
رضوی
मुसलमान मांस क्यों खाते हैं?
शाकाहार ने अब संसार भर में एक आन्दोलन का रूप ले लिया है। बहुत से लोग तो इसको जानवरों के अधिकार से जोड़ते हैं। निस्संदेह लोगों की एक बड़ी संख्या मांसाहारी है और अन्य लोग मांस खाने को जानवरों के अधिकारों का हनन मानते हैं। इस्लाम प्रत्येक जीव एवं प्राणी के प्रति स्नेह और दया का निर्देश देता है। साथ ही इस्लाम इस बात पर भी ज़ोर देता है कि अल्लाह ने पृथ्वी, पेड़-पौधे और छोटे-बड़े हर प्रकार के जीव-जन्तुओं को इंसान के लाभ के लिए पैदा किया है। अब यह इंसान पर निर्भर करता है कि वह ईश्वर की दी हुई नेमत और अमानत के रूप में मौजूद प्रत्येक स्रोत को किस प्रकार उचित रूप से इस्तेमाल करता है।
आइए इस तथ्य के अन्य पहलुओं पर विचार करते हैं-
- एक मुसलमान पूर्ण शाकाहारी हो सकता है एक मुसलमान पूर्ण शाकाहारी होने के बावजूद एक अच्छा मुसलमान हो सकता है। मांसाहारी होना एक मुसलमान के लिए ज़रूरी नहीं है।
- पवित्र कुरआन मुसलमानों को मांसाहार की अनुमति देता है पवित्र कुरआन मुसलमानों को मांसाहार की इजाज़त देता है। निम्र कुरआनी आयतें इस बात की सुबूत हैं- ''ऐ ईमान वालो! प्रत्येक कर्तव्य का निर्वाह करो। तुम्हारे लिए चौपाए जानवर जायज़ हैं केवल उनको छोड़कर जिनका उल्लेख किया गया है।'' (कुरआन, ५:१) ''रहे पशु, उन्हें भी उसी ने पैदा किया, जिसमें तुम्हारे लिए गर्मी का सामान (वस्त्र) भी है और हैं अन्य कितने ही लाभ। उनमें से कुछ को तुम खाते भी हो।'' (कुरआन, १६:५) ''और मवेशियों में भी तुम्हारे लिए ज्ञानवर्धक उदाहरण हैं। उनके शरीर के भीतर हम तुम्हारे पीने के लिए दूध पैदा करते हैं, और इसके अतिरिक्त उनमें तुम्हारे लिए अनेक लाभ हैं, और जिनका मांस तुम प्रयोग करते हो।'' (कुरआन, २३:२१)
- मांस पौष्टिक आहार है और प्रोटीन से भरपूर है मांस उत्तम प्रोटीन का अच्छा स्रोत है। इसमें आठों आवश्यक अमीनो एसिड पाए जाते हैं जो शरीर के भीतर नहीं बनते और जिसकी पूर्ति आहार द्वारा की जानी ज़रूरी है। मांस में लोह, विटामिन बी-१ और नियासिन भी पाए जाते हैं।
- इंसान के दाँतों में दो प्रकार की क्षमता है यदि आप घास-फूस खाने वाले जानवरों जैसे भेड़, बकरी अथवा गाय के दाँत देखें तो आप उन सभी में समानता पाएँगे। इन सभी जानवरों के चपटे दाँत होते हैं अर्थात जो घास-फूस खाने के लिए उचित हैं। यदि आप मांसाहारी जानवरों जैसे शेर, चीता अथवा बाघ इत्यादि के दाँत देखें तो आप उनमें नुकीले दाँत भी पाएँगे जो कि मांस को खाने में मदद करते हैं। यदि मनुष्य के दाँतों का अध्ययन किया जाए तो आप पाएँगे उनके दाँत नुकीले और चपटे दोनों प्रकार के हैं। इस प्रकार वे वनस्पति और मांस खाने में सक्षम होते हैं। यहाँ प्रश्न उठता है कि यदि सर्वशक्तिमान परमेश्वर मनुष्य को केवल सब्जि़याँ ही खिलाना चाहता तो उसे नुकीले दाँत क्यों देता? यह इस बात का प्रमाण है कि उसने हमें मांस एवं सब्जि़याँ दोनों को खाने की इजाज़त दी है।
- इंसान मांस अथवा सब्जि़याँ दोनों पचा सकता है शाकाहारी जानवरों के पाचनतंत्र केवल सब्जि़याँ ही पचा सकते हैं और मांसाहारी जानवरों का पाचनतंत्र केवल मांस पचाने में सक्षम है, परंतु इंसान का पाचनतंत्र सब्जि़याँ और मांस दोनों पचा सकता है। यदि सर्वशक्तिमान ईश्वर हमें केवल सब्जि़याँ ही खिलाना चाहता है तो वह हमें ऐसा पाचनतंत्र क्यों देता जो मांस एवं सब्ज़ी दोनों को पचा सके।
- हिन्दू धार्मिक ग्रंथ मांसाहार की अनुमति देते हैं बहुत से हिन्दू शुद्ध शाकाहारी हैं। उनका विचार है कि मांस-सेवन धर्म विरूद्ध है। परंतु सत्य यह है कि हिन्दू धर्म ग्रंथ इंसान को मांस खान की इजाज़त देते हैं। ग्रंथों में उन साधुओं और संतों का वर्णन है जो मांस खाते थे। (क) हिन्दू कानून पुस्तक मनुस्मृति के अध्याय 5 सूत्र 30 में वर्णन है कि - ''वे जो उनका मांस खाते हैं जो खाने योग्य हैं, कोई अपराध नहीं करते है, यद्यपि वे ऐसा प्रतिदिन करते हों क्योंकि स्वयं ईश्वर ने कुछ को खाने और कुछ को खाए जाने के लिए पैदा