज़राइल, माइक्रोनेशिया, नाउरू, पैराग्वे और संयुक्त राज्य अमेरिका ने मसौदा प्रस्ताव के खिलाफ मतदान किया। फैसले में कहा गया है कि फिलिस्तीनी लोगों के आत्मनिर्णय के अधिकार और एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना की पुष्टि की गई है। प्रस्ताव में कहा गया कि सभी देशों को क्षेत्र में शांति के माहौल में रहने का अधिकार है, और सभी राज्यों और संयुक्त राष्ट्र संगठनों से फिलिस्तीनी लोगों को आत्मनिर्णय का अधिकार प्राप्त करने में समर्थन देने का आह्वान किया गया।
दूसरी ओर, फिलिस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास ने 1988 में अल्जीरिया की राजधानी में फिलिस्तीनी नेता यासर अराफात द्वारा घोषित "फिलिस्तीनी स्वतंत्रता की घोषणा" की 36वीं वर्षगांठ के अवसर पर एक बयान दिया। अब्बास ने कहा कि दो-राज्य समाधान पर बातचीत गाजा पर इजरायल के हमलों की समाप्ति के साथ शुरू होनी चाहिए। उन्होंने युद्धविराम की भी अपील की. हमास के राजनीतिक ब्यूरो के सदस्य बसीम नईम ने भी अपने बयान में एक टेलीविजन चैनल से कहा कि हम घिरे गाजा में तत्काल युद्धविराम के लिए तैयार हैं, हालांकि, इजरायल ने महीनों से कोई गंभीर प्रस्ताव नहीं दिया है।
लेबनान प्रतिरोध को हर तरह का समर्थन जारी रखेगा ईरान
लेबनान और सीरिया यात्रा पर गए ईरान के सुप्रीम लीडर के विशेष दूत और पूर्व पार्लियामेंट स्पीकर अली लारीजानी ने लेबनान और फिलिस्तीन में ज़ायोनी अत्याचारों के खिलाफ जारी प्रतिरोधी संघर्ष का समर्थन करते हुए कहा है कि ईरान हर तरह से प्रतिरोध का समर्थन जारी रखेगा।
अल-मायादीन के रिपोर्टर को साक्षात्कार देते हुए उन्होंने कहा कि दक्षिण लेबनान में युद्ध के दौरान ज़ायोनी सरकार की विफलता उजागर हो गई है। उन्होंने कहा कि लेबनान और सीरिया की यात्रा के दौरान सर्वोच्च नेता का विशेष संदेश बश्शार-असद और लेबनान के पार्लियामेंट स्पीकर को दिया गया था. इन संदेशों का मुख्य उद्देश्य प्रतिरोध के लिए ईरान के समर्थन की घोषणा करना है। उन्होंने कहा कि प्रतिरोध मजबूत और स्थिर है जिसके लिए किसी की सलाह और आदेश की जरूरत नहीं है। लारिजानी ने कहा कि अगर अमेरिका और इस्राईल संघर्ष विराम की शर्तों का उल्लंघन नहीं करते हैं तो एक समझौते पर पहुंचा जा सकता है। मैं अपना व्यक्तिगत विचार नहीं दे सकता क्योंकि यह लेबनानी सरकार का काम है।
उन्होंने कहा कि हिज़्बुल्लाह एक तार्किक और मज़बूत संगठन है जिसके नेताओं के पास मजबूत राजनीतिक विचार हैं। हमें उनके फैसलों पर भरोसा है और हम उसका समर्थन करते हैं।
लखनऊ में बनेगा ख़तीब ए अकबर मौलाना मिर्ज़ा मोहम्मद अतहर गेट
लखनऊ में नक्ख़ास पुलिस चौकी के नज़दीक विश्वविख्यात शिया धर्मगुरू ख़तीबे अकबर मौलाना मिर्ज़ा मोहम्मद अतहर के नाम पर बनने वाले गेट (द्वार) का शिलान्यास किया गया हैं।
