رضوی

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आप का नाम हुर्र इब्ने यज़ीद इब्ने नाजिया इब्ने कनब इब्ने इताब इब्ने हुर्रमी इब्ने रियाह इब्ने यार्बू इब्ने खंज़ला इब्ने मालिक इब्ने ज़ेद्मना इब्ने तमीम अल यार्बुई अर्र रियाही था आप अपने हर अहदे हयात मे शरीफ़े क़ौम थे ।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,हज़रत हुर्र इब्ने यज़ीद इब्ने नाजिया इब्ने कनब इब्ने इताब इब्ने हुर्रमी इब्ने रियाह इब्ने यार्बू इब्ने खंज़ला इब्ने मालिक इब्ने ज़ेद्मना इब्ने तमीम अल यार्बुई अर्र रियाही था आप अपने हर अहदे हयात मे शरीफ़े क़ौम थे ।

आप के बाप दादा कि शरफ़अत मुसलेमात से थी पैगमबरे इसलाम के मशहुर सहबी ज़ऐद ईबने उमर इबने कैस इबने इताब जो (अहवज़) के नाम से मशहुर थे और शायरी मे बा- कमाल माने जाते थे वो आप के चचा ज़आत भैइया और आप के खनदान के चशमो चराग थे ।

हज़रते हुरर क शुमार कूफे के रईसों में था ।इब्ने ज़ियाद ने जब आप को एक हज़ार के लश्कर समेत इमाम हुसैन (अलै) से मुकाबला करने के लिए भेजा था उस वक्त आप को एक गैबी फ़रिश्ते ने जन्नत की बशारत दी थी जनाबे हुर्र्र का लश्कर मैदान मारता हुआ जब मकामे “शराफ” पर पंहुचा और इमाम हुसैन (अलै०) के काफिले को देख कर दौड़ा तो तमाजते आफताब और रास्ते की दोश ने प्यास से बेहाल कर दिया था।

मौला की खिदमत में पहुँच कर जनाबे हुर्र ने पानी का सवाल किया। सकिये कौसर के फरजंद ने सराबी का हुकुम दे कर आने की गरज पूछी उन्होंने अरज की मौलाl आप की पेश- कदमी रोकने और आप का मुहासिरा करने के लिए हमको भेजा गया है।

पानी पिलाने से फरागत के बाद इमाम हुसैन (अलै०) ने नमाज़े जोहर अदा फरमाई। हुर्र ने भी साथही नमाज़ पढ़ी। फिर नमाज़े असर पढ़ कर हज़रात इमाम हुसैन (अलै०) ने कूच कर दिया । हुर्र अपने लश्कर समेत काफिला –ऐ –हुस्सैनी से कदम मिलाए हुए चल रहे थे और किसी मकाम पर हज़रत की खिदमत में मौत का हवाला देते थे।

मकसद ये था के  यज़ीद की बैअत करके अपने को हलाकत से बचा लीजिये आप इस के जवाब में इरशाद फरमाते थे “हक पर जान देना हमारी आदत है “ रास्ते में बा- मकाम अजीब तर्माह इब्ने अदि अपने चार साथियों इमाम हुसैन (अलै०) से मिले । हुर्र ने कहा ये आप के हमराही नहीं है इस वक़्त कूफे से आ रहे है यह मै इन्हें आप के हम- रकाब रहने न दूंगा आप ने फरमाया तुम अपने मुआहदे से हट रहे हो ।सुनो ! अगर तुम अपने मुआहदे के खिलाफ इब्ने ज़ियाद के हुकुम पहुँचने से पहले हम से कोई मुजहेमत की तो फिर हम तुम से जंग करेंगे ।

ये सुन कर हुर्र खामोश हो गए और काफिला आगे बढ़ गया । “ कसरे बनी मुकतिल” पर मालिक इब्ने नसर नामी एक शक्स ने हुर्र्र को इब्ने ज़ियाद का हुकुमनामा दिया जिस में मारकूल था की जिस जगह मेरा यह ख़त तुम्हे मिले उसी मक़ाम पर इमाम हुसैन अलै० को ठहरा देना ।

