
رضوی
शफाअत के नियम (2)
जैसा कि संकेत किया गया शफाअत करने या शफाअत पाने के लिए मूल शर्त ईश्वर की अनुमति है जैसा कि सूरए बक़रा की आयत 255 में कहा गया हैः
और कौन है जो उसकी अनुमति के बिना उसके पास सिफारिश करता हैं।
इसी प्रकार सूरए युनुस की आयत 3 में कहा जाता हैः
कोई भी सिफारिश करने वाला नही है सिवाए उसकी अनुमति के बाद।
इसी प्रकार सूरए ताहा की आयत 109 मे आया हैः
और उस दिन किसी की सिफारिश का लाभ नही होगा सिवाएं उसकी कृपालु ईश्वर ने अनुमति दी होगी और जिस बात को पसन्द करता होगा।
और सूरए सबा की आयत हैं
उसके निकट सिफारिश का लाभ नही होगा सिवाए उसकी जिसे उसन अनुमति दी।
इन आयतों से सामूहिक रूप से ईश्वर की अनुमति की शर्त सिध्द होती है किंतु जिन लोगो की अनुमति प्राप्त होगी उनकी विशेषताओ का पता नही चलता.
किंतु ऐसी बहुत सी आयत है जिनकी सहायता से सिफारिश पाने और करने वालो की कुछ विशेषताओं का पता लगाया जा सकता हैं। जैसा कि सूरए ज़ोखरूफ की आयत 86 मे आया हैः
और वे ईश्वर को छोड़ कर जिन लोगो को बुलाते है वे सिफारिश के स्वामी नही हैं सिवाए उसके जिसने सत्य की गवाही दी और वे लोग जानकारो मे से हैं।
शायद सत्य की गवाही देने वाले से यहॉ आशय, कर्मो की गवाही देने वाले वह लोग हों जिन्हे मनुष्य के दिल की बातो का ज्ञान होता हैं और मनुष्य के व्यवहार और उसके महत्व व सत्यता के बारे मे गवाही दे सकता हो। इस से यह भी समझा जा सकता हैं कि सिफारिश करने वाले पास ऐसा ज्ञान होना चाहिए कि जिस के बल पर वह सिफारिश पाने की योग्यता रखने वाले लोगो को जान सके और इस प्रकार की विशेषता रखने वालो मे निश्चित रूप से जिन लोगो का नाम लिया जा सकता हैं वह ईश्वर के वह विशेष दास हैं जिन्हे पापों से पवित्र बताया हैं।
दूसरी ओर, बहुत सी आयतो से यह समझा जा सकता हैं कि जिन लोगो को सिफारिश प्राप्त होनी होगी, उन से प्रसन्न होना भी आवश्यक हैं। जैसा कि सूरए अंबिया की आयत 28 में कहा गया हैः
और वे किसी की सिफारिश नही करेगें सिवाए उसकी जिस से ईश्वर प्रसन्न होगा।
इसी प्रकार सूरए अन्नज्म में आया हैः
और आकाशो मे कितने ऐसे फरिश्ते हैं जिन की सिफारिश का कोई लाभ नही होगा सिवाए इसके कि ईश्वर ने उन्हे जिस के लिए चाहा अनुमति दी हो और जिस से प्रसन्न हुआ हो।
स्पष्ट है कि सिफारिश पाने वालो से ईश्वर के प्रसन्न होने का अर्थ यह नही है कि उन लोगो के सारे काम अच्छे होगें क्योकि अगर ऐसा होगा तो फिर उन्हे सिफारिश की आवश्यकता ही न होती बल्कि इस का आशय यह हैं कि ईश्वर धर्म व ईमान की दृष्टि से उन से प्रसन्न हो जैसा कि हदीसों मे भी इस विचार की पुष्टि की गई है।
इसके साथ ही कुछ आयतो मे उन लोगों की विशेषताओ का भी वर्णन किया गया हैं जिन्हे सिफारिश मिल नही सकती हैं जैसा कि सुरए शोअरा की आयत 100 में अनेकेश्वादियों की इस बात का वर्णन है कि हमारी सिफारिश करने वाला कोई नही हैं। इसी प्रकार सूरए मुद्दस्सिर की आयत 40 से लेकर 48 तक में वर्णन किया गया है कि पापियों से नर्क में जाने का कारण पूछा जाएगा और वे उत्तर में नमाज़ छोड़ने, निर्धनों की सहायता न करने तथा क़यामत जैसे विश्वासो के इन्कार का नाम लेगें और फिर कुरआन में कहा गया है कि उन्हे सिफारिश करने वालो की सिफारिशों से भी कोई लाभ नही होगा। इस आयत से समझा जा सकता है कि अनेकेश्वरवादी और प्रलय व कयामत का इन्कार करने वाले कि जो ईश्वर की उपासना नही करते और आवश्यकता रखने वालो की सहायता नही करते तथा सही सिध्दान्तो का पालन नही करते, वे किसी भी स्थिति मे सिफारिश के पात्र नही बनेगें। और इस बात के दृष्टिगत कि संसार में पैगम्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व सल्लम द्वारा अपने अनुयाईयो के पापो को माफ करने कि ईश्वर से प्रार्थना भी एक प्रकार की शफाअत व सिफारिश है तो फिर पैगम्बरे इस्लाम (स.