رضوی
इमाम हुसैन के बा वफ़ा असहाब
इमाम हुसैन अलैहिस सलाम ने फ़रमाया:मैंने अपने असहाब से आलम और बेहतर किसी के असहाब को नही पाया।
हमारी दीनी तालीमात का पहला स्रोत क़ुरआने मजीद है। क़ुरआन के बाद हम जिन रिवायात का तज़किरा करते हैं वह दो तरह की हैं: 1. जिन को दरमियाने सुखन इस्तेमाल किया जाता है। 2. जिन को उनवाने कलाम क़रार दिया जाता है। दूसरी क़िस्म के बर अक्स पहली क़िस्म के सिलसिले में सनद के हवाले से ज़्यादा बहस नही होती है।
आम्मा व ख़ास्सा के अकसर मुहद्देसीन ने इस रिवायत का ज़िक्र किया है और बाज़ ने रावी के नाम के साथ ज़िक्र करने के बजाए सिर्फ़ क़ाला के साथ इस रिवायत को बयान किया है जो मुहद्दिस के इस यक़ीन पर दलालत करता है कि यह इमाम (अ) का कलाम है।
हम भी ‘ला आलम’ का इस्तेमाल करते हैं और इमाम (अ) ने भी इस को इस्तेमाल किया है लेकिन मुतकल्लिम के ऐतेबार से इस के मअना बदल जाते हैं। हम यह जुमला कहें तो हमारी जिहालत पर दलालत करता है लेकिन जब यही लफ़्ज़ एक मुहक़्क़िक़, उस्ताद या मरजअ इस्तेमाल करता है तो यह उस चीज़ के अदमे वुजूद पर दलालत करता है। यह इकतेसाबी इल्म के उलामा हैं अब अगर इसी कलेमे को आलिमे इल्मे लदुन्नी इस्तेमाल कर रहा है तो इस का मतलब यह होगा कि इस कायनात में मेरे असहाब से बेहतर असहाब पाये ही नही जाते।
हो सकता है कि ज़ेहन में यह सवाल आये कि जब ला आलम का मअना ला यूजद है तो इमाम (अ) ने ला यूजद क्यों नही कहा तो इस का जवाब यह है कि यूजद फ़ेअले मुज़ारअ है जो हाल या ज़्यादा से ज़्यादा मुस्तिक़बिल के सिलसिले में दलालत करता है कि मेरे असहाब के जैसे असहाब नही पाये जाते है या नही पाये जायेगें लेकिन यह माज़ी को शामिल नही होता है। अगर माज़ी का सिग़ा इस्तेमाल किया जाये तो यह हाल व मुसतक़बिल को शामिल नही होगा। उन सब के बर ख़िलाफ़ ला आलम का ताअल्लुक़ मुतकल्लिम के इल्म से ताअल्लुक़ रखता है। अगर यह कलेमा एक फ़क़ीह इस्तेमाल करे तो इस का मतलब यह होगा कि फ़िक़ह की किताबों में यह मसला नही है इस का मतलब यह नही है कि ऐसा मसला कभी पेश ही नही आया या पेश नही आयेगा क्योकि हर आदमी अपने दायर ए इल्म के ऐतेबार से गुफ़तुगू करता है वह उस के आगे नही बता सकता। लिहाज़ा मुतकल्लिम के इल्म का दायरा जितना वसी होगा उस पर ला इल्म का दायरा भी उतना ही वसीअ होगा। अब अगर ऐसा मुतकल्लिम इस्तेमाल करे जो माज़ी के बारे में भी जानता हो और हाल व मुसतक़बिल के बारे में भी तो इस का मतलब है कि मेरे जैसे असहाब न माज़ी में थे न हाल में हैं और न ही कभी हो सकेगें।
यह ख़ुसूसियत सिर्फ़ असहाब की नही है कि वह अफ़ज़ल हैं बल्कि करबला मंसूब हुई तो अफ़ज़ल ज़मीन, अफ़ज़ल ख़ाक बन गई। ग़मख़्वार बहुत से हैं लेकिन हुसैनी ग़मख़ार अफ़ज़ल हैं इस लिये अगर हमें भी अफ़ज़ल बनना है तो हुसैनी बनना होगा।
इस जुमले का मतलब यह है कि जैसे असहाब इमाम हुसैन (अ) के हैं वैसे न रसूले ख़ुदा (स) के असहाब थे न अली (अ), न हसन (अ) के, क्योकि दुनिया में दूसरे अफ़राद के असहाब लायक़े तज़किरा भी नही हैं। ज़ाहिर है कि इमाम दूसरे अफ़राद के असहाब से अपने असहाब का तक़ाबुल नही करेगें। अब अगर यह पैग़म्बर (स) के असहाब से बरतर हैं तो दुनिया के तमाम असहाब से बरतर हैं।
