
رضوی
चेहल्लुम को लेकर प्रशासन से व्यवस्थाएं दुरूस्त करने की मांग
हज़रत इमाम हुसैन की शहादत के 40 दिनों के बाद शहीदाने कर्बला का चेहल्लुम मनाया जाएगा इसके लिए इमामबाड़ा प्रबंधक की ओर से मंगलवार को कस्बे में सफाई व्यवस्था, पथ प्रकाश, बिजली आपूर्ति और सुरक्षा व्यवस्था समय पर पूरी करने की मांग की गई है।
हज़रत इमाम हुसैन की शहादत के 40 दिनों के बाद शहीदाने कर्बला का चेहल्लुम मनाया जाएगा। इसके लिए इमामबाड़ा प्रबंधक की ओर से मंगलवार को कस्बे में सफाई व्यवस्था, पथ प्रकाश, बिजली आपूर्ति और सुरक्षा व्यवस्था समय पर पूरी करने की मांग की गई है।
बुधवार से हज़रत इमाम हुसैन और उनके जां निसारों की शहादत को याद करते हुए चेहल्लुम का सिलसिला शुरू हो रहा है इस दौरान मजलिसों के कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे।
मोहल्ला बंदर टोल, मोहल्ला हल्का और मौहल्ला पठानपुरा में मातमी जुलूसों का आयोजन अलग अलग दिनों में होगा। टांडा भंनेड़ा, गांव जैनपुर झंझेडी और कस्बा लंढौरा में भी हजरत इमाम हुसैन का चेहल्लुम मनाया जाएगा।
मोहल्ला पठानपुरा स्थित बड़े इमामबाड़े के प्रबंधक सैय्यद काशिफ रजा नकवी उर्फ राजू ने पुलिस-प्रशासन को पत्र भेजकर जुलूसों एवं मजलिसों के कार्यक्रमों में सुरक्षा व्यवस्था कराने की मांग की है।
शहीदो के सरदार इमाम हुसैन की अज़ादारी
मोहर्रम का दुःखद महीना फिर आ गया। लोग मोहर्रम मनाने की तैयारी करने लगे हैं। मोहर्रम आने पर बहुत से लोग यह सोचने लगते हैं कि आखिर क्या वजह है कि १४ शताब्दियां बीत जाने के बावजूद आज भी लोग इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का शोक मनाते हैं। प्रायः होता यही है कि जब कोई व्यक्ति मर जाता है तो कुछ दिनों और सालों के बाद उसकी याद कम हो जाती है या लोग उसे भुला देते हैं परंतु इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को शहीद हुए १४ शताब्दियां बीत गयीं हैं परंतु उनकी याद में मनाये जाने वाले शोक न केवल कम नहीं हो रहे हैं बल्कि उनमें दिन प्रतिदिन वृद्धि होती जा रही है। मोहर्रम में जहां जहां इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का शोक मनाया जाता है चारों ओर लोग काले वस्त्र धारण करते हैं। बहुत से लोग यह सोचने पर बाध्य हो जाते हैं कि अज़ादारी का रहस्य व कारण क्या है?
हर समाज की अतीत की घटनाएं उस समाज पर यहां तक कि दूसरे समाजों पर भी विभिन्न प्रभाव डाल सकती हैं। अगर अतीत की घटना लाभदायक एवं प्रभावी होती है तो उसके प्रभाव भी लाभदायक होते हैं। दूसरी ओर अगर वह समाज अतीत की महत्वपूर्ण घटनाओं को भुला देता है तो उससे मानव समाज के लिए बहुत क्षति पहुंचती है। क्योंकि इस प्रकार की घटनाओं के लिए हर राष्ट्र व समाज को बहुत कुछ खोना पड़ता है। जैसे महान हस्तियों को हाथ से खो देना और नाना प्रकार की समस्याओं का सामना करना आदि। इस आधार पर बड़ी घटनाओं से मानवता को बहुत पाठ मिलते हैं और उन्हें राष्ट्रों के लिए बहुत मूल्यवान समझा जाता है और हर इंसान की बुद्धि यह कहती है कि इस प्रकार की मूल्यवान पूंजी की रक्षा की जानी चाहिये और यथासंभव उससे लाभ उठाया जाना चाहिये।
इस बात में कोई संदेह नहीं है कि आशूरा की घटना विभिन्न पहलुओं से बहुत मूल्यवान है क्योंकि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके वफादार साथियों ने महान ईश्वर के मार्ग में अपने प्राणों की जो आहूति दी है और उनके परिजनों ने जो कठिनाइयां सहन की हैं उसका कोई उदाहरण नहीं मिलता। दूसरी ध्यान योग्य बात यह है कि कर्बला की घटना किसी व्यक्ति, गुट या राष्ट्र के हितों की पूर्ति के लिए नहीं हुई है बल्कि कर्बला की घटना समस्त मानवता के लिए सीख है वह किसी जाति, धर्म या दल से विशेष नहीं है। इसमें जो पाठ हैं जैसे न्याय की मांग, अत्याचार के विरुद्ध आवाज़ व प्रतिरोध, प्रतिष्ठा, अच्छाई का आदेश देना, और बुराई से रोकना समस्त मानवता के लिए पाठ है। अगर कर्बला की एतिहासिक घटना से मिलने वाले पाठों को एक पीढी से दूसरी पीढी तक स्थानांतरित किया जाये तो पूरी मानवता उससे लाभ उठा सकती है।
पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का शोक मनाने पर बहुत बल दिया है। दूसरे शब्दों में मानवीय मूल्यों की रक्षा के लिए इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके साथियों ने जो अद्वीय कुर्बानी दी है उसकी याद मनाये जाने पर बल दिया है। कर्बला की एतिहासक घटना से जो सीख मिलती है उसमें से एक एकता है। इमाम हुसैन और उनके वफादार साथियों ने यह सिद्ध कर दिया है कि मूल उद्देश्य को लेकर किसी में कोई मतभेद नहीं था छोटे, बड़े, महिलाएं और बच्चे सब के सब एक ही दृष्टिकोण रखते थे, सबका लक्ष्य एक था। कर्बला की एतिहासिक घटना से सीख लेते हुए आज विभिन्न जाति व समुदाय के हजारों लोग इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की याद में शोक समारोह आयोजित करते हैं। वास्तव में पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का शोक मनाने के लिए लोगों को प्रोत्साहित करके उनके मध्य अद्वतीय शक्ति व क्षमता उत्पन्न कर दी है। इस बेजोड़ शक्ति का एक उदाहरण ईरानी जनता ने शाह की अत्याचारी सरकार के काल में नवीं और दसवीं मोहर्रम को पेश किया था जिससे तानाशाही सरकार की बुनियादें हिल गयीं थीं।
जर्मनी के मध्यपूर्व विशेषज्ञ मारबिन अपनी किताब में लिखते हैं कि हमारे कुछ इतिहासकारों की अनभिज्ञता इस बात का कारण बनी कि उन्होंने शीयों की अज़ादारी को पागलपन लिख दिया पंरतु इन्होंने अर्थहीन बातें कहीं और शीयों पर आरोप लगाया। हमनें शीयों की भांति किसी जाति व राष्ट्र को जिन्दा नहीं देखा। क्योंकि शीयों ने अज़ादारी करके तर्कसंगत नीति अपनायी और लाभप्रद धार्मिक आंदोलन को अस्तित्व प्रदान किया है। इसी प्रकार जर्मनी के मध्यपूर्व विशेषज्ञ मारबिन लिखते हैं” किसी भी चीज़ ने अज़ादारी की भांति मुसलमानों के मध्य राजनीतिक जागरुकता पैदा नहीं की है। अज़ादारी महाक्रांतिकारी इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के साथ एक प्रकार की वचनबद्धता और अत्याचार के प्रति विरोध है। महान ईरानी बुद्धिजीवी उस्ताद शहीद मुर्तज़ा मुतह्हरी के शब्दों में” शहीद पर रोना उसकी शूरवीरता में भागीदारी है”
इस आधार पर अज़ादारी से लोगों में आध्यात्मिक परिवर्तन होता है जिससे सामाजिक परिवर्तन की भूमि प्रशस्त होती है और वास्तव में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के लक्ष्यों को बाकी रखने की भूमि समतल होती है। शहीदों के लिए अज़ादारी विशेष कर इमाम हुसैन के नाम और काम के बाक़ी रहने कारण है और उससे लोगों में एक प्रकार से अत्याचार से मुकाबले की भावना पैदा होती है। ईरान की इस्लामी क्रांति के संस्थापक स्वर्गीय इमाम खुमैनी ने कहा है कि इस प्रकार रोने, इस प्रकार नौहे और शेर पढने से हम इस परम्परा को सुरक्षित करना चाहते हैं जैसाकि अब तक सुरक्षित रहा है।
ईश्वरीय धर्म इस्लाम और पैग़म्बरे इस्लाम की उपलब्धियों की सुरक्षा उनके पवित्र परिजनों की शिक्षाओं की छत्रछाया में रहा है और चूंकि अत्याचारी शासक सदैव अहले बैत की संस्कृति व शिक्षाओं को मिटाने की कुचेष्टा में थे इसलिए स्वयं अज़ादारी ने राजनीति का रूप धारण कर लिया। मोहरर्रम में रोना और अज़ादारी वास्तव में अत्याचार से संघर्ष की भावना को जीवित रखना है।
कर्बला की एतिहासिक घटना में महान ईश्वर की उपासना और बंदगी सर्वोपरि है। मुसलमानों की प्रतिष्ठा, ईमान और आध्यात्म में है। कर्बला की इतिहासिक घटना का महत्वपूर्ण संदेश अत्याचार के विरुद्ध संघर्ष था। शीयों की संस्कृति में धार्मिक पथप्रदर्शकों विशेषकर इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके वफादार साथियों के शोक में अज़ादारी आयोजित करना उपासना है। क्योंकि अज़ादारी अध्यात्म में विकास व वृद्धि का कारण बनती है और मनुष्य को परिपूर्णता के उच्च शिखर पर पहुंचने में सहायता करती है। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की मुसीबतों पर रोना और दुःखी होना इंसान के अंदर परिवर्तन का कारण बनता है और तक़वा अर्थात ईश्वरीय भय व सदाचारिता की भूमि प्रशस्त होती है। अज़ादारी करके लोग इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के आज्ञा पालन के प्रति कटिबद्धता व्यक्त करते हैं। इसी तरह जो इंसान अज़ादारी करता है वह अपने व्यवहार से इस बात को दर्शा देता है कि वह अत्याचारियों से कोई समझौता नहीं करेगा और न तो अपमान का मार्ग स्वीकार करेगा। क्योंकि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का प्रसिद्ध कथन है कि इज़्ज़त की मौत अपमान के जीवन से बेहतर है। जो व्यक्ति अज़ादारी करता है वास्तव में वह इस बात की घोषणा करता है कि वह इमाम हुसैन के पथ पर चलेगा यानी अत्याचार और अत्याचारी के समक्ष सिर नहीं झुकायेगा चाहे उसे सत्य के लिए सिर ही कटाना क्यूं न पड़े। सच्चाई के प्रति वफादारी वह चीज़ है जो साम्रराज्यवादियों के मुकाबले में राष्ट्रों की सुरक्षा करती है।
इतिहास अनगिनत सीखों से भरा पड़ा है और अगर इतिहास की सीखों पर ध्यान न दिया जाये तो कटु घटनाओं की पुनरावृत्ति हो सकती है। पवित्र कुरआन हज़रत यूसुफ और उनके भाइयों की घटना बयान करने के बाद कहता है” उनकी आप बीती घटनाएं चिंतन मनन करने वालों के लिए सीख हैं” हज़रत अली अलैहिस्सलाम इस संबंध में फरमाते हैं” दुनिया के अतीत से भविष्य के लिए सीख लो”
इस आधार पर जिस चीज़ से अनगिनत पाठ मिलते हैं वह कर्बला की इतिहासिक घटना है। लोग अज़ादारी करते हैं ताकि आशूरा की याद ताज़ा हो और मौजूद लोग एवं भविष्य में आने वालों के लिए पाठ हो”
ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली खामनेई पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों पर अज़ादारी और रोने को महान ईश्वर की एक एसी अनुकंपा मानते हैं जिस पर ईश्वर का आभार करना चाहिये। वरिष्ठ नेता के अनुसार इस्लामी जागरुकता में विस्तार आशूरा महाआंदोलन का परिणाम है और इस अनुकंपा की संवेदनशीलता को हम उस समय समझते हैं जब हम यह जान जायें कि ईश्वरीय अनुकंपा के मुकाबले में सबसे पहले बंदों का दायित्व ईश्वर का आभार करना और उसके पश्चात उसकी सुरक्षा के लिए प्रयास करना है। वरिष्ठ नेता ने फरमाया है कि एक समय एसा होता है कि किसी के पास कोई अनुकंपा नहीं है और उससे इसके बारे में पूछा भी नहीं जायेगा पंरतु जिसके पास अनुकंपा है उससे उसके बारे में सवाल किया जायेगा। एक बड़ी अनुकंपा याद करने की है यानी शोक सभा की अनुकंपा, मोहरर्रम की अनुकंपा और हमारे शीया समाज के लिए आशूरा की अनुकंपा। यह महान अनुकंपा दिल को ईमान के इस्लामी स्रोत से मिला देती है। इस अनुकंपा ने एसा कार्य किया है कि पूरे इतिहास में अत्याचारी आशूरा और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की क़ब्र से भयभीत रहे हैं। इस अनुकंपा से लाभ उठाना चाहिये। लोगों और धर्मगुरूओं को इस अनुकंपा से लाभ उठाना चाहिये। लोगों का लाभ उठाना यह है कि वे शोक सभाओं में रूचि लें और उनका आयोजन करें। लोग जितना कर सकें अज़ादारी को विभिन्न स्तरों पर विस्तृत करें”
कर्बला की एतिहासिक घटना और महाआंदोलन समस्त इतिहास और पूरी मानवता के लिए सीख है और जो भी कर्बला के महाआंदोलन के संदेशों पर अमल करेगा उसका जीवन लोक- परलोक में सफल होगा।
ईरान फ़िलिस्तीन का समर्थन करता रहेगा। अली ख़ामेनेई
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने कहा है कि अमरीका के नेतृत्व में पश्चिमी मोर्चा एक व्यापक युद्ध द्वारा क्षेत्र पर वर्चस्व जमाने का प्रयास कर रहा है।
आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने रविवार की शाम फ़िलिस्तीन के जेहादे इस्लामी संगठन के महासचिव रमज़ान अब्दुल्लाह से मुलाक़ात में कहा कि इस समय क्षेत्र में जो व्यापक युद्ध जारी है वह उसी युद्ध का क्रम है जो 37 साल पहले ईरान के विरुद्ध आरंभ हुआ था। उन्होंने इस बात पर बल देते हुए कि फ़िलिस्तीन के मामले में ईरान की नीति न तो पहले सामयिक थी और न अब है, कहा कि इस्लामी क्रांति की सफलता से पहले और संघर्ष के दौरान फ़िलिस्तीन के समर्थन और ज़ायोनी शासन से मुक़ाबले का विषय स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी की नीतियों में कई बार बयान किया जाता रहा और इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद भी फ़िलिस्तीनी जनता का समर्थन, ईरान के सबसे पहले कामों में से एक था। अतः फ़िलिस्तीनी लक्ष्य का बचाव, स्वाभाविक रूप से इस्लामी गणतंत्र ईरान के सिद्धांतों में शामिल है।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने इस्लामी मोर्चे के ख़िलाफ़ अमरीका के नेतृत्व में पश्चिमी मोर्चे की व्यापक लड़ाई का उद्देश्य, क्षेत्र पर नियंत्रण बताया और कहा कि क्षेत्र की परिस्थितियों की इस आयाम से समीक्षा की जानी चाहिए और इस परिप्रेक्ष्य में सीरिया, इराक़, लेबनान, व हिज़्बुल्लाह की समस्याएं, इसी व्यापक लड़ाई का भाग हैं। आयतुल्लाहिल उज़्म सैयद अली ख़ामेनेई ने इस बात पर बल देते हुए कि इन परिस्थितियों में फ़िलिस्तीन की रक्षा, इस्लाम की रक्षा का प्रतीक है, कहा कि साम्राज्यवादी मोर्चा इस बात का हर संभव प्रयास कर रहा है कि इस टकराव को शिया व सुन्नी के बीच युद्ध के रूप में पेश करे। उन्होंने इस बात पर बल देते हुए कि सीरिया में शिया सरकार नहीं है, कहा कि लेकिन इस्लामी गणतंत्र ईरान, सीरिया सरकार का समर्थन कर रहा है क्योंकि जो लोग सीरिया के मुक़ाबले पर हैं वे वास्तव में इस्लाम के शत्रु हैं और अमरीका व ज़ायोनी शासन के हितों के लिए काम कर रहे हैं। आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने फ़िलिस्तीन के जेहादे इस्लामी संगठन के महासचिव रमज़ान अब्दुल्लाह के इस बयान की ओर संकेत करते हुए कि लेबनान के हिज़्बुल्लाह संगठन पर अधिक दबाव डालने के प्रयास किए जा रहे हैं, कहा कि हिज़्बुल्लाह इससे कहीं अधिक शक्तिशाली है कि इस प्रकार के प्रयासों से उसे क्षति पहुंचे और आज ज़ायोनी शासन निश्चित रूप से हिज़्बुल्लाह से पहले से कहीं अधिक भयभीत व आतंकित है।
ईरान में पाकिस्तानी ज़ायरीन की बस दुर्घटना 30 शहीद कई घायल
अरबईन फाउंडेशन के अनुसार, दुर्घटना के शिकार लोग लडकाना,सिंध के ज़ायरीन थे, सूत्रों के मुताबिक, इस हादसे में बस में सवार 30 लोगों की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि 20 घायलों को तत्काल अस्पताल ले जाया गया अभी भी कुछ घायलों की हालत नाज़ुक हैं।
एक रिपोर्ट के अनुसार , अरबईन हुसैनी के लिए ईराक जाने वाले तीर्थयात्रियों की एक बस ईरानी के शहर यज़्द के पास एक गंभीर दुर्घटना का शिकार हो गई जिसके परिणामस्वरूप कई ज़ायरीन की मौत हो गई।
अरबईन फाउंडेशन के अनुसार, दुर्घटना के शिकार लोग लडकाना,सिंध के ज़ायरीन थे, सूत्रों के मुताबिक, इस हादसे में बस में सवार 30 लोगों की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि 20 घायलों को तत्काल अस्पताल ले जाया गया अभी भी कुछ घायलों की हालत नाज़ुक हैं।
एक रिपोर्टों के अनुसार, दुर्घटना यज़्द के पास हुई और हो सकता है कि ब्रेक फेल होने के कारण हुई हो हालाँकि अभी तक कोई अंतिम घोषणा नहीं की गई है।
कुछ मसाइब जो किसी भी प्रामाणिक "मक़तल" में नहीं पाए जाते
बिना किसी प्रामाणिक परंपरा या सिद्ध ऐतिहासिक स्रोत के घटनाओं को उद्धृत करने की कोई शरीयत स्थिति नहीं है, यदि कथन वर्तमान स्थिति से उद्धृत किया गया है और उसकी मिथ्याता ज्ञात नहीं है, तो इसे उद्धृत करने में कोई समस्या नहीं है क्या नहीं है।
प्रश्न: कुछ अंजुमनो में ऐसे मसाइब सुनाए जाते हैं जो किसी भी प्रामाणिक "मक़तल" में नहीं पाए जाते और न ही उन्हें किसी विद्वान या अधिकारी से सुना गया है, और जब इन मसाइब को पढ़ने वालों से उनके स्रोत के बारे में पूछा जाता है तो वे उत्तर देते हैं कि "अहले-बैत" (अ) ने हमें इस तरह से समझाया है या हमें इस तरह से निर्देशित किया है" और कर्बला की घटना न केवल मुकातिल की किताबों और विद्वानों की बातों में पाई जाती है, बल्कि यह कभी-कभी होती है। प्रश्न यह है कि क्या उपरोक्त घटनाओं को इस प्रकार कॉपी करना सही है? और अगर ये सच नहीं है तो सुनने वालों की जिम्मेदारी क्या है?