अ.व.व) की शिफाअत व सिफारिश में विश्वास रखने वाले के लिए उनकी सिफारिश का कोई प्रभाव वही होगा, यह समझा जा सकता है कि शिफाअत का इन्कार करने वाला भी सिफारिश का पात्र नही बन सकता और इस बात की पुष्टि हदीसों से भी होती हैं।
निष्कर्ष यह निकला की मुख्य सिफारिश करने वाले के लिए ईश्वर की अनुमति के साथ ही साथ स्वंय पवित्र होना भी आवश्यक है तथा इसी प्रकार उसमे इस बात की योग्यता हो कि वह लोगो की वास्तविकता तथा अवज्ञा व कर्तव्य पालन की भावना का ज्ञान प्राप्त कर सके और इस प्रकार के लोग ही ईश्वर की अनुमति से लोगो की सिफारिश कर सकते है जो निश्चित रूप से ईश्वर के योग्य व चयनित दास ही होगें दूसरी ओर यह सिफारिश उन्ही लोगों को प्राप्त होगी जो सिफारिश की योग्यता रखते होगे जिस के लिए ईश्वर की अनुमति के साथ, इस्लाम के आवश्यक व मूल सिध्दान्तो मे मृत्यु तक विश्वास व आस्था आवश्यक है।
शफाअत का अर्थ (1)
अरबी भाषा में शफाअत के शब्द को आम तौर पर इस अर्थ में प्रयोग किया जाता हैं कि प्रतिष्ठित व्यक्ति, किसी सम्मानीय व बड़े आदमी से किसी अपराधी को क्षमा कर देने की अपील करे या किसी सेवक के इनाम को बढ़ा दे।
आम परिस्थितियों में अगर कोई किसी की सिफारिश स्वीकार करता हैं तो इस भावना के कारण कि अगर उस ने सिफारिश करने वाले की सिफारिश स्वीकार नही की तो सिफारिश करने वाले को दुःख होगा जिससे उस सिफारिश करने वाले प्रिय मित्र की मित्रता से वचिंत होना पड़ेगा या फिर, नुकसान उठाना पड़ सकता है। अनेकश्वरवादी जो ईश्वर के लिए मानवीय गुणों मे विश्वास रखते थे और समझते थे कि उसे भी पत्नी व साथियो तथा सहयोगियो की आवश्यकता है तथा वह अन्य देवताओ से डरता हैं, ईश्वर को प्रसन्न करने के लिए या उसके प्रकोप से बचने के लिए अन्य देवताओ की पूजा करते थे तथा फरिश्तों व जिन्न व परियो के सामने शीश नवाते थे तथा कहते थेः
यह लोग ईश्वर के समक्ष हमारी सिफारिश करेगे।
(युनुस 18)
इसी प्रकार उनका कहना थाः
हम तो इनकी पूजा केवल इस लिए करते हैं यह हमे ईश्वर से निकट कर दें।
(ज़ुम्र 3)
कुआन इस प्रकार की बातो के उत्तर मे कहता हैः
इन लोगो मे ईश्वर के अतिरिक्त कोई भी अभिभावक है न कोई सिफारिश करने वाला।
(अनआम 51 व 70)
किंतु इस बात पर ध्यान रखना चाहिए कि इस प्रकार के सिफारिश करने वालो और उन की सिफारिश को नकराने का अर्थ यह यही हैं कि पूर्णरूप से सिफारिश को ही नकारा जा रहा हैं क्येकि स्वयं कुरआन मजीद मे ईश्वर की अनुमति से सिफारिश व शफाअत की बात कही गई हैं। तथा इसके साथ ही कुरआन ने सिफारिश करने वालों और जिन लोगो के बारे में सिफारिश की जाएगी, उनकी विशेषताओ का वर्णन किया हैं। इस प्रकार से ईश्वर की अनुमती के बाद कुछ लोगो की सिफारिश का स्वीकार किया जाना इस लिए नही है कि ईश्वर सिफारिश करने वालों से डरता हैं अथवा उसे उनकी आवश्यकता होती हैं बल्कि यह तो वह मार्ग है जो स्वयं ईश्वर ने उन लोगो के लिए रखा है जो अनन्त ईश्वरीय कृपा की प्राप्ति की न्यूनतम क्षमता रखते है और उसने इस लिए कुछ नियम बनाए हैं और वास्तव मे सही प्रकार की सिफारिश अनेकश्वरवादियों के दृष्टिगत सिफारिश के मध्य अंतर उसी प्रकार का है जैसा अंतर, ईश्वर की अनुमति से विश्व के संचालन तथा स्वाधीन रूप से कुछ लोगो द्वारा संसार के संचालन मे विश्वासो के मध्य है और इस पर विस्तार पूर्वक चर्चा किताब के आंरभ मे हो चुकी है।