और उस अमर का खास ख़याल रखना की जहाँ वो ठहरे वहां पानी और सब्जी का नामो निशाँ तक न हो इस हुकुम को पाते ही हुर्र ने आप को रोकना चाहा । आप तर्माह इब्ने अदि के मशविरे से आगे बढे और दो मोह्र्रम यौमे पंज्श्म्भा बा- मकामें कर्बला जा पहुचे हुर्र ने आपको बे- गयारह जंगल में पानी से बहुत दूर ठहराया और इस अमर की कोशिश की की `हुकुमे इब्ने जयाद ने फरक न आने पाए ।

 

दूसरी मोहर्र्रम तक ज़मीने कर्बला पर हुर्र रियाही इब्ने ज्याद और इब्ने साद के हर हुकुम की तकमील करते रहे और हालात का जयजा लेते रहे । सुबहे आशूर आप इस नतीजे पर पहुंचे की जन्नत व दोज़ख का फैसला कर लेना चाहिए ।

चुनाचे आप इन्तेहाई तरद्दुद व तफ़क्कुर में इब्ने साद के पास गए और पूछा की क्या वाकई इमाम हुसैन अलै० से जंग की जाए? इब्ने साद ने जवाब दिया बे – शक तन फद्केंगे ,सर बरसेंगे ,और कोई भी हुसैन और उनके साथियों में से न बचेगा ।

ये सुन कर हुर्र रियाही ख़ामोशी के साथ आहिस्ता –आहिस्ता इमाम हुसैन (अलै०) की खिदमत में आ पहुचे । बनी हाशिम ने इस्तकबाल किया । इमाम हुसैन अलै० ने सीने से लगाया । हुर्र ने अरज की मौला ! खता मुआफ मेरे पदरे नामदार ने आज शब् को ख्वाब में मुझे हिदायत की है की मै शर्फे कदम बोसी हासिल कर के दर्जे- ए –शहादत पर फएज हो जाऊ । मौला ! मैं ने ही सब से पहले हुजुर को रोका था । अब सब से पहले हुजुर पर कुर्बान हो जाना चाहता हूँ ।

(मुआर्खींनं का कहना है की इब्ने ज़ियाद और उमरे साद को हुर्र पर बड़ा एतमाद था इसीलिए सब से पहले उन्ही को रवाना किया था और फिरर यौमे आशुर लश्कर की तकसीम के मौके पर भी उन्हें लश्कर के चौथाई हिस्से पर जो कबीला-ए-तमीम व हमदान पर मुश्तकिल ।था सरदार करार दिया था)

इज्ने ज़ियाद दीजिये ताकि गर्दन कटाकर बारगाहे रिसालत में सुर्ख-रू हो सकूं।

इमाम हुसैन अलै० ने इजाज़त दी जनाबे हुर्र मैदान में तशरीफ़ लाए और दुश्मनों को मुखातिब करके कहा ।

“ ऐ दुश्मने इस्लाम शर्म करो अरे तुमने नवासे रसूले को खत लिखकर बुलाया । उन् की नुसरत व हिमायत का वयदा किया और खुतूत में ऐसी बाते तहरीर की के हुजुर को शरअन तामील करना पड़ी और वह जब तुम्हारे दावत नामो पर भरोसा कर के आ गए है तो तुम उन् पर मजलिम के पहाड़ तोड़ रहे हो उन्हें चारो तरफ से घेरा हुआ है और उन् के लिए पानी बनदीश कर दी है ।“

ऐ जालिमो ! सोचो यहुदो नसारा पानी पि रहे है और हर्र किसम के जानवर पानी में लोट रहे है लेकिन आले मोहम्मद एक-एक कतरा-ऐ-आब के लिए तरस रहे है । अरे तुमने मोहम्मद की आल के साथ कितना बुरा सुलूक रखा है ।