किया है।'' (ख) मनुस्मृति में आगे अध्याय 5 सूत्र 31 में आता है - ''मांस खाना बलिदान के लिए उचित है, इसे दैवी प्रथा के अनुसार देवताओं का नियम कहा जाता है।'' (ग) आगे अध्याय 5 सूत्र 39 और 40 में कहा गया है कि - ''स्वयं ईश्वर ने बलि के जानवरों को बलि के लिए पैदा किया, अत: बलि के उद्देश्य से की गई हत्या, हत्या नहीं।'' महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 88 में धर्मराज युधिष्ठिर और पितामह भीष्म के मध्य वार्तालाप का उल्लेख किया गया है कि कौनसे भोजन पूर्वजों को शांति पहुँचाने हेतु उनके श्राद्ध के समय दान करने चाहिए। प्रसंग इस प्रकार है- ''युधिष्ठिर ने कहा, ''हे महाबली ! मुझे बताइए कि कौन-सी वस्तु जिसको यदि मृत पूर्वजों को भेंट की जाए तो उनको शांति मिलेगी ? कौन-सा हव्य सदैव रहेगा? और वह क्या है जिसको यदि पेश किया जाए तो अनंत हो जाए? भीष्म ने कहा, ''बात सुनो, ऐ युधिष्ठिर कि वे कौन-सी हवि हैं जो श्राद्ध रीति के मध्य भेंट करना उचित हैं। और वे कौन से फल हैं जो प्रत्येक से जुड़ें है? और श्राद्ध के समय शीशम बीज, चावल, बाजरा, माश, पानी, जड़ और फल भेंट किया जाए तो पूर्वजों को एक माह तक शांति रहती है। यदि मछली भेंट की जाएँ तो यह उन्हें दो माह तक राहत देती है। भेड़ का मांस तीन माह तक उन्हें शांति देता है। $खरगोश का मांस चार माह तक, बकरी का मांस पाँच माह और सूअर का मांस छह माह तक, पक्षियों का मांस सात माह तक, 'प्रिष्टा’’ नाम के हिरन के मांस से वे आठ माह तक और ''रूरूहिरन के मांस से वे नौ माह तक शांति में रहते हैं। त्रड्ड1ड्ड4ड्डं के मांस से दस माह तक, भैंस के मांस से ग्यारह माह और गौ मांस से पूरे एक वर्ष तक। पायस यदि घी में मिलाकर दान किया जाए तो यह पूर्वजों के लिए गौ मांस की तरह होता है। बधरीनासा (एक बड़ा बैल) के मांस से बारह वर्ष तक और गैंडे का मांस यदि चंद्रमा के अनुसार उनको मृत्यु वर्ष पर भेंट किया जाए तो यह उन्हें सदैव सुख-शांति में रखता है। क्लास्का नाम की जड़ी-बूटी, कंचना पुष्प की पत्तियाँ और लाल बकरी का मांस भेंट किया जाए तो वह भी अनंत सुखदायी होता है। अत: यह स्वाभाविक है कि यदि तुम अपने पूर्वजों को अनंत सुख-शांति देना चाहते हो तों तुम्हें लाल बकरी का मांस भेंट करना चाहिए।
- हिन्दू मत अन्य धर्मों से प्रभावित यद्यपि हिन्दू ग्रंथ अपने मानने वालों को मांसाहार की अनुमति देते हैं, फिर भी बहुत से हिन्दुओं ने शाकाहारी व्यवस्था अपना ली, क्योकि वे जैन जैसे धर्मों से प्रभावित हो गए थे।
- पेड़-पौधों में भी जीवन कुछ धर्मों ने शुद्ध शाकाहार को अपना लिया क्योंकि वे पूर्ण रूप से जीव-हत्या के विरूद्ध हैं। अतीत में लोगों का विचार था कि पौधों में जीवन नहीं होता। आज यह विश्वव्यापी सत्य है कि पौधों में भी जीवन होता है। अत: जीव-हत्या के संबंध में उनका तर्क शुद्ध शाकाहारी होकर भी पूरा नहीं होता।
- पौधों को भी पीड़ा होती है वे आगे तर्क देते हैं कि पौधे पीड़ा महसूस नहीं करते, अत: पौधों को मारना जानवरों को मारने की अपेक्षा कम अपराध है। आज विज्ञान कहता है कि पौधे भी पीड़ा अनुभव करते हैं परंतु उनकी चीख मनुष्य के द्वारा नहीं सुनी जा सकती है। इसका कारण यह है कि मनुष्य में आवाज सुनने की अक्षमता जो श्रुत सीमा में नहीं आते अर्थात 20 हर्टज से 20,000 हर्टज तक इस सीमा के नीचे या ऊपर पडऩे वाली किसी भी वस्तु की आवाज मनुष्य नहीं सुन सकता है। एक कुत्ते में 40,000 हर्टज तक सुनने की क्षमता है। इसी प्रकार खामोश कुत्ते की ध्वनि की लहर संख्या 20,000 से अधिक और 40,000 हर्टज से कम होती है। इन ध्वनियों को केवल कुत्ते ही सुन सकते हैं, मनुष्य नहीं। एक कुत्ता अपने मालिक की सीटी पहचानता है और उसके पास पहुँच जाता है। अमेरिका के एक किसान ने एक मशीन का आविष्कार किया जो पौधे की चीख को ïऊँची आवाज़ में परिवर्तित करती है जिसे मनुष्य सुन सकता है। जब कभी पौधे पानी के लिए चिल्लाते तो उस किसान को इसका तुरंत ज्ञान हो जाता। वर्तमान के अध्ययन इस तथ्य को उजागर करते हैं कि पौधे भी पीड़ा, दुख और सुख का अनुभव करते हैं और वे चिल्लाते भी हैं।
