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अमरीका के ज़रिए थोपे गए वर्ल्ड आर्डर के ख़िलाफ़ डट जाना ज़रूरी हो गया है

अमेरिका इस समय दक्षिण अफ्रीक़ा, उत्तरी अफ़्रीक़ा के देशों, आयरलैंड, लैटिन अमेरिका के देशों, ईरान, पाकिस्तान, तुर्किये, चीन, इराक़, रूस, इंडोनेशिया, मलेशिया, सीरिया और यमन जैसे विश्व के कुछ दूसरे देशों पर दबाव डाल रहा है कि इस्राईल के अपराधों पर ख़ामोश रहें और उसके इस रवैए को देखते हुए एक अंतर्राष्ट्रीय गठबंधन बनाये जाने की ज़रूरत महसूस हो रही है।

चूंकि अमेरिका साम्राज्यवाद को खत्म करने और आज़ादी, फिलिस्तीनियों के अधिकारों की बहाली में सबसे बड़ी रुकावट है इसलिए दूसरी सरकारों व देशों विशेषकर क्षेत्रीय शक्तियों का भी दायित्व है कि वे ऐसा कार्यक्रम बनायें जिससे इस समस्या का मुकाबला किया जा सके।

 सीधी सी बात है कि इसका बेहतरीन रास्ता यह है कि दुनिया के देश अमेरिका और पश्चिम की साम्राज्यवादी अर्थव्यवस्था पर कम से कम निर्भर हों। इस लक्ष्य को हासिस करने के लिए ब्रिक्स जैसे प्रयास किये जा रहे हैं मगर इंटरनेश्नल पैमाने पर आर्थिक संरचनाओं को बदल देने का मरहला अभी बहुत दूर है। जल्दी नतीजा देने वाले और अच्छे रास्तों में से एक रास्ता यह है कि अमेरिका के लिए उन देशों के खिलाफ़ तीव्र प्रतिक्रिया को कठिन बना दिया जाये जो इस्राईली सरकार के साथ सभी कूटनयिक और आर्थिक संबंधों को तोड़ते हैं। अगर आम शक्तियों का गठबंधन बन जाये और एक साथ वे इस्राईल से संबंध तोड़ने की घोषणा करती हैं तो उन सबका बहिष्कार करना और उन्हें धमकाना अमेरिका के लिए कठिन होगा। क्योंकि यह अमेरिका के लिए बहुत महंगा पड़ेगा।

दक्षिण अफ्रीका, ईरान, तुर्किये, ब्राज़ील, कोलम्बिया, चिली, मिस्र, मोरक्को, स्पेन और नार्वे जैसे दूसरे देशों से इस प्रकार के गठबंधन का आरंभ हो सकता है और सऊदी अरब, पाकिस्तान, इंडोनेशिया, मलेशिया जैसे जो देश इस्राईल के साथ किसी प्रकार के आर्थिक और कूटनयिक संबंध का दावा नहीं करते हैं वे भी इस गठबंधन से जुड़ जायेंगे। जब इस प्रकार का गठबंधन बनने लगेगा तो दूसरी शक्तियां भी इससे जुड़कर अपने दबाव में वृद्धि कर सकती हैं और सबको लक्ष्य बनाना अमेरिका के लिए नामुमकिन हो जायेगा।

इसके लिए आंदोलन चलाया जा सकता है और कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड, बेल्जियम और दूसरे देश, जो यह समझते हैं कि यह सही क़दम है, संभवतः किसी सीमा तक इस गठबंधन में शामिल हो सकते हैं। जैसे इस्राईल के सैन्य बहिष्कार का विकल्प है।