एक रिपोर्ट के अनुसार,आज लखनऊ में नक्ख़ास पुलिस चौकी के नज़दीक विश्वविख्यात शिया धर्मगुरू ख़तीबे अकबर मौलाना मिर्ज़ा मोहम्मद अतहर के नाम पर बनने वाले गेट (द्वार) का शिलान्यास किया गया हैं।
बता दें कि लईक़ आग़ा पार्षद कश्मीरी मोहल्ला वार्ड नगर निगम, लखनऊ द्वारा कार्यकारिणी सदन में यह इस गेट को बनावाने का प्रस्ताव पास कराया गया था।
इस गेट की संगेबुनियाद शिया व अहले सुन्नत उलमा हज़रात के दस्ते मुबारक से रखी गयी। इस मौके पर हुज्जतुल इस्लाम मौलाना सैय्यद फ़रीदुल हसन साहब (प्रिंसिपल, मदरसए जामए नाज़मिया, लखनऊ), जनाब मौलाना डॉ0 यासूब अब्बास साहब, हज़रत मौलाना फ़ज़लुल मन्नान साहब (इमामे जुमा, टीले वाली मस्जिद, लखनऊ), हुज्जतुल इस्लाम मौलाना मुस्लिम साहब, हुज्जतुल इस्लाम मौलाना रज़ा अब्बास साहब, हुज्जतुल इस्लाम मौलाना क़मर अब्बास साहब, मौलाना अनवर हुसैन रिज़वी साहब,
हुज्जतुल इस्लाम मौलाना इब्राहीम साहब, हुज्जतुल इस्लाम मौलाना हसन मीरपुरी साहब, हुज्जतुल इस्लाम मौलाना फ़राज़ वास्ती साहब, मौलाना कुमैल अब्बास साहब, मौलाना अली जाफ़र साहब, मौलाना अली हुसैन कुम्मी साहब, मौलाना मज़ाहिर रिज़वी साहब, मौलाना सदफ़ जौनपुरी साहब, जनाब लईक आग़ा छम्मन साहब (पार्षद, कश्मीरी मोहल्ला वार्ड, नगर निगम, लखनऊ)
जनाब अब्बास मुर्तुज़ा शम्सी साहब, सीनियर सहाफ़ी जनाब ज़हीर मुस्तफ़ा साहब, जनाब हसन मेहदी छब्बू साहब, जनाब शबीहे रज़ा बाक़री साहब (प्रिंसिपल, शिया पी0जी0 कालेज, लखनऊ), जनाब सै0 हसन सईद नक़वी साहब (प्रिंसिपल, शिया इण्टर कालेज, लखनऊ)
जनाब शकील अहमद साहब (प्रिंसिपल, सुन्नी इण्टर कालेज, लखनऊ), जनाब वक़ी सिद्दीकी साहब (वरिष्ठ कांग्रेस नेता) जनाब नुसरत हुसैन लाला साहब (सेक्रेट्री, तहफफुज़े अज़ा, लखनऊ) के साथ बड़ी संख्या में लोग मौजूद रहे।
तेहरान और रियाज़ का इरादा
सऊदी अरब की Armed Forces के Chief of Staff General फ़य्याज़ बिन हामिद अर्रूवैली ने अपने ईरानी समकक्ष से तेहरान में भेंटवार्ता की।
ईरान और सऊदी अरब के संबंध मार्च 2023 से नये चरण में दाख़िल हो गये हैं और दोनों देशों ने सात वर्ष के तनाव के बाद द्विपक्षीय संबंधों के विस्तार की दिशा में क़दम उठाया है।
तेहरान और रियाज़ के संबंधों में विस्तार का एक चिन्ह दोनों देशों के अधिकारियों की एक दूसरे के देशों की डिप्लोमेटिक यात्रा है जो होती रहती है और ईरान और सऊदी अरब के अधिकारी क्षेत्रीय परिवर्तनों और द्विपक्षीय संबंधों के बारे में विचारों का आदान- प्रदान करते हैं।
दो महीने से कम की अवधि में दोनों देशों के अधिकारियों ने कई बार एक दूसरे के देशों की यात्रा की है।
ईरान के विदेशमंत्री सैयद अब्बास इराक़ची अभी पिछले महीने अक्तूबर के आरंभ में सऊदी अरब की यात्रा पर गये थे जहां उन्होंने इस देश के विदेशमंत्री के अलावा सऊदी क्राउंन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान से भी भेंटवार्ता की थी।