जनाबे हुर्र की बात अभी ख़तम न होने पाई थी की तीरों की बारिश शुरू हो गई आप ज़ख़्मी हो कर इमाम हुसैन अलै० की खिदमत में हाज़िर हुए और अरज की, मौला अब आप मुझसे खुश हो गए इमाम हुसैन अलै० ने दुआ दी और फ़रमाया “ऐ हुर्र ! तू फर्दा-ऐ-क़यामत में आतिशे जहानुम से आज़ाद हो गया।

इसके बाद जनाबे हुर्र फिरर मैदान में तशरीफ़ लाए और निहायत बे- जिगरी से नबर्द आज़मा हुए और आप ने पचास दुश्मनों को तहे तेग कर दिया दौराने जंग में अय्यूब इब्ने मश्र्रा ने एक ऐसा तीर मारा जो जनाबे हुर्र के घोड़े की पीठ में लगा और आपका घोडा बे-काबू हो गया आप पयादा हो कर लड़ने लगे नागाह आप का नेजा टूट गया । और आपने तलवार संभाली अलमदारे लश्कर को आप कतल करना ही चाहते थे की ददुश्मनों ने चारो तरफ से तश्दिद हमला कर दिया । बिल आखिर कसूर लई इब्ने कुनना ने सीना –ऐ –हुर्र पर एक ज़बरदस्त तीर मारा जिसके सदमे से आप ज़मीन पर गिर पड़े और इमाम हुसैन अलै० को आवाज़ दी मौला खबर लिजिय ! इमाम हुसैन अलै० जनाबे हुर्र की आवाज़ पर मैदाने जंग में पहुचे और देखा जान – निसार एड़िया रगड़ रहा है ।आप उसके करीब गए और आपने उनके सर को अपनी आगोश में उठा लिया । जनाबे हुर्र ने आँखे खोल कर चेहरा- ऐ – इमामत पर निगाह की और इमाम हुसैन अलै० को बेबसी के आलम में छोड़ कर जन्नत का रास्ता लिया ।

रियाजे शाहदत में है की आप को सब शोहदा की तद्फीन के मौके पर बनी असद ने इमाम हुसैन अलै० से एक फ़रसख के फासले पर गल्बी जानिब दफ़न किया और वहीँ पर आप का रोज़ा बना हुआ है।

हुज्जतुल-इस्लाम वल-मुस्लेमीन साफ़ी गुलपाएगानी ने कहा: मोहर्रम का महीना इस्लाम और शियावाद के दुश्मनों की साजिशों को नष्ट करने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

हुज्जतुल-इस्लाम वल-मुस्लेमीन मुहम्मद हसन साफ़ी गुलपाएगानी ने मोहर्रम के पवित्र महीने और हज़रत अबा अब्दिल्लाह के अज़ादारी के दिनों के अवसर पर मसदर अल-ज़हरा (स) के प्रचारकों को संबोधित करते हुए कहा: मुोहर्रम का महीना करीब आ रहा है और हम एक बार फिर मोमेनीन मे ग़मे इमाम हुसैन (अ) की तड़प को देख रहे हैं।

उन्होंने कहा: जैसा कि इस्लाम के पैगंबर ने कहा: हम देखते हैं कि हर साल जब मुहर्रम आता है, तो इन अज़ादारियो और मातमियो की महिमा बढ़ जाती है और लोगों में एक बड़ा बदलाव आता है।

हौज़ा इल्मिया के इस शिक्षक ने कहा: मोहर्रम इस्लाम और शियावाद के दुश्मनों की साजिशों को नष्ट करने का महीना है।

 

उन्होंने आगे कहा, इस महीने में युवाओं पर विशेष ध्यान देना चाहिए और उनके प्रशिक्षण पर काम करना चाहिए क्योंकि दुश्मन इन युवाओं का ध्यान भटकाने और उन्हें गुमराह करने के लिए हर हथकंडा अपना रहा है।

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन साफ़ी गुलपाएगानी ने कहा: यह वर्ष छात्रों और प्रचारकों के लिए भी एक उत्कृष्ट अवसर है, जिसका हमें उपयोग करना चाहिए और अपने कार्यक्रमों में हुसैनी स्कूल को बढ़ावा देना चाहिए।