इनमें से कुछ देश बहुत कायर व डरपोक हैं या वे यह समझते हैं कि अमेरिका के साम्राज्यवादी गठबंधन में उनकी भूमिका हो सकती है। इनमें से कोई भी रास्ता आसान नहीं होगा मगर फिर भी यह ज़रूरी है और काम कर सकता है। ज़रूरी है कि सक्रिय लोग व कार्यकर्ता और लेखक अपनी सरकार के हितों के संबंध में बात करना आरंभ कर दें ताकि वे इस प्रकार के गठबंधन के लिए अपनी सरकारों पर दबाव डाल सकें। सरकारें केवल अपने हितों को ध्यान में रखकर काम करेंगी। कार्यकर्ता व सक्रिय लोग, राजनीतिक विश्लेषक और अध्ययनकर्ता अपनी सरकारों को आश्वस्त कर सकते हैं कि इस नीति पर चलना उनके हित में है।

फिलिस्तीन के मामले में अमेरिकी साम्राज्यवाद को चुनौती देने से डेमोक्रेटिक विश्व व्यवस्था पर अधिक दूरगामी प्रभाव पड़ेगा। यद्यपि जिन देशों का ऊपर नाम लिया गया उनमें से कुछ का मानना है कि फिलिस्तीनियों की हृदयविदारक और दिल दहलाने वाली हालत की अनदेखी करके वे अमेरिका के साथ विवाद करने से बच सकते हैं परंतु दो दलीलों से यह सोच अल्पकालिक है।

पहला तर्क यह है कि वे फिलिस्तीन समस्या के संबंध में अमेरिकी क्रोध से बच सकते हैं परंतु उसका यह अर्थ नहीं है कि भविष्य में उन्हें किसी अन्य विषय में समस्या का सामना नहीं होगा। आम शक्तियों के हित में यह बिल्कुल नहीं है कि वे एक बड़ी शक्ति के अधीन रहें यहां तक कि अगर कुछ समय के लिए लाभदायक ही क्यों न हो क्योंकि किसी और मौक़े पर इस निर्भरता की कीमत चुकानी पड़ेगी। अब कुछ लोग कहते हैं कि इस व्यवस्था और सिस्टम को चुनौती देने की क्या ज़रूरत है? यहां पर दूसरा तर्क पेश किया जा सकता है। इस समय पूरी दुनिया में अमेरिकी साम्राज्यवाद को चुनौती देने के लिए वातावरण अनुकूल है। यह अवसर से लाभ उठाने का समय है। इस ऊर्जा से लाभ उठायें और उसका दिशा- निर्देशन लोकतांत्रिक विश्व व्यवस्था की ओर करें जो वास्तव में समस्त इंसानों के अधिकारों और आज़ादी के हित में है। यह बहुत महत्वपूर्ण है कि इस समय का प्रयोग करें और अमेरिकी साम्राज्यवाद को संदेश दें कि व्यापार में अब न उसका साथ दिया जायेगा और न ही बर्दाश्त किया जायेगा। अमेरिकी साम्राज्यवाद को या परिवर्तित होना पड़ेगा वरना वह खुद ही अलग-थलग पड़ जायेगा।

जब हम उस मरहले पर पहुंच जायेंगे तो हम इस्राईली उपनिवेशवाद को ख़त्म कर सकेंगे। इस रास्ते से हम अपारथाइड और नस्ली सफाये को समाप्त कर देंगे जो इस्राईल के उपनिवेशवादी शस्त्रागार में मौजूद दो घातक व खतरनाक हथियार हैं। जब इस्राईल इंटरनेश्नल पैमाने पर अलग-थलग पड़ जायेगा तो वह अपनी शैली बदलने पर मजबूर हो जायेगा। इस्राइलियों के पास अपने सेटलर्ज़ की औपनिवेशिक परियोजना को रोकने के अलावा कोई चारा नहीं होगा। इस प्रकार का नतीजा स्थानीय फिलिस्तीनियों और यहूदियों के लिए न केवल लाभप्रद होगा बल्कि एक वास्तविक सिग्नल भी होगा इन अर्थों में कि अब अमेरिका पहले वाला अमेरिकी साम्राज्यवाद नहीं है और अमेरिका सहित पूरी दुनिया के लोग नई डेमोक्रेटिक विश्व व्यवस्था का निर्माण आरंभ कर सकते हैं कि अब वे महाशक्ति की छत्रछाया में और उसके अधीन नहीं रहेंगे।