- दो इंद्रियों से वंचित प्राणी की हत्या कम अपराध नहीं एक बार एक शाकाहारी ने अपने पक्ष में तर्क दिया कि पौधों में दो अथवा तीन इंद्रियाँ होती हैं जबकि जानवरों में पांच होती हैं। अत: पौधों की हत्या जानवरों की हत्या के मु$काबले में छोटा अपराध है। कल्पना करें कि अगर किसी का भाई पैदाइशी गूंगा और बहरा है और दूसरे मनुष्य के मुकाबले उसके दो इंद्रियाँ कम हैं। वह जवान होता है और कोई उसकी हत्या कर देता है तो क्या आप न्यायाधीश से कहेंगे कि वह दोषी को कम दंड दे क्योंकि उसके भाई की दो इंद्रियाँ कम हैं। वास्तव में उसको यह कहना चाहिए कि उस अपराधी ने एक निर्दोष की हत्या की है और न्यायाधीश को उसे कड़ी से कड़ी सज़ा देनी चाहिए। पवित्र कुरआन में कहा गया है- ''ऐ लोगो ! खाओ जो पृथ्वी पर है परंतु पवित्र और जायज़।'' (कुरआन, 2:168)
शहीद सद्र, जिसका ज़हन और विचार हमेशा दूसरों से कई कदम आगे
शहीद सद्र अभी युवावस्था में भी नहीं पहुंचे थे कि उन्हें इज्तिहाद के उच्च पद पर आसीन कर दिया गया। उनके कुछ शिक्षकों ने उन्हें इज्तिहाद का इजाज़ा दिया, जबकि उनकी उम्र चौदह वर्ष भी नहीं थी!
पिछले दशकों के हौज़ा में प्रमुख हस्तियों में से एक, स्वर्गीय आयतुल्लाह शहीद सय्यद मुहम्मद बाकिर सद्र (र) असाधारण बुद्धि, समझ, रचनात्मकता और गहन ज्ञान के विद्वान थे।
वह निस्संदेह एक प्रतिभाशाली व्यक्ति थे जो न केवल अकादमिक जगत में अपनी अलग पहचान रखते थे बल्कि उनमें अपने समय से आगे सोचने और समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करने की क्षमता भी थी।
9 शव्वाल; यह सद्दाम हुसैन की बअस पार्टी द्वारा किये गए सबसे बड़े अपराधों और अत्याचारों में से एक दुखद शहीद सद्र की शहादत की बरसी है।
शहीद सद्र की युवावस्था भी नहीं हुई थी जब उन्हें इज्तिहाद के उच्च पद पर आसीन कर दिया गया। उनके कुछ शिक्षकों ने उन्हें इज्तिहाद करने की अनुमति दी थी, जबकि उनकी उम्र चौदह वर्ष भी नहीं थी!
सद्र परिवार के लिए यह कोई असामान्य बात नहीं है, क्योंकि इस पाक नसल के सभी सदस्य, उनके परदादा हजरत इमाम मूसा इब्न जाफर (र) तक, ज्ञान और न्यायशास्त्र के चमकते प्रकाश स्तंभ और सितारे रहे हैं।
इस्लामी क्रांति के नेता आयतुल्लाह सय्यद अली ख़ामेनेई, जो स्वयं इस्लामी दुनिया के महान विचारकों में से एक माने जाते हैं, शहीद सद्र के बारे में कहते हैं:
"स्वर्गीय आगा सद्र सही मायनों में एक प्रतिभाशाली व्यक्ति थे। न्यायशास्त्र, सिद्धांतों और इस्लामी विचार के क्षेत्र में हमारे पास कई विशेषज्ञ हैं, लेकिन प्रतिभाशाली, यानी असाधारण बुद्धि और अत्यंत अंतर्दृष्टि वाले लोग बहुत दुर्लभ हैं। शहीद सद्र उन दुर्लभ व्यक्तियों में से एक थे, जिनका दिमाग और सोच हमेशा दूसरों से कई कदम आगे रहती थी।"
उनकी असाधारण प्रतिभा, सर्वांगीण अध्ययन और सतत प्रयास ने उन्हें एक ऐसा विद्वान बनाया, जिसने स्वयं को धर्मशास्त्र तक ही सीमित नहीं रखा, बल्कि समकालीन विश्व की जटिल समस्याओं को अपने अकादमिक क्षेत्र में लाया, उन पर शोध किया, नए विचार प्रस्तुत किए और अमिट छाप छोड़ी।
यमन के विभिन्न क्षेत्रों में अमेरिकी हमले
बुधवार की सुबह सवेरे यमनी सूत्रों ने जानकारी दी है कि अमेरिका की आतंकवादी सेना ने यमन की राजधानी सना और इब प्रांत के कई इलाकों पर हमला किया है।
बुधवार की सुबह-सवेरे यमनी सूत्रों ने जानकारी दी है कि अमेरिका की आतंकवादी सेना ने यमन की राजधानी सना और इब प्रांत के कई इलाकों पर हमला किया है।
यमनी न्यूज़ चैनल 'अलमसीरा' के मुताबिक, अमेरिकी युद्धक विमानों ने इब प्रांत के बादान जिले में 'जबल अलशमाही' नामक क्षेत्र को निशाना बनाया, जहां संचार नेटवर्क पर चार बार हमले किए गए।
कुछ देर बाद अलमसीरा के रिपोर्टर ने बताया कि सना भी अमेरिकी हमलों का शिकार बना जहां कम से कम 10 जोरदार धमाकों की आवाज सुनी गई।