उत्तर: जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, किसी भी प्रामाणिक परंपरा या सिद्ध ऐतिहासिक स्रोत के बिना घटनाओं को उद्धृत करने की कोई शरीयत स्थिति नहीं है, और यदि इनकार का विषय और शर्तें मौजूद हैं तो दर्शकों की जिम्मेदारी इनकार नहीं करना है।
नजफ़ से कर्बला तक अरबईन वाक करते हुए ज़ाएरीन
हज़रत इमाम हुसैन अ.स.से मुहब्बत करने वाले युवा, महिलाएं और पुरुष इसी रास्ते पर चलते हैं और सैय्यदुश्शोहदा के त्याग, समर्पण और बलिदान को याद करते हैं, भले ही कर्बला की घटना को सदियां बीत गई हों आज भी कर्बला ज़िन्दा हैं।
हज़रत इमाम हुसैन अलै. के ज़ाएरीन तीन दिनों में नजफ अशरफ से कर्बला तक अस्सी किलोमीटर का रास्ता पैदल तय करेंगे और इमाम हुसान अलै. के रौज़े तक पहुंचेंगे। ज़ाएरीन का यह जुलूस सैय्यदुश्शोहदा और कर्बला के शहीदों के प्रति प्रेम दर्शाता है और हर ज़ाएर सच्चे अर्थों में हुसैनी बनकर नजफ़ से कर्बला तक का रास्ता तय कर रहा है।
हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) से मुहब्बत करने वाले युवा, महिलाएं और पुरुष इसी रास्ते पर चलते हैं और सैय्यदुश्शोहदा के त्याग, समर्पण और बलिदान को याद करते हैं, भले ही कर्बला की घटना को सदियां बीत गई हों।
वहीं, नजफ अशरफ में स्थित दुनिया के सबसे बड़े कब्रिस्तान वादी उस्सलाम में इन दिनों बड़ी संख्या में ज़ाएरीन जाकर फातिहा पढ़ते हैं।
नजफ अशरफ में वादी उस्सलाम कब्रिस्तान एक बहुत बड़ा और ऐतिहासिक कब्रिस्तान है, इसकी खूबियों के बारे में कई हदीसों में बताया गया है, यही वजह है कि शियों के लिए इसका बहुत महत्व है।
कुछ परंपराओं के अनुसार, कुछ पैगंबर और धर्मी लोग इस कब्रिस्तान में लौटेंगे वादी उस्सलाम कब्रिस्तान में इराकी निवासियों के अलावा ईरान, भारत, पाकिस्तान, लेबनान और अन्य देशों के लोगों की कब्रें भी देखी जाती हैं। वादी सलाम में कई प्रसिद्ध धार्मिक और गैर-धार्मिक हस्तियों को भी दफनाया गया है।
इस कब्रिस्तान में हज़रत यह्या, हज़रत लूत, हज़रत हूद और हज़रत सालेह अलै. को दफनाया गया है। रईस अली दिलवारी, सैयद मुहम्मद बाकिर अल-सद्र और अबू मेहदी अल-मुहांदिस की कब्रें भी वादी उस्सलाम में हैं।
जगह जगह लगे कैम्प में ज़ाएरीन को अपनी सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। इराकी लोग, विशेष रूप से महिलाएं, स्थानीय रोटियां बनाती हैं और उन्हें सैय्यद अल-शहादा के ज़ाएरीन को परोसती हैं। नजफ़ से कर्बला तक की 80 किलोमीटर की सड़क जुलूसों से भरी रहती है और विभिन्न देशों और धर्मों के लोग एक ही गंतव्य की ओर मार्च करते हैं।
हर शिया के दिल में अरबईन वाक पर जाने की इच्छा पाई जाती है क्योंकि यह दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक जुलूस है।
ज़ियारते अरबईन का विश्व की पांच भाषाओं में अनुवाद
इस्फ़हान मदरसा के भाषाविदों ने इस्फ़हान में "इंटरनेशनल नासिरियाह स्कूल ऑफ़ नासिरियाह" के प्रयासों से पहली बार दुनिया की पाँच जीवित भाषाओं में ज़ियारते अरबईन के अनुवाद की घोषणा की है।
हुज्जतुल-इस्लाम मुहम्मद ज़मानी ने कहा: इंटरनेशनल नासिरिया स्कूल ऑफ टूरिज्म एंड अहले-बैत (अ) की शिक्षाओं को बढ़ावा देने के लिए इस्फ़हान इमाम मस्जिद में विभिन्न गतिविधियां चलाता है।
उन्होंने पिछले वर्षों में इस्फ़हान में इंटरनेशनल नासिरियाह स्कूल ऑफ टूरिज्म एंड प्रमोशन की सिलसिलेवार और योजनाबद्ध गतिविधियों का उल्लेख किया और कहा: इस साल, हमने आशूराय संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए दुनिया में पहली बार ज़ियारते अरबईन और अरबईन ब्रोशर बनाए हैं।