नई डेमोक्रेटिक विश्व व्यवस्था से बड़ी और साम्राज्यवादी जंगों और इस्राईली कालोनियों में रहने वालों के उत्पात को कम करने और इसी प्रकार फिलिस्तीनियों को आज जिस भारी मानवीय संकट का सामना है उसे रोकने में मदद मिलेगी। जिस भय का फिलिस्तीन के लोगों को 100 से अधिक वर्षों से सामना है उसे फिलिस्तीन के लोगों ने आरंभ नहीं किया है और वह यहीं खत्म नहीं होगा। यह सबके हित में है कि इस प्रकार की मुसीबत से बचें और उसे अंजाम देने का एक रास्ता डेमोक्रेटिक विश्व व्यवस्था का निर्माण है। नेल्सन मंडेला ने एक समय में कहा था कि हम अच्छी तरह जानते हैं कि फिलिस्तीन की आज़ादी के बिना हमारी आज़ादी अधूरी है" इस बात का समय गुज़र गया है कि शेष दुनिया के लोग वास्तव में इस कथन का अर्थ समझ सकें और साम्राज्यवाद से आज़ादी हासिल करने के लिए कोई प्रभावी व ठोस काम कर सकें।

फिलिस्तीन में इस्राईल की ओर से किये जा रहे जनसंहार के खिलाफ दुनियाभर विशेष कर अमेरिका और यूरोप में जनाक्रोश बढ़ता ही जा रहा है। अमेरिका के विश्वविद्यालयों में छात्रों ने आंदोलन तेज़ कर दिया है जिसे कुचलने के लिए अमेरिकी प्रशासन ने पूरा ज़ोर लगा दिया है। अकेले न्यूयॉर्क की कोलंबिया यूनिवर्सिटी में 550 से अधिक छात्रों को बंदी बना लिया गया है।

इस्राईल ग़ज़्ज़ा में अब तक 34,356 लोगों की हत्या कर चुका है, मरने वालों में ज्यादातर महिलाएं और बच्चे हैं। इस्राईल की हरकतों के कारण दुनियाभर में यहूदियों और खासकर ज़ायोनीवादियों के खिलाफ नफरत बढ़ रही है। अमेरिका के एक ज़ायोनी विरोधी विरोध नेता को यह कहते हुए दिखाया गया है कि ज़ायोनीवादी "जीने के लायक नहीं हैं" और उन्हें मार दिया जाना चाहिए। माना जा रहा है कि इस वीडियो के सामने आने के बाद प्रदर्शन और भड़क गया।

अमेरिका के विश्वविद्यालयों में प्रदर्शनकारी मांग कर रहे हैं कि इस्राईल से वित्तीय संबंध तोड़ देना चाहिए और उन कंपनियों से अलग हो जाएं जिनके बारे में कहा जा रहा है कि वे संघर्ष को बढ़ावा दे रही हैं।

बता दें कि अमेरिका की कई यूनिवर्सिटी में प्रोटेस्ट हो रहा है। जो बाइडन ने अपील की है कि छात्र शांति बनाए रखें। वहीं ज़ायोनी प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने इस प्रोटेस्ट की निंदा करते हुए कहा है कि प्रोटेस्ट कर रहे लोग यहूदी विरोधी हैं।

 

अल-अक्सा मस्जिद में  45,000 से अधिक उपासकों ने शुक्रवार की नमाज अदा की, भले ही ज़ायोनी ताकतें उपासकों को मस्जिद में जाने से रोक रही थीं और उनकी पिटाई कर रही थीं।

फ़िलिस्तीन से प्राप्त एक रिपोर्ट के अनुसार शुक्रवार को 45,000 से अधिक फ़िलिस्तीनियों ने अल-अक्सा मस्जिद में ऐसी परिस्थितियों में शुक्रवार की नमाज़ अदा की कि ज़ायोनी सैनिकों ने सैकड़ों युवाओं को अल-अक्सा मस्जिद में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी। और उनमें से कई को पीटा भी और कई फ़िलिस्तीनियों को गिरफ्तार भी किया गया।