गौरतलब है कि 15 मार्च से अमेरिकी सरकार, राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के आदेश पर ज़ायोनी (इस्राइली) शासन से जुड़े जहाजों की सुरक्षा के नाम पर यमन पर हवाई हमले तेज कर चुकी है।
यमनी अधिकारियों का कहना है कि अमेरिका की ओर से सैन्य ठिकानों को निशाना बनाने का दावा एक बहाना मात्र है, असल में उनके हमले रिहायशी इलाकों और गैर-सैनिक स्थानों पर हो रहे हैं, जिसमें आम नागरिकों की जानें जा रही हैं।
दुश्मन की समस्या परमाणु बम या हथियार नहीं है, बल्कि ईरान की तरक्की और प्रगति है
मदरसा ए इल्मिया हज़रत नरजिस स.अ. सारी की तालीमी उमूर की सरपरस्त ने कहा, वहाबियत, अहले सुन्नत का एक भटका हुआ फिरक़ा है जो तवस्सुल और शफ़ाअत को शिर्क समझता है।
मदरसा ए इल्मिया हज़रत नरजिस स.ल. सारी के शैक्षणिक कार्यों की सरपरस्त माननीया सकीना रिज़ाई ने 'तख़रीब-ए-क़बूर-ए-अइम्मा-ए-मज़लूम-ए-बक़ीअ.के अवसर पर बीते दिन छात्राओं की एक सभा को संबोधित करते हुए वहाबियत की अकीदती गुमराहियों की ओर इशारा किया और इस दुखद घटना के ऐतिहासिक, अकीदती और सियासी पहलुओं पर रौशनी डाली।
उन्होंने कहा वहाबियत अहले सुन्नत का एक भटका हुआ फिरका है, जो केवल दो ही काम नहीं कर सका एक, क़ुरआन को मिटाना और दूसरा, काबा को गिराना। लेकिन इसने बक़ीअ के इमामों की क़ब्रों पर हमला करके शिया अकीदे को निशाना बनाने की कोशिश की।
यह गिरोह तवस्सुल (सिफ़ारिश) और शफ़ाअत (सिफ़ारिश व मदद) को शिर्क (अल्लाह के साथ किसी और को जोड़ना) समझता है, जबकि शिया अकीदे के अनुसार इमामों की क़ब्रों की ज़ियारत और उनसे तवस्सुल का मक़सद यही है कि उन्हें अल्लाह के दरबार में अपना सिफ़ारिशी बनाएं क्योंकि वे अल्लाह के नेक और मक़र्रब (क़रीबी) बंदे हैं।
माननीया सकीना रिज़ाई ने क़ब्रों की ज़ियारत से जुड़े कुछ सतही और नासमझी वाले व्यवहारों की आलोचना करते हुए कहा — कभी-कभी कुछ लोगों की ग़फ़लत या नासमझी इस्लाम के दुश्मनों को मौका दे देती है, जबकि इस्लाम एक मुकम्मल (सम्पूर्ण) दीन है जो इंसानी जिंदगी के व्यक्तिगत, सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक और इल्मी (शैक्षणिक) हर पहलू को शामिल करता है।
उन्होंने ईरान के शांतिपूर्ण परमाणु कार्यक्रम की चर्चा करते हुए कहा दुश्मनों की समस्या परमाणु बम या हथियार नहीं है, बल्कि ईरान की तरक्की है क्योंकि वे जानते हैं कि इल्म (ज्ञान) और खुदमुख्तारी (आत्मनिर्भरता) हमें ताकतवर बनाती है।
ग़ज़्जा में भुखमरी को हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कहां, ग़ाज़ा में तत्काल युद्ध विराम होना चाहिए इसराइल इस वक्त गाजा में भुखमरी को हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहा है।
संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने कहाः पिछले दो दिनों में व्यापक इज़रायली बमबारी और ज़मीनी हमलों के कारण, व्यापक स्तर पर विनाश हुआ है और रफ़ह से 1 लाख से अधिक फ़िलिस्तीनियों को विस्थापित होना पड़ा है, जिनमें से अधिकांश इससे पहले भी कई बार और बहुत कम साधनों के साथ विस्थापित हो चुके हैं।
गुटेरेस ने 23 मार्च को चिकित्सा और आपातकालीन काफ़िले पर इज़रायली सेना के हमले की आलोचना की, जिसके परिणामस्वरूप ग़ज़ा में 15 चिकित्सा और सहायता कर्मचारियों की मौत हो गई, उन्होंने कहाः अक्तूबर 2023 से, ग़ज़ा में कम से कम 408 सहायता कर्मचारी मारे गए हैं, जिनमें से 280 संयुक्त राष्ट्र के कर्मचारी थे।
दूसरी ओर, ईरानी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता इस्माइल बक़ाई ने गुरुवार को भोजन के अधिकार पर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के प्रतिवेदक की हालिया रिपोर्ट का उल्लेख करते हुए, जिसमें ज़ायोनी शासन पर नरसंहार के साधन के रूप में भूख और अकाल थोपने की अपनी नीति को रोकने के लिए दबाव डालने का आह्वान किया गया है