इस्फ़हान में नासेरिया स्कूल के भाषाविद् ने कहा: अरबईन अंतरराष्ट्रीय इस्लामी क्षेत्र में एक प्रभावी और अंतरराष्ट्रीय आंदोलन के रूप में उभर रहा है, इसलिए अंतरराष्ट्रीय प्रचार के क्षेत्र में अरबईन के वैश्विक संदेश को अत्यंत कौशल के साथ आगे बढ़ाना आवश्यक है।
उन्होंने कहा: एक महत्वपूर्ण मुद्दा जो दुनिया के स्वतंत्रता-प्रेमी लोगों के शैक्षणिक स्तर में सुधार करेगा, वह ज़ियारत अरबईन का अध्ययन है, और इस अवसर पर, इस्फ़हान सेमिनरी का अंतर्राष्ट्रीय मिशनरी और सांस्कृतिक कार्यालय अरबईन का अनुवाद करने का प्रयास कर रहा है। विभिन्न भाषाओं में तीर्थयात्रा की गई है।
हुज्जतुल-इस्लाम ज़मानी ने कहा: अरबईन ब्रोशर अंग्रेजी, फ्रेंच, तुर्की, जर्मन और स्पेनिश में उपलब्ध होंगे और अंतरराष्ट्रीय मिशनरियों के लिए उपलब्ध होंगे, जो ईश्वर की इच्छा से पूरी दुनिया में अरबईन के संदेश को फैलाने में मदद करेंगे।
नाइजीरियाई छात्रों का अरबईन वॉक शुरू
कुछ नाइजीरियाई छात्र और मुब्लीग़ जो अरबईन पदयात्रा के लिए इराक आए है उन्होंने नजफ अशरफ से कर्बला तक अपनी पैदल यात्रा शुरू की।
एक रिपोर्ट के अनुसार , इराक में रहने वाले नाइजीरियाई उलेमा विद्वानों और सम्मानित छात्रों और मुब्लीग़ ने आज सुबह नजफ अशरफ से कर्बला तक पैदल यात्रा शुरू किया।
इस पैदल मार्च के दौरान ईरान इराक और सीरिया के कुछ जाने माने उपदेशक और नाइजीरियाई छात्रों के प्रतिनिधि भी प्रतिभागियों में शामिल हुए हैं।
तहरीक-ए-इस्लामी के प्रतिनिधि के रूप में शेख सिदी मुनीर मेनसारा का नाम उल्लेखनीय है। नाइजीरिया और वहां के शिया लोग जाने जाते हैं।
यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि शेख़ इब्राहिम ज़ाकज़की द्वारा लगभग आठ साल पहले नाइजीरिया के उत्तर में सोकोतो के महान राज्य में शेख सिदी मुनीर मेन्सारा को उनके वकील और कानूनी प्रतिनिधि के रूप में चुना गया था।
जिन्हें सबसे प्रमुख नेताओं में से एक के रूप में वर्णित किया गया है हाल के वर्षों में नाइजीरिया में इस्लामी आंदोलन को सबसे प्रभावी और महत्वपूर्ण स्तंभों में से एक माना जाता है।
नेतनयाहू जंग को विस्तृत करने की चेष्टा में हैं" अपने अंत से बचने के प्रयास में
ज़ायोनी सरकार के पूर्व प्रधानमंत्री एहूद बाराक ने हमास के साथ समझौता न करने के कारण नेतनयाहू के अतिवादी मंत्रीमंडल पर हमला किया और चेतावनी दी है कि नेतनयाहू इस्राईल को एक क्षेत्रीय जंग में ढ़केल रहे हैं।
पार्सटुडे ने अलजज़ीरा टीवी चैनल के हवाले से बताया है कि ग़ज़ा में युद्ध विराम के उद्देश्य से हमास के साथ समझौता करने और बंदियों के आदान- प्रदान के मुद्दे को लेकर ज़ायोनी अधिकारियों में मतभेद बहुत गहरा हो गया है इस प्रकार से कि अतिवादी पार्टियां हर प्रकार के समझौते की मुखर विरोधी हैं जबकि नेतनयाहू के विरोधी बंदियों के आदान- प्रदान के लिए हमास के साथ समझौते के पक्षधर हैं।
इस आधार पर नेतनयाहू के ख़िलाफ़ एहूद बराक ने अपने हालिया दृष्टिकोण में हमास के साथ समझौते के मार्ग में रुकावट उत्पन्न के कारण नेतनयाहू के अतिवादी मंत्रिमंडल की आलोचना की और कहा कि नेतनयाहू इस्राईल को एक क्षेत्रीय युद्ध में ढ़केल रहे हैं और यह उस स्थिति में है जब नेतनयाहू ने हमारे बंदियों को ग़ज़ा में मौत के मुंह में भेज दिया है। इसी प्रकार एहूद बाराक ने कहा कि नेतनयाहू बल देकर कह रहे हैं कि ग़ज़ा के दक्षिण में स्थित फ़िलाडेल्फ़िया गलियारा हमारे कंट्रोल है तो इससे इस्राईल के लिए कोई राजनीतिक फ़ाएदा नहीं है।