फ़िलिस्तीनी सूत्रों के अनुसार, फ़िलिस्तीनियों को मारपीट और अपमान करके अल-अक्सा मस्जिद में प्रवेश करने से रोका गया, जबकि साथ ही गाजा युद्ध के साथ-साथ यहूदी ईद समारोह के लिए सुरक्षा के साथ हजारों ज़ायोनी निवासियों को अल-अक्सा मस्जिद में प्रवेश करने की अनुमति दी गई ज़ायोनीवादियों ने अल-अक्सा मस्जिद के ख़िलाफ़ अपनी कार्रवाई तेज़ कर दी है।

इस्लामी गणराज्य ईरान की राष्ट्रीय वुशू टीम ने 20 पदक जीतकर चीन में विश्व वुशू विश्व कप क्वालीफाइंग प्रतियोगिता जीत ली है।

चीन के जियांगयिन शहर में बुधवार और गुरुवार को आयोजित की गई इस प्रतियोगिता में 38 देशों के 300 से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया। इस्लामी गणराज्य ईरान के वुशू एथलीटों ने 13 स्वर्ण, 5 रजत और 2 कांस्य पदक जीतकर चैंपियनशिप अपने नाम कर ली।

मेज़बान चीन 7 स्वर्ण पदक, 3 रजत पदक और 3 कांस्य पदक के साथ दूसरे स्थान पर रहा और उज़्बेकिस्तान 3 स्वर्ण पदक, 8 रजत पदक और 6 कांस्य पदक के साथ तीसरे स्थान पर रहा। यह प्रतियोगिताएं ऐसी स्थिति में समाप्त हुईं जब ईरान द्वारा इन प्रतियोगिताओं में भेजे गए सभी एथलीटों ने कोई न कोई पदक जीता है।

इन प्रतियोगिताओं में 6 ईरानी वुशु महिलाओं ने भाग लिया, जिनमें "सिद्दिक़े दरयाई", "शहरबानू मंसूरियान", "ज़हरा कियानी", "हेलया असदियान", "सोहेला मंसूरियान" और "ज़हरा जलीली" शामिल थीं।

हुज्जतुल इस्लाम इस्माइल निया ने ईरान के राष्ट्रपति की पड़ोसी और महत्वपूर्ण देश पाकिस्तान यात्रा को क्षेत्रीय मामलों में कारगर बताते हुए कहा है कि इस यात्रा से दोनों देशों के बीच दूरियां पैदा करने की दुश्मनों के मंसूबों पर पानी फिर गया हैं।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, ईरान के शाहर पार्सियन के इमाम जुमा हुज्जतुल इस्लाम वल-मुस्लिमीन जवाद इस्माइल नया ने शुक्रवार की सभा को संबोधित करते हुए डॉ. सैयद इब्राहिम रईसी की पाकिस्तान यात्रा पर अपने विचार व्यक्त किए और कहा कि राष्ट्रपति के पड़ोसी और एक महत्वपूर्ण देश की उपाधि प्राप्त पाकिस्तान की उनकी यात्रा क्षेत्र के मामलों में बहुत प्रभावी रही और इस यात्रा से दोनों देशों के बीच खाई पैदा करने की दुश्मनों की योजना विफल हो गई।

उन्होंने शिक्षक दिवस की बधाई देते हुए कहा कि शिक्षक समाज की भावी पीढ़ियों के अभिभावक होते हैं।

उन्होंने फारस की खाड़ी के राष्ट्रीय दिवस और मजदूर दिवस के अवसर पर बधाई भी दी और कहा कि किसी भी समाज में कारीगर आविष्कारों के स्तंभ होते हैं और आविष्कार अर्थव्यवस्था के विकास में एक महत्वपूर्ण सदस्य होते हैं।

ईरानी धावक लड़की ने एशियन यूथ चैंपियनशीप में 400 मीटर की बाधा दौड़ में स्वर्ण पदक जीत लिया।