शफाअत के शब्द को कभी कभी अधिक व्यापक अर्थ में प्रयोग किया जाता हैं तो उस स्थिति में किसी अन्य व्यक्ति द्वारा किसी भी प्रकार की भलाई को शफाअत कहा जाता हैं। इस अर्थ के अंतर्गत माता पिता अपने संतान या फिर संतान अपनी माता पिता के लिए, शिक्षक अपने छात्रों के लिए बल्कि अज़ान देकर नमाज़ पढ़ने हेतु मस्जिद मे बुलाने वाला व्यक्ति भी दूसरो के लिए सिफारिश करने वाला हो सकता हैं। अर्थात जो भी अपने प्रयास से किसी अन्य की भलाई चाहे वह सिफारिश करने वाला होता हैं।
दूसरी बात यह कि इसी संसार मे पापियों की ओर से क्षमा व प्रायश्चित भी एक प्रकार की सिफारिश हैं बल्कि दूसरो के लिए दुआ करना और उनकी मनोकामनाएं पूरी होने के लिए ईश्वर से प्रार्थना करना भी सिफारिश के अर्थ के दायरे मे आता हैं क्योकि यह सब कुछ ईश्वर से किसी अन्य के लिए भलाई चाहना हैं।
मुनाज़ेरा ए इमाम सादिक़ अ.स.
इब्ने अबी लैला से मंक़ूल है कि मुफ़्ती ए वक़्त अबू हनीफ़ा और मैं बज़्मे इल्म व हिकमते सादिक़े आले मुहम्मद हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस सलाम में वारिद हुए।
इमाम (अ) ने अबू हनीफ़ा से सवाल किया कि तुम कौन हो?
मैं: अबू हनीफ़ा
इमाम (अ): वही मुफ़्ती ए अहले इराक़
अबू हनीफ़ा: जी हाँ
इमाम (अ): लोगों को किस चीज़ से फ़तवा देते हो?
अबू हनीफ़ा: क़ुरआन से
इमाम (अ): क्या पूरे क़ुरआन, नासिख़ और मंसूख़ से लेकर मोहकम व मुतशाबेह तक का इल्म है तुम्हारे पास?
अबू हनीफ़ा: जी हाँ
इमाम (अ): क़ुरआने मजीद में सूर ए सबा की 18 वी आयत में कहा गया है कि उन में बग़ैर किसी ख़ौफ़ के रफ़्त व आमद करो।
इस आयत में ख़ुदा वंदे आलम की मुराद कौन सी चीज़ है?
अबू हनीफ़ा: इस आयत में मक्का और मदीना मुराद है।
इमाम (अ): (इमाम (अ) ने यह जवाब सुन कर अहले मजलिस को मुख़ातब कर के कहा) क्या ऐसा हुआ है कि मक्के और मदीने के दरमियान में तुम ने सैर की हो और अपने जान और माल का कोई ख़ौफ़ न रहा हो?
अहले मजलिस: बा ख़ुदा ऐसा तो नही है।
इमाम (अ): अफ़सोस ऐ अबू हनीफ़ा, ख़ुदा हक़ के सिवा कुछ नही कहता ज़रा यह बताओ कि ख़ुदा वंदे आलम सूर ए आले इमरान की 97 वी आयत में किस जगह का ज़िक्र कर रहा है:
व मन दख़लहू काना आमेनन
अबू हनीफ़ा: ख़ुदा इस आयत में बैतल्लाहिल हराम का ज़िक्र कर रहा है।
इमाम (अ) ने अहले मजलिस की तरफ़ रुख़ कर के कहा क्या अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर और सईद बिन जुबैर बैतुल्लाह में क़त्ल होने से बच गये?
अहले मजलिस: आप सही फ़रमाते हैं।
इमाम (अ): अफ़सोस है तुझ पर ऐ अबू हनीफ़ा, ख़ुदा वंदे आलम हक़ के सिवा कुछ नही कहता।
अबू हनीफ़ा: मैं क़ुरआन का नही क़यास का आलिम हूँ।
इमाम (अ): अपने क़यास के ज़रिये से यह बता कि अल्लाह के नज़दीक क़त्ल बड़ा गुनाह है या ज़ेना?
अबू हनीफ़ा: क़त्ल
इमाम (अ): फ़िर क्यों ख़ुदा ने क़त्ल में दो गवाहों की शर्त रखी लेकिन ज़ेना में चार गवाहो की शर्त रखी।
इमाम (अ): अच्छा नमाज़ अफ़ज़ल है या रोज़ा?