यह ऐसी स्थिति में है जब ज़ायोनी सरकार के प्रधानमंत्री कार्यालय ने इससे पहले एक बयान जारी करके एलान किया था कि तेलअवीव, मिस्र और ग़ज़ा की सीमा के बीच फ़िलाडेल्फ़िया गलियारे को नियंत्रित किये जाने का इच्छुक है क्योंकि यह कार्य दोबारा आतंकवादी गुटों के सशस्त्र होने में रुकावट व बाधा बनेगा। यह गलियारा मिस्र और ग़ज़ा की सीमा के दोनों ओर के बड़े असैनिक क्षेत्र का भाग है।
इस्राईल के टीवी चैनल 13 ने भी ज़ायोनी सरकार के वार्ताकार प्रतिनिधिमंडल और नेतनयाहू के बीच गम्भीर मतभेद की सूचना देते हुए बल देकर कहा कि वार्ताकार प्रतिनिधिमंडल ने नेतनयाहू को चेतावनी दी है कि वार्ता का विफ़ल होना इस बात का कारण बनेगा कि उसका दोबारा आरंभ होना बहुत कठिन हो जायेगा। इस चैनल ने आगे कहा कि नेतनयाहू ने ज़ायोनी सरकार के वार्ताकार प्रतिनिधिमंडल से कहा है कि वार्ता के विफ़ल हो जाने या उसके किसी परिणाम पर पहुंच जाने का कोई संबंध उससे नहीं है।
इसी प्रकार ज़ायोनी सरकार के टीवी चैनल 13 ने कहा कि ज़ायोनी सरकार के वार्ताकार प्रतिनिधिमंडल ने नेतनयाहू से कहा है कि अगर फ़िलाडेल्फ़िया और नत्सारिम में ज़ायोनी सैनिकों की उपस्थिति पर हम आग्रह करेंगे तो वार्ता विफ़ल हो जायेगी। इस चैनल ने इसी प्रकार अमेरिका के विदेशमंत्री एंटनी ब्लिंकन के अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन में आने की सूचना दी ताकि वह नेतनयाहू को यह बता सकें कि इस वार्ता की नाकामी का क्या परिणाम निकलेगा।
इन परिवर्तनों के साथ फ़िलिस्तीन के इस्लामी प्रतिरोध संगठन हमास ने एलान किया है कि ग़ज़ा में युद्ध विराम के लिए अमेरिका ने जो सुझाव दिया है हमास उसका विरोधी है क्योंकि यह प्रस्ताव बिल्कुल नेतनयाहू की शर्तों के अनुरूप है और पूरी तरह ज़ायोनी सरकार के हित में है। साथ ही हमास ने यह भी कहा कि अमेरिका ने जो प्रस्ताव व सुझाव दिया है उसमें पूरी तरह जंग बंद करने पर बल नहीं दिया गया है और वार्ता में मध्यस्थ की भूमिका निभाने वालों की बात सुनने के बाद एक बार दोबारा हमें विश्वास हो गया कि नेतनयाहू इस समझौते के मार्ग में बाधा उत्पन्न कर रहे हैं।
हमास आंदोलन ने अंत में बल देकर कहा है कि नया प्रस्ताव नेतनयाहू की शर्तों के अनुसार है विशेषकर वह स्थाई युद्ध विराम और ग़ज़ा से निकलने के विरोधी हैं जैसाकि इस्राईल अब भी नस्तारिम, रफ़ह पास और फ़िलाडेल्फ़िया गलियारे का अतिग्रहण जारी रखे हुए है।
पिछले गुरूवार और शुक्रवार को क़तर की राजधानी दोहा में ग़ज़ा में युद्ध विराम के संबंध में अमेरिका, मिस्र और क़तर की उपस्थिति में वार्ता हुई थी। इस वार्ता में हमास ने भाग नहीं लिया था और उसने एलान किया था कि नई वार्ता के बजाये पहले वाले समझौते पर ध्यान केन्द्रित करते हैं। इस आधार पर जारी बयान के अनुसार यह वार्ता शीघ्र ही मिस्र की राजधानी क़ाहेरा में दोबारा आरंभ होगी।
हमास के राजनीतिक कार्यालय के अध्यक्ष इस्माईल हनिया की शहादत के बाद यह वार्ता तेहरान में आयोजित हुई। विशेषज्ञों का मानना व कहना है कि अमेरिका और अरब देशों को उम्मीद है कि युद्धविराम हो जाने के बाद ईरान इस्माईल हनिया की शहादत का बदला नहीं लेगा। ईरान ने इस्माईल हनिया की हत्या को आतंकवादी कार्यवाही का नाम दिया है और ज़ायोनी सरकार को पछताने वाला जवाब देगा।
इस्राईली अधिकारियों का मानना है कि नेतनयाहू अपने राजनीतिक जीवन की मुक्ति के लिए जंग ख़त्म करने के इच्छुक नहीं हैं और क़ाहेरा में ईरान के हितों के रक्षक कार्यालय के अध्यक्ष ने भी कहा है कि अगर नेतनयाहू संतुलित शर्तों के साथ युद्धविराम को स्वीकार कर लेते हैं तो उन्हें सत्ता से विदा लेना होगा।