ईरानी धावक लड़की दूसरे एशियाई देशों की अपने प्रतिस्पर्धियों की तुलना में 58.86 सेकेंड पहले दौड़ पूरी करने में सफल रही और इस प्रतियोगिता का स्वर्ण पदक जीत लिया।

नाज़ेनीन फ़ातेमा ईदयान यह रिाकर्ड टाइम दर्ज करके एडल्ट कैटेगरी में एक अन्य ईरानी धावक महिला शहला महमूदी से आगे बढ़ गयीं और इस प्रतिस्पर्धा में उन्होंने नया रिकार्ड स्थापित करते हुए खिताब अपने नाम कर लिया।

इससे पहले यह ख़िताब 59.16 सेकेंड के साथ के साथ शहला महमूदी के पास था।

ज्ञात रहे कि यह प्रतिस्पर्धा संयुक्त अरब इमारात में आयोजित हो रही है और इसमें लड़कों और लड़कियों के वर्ग में ईरान के नौ एथलीट मौजूद हैं।

मध्य गाजा के एक क्षेत्र पर ज़ायोनी सरकार के युद्धक विमानों के हमले में पाँच लोग शहीद हो गये और 30 घायल हो गये।

आईआरएनए ने अल जज़ीरा टीवी के हवाले से खबर दी है कि मध्य गाजा के अरब पड़ोस में कब्ज़ा करने वाली ज़ायोनी सेना द्वारा एक आवासीय घर पर बमबारी की गई - इस बमबारी के परिणामस्वरूप, दो बच्चे भी शहीद हो गए - एक और के अनुसार रिपोर्ट के अनुसार, ज़ायोनी युद्धक विमानों ने रफ़ा के यबना शिविर में बरहुम परिवार के घर पर भी बमबारी की है।

फ़िलिस्तीन के स्वास्थ्य मंत्रालय ने गाजा में फ़िलिस्तीनी शहीदों के नवीनतम आंकड़ों की घोषणा की है और कहा है कि 7 अक्टूबर, 2012 से जारी ज़ायोनी आक्रमण में चौंतीस हज़ार तीन सौ छप्पन फ़िलिस्तीनी शहीद हो चुके हैं। फ़िलिस्तीन मंत्रालय के अनुसार स्वास्थ्य, ज़ायोनी सेना पिछले चौबीस घंटों में इक्यावन फ़िलिस्तीनी नागरिक शहीद हो गए हैं और पचहत्तर अन्य घायल हो गए हैं।

दुनियाभर में सुनियोजित तरीके से बढ़ती इस्लामॉफ़ोबिक घटनाओं के बीच तेज़ी से इस्लाम क़ुबूल करने वालों की संख्या भी बढ़ रही है। इसी क्रम में अब पुर्तगाल के एक पूर्व मशहूर फुटबॉलर ने इस्लाम क़ुबूल करने का ऐलान किया है।

प्राप्त जानकारी के मुताबिक, ईरान के इस्फ़हान के सिपाहान फुटबॉल क्लब के कोच जोरे मॉरिस ने ईरान फुटबॉल लीग मैच के बाद इस्लाम अपनाने की घोषणा की है।

इस मौके पर मॉरिस ने कहा कि उन्हें यह बताते हुए गर्व हो रहा है कि वह एक मुस्लिम हैं। मौरिस के इस्लाम धर्म अपनाने की खबरें मीडिया में सुर्खियां बटोर रही हैं।

 याद रहे कि 1965 में पुर्तगाल में पैदा हुए ज्यूर मॉरिस पुर्तगाल के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर फुटबॉल खेलते रहे है। वर्तमान में, वह इस्फ़हान में सिपाहान फुटबॉल क्लब के मुख्य कोच हैं। इस से पहले वह मोटुज़ार और सऊदी क्लब अल-हिलाल के कोच का पद भी संभाल चुके हैं और दोनों टीमों ने उनकी कोचिंग में ट्रॉफी जीती हैं।

इसके अलावा, मौरिस ने प्रमुख यूरोपीय टीमों पोर्टो, रियल मैड्रिड, चेल्सी और इंटर मिलान में जोस मोरिन्हो जैसे प्रसिद्ध कोचों के सहायक के रूप में भी काम किया है। मॉरिस पिछले कुछ महीनों से लगातार सुर्खियों में हैं।