अबू हनीफ़ा: नमाज़
इमाम (अ): यानी तुम्हारे क़यास के मुताबिक़ हायज़ा पर वह नमाज़ें जो उस ने अय्यामे हैज़ में नही पढ़ी हैं वाजिब हैं न कि रोज़ा, जब कि ख़ुदा वंदे आलम ने रोज़े की क़ज़ा उस पर वाजिब की है न कि नमाज़ की।
इमाम (अ): ऐ अबू हनीफ़ा पेशाब ज़्यादा नजिस है या मनी?
अबू हनीफ़ा: पेशाब
इमाम (अ): तुम्हारे क़यास के मुताबिक़ पेशाब पर ग़ुस्ल वाजिब है न कि मनी पर, जब कि ख़ुदा वंदे आलम ने मनी पर ग़ुस्ल को वाजिब किया है न कि पेशाब पर।
अबू हनीफ़ा: मैं साहिबे राय हूँ।
इमाम (अ): अच्छा तो यह बताओ कि तुम्हारी नज़र इस के बारे में क्या है, आक़ा व ग़ुलाम दोनो एक ही दिन शादी करते हैं और उसी शब में अपनी अपनी बीवी से हम बिस्तर होते हैं, उस के बाद दोनो सफ़र पर चले जाते हैं और अपनी बीवियों को घर पर छोड़ देते हैं एक मुद्दत के बाद दोनो के यहाँ एक एक बेटा पैदा होता है एक दिन दोनो सोती हैं, घर की छत गिर जाती है और दोनो औरतें मर जाती हैं, तुम्हारी राय के मुताबिक़ दोनो लड़कों में से कौन सा ग़ुलाम है, कौन आक़ा, कौन वारिस है, कौन मूरिस?
अबू हनीफ़ा: मैं सिर्फ़ हुदूद के मसायल में बाहर हूँ।
इमाम (अ): उस इंसान पर कैसे हद जारी करोगे जो अंधा है और उस ने एक ऐसे इंसान की आंख फोड़ी है जिस की आंख सही थी और वह इंसान जिस के हाथ में नही हैं और वह इंसान जिस के हाथ नही है उस ने एक दूसरे इंसान का हाथ काट दिया है।
अबू हनीफ़ा: मैं सिर्फ़ बेसते अंबिया के बारे में जानता हूँ।
इमाम (अ): अच्छा ज़रा देखें यह बताओ कि ख़ुदा ने मूसा और हारून को ख़िताब कर के कहा कि फ़िरऔन के पास जाओ शायद वह तुम्हारी बात क़बूल कर ले या डर जाये। (सूर ए ताहा आयत 44)
यह लअल्ला (शायद) तुम्हारी नज़र में शक के मअना में है?
इमाम (अ): हाँ
इमाम (अ): ख़ुदा को शक था जो कहा शायद
अबू हनीफ़ा: मुझे नही मालूम
इमाम (अ): तुम्हारा गुमान है कि तुम किताबे ख़ुदा के ज़रिये फ़तवा देते हो जब कि तुम उस के अहल नही हो, तुम्हारा गुमान है कि तुम साहिबे क़यास हो जब कि सब से पहले इबलीस ने क़यास किया था और दीने इस्लाम क़यास की बुनियाद पर नही बना, तुम्हारा गुमान है कि तुम साहिबे राय हो जब कि दीने इस्लाम में रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अलैहि वा आलिहि वसल्लम के अलावा किसी की राय दुरुस्त नही है इस लिये कि ख़ुदा वंदे आलम फ़रमाता है:
फ़हकुम बैनहुम बिमा अन्ज़ल्लाह
तू समझता है कि हुदूद में माहिर है जिस पर क़ुरआन नाज़िल हुआ है तुझ से ज़्यादा हुदुद में इल्म रखता होगा। तू समझता है कि बेसते अंबिया का आलिम है ख़ुदा ख़ातमे अंबिया अंबिया के बारे में ज़्यादा वाक़िफ़ थे और मेरे बारे में तूने ख़ुद ही कहा फ़रजंदे रसूल ने और कोई सवाल नही किया, अब मैं तुझ से कुछ सवाल पूछूँगा अगर साहिबे क़यास है तो क़यास कर।
अबू हनीफ़ा: यहाँ के बाद अब कभी क़यास नही करूँगा।
इमाम (अ): रियासत की मुहब्बत कभी तुम को इस काम को तर्क नही करने देगी जिस तरह तुम से पहले वालों को हुब्बे रियासत ने नही छोड़ा।
(ऐहतेजाजे तबरसी जिल्द 2 पेज 270 से 272)
वहाबी इल्मी बौद्धिक की सलाहियत ना रखने की वजह से इस्लामी मसाइल को ग़लत समझते हैं
आयतुल्लाहिल उज़मा मकारिम शीराज़ी ने फ़रमाया कि वहाबी लोग इस्लामी मसलों, ख़ास तौर पर तौहीद और शिर्क के तजज़िए की इल्मी सलाहियत ना रखने की वजह से शदीद उलझन का शिकार हैं।
हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा मकारिम शीराज़ी ने फ़रमाया कि वहाबी लोग इस्लामी मसलों, ख़ास तौर पर तौहीद और शिर्क के तजज़िए की इल्मी सलाहियत ना रखने की वजह से शदीद उलझन का शिकार हैं और जहाँ भी इन्हें मौका मिलता है, ये विरोध करने लगते हैं। इसी वजह से ये ज़ियारत (मज़ारों की हाज़िरी) और शफ़ाअत (सिफ़ारिश) जैसे धार्मिक कामों को भी निशाना बनाते हैं।
उन्होंने अपने बयान में यह भी साफ़ किया कि वहाबी लोग तौहीद और शिर्क को ग़लत ढंग से समझने की वजह से ज़ियारत, शफ़ाअत माँगना, क़ब्रों पर इमारतें बनाना और दूसरे धार्मिक कामों को शरियत के ख़िलाफ़ बताकर इन्हें शिर्क और बिदअत से जोड़ते हैं।
इसी सोच के तहत 1344 हिजरी में जब वहाबियों ने हिजाज़ (सऊदी अरब का इलाक़ा) पर क़ब्ज़ा किया तो उन्होंने तमाम इस्लामी ऐतिहासिक जगहों को शिर्क और बिदअत के नाम पर गिरा दिया।
आयतुल्लाह मकारिम शीराज़ी ने आगे कहा कि इस्लामी दुनिया में मिस्र, हिन्दुस्तान, अल्जीरिया और इंडोनेशिया जैसे कई देशों में नबियों और धर्मगुरुओं की मज़ारों को बहुत इज़्ज़त दी जाती है। लेकिन हिजाज़ में ऐसा नहीं है, क्योंकि वहाबी लोग इस्लामी बातों का सही विश्लेषण करने में असमर्थ हैं।
उन्होंने इस बात पर अफ़सोस जताया कि हिजाज़, ख़ासकर मक्का और मदीना, तंग नज़र और कट्टर सोच वाले लोगों के हाथ लग जाने की वजह से अपने इस्लामी सांस्कृतिक विरासत से महरूम हो चुका है।
बक़ी का क़ब्रिस्तान, जो कभी इस्लाम की कई अहम यादों का गवाह था, आज वीरान और बदसूरत जगह बन चुका है, जबकि उसके आस-पास आलीशान होटल और बड़ी-बड़ी इमारतें बना दी गई हैं।
मजमय ए उलेमा लेबनान ने इस्लामी देशों से तुरंत ग़ाज़ा की मदद करने की अपील की
लेबनान के मुस्लिम उलमा की परिषद ने अपनी मासिक बैठक के बाद एक बयान जारी कर अरब और इस्लामी देशों से मांग की है कि वे तुरंत फ़िलिस्तीन के मुसलमानों और ख़ास तौर पर ग़ाज़ा के लोगों की मदद के लिए आगे आएं।
लेबनान के मुस्लिम उलमा की परिषद ने अपनी मासिक बैठक के बाद एक बयान जारी कर अरब और इस्लामी देशों से मांग की है कि वे तुरंत फ़िलिस्तीन के मुसलमानों और ख़ास तौर पर ग़ाज़ा के लोगों की मदद के लिए आगे आएं।
इस परिषद ने कहा कि फिलिस्तीन और ग़ज़ा के लोग सिर्फ़ ज़ुल्म या अत्याचार का सामना नहीं कर रहे हैं, बल्कि वे एक विनाशकारी युद्ध का शिकार हैं। परिषद ने सिर्फ़ निंदा और आलोचना करने वाले बयानों को रोकने की मांग की और कहा कि इससे कुछ हासिल नहीं होगा।
उन्होंने कहा कि इस्राईल के साथ रिश्ते सामान्य बनाना (Normalisation) हमारे दीन और आस्था के खिलाफ है। असली हल यही है कि इस्राईली कब्ज़ाधारी ताकतें पूरी फ़िलिस्तीनी सरज़मीन को छोड़ें। फ़िलिस्तीन हमारे लिए वह ज़मीन है जहाँ दो मस्जिदों की इमामत और दो क़िब्लों की हुकूमत है और जहाँ हरमैन शरीफ़ैन मक्का और मस्जिद-ए-अक़्सा की निगरानी का अधिकार है।
अंत में उन्होंने कहा कि आज ग़ाज़ा को हथियार, पैसा, खाना और वह मदद चाहिए जिससे अल्लाह और उसके रसूल राज़ी हों। उन्होंने यह भी कहा कि पिछले 80 सालों से अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से मदद की अपील करना सिर्फ़ समय और अधिकारों की बर्बादी साबित हुआ है।
ज़ायोनी अत्याचारों का निश्चित रूप से हिसाब लिया जाएगा: हमास
फिलिस्तीनी प्रतिरोधी आंदोलन हमास ने चेतावनी दी है कि ग़ज़्ज़ा में ज़ायोनी सेना के जारी आक्रमण को दंडित किए बिना नहीं छोड़ा जाएगा और समय बीतने के साथ इन अपराधों को भुलाया नहीं जाएगा।