ग़ज़ा में मानवाधिकारों के घोर और व्यवस्थित उल्लंघन के संबंध में ब्रिटेन, कनाडा, जर्मनी और फ्रांस सहित मानवाधिकारों के समर्थन का दावा करने वाले कुछ पश्चिमी देशों की निष्क्रियता पर खेद व्यक्त किया और इसे मानवाधिकारों और क़ानून के शासन के संबंध में इन देशों की ईमानदारी की कमी का स्पष्ट संकेत माना।
इज़रायल के जघन्य अपराधों को रोकने और उनका सामना करने के लिए सभी सरकारों की साझा ज़िम्मेदारी पर बल देते हुए, बक़ाई ने दुनिया के सभी देशों, विशेष रूप से इस्लामी देशों से उत्पीड़ित फ़िलिस्तीनियों के साथ मौखिक और व्यावहारिक एकजुटता दिखाने और असहाय फ़िलिस्तीनी महिलाओं और बच्चों की निरंतर हत्याओं को रोकने का आह्वान किया।
फ़िलिस्तीन शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र राहत एवं कार्य एजेंसी (यूएनआरडब्ल्यूए) के प्रमुख फ़िलिप लाज़ारिनी ने पिछले शुक्रवार को एक बयान में कहा कि तीन सप्ताह से ग़ज़ा में कोई मानवीय सहायता नहीं पहुंची है। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि मानवता अब अपने सबसे अंधकारमय दौर से गुज़र रही है।
इज़रायली शासन ने 7 अक्टूबर, 2023 को ग़ज़ा पट्टी के विरुद्ध विनाशकारी युद्ध छेड़ दिया था, जिसमें 50,000 से अधिक लोग शहीद हो चुके हैं और हज़ारों लोग घायल हैं।
इजरायल ने ग़ज़्ज़ा यूनिवर्सिटी नष्ट करके भविष्य के कई सुकरात और इबने सीना को खत्म कर दिया
इजराइल ने ग़ज़्ज़ा के इस्लामिक यूनिवर्सिटी के मुख्य सभागार को नष्ट कर दिया है तथा उसे राख में बदल दिया है। इसकी काली दीवारों में बड़ी दरारें हैं। सीटों की पंक्तियाँ टेढ़ी-मेढ़ी और मुड़ी हुई हैं। इस यूनिवर्सिटी के नष्ट होने से भविष्य के कई सुक़रात और इबने सीना को खत्म कर दिया गया।
इजरायल ने ग़ज़्ज़ा के इस्लामिक यूनिवर्सिटी के मुख्य सभागार को नष्ट कर दिया है, जिससे कई भावी सुकरात और एविसेना नष्ट हो गए हैं। इसकी काली दीवारों में बड़ी दरारें हैं। सीटों की पंक्तियाँ टेढ़ी-मेढ़ी और मुड़ी हुई हैं। अब वह मंच, जहां कभी हर्षोल्लासपूर्ण स्नातक समारोह हुआ करता था, विस्थापित फिलिस्तीनियों के तंबुओं से भर गया है। जब मार्च में इजरायल ने पुनः शत्रुता शुरू की, तो यह शिविर उत्तरी गाजा के सैकड़ों परिवारों के लिए शरणस्थल बन गया। इनमें से एक परिवार, छह बच्चों की मां, मनाल जैन ने एक फाइलिंग कैबिनेट को अस्थायी चूल्हे में बदल दिया है, जहां वह पिटा ब्रेड बनाती है और अन्य परिवारों को बेचती है। उनके बच्चे और अन्य रिश्तेदार एक कक्षा में गद्दे पर आटा गूँथते हैं। उनके अस्तित्व का संघर्ष और भी कठिन हो गया है, क्योंकि इजरायल ने एक महीने से अधिक समय से गाजा में भोजन, ईंधन, दवाइयां और अन्य सभी आपूर्तियां रोक दी हैं, जिससे सहायता एजेंसियों के सीमित भंडार पर दबाव बढ़ रहा है, जिस पर लगभग पूरी आबादी निर्भर है।
ध्यान देने योग्य बात है कि ग़ज़्ज़ा का इस्लामिक विश्वविद्यालय, जो इस क्षेत्र के सबसे बड़े विश्वविद्यालयों में से एक है, में युद्ध से पहले लगभग 17,000 छात्र थे, जो चिकित्सा और रसायन विज्ञान से लेकर साहित्य और वाणिज्य तक हर क्षेत्र में अध्ययन कर रहे थे। इसके 60 प्रतिशत से अधिक विद्यार्थी महिलाएं थीं। परिसर पर इज़रायली हवाई हमलों और ज़मीनी सैन्य छापों ने तबाही मचा दी है। हमलों में कम से कम 10 विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और डीन मारे गए हैं, जिनमें विश्वविद्यालय के अध्यक्ष और प्रसिद्ध भौतिक विज्ञानी सुफियान तैयब भी शामिल हैं, जो अपने घर पर बमबारी में अपने परिवार के साथ मारे गए थे; साथ ही विश्वविद्यालय के सबसे प्रमुख प्रोफेसरों में से एक, रिफात अल-अरीज, जो एक अंग्रेजी शिक्षक थे और गाजा में युवा लेखकों के लिए कार्यशालाएं आयोजित करते थे।
सेना ने जनवरी 2024 में नियंत्रित विस्फोट के जरिए इसरा विश्वविद्यालय की मुख्य इमारतों को ध्वस्त कर दिया। इस क्षेत्र में कोई विश्वविद्यालय संचालित नहीं है, यद्यपि इस्लामिक यूनिवर्सिटी ऑफ गाजा सहित कुछ विश्वविद्यालय सीमित ऑनलाइन पाठ्यक्रम चला रहे हैं।
अल्लामा ज़ीशान हैदर जवादी उर्दू ज़बान के अल्लामा मजलिसी थे,