अंतरराष्ट्रीय मामलों में ईरानी विदेशमंत्री के सहायक काज़िम ग़रीबाबादी भी अभी हाल ही में सऊदी अरब की यात्रा पर गये थे। इसी प्रकार ईरान के उपराष्ट्रपति मोहम्मद रज़ा आरिफ़ और विदेशमंत्री सैय्यद अब्बास इराक़ची भी अभी हाल ही में सऊदी अरब की यात्रा पर गये थे।
इसी बीच इस्लामी गणतंत्र ईरान के राष्ट्रपति मसऊद पिज़िश्कियान ने सऊदी युवराज मोहम्मद बिन सलमान से टेलीफ़ोनी वार्ता की और इस वार्ता में उन्होंने सऊदी अरब के साथ द्विपक्षीय संबंधों में विस्तार और क्षेत्रीय सहकारिता को अधिक व विस्तृत किये जाने पर बल दिया। सऊदी युवराज ने भी इस वार्ता में कहा कि ईरान और सऊदी अरब के संबंध बहुत महत्वपूर्ण हैं और हमें उम्मीद है कि दोनों देशों के संबंध समस्त क्षेत्रों में प्रगति करें और विस्तृत हों।
महत्वपूर्ण बिन्दु यह है कि इस समय सऊदी अरब की आर्मड फ़ोर्सेज़ के चीफ़ की तेहरान यात्रा कई गुना अधिक महत्वपूर्ण हो सकती है। क्योंकि दोनों देशों के राजनीतिक और डिप्लोमेटिक अधिकारियों के अलावा सैन्य अधिकारियों की एक दूसरे के देशों के यात्रा कम होती है। यह विषय इस बात का सूचक है कि ईरान और सऊदी अरब के संबंध महत्वपूर्ण दिशा में अग्रसर हैं और वे दूसरे देशों में घटने वाली घटनाओं या पश्चिम एशिया में जारी असुरक्षा की घटनाओं से प्रभावित नहीं हैं।
यह भेंटवार्ता ऐसे समय में हुई है जब डोनाल्ड ट्रंप एक बार फ़िर अमेरिका के राष्ट्रपति चुन लिये गये हैं। उल्लेखनीय है कि जब डोनाल्ड ट्रंप पहली बार अमेरिका के राष्ट्रपति बने थे तो उस समय ईरान और सऊदी अरब के संबंध तनावपूर्ण थे।
संचार माध्यमों में इस बात का व्योरा प्रकाशित नहीं किया गया कि दोनों देशों की आर्मड फ़ोर्सेज़ के चीफ़ों के मध्य क्या वार्ता हुई परंतु कुछ संचार माध्यमों ने रिपोर्ट दी है कि ईरान की आर्डम फ़ोर्सज़ के चीफ़ मेजर मोहम्मद बाक़िरी ने इस भेंटवार्ता में एलान किया है कि ईरान चाहता है कि अगले साल फ़ार्स की खाड़ी में जो नौसैनिक सैन्य अभ्यास होने वाला है सऊदी अरब उसमें भाग ले यह भागीदारी चाहे भाग लेने वाले देश व पक्ष के रूप में हो या पर्यवेक्षक देश के रूप में।
इस संबंध में अंतिम बिन्दु यह है कि ईरान और सऊदी अरब के अधिकारियों की एक दूसरे के देशों की यात्रा और इसी प्रकार दोनों देशों के अधिकारियों के बयान इस बात के सूचक हैं कि दोनों देशों ने द्विपक्षीय संबंधों में विस्तार को पहली प्राथमिकता दे रखा है।
स्पष्ट है कि ईरान और सऊदी अरब के संबंधों में विस्तार और उसमें प्रगाढ़ता फ़िलिस्तीन संकट सहित क्षेत्र के दूसरे संकटों के समाधान में बहुत महत्वपूर्ण हैं।
ज़ायोनिज़्म विचारधारा हर समय से अधिक समाप्ति के निकट
इस्राईली लेखक एलन पापे ने स्पेन के एक समाचार पत्र "अलपाइस" के साथ वार्ता में कहा कि ज़ायोनी सरकार द्वारा ग़ज़्ज़ा पट्टी में फ़िलिस्तीनियों का नरसंहार व नस्ली सफ़ाया जारी है और मेरा मानना है कि फ़िलिस्तीन को ख़त्म करने के लिए इस्राईल के हाथ एक एतिहासिक अवसर लग गया है।