बाज़ रिवायात में औला के बजाए औफ़ा का लफ़्ज़ है। लफ़्ज़े वफ़ा सुनने से पहले अहद व पैमान ज़ेहन में आता है कि जिसे पूरा किया जाये लेकिन तारीख़ ने इमाम हुसैन (अ) के साथ उन के असहाब का कोई ऐसा अहद व पैमान नक़्ल नही किया है बल्कि बाज़ असहाब तो रास्ते से आ कर मिलें हैं। सिर्फ़ एक अहद है और वह आलमे ज़र का अहद है। इस की ताईद उन रिवायात से भी होती है जिस में इमाम (अ) ने फ़रमाया कि मेरे यह असहाब आलमे ज़र में भी मेरे साथ थे नीज़ यह कि असहाब की एक फ़ेहरिस्त पहले से मौजूद थी।
इसी वजह से ख़ुद ख़ानदाने बनी हाशिम के बाज़ अफ़राद इमाम (अ) के साथ नही आये क्योकि यह एक राज़े इलाही है जो आलमे ज़र में तय हो चुका था और इसी से इस ऐतेराज़ का जवाब भी मिल जाता है कि जो बाज़ अहले सुन्नत करते हैं कि अगर कूफ़ा के अफ़राद नही आये तो ख़ुद ख़ानदाने बना हाशिम के भी बाज़ अफ़राद नही आये?
इस के अलावा अफ़ज़ल होने की कोई वजह होती है। यह असहाब किस ज़ाविये से, किस जेहत से सब से बेहतर हैं। तीन चीज़ें फ़र्ज़ की जा सकती है:
इजमाल, यानी इमाम (अ) की नज़र में कोई जेहत थी ही नही और यह नामुमकिन है।
तक़ईद, कलाम में कोई क़ैद भी नही है।
इतलाक़, जब क़ैद नही है तो इस का मतलब यह है कि मेरे असहाब हर ऐतेबार से दूसरे असहाब से बेहतर हैं। चाहे वह मारेफ़त का मैदान हो या इबादत, इताअत का हो या अख़लाक़ का।
यहाँ पर सिर्फ़ मारेफ़त का तज़किरा करता हूँ। जंग में मौला ए कायनात मुसल्ला बिछा देते हैं तो इब्ने अब्बास सवाल करते हैं कि मौला यह नमाज़ का वक़्त है? इमाम (अ) ने फ़रमाया कि हम इसी नमाज़ के लिये तो जंग कर रहे हैं। शायद इमाम हुसैन (अ) ने अमदन नमाज़ के लिये ख़ुद नही कहा ता कि मालूम हो जाये कि मेरे असहाब माले ग़नीमत या किसी और बुनियाद पर जंग नही कर रहे हैं।
इमाम (अ) जब यह फ़रमाते हैं तो इब्ने मज़ाहिर उठ कर यह कहते हैं
कि मेरे मौला, हम अपनी औरतों को क़बील ए बनी असद में क्यो भेजें?
इमाम (अ) ने फ़रमाया क्योकि मेरे बाद मेरी ख़्वातीन को असीर किया जायेगा।
यह सुन कर इब्ने मज़ाहिर ख़ैमे में जाते हैं और अपनी ज़ौजा को यह पैग़ाम सुनाते हैं वह कहती है कि आप का क्या इरादा है? इब्ने मज़ाहिर कहते हैं कि उठ कर मेरे साथ चलो वह कहती है ‘मा अनसफ़तनी यबना मज़ाहिर’ आप ने इंसाफ़ नही किया। क्या आप को यह गवारा है कि अहले बैत (अ) की ख़्वातीन असीर हो जायें और मैं अमान में रहूँ। आप जायें मर्दों का साथ दें.....।
हज़रते क़ासिम बिन इमाम हसन अ स
क़ासिम इमाम हसन बिन अली (अ) के बेटे थे और आप की माता का नाम “नरगिस” था मक़तल की पुस्तकों ने लिखा है कि आप एक सुंदर और ख़ूबसरत चेहरे वाले नौजवान थे और आपका चेहरा चंद्रमा की भाति चमकता था। क़ासिम बिन हसन कर्बला के मैदान में अपने चचा की तरफ़ से लड़ने वाले थे आपने 13 या 14 साल की आयु में यज़ीद की हज़ारों के सेना के साथ युद्ध किया और शहीद
हज़रते क़ासिम बिन इमाम हसन अ स
क़ासिम इमाम हसन बिन अली (अ) के बेटे थे और आप की माता का नाम “नरगिस” था मक़तल की पुस्तकों ने लिखा है कि आप एक सुंदर और ख़ूबसरत चेहरे वाले नौजवान थे और आपका चेहरा चंद्रमा की भाति चमकता था।
क़ासिम बिन हसन कर्बला के मैदान में अपने चचा की तरफ़ से लड़ने वाले थे आपने 13 या 14 साल की आयु में यज़ीद की हज़ारों के सेना के साथ युद्ध किया और शहीद हुए।
अबू मख़नफ़ हमीद बिन मुसलिम के माध्यम से कहता है कि हमीद ने रिवायत कीः हुसैन के साथियों में से एक लड़का जो ऐसा लगता था कि जैसे चाँद का टुकड़ा हो बाहर आया उसके हाथ में तलवार थी एक कुर्ता पहन रखा था और उसने जूता पहन रखा था जिसकी एक डोरी काटी गई थी और मैं कभी भी यह नही भूल सकता कि वह उसके बाएं पैरा का जूता था।