नई दिल्ली में “जलसा-ए-तौकीर-ए-तकरीम” नामक अंतर्राष्ट्रीय शैक्षणिक सत्र में अल्लामा ज़ीशान हैदर जवादी ताबा सराह की 25वीं बरसी पर श्रद्धांजलि अर्पित की गई।
नई दिल्ली की एक रिपोर्ट के अनुसार/ इस्लामी विचारक और पवित्र कुरान के मुफ़स्सिर अल्लामा सय्यद जीशान हैदर जवादी ताबा सराह की 25वीं बरसी के अवसर पर, विलायत फाउंडेशन, अल्लामा जवादी के कार्यों के प्रकाशन और संरक्षण संस्थान और तंजीमुल मुकातिब द्वारा ऐवान-ए-ग़ालिब, नई दिल्ली में “जलसा-ए-तौकीर-ए-तकरीम” नामक एक अंतरराष्ट्रीय शैक्षणिक सम्मेलन का आयोजन किया गया।
बैठक की अध्यक्षता हजरत आयतुल्लाह मोहसिन क़ुमी ने की। विशेष अतिथियों में भारत के सर्वोच्च नेता के पूर्व प्रतिनिधि हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन अका महदी महदवी (म द), और भारत मे सर्वोच्च नेता के नए प्रतिनिधि हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन अब्दुल मजीद हकीम इलाही (म), हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन सय्यद कमाल हुसैनी, तथा ऑस्ट्रेलिया के शिया उलेमा काउंसिल के अध्यक्ष मौलाना सय्यद अबुल कासिम रिजवी शामिल थे, जो न केवल विशेष अतिथि के रूप में शामिल हुए, बल्कि भाषण भी दिया।
आस्ट्रेलिया के मेलबर्न स्थित इमाम जुमा ने अल्लामा जवादी को उर्दू का अल्लामा मजलिसी घोषित किया और उन्होंने अपना भाषण सूर ए यासीन की आयत न 21 से शुरू करते हुए कहा कि अल्लामा जीशान हैदर जवादी के समय में काम में बरकत थी, कर्म में बरकत थी, कलम में बरकत थी, आंदोलन में बरकत थी। अल्लामा बहुत धन्य थे। उनका जीवन 22 रजब को शुरू हुआ और आशूरा के दिन मजलिस के बाद उन्होंने अंतिम सांस ली। ऐसा जीवन जिसका सपना केवल मनुष्य ही देख सकता है। अल्लाह ने उनके आमाल को स्वीकार किया और उन्हें 63 वर्ष का जीवन प्रदान किया।
उन्होंने आगे कहा कि यह हम सभी के लिए गर्व की बात है, जैसा कि फिराक गोरखपुरी ने कहा, जिन्होंने अल्लामा जवादी के कार्यकाल को देखा और उनके भाषणों से लाभ उठाया।
आने वाली पीढ़ियाँ आप पर गर्व करेंगी, हम अस्र
जब भी उनको ध्यान आएगा कि तुमने फ़िराक को देखा है।
अल्लामा एक जीनीयस थे, वे एक living legend थे, उनकी छवि हर जगह है, वे क़ौम के सम्मान और गरिमा थे।
14 देशों के नागरिकों के लिए सऊदी अरब ने उमराह वीज़ा पर प्रतिबंध लगाया
सऊदी अरब ने 14 देशों के लिए वीज़ा जारी करना निलंबित कर दिया है, जिससे तीखी प्रतिक्रिया समाने आ रही है।
सऊदी अरब ने इंडोनेशिया, अल्जीरिया, मिस्र, नाइजीरिया, इथियोपिया, ट्यूनीशिया, भारत, बांग्लादेश और पाकिस्तान सहित 14 देशों के नागरिकों के लिए उमराह, पारिवारिक यात्रा और व्यावसायिक वीजा जारी करने को 2025 हज सीजन के अंत तक निलंबित कर दिया है।
वीज़ा जारी करने पर अचानक रोक लगाने का उद्देश्य अनधिकृत प्रवेश को रोकना और आगामी धार्मिक समारोहों के दौरान भीड़ को नियंत्रित करना है।
सऊदी अधिकारियों ने घोषणा की है कि यह प्रतिबंध एक अस्थायी उपाय है और सुरक्षा तथा रसद दक्षता सुनिश्चित करने के लिए उठाया गया है, विशेष रूप से 2024 में हुई एक दुखद घटना के बाद, जिसमें भीड़भाड़ और अत्यधिक गर्मी के कारण एक हजार से अधिक लोग मारे गए थे।
यह नए प्रतिबंध जो जून 2025 के मध्य तक लागू रहेंगे, हाल के वर्षों में सऊदी अरब द्वारा लगाए गए सबसे सख्त वीज़ा उपायों में से एक हैं।
इस कदम से एशिया और अफ्रीका के लाखों तीर्थयात्रियों और यात्रियों के लिए गंभीर व्यवधान उत्पन्न हो गया है, तथा दुनिया भर में यात्रा योजनाएं, उड़ान बुकिंग और धार्मिक तीर्थयात्राएं पहले से ही बाधित हो रही हैं। स्थानीय मीडिया सूत्रों और राजनयिक चैनलों के अनुसार, यह निलंबन एक अस्थायी उपाय है और हज सीजन के अंत तक जारी रहेगा।
सऊदी अधिकारियों ने स्पष्ट किया है कि यह वीज़ा प्रतिबंध कोई दंडात्मक उपाय नहीं है, बल्कि सार्वजनिक सुरक्षा बनाए रखने के लिए एक निवारक प्रतिक्रिया है, विशेष रूप से 2024 के हज आपदा के बाद, जिसमें भीड़भाड़ और अत्यधिक गर्मी के कारण एक हजार से अधिक तीर्थयात्रियों की मृत्यु हो गई थी।