साथ ही एलन पापे ने बल देकर कहा कि तेलअवीव के ख़िलाफ़ अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध लगाने का इस समय बेहतरीन मौक़ा है।
एलन पापे एक इस्राईली इतिहासकार और लेखक है। इस समय जो कुछ ग़ज़ा पट्टी में हो रहा है उसने शुक्रवार को इसे बयान करते हुए कहा कि ग़ज़ा पट्टी में इस्राईल की नीति केवल नस्ली सफ़ाया है, न केवल इस वजह से कि इस्राईली हमलों की भेंट चढ़ने वाले अधिकांश बच्चे और महिलायें हैं बल्कि उसकी वजह यह है कि इस्राईली हमलों के पीछे एक विचारधारा व धारणा है जिसके अनुसार ग़ज़ा पट्टी के सारे लोगों और फ़िलिस्तीनियों का अंत कर दिया जाना चाहिये।
स्पेनिश समाचार पत्र "अलपाइस" के पत्रकार ने जब इस्राईली लेखक व इतिहासकार एलन पापे से पूछा कि आपने कुछ महीने पहले इस बात का प्रमाण पेश किया था कि ज़ायोनिज़्म की विचारधारा का अंत हो रहा है तो क्या आपका अब भी यही मानना है? इस सवाल के जवाब में उसने कहा कि जी बिल्कुल अभी भी मेरा वही मानना है। हां मैंने कई चीज़ों का उल्लेख किया है और वे एक साथ मिलकर ज़ायोनिज़्म विचारधारा का अंत कर सकती हैं और जब मैंने लेख लिखा था उस समय से लेकर अब तक उसमें वृद्धि हो गयी है।
7 अक्तूबर 2023 से इस्राईली सरकार ने पश्चिमी देशों के व्यापक समर्थन से ग़ज़ा पट्टी में और जार्डन नदी के पश्चिमी किनारे पर फ़िलिस्तीन के निहत्थे और मज़लूम लोगों का बड़े व व्यापक पैमाने पर नरसंहार आरंभ कर रखा है।
अंतिम आंकड़ों के अनुसार ग़ज़ा पट्टी पर ज़ायोनी सरकार के हमलों में अब तक 43 हज़ार से अधिक फ़िलिस्तीनी शहीद और एक लाख सात हज़ार से अधिक फ़िलिस्तीनी घायल हो चुके हैं।
ज्ञात रहे कि ब्रिटेन की साम्राज्यवादी नीति के तहत ज़ायोनी सरकार का ढांचा वर्ष 1917 में ही तैयार हो गया था और विश्व के विभिन्न देशों व क्षेत्रों से यहूदियों व ज़ायोनियों को लाकर फ़िलिस्तीनियों की मातृभूमि में बसा दिया गया और वर्ष 1948 में ज़ायोनी सरकार ने अपने अवैध अस्तित्व की घोषणा कर दी। उस समय से लेकर आजतक विभिन्न बहानों से फ़िलिस्तीनियों की हत्या, नरसंहार और उनकी ज़मीनों पर क़ब्ज़ा यथावत जारी है।
इस्लामी गणतंत्र ईरान सहित कुछ देश इस्राईल की साम्राज्यवादी सरकार के भंग व अंत किये जाने और इसी प्रकार इस बात के इच्छुक हैं कि जो यहूदी व ज़ायोनी जहां से आये हैं वहीं वापस चले जायें।
अहलेबैत अ.स.के अय्यामे विलादत व शहदत पर दीनी खिदमत करने का बेहतरीन अवसर
मौलाना सैयद अशरफ़ अली ग़रवी ने भारत में अय्यामे फ़ातेमिया के अवसर पर आयोजित मजलिस ए अज़ा को संबोधित करते हुए कहा कि अहले बैत अ.स. के अय्यामे विलादत व शहदत पर दीनी खिदमत करने का बेहतरीन अवसर है।