हज़रत क़ासिम की शादी
क़ासिम बिन हसन कर्बला के मैदान में अभी 15 साल के नहीं हुए थे, मक़तले अबी मख़नफ़ में आया हैः क़ासिम कर्बला में 14 साल के थे, अल्लामा मजलिसी का मानना है कि हज़रत क़ासिम की शादी के बारे में कोई ठोस दस्तावेज़ मौजूद नहीं है।
हज़रत क़ासिम की शादी को सबसे पहले इन दो किताबों मे बयान किया गया है, शेख़ फ़ख़्रुद्दीन तुरैही की पुस्तक “मुंतख़बुल मरासी”, और दूसरी मुल्ला हुसैन काशेफ़ी की पुस्तक “रौज़तुल शोहदा”। और यह दोनों पहली मक़तल की पुस्तकें है जो फ़ारसी भाषा में लिखी गई हैं।
इस बारे में रिवायत बयान की जाती है कि मदीने से कर्बला की यात्रा के बीच हसन बिन हसन ने अपने चचा से आपकी दो बेटियों में से एक से शादी का प्रस्ताव रखा।
इमाम हुसैन ने कहाः जो तुमको अधिक पसंद हो उसको चुन लो, हसन शर्मा गये और कोई उत्तर नहीं दिया।
इमाम हुसैन ने फ़रमायाः मैंने तुम्हारे लिये फ़ातेमा का चुनाव किया है जो मेरी माँ और पैग़म्बर की बेटी के जैसी है।
इससे पता चलता है कि कर्बला में फ़ातेमा अवश्य मौजूद थी। अब अगर हम यह मान लें कि क़ासिम की शादी हुई है , तो हमको यह कहना होगा कि इमाम हुसैन की दो बेटिया थी जिनका नाम फ़ातेमा था जिनमें से एक की शादी हसन के साथ की गई और दूसरी की क़ासिम के साथ, या हम यह कहें कि वह बेटी जिसकी शादी क़ासिम के साथ हुई है उसका नाम फ़ातेमा नहीं था, और इतिहास की पुस्तकों ने उसका नाम लिखने में ग़ल्ती की है, और अगर हम क़ासिम की शादी को सही न मानें तो हम यह कह सकते हैं कि रावियों और मक़तल के लिखने वालों ने गल्ती से हसन के स्थान पर क़ासिम का नाम लिख दिया है और यहीं से क़ासिम की शादी की बात सामने आई है।
बहर हाल कारण कोई भी हो लेकिन आशूरा की घटनाओं के अधिकतर शोधकर्ताओं ने क़ासिम की शादी को ग़लत माना है, मोहद्दिस क़ुम्मी मुनतहल आमाल और नफ़सुल महमूल में क़ासिम की शादी का इन्कार करते हैं और लिखते हैं: इतिहास लिखने वालों ने हसन के स्थान पर ग़ल्ती से क़ासिम का नाम लिख दिया है।
शहीद मुतह्हरी भी क़ासिम की शादी को सही नहीं मानते हैं और कहते हैं कि किसी भी मोतबर पुस्तक में इस चीज़ के बारे में बयान नहीं किया गया है और हाजी नूरी का भी यह मानना है कि मुल्लाह हुसैन काशेफ़ी वह पहले इंसान है जिन्होंने अपनी पुस्तक रौज़तुश शोहदा में इस बात को लिखा है और यह ग़लत है।
शबे आशूर
आशूर की रात को क़ासिम की आयु 13 (1) या 16 साल थी। (2)
मक़तल की किताबों में है कि आशूर की रात इमाम हुसैन ने चिराग़ को बुझा दिया और फ़रमायाः जो भी जाना चाहता है चला जाए, लेकिन कोई न गया हर तरफ़ से रोने की आवाज़े बुलंद हो गई, उसके बाद इमाम हुसैन ने आशूर के दिन शहीद होने वालों के नाम बताने शुरू किये, कभी का अब्बास तुम्हारे शाने काटे जाएंगे, तो कभी कहा अकबर तुम्हारे सीने में बरछी लगेगी, कभी हबीब का नाम लिया को तभी जौन का, कभी औन व मोहम्मद को शहादत की सूचना दी तो कभी मुसलिम बिन औसजा को इस बीच क़ासिम हैं जो एक कोने में खड़े हुए हैं और अपने नाम की प्रतीक्षा कर रहे हैं, लेकिन चूँकि क़ासिम की आयु अभी बहुत कम है इसलिये उनसे धैर्य नहीं रखा जाता है और इमाम हुसैन से कहते हैं, हे चचा क्या कल मैं भी शहीद होऊँगा?