 

 

 

 

 

प्रधानमंत्री मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच हुई मुलाकात की यूक्रेनी राष्ट्रपति वलोडिमीर जेलेंस्की ने तीखे शब्दों में आलोचना की है और दोनों नेताओं की मुलाकात को 'निराशाजनक' करार दिया है।

यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की ने नरेन्द्र मोदी की मॉस्को यात्रा की आलोचना करते हुए मोदी की पुतिन से मुलाकात को "बहुत बड़ी निराशा और शांति प्रयासों के लिए विनाशकारी झटका" बताया है।

प्रधानमंत्री मोदी और रूसी राष्ट्रपति ने ठीक उसी दिन मुलाकात की है, जब रूस ने कीव में बच्चों के अस्पताल पर एयरस्ट्राइक किया था, जिसमें कम से कम 20 लोगों के मारे जाने की रिपोर्ट आई है।

भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को मॉस्को के बाहर एक उप-नगर नोवो-ओगारियोवो में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से उनके आवास पर मुलाकात की है, जबकि उनके मुलाकात से पहले 900 किलोमीटर दूर रूसी मिसाइलों ने सुबह के व्यस्त समय में यूक्रेनी शहरों पर भीषण हमले कर दिए, जिनमें कुल मिलाकर कम से कम 37 लोग मारे गए हैं और 170 अन्य घायल हो गए।

मुहर्रम का महीना सोच-विचार का महीना है, हमें इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के साथ अपने रिश्ते के बारे में सोचना चाहिए। चूँकि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के समय में विभिन्न विचारों के लोग थे, इसलिए यह निर्धारित करना होगा कि हम किस समूह और किस विचारधारा के हैं।

हज्जत-उल-इस्लाम वल-मुस्लिमीन मुहम्मद महदी मीर बाकरी ने मुहर्रम की दूसरी रात हजरत मासूमा क़ुम की दरगाह में सभा को संबोधित करते हुए कहा,  अल्लाह तआला ने पवित्र कुरान में लोगों को अलग-अलग स्थानों में विभाजित किया है: कुरान अल-करीम ने तीन प्रकार के लोगों का उल्लेख किया है, सूरह अल-हमद में, उन्होंने मनुष्यों को तीन प्रकारों में विभाजित किया है, जिन्हें मार्गदर्शन का आशीर्वाद मिला है। हे परमेश्वर, वे जो भटके हुए हैं और मार्ग न पाने के कारण खेदित हैं, नहीं, और जो परमेश्वर से क्रोधित हैं, और परमेश्वर का क्रोध भोगते हैं।

उन्होंने कहा: परंपराओं के अनुसार, पुनरुत्थान के दिन, कुछ लोग स्वर्ग के लोग होंगे, कुछ लोग नर्क के लोग होंगे, और कुछ लोग अस्पष्ट होंगे। हमें इमाम हुसैन (अ) के साथ अपने रिश्ते के बारे में सोचना चाहिए क्योंकि इमाम हुसैन (अ) के समय में अलग-अलग विचारों के लोग थे, इसलिए यह तय करना होगा कि हम किस समूह और किस विचारधारा के हैं, कुछ लोग कर्बला में देर से पहुंचे, और कुछ लोग कर्बला में होते हुए भी भाग निकले कर्बला, और कुछ लोग सैय्यद अल-शाहदा (अ) के उपदेश सुनने के बावजूद इमाम हुसैन (एएस) के खिलाफ लड़ने को तैयार थे।

खतीब हरम हज़रत मासूमा क़ुम ने कहा: यदि हमारे पास उन लोगों के गुण हैं जो हज़रत अबा अब्दुल्लाह अल-हुसैन (अ) के खिलाफ खड़े थे, तो निश्चिंत रहें कि हम अहल-अल-बैत के कारवां को बुलाएंगे कहीं से अलग हो जाएगा, मुहर्रम इस विचार और विचार को संदर्भित करता है ताकि एक व्यक्ति यह जान सके कि वह किस समूह और किस विचारधारा का है, एक व्यक्ति यह जान सकता है कि वह इतिहास के किस बिंदु पर खड़ा है, यदि हम इमाम हुसैन (अ) हैं यदि वे इमाम हुसैन (अ) के युग में थे या किसी अन्य पंक्ति में थे?