बाइडेन ने पार्टी की कमान कमला हैरिस को सौंपी
डेमोक्रेटिक सम्मेलन में राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी के लिए बाइडेन की सराहना भी की गई।
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन ने सोमवार को शिकागो में डेमोक्रेटिक नेशनल कन्वेंशन के पहले दिन कमला हैरिस को राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में अपना पूर्ण समर्थन दिया और औपचारिक रूप से उन्हें पार्टी की कमान सौंपी। बिडेन ने घोषणा की कि "कमला हीरा अमेरिका के लिए इतिहास बनाने वाली राष्ट्रपति होंगी।" उन्होंने कमला हैरिस को "अमेरिका में लोकतंत्र बचाने के लिए सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति" कहा। इससे पहले, जब बिडेन मंच पर पहुंचे, तो प्रतिनिधियों ने उनका खड़े होकर भावनात्मक अभिनंदन किया। इस दौरान कम से कम 4 मिनट तक तालियां बजती रहीं और नारे लगते रहे।
कमला हैरिस गुरुवार को राष्ट्रपति पद का नामांकन स्वीकार करेंगी।
राष्ट्रपति बाइडन के नाम वापस लेने के बाद राष्ट्रपति पद की दौड़ में शामिल हुईं संयुक्त राज्य अमेरिका की 59 वर्षीय उपराष्ट्रपति कमला हैरिस ने भी अपना चुनाव अभियान शुरू कर दिया है, लेकिन अभी तक वह डेमोक्रेटिक पार्टी की औपचारिक उम्मीदवार नहीं बनी हैं। सम्मेलन में प्रतिनिधियों से आवश्यक समर्थन मिलने के बाद वह गुरुवार को औपचारिक रूप से राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी की जिम्मेदारी स्वीकार करेंगी।
सोमवार को पहले दिन जिन प्रतिनिधियों ने उनकी उम्मीदवारी का समर्थन किया उनमें राष्ट्रपति जो बिडेन, पूर्व अमेरिकी प्रथम महिला हिलेरी क्लिंटन, पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा और उनकी पत्नी मिशेल ओबामा शामिल हैं। अपने भाषण में, हजारों डेमोक्रेटिक पार्टी के प्रतिनिधियों के नारे के बीच, बिडेन ने सवाल पूछा, "क्या आप कमला हैरिस को संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति के रूप में चुनने के लिए तैयार हैं?" हमें अपने लोकतंत्र को बचाना होगा, डोनाल्ड ट्रम्प को हराना होगा और कमला हैरिस को राष्ट्रपति चुनना होगा। उन्होंने विश्वास जताते हुए कहा कि कमला हैरिस अमेरिका की 47वीं राष्ट्रपति होंगी और वह एक ऐतिहासिक राष्ट्रपति होंगी। "
युद्धविराम पर काम कर रहे हैं: बिडेन
डेमोक्रेटिक पार्टी के सम्मेलन में बोलते हुए, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन ने आश्वासन दिया कि वह और उनका प्रशासन गाजा युद्धविराम और बंधकों की रिहाई की दिशा में काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा, ''अमेरिका में राजनीतिक हिंसा की कोई जगह नहीं है, अच्छे दिन आ रहे हैं, लोकतंत्र कायम रहेगा.'' हमारे फैसले आने वाले दशकों में हमारे देश और दुनिया का भाग्य तय करेंगे। कन्वेंशन हॉल के बाहर फिलिस्तीन समर्थक विरोध प्रदर्शन और प्रदर्शनकारियों के नारे के बीच, बिडेन ने अपनी पार्टी के प्रतिनिधियों से घोषणा की कि "हम गाजा युद्धविराम और बंधकों की रिहाई के लिए काम कर रहे हैं।" उन्होंने अपने 4 साल के शासन के लिए अमेरिकी लोगों को धन्यवाद दिया। ट्रंप को दोबारा व्हाइट हाउस नहीं पहुंचने देने के संकल्प के साथ अपनी सरकार की विदेश नीति की सफलता का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, 'ऐसा लग रहा था कि रूस ने 3 दिन में यूक्रेन पर कब्जा कर लिया है, लेकिन आज 3 साल बाद भी यूक्रेन वहीं है.' आज़ाद है "