हुसैन क़ासिम से पूछते हैं कि मौत तुम्हारी नज़र में कैसी है?
आपने कहाः शहद से अधिक मीठी
इमाम ने कहाः हां ऐ क़ासिम कल तुम भी शहीद होगे।
युद्ध की अनुमति मांगना
क़ासिम औन और मोहम्मद के बाद इमाम हुसैन के पास आते हैं और कहते हैं चचा जान अब मुझे में मरने की अनुमति दे दीजिये। लेकिन हुसैन ने आपको अनुमति नहीं दी आपने बहुत इसरार किया और आख़िरकार इमाम ने उनको अनुमति दे दी, एक रिवायत में है कि इमाम सज्जाद (अ) से एक हदीस में आया है कि क़ासिम अली अकबर के बाद मैदाने जंग में गये हैं। (3)
आप मैदान में आते हैं और परंपरा के अनुसार सिंहनाद पढ़ते हैं
إن تُنكِرونی فَأَنَا فَرعُ الحَسَن سِبطُ النَّبِیِّ المُصطَفى وَالمُؤتَمَن
هذا حُسَینٌ كَالأَسیرِ المُرتَهَن (4) بَینَ اُناسٍ لا سُقوا صَوبَ المُزَن
उसके बाद आपने युद्ध करना शुरू किया और 35 यज़ीदियों को मार गिराया। (5)
उमरो बिन सईद बिन नफ़ैल अज़्ज़ी ने जब आपको जंग करते हुए देखा तो क़सम खाईः अबी उस पर हमला करूँगा और उसको मार दूँगा।
उससे लोगों ने कहाः सुब्हान अल्लाह यह तुम क्या कार्य करोगे?
तुम देख रहे हो कि उसको चारों तरफ़ से घेरा चा चुका है और यही लोग उसको मार देंगे।
उसने कहाः ईश्वर की सौगंध मैं स्वंय उसकी हत्या करूँगा, उसने यह कहा और क़ासिम पर हमला कर दिया, और क़ासिम के सर पर तलवार मारी, क़ासिम घोड़े से गिर गये।
आवाज़ दी चचा जान सहायता कीजिये, इमाम हुसैन ने नफ़ैल पर हमला किया और उसका हाथ काट दिया, घुड़सवार नफ़ैल को बचाने के लिये दौड़े लेकिन इस दौड़ में क़ासिम का नाज़ुक बदन घोड़ों की टापों के बीट माला हो गया, और क़ामिस इस दुनिया से चले गये। (6)
ज़ियारते नाहिया में हज़रत क़ासिम पर यूँ मरसिया पढ़ा गया हैः
السَّلامُ عَلَى القاسِمِ بنِ الحَسَنِ بنِ عَلِیٍّ، المَضروبِ عَلى هامَتِهِ، المَسلوبِ لامَتُهُ، حینَ نادَى الحُسَینَ عَمَّهُ، فَجَلا عَلَیهِ عَمُّهُ كَالصَّقرِ، وهُوَ یَفحَصُ بِرِجلَیهِ التُّرابَ وَ الحُسَینُ یَقولُ : «بُعداً لِقَومٍ قَتَلوكَ ! و مَن خَصمُهُم یَومَ القِیامَةِ جَدُّكَ و أبوكَ
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(1) मक़तले ख़्वारज़मी
(2) लेबाबुल अंसाब
(3) अमाली शेख़ सदूक़, पेज 226
(4) मक़तले ख़्वारज़मी
(5) मक़तले ख़्वारज़मी
(6) तरीख़े तबरी और प्रसिद्ध स्रोत
इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े में मजलिसों का सिलसिला शुरू, रहबरे इंक़ेलाब भी शामिल हुए
तेहरान के इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े में शुक्रवार 6 मोहर्रम की रात को शहीदों के सरदार इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की पहली मजलिस का आयोजन हुआ, जिसमें इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने शिरकत की।
तेहरान के इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े में शुक्रवार 6 मोहर्रम की रात को शहीदों के सरदार इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की पहली मजलिस का आयोजन हुआ, जिसमें इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने शिरकत की।