फ़िलिस्तीनी प्रतिरोधी आंदोलन हमास ने चेतावनी दी है कि ग़ज़्ज़ा में ज़ायोनी सेना की जारी आक्रामकता को दंडित किए बिना नहीं छोड़ा जाएगा और समय बीतने के साथ इन अपराधों को भुलाया नहीं जाएगा।
हमास ने एक बयान में कहा, "इजरायली आतंकवादी सेना ने शुजाइया के घनी आबादी वाले इलाके में शरणार्थियों और नागरिकों का नरसंहार किया है, जो अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लिए अपमान की बात है।"
हमास ने अरब और इस्लामी देशों के नेताओं से आह्वान किया कि वे महज औपचारिक निंदा से आगे बढ़कर इजरायल और उसके अमेरिकी संरक्षकों पर दबाव बढ़ाने के लिए व्यावहारिक कदम और प्रभावी उपाय करें।
बयान में कहा गया, "यह अस्वीकार्य है कि फिलिस्तीनी लोगों को इस निर्णायक लड़ाई में असहाय छोड़ दिया जाए। अरब और इस्लामी सरकारों को इजरायल के खिलाफ व्यावहारिक दबाव बनाने के लिए तत्काल कदम उठाने चाहिए।"
हमास ने इजरायल के साथ संबंध बनाए रखने वाले देशों से "अपने यहां यहूदी दूतावासों को बंद करने और अवैध यहूदी राज्य के साथ सभी संबंध तोड़ने" का आह्वान किया।
बयान के अंत में, हमास ने अरब और इस्लामी देशों तथा दुनिया भर के स्वतंत्रता सेनानियों से अपील की कि वे गाजा के लोगों के साथ एकजुटता में अपना विरोध प्रदर्शन जारी रखें तथा इजरायल के सामूहिक नरसंहार को रोकने के लिए इन प्रदर्शनों को और तेज करें।
जफ़ा की तबर पर नन्ही कोपलो की फ़तह
ग़ज़्ज़ा पट्टी में एक बार फिर सबसे भयानक नरसंहार चल रहा है। आज, मैं अधिकृित फिलिस्तीन पर ज़ायोनी आक्रमणकारी द्वारा किए गए अत्याचारों की निरंतरता का वर्णन नहीं करूंगी; क्योंकि सोशल मीडिया लगातार उन उत्पीड़ित फिलिस्तीनियों को चित्रित और व्याख्यायित कर रहा है जो ज़ायोनी क्रूरता के शिकार बन गए हैं। सोशल मीडिया पर ऐसी कई तस्वीरें और वीडियो हैं जो ज़ायोनी क्रूरता की पराकाष्ठा को दर्शाती हैं।
ग़ज़्ज़ा में एक बार फिर सबसे भयानक नरसंहार चल रहा है। आज, मैं अधिकृित फिलिस्तीन पर ज़ायोनी आक्रमणकारी द्वारा किए गए अत्याचारों की निरंतरता का वर्णन नहीं करूंगी; क्योंकि सोशल मीडिया लगातार उन उत्पीड़ित फिलिस्तीनियों को चित्रित और व्याख्यायित कर रहा है जो ज़ायोनी क्रूरता के शिकार बन गए हैं। सोशल मीडिया पर ऐसी कई तस्वीरें और वीडियो हैं जो ज़ायोनी क्रूरता की पराकाष्ठा को दर्शाती हैं, जिसके परिणामस्वरूप मुसलमानों में निराशा और लाचारी के अलावा कुछ नहीं है। यह भी संभव है कि इतनी बारीकी से तस्वीरें खींचना और वीडियो बनाना जिसमें मानव शरीर हवा में उड़ते हुए दिखाई दे और फिर उन्हें जल्दी से वायरल कर देना शैतानों की एक योजना है जो मुसलमानों को बताना चाहते हैं कि हम उनका क्या हश्र कर सकते हैं, और न ही यह बताना है कि (इस समय पूरी दुनिया में पश्चिमी सभ्यता का जनाजा उठ चुका है और मुस्लिम सरकारें प्रतिरोध के बजाय मौखिक निंदा करके मूक दर्शक बन गई हैं)। हालाँकि, इस अंधकारमय परिदृश्य में इस्लामी गणराज्य ईरान और यमन की सहायक कार्रवाइयों को भुलाया नहीं जा सकता। दुनिया भर के विरोधियों का प्रतिरोध और प्रतिरोध यह बताने के लिए पर्याप्त है कि फिलिस्तीन शहीदों का घर है। जहाँ शहीद, शहीद को उठाता है। शहीद की नमाज़े जनाज़ा पढ़ता है। एक शहीद दूसरे शहीद का इलाज करता है। एक शहीद दूसरे शहीद का प्रतिबिम्ब होता है। एक शहीद दूसरे शहीद को दफनाता है।