उन्होंने कहा: इस कठोर माहौल में भी, इमाम हुसैन (अ) ने बताया कि मुहम्मदन उम्मत को कैसा होना चाहिए।

उन्होंने आगे कहा: कभी-कभी ईश्वर के पैगम्बरों ने जिस मार्ग पर मनुष्य का मार्गदर्शन किया वह ओवन और जलती हुई आग की तरह दिखता था, लेकिन जब मनुष्य उस पर चला, तो उसने देखा कि ईश्वर की दया का मार्ग उस मार्ग पर खुला है।

 

 

 

 

 

झारखंड में हेमंत सोरेन सरकार ने विश्वास मत हासिल कर लिया है। इसके बाद कैबिनेट का विस्तार किया गया। इस बार कैबिनेट में हेमंत सरकार ने तीन नए चेहरों को मौका दिया ।

इसी कड़ी में शपथ लेने से पहले झारखंड के मंत्री हफीजुल हसन ने कुरान की आयत पढ़ी, जिस पर बीजेपी ने विरोध जताया है। असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने भी इसको लेकर निशाना साधा है।

हिमंत बिस्वा सरमा ने सोशल मीडिया पर लिखा,झारखंड राज्य में मंत्री ऐसे शपथ लेते हैं? हम चुप नहीं बैठेंगे। नेता प्रतिपक्ष अमर बाउरी ने माननीय राज्यपाल से अनुरोध किया है कि हफीजुल हसन जी को कार्यभार ग्रहण न करने दें, क्योंकि यह शपथ अमान्य है और संविधान के विरुद्ध है।

हजरत जैनब एक महान खातून थी जिन्होंने मदीने में रहने से ज़्यादा अफजल इमाम के साथ जाने में समझा और इमाम के साथ हमराही की और इस्लाम को बचा कर लाई आज इस्लाम जिंदा है इन्हीं की बदौलत उनकी महानता को कोई भूला नहीं सकता।

हज़रत ज़ैनब एक अज़ीम ख़ातून हैं। इस अज़ीम ख़ातून को मुस्लिम क़ौमों में जो अज़मत हासिल है वह किस वजह से है? यह नहीं कहा जा सकता कि इसलिए है कि आप हज़रत अली की बेटी या इमाम हुसैन या इमाम हसन अलैहिमुस्सलाम की बहन हैं रिश्ते ऐसी अज़मत का सबब नहीं बन सकते।

हमारे सभी इमामों की माएं और बहनें थी, लेकिन हज़रत ज़ैनब के जैसा कौन है?हज़रत ज़ैनबे कुबरा की अहमियत व अज़मत, अल्लाह के फ़रीज़े के मुताबिक़ आपकी अज़ीम इस्लामी व इंसानी तहरीक की वजह से है।

इस अज़मत का एक हिस्सा यह है कि आपने पहले हालात को पहचाना इमाम हुसैन अलैहिस्सालम के कर्बला जाने से पहले के हालात को भी, आशूर के दिन संकटमय हालात को भी और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शहादत के बाद के हौलनाक हालात को भी पहचाना और फिर हर मौक़े के लिए मुनासिब क़दम को चुना।

इसी तरह के फ़ैसलों से हज़रत ज़ैनब की शख़्सियत बनी कर्बला रवाना होने से पहले इब्ने अब्बास और इब्ने जाफ़र जैसी इस्लाम के आग़ाज़ की मशहूर हस्तियां जो फ़िक़्ह की महारत, बहादुरी और नेतृत्व की दावेदार थी फ़ैसला न कर पाने की हालत का शिकार थीं, यह न समझ सकीं कि उन्हें क्या करना चाहिए।