एक रिपोर्ट के अनुसार, प्रयागराज में हज़रत फ़ातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की शहादत के दिन 13 जमादीुल अव्वल को मदरसा क़ुरआन व इतरत, कदम रसूल, चकिया में मजलिस-ए-अज़ा का आयोजन किया गया।
इस कार्यक्रम की शुरुआत मौलवी अज़ीम ने तिलावत-ए-क़ुरआन से की और संचालन के कार्य मौलाना हसन अली साहब ने संभाले।
मौलाना मोहम्मद हैदर फैज़ी ने अपनी तक़रीर में मस्जिद अमजदिया, चक से प्रकाशित होने वाले रिसाला "नूरु सकलैन" की अहमियत और उपयोगिता की ओर इशारा किया।
इसके बाद मौलाना मोज़िज़ अब्बास ने हज़रत ख़दीजा अलकुबरा की वार्षिक रिपोर्ट पेश की। यह बात स्पष्ट है कि समाज कल्याण के उद्देश्य से सन्दूक़ हज़रत ख़दीजा सलामुल्लाह अलैहा की स्थापना 8 वर्ष पहले हुई थी।
मदरसा क़ुरआन व इतरत के निदेशक मौलाना मोहम्मद अली गौहर ने शिक्षा और तालीम की अहमियत तथा आल-ए-मोहम्मद के ज्ञान के प्रचार-प्रसार की आवश्यकता पर ज़ोर देते हुए सन्दूक़ हज़रत ख़दीजा अल-कुबरा की स्थापना और इसके उद्देश्यों की ओर इशारा किया। उन्होंने कहा कि दुनिया न पहले हज़रत ख़दीजा के माल से बेनियाज़ थी और न आज बेनियाज़ है।
अंत में, आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली हुसैनी सिस्तानी के प्रतिनिधि हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैयद अशरफ़ अली ग़रवी ने मजलिस-ए-अज़ा को संबोधित किया।
मौलाना सैयद अशरफ़ अली ग़ुरवी ने सदक़ा की अहमियत और इसके फ़ायदों पर रौशनी डालते हुए कहा कि अहल-ए-बैत अ.स. के जन्म और शहादत के दिन धार्मिक सेवाओं का बेहतरीन अवसर होते हैं।
इन दिनों में महफ़िलों और मजलिसों के साथ-साथ धार्मिक और समाज कल्याण की गतिविधियों पर ध्यान देना चाहिए ताकि सेवा-ए-खल्क़ के सिलसिले में अहल-ए-बैत अ.स. की सीरत पर अमल किया जा सके।
मौलाना सैयद अशरफ़ अली ग़रवी ने हज़रत फ़ातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के फज़ाइल, मनाक़िब, अज़मत और मसइब का वर्णन करते हुए उनकी सीरत पर अमल करने की ताकीद की।
अलहाज़ हाफिज़ बशीर हुसैन नजफ़ी के नेतृत्व में जुलूस ए अज़ा ए फ़ातेमिया का आयोजन
हज़रत फातिमा ज़हरा स.ल.की मज़लूमा शहादत की याद में सालाना जलूस ए फातिमिया का आयोजन किया गया जिसकी अगुवाई हज़रत आयतुल्लाह हाफ़िज़ बशीर हुसैन नजफी ने की यह जुलूस केंद्रीय कार्यालय से शुरू होकर हरम हज़रत अमीरुल मोमिनीन अली अ.स.में समाप्त हुआ।
एक रिपोर्ट के अनुसार,हज़रत फातिमा ज़हरा स.ल.की मज़लूमा शहादत की याद में सालाना जलूस ए फातिमिया का आयोजन किया गया जिसकी अगुवाई हज़रत आयतुल्लाह हाफ़िज़ बशीर हुसैन नजफी ने की यह जुलूस केंद्रीय कार्यालय से शुरू होकर हरम हज़रत अमीरुल मोमिनीन अली अ.स.में समाप्त हुआ।