मानव इतिहास में शहीदों को सदैव विजेता घोषित किया गया है। भले ही उनकी सेना दुश्मन की सेना से छोटी हो। अभी भी हम ग़ज़्ज़ा के आम लोगों और उनकी बाल सेना को पश्चिमी महाशक्ति के सामने खड़े देख रहे हैं। ग़ज़्ज़ा के बच्चे, जो पेड़ बनने से पहले फूलों की तरह थे और जिनके तने लंबे थे, ग़ज़्ज़ा की सड़कों पर बिखरे हुए थे। कोई यह न सोचे कि ग़ज़्ज़ा की फूलों की क्यारी नष्ट हो गई है, बल्कि धूल से मोहित इन फूल जैसे बच्चों के खून से प्रतिरोध की नई कोंपलें फूटेंगी। इन नन्हें नायकों की मुस्कुराती तस्वीरें इस बात की गवाही देती हैं कि उनका दृढ़ संकल्प और साहस टूटा नहीं है। उत्पीड़न की अंधेरी और डरावनी रातों के बावजूद, उनकी शमा जैसी आंखें एक नई सुबह और आशा की किरणों का इंतजार करती हैं। वे अपने बुजुर्ग मुजाहिद्दीन के लिए फातेहा पढ़ने से तो अनभिज्ञ हैं, लेकिन वे अपने खून से प्रतिरोध की जीत की कहानियां मानव हृदय की पटियो पर लिख रहे हैं। सत्य और असत्य के युद्ध में शत्रु शीघ्र ही पराजित हो जायेगा; जिस प्रकार कर्बला में नन्हे अली असगर (अ) के खून ने तलवार पर विजय प्राप्त की थी, उसी प्रकार छोटे बच्चे भी जफ़ा की तबर पर फ़तह प्राप्त करेंगे, क्योंकि ग़ज़्ज़ा पराजित नहीं होगा, उत्पीड़न की यह निरंतरता टूट जाएगी। लेखक: उम्मे अबीहा
ग़ज़्जा में फिर तेज़ हुए इसराइली हमले
इजराइली विमानों ने गुरूवार को युद्धग्रस्त उत्तरी गाजा में एक रिहायशी इमारत पर हमला किया, जिसमें कम से कम 15 लोगों की मौत हो गई।
इजराइली विमानों ने गुरूवार को युद्धग्रस्त उत्तरी गाजा में एक रिहायशी इमारत पर हमला किया, जिसमें कम से कम 15 लोगों की मौत हो गई।
बुरी तरह तबाह हो चुके फिलस्तीन में फिर से शुरू हुई लड़ाई में नरमी का कोई संकेत नजर नहीं आ रहा है।गाजा के स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा कि जान गंवाने वालों में आधे से ज्यादा महिलाएं और बच्चे हैं।
उसने कहा कि गाजा शहर के शिजैय्याह इलाके में चार मंजिला इमारत पर इजराइली हवाई हमले हुए जिसमें कम से कम 40 लोग घायल भी हुए हैं।उसने कहा कि बचाव दल मलबे के नीचे लोगों की तलाश कर रहे हैं।
इजराइल नागरिकों की मौतों का ठीकरा हमास संगठन पर फोड़ता है ।बंधकों को रिहा करने के लिए हमास पर दबाव बढ़ाते हुए, इजराइल ने गाजा के कुछ हिस्सों में व्यापक निकासी आदेश जारी किए हैं, जिनमें शिजेय्याह भी शामिल है।
क़ुम मे "अंतर्राष्ट्रीय जन्नतुल बक़ीअ सम्मेलन" का आयोजन
जन्नतुल बक़ीअ के विध्वंस की दुखद और रूह को तोड़ देने वाली घटना को 102 साल बीत चुके हैं, और यह दर्द आज भी अहले बैत (अ) से प्यार करने वालों के दिलों को घायल कर देता है। इस महान अत्याचार, पवित्र कब्रों के अपमान तथा इस्लामी दुनिया की निरंतर चुप्पी पर विरोध और दुख व्यक्त करने के लिए ईरान के पवित्र शहर क़ुम में "अंतर्राष्ट्रीय जन्नतुल बक़ीअ सम्मेलन और विरोध बैठक" आयोजित की जा रही है।
जन्नतुल बक़ीअ के विध्वंस की दुखद और रूह को तोड़ देने वाली घटना को 102 साल बीत चुके हैं, और यह दर्द आज भी अहले बैत (अ) से प्यार करने वालों के दिलों को घायल कर देता है। इस महान अत्याचार, पवित्र कब्रों के अपमान तथा इस्लामी दुनिया की निरंतर चुप्पी पर विरोध और दुख व्यक्त करने के लिए ईरान के पवित्र शहर क़ुम में "अंतर्राष्ट्रीय जन्नतुल बक़ीअ सम्मेलन और विरोध बैठक" आयोजित की जा रही है।