लेकिन हज़रत ज़ैनब तज़बज़ुब का शिकार नहीं हुयीं और आप समझ गयीं कि आपको उस रास्ते को चुनना चाहिए और अपने इमाम को अकेला नहीं छोड़ना चाहिए और आप गयीं। ऐसा नहीं था कि आप न समझती हों कि यह रास्ता बहुत सख़्त है।

आप दूसरों से बेहतर इस बात को महसूस कर रही थीं आप एक औरत थीं आप एक ऐसी ख़ातून थीं जो अपने फ़रीज़े को अंजाम देने के लिए अपने शौहर और घरवालों से दूर हो रही थीं। इसी बिना पर अपने छोटे बच्चों के अपने साथ लिया आप अच्छी तरह महसूस कर रही थीं कि कितनी बड़ी घटना सामने है।

 

 

 

आयतुल्लाहिल उज़मा जवादी आमोली ने आज़ादाराने हुसैनी विशेष कर युवाओ को नसीहत करते हुए कहा कोई अज़ादारी के दस्तूर में बे वुज़ू दाखिल ना हो।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,मरजय तकलीद हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा जवादी आमोली ने आज़ादाराने हुसैनी को खिताब करते हुए कहा,कोई अज़ादारी के दस्तूर में बे वुज़ू दाखिल ना हो।

वुज़ू करते हुए नियत करें खुदाया! मैं वुज़ू करता हूं ताकि पाक और पाक़ीज़ा होकर अज़ादारी ए इमामे हुसैन अलैहिस्सलाम ने दाखिल हो सकूं।

इस मरजय तकलीद ने खोतबा और मुब्लागीन को नसीहत करते हुए कहा,मजालिस हुसैनी अ.स.में मआरिफ के बारे में और जो इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के हदफ है उसको बयान किया जाए।

हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा जवादी आमोली

ने कहां यह भी सलाह दी उन्हें मुहर्रम के दिनों में रात में अपने बच्चों, पोते-पोतियों और परपोते-पोतियों को कर्बला की कहानी सुनानी चाहिए ताकि वे अपना सारा समय बेकार फिल्में देखने में न बर्बाद करें, उनको इस्लाम और कर्बला के वाक्य सुनना चाहिए।

ईरानी नौसेना का एक वॉरशिप उस समय डूब गया जब उसकी होर्मुज जलडमरूमध्य के निकट एक बंदरगाह पर मरम्मत की जा रही थी। ईरान के सरकारी मीडिया ने यह जानकारी दी। समाचार एजेंसी इरना (IRNA) की रिपोर्ट में कहा गया है कि मरम्मत के दौरान 'सहंद' वॉरशिप का संतुलन इसके कई टैंक में पानी घुसने के कारण बिगड़ गया।

एजेंसी ने कहा कि पानी की गहराई कम होने के कारण विध्वंसक को दोबारा संतुलित स्थिति में लाना संभव है। एजेंसी ने बताया कि घायल लोगों को अस्पताल ले जाया गया, लेकिन इससे अधिक जानकारी नहीं दी गई। सहंद वॉरशिप का नाम उत्तरी ईरान के एक पहाड़ के नाम पर रखा गया है। इस वॉरशिप को बनाने में छह साल लगे और दिसंबर 2018 में फारस की खाड़ी में इसे समंदर में उतारा गया था।

1,300 टन वजनी सहंत वॉरशिप सतह से सतह और सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलों, विमान भेदी बैटरियों और परिष्कृत रडार और रडार से बचने की क्षमताओं से लैस था। इसके पहले जनवरी 2018 में एक नौसैनिक विध्वंसक 'दमावंद' दुर्घटनाग्रस्त होने के बाद कैस्पियन सागर में डूब गया था।