क्या रसूल खु़दा उम्मत को बिना किसी इमाम के छोड़ कर चले गए
लखनऊ के मशहूर छोटे इमामबाड़े, हुसैनाबाद में हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मौलाना अकी़ल अब्बास मरूफी़ ने खिताब करते हुए फरमाया,क्या वाकियन इस बात को तस्लीम किया जा सकता है कि जिस रसूल ने रिसालते इलाहिया की तबलीग़ में तमाम रंजो अलम उठाए, काटों भरे दुश्वार रास्ते तये किए, तरहं तरहं की सख्ति़यां और अज़ीयतें बर्दाश्त की और किसी छोटे से छोटे हुक्मे इलाही को बयां करने से गुरेज नहीं किया तो इतने बड़े मसले, मसले खि़लाफत को कैसे छोड़ सकता है और मुसलमानों का रहनुमा, रहबर और ख़लीफा़ और इमाम मुअय्यन किए बग़ैर कैसे लोगों को उनके हाल पर छोड़ कर दुनिया से चला जाए?
लखनऊ के मशहूर छोटे इमामबाड़े, हुसैनाबाद में 2 साल से रात 8:15 बजे अशरा ए मजालिस का एहतिमाम किया जा रहा है जिस अशरा ए मजालिस को मौलाना अकी़ल अब्बास मारूफी़ साहब खि़ताब कर रहे हैं मौलाना ने फरमाया,
मजलिस को खि़ताब करते हुए मौलाना ने फरमाया,क्या वाके़यन इस बात को तस्लीम किया जा सकता है कि जिस रसूल ने रिसालते इलाहिया की तबलीग़ में तमाम रंजो अलम उठाए, काटों भरे दुश्वार रास्ते तये किए, तरहं तरहं की सख्ति़यां और अज़ीयतें बर्दाश्त की और किसी छोटे से छोटे हुक्मे इलाही को बयां करने से गुरेज नहीं किया तो इतने बड़े मसले, मसले खि़लाफत को कैसे छोड़ सकता है और मुसलमानों का रहनुमा, रहबर और ख़लीफा़ और इमाम मुअय्यन किए बग़ैर कैसे लोगों को उनके हाल पर छोड़ कर दुनिया से चला जाए?
इसके बाद मौलाना ने करबला में हुए जुल्म को बयान किया तो मजमा अश्कबार हो गया।
हिजबुल्लाह की दो टूक, हमास का समर्थन जारी रखेंगे
लेबनान के लोकप्रिय जनांदोलन और प्रभावी राजनैतिक दल हिज़्बुल्लाह और अवैध राष्ट्र इस्राईल के बीच तनाव अपने चरम पर है।
लेबनान के रेसिस्टेंस ग्रुप हिज्बुल्लाह ने जानकारी दी कि उसने जायोनी सेना की स्ट्राइक के जवाब में ड्रोन हमले किए हैं।
हिज़्बुल्लाह ने कहा कि उसने नॉर्दन बॉर्डर पर ज़ायोनी सेना के ठिकानों को निशाना बनाया है। 10 जून को अवैध राष्ट्र ने लेबनान की सीमा के अंदर हवाई हमले किए थे। अल जजीरा की खबर के मुताबिक इन हमलों में हिज्बुल्लाह चीफ हसन नसरुल्लाह का पूर्व बॉडीगार्ड मारा गया है।
तालिबान से निपटने के लिए चीन ने पड़ोसी देश में बनाया सैन्य अड्डा
तालिबान की हरकतों से चिंतित चीन ने ताजिकिस्तान में सीक्रेट मिलिट्री बेस बनाया है। यह खुलासा सैटेलाइट तस्वीरों से हुआ है । असल में चीन ने ताजिकिस्तान में काफी ज्यादा निवेश कर दिया है।
चीन अपने निवेश को बचाए रखने के लिए वह मिलिट्री फुटप्रिंट बढ़ाना चाहता है।
चीन ने ताजिकिस्तान में जो निवेश किया है, उसे अफगानिस्तान के तालिबान से खतरा है। इसलिए चीन वहां मिलिट्री बेस बना रहा है। इसके बारे में किसी को कुछ पता नहीं था लेकिन अब सैटेलाइट तस्वीर आने के बाद यह खुलासा हो चुका है। चीन ने इस सीक्रेट मिलिट्री फैसिलिटी को 13 हजार फीट ऊंचे पहाड़ पर बनाया है।
गाजा: इजराइल के क्रूर आतंकी हमले, शहीदों की संख्या 38 हजार 345