यह विरोध कार्यक्रम गुरुवार, 10 अप्रैल 2025, 11 शव्वाल अल-मुकर्रमा 1446 हिजरी को इमाम खुमैनी मदरसा, फलका जिहाद, शहीद आरिफ अल-हुसैनी हॉल में सुबह 9:30 बजे से दोपहर 12:00 बजे तक आयोजित किया जाएगा, जिसमें विभिन्न देशों के विद्वान भाग लेंगे और अपने विचार और भावनाएं व्यक्त करेंगे।
मुकर्रेरीन:
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन डॉ. हुसैन अब्दुलमोहम्मदी (ईरान)
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन मोहसिन दादश्रेष्ठ तेहरानी (ईरान)
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन सय्यद हन्नान रिज़वी (भारत)
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन मुहम्मद तकी महदवी (पाकिस्तान)
निज़ामतः
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन सय्यद मुजफ्फर मदनी (हौज़ा ए इल्मिया क़ुम)
शायर:
जनाब नदीम सिरसिवी साहब
जनाब अली महदवी साहब
यह कार्यक्रम तहरीर पोस्ट, अंजुमन आले यासीन, मरकज अफकार इस्लामिक और इतिहास सांस्कृतिक प्रशिक्षण परिसर के सहयोग से आयोजित किया जा रहा है।
उल्लेखनीय है कि यह सभा जन्नतुल-बकीअ के विध्वंस पर 102 वर्षों की चुप्पी के खिलाफ एक आह्वान, एक विरोध और अहले-बैत (अ) की उत्पीड़ित कब्रों के पुनर्निमार्ण करने का एक प्रयास है।
इंसान की सच्ची खुशहाली अल्लाह के आदेश का पालन करने में है
अहवाज़ के इमामे जुमआ हज़रत हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मौलाना मूसवी फ़र्द ने कहा कि इंसान की सच्ची कामयाबी और खुशहाली अल्लाह तआला के आदेशों की आज्ञापालन में है उन्होंने दुआ की हम सब इस्लामी क्रांति और उसके महान नेता के सच्चे सिपाही बनकर दुनिया में रहें।
अहवाज़ के इमामे जुमआ हज़रत हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मौलाना मूसवी फ़र्द ने कहा कि इंसान की सच्ची कामयाबी और खुशहाली अल्लाह तआला के आदेशों की आज्ञापालन में है उन्होंने दुआ की हम सब इस्लामी क्रांति और उसके महान नेता के सच्चे सिपाही बनकर दुनिया में रहें।
यह बात उस समय कही गई जब अहवाज़ में हज़रत हुज्जत अ.ज. टैंक ब्रिगेड के बहादुर सैनिकों ने शहीदों और इस्लामी इंक़ेलाब के आदर्शों से अपने वफ़ादारी को दोहराते हुए इमामे जुमा मौलाना मुसवी फ़र्द से मुलाकात की।इस अवसर पर ब्रिगेड के कमांडर सरदार शम्सी ने दुश्मनों की धमकियों और साज़िशों के मुकाबले में सैनिकों की तैयारियों पर ज़ोर दिया।
ब्रिगेड के वैलिये फ़क़ीह के प्रतिनिधि मौलाना सैय्यद अब्दुल लतीफ़ ताबतबाई ने कहा कि इस्लामी क्रांति के नेता हमेशा सैनिकों में रूहानियत (आध्यात्मिकता) को बढ़ाने पर ज़ोर देते हैं। इसी उद्देश्य से सैनिकों के बीच धार्मिक और ईमानी मज़बूती के लिए कई कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं।
उन्होंने बताया कि कुरआन संबंधी कक्षाएँ, धार्मिक कार्यक्रम, सैनिकों और उनके परिवारों को मदीना और मक्का भेजना, शिक्षा सम्बन्धी सहायता पैकेज देना, ज़रूरतमंद क्षेत्रों में सेवा कार्य और शहीदों की याद में कार्यक्रम आयोजित करना, सब इस दिशा में किए जा रहे प्रयास हैं।
अंत में इमामे जुमा मौलाना मुसवी फ़र्द ने कहा कि एक महीने की इबादत और बंदगी से इंसान के भीतर तक़वा और अल्लाह से क़ुर्ब हासिल होता है। जो इंसान अल्लाह की बंदगी में पूरी तरह उतर आता है, उसके लिए अन्य कामयाबियाँ भी आसान हो जाती हैं।
उन्होंने कहा कि सैनिकों और समाज में नहजुल बलाग़ा (हज़रत अली की शिक्षाओं) को विशेष महत्व दिया जाना चाहिए क्योंकि इस पर खुद इस्लामी क्रांति के नेता भी बल देते हैं।