लखनऊ की तारीखी शाह नजफ़ इमामबाड़े, हज़रतगंज में रात 9 बजे अशरे का इनकाद किया गया है जिसको मौलाना अली अब्बास खान साहब ख़िताब मौलाना ने फरमाया,इंसान निजाम ए इलाही को पहचाने और अपनी ज़िम्मेदारी को पहचाने इलाही नुमाइन्दे इंसान की रूहानी तरक्की के लिए आए थे, दुनियावी तरक्की इंसान खुद कर सकता है लेकिन एक अच्छा इंसान नहीं बन सकता।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,लखनऊ, 8 जुलाई 2024 | लखनऊ की तारीखी शाह नजफ़ इमामबाड़े, हज़रतगंज में रात 9 बजे अशरे का अनेकाद किया गया है जिसको मौलाना अली अब्बास खान साहब ख़िताब कर रहे हैं, ये अशरा पिछले 8 सालों से मौलाना ख़िताब कर रहे हैं।

अशरे की पहली मजलिस को क़ारी रजा हुसैन साहब ने तिलावत ए कुरान से आगाज़ किया और फिर मोहम्मद हुसैन साहब ने अशआर पेश किए और फिर सैयद अली शुजा साहब ने पुर दर्द मर्सिया पेश किया और मौलाना अली अब्बास खान साहब ने मजलिस को खि़ताब करते हुए फरमाया के इंसान निजाम ए इलाही को पहचाने और अपनी ज़िम्मेदारी को पहचाने।

इलाही नुमाइन्दे इंसान की रूहानी तरक्की के लिए आए थे, दुनियावी तरक्की इंसान खुद कर सकता है लेकिन एक अच्छा इंसान नहीं बन सकता, इंसान अभी तक इलाही नुमाइन्दे की सारी बातें नहीं समझ पाया आज तक अगर उसकी अक्ल समझ में आ जाएगी तो वो दुनिया के साथ साथ मानवी तरक्की करेगा। आखिर में अज़ादार इमाम हुसैन को याद करके अश्कबार हो गए।

शहीद रईसी की विदेश नीति, आत्मसम्मान के साथ दुनिया के साथ सहयोग पर आधारित थी

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने रविवार 7 जुलाई 2024 की सुबह कार्यवाहक राष्ट्रपति मुख़बिर और तेरहवें मंत्रीमंडल के सदस्यों से मुलाक़ात की।

उन्होंने इस मुलाक़ात में, जो तेरहवें मंत्रीमंडल के सदस्यों से आख़िरी मुलाक़ात थी, तेरहवीं सरकार को "काम, उम्मीद और ऐश्कन" की सरकार बताया और कहा कि शहीद रईसी हक़ीक़त में हक़ और भविष्य के बारे में आशावान थे और निर्धारित लक्ष्य को हासिल करने के लिए ठोस इरादा रखते थे।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने शहीद रईसी की ख़ुसूसियतों को बयान करते हुए उनके अवाम से जुड़े होने को उनकी बहुत अहम ख़ुसूसियत और सभी अधिकारियों के लिए इसे आदर्श बताया और कहा कि अज़ीज़ रईसी अवाम के बीच पहुंच कर हक़ीक़त और ज़रूरतों को क़रीब से महसूस करते थे और उन्होंने अवाम की मुश्किल को दूर करने और उनकी ज़रूरतों को पूरा करने को अपने प्रोग्रामों और योजनाओं का केन्द्र बिंदु क़रार दिया था।

उन्होंने अवाम से जुड़े होने की ख़ुसूसियत को अधिकारियों और ज़िम्मेदारों से इस्लाम का मुतालेबा बताया और जनाब मालिके अश्तर के नाम अमीरुल मोमेनीन अलैहिस्सलाम के ख़त का हवाला देते हुए कहा कि अमीरुल मोमेनीन मालिके अश्तर से बल देकर कहते हैं कि तुम्हारी नज़र में सबसे पसंदीदा काम वह होना चाहिए जो अवाम की मर्ज़ी और ख़ुशी हासिल करे। शहीद रईसी अमीरुल मोमेनीन की इस शैली को अपनाए हुए थे और इसे भी सभी के लिए आदर्श होना चाहिए।