गाजा के स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक बयान जारी कर कहा है कि गाजा पट्टी के विभिन्न क्षेत्रों पर ज़ायोनी आक्रमण में शहीदों की संख्या 38 हजार 345 हो गयी है। गाजा के स्वास्थ्य मंत्रालय ने यह भी बताया है कि इस हमले में घायलों की संख्या 88 हजार 295 तक पहुंच गई है।
स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक, पिछले 24 घंटों में गाजा पट्टी के विभिन्न इलाकों में कम से कम 50 फिलिस्तीनी शहीद हो गए और 54 घायल हो गए।
गौरतलब है कि 7 अक्टूबर के बाद से गाजा के खिलाफ ज़ायोनी सरकार की आक्रामकता में 38,000 से अधिक फ़िलिस्तीनी शहीद हो चुके हैं, जिनमें बड़ी संख्या बच्चों और महिलाओं की है।
45 दिनों की लड़ाई के बाद, 24 नवंबर को इज़राइल और हमास के बीच संघर्ष विराम पर हस्ताक्षर किए गए, जिसके दौरान कैदियों का आदान-प्रदान किया गया।
7 दिनों तक जारी रहने के बाद अस्थायी युद्धविराम हुआ और पहली दिसंबर से ज़ायोनी सरकार ने ग़ाज़ा पर फिर से हमले शुरू कर दिए, जो अब भी जारी हैं और बड़े पैमाने पर नागरिक शहीद हो रहे हैं।
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम नजात की कश्ती और हिदायत का चिराग हैं।
आज इमामबाड़ा गुफरान मआब में अशरए मोहर्रम की चौथी मजलिस को खिताब करते हुए मौलाना कल्बे जवाद नक़वी साहब ने हदीसे रसूल की रोशनी में अहलेबैत अलै. और इमाम हुसैन की अजमत को बयान करते हुए फ़रमाया कि रसूल अल्लाह स. ने फ़रमाया है कि मेरा हुसैन हिदायत का चिराग और नजात की कश्ती है दूसरी हदीस में है कि मेरे अहले बैत की मिसाल नूह की कश्ती जैसी है जो इस पर सवार हुआ वह नजात पा गया और जिसने अपना मुंह मोड़ लिया वह डूब गया पहली हदीस में रसूल ने सिर्फ इमाम हुसैन को नजात की कश्ती बताया है और दूसरी हदीस में तमाम अहलेबैत को सफिनए नजात बताया है मौलाना ने कहा कि हमारे लिए रसूल अकरम स. की सीरत और सुन्नत हुज्जत है मौलाना ने मसाएब में जनाबे मुस्लिम के बेटों की शहादत का जिक्र इस तरह से किया कि मजमे में कोहराम मच गया और गिरिया की आवाज़ बुलंद हो गई।
ज़ैनब बिन्ते अली , कर्बला की नायिका
ज़ैनब, शहीदों के ख़ून का संदेश लानी वाली, अबाअब्दिल्लाहिल हुसैन (अ) की क्रांति की सूरमा, अत्याचारियों और उनके हामियों को अपमानित करने वाली, सम्मान, इज़्ज़त, लज्जा, सर बुलंदी और श्रेष्ठता की उच्चतम चोटी पर स्थित महिला का नाम है।
पैग़म्बरे इस्लाम (स) के परिवार में हज़रत ज़ैनब (स) का स्थान इतना अधिक उच्च और आपका पद इतना ऊँचा है कि क़लम आपकी श्रेष्ठता को लिख नहीं सकता और ज़बान उसको बयान नहीं कर सकती है।
महान फ़क़ीह और इतिहासकार अल्लामा मोहसिन अमीन आमुली हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाहे अलैहा की महानता को बयान करते हुए फ़रमाते हैं
“हज़रत ज़ैनब, महिलाओं में सबसे अधिक महान और उनकी फ़ज़ीलत इससे कहीं अधिक है कि उसको बयान किया जा सके या क़लम उसके लिख सके”।