10 ब्रिटिश नागरिकों पर ग़ज़्ज़ा में युद्ध अपराध का आरोप लगा
फिलीस्तीनी मानवाधिकार केंद्र ने इस बात पर जोर दिया कि इजरायली हमलों को आत्मरक्षा कहना फिलीस्तीनी नागरिकों को मारने का लाइसेंस है। ब्रिटिश सरकार को भी कानून का शासन कायम रखना चाहिए।
एक प्रमुख वकील और कानूनी जांच दल ने ब्रिटिश राजधानी लंदन में मेट्रोपॉलिटन पुलिस को एक व्यापक रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें 10 ब्रिटिश नागरिकों पर घेरे गए गाजा पट्टी में युद्ध अपराधों में शामिल होने का आरोप लगाया गया। सोमवार को प्रस्तुत की गई 240 पृष्ठों की रिपोर्ट, प्रमुख ब्रिटिश मानवाधिकार वकील माइकल मैन्सफील्ड के.सी. और हेग स्थित शोधकर्ताओं की एक टीम द्वारा तैयार की गई थी, तथा इसे मेट्रोपॉलिटन पुलिस आतंकवाद-रोधी कमान की युद्ध अपराध टीम के समक्ष प्रस्तुत किया गया। यह अनुरोध फिलीस्तीनी मानवाधिकार केंद्र और ब्रिटेन स्थित पब्लिक इंटरेस्ट लॉ सेंटर (पीआईएलसी) द्वारा किया गया था, जो गाजा और ब्रिटेन में फिलीस्तीनियों का प्रतिनिधित्व करता है।
यह अपनी तरह की पहली रिपोर्ट है जो गाजा में गंभीर अपराधों में ब्रिटिश नागरिकों की कथित संलिप्तता के बारे में विस्तृत, पूर्ण शोध और ठोस सबूत उपलब्ध कराती है। इसमें विशेष रूप से 10 ब्रिटिश संदिग्धों की पहचान की गई है तथा इजरायली सेना द्वारा किए गए "युद्ध अपराधों और मानवता के विरुद्ध अपराधों" में उनकी संलिप्तता के साक्ष्य प्रस्तुत किए गए हैं। रिपोर्ट में ब्रिटिश नागरिकों की जांच की मांग की गई है, जिसका उद्देश्य गिरफ्तारी वारंट जारी करना तथा ब्रिटिश अदालतों में उन पर मुकदमा चलाना है। यह कदम अंतर्राष्ट्रीय कानूनी समूह ग्लोबल 195 की स्थापना और अपील के बाद उठाया गया है, जो फिलिस्तीन में कथित युद्ध अपराधों के लिए जवाबदेही की मांग कर रहा है।
रिपोर्ट प्रस्तुत करने से पहले कानूनी टीम ने स्कॉटलैंड यार्ड के बाहर पत्रकारों से बात की। पीआईएलसी के कानूनी निदेशक पॉल हेरॉन ने कहा कि यह रिपोर्ट छह महीने की अवधि में एकत्र किये गए व्यापक साक्ष्य पर आधारित है। हमने मेट्रोपॉलिटन पुलिस की युद्ध अपराध टीम को सौंपी अपनी याचिका में पूर्ण एवं शीघ्र जांच तथा आपराधिक मुकदमा चलाने की मांग की है। उन्होंने कहा कि युद्ध अपराधों और मानवता के खिलाफ अपराधों में हत्या, जानबूझकर फिलिस्तीनियों को बहुत दर्द पहुंचाना, गंभीर चोट पहुंचाना और उनके साथ क्रूर व्यवहार करना, नागरिकों पर हमले, जबरन स्थानांतरण और निर्वासन, मानवीय कर्मियों पर हमले और फिलिस्तीनी लोगों के खिलाफ इजरायली सेना की कार्रवाई से संबंधित उत्पीड़न शामिल हैं। उन्होंने कहा कि चूंकि इजरायल पिछले 14 दिनों से गाजा में अपना नया आक्रमण जारी रखे हुए है, इसलिए यह अनुरोध इससे अधिक सामयिक नहीं हो सकता था।
फिलीस्तीनी मानवाधिकार केंद्र (पीसीएचआर) के निदेशक राजी सोरानी ने इस बात पर जोर दिया कि इजरायली हमलों को आत्मरक्षा कहना फिलीस्तीनी नागरिकों को मारने का लाइसेंस है। इजरायली हमलों में अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोप की मिलीभगत का आरोप लगाते हुए सोरानी ने कहा कि अभी भी इजरायल को हथियार भेजे जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि ब्रिटिश सरकार को कानून का शासन कायम रखना चाहिए।
हालांकि, यूके लॉयर्स फॉर इजराइल (यूकेएलएफआई) के जोनाथन टर्नर ने कहा कि यह रिपोर्ट महज एक "प्रचार स्टंट" है। यह भी ध्यान देने योग्य है कि कथित अपराध अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय के अभियोजक के मुख्य आरोपों से भिन्न हैं, जिसमें कहा गया था कि इजरायल ने युद्ध के हथियार के रूप में भुखमरी का इस्तेमाल किया।" इजरायल समर्थक एनजीओ मॉनिटर के कानूनी सलाहकार ऐनी हर्ज़बर्ग ने दावा किया कि यह रिपोर्ट ब्रिटेन में रहने वाले यहूदियों को डराने का एक प्रयास है।
क्या पैग़म्बरे इस्लाम पर सलाम पढ़ना शिर्क है?