 

 

 

भारत में जारी आम चुनाव के बीच मुस्लिम समुदाय चर्चाओं के केंद्र में है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर उनके कैबिनेट साथी और सत्ताधारी दल जहां ध्रुवीकरण के लिए मुस्लिम समाज पर निशाना साध रहे हैं वहीँ विपक्ष भी उनका वोट तो चाहता है लकिन राजनीति में उन्हें उनका अधिकार और प्रतिनिधित्व देने के लिए कोई तैयार नज़र नहीं आता।

लोकसभा चुनाव में मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट न मिलने से महाराष्ट्र कांग्रेस नेता की नाराजगी सामने आ गई है। मोहम्मद आरिफ 'नसीम' खान ने राज्य में किसी भी मुस्लिम नेता को टिकट न देने पर नाराजगी जताते हुए कांग्रेस की अभियान समिति से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने पार्टी प्रमुख मल्लिकार्जुन खरगे को चिट्ठी लिखकर कहा कि वह लोकसभा चुनाव के लिए प्रचार नहीं करेंगे, क्योंकि विपक्षी महा विकास अघाड़ी (एमवीए) गुट ने कोई भी मुस्लिम उम्मीदवार नहीं उतारा है।

मोहम्मद आरिफ नसीम खान मुंबई नॉर्थ सेंट्रल से टिकट की दौड़ में थे। लेकिन कांग्रेस ने इस निर्वाचन क्षेत्र के लिए शहर यूनिट प्रेसिडेंट वर्षा गायकवाड़ को मौका दे दिया, जिससे वह नाराज हैं।

मोहम्मद आरिफ 'नसीम' खान ने कहा कि सभी पार्टी नेता और कार्यकर्ता अब उनसे पूछ रहे हैं, "कांग्रेस को मुस्लिम वोट चाहिए, उम्मीदवार क्यों नहीं? उन्होंने खरगे को लिखी चिट्ठी में कहा, "इन सभी वजहों से मैं मुसलमानों का सामना नहीं कर पाऊंगा और मेरे पास कोई जवाब नहीं है। इसी वजह से वह महाराष्ट्र कांग्रेस अभियान समिति से भी इस्तीफा दे रहे हैं।

 

 

यमनी सशस्त्र बलों ने उत्तरी प्रांत सादा में अमेरिकी सेना के एक आधुनिक ड्रोन को मार गिराया है।

अल-मसीरा टीवी ने बताया है कि यमनी सशस्त्र बलों ने घोषणा की है कि उन्होंने अमेरिकी सेना के नवीनतम ड्रोनों में से एक एमक्यू9 को मार गिराया है, जो यमन के खिलाफ शत्रुतापूर्ण मिशन पर था कि 30 मिलियन डॉलर की कीमत वाला अमेरिकी सेना का यह ड्रोन विमान एक ऑपरेशन के दौरान मिसाइल की चपेट में आ गया और दुर्घटनाग्रस्त हो गया।

यमनी सेना के बयान में यह भी कहा गया है कि उसने लाल सागर में ब्रिटिश एंड्रोमेडा स्टार तेल टैंकर पर भी हमला किया था - यमनी सशस्त्र बलों के प्रवक्ता ने घोषणा की कि इस तरह की कार्रवाई, फिलिस्तीन के उत्पीड़ित राष्ट्र के समर्थन में और जवाब में हमारे देश पर संयुक्त राज्य अमेरिका और ग्रेट ब्रिटेन के हमले-

बयान के अंत में कहा गया है कि यमनी सेना की कार्रवाई तब तक जारी रहेगी जब तक गाजा पर हमला और उसकी घेराबंदी खत्म नहीं हो जाती.

कुछ घंटे पहले एक अमेरिकी अधिकारी ने सीबीएस टीवी चैनल को इंटरव्यू देकर यमन में एक अमेरिकी ड्रोन के नष्ट होने की पुष्टि की थी.