हज़रत ज़ैनब (स) के व्यक्तित्व की उच्ता, महानता, तार्किक शक्ति, अक़्ल की श्रेष्ठता, ज़बान की फ़साहत और बयान की बलाग़त कूफ़े और शाम में आपने जो ख़ुत्बे दिये हैं उनमें दिखाई देती है और बताती है कि यह उस अली (अ) की बेटी है जिसने अपने युग में वह खुत्बे दिये कि अगर आज उनके एक छोटे से भाग को एक पुस्तक के रूप में संकलित कर दिया गया तो उसका नाम नहजुल बलाग़ा हो गया और दुनिया आज भी उसको देखकर अचंभित है। आपने यज़ीद और इबने जियाद के मुक़ाबले में इस प्रकार तार्किक बाते की हैं और ख़ुत्बे दिये हैं कि इन मलऊनों को ख़ामोश कर दिया और उनको इतना तर्क विहीन कर दिया कि उन लोगों ने बुरा भला कहने, गालियां देने और उपहास को अपना हथियार बनाया जो यह दिखाता है कि उनके पास अपने बचाओ के लिये कोई तर्क नहीं रह गया है।
हज़रत ज़ैनब (स) ने अपने चचाज़ाद अब्दुल्लाह बिन जाफ़र बिन अबी तालिब से शादी की और आपके “अली ज़ैनबी” “औन” “मोहम्मद” “अब्बास” और “उम्मे कुलसूम” नामक संतानें हुआ जिनमें से औन और मोहम्मद कर्बला के मैदान में विलायत की सुरक्षा करते हुए हुसैन (अ) पर शहीद हो गये।
हज़रत ज़ैनब (स) एक ऐसी हस्ती हैं जिनको इतिहास की पुस्तकों में “उम्मुल मसाएब” यानी मुसीबतों की माँ कहा गया है, और अगर आपकी जीवनी का अध्ययन किया जाए तो पता चलता है कि आपको उम्मुल मसाएब सही कहा गया है, उन्होंने अपने नाना पैग़म्बरे इस्लाम (स) के निधन का दुख देखा, अपनी माँ और सैय्यद ए निसाइल आलमीन हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स) की अत्याचारों और ज़ुल्म सहने के बाद शहादत को देखा, अपने पिता अमरुल मोमिनी हज़रत अली (अ) के ग़मों और अंत में इबने मुलजिम के हाथों मस्जिद में शहादत को बर्दाश्त किया, आपने अपने भाई हसन (अ) के जिगर के बहत्तर टुकड़ों को तश्त में गिरते देखा, और इन सबके बाद कर्बला में अपने चहेते भाई हुसैन (अ) को तीन दिन का भूखा प्यासा बर्बरता से शहीद होते देखा, औऱ आपकी मुसीबतें यहीं समाप्त नहीं हुईं बल्कि हुसैन (अ) की शहादत के बाद क़ैदी बना कर आपको अहले हरम के साथ कभी कूफ़ा के बाज़ारों में बे पर्दा घुमाया गया तो कभी शाम के दरबार में यज़ीदियों के सामने लाया गया।
ज़ैनब (स) इमाम हुसैन (अ) की क्रांति के आरम्भ से ही अपने भाई के साथ थी और इस आन्दोलन के हर पड़ाव पर अपने भाई की हमदम और हमराह थी, शबे आशूर कभी अपने भाई से बात करती दिखाई देतीं हैं तो, कभी आशूर के दिन शहीदों की लाशों का स्वागत करती है, ग्यारह मोहर्रम की रात हुसैन की पामाल लाश के पास फ़रियाद करना और पैग़म्बर (स) को संबोधित करके यज़ीदियों की शिकायत करना यह सब आपके जीवन के वह स्वर्णिम अध्याय हैं जो आपकी महानता, श्रेष्ठता और फ़ज़ीलत को बयान करते हैं।
आपने आशूर के बाद यतीम बच्चों की सरपरस्ती की औऱ हुसैन (अ) के आन्दोलन को जन जन तक पहुँचाया।
कूफे में जब लोगों ने पैग़म्बर (स) के परिवार वाली को इस दयनीय स्थिति में देखा और रोना आरम्भ किया तो आपने इस प्रकार फ़रमायाः
“हे कूफ़े वालों! हे धोखे बाज़ों! और ख़यानत करने वालों और बेवफ़ाओं! तुम्हारी आँखों से आँसू न सूखें और तुम्हारी आवाज़ें बंद न हो.... वाय हो तुम पर जानते हो पैग़म्बर के किस जिगर को टुकड़े टुकड़े किया है और किस संधि को तोड़ा है और कौन पर्दा नशीन महिलाओं को बाहर लाए हो और उनके सम्मान को ठेस पहुँचाई है और किस ख़ून को बहाया है”