हज़रत अमीरुल मोमिनीन अ.स और हज़रत इमामे ज़माना अ.ज की मुबारक ख़िदमत में उनकी जद्दा माजेदा की मज़लूमाना शहादत का पुर्सा पेश करने के लिए केंद्रीय कार्यालय नजफ़ अशरफ़ से हरम-ए-हज़रत अमीरुल मोमिनीन इमाम अली (अ.स) तक सालाना जुलूसे अज़ा-ए-फ़ातेमिया की क़ियादत मरज ए मुसलेमिन हज़रत आयतुल्लाह अल उज़मा अलहाज़ हाफिज़ बशीर हुसैन नजफ़ी ने की जिसमें हौज़ा-ए-इल्मिया नजफ़ अशरफ़ के फ़ाज़िल उलमा-ए-कराम असातिज़ा, तुलबा-ए-कराम और मोमिनीन ने शिरकत फ़रमाई।
हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा अलहाज़ हाफिज़ बशीर हुसैन नजफ़ी के नेतृत्व में जुलूस ए अज़ा ए फ़ातेमिया का आयोजन
अज़ा ए फ़ातिमिया का अहया अहले बैत अ.स से वफादारी और हक़ीक़ी इस्लाम-ए-मोहम्मदी की तजदीद है।
मरज-ए-आली क़द्र ने फ़रमाया कि बिला शुब्हा अज़ा-ए-फ़ातेमिया का अहया अहले बैत अ.स से वफादारी और हक़ीक़ी इस्लाम-ए-मोहम्मदी की तजदीद है।
हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा अलहाज़ हाफिज़ बशीर हुसैन नजफ़ी के नेतृत्व में जुलूस ए अज़ा ए फ़ातेमिया का आयोजन
हज़रत फ़ातिमा ज़हरा स.अ ने अपने वालिद स.अ. के दीन के दिफ़ा में मसाएब व आलाम को बर्दाश्त किया और इस राह में अज़ीम क़ुर्बानियां पेश कीं सैय्यदा ज़हरा स.अ तकामुल-ए-इंसानियत की अलामत हैं।
मरज-ए-आली क़द्र ने फ़रमाया कि सैय्यदा ज़हरा स.अ इंसानियत के लिए एक अज़ीम मिसाल हैं और वो असली कमाल की तजसीम हैं जिसे अल्लाह तआला इंसान के लिए चाहता है।
उन्होंने तमाम मोमिनीन ख़ास तौर पर ख़वातीन को दावत दी कि वो उनकी सीरत को एक मिसाली बेटी, बीवी और मां के तौर पर अपनाएं।
दूसरी जानिब मरज-ए-आली क़द्र के फ़रज़ंद और केंद्रीय कार्यालय के निदेशक हुज्जतुल इस्लाम शेख अली नजफ़ी ने अपने बयान में फ़रमाया कि जुलूसे अज़ा-ए-फ़ातेमिया सालाना अज़ा का सिलसिला है जिसके ज़रिए मोमेनीन ज़ुल्म और दहशतगर्दी के तमाम अशकाल से इन्कार और बरा'अत का इज़हार करते हैं।
हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा अलहाज़ हाफिज़ बशीर हुसैन नजफ़ी के नेतृत्व में जुलूस ए अज़ा ए फ़ातेमिया का आयोजन
उन्होंने मज़ीद ताकीद करते हुए फ़रमाया कि सैय्यदा ज़हरा स.अ पर हमला इस्लामी उम्मत पर आने वाले तमाम मसाएब की इब्तिदा और शुरुआत थी।
हुज्जतुल इस्लाम शेख अली नजफ़ी ने ज़ोर देते हुए कहा कि अज़ा-ए-फ़ातिमिया अहले बैत अ.स से वफ़ादारी और मोहब्बत का एक मुसलसल ऐलान है, और ये इस बात की तस्दीक़ है कि हक़ व अदल के लिए क़ुर्बानी का सिलसिला जारी रहेगा, जिसके दिफ़ा में हज़रत फ़ातिमा स.अ ने अज़ीम क़ुर्बानियां पेश कीं हैं।
हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा अलहाज़ हाफिज़ बशीर हुसैन नजफ़ी के नेतृत्व में जुलूस ए अज़ा ए फ़ातेमिया का आयोजन
वाज़ेह रहे कि ये सालाना जुलूस-ए-अज़ा केंद्रीय कार्यालय से शुरू होकर हरम-ए-अमीरुल मोमिनीन अ.स पर इख़्तेताम पज़ीर हुआ, जहां मजलिस-ए-अज़ा का एहतेमाम किया गया और जुलूस के मुशारेकीन ने हज़रत अमीरुल मोमिनीन अ.स .की ख़िदमत में ताज़ियत और पुर्सा पेश किया।