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने मुल्क की सलाहियतों पर गहरे विश्वास को शहीद रईसी की एक और नुमायां ख़ुसूसियत बताया और कहा कि रईसी दिल की गहराइयों से मुल्क के मसलों के हल के लिए मुल्क की सलाहियतों व क्षमताओं को इस्तेमाल करने पर यक़ीन रखते थे।

उन्होंने धार्मिक व क्रांतिकारी नज़रिए के खुलकर एलान, द्विअर्थी बातों और दूसरों की ख़ुशामद से परहेज़ को शहीद राष्ट्रपति की एक और ख़ुसूसियत बताया और कहा कि रईसी जो बात साफ़ तौर पर कहते थे, व्यवहारिक तौर पर उसकी पाबंदी भी करते थे, मिसाल के तौर पर राष्ट्रपति बनने के बाद जब उनके पहले इंटरव्यू में उनसे सवाल किया गया कि क्या आप फ़ुलां मुल्क से संबंध क़ायम करेंगे तो उन्होंने जवाब दिया थाः "नहीं" और वह आख़िर तक उसी दो टूक व स्पष्ट स्टैंड पर डटे रहे।

 

 इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने काम से न थकने को शहीद रईसी की एक और ख़ुसूसियत बताते हुए कहा कि मैं बिना रुकावट के काम जारी रखने के लिए उनसे बारंबार कहता था कि वो थोड़ा आराम कर लें तो वो कहते थे कि मुझे काम से थकन नहीं होती और वो सचमुच थकते नहीं थे।

उन्होंने आगे कहा कि राष्ट्रपति रईसी में एक और नुमायां ख़ुसूसियत थी और वह यह कि वो विदेश नीति में दो ख़ुसूसियतों की एक साथ पाबंदी करते थे, एक सहयोग और दूसरे आत्मसम्मान की रक्षा। वह सहयोग करने वाले थे लेकिन आत्म सम्मान की रक्षा के साथ, वो न तो इतनी सख़्त बहस करते थे कि संपर्क टूट जाए और न ही फ़ुज़ूल में अपने आप को कमतर ज़ाहिर करते और रिआयत देते थे।

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने इस सिलसिले में याद दिलाया कि इज़्ज़त व आत्मसम्मान के साथ दूसरे मुल्कों ख़ास तौर पर पड़ोसी मुल्कों के साथ हमारे शहीद राष्ट्रपति का सहयोग इस बात का सबब बना की उनकी शहादत के बाद दुनिया के कई बड़े राष्ट्राध्यक्षों ने अपने सांत्वना संदेशों में उन्हें एक मामूली राजनेता नहीं बल्कि एक नुमायां हस्ती के तौर पर याद किया।

उन्होंने शहीद रईसी में अध्यात्म, अल्लाह की याद, उससे दुआ और अहलेबैत को अल्लाह से दुआ में ज़रिया क़रार देने को उनकी एक और नुमायां ख़ुसूसियत बताया।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने कहा कि ये ख़ुसूसियतें एक आइडियल की व्याख़्या और इतिहास में उसे दर्ज करने के लिए बयान हुयीं ताकि यह पता चल सके कि एक राष्ट्रपति अनेक वैचारिक, व्यवहारिक व हार्दिक महानताओं का स्वामी हो सकता है और अपने सरकारी व व्यक्तिगत कामों के दौरान भी उनकी पाबंदी कर सकता है।

उन्होंने अपने ख़ेताब के आख़िर में एक बार फिर एक अच्छे और बिना कड़वाहट के चुनाव के आयोजन के लिए अवाम, अधिकारियों, गृह मंत्रालय, राष्ट्रीय मीडिया, पुलिस फ़ोर्स और क़ानून लागू करने वाले विभागों की कोशिशों का शुक्रिया अदा किया और कहा कि दुनिया के कुछ मुल्कों में इलेक्शन मारपीट और एक दूसरे का गरेबान पकड़े बिना नहीं होता जबकि हमारे मुल्क में चुनाव बेहतरीन तरीक़े से आयोजित हुआ।