आज के युग में यह वहाबी टोला और उसके साथियों ने क़सम खा रखी है कि मुसलमानों की हर आस्था और उनके हर विश्वास पर टिप्पणी अवश्य करेंगे चाहे वह सही हो या न हो, और कितने आश्चर्य की बात है कि यह सब करने के बाद भी यह वहाबी अपने आप को मुसलमान कहते हैं,
इनके इन्हीं बेबुनियाद ऐतेराज़ों में से एक पैग़म्बर और औलिया पर सलाम पढ़ना है, यह कहते हैं कि अगर कोई मुसलमान पैग़म्बर पर सलाम भेज रहा है तो यह अनेकेश्वरवाद है और वह शिर्क कर रहा है, (जब्कि यह लोग भूल जाते हैं कि हर मुसलमान अपनी नमाज़ों में कम से कम पांच समय पैग़म्बर पर अवश्य सलाम भेजता है)
अगरचे इन हबाबियों के सामने क़ुरआन की आयतों का पढ़ना ऐसा ही है जैसे भैंस के आगे बीन बजाना, लेकिन फिर भी हम यहां पर क़ुरआन से वह दलीले प्रस्तुत करने जा रहे हैं जो यह बताती हैं कि न केवल यह शिर्क नहीं है बल्कि यही सच्चा इस्लाम है, और यह दलीले देने का हमारा मक़सद केवल यही है कि अगर हमारा कोई मुसलमान भाई मुसलमानों की सूरत रखने वाले इन वहाबियों की ज़हरीली बातों से प्रभावित हो गया हो, या जिसको इस बारे में जानकारी न हो उसके सामने वास्तविक्ता रौशन हो जाए।
क्या पैग़म्बरे इस्लाम और नेक बंदों पर सलाम पढ़ना शिर्क है?
अगर ऐसा है तो ईश्वर न करें सारे मुसलमान...
क्या क़ुरआन नहीं फरमा रहा हैः
وَسَلَامٌ عَلَيْهِ يَوْمَ وُلِدَ وَيَوْمَ يَمُوتُ وَيَوْمَ يُبْعَثُ حَيًّا (सुरा मरयम आयत 15)
और सलाम हो यहया पर जिस दिन वह पैदा हुए और जब मरेगें और जिस दिन दोबारा जीवित किए जाएंगे
سَلَامٌ عَلَىٰ مُوسَىٰ وَهَارُونَ
(अलसाफ़्फ़ात आयत 120)
सलाम हो मूसा और हारून पर
فَسَلَامٌ لَّكَ مِنْ أَصْحَابِ الْيَمِينِ
(अलवाक़ेआ आयत 91)
तो सलाम हो तुम पर कि तुम असहाबे यमीन में से हो
यह आयतें साफ़ बता रही हैं कि नबियों पर सलाम करना कोई शिर्क नहीं है तो अगर एक आम नबी पर सलाम करना क़ुरआन के अनुसार शिर्क नहीं है तो वह पैग़म्बर जो सबसे बड़ा नबी है, वह नबी जिसको ईश्वर ने ख़ुद अपना हबीब कहा है उसपर सलाम करना शिर्क कैसे हो सकता है?।
अब अगर इन आयतों को देखने के बाद भी कोई यह मानने को तैयार नहीं है कि सलाम भेजना शिर्क नहीं है तो उससे हमारा प्रश्न है कि
क्या क़ुरआन हमको शिर्क करना सिखा रहा है?
क्या शिया पैग़म्बर और अहलेबैत की ज़ियारत के समय इसके अतिरिक्त कुछ और कहते हैं कि
सलाम हो पैग़म्बर और एबादे सालेहीन पर।
अब हम इन वहाबियों जो कि भेड़ की खाल में छिपे भेड़िये हैं से कुछ प्रश्न करते हैं
वहाबियत जो ज़ियारत का विरोध करती है उसकी दलील क्या है?
क्या यह लोग भी यज़ीद की भाति पैग़म्बर के अहलेबैत को इस्लाम के बाहर मानते हैं?
क्या यह लोग शहीदों को जिन्हें क़ुरआन जीवित मानता है विश्वास नहीं रखते हैं?
क्या यह लोग पैग़म्बर की शहीदों से भी कम मानते हैं?
क्या यह लोग क़ुरआन की इन आयतें पर ईमान नहीं रखते हैं?
क्या यह लोग भी मैटेरियालिस्टों की भाति मौत को समाप्त हो जाना मानते हैं?
यह लोग क़ुरआन के इस वाक्य السلام علیک ایها النبی.. के बारे में क्या कहेंगे?
क्या नमाज़ में السلام علیک ایها النبی.. बेकार हैं?