कूफ़े में ज़ैनब (स) के रूप में अली (अ) थे जो बोल रहे थे और जिन्होंने अली को सुना था वह कह रहे थे “ईश्वर की सौगंध इस प्रकार की बा हया और पर्देदार बोलने वाली महिला को नहीं देखा थे ऐसा लगता है जैसे कि अपने अंदर अली (अ) की ज़बान रखती है”।
जब इबने ज़ियाद ने अहंकार में चूर हो कर अपने दरिंगदी दिखाते हुए आलुल्लाह को बुरा भला कहा तो आपने सदैव बाक़ी रह जाने वाले शब्दों से उसको झूठ को उजागर कर दिया और फ़रमायाः
“ईश्वर की सौगंध, तू ने हमारे बुज़ुर्ग को क़त्ल कर दिया और मेरे परिवार को बरबाद कर दिया और मेरी शाखों को काट दिया और मेरी जड़ों को उखाड़ दिया, अगर यह कार्य तेने इंतेक़ाम की आग को ठंडा करता है तो तू ठंडा हो गया”।
और जब यज़ीद ने अपने तख़्त पर बैठ कर अपने लोगों और दूसरे देशों से आए दूतों के सामने अपनी शक्ति को दिखाने के लिये यह दिखाना चाहा कि जो कुछ हुआ है वह अल्लाह का किया हुआ है, तो हज़रत ज़ैनब (स) उठ खड़ी हईं और अपने अपने ख़ुत्बे को इस प्रकार आरम्भ कियाः
“हे आज़ाद किये गए दासों के बेटे (यह कहकर आपने सबके सामने यज़ीद की वास्तविक्ता को खोल कर रख दिया) क्या यह न्याय है कि तेरी औरते हैं दासिया तो पर्दे में रहे और पैग़म्बर के ख़ानदान की औरतों को तू क़ैदी बनाए? तूने उनके पर्दों को खोल दिया उनके चेहरों को खोल दिया और उनको एक शहर से दूसरे शहर घुमाते हैं”?
आपने अपने इस थोड़े से शब्दों से यज़ीद के सारे इतिहास जंग में ग़ुलाम होने और आज़ाद किये जाने उसके पूर्वजों के इस्लाम लाने आदि को बयान कर दिया और इस प्रकार सबको यह बता दिया कि यह व्यक्ति जो अपने आप को ख़लीफ़ा कह रहा है और इस्लामी हुकूमत पर राज कर रहा है वह इसके योग्य नहीं है।
यह हज़रत ज़ैनब (स) के ख़ुत्बों और शब्दों का ही प्रभाव था कि यज़ीन ने शाम को उग्र होते हुए देखा और उसकों चिंता हुई की कही अली की बेटी की यह बातें उसके तख़्त को न हिला दें तो उसने आपको शाम से मदीने की तरफ़ भेज दिया।
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दानिशनान ए अमीरुल मोमिनीन (अ) जिल्द 1 पेज 167
मुहर्रम के पहले जुमे को 45 देशों में मनाया जाता है अंतरराष्ट्रीय अली असग़र दिवस।
अंतरराष्ट्रीय अली असग़र दिवस के प्रोग्राम में माएं अपने दुधमुंहे बच्चों को करबला में शहीद होने वाले 6 महीने के अली असग़र की याद में मख़सूस हरा लिबास पहनाकर लाती हैं और हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम से नज़्र व अहद करती हैं।
ऐ साहिबुज़्ज़मान। मैं अपने बच्चे को आपकी नुसरत व मदद के लिए नज़्र कर रही हूं। इसको अपने ज़ुहूर के लिए जो क़रीब है चुन लीजिए और हिफ़ाज़त फ़रमाइये।
ज्ञात रहे कि अली असग़र दिवस दुनिया के 45 देशों में मुहर्रम महीने के पहले जुमे को एक साथ मनाया जाता है।
हज़रत अली असग़र, इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के 6 महीने के बेटे थे जो करबला में मौजूद थे यह भी भूखे प्यासे थे और जब इमाम हुसैन अलै. ने इनके लिए पानी मांगा तो हुरमुला ने तीन भाल के तीर से इन्हें भी भूखा प्यासा बेरहमी से शहीद कर